आज मैं आपको एक ऐसी बहादुर लड़की की कहानी सुना रहा हूं, जिसने इस बार की ईद सलाखों के पीछे मनाई। लेकिन यह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं है, बल्कि बलूचिस्तान की हजारों माताओं, बेटियों, बहनों और पत्नियों की कहानी है। सामी दीन बलूच की यह कहानी आपको आज के बलूचिस्तान को समझने में मदद करेगी। मैं सामी को तब से जानता हूं, जब वह सिर्फ 10 साल की थी। उसके पिता डॉ. दीन मोहम्मद बलूच बलूचिस्तान के खुजदार जिले के ओरनाच में एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे। 28 जून 2009 को उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने बलूच अलगाववादियों के साथ संबंध होने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उन्हें कभी किसी अदालत में पेश नहीं किया गया। उनकी पत्नी और स्कूल जाने वाली दो बेटियों ने अदालत में याचिका दायर की, लेकिन उन्हें कभी न्याय नहीं मिला। एक दिन 10 साल की सामी अपने पिता के लिए आवाज उठाने इस्लामाबाद आई। मैंने उसे प्रेस क्लब के सामने देखा। उसके हाथ में अपने पिता की तस्वीर थी। वह बलूचिस्तान के अन्य लापता लोगों के परिवारों के साथ बैठी थी। मैंने अपने टीवी शो जियो न्यूज में उसकी आवाज उठाई। सामी की बस यही मांग थी कि अगर उसके पिता किसी अवैध गतिविधि में शामिल हैं, तो उन्हें अदालत में पेश किया जाए, वरना रिहा किया जाए। फरवरी 2014 में, जब वह सिर्फ 15 साल की थी, एक ऐतिहासिक लॉन्ग मार्च का हिस्सा बनी। यह मार्च क्वेटा से कराची और फिर कराची से इस्लामाबाद तक किया गया था, जिसमें बलूचिस्तान में जबरन गायब किए गए लोगों के मुद्दे को उठाया गया था। इस मार्च की अगुवाई 72 वर्षीय मामा कदीर बलूच कर रहे थे। सामी और अन्य प्रदर्शनकारियों ने 2,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पैदल पूरी की थी। जब वे इस्लामाबाद पहुंचे, तो मैंने अपने टीवी शो में मामा कदीर और सामी को आमंत्रित किया। लेकिन मेरे शो से कुछ मिनट पहले पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रवक्ता जनरल असीम सलीम बाजवा मेरे ऑफिस आए और मुझसे मामा कदीर और सामी का इंटरव्यू न लेने के लिए कहा। मैंने इससे मना कर दिया। शो के दौरान जब ब्रेक हुआ, तो मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का फोन आया, जो मेरा शो देख रहे थे। उन्होंने इन बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने की इच्छा जताई। मैंने अगले दिन सुबह 11 बजे उनकी मुलाकात तय कर दी। शो रात 9 बजे खत्म हुआ। सामी इस बात से बेहद उत्साहित थी कि वह अगले दिन प्रधानमंत्री से मिलेगी और फिर उसके पिता जल्द लौट आएंगे। लेकिन उसी रात मामा कदीर, सामी और अन्य प्रदर्शनकारियों को इस्लामाबाद से जबरन बाहर निकाल दिया गया। खुफिया एजेंसियों ने प्रधानमंत्री को कभी भी बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने नहीं दिया। कुछ हफ्तों बाद कराची में मुझ पर एक जानलेवा हमला हुआ। मुझे छह गोलियां लगीं, लेकिन किस्मत से मैं बच गया। कुछ समय बाद नवाज शरीफ को सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया। साल 2016 में जब सामी 17 साल की थी, उसे खुफिया एजेंसियों ने गायब करवा दिया और कई दिनों तक क्वेटा में गैरकानूनी हिरासत में रखा गया। 2018 में सुरक्षा एजेंसियों ने उसके गांव में स्थित घर को जला दिया और पूरे परिवार को गांव से बाहर करवा दिया गया। इसके बाद वह कराची चली गई। 2021 में वह फिर इस्लामाबाद आई और अन्य लापता लोगों के परिवारों के साथ एक विरोध रैली का आयोजन किया। इस बार उसने मुझसे प्रधानमंत्री इमरान खान से उसकी मुलाकात तय कराने की गुजारिश की। मैंने उस मीटिंग की व्यवस्था करवाई। प्रधानमंत्री ने खुफिया एजेंसियों को उसके पिता को खोजने का आदेश दिया। लेकिन इमरान खान भी नवाज शरीफ की तरह शक्तिहीन साबित हुए। कुछ समय बाद उन्हें भी सत्ता से बेदखल कर दिया गया। दिसंबर 2023 में सामी एक बार फिर महरंग बलूच और अन्य बलूच महिलाओं के साथ इस्लामाबाद आई। उन्हें पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ा और राजधानी में प्रवेश करने से रोक दिया गया। 250 से अधिक बलूच महिलाओं और बच्चों को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया, लेकिन पुलिस ने उन्हें इस्लामाबाद से जबरन निकालने की कोशिश की। जब मैंने इस अवैध कार्रवाई को रोकने की कोशिश की, तो मुझे भी मारा गया और बुरा बर्ताव किया गया। एक पुलिस अधिकारी इश्फाक वाराइच चिल्लाया कि सामी और महरंग ‘भारतीय एजेंट’ हैं। दिसंबर और जनवरी की कड़ाके की ठंड में उन्होंने इस्लामाबाद में एक महीने तक धरना दिया, लेकिन उन्हें कोई न्याय नहीं मिला और वे खाली हाथ लौट गईं। जुलाई 2024 में ग्वादर में एक प्रदर्शन के दौरान सामी और महरंग को दोबारा से गिरफ्तार कर लिया गया। मार्च 2025 में सामी को कराची और महरंग को क्वेटा से फिर गिरफ्तार कर लिया गया। सिंध हाईकोर्ट ने सामी को जमानत पर रिहा कर दिया, लेकिन पुलिस ने अदालत परिसर से ही उसे दोबारा गिरफ्तार कर लिया। इस बार उसने ईद का त्योहार जेल में बिताया। उसे ईद के अगले दिन रिहा किया गया। सामी अब 26 साल की हो चुकी है। पिछले 16 सालों से वह सड़कों पर संघर्ष कर रही है। सरकार अब भी उसके पिता के बारे में कुछ भी बताने को तैयार नहीं है। वह कराची की एक यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की छात्रा है, लेकिन उसे गिरफ्तार करके सरकार ने उसकी शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए। मेरे लिए वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों के लिए वह ‘आतंकियों की सहयोगी’ है। सामी ने कभी कोई कानून नहीं तोड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश, इस देश ने बार-बार कानून तोड़ा, पहले उसके पिता को अगवा करके और फिर सामी को कई बार अवैध रूप से गिरफ्तार करके। एक लड़की की बहादुरी ने आखिरकार बंदूकों के डर को हरा दिया है। देखने में वह असहाय लगती है, लेकिन असल में पाकिस्तान का संविधान असहाय है, जो हजारों सामियों को न्याय दिलाने में विफल हो चुका है। —————- ये कॉलम भी पढ़ें… हक्कानी के सिर से हटा एक करोड़ अमेरिकी डॉलर इनाम:तालिबान से बात करने को क्यों मजबूर पाकिस्तान, रूस, चीन और अमेरिका? आज मैं आपको एक ऐसी बहादुर लड़की की कहानी सुना रहा हूं, जिसने इस बार की ईद सलाखों के पीछे मनाई। लेकिन यह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं है, बल्कि बलूचिस्तान की हजारों माताओं, बेटियों, बहनों और पत्नियों की कहानी है। सामी दीन बलूच की यह कहानी आपको आज के बलूचिस्तान को समझने में मदद करेगी। मैं सामी को तब से जानता हूं, जब वह सिर्फ 10 साल की थी। उसके पिता डॉ. दीन मोहम्मद बलूच बलूचिस्तान के खुजदार जिले के ओरनाच में एक सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे। 28 जून 2009 को उन्हें पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने बलूच अलगाववादियों के साथ संबंध होने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया। लेकिन उन्हें कभी किसी अदालत में पेश नहीं किया गया। उनकी पत्नी और स्कूल जाने वाली दो बेटियों ने अदालत में याचिका दायर की, लेकिन उन्हें कभी न्याय नहीं मिला। एक दिन 10 साल की सामी अपने पिता के लिए आवाज उठाने इस्लामाबाद आई। मैंने उसे प्रेस क्लब के सामने देखा। उसके हाथ में अपने पिता की तस्वीर थी। वह बलूचिस्तान के अन्य लापता लोगों के परिवारों के साथ बैठी थी। मैंने अपने टीवी शो जियो न्यूज में उसकी आवाज उठाई। सामी की बस यही मांग थी कि अगर उसके पिता किसी अवैध गतिविधि में शामिल हैं, तो उन्हें अदालत में पेश किया जाए, वरना रिहा किया जाए। फरवरी 2014 में, जब वह सिर्फ 15 साल की थी, एक ऐतिहासिक लॉन्ग मार्च का हिस्सा बनी। यह मार्च क्वेटा से कराची और फिर कराची से इस्लामाबाद तक किया गया था, जिसमें बलूचिस्तान में जबरन गायब किए गए लोगों के मुद्दे को उठाया गया था। इस मार्च की अगुवाई 72 वर्षीय मामा कदीर बलूच कर रहे थे। सामी और अन्य प्रदर्शनकारियों ने 2,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा पैदल पूरी की थी। जब वे इस्लामाबाद पहुंचे, तो मैंने अपने टीवी शो में मामा कदीर और सामी को आमंत्रित किया। लेकिन मेरे शो से कुछ मिनट पहले पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रवक्ता जनरल असीम सलीम बाजवा मेरे ऑफिस आए और मुझसे मामा कदीर और सामी का इंटरव्यू न लेने के लिए कहा। मैंने इससे मना कर दिया। शो के दौरान जब ब्रेक हुआ, तो मुझे तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का फोन आया, जो मेरा शो देख रहे थे। उन्होंने इन बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने की इच्छा जताई। मैंने अगले दिन सुबह 11 बजे उनकी मुलाकात तय कर दी। शो रात 9 बजे खत्म हुआ। सामी इस बात से बेहद उत्साहित थी कि वह अगले दिन प्रधानमंत्री से मिलेगी और फिर उसके पिता जल्द लौट आएंगे। लेकिन उसी रात मामा कदीर, सामी और अन्य प्रदर्शनकारियों को इस्लामाबाद से जबरन बाहर निकाल दिया गया। खुफिया एजेंसियों ने प्रधानमंत्री को कभी भी बलूच कार्यकर्ताओं से मिलने नहीं दिया। कुछ हफ्तों बाद कराची में मुझ पर एक जानलेवा हमला हुआ। मुझे छह गोलियां लगीं, लेकिन किस्मत से मैं बच गया। कुछ समय बाद नवाज शरीफ को सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य घोषित कर दिया। साल 2016 में जब सामी 17 साल की थी, उसे खुफिया एजेंसियों ने गायब करवा दिया और कई दिनों तक क्वेटा में गैरकानूनी हिरासत में रखा गया। 2018 में सुरक्षा एजेंसियों ने उसके गांव में स्थित घर को जला दिया और पूरे परिवार को गांव से बाहर करवा दिया गया। इसके बाद वह कराची चली गई। 2021 में वह फिर इस्लामाबाद आई और अन्य लापता लोगों के परिवारों के साथ एक विरोध रैली का आयोजन किया। इस बार उसने मुझसे प्रधानमंत्री इमरान खान से उसकी मुलाकात तय कराने की गुजारिश की। मैंने उस मीटिंग की व्यवस्था करवाई। प्रधानमंत्री ने खुफिया एजेंसियों को उसके पिता को खोजने का आदेश दिया। लेकिन इमरान खान भी नवाज शरीफ की तरह शक्तिहीन साबित हुए। कुछ समय बाद उन्हें भी सत्ता से बेदखल कर दिया गया। दिसंबर 2023 में सामी एक बार फिर महरंग बलूच और अन्य बलूच महिलाओं के साथ इस्लामाबाद आई। उन्हें पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ा और राजधानी में प्रवेश करने से रोक दिया गया। 250 से अधिक बलूच महिलाओं और बच्चों को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें रिहा करने का आदेश दिया, लेकिन पुलिस ने उन्हें इस्लामाबाद से जबरन निकालने की कोशिश की। जब मैंने इस अवैध कार्रवाई को रोकने की कोशिश की, तो मुझे भी मारा गया और बुरा बर्ताव किया गया। एक पुलिस अधिकारी इश्फाक वाराइच चिल्लाया कि सामी और महरंग ‘भारतीय एजेंट’ हैं। दिसंबर और जनवरी की कड़ाके की ठंड में उन्होंने इस्लामाबाद में एक महीने तक धरना दिया, लेकिन उन्हें कोई न्याय नहीं मिला और वे खाली हाथ लौट गईं। जुलाई 2024 में ग्वादर में एक प्रदर्शन के दौरान सामी और महरंग को दोबारा से गिरफ्तार कर लिया गया। मार्च 2025 में सामी को कराची और महरंग को क्वेटा से फिर गिरफ्तार कर लिया गया। सिंध हाईकोर्ट ने सामी को जमानत पर रिहा कर दिया, लेकिन पुलिस ने अदालत परिसर से ही उसे दोबारा गिरफ्तार कर लिया। इस बार उसने ईद का त्योहार जेल में बिताया। उसे ईद के अगले दिन रिहा किया गया। सामी अब 26 साल की हो चुकी है। पिछले 16 सालों से वह सड़कों पर संघर्ष कर रही है। सरकार अब भी उसके पिता के बारे में कुछ भी बताने को तैयार नहीं है। वह कराची की एक यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता की छात्रा है, लेकिन उसे गिरफ्तार करके सरकार ने उसकी शिक्षा के दरवाजे बंद कर दिए। मेरे लिए वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों के लिए वह ‘आतंकियों की सहयोगी’ है। सामी ने कभी कोई कानून नहीं तोड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश, इस देश ने बार-बार कानून तोड़ा, पहले उसके पिता को अगवा करके और फिर सामी को कई बार अवैध रूप से गिरफ्तार करके। एक लड़की की बहादुरी ने आखिरकार बंदूकों के डर को हरा दिया है। देखने में वह असहाय लगती है, लेकिन असल में पाकिस्तान का संविधान असहाय है, जो हजारों सामियों को न्याय दिलाने में विफल हो चुका है। —————- ये कॉलम भी पढ़ें… हक्कानी के सिर से हटा एक करोड़ अमेरिकी डॉलर इनाम:तालिबान से बात करने को क्यों मजबूर पाकिस्तान, रूस, चीन और अमेरिका? उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
एक बलूच लड़की, जिसने बंदूकों के डर को हरा दिया:पाकिस्तान का संविधान असहाय है, जो हजारों सामियों को न्याय दिलाने में विफल हो चुका है
