डॉ. मुहम्मद इकबाल पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि हैं। इकबाल शांतिपूर्ण और समृद्ध अफगानिस्तान के प्रबल समर्थक थे। अपनी मशहूर फारसी कविताओं में से एक में इकबाल ने कहा था कि अफगानिस्तान ‘एशिया का दिल’ है और अफगानिस्तान में शांति का मतलब पूरे एशिया में शांति है। इकबाल ने साफ कहा था कि अफगानिस्तान में अस्थिरता पूरे एशिया को प्रभावित करेगी। इकबाल को पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों जगहों पर बेहद इज्जत की नजरों से देखा जाता है। पाकिस्तानी सरकार हर साल 4500 से अधिक इकबाल छात्रवृत्तियां अफगान छात्रों को मुहैया करवाती है, लेकिन बदकिस्मती से एशिया का दिल इन दिनों पाकिस्तान के प्रति असंतोष जता रहा है। पाकिस्तान-अफगान सीमा पर तनाव चरम पर पहुंचने के साथ ही टकराव बढ़ गया है। तोरखम सीमा 21 फरवरी से बंद है। दोनों देशों के व्यापारी भारी नुकसान झेल रहे हैं, क्योंकि तोरखम पर प्रतिदिन 30 लाख डॉलर से भी ज्यादा का कारोबार होता है। हाल ही में पाकिस्तानी सरकार ने फरमान जारी किया है कि कानूनी रूप से रह रहे सभी अफगान प्रवासी 31 मार्च 2025 तक देश छोड़ दें, अन्यथा 1 अप्रैल से उन्हें जबरन निष्कासित कर दिया जाएगा। इस घोषणा का असर लगभग 9 लाख कानूनी रूप से पंजीकृत अफगान प्रवासियों पर पड़ेगा। पिछले एक साल में 8.5 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी पहले ही पाकिस्तान छोड़ चुके हैं। पाकिस्तान 1979 से अफगान शरणार्थियों की शरणस्थली बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में 30 लाख से अधिक अवैध अफगान शरणार्थी भी रह रहे हैं। इन अवैध प्रवासियों ने कभी खुद को सरकार के पास पंजीकृत नहीं करवाया, जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो सकता है। इनमें से कई ने पाकिस्तानी पहचान-पत्र भी बनवा लिए हैं। अफगान प्रवासियों के खिलाफ इस नई मुहिम की मानवाधिकार संगठनों जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने निंदा की है, क्योंकि इनमें से बड़ी संख्या उन अफगानों की है जो 2021 में तालिबान के काबुल लौटने के बाद अपने देश से भागकर पाकिस्तान आए थे। 9/11 के बाद हजारों अफगानों ने तालिबान के खिलाफ अमेरिका और नाटो की मदद की थी। इनमें से 15,000 अफगानों का अमेरिका में पुनर्वास करने का वादा किया गया था। वे पाकिस्तान में अमेरिकी वीजा के इंतजार में हैं। यदि उन्हें 31 मार्च से पहले वीजा नहीं मिला तो उन्हें अफगानिस्तान वापस भेज दिया जाएगा और वहां उन्हें तालिबान द्वारा बदला लिए जाने का डर है। अफगान तालिबान भी अपने शरणार्थियों को पाकिस्तान से निष्कासित किए जाने से नाराज हैं। कई शरणार्थी वर्षों से अफगानिस्तान से बाहर रह रहे हैं। उनके घर बर्बाद हो चुके हैं और उनके पास सही दस्तावेज भी नहीं हैं। उधर, पाकिस्तान में जन्मे हजारों अफगान नागरिकों को पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त नहीं हुई। इनमें से कई शिक्षित महिलाएं हैं, लेकिन अफगानिस्तान में उनके लिए कोई नौकरियां नहीं हैं। सवाल यह है कि आखिर पाकिस्तान इन अफगानियों को निकालने में इतनी जल्दबाजी क्यों कर रहा है? पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा दी गई मुख्य वजह यह है कि अफगान तालिबान कथित रूप से पाकिस्तानी तालिबान का समर्थन कर रहा है। 5 मार्च को बन्नू कैंटोनमेंट में चार फिदायीन हमले हुए, जिनमें 16 आतंकवादी मारे गए और उनमें से अधिकतर अफगान थे। पाकिस्तानी तालिबान के हाफिज गुल बहादुर गुट ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली। हाफिज गुल बहादुर उन आतंकियों में से एक है, जिसने पाकिस्तानी सरकार की मदद से रूसी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन अब ये पुराने सहयोगी एक-दूसरे के दुश्मन बन चुके हैं। जब अफगान तालिबान ने 2020 में दोहा में अमेरिका के साथ शांति समझौता किया तो कुछ प्रभावशाली तालिबान कमांडरों ने इसकी खिलाफत की थी। इन बागी कमांडरों ने आईएसकेपी (अफगानिस्तान में आईएसआईएस का गुट) में शामिल होकर अफगान तालिबान के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। कई पाकिस्तानी तालिबान लड़ाके भी आईएसकेपी में शामिल हो गए और अफगान तालिबान के खिलाफ बगावत कर दी। यही वजह है कि अफगान तालिबान पाकिस्तानी तालिबान पर अधिक दबाव नहीं डाल सकता, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया तो वे भी आईएसकेपी में शामिल हो सकते हैं, जो अफगान तालिबान के लिए बेहद खतरनाक होगा। पाकिस्तान इसलिए भी अफगानिस्तान से नाराज
पाकिस्तानी सरकार अफगान तालिबान से इसलिए भी नाराज है, क्योंकि कुछ बलूच बागी अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। पाकिस्तान का दावा है कि बलूचिस्तान में हाल ही में हुई ट्रेन हाईजैकिंग की घटना का मास्टरमाइंड अफगानिस्तान में छिपा हुआ है। वहीं दूसरी ओर काबुल पाकिस्तान पर आईएसकेपी को अफगान तालिबान से लड़ने के लिए सुरक्षित ठिकाने देने का आरोप लगाता है। पाकिस्तान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और एक आईएसकेपी कमांडर को गिरफ्तार कर उसे अमेरिका के हवाले कर दिया। पाकिस्तानी अधिकारियों को लगता है कि अफगानिस्तान से सटे उनके इलाके तालिबान और आईएसकेपी के बीच युद्ध का मैदान बन सकते हैं, इसलिए इस टकराव से बचने के लिए उसने सभी अफगानों को बाहर निकालना ही बेहतर समझा है। अफगानों के निष्कासन की दूसरी वजह मादक पदार्थों की तस्करी में उनका शामिल होना है। अफगानिस्तान में भारी मात्रा में मादक पदार्थों का उत्पादन होता है, जिन्हें न केवल पाकिस्तान बल्कि मध्य एशियाई देशों, ईरान, भारत और श्रीलंका तक तस्करी करके पहुंचाया जाता है। हालांकि अफगानों को पाकिस्तान से निकाल देना इस समस्या का समाधान नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की 2600 किलोमीटर लंबी सरहद है और यह तस्करी दोनों देशों के प्रभावशाली सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा बंदी के मुद्दे को बातचीत के जरिए हल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता नहीं मिल पाई है। ————— ये कॉलम भी पढ़ें… ट्रेन हाईजैक: अतीत से जुड़े हैं बलूच समस्या के तार:बलूचिस्तान की समस्या का अंतिम समाधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है डॉ. मुहम्मद इकबाल पाकिस्तान के राष्ट्रीय कवि हैं। इकबाल शांतिपूर्ण और समृद्ध अफगानिस्तान के प्रबल समर्थक थे। अपनी मशहूर फारसी कविताओं में से एक में इकबाल ने कहा था कि अफगानिस्तान ‘एशिया का दिल’ है और अफगानिस्तान में शांति का मतलब पूरे एशिया में शांति है। इकबाल ने साफ कहा था कि अफगानिस्तान में अस्थिरता पूरे एशिया को प्रभावित करेगी। इकबाल को पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों जगहों पर बेहद इज्जत की नजरों से देखा जाता है। पाकिस्तानी सरकार हर साल 4500 से अधिक इकबाल छात्रवृत्तियां अफगान छात्रों को मुहैया करवाती है, लेकिन बदकिस्मती से एशिया का दिल इन दिनों पाकिस्तान के प्रति असंतोष जता रहा है। पाकिस्तान-अफगान सीमा पर तनाव चरम पर पहुंचने के साथ ही टकराव बढ़ गया है। तोरखम सीमा 21 फरवरी से बंद है। दोनों देशों के व्यापारी भारी नुकसान झेल रहे हैं, क्योंकि तोरखम पर प्रतिदिन 30 लाख डॉलर से भी ज्यादा का कारोबार होता है। हाल ही में पाकिस्तानी सरकार ने फरमान जारी किया है कि कानूनी रूप से रह रहे सभी अफगान प्रवासी 31 मार्च 2025 तक देश छोड़ दें, अन्यथा 1 अप्रैल से उन्हें जबरन निष्कासित कर दिया जाएगा। इस घोषणा का असर लगभग 9 लाख कानूनी रूप से पंजीकृत अफगान प्रवासियों पर पड़ेगा। पिछले एक साल में 8.5 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी पहले ही पाकिस्तान छोड़ चुके हैं। पाकिस्तान 1979 से अफगान शरणार्थियों की शरणस्थली बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार पाकिस्तान में 30 लाख से अधिक अवैध अफगान शरणार्थी भी रह रहे हैं। इन अवैध प्रवासियों ने कभी खुद को सरकार के पास पंजीकृत नहीं करवाया, जिससे उन्हें पहचानना मुश्किल हो सकता है। इनमें से कई ने पाकिस्तानी पहचान-पत्र भी बनवा लिए हैं। अफगान प्रवासियों के खिलाफ इस नई मुहिम की मानवाधिकार संगठनों जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने निंदा की है, क्योंकि इनमें से बड़ी संख्या उन अफगानों की है जो 2021 में तालिबान के काबुल लौटने के बाद अपने देश से भागकर पाकिस्तान आए थे। 9/11 के बाद हजारों अफगानों ने तालिबान के खिलाफ अमेरिका और नाटो की मदद की थी। इनमें से 15,000 अफगानों का अमेरिका में पुनर्वास करने का वादा किया गया था। वे पाकिस्तान में अमेरिकी वीजा के इंतजार में हैं। यदि उन्हें 31 मार्च से पहले वीजा नहीं मिला तो उन्हें अफगानिस्तान वापस भेज दिया जाएगा और वहां उन्हें तालिबान द्वारा बदला लिए जाने का डर है। अफगान तालिबान भी अपने शरणार्थियों को पाकिस्तान से निष्कासित किए जाने से नाराज हैं। कई शरणार्थी वर्षों से अफगानिस्तान से बाहर रह रहे हैं। उनके घर बर्बाद हो चुके हैं और उनके पास सही दस्तावेज भी नहीं हैं। उधर, पाकिस्तान में जन्मे हजारों अफगान नागरिकों को पाकिस्तानी नागरिकता प्राप्त नहीं हुई। इनमें से कई शिक्षित महिलाएं हैं, लेकिन अफगानिस्तान में उनके लिए कोई नौकरियां नहीं हैं। सवाल यह है कि आखिर पाकिस्तान इन अफगानियों को निकालने में इतनी जल्दबाजी क्यों कर रहा है? पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा दी गई मुख्य वजह यह है कि अफगान तालिबान कथित रूप से पाकिस्तानी तालिबान का समर्थन कर रहा है। 5 मार्च को बन्नू कैंटोनमेंट में चार फिदायीन हमले हुए, जिनमें 16 आतंकवादी मारे गए और उनमें से अधिकतर अफगान थे। पाकिस्तानी तालिबान के हाफिज गुल बहादुर गुट ने इन हमलों की जिम्मेदारी ली। हाफिज गुल बहादुर उन आतंकियों में से एक है, जिसने पाकिस्तानी सरकार की मदद से रूसी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन अब ये पुराने सहयोगी एक-दूसरे के दुश्मन बन चुके हैं। जब अफगान तालिबान ने 2020 में दोहा में अमेरिका के साथ शांति समझौता किया तो कुछ प्रभावशाली तालिबान कमांडरों ने इसकी खिलाफत की थी। इन बागी कमांडरों ने आईएसकेपी (अफगानिस्तान में आईएसआईएस का गुट) में शामिल होकर अफगान तालिबान के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। कई पाकिस्तानी तालिबान लड़ाके भी आईएसकेपी में शामिल हो गए और अफगान तालिबान के खिलाफ बगावत कर दी। यही वजह है कि अफगान तालिबान पाकिस्तानी तालिबान पर अधिक दबाव नहीं डाल सकता, क्योंकि अगर उसने ऐसा किया तो वे भी आईएसकेपी में शामिल हो सकते हैं, जो अफगान तालिबान के लिए बेहद खतरनाक होगा। पाकिस्तान इसलिए भी अफगानिस्तान से नाराज
पाकिस्तानी सरकार अफगान तालिबान से इसलिए भी नाराज है, क्योंकि कुछ बलूच बागी अफगानिस्तान से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। पाकिस्तान का दावा है कि बलूचिस्तान में हाल ही में हुई ट्रेन हाईजैकिंग की घटना का मास्टरमाइंड अफगानिस्तान में छिपा हुआ है। वहीं दूसरी ओर काबुल पाकिस्तान पर आईएसकेपी को अफगान तालिबान से लड़ने के लिए सुरक्षित ठिकाने देने का आरोप लगाता है। पाकिस्तान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और एक आईएसकेपी कमांडर को गिरफ्तार कर उसे अमेरिका के हवाले कर दिया। पाकिस्तानी अधिकारियों को लगता है कि अफगानिस्तान से सटे उनके इलाके तालिबान और आईएसकेपी के बीच युद्ध का मैदान बन सकते हैं, इसलिए इस टकराव से बचने के लिए उसने सभी अफगानों को बाहर निकालना ही बेहतर समझा है। अफगानों के निष्कासन की दूसरी वजह मादक पदार्थों की तस्करी में उनका शामिल होना है। अफगानिस्तान में भारी मात्रा में मादक पदार्थों का उत्पादन होता है, जिन्हें न केवल पाकिस्तान बल्कि मध्य एशियाई देशों, ईरान, भारत और श्रीलंका तक तस्करी करके पहुंचाया जाता है। हालांकि अफगानों को पाकिस्तान से निकाल देना इस समस्या का समाधान नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की 2600 किलोमीटर लंबी सरहद है और यह तस्करी दोनों देशों के प्रभावशाली सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा बंदी के मुद्दे को बातचीत के जरिए हल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता नहीं मिल पाई है। ————— ये कॉलम भी पढ़ें… ट्रेन हाईजैक: अतीत से जुड़े हैं बलूच समस्या के तार:बलूचिस्तान की समस्या का अंतिम समाधान स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव है उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
एक महीने से क्यों बंद है पाक-अफगान सरहद?:पाकिस्तानी सरकार का फरमान सभी अफगान नागरिक देश छोड़ दें, नहीं तो 1 अप्रैल से जबरन निकालेंगे
