कल्याण सिंह के बेटे को हराने वाले देवेश का इंटरव्यू:सपा सांसद बोले- जनता ने खुद लड़कर चुनाव जिताया, एटा का जो मेनिफेस्टो बनाया, उसपर काम करूंगा

कल्याण सिंह के बेटे को हराने वाले देवेश का इंटरव्यू:सपा सांसद बोले- जनता ने खुद लड़कर चुनाव जिताया, एटा का जो मेनिफेस्टो बनाया, उसपर काम करूंगा

एटा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के देवेश शाक्य उर्फ बिल्लू ने दो बार के सांसद राजवीर सिंह को हराकर साइकिल दौड़ाई है। राजवीर पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदूवादी नेता स्व कल्याण सिंह के पुत्र हैं। देवेश शाक्य अपनी रणनीति और सपा संगठन की मदद से एटा लोकसभा सीट पर काबिज हुए हैं। सांसद देवेश शाक्य पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बेहद करीबी माने जाते हैं। जब स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हुए थे तभी देवेश शाक्य ने भी बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था। स्वामी तो सपा छोड़कर चले गए लेकिन देवेश शाक्य निष्ठा के साथ समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे। जिसका नतीजा हुआ कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनको चुनाव लड़ाया। देवेश ने भी मौके को जीत में बदलकर अपनी काबिलियत दिखा दी। देवेश कहते हैं कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र और एटा से 2 बार सांसद रहे राजवीर सिंह को हराना बेहद चुनौतीपूर्ण था। मतगणना से महज 4 दिन पहले उनके बड़े भाई उनका निधन हो गया। मेरी जीत की सबसे ज्यादा खुशी मेरे भाई को होती लेकिन ये मरी बदकिस्मती है कि वो ये देख नहीं पाए। सपा के नवनिर्वाचित सांसद देवेश शाक्य से भास्कर रिपोर्टर ने खास बातचीत की। पढ़िए मुख्य अंश…। सवाल: एटा से चुनाव लड़ना कितना चुनौतीपूर्ण था किस रणनीति के तहत विजय प्राप्त की? जवाब: मैंने एटा लोकसभा प्रभारी के रूप काम किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुझे एटा से प्रत्याशी बनाया तो निश्चित तौर पर एटा हमारे लिए कोई नई जगह नहीं थी। एटा की जनता ने जो मुझे प्यार दिया तो कहीं ना कहीं एक साल की मेहनत रंग लाई। संगठन की मजबूती और जनता की जीत है। मेरी स्वयं की कोई हैसियत नहीं थी कि मैं वहां से चुनाव लड़ूं और जीत सकूं। कुशल नेतृत्व संगठन का सहयोग और सपा कार्यकर्ताओं का ऊर्जावान रहना मेरी जीत का बड़ा कारण है। सर्व समाज ने यह चुनाव लड़ाया है, उसी का परिणाम है कि राजू भइया को शिकस्त मिली है। सवाल: जनता का भरोसा जीतने में सफल हुए, अब 5 साल में किस तरीके से काम करेंगे? जवाब: चुनाव के दौरान लगभग 100 दिन का मुझे मौका मिला। मैंने देखा कि जो वहां की मूलभूत सुविधाएं हैं, मैं लगातार उसको लिखता रहा। जब मैं नामांकन के बाद जनता के बीच में गया। जनता से बातचीत करके मैंने अपना एटा लोकसभा का एक मेनिफेस्टो तैयार करके जारी किया था। जिसमें बहुत जरूरी समस्याएं हैं जो एक सांसद को पूरी करनी चाहिए। सबसे पहले उस मेनिफेस्टो पर काम करूंगा। सदन में सबसे पहले उन्ही मुद्दों पर अपनी बात रखूंगा। सवाल : एटा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना आपका फैसला था या समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ाने का आपको मन बनाया था ? जवाब: एटा लोकसभा से जब मैं प्रभारी नियुक्त किया गया उसके बाद जब मैं संगठन तैयार किया। तब संगठन का कुशल नेतृत्व देखकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुझे वहां से चुनाव लड़ने के लिए निर्देशित किया। विश्वास के साथ मुझे चुनाव लड़ाया। मैंने उस विश्वास को कायम रखा और एटा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का परचम लहराया। मेरे लिए यह चुनाव बहुत संघर्ष भरा चुनाव रहा। मैं जनता का ऋणी रहूंगा और जिन मुद्दों के लिए जनता ने मुझे चुना है उनको पूरा करके अपनी बात पर कायम रहूंगा। सवाल: इंडिया गठबंधन का पीडीए फार्मूला, संविधान बचाओ का जो घोषणा पत्र था, इन सब का कितना प्रभाव दिखाई दिया ? जवाब: निश्चित तौर पर जो घोषणा पत्र में पीडीए की बात कही गई, उसका काफी प्रभाव था। घोषणा पत्र में अग्निवीर, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, महंगाई विकास इन सभी मुद्दों पर जनता ने वोट किया। भाजपा ने इन मुद्दों को लेकर कभी बात नहीं की। जब उनसे इस पर बात करेंगे तो भाजपा वाले बात नही करेंगे। हमारी पार्टी के घोषणा पत्र में तमाम मुद्दों पर जनता ने भरोसा जताया है। राजू भईया की एक भी लोकार्पण की पट्टी मैंने वहां लगी नहीं देखी। इसी का परिणाम है कि वहां की जनता ने उनको नकार दिया। मैंने वहां की जनता से संवाद किया। कोई खोखले वादे नहीं किए। जनता से शायद यही वजह रही कि वहां की जनता ने मुझे जो प्यार दिया, वही वोट में तब्दील हुआ। सवाल: जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक का चुनाव हारने के बाद किस तरह से लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया? जवाब: मेरे बड़े भाई विनय शाक्य विधायक और मंत्री रहे। राजनीति के बारे में उनसे ही काफी कुछ सीखा है। वही मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं। चुनाव लड़ने के दौरान कोई नेता छोटा या बड़ा नहीं होता है। अच्छी रणनीति बनाकर अगर चुनाव लड़ा जाएगा तो सफलता हाथ लगेगी। अगर हमारी रणनीति सही है तो मुझे प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव मैदान में डाला जाए तो मैं वहां भी चुनाव लड़ लूंगा। अच्छी रणनीति और कुशल नेतृत्व से किसी भी दिग्गज को चुनाव हराया जा सकता है। सवाल: मतगणना से कुछ दिन पूर्व आपके भाई का निधन हुआ। आपकी जीत वह देख नहीं सके। इस पर क्या कहेंगे? जवाब: मेरे बड़े भाई ने मुझे राजनीति में बहुत कुछ सिखाया है। बहुत कुछ मुझे वह देकर गए हैं। मेरी बदकिस्मती है की मतगणना से कुछ दिन पूर्व उनका निधन हो गया। वह सुखद घड़ी में मेरे साथ नहीं हैं। आज वह मेरे साथ नहीं हैं। इस बात का कष्ट मुझे जिंदगी भर रहेगा। मेरी इस जीत की घड़ी में अगर वह साथ होते तो ईश्वर से मुझे कोई जिंदगी में गिला शिकवा नहीं होती। एटा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के देवेश शाक्य उर्फ बिल्लू ने दो बार के सांसद राजवीर सिंह को हराकर साइकिल दौड़ाई है। राजवीर पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदूवादी नेता स्व कल्याण सिंह के पुत्र हैं। देवेश शाक्य अपनी रणनीति और सपा संगठन की मदद से एटा लोकसभा सीट पर काबिज हुए हैं। सांसद देवेश शाक्य पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बेहद करीबी माने जाते हैं। जब स्वामी प्रसाद मौर्या भाजपा छोड़कर सपा में शामिल हुए थे तभी देवेश शाक्य ने भी बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया था। स्वामी तो सपा छोड़कर चले गए लेकिन देवेश शाक्य निष्ठा के साथ समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे। जिसका नतीजा हुआ कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनको चुनाव लड़ाया। देवेश ने भी मौके को जीत में बदलकर अपनी काबिलियत दिखा दी। देवेश कहते हैं कि यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पुत्र और एटा से 2 बार सांसद रहे राजवीर सिंह को हराना बेहद चुनौतीपूर्ण था। मतगणना से महज 4 दिन पहले उनके बड़े भाई उनका निधन हो गया। मेरी जीत की सबसे ज्यादा खुशी मेरे भाई को होती लेकिन ये मरी बदकिस्मती है कि वो ये देख नहीं पाए। सपा के नवनिर्वाचित सांसद देवेश शाक्य से भास्कर रिपोर्टर ने खास बातचीत की। पढ़िए मुख्य अंश…। सवाल: एटा से चुनाव लड़ना कितना चुनौतीपूर्ण था किस रणनीति के तहत विजय प्राप्त की? जवाब: मैंने एटा लोकसभा प्रभारी के रूप काम किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुझे एटा से प्रत्याशी बनाया तो निश्चित तौर पर एटा हमारे लिए कोई नई जगह नहीं थी। एटा की जनता ने जो मुझे प्यार दिया तो कहीं ना कहीं एक साल की मेहनत रंग लाई। संगठन की मजबूती और जनता की जीत है। मेरी स्वयं की कोई हैसियत नहीं थी कि मैं वहां से चुनाव लड़ूं और जीत सकूं। कुशल नेतृत्व संगठन का सहयोग और सपा कार्यकर्ताओं का ऊर्जावान रहना मेरी जीत का बड़ा कारण है। सर्व समाज ने यह चुनाव लड़ाया है, उसी का परिणाम है कि राजू भइया को शिकस्त मिली है। सवाल: जनता का भरोसा जीतने में सफल हुए, अब 5 साल में किस तरीके से काम करेंगे? जवाब: चुनाव के दौरान लगभग 100 दिन का मुझे मौका मिला। मैंने देखा कि जो वहां की मूलभूत सुविधाएं हैं, मैं लगातार उसको लिखता रहा। जब मैं नामांकन के बाद जनता के बीच में गया। जनता से बातचीत करके मैंने अपना एटा लोकसभा का एक मेनिफेस्टो तैयार करके जारी किया था। जिसमें बहुत जरूरी समस्याएं हैं जो एक सांसद को पूरी करनी चाहिए। सबसे पहले उस मेनिफेस्टो पर काम करूंगा। सदन में सबसे पहले उन्ही मुद्दों पर अपनी बात रखूंगा। सवाल : एटा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना आपका फैसला था या समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ाने का आपको मन बनाया था ? जवाब: एटा लोकसभा से जब मैं प्रभारी नियुक्त किया गया उसके बाद जब मैं संगठन तैयार किया। तब संगठन का कुशल नेतृत्व देखकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुझे वहां से चुनाव लड़ने के लिए निर्देशित किया। विश्वास के साथ मुझे चुनाव लड़ाया। मैंने उस विश्वास को कायम रखा और एटा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का परचम लहराया। मेरे लिए यह चुनाव बहुत संघर्ष भरा चुनाव रहा। मैं जनता का ऋणी रहूंगा और जिन मुद्दों के लिए जनता ने मुझे चुना है उनको पूरा करके अपनी बात पर कायम रहूंगा। सवाल: इंडिया गठबंधन का पीडीए फार्मूला, संविधान बचाओ का जो घोषणा पत्र था, इन सब का कितना प्रभाव दिखाई दिया ? जवाब: निश्चित तौर पर जो घोषणा पत्र में पीडीए की बात कही गई, उसका काफी प्रभाव था। घोषणा पत्र में अग्निवीर, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, महंगाई विकास इन सभी मुद्दों पर जनता ने वोट किया। भाजपा ने इन मुद्दों को लेकर कभी बात नहीं की। जब उनसे इस पर बात करेंगे तो भाजपा वाले बात नही करेंगे। हमारी पार्टी के घोषणा पत्र में तमाम मुद्दों पर जनता ने भरोसा जताया है। राजू भईया की एक भी लोकार्पण की पट्टी मैंने वहां लगी नहीं देखी। इसी का परिणाम है कि वहां की जनता ने उनको नकार दिया। मैंने वहां की जनता से संवाद किया। कोई खोखले वादे नहीं किए। जनता से शायद यही वजह रही कि वहां की जनता ने मुझे जो प्यार दिया, वही वोट में तब्दील हुआ। सवाल: जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक का चुनाव हारने के बाद किस तरह से लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया? जवाब: मेरे बड़े भाई विनय शाक्य विधायक और मंत्री रहे। राजनीति के बारे में उनसे ही काफी कुछ सीखा है। वही मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं। चुनाव लड़ने के दौरान कोई नेता छोटा या बड़ा नहीं होता है। अच्छी रणनीति बनाकर अगर चुनाव लड़ा जाएगा तो सफलता हाथ लगेगी। अगर हमारी रणनीति सही है तो मुझे प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव मैदान में डाला जाए तो मैं वहां भी चुनाव लड़ लूंगा। अच्छी रणनीति और कुशल नेतृत्व से किसी भी दिग्गज को चुनाव हराया जा सकता है। सवाल: मतगणना से कुछ दिन पूर्व आपके भाई का निधन हुआ। आपकी जीत वह देख नहीं सके। इस पर क्या कहेंगे? जवाब: मेरे बड़े भाई ने मुझे राजनीति में बहुत कुछ सिखाया है। बहुत कुछ मुझे वह देकर गए हैं। मेरी बदकिस्मती है की मतगणना से कुछ दिन पूर्व उनका निधन हो गया। वह सुखद घड़ी में मेरे साथ नहीं हैं। आज वह मेरे साथ नहीं हैं। इस बात का कष्ट मुझे जिंदगी भर रहेगा। मेरी इस जीत की घड़ी में अगर वह साथ होते तो ईश्वर से मुझे कोई जिंदगी में गिला शिकवा नहीं होती।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर