कानपुर अग्निकांड- बच्चियों की बॉडी जल गई, सिर्फ हडि्डयां बचीं:फायरमैन बोले- मंजर देख आंखों के सामने अंधेरा छा गया था

कानपुर अग्निकांड- बच्चियों की बॉडी जल गई, सिर्फ हडि्डयां बचीं:फायरमैन बोले- मंजर देख आंखों के सामने अंधेरा छा गया था

समय- रात के 9.20 बजे
जगह- कानपुर अचानक कंट्रोल रूम में कॉल आई कि चमनगंज में आग लगी है। फायर टेंडर की टीम प्रेमनगर के उस घर के सामने पहुंच गई, जहां 4 मंजिला इमारत लपटों से धधक रही थी। बाहर मौजूद लोगों ने मुझे तीन बच्चियों की तस्वीर दिखाई। कहा, ये अंदर फंसी हैं…इन्हें बचा लीजिए। अब हमारे सामने एक नहीं दो टारगेट थे। पहला- आग को रिकॉर्ड टाइम में काबू करना। दूसरा- तीनों बच्चियों को सुरक्षित बाहर लेकर आना। यह कहना है 4 मई को कानपुर अग्निकांड में जलती हुई बिल्डिंग के अंदर सबसे पहले घुसने वाले फायर विभाग के अग्निशमन अधिकारी प्रदीप कुमार शर्मा का। बोले- जल्द ही हमारी समझ में आ गया था कि आग किसी केमिकल के फैलने के बाद काबू में नहीं आएगी। इसलिए मैं दूसरी मंजिल की दीवार को तोड़कर अंदर पहुंचा। मैं तीसरी और फिर चौथी मंजिल तक पहुंचा। जो कुछ आंखों के सामने था, उससे मेरी रूह कांप गई। मेरे सामने तीनों बच्चियों की चिपकी हुई लाशें थीं। वह पूरी तरह से जल चुकी थीं। शायद डर की वजह से उन्होंने जान जाने तक एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा होगा। एक सेकेंड में मेरी बेटी का चेहरा मेरी आंखों के सामने से गुजर गया। मैं वहीं सीढ़ी पर बैठ गया, जो कुछ महसूस कर रहा हूं, उसको शब्दों में नहीं बता सकता। बिल्डिंग के अंदर हालात कैसे थे? ऑपरेशन कैसे चलाया? बच्चियां और उनके मां-पिता किस हाल में थे? पढ़िए 3 फायरमैन से बातचीत। पढ़िए रिपोर्ट…. फायरकर्मी 1. प्रदीप आप समझिए सिर्फ दीवारें बचीं थीं, सब कुछ जल गया
फायर कर्मी प्रदीप कुमार शर्मा ने कहा- आग इतनी तेज थी कि पूरी बिल्डिंग हीट कर रही थी। दीवारों के चटकने की आवाज आ रही थी। साथियों ने बताया कि आग बुझने के बाद फिर भड़क रही है। ध्यान देने पर समझ आया कि अंदर केमिकल फैल चुका है, जिसमें बार-बार आग फैल रही थी। देखते ही देखते ही बिल्डिंग के टॉप फ्लोर तक आग और धुआं दिखाई देने लगा। हमें 8 घंटे लगे आग को काबू करने में। घर के अंदर पहुंचने के बाद आंखों के सामने सिर्फ काले रंग की दीवारें और जला हुआ सामान था। आप समझिए कि खिलौने, बिस्तर और खिड़कियां सब जल चुका थीं। सिर्फ दीवारें बची थीं। बरसो बाद ऐसी भयानक आग देखी थी। फायर कर्मी 2. आदर्श हथौड़े मार-मारकर हमने दीवार में होल किया
फायर कर्मी आदर्श ने कहा- हम लोगों ने सीढ़ी लगाकर बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर पानी डालना शुरू किया। जब उससे कुछ फायदा नहीं हुआ, तो बिल्डिंग के बगल से दीवार तोड़ने का प्लान बनाया गया, हथौड़े मंगाए। दीवार तोड़कर होल करना शुरू किया। एक होल करने में तकरीबन 15 मिनट लगा। फिर किसी तरह अंदर घुसे। वहां का दृश्य देखकर मैं बेहोश होने लगा था। मैंने ऐसा मंजर अपनी जिंदगी में नहीं देखा। तीनों बच्चियों की लाश आपस में जुड़ी थीं। बचने के लिए वह एक साथ घर के अंदर भागदौड़ कर रही होंगी। मगर बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। वह सीढ़ियों से शायद छत पर जाना चाहती होंगी, मगर ऊपर के दरवाजे पर लॉक था। वो खुला होता तो शायद कुछ जान बच सकती थी। फायर कर्मी 3. इकबाल अहमद आग बुझाने के लिए 5 लाख लीटर पानी डाला
फायर टेंडर को लेकर आए इकबाल अहमद गाड़ियों का मैनेजमेंट देखते हैं। उन्होंने कहा- मेरी जिम्मेदारी है कि फायर विभाग की गाड़ियों के आने-जाने का पूरा मैनेजमेंट करूं। यह भी मेरी ड्यूटी है कि गाड़ियों में पानी न कम पड़े। इसलिए लगातार गाड़ियों से वाटर सप्लाई वाले पाइप का प्रेशर मैं चेक करता रहा। उन्होंने बताया- 9 फायर टेंडरों को पानी लेने के लिए 77 चक्कर लगाने पड़े। सोमवार की सुबह 5:35 बजे आग बुझ सकी। इस दौरान 5 लाख लीटर से ज्यादा पानी की बौछार की गई, तब जाकर आग ठंडी पड़ी। बता दें कि औसतन एक फायर टेंडर में 6500 लीटर पानी आता है। अब मामा की आपबीती… मामा बोले- लाश छूने पर खाल बाहर आ गई
मामा हाजी इशरत ने बताया- मैंने भांजे दानिश और बहू का शव अपने इन्हीं हाथों से बाहर निकाला। क्या कहूं, क्या वो लाशें थीं, कोयला हो चुकी थीं। कुछ नहीं बचा साहब…लाश तक नहीं बची। हमें फिर भी होश था कि शायद मेरी पोतियां कहीं छिपकर बच गईं हों। हम लोग फिर अंदर गए। सुबह के 6 बजे थे, सीढ़ियों के बगल में मेरी बच्चियों की लाशें दिखीं। क्या कहूं, कैसे बताऊं कि क्या महसूस हुआ? मेरी बच्चियों में कौन सी लाश किसकी थी? ये भी नहीं समझ आ रहा था। सिर्फ हडि्डयां बची हुई थीं। खाल-मांस सब कुछ गल चुका था, कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से गल चुका था। कितने दर्द से गुजरी होंगी मेरी बच्चियां…। ये सोचकर भी लगता है कि जान निकल जाएगी। काश मैं उन्हें बचा पाता। हादसे में माता-पिता समेत 5 की मौत
ये हादसा कानपुर में प्रेमनगर के मकान नंबर-105/733 में हुआ। अकील के बड़े बेटे दानिश का जूते-चप्पल का कारोबार है। 4 मंजिला बिल्डिंग में नीचे कारखाना है। तीसरी मंजिल पर उनके भाई कासिफ अपने परिवार के साथ रहते हैं। चौथी मंजिल पर दानिश, उनकी पत्नी नाजमी सबा (42), बेटी सारा (15), सिमरा (12), इनाया (7) रहती थीं। पुलिस और दमकल टीम ने तीसरी मंजिल पर फंसे लोगों को रेस्क्यू कर बाहर निकाल लिया। लेकिन, चौथी मंजिल पर फंसे मोहम्मद दानिश (45), उनकी पत्नी तीन बेटियों को नहीं निकाला जा सका। …………………. ये खबर भी पढ़िए- योगी बोले-बहनों का सिंदूर उजाड़ने वालों को खानदान खोना पड़ा:एयर स्ट्राइक के बाद यूपी में रेड अलर्ट, रेलवे स्टेशनों की सुरक्षा बढ़ी पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक के बाद यूपी में रेड अलर्ट है। 7 मई को डीजीपी प्रशांत कुमार ने इसका ऐलान किया। उन्होंने पुलिस को निर्देश दिया कि आर्मी और एयरफोर्स के साथ समन्वय करके महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा मजबूत करें। वहीं, बुधवार शाम लखनऊ पुलिस लाइन पहुंचे सीएम योगी ने कहा- जिन्होंने भारत की बहन-बेटियों का सिंदूर उजाड़ने की कोशिश की, उन्हें अपना खानदान खोना पड़ा। ऑपरेशन सिंदूर बहन-बेटियों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी और देश की सेना की एक संवेदना है। पढ़ें पूरी खबर समय- रात के 9.20 बजे
जगह- कानपुर अचानक कंट्रोल रूम में कॉल आई कि चमनगंज में आग लगी है। फायर टेंडर की टीम प्रेमनगर के उस घर के सामने पहुंच गई, जहां 4 मंजिला इमारत लपटों से धधक रही थी। बाहर मौजूद लोगों ने मुझे तीन बच्चियों की तस्वीर दिखाई। कहा, ये अंदर फंसी हैं…इन्हें बचा लीजिए। अब हमारे सामने एक नहीं दो टारगेट थे। पहला- आग को रिकॉर्ड टाइम में काबू करना। दूसरा- तीनों बच्चियों को सुरक्षित बाहर लेकर आना। यह कहना है 4 मई को कानपुर अग्निकांड में जलती हुई बिल्डिंग के अंदर सबसे पहले घुसने वाले फायर विभाग के अग्निशमन अधिकारी प्रदीप कुमार शर्मा का। बोले- जल्द ही हमारी समझ में आ गया था कि आग किसी केमिकल के फैलने के बाद काबू में नहीं आएगी। इसलिए मैं दूसरी मंजिल की दीवार को तोड़कर अंदर पहुंचा। मैं तीसरी और फिर चौथी मंजिल तक पहुंचा। जो कुछ आंखों के सामने था, उससे मेरी रूह कांप गई। मेरे सामने तीनों बच्चियों की चिपकी हुई लाशें थीं। वह पूरी तरह से जल चुकी थीं। शायद डर की वजह से उन्होंने जान जाने तक एक दूसरे का हाथ नहीं छोड़ा होगा। एक सेकेंड में मेरी बेटी का चेहरा मेरी आंखों के सामने से गुजर गया। मैं वहीं सीढ़ी पर बैठ गया, जो कुछ महसूस कर रहा हूं, उसको शब्दों में नहीं बता सकता। बिल्डिंग के अंदर हालात कैसे थे? ऑपरेशन कैसे चलाया? बच्चियां और उनके मां-पिता किस हाल में थे? पढ़िए 3 फायरमैन से बातचीत। पढ़िए रिपोर्ट…. फायरकर्मी 1. प्रदीप आप समझिए सिर्फ दीवारें बचीं थीं, सब कुछ जल गया
फायर कर्मी प्रदीप कुमार शर्मा ने कहा- आग इतनी तेज थी कि पूरी बिल्डिंग हीट कर रही थी। दीवारों के चटकने की आवाज आ रही थी। साथियों ने बताया कि आग बुझने के बाद फिर भड़क रही है। ध्यान देने पर समझ आया कि अंदर केमिकल फैल चुका है, जिसमें बार-बार आग फैल रही थी। देखते ही देखते ही बिल्डिंग के टॉप फ्लोर तक आग और धुआं दिखाई देने लगा। हमें 8 घंटे लगे आग को काबू करने में। घर के अंदर पहुंचने के बाद आंखों के सामने सिर्फ काले रंग की दीवारें और जला हुआ सामान था। आप समझिए कि खिलौने, बिस्तर और खिड़कियां सब जल चुका थीं। सिर्फ दीवारें बची थीं। बरसो बाद ऐसी भयानक आग देखी थी। फायर कर्मी 2. आदर्श हथौड़े मार-मारकर हमने दीवार में होल किया
फायर कर्मी आदर्श ने कहा- हम लोगों ने सीढ़ी लगाकर बिल्डिंग के फर्स्ट फ्लोर पर पानी डालना शुरू किया। जब उससे कुछ फायदा नहीं हुआ, तो बिल्डिंग के बगल से दीवार तोड़ने का प्लान बनाया गया, हथौड़े मंगाए। दीवार तोड़कर होल करना शुरू किया। एक होल करने में तकरीबन 15 मिनट लगा। फिर किसी तरह अंदर घुसे। वहां का दृश्य देखकर मैं बेहोश होने लगा था। मैंने ऐसा मंजर अपनी जिंदगी में नहीं देखा। तीनों बच्चियों की लाश आपस में जुड़ी थीं। बचने के लिए वह एक साथ घर के अंदर भागदौड़ कर रही होंगी। मगर बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। वह सीढ़ियों से शायद छत पर जाना चाहती होंगी, मगर ऊपर के दरवाजे पर लॉक था। वो खुला होता तो शायद कुछ जान बच सकती थी। फायर कर्मी 3. इकबाल अहमद आग बुझाने के लिए 5 लाख लीटर पानी डाला
फायर टेंडर को लेकर आए इकबाल अहमद गाड़ियों का मैनेजमेंट देखते हैं। उन्होंने कहा- मेरी जिम्मेदारी है कि फायर विभाग की गाड़ियों के आने-जाने का पूरा मैनेजमेंट करूं। यह भी मेरी ड्यूटी है कि गाड़ियों में पानी न कम पड़े। इसलिए लगातार गाड़ियों से वाटर सप्लाई वाले पाइप का प्रेशर मैं चेक करता रहा। उन्होंने बताया- 9 फायर टेंडरों को पानी लेने के लिए 77 चक्कर लगाने पड़े। सोमवार की सुबह 5:35 बजे आग बुझ सकी। इस दौरान 5 लाख लीटर से ज्यादा पानी की बौछार की गई, तब जाकर आग ठंडी पड़ी। बता दें कि औसतन एक फायर टेंडर में 6500 लीटर पानी आता है। अब मामा की आपबीती… मामा बोले- लाश छूने पर खाल बाहर आ गई
मामा हाजी इशरत ने बताया- मैंने भांजे दानिश और बहू का शव अपने इन्हीं हाथों से बाहर निकाला। क्या कहूं, क्या वो लाशें थीं, कोयला हो चुकी थीं। कुछ नहीं बचा साहब…लाश तक नहीं बची। हमें फिर भी होश था कि शायद मेरी पोतियां कहीं छिपकर बच गईं हों। हम लोग फिर अंदर गए। सुबह के 6 बजे थे, सीढ़ियों के बगल में मेरी बच्चियों की लाशें दिखीं। क्या कहूं, कैसे बताऊं कि क्या महसूस हुआ? मेरी बच्चियों में कौन सी लाश किसकी थी? ये भी नहीं समझ आ रहा था। सिर्फ हडि्डयां बची हुई थीं। खाल-मांस सब कुछ गल चुका था, कमर के नीचे का हिस्सा पूरी तरह से गल चुका था। कितने दर्द से गुजरी होंगी मेरी बच्चियां…। ये सोचकर भी लगता है कि जान निकल जाएगी। काश मैं उन्हें बचा पाता। हादसे में माता-पिता समेत 5 की मौत
ये हादसा कानपुर में प्रेमनगर के मकान नंबर-105/733 में हुआ। अकील के बड़े बेटे दानिश का जूते-चप्पल का कारोबार है। 4 मंजिला बिल्डिंग में नीचे कारखाना है। तीसरी मंजिल पर उनके भाई कासिफ अपने परिवार के साथ रहते हैं। चौथी मंजिल पर दानिश, उनकी पत्नी नाजमी सबा (42), बेटी सारा (15), सिमरा (12), इनाया (7) रहती थीं। पुलिस और दमकल टीम ने तीसरी मंजिल पर फंसे लोगों को रेस्क्यू कर बाहर निकाल लिया। लेकिन, चौथी मंजिल पर फंसे मोहम्मद दानिश (45), उनकी पत्नी तीन बेटियों को नहीं निकाला जा सका। …………………. ये खबर भी पढ़िए- योगी बोले-बहनों का सिंदूर उजाड़ने वालों को खानदान खोना पड़ा:एयर स्ट्राइक के बाद यूपी में रेड अलर्ट, रेलवे स्टेशनों की सुरक्षा बढ़ी पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक के बाद यूपी में रेड अलर्ट है। 7 मई को डीजीपी प्रशांत कुमार ने इसका ऐलान किया। उन्होंने पुलिस को निर्देश दिया कि आर्मी और एयरफोर्स के साथ समन्वय करके महत्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा मजबूत करें। वहीं, बुधवार शाम लखनऊ पुलिस लाइन पहुंचे सीएम योगी ने कहा- जिन्होंने भारत की बहन-बेटियों का सिंदूर उजाड़ने की कोशिश की, उन्हें अपना खानदान खोना पड़ा। ऑपरेशन सिंदूर बहन-बेटियों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी और देश की सेना की एक संवेदना है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर