सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य: श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक किसी मंदिर की दीवार पर नहीं, काशी की एक चर्च पर लिखा मिला। यह अकेला चर्च है, जो गीता के उपदेश पर चलता है। इस श्लोक के मायने हैं- सेवा करना बहुत कठिन है और योगी भी इसे नहीं कर पाते। इस चर्च और उसकी दीवारों पर लिखे श्लोक का जिक्र इसलिए क्योंकि आज क्रिसमस का त्योहार है। यूपी के चर्च सजे हुए हैं। यीशू मसीह के जन्मदिन की धूम है। लोग जिन चर्च में प्रेयर के लिए पहुंच रहे हैं, उनकी बनावट, शैली को भी समझ रहे हैं। ऐसे में भास्कर यूपी के 2 अनोखे चर्च की कहानी आपके लिए लेकर आया है। पहला चर्च पूर्वांचल का सेंट मेरी महागिरजा है, दूसरा चर्च वेस्ट यूपी का क्राइस्ट चर्च है। जहां सूर्य की रोशनी से कांच (शीशा) पर यीशू और मरियम उभरते हैं। पढ़िए 2 गिरजाघर से रिपोर्ट… चर्च की आकृति कमल पुष्प की तरह
काशी के कैथोलिक महागिरजा सेंट मेरी चर्च पर दैनिक भास्कर टीम पहुंची। बाहर से देखने से इसकी आकृति एक पुष्प की तरह लगती है। पूछने पर बताया गया कि यह आकृति भारतीय वास्तुकला में अष्टकोणीय कहलाती है। अंदर हाल में पहुंचने पर दीवारों पर ईसाई मिशनरी का सूत्र वाक्य ‘सेवा ही धर्म है’ लिखा दिखा। गीता का श्लोक ‘सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य:’ भी लिखा गया है। संस्कृत के इन श्लोक से सर्वधर्म समभाव का माहौल बन रहा था। महागिरजा में गीता का यह श्लोक लिखने की वजह क्या रही? इसको जानने के लिए भास्कर ने काशी धर्म प्रान्त के बिशप यूजीन जोसफ से 3 सवाल पूछे। ये चर्च कब बना था?
फादर यूजीन जोसफ – यह महागिरजा कैथोलिक धर्म संप्रदाय की आस्था का केंद्र हैं। इसको भव्य बनाने में साल 1970 में बिशप रहे पैट्रिक डिसूजा ने बहुत प्रयास किए। इसके पहले वाराणसी भी आगरा धर्मप्रांत के अधीन आता था। सेंट मेरी चर्च की स्थापना अंग्रेजी हुकूमत ने 1840 में की थी। लेकिन, इसका लिखित दस्तावेज साल 1920 से मिलता है। उनके ही प्रयासों से इसे महागिरजा का दर्जा मिला। यह गिरिजाघर दूसरे गिरिजाघरों से अलग कैसे है?
फादर यूजीन जोसफ – साल 1989 में इसका नए पैटर्न पर निर्माण शुरू हुआ। इसके बाद भारत के फेमस आर्किटेक्ट कृष्ण मेनन और ज्योति साहू ने इसको डिजाइन किया। साल 1993 में यह चर्च बनाकर तैयार हुआ। इसमें काशी की झलक दिखाई देती है। यहां खिड़कियों पर भगवान् बुद्ध और ओम की कृति बनी हुई है। इसका स्वरुप अपने आप में अद्भुत हैं। इस चर्च की गिनती दुनिया के खूबसूरत गिरजाघरों में होती है। गीता के श्लोक लिखने का कोई खास कारण है?
फादर यूजीन जोसेफ – यह चर्च हर व्यक्ति के लिए खुला है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो। इसमें एक तरफ बाइबिल सन्देश उकेरा गया है, दूसरी तरफ गीता का श्लोक। हमारा संप्रदाय सेवा करने के लिए ही जाना जाता है। इसलिए गीता का यह श्लोक यहां लिखा गया है। अब अलीगढ़ का क्राइस्ट चर्च… 1835 में तैयार हुआ था क्राइस्ट चर्च
पूर्वांचल के अनोखे चर्च को जानने के बाद उत्तर भारत के सबसे पुराने चर्च को देखने अलीगढ़ पहुंचे। लोगों ने बताया कि इंग्लैंड के बिशप विल्सन ने 1825 से लेकर 1845 तक लाहौर से लेकर कोलकाता तक कुल 20 गिरिजाघरों का निर्माण कराया था। जिसमें अलीगढ़ के नकवी पार्क में स्थित क्राइस्ट चर्च भी शामिल है। सूर्य की किरणों से शीशे पर नजर आती है प्रभु यीशु की छवि
अलीगढ़ की क्राइस्ट चर्च के निर्माण के लिए फ्रांस और इटली से कारीगर बुलाए गए। इस इमारत में नक्काशी की गई। चर्च के अंदर रंग बिरंगे शीशों में नक्काशी दिखती है। यह शीशे इंग्लैंड से मंगाए गए थे। पीछे से यह शीशे खुले हुए हैं और जब इसमें सूर्य की किरण पड़ती है तो इसमें प्रभु यीशु के साथ उनकी मां मरियम, उनके तीन परम शिष्यों की तस्वीर नजर आती है। शीशे पर उभरने वाली यह छवियां यहां आने वाले श्रद्धालुओं का आकर्षित करती हैं। निर्माण के लगभग 189 साल बाद भी इन शीशों की भव्यता वैसी ही है, जैसी इसके निर्माण के समय रही होगी। चर्च का पुलपिट (जहां खड़े होकर पादरी लोगों को प्रभु यीशु का संदेश देते हैं) ईगल की शेप में तांबे से बना हुआ है। पुलपिट चर्च की भव्यता को और भी बढ़ा देता है। लोग इसे देखने के लिए आते हैं। क्राइस्ट चर्च में रहते थे इंग्लैंड के फादर
अलीगढ़ शहर में कुल 8 चर्च हैं। इन सभी में क्राइस्ट चर्च ही एक मात्र चर्च है, जहां पर इंग्लैंड के पादरी रहते थे। यहां रहकर वह लोगों को प्रभु यीशु का संदेश सुनाया करते थे। जब भारत को 1947 में आजादी मिल गई, इसके बाद भी इंग्लैंड के पादरी यहां रहे। भारत के आजाद होने के 13 साल (वर्ष 1960) तक वह यहां रहे। इसके बाद वह यहां से इंग्लैंड वापस लौट गए। अंग्रेजी व मराठा फौजों के लिए थी डिस्पेंसरी
1835 में जब इस चर्च का निर्माण कराया गया, उस समय यह क्षेत्र मराठा साम्राज्य के अधीन था। यहां पर अंग्रेजी फौज व मराठा सैनिक प्रार्थना किया करते थे, इसके साथ ही यहां पर एक डिस्पेंसरी भी थी। जहां युद्ध में घायल हुए और बीमार सैनिकों का इलाज किया जाता था। चर्च के आसपास सुंदर बगीचा भी था। आज यह चर्च जवाहर पार्क (नकवी पार्क) के अंदर स्थित है। पार्क की हरियाली के बीच स्थित यह चर्च अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। 1982 में मदर टेरेसा भी आई थी यहां
मदर टेरेसा 1982 में अलीगढ़ आई थी। वह जमालपुर के एक अनाथालय में रुकी थीं। चर्च के पादरी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने मदर टेरेसा को यहां आने का न्योता भेजा था। चर्च के इतिहास को सुनकर और पादरी के न्योते को स्वीकार करते हुए मदर टेरेसा यहां आई थीं। जिसके बाद उन्होंने चर्च की जमकर तारीफ की थी। अनाथालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने चर्च को सकुशल बनाए रखने की दुआ भी की थी। ………………………… ये खबर भी पढ़ें : वीडियो में देखिए, डर के बीच क्रिसमस की तैयारियां:क्रिश्चियन बोले- असद के राज में क्रिसमस-ट्री सजाने से डर लगता था असद सरकार गिरने के बाद सीरिया में पहला बड़ा त्योहार क्रिसमस आया है। जश्न की तैयारी हो चुकी है। मार्केट में भीड़ है, चर्च सज गए हैं। तख्तापलट के 10 दिन बाद ही 19 दिसंबर से क्रिसमस मार्केट खुल गए थे। लोगों को डर था कि कट्टरपंथी संगठन HTS के दमिश्क पर कब्जे के बाद क्रिसमस कैसे मनाएंगे। हालांकि उनका कहना है कि ऐसा क्रिसमस 40 साल बाद आया है। असद की सरकार में न हम ट्री लगा पाते थे, न घर सजाते थे। नई सरकार ने अब तक कोई रोक-टोक नहीं की है इसलिए क्रिसमस अच्छे से सेलिब्रेट करेंगे। पढ़ें पूरी खबर… सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य: श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक किसी मंदिर की दीवार पर नहीं, काशी की एक चर्च पर लिखा मिला। यह अकेला चर्च है, जो गीता के उपदेश पर चलता है। इस श्लोक के मायने हैं- सेवा करना बहुत कठिन है और योगी भी इसे नहीं कर पाते। इस चर्च और उसकी दीवारों पर लिखे श्लोक का जिक्र इसलिए क्योंकि आज क्रिसमस का त्योहार है। यूपी के चर्च सजे हुए हैं। यीशू मसीह के जन्मदिन की धूम है। लोग जिन चर्च में प्रेयर के लिए पहुंच रहे हैं, उनकी बनावट, शैली को भी समझ रहे हैं। ऐसे में भास्कर यूपी के 2 अनोखे चर्च की कहानी आपके लिए लेकर आया है। पहला चर्च पूर्वांचल का सेंट मेरी महागिरजा है, दूसरा चर्च वेस्ट यूपी का क्राइस्ट चर्च है। जहां सूर्य की रोशनी से कांच (शीशा) पर यीशू और मरियम उभरते हैं। पढ़िए 2 गिरजाघर से रिपोर्ट… चर्च की आकृति कमल पुष्प की तरह
काशी के कैथोलिक महागिरजा सेंट मेरी चर्च पर दैनिक भास्कर टीम पहुंची। बाहर से देखने से इसकी आकृति एक पुष्प की तरह लगती है। पूछने पर बताया गया कि यह आकृति भारतीय वास्तुकला में अष्टकोणीय कहलाती है। अंदर हाल में पहुंचने पर दीवारों पर ईसाई मिशनरी का सूत्र वाक्य ‘सेवा ही धर्म है’ लिखा दिखा। गीता का श्लोक ‘सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य:’ भी लिखा गया है। संस्कृत के इन श्लोक से सर्वधर्म समभाव का माहौल बन रहा था। महागिरजा में गीता का यह श्लोक लिखने की वजह क्या रही? इसको जानने के लिए भास्कर ने काशी धर्म प्रान्त के बिशप यूजीन जोसफ से 3 सवाल पूछे। ये चर्च कब बना था?
फादर यूजीन जोसफ – यह महागिरजा कैथोलिक धर्म संप्रदाय की आस्था का केंद्र हैं। इसको भव्य बनाने में साल 1970 में बिशप रहे पैट्रिक डिसूजा ने बहुत प्रयास किए। इसके पहले वाराणसी भी आगरा धर्मप्रांत के अधीन आता था। सेंट मेरी चर्च की स्थापना अंग्रेजी हुकूमत ने 1840 में की थी। लेकिन, इसका लिखित दस्तावेज साल 1920 से मिलता है। उनके ही प्रयासों से इसे महागिरजा का दर्जा मिला। यह गिरिजाघर दूसरे गिरिजाघरों से अलग कैसे है?
फादर यूजीन जोसफ – साल 1989 में इसका नए पैटर्न पर निर्माण शुरू हुआ। इसके बाद भारत के फेमस आर्किटेक्ट कृष्ण मेनन और ज्योति साहू ने इसको डिजाइन किया। साल 1993 में यह चर्च बनाकर तैयार हुआ। इसमें काशी की झलक दिखाई देती है। यहां खिड़कियों पर भगवान् बुद्ध और ओम की कृति बनी हुई है। इसका स्वरुप अपने आप में अद्भुत हैं। इस चर्च की गिनती दुनिया के खूबसूरत गिरजाघरों में होती है। गीता के श्लोक लिखने का कोई खास कारण है?
फादर यूजीन जोसेफ – यह चर्च हर व्यक्ति के लिए खुला है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो। इसमें एक तरफ बाइबिल सन्देश उकेरा गया है, दूसरी तरफ गीता का श्लोक। हमारा संप्रदाय सेवा करने के लिए ही जाना जाता है। इसलिए गीता का यह श्लोक यहां लिखा गया है। अब अलीगढ़ का क्राइस्ट चर्च… 1835 में तैयार हुआ था क्राइस्ट चर्च
पूर्वांचल के अनोखे चर्च को जानने के बाद उत्तर भारत के सबसे पुराने चर्च को देखने अलीगढ़ पहुंचे। लोगों ने बताया कि इंग्लैंड के बिशप विल्सन ने 1825 से लेकर 1845 तक लाहौर से लेकर कोलकाता तक कुल 20 गिरिजाघरों का निर्माण कराया था। जिसमें अलीगढ़ के नकवी पार्क में स्थित क्राइस्ट चर्च भी शामिल है। सूर्य की किरणों से शीशे पर नजर आती है प्रभु यीशु की छवि
अलीगढ़ की क्राइस्ट चर्च के निर्माण के लिए फ्रांस और इटली से कारीगर बुलाए गए। इस इमारत में नक्काशी की गई। चर्च के अंदर रंग बिरंगे शीशों में नक्काशी दिखती है। यह शीशे इंग्लैंड से मंगाए गए थे। पीछे से यह शीशे खुले हुए हैं और जब इसमें सूर्य की किरण पड़ती है तो इसमें प्रभु यीशु के साथ उनकी मां मरियम, उनके तीन परम शिष्यों की तस्वीर नजर आती है। शीशे पर उभरने वाली यह छवियां यहां आने वाले श्रद्धालुओं का आकर्षित करती हैं। निर्माण के लगभग 189 साल बाद भी इन शीशों की भव्यता वैसी ही है, जैसी इसके निर्माण के समय रही होगी। चर्च का पुलपिट (जहां खड़े होकर पादरी लोगों को प्रभु यीशु का संदेश देते हैं) ईगल की शेप में तांबे से बना हुआ है। पुलपिट चर्च की भव्यता को और भी बढ़ा देता है। लोग इसे देखने के लिए आते हैं। क्राइस्ट चर्च में रहते थे इंग्लैंड के फादर
अलीगढ़ शहर में कुल 8 चर्च हैं। इन सभी में क्राइस्ट चर्च ही एक मात्र चर्च है, जहां पर इंग्लैंड के पादरी रहते थे। यहां रहकर वह लोगों को प्रभु यीशु का संदेश सुनाया करते थे। जब भारत को 1947 में आजादी मिल गई, इसके बाद भी इंग्लैंड के पादरी यहां रहे। भारत के आजाद होने के 13 साल (वर्ष 1960) तक वह यहां रहे। इसके बाद वह यहां से इंग्लैंड वापस लौट गए। अंग्रेजी व मराठा फौजों के लिए थी डिस्पेंसरी
1835 में जब इस चर्च का निर्माण कराया गया, उस समय यह क्षेत्र मराठा साम्राज्य के अधीन था। यहां पर अंग्रेजी फौज व मराठा सैनिक प्रार्थना किया करते थे, इसके साथ ही यहां पर एक डिस्पेंसरी भी थी। जहां युद्ध में घायल हुए और बीमार सैनिकों का इलाज किया जाता था। चर्च के आसपास सुंदर बगीचा भी था। आज यह चर्च जवाहर पार्क (नकवी पार्क) के अंदर स्थित है। पार्क की हरियाली के बीच स्थित यह चर्च अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। 1982 में मदर टेरेसा भी आई थी यहां
मदर टेरेसा 1982 में अलीगढ़ आई थी। वह जमालपुर के एक अनाथालय में रुकी थीं। चर्च के पादरी को जब इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने मदर टेरेसा को यहां आने का न्योता भेजा था। चर्च के इतिहास को सुनकर और पादरी के न्योते को स्वीकार करते हुए मदर टेरेसा यहां आई थीं। जिसके बाद उन्होंने चर्च की जमकर तारीफ की थी। अनाथालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने चर्च को सकुशल बनाए रखने की दुआ भी की थी। ………………………… ये खबर भी पढ़ें : वीडियो में देखिए, डर के बीच क्रिसमस की तैयारियां:क्रिश्चियन बोले- असद के राज में क्रिसमस-ट्री सजाने से डर लगता था असद सरकार गिरने के बाद सीरिया में पहला बड़ा त्योहार क्रिसमस आया है। जश्न की तैयारी हो चुकी है। मार्केट में भीड़ है, चर्च सज गए हैं। तख्तापलट के 10 दिन बाद ही 19 दिसंबर से क्रिसमस मार्केट खुल गए थे। लोगों को डर था कि कट्टरपंथी संगठन HTS के दमिश्क पर कब्जे के बाद क्रिसमस कैसे मनाएंगे। हालांकि उनका कहना है कि ऐसा क्रिसमस 40 साल बाद आया है। असद की सरकार में न हम ट्री लगा पाते थे, न घर सजाते थे। नई सरकार ने अब तक कोई रोक-टोक नहीं की है इसलिए क्रिसमस अच्छे से सेलिब्रेट करेंगे। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर