क्या गंगा 2050 तक सूख जाएगी:87 साल में गंगोत्री का ग्लेशियर 1700 मीटर पिघला; पुराण में भी 5000 साल लौटने का जिक्र

क्या गंगा 2050 तक सूख जाएगी:87 साल में गंगोत्री का ग्लेशियर 1700 मीटर पिघला; पुराण में भी 5000 साल लौटने का जिक्र

प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम पर महाकुंभ चल रहा है। अब तक 46 करोड़ से अधिक श्रद्धालु डुबकी लगा चुके हैं। लेकिन, इस बीच एक सवाल भी उठ रहा है कि क्या गंगा 2050 तक सूख जाएगी? ये सवाल इस वजह से किए जा रहे हैं, क्योंकि यूनाइटेड नेशन्स की ताजा रिपोर्ट इसी तरफ इशारा कर रही है। दूसरा पुराण में गंगा के वापस लौट जाने की बात भी लिखी है। जानिए यूएन की रिपोर्ट में क्या है? क्यों ऐसा कहा जा रहा है? पुराण में क्या है? जानिए इन सवालों का भास्कर एक्सप्लेनर… सवाल: यूएन की रिपोर्ट में क्या है?
जवाब: यूनाइडेट नेशंस ने साल 2025 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ ग्लेशियर्स घोषित किया है। इसकी वजह दुनियाभर में ग्लेशियर्स का जलवायु परिवर्तन की वजह से तेजी से पिघलना है। विश्व धरोहर स्थलों में 1 लाख 86 हजार ग्लेशियरों की पहचान की गई है। ये ग्लेशियर 66 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं। ये कुल ग्लेशियर का 10% है। हिमालय सहित विश्व भर में 10 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले ग्लेशियर अगले 25 वर्षों में सूख जाएंगे। वहीं, 100 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले ग्लेशियर अगले 75 साल में सूख जाएंगे। विश्व धरोहर ग्लेशियर हर साल औसतन 58 बिलियन टन बर्फ खो देते हैं। इससे समुद्र का जलस्तर हर साल 4.5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सवाल: गंगा का ग्लेशियर से कनेक्शन क्या है?
जवाब: हिमालय के ग्लेशियर से निकलने वाली दो धाराओं अलकनंदा और भागीरथी के देवप्रयाग में संगम से गंगा अस्तित्व में आती है। अलकनंदा की धारा केदारनाथ स्थित संतोपथ ग्लेशियर से निकलती है। वहीं, गंगा की मुख्य धारा मानी जाने वाली भागीरथी गंगोत्री से निकलती है। हालांकि, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा की मुख्य जलधारा अलकनंदा ही है। इसकी वजह अलकनंदा की विशाल जलराशि है। अलकनंदा में रुद्र प्रयाग तक बद्रीनाथ से निकलने वाली धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी की धाराएं मिलती हैं। ये अलकनंदा का औसत प्रवाह 15,516 घन फीट प्रति सेकेंड तक पहुंचा देती है। देवप्रयाग तक 195 किमी की दूरी अलकनंदा 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तय करती है। जबकि भागीरथी 16 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से 205 किमी की दूरी तय कर देवप्रयाग पहुंचती हैं। भागीरथी का औसत प्रवाह 9,103 घन फीट प्रति सेकेंड है। यूनाइटेड नेशंस और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दोनों जलधाराओं का मुख्य स्रोत हिमालय के ग्लेशियर ही हैं। जो ग्लोबल वार्मिंग के चलते वर्तमान समय में 38 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रही हैं। 1996 से 2016 तक यहां के ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार 22 मीटर प्रति वर्ष थी। सवाल: गंगोत्री-यमुनोत्री ग्लेशियर पिघलने पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब: मिजोरम विश्वविद्यालय आइजोल के प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती और सुरजीत बनर्जी ने हिमालय में पिछले 38 साल में होने वाले बदलावों अध्ययन किया है। मूल रूप से चमोली के रहने वाले प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि हिमालय तेज बदलाव से गुजर रहा है। अभी ये बदलाव दिख रहे… 1- मौसम: हिमालय क्षेत्र के 135 जिलों के मौसम में बड़ा बदलाव आया है। 1980 से 2018 की अवधि में 4640 माैसम संबंधी घटनाएं दर्ज हुई हैं। इसमें भूस्खलन और बादल फटने के साथ भारी बारिश और बाढ़ की कुल 2211 घटनाएं हुईं। इसमें भारी बर्फबारी की 1486 घटनाएं और शीतलहर की 303 घटनाएं शामिल हैं। पूर्वी हिमालय की तुलना में पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में 1990 के दशक के बाद भारी बर्फबारी कम हुई है। वहीं, भारी बारिश और बाढ़ के मामले बढ़े हैं। 2- बाढ़: यूपी के बिजनौर में पिछले 3 साल से लगातार बाढ़ आ रही है। सबसे खतरनाक यह है कि बाढ़ तेजी से आती है, लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिलता। 3- धाराओं में बंटी, घाट सिमटने लगे: अमरोहा के तिगरी में गंगा की जलधारा तीन से चार किमी दूर हो गई है। प्रयागराज में भी गंगा कई धाराओं में बंट जाती है। बीच में रेत के टापू निकल आते हैं। इस बार कुंभ के लिए प्रशासन ने गंगा नदी की गहराई कर एक धारा बनानी पड़ी। बनारस में जो गंगा के घाट, जो 600 मीटर तक होते थे। अब वे सिमट कर 300-400 मीटर रह गए हैं। आगे ऐसा दिखेगा बदलाव वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी ने हिमालय के गंगोत्री-यमुनोत्री सहित 650 ग्लेशियरों पर 4 दशकों के दौरान बर्फ पिघलने का विश्लेषण किया है। इसकी रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1975 से 2000 के बीच हर साल औसतन 4 बिलियन टन बर्फ पिघल रही थी। 2000 से 2016 के बीच ये रफ्तार दोगुनी हो गई। इसकी वजह तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी है। सवाल- गंगा का कब तक रहेगा अस्तित्व? क्या कहती है रिसर्च?
जवाब: चार पहाड़ियों से घिरा गंगोत्री ग्लेशियर 27 घन (19,683 वर्ग) किमी है। ये ग्लेशियर 30 किमी लंबा है। साथ ही 0.5 से 2.5 किमी की चौड़ाई है। इसके एक छोर पर 3950 फीट की ऊंचाई पर गोमुख स्थित है। यहीं से भागीरथी नदी निकलती है, जो कि बाद में जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी बनाती है। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में बढ़ते तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश की वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। डॉ. राकेश भांबरी अपनी इस रिपोर्ट में बताते हैं कि सबसे ज्यादा खतरे में गंगोत्री ग्लेशियर है। वाडिया इंस्टीट्यूट के ही सरफेस फेसिंग एनालिसिस ऑफ द गंगोत्री एंड नेबरिंग ग्लेशियर नाम के एक और रिसर्च पेपर के मुताबिक साल भर बर्फ से लदी रहने वाली हिमालय की ऊंची चोटियों पर बर्फ नहीं है। 1991 से 2021 तक शिखर पर बर्फ का क्षेत्र 10,768 वर्ग किमी से घटकर 3,258.6 वर्ग किमी रह गया है, जो एक खतरनाक कमी का संकेत है। ठीक इसके उलट पतली बर्फ की चादर 1991 में 3,798 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 6,863.56 वर्ग किमी हो गई है। इससे क्षेत्र में गर्मी बढ़ गई है। औली और उसके आसपास के क्षेत्र जो पहले हमेशा बर्फ से ढंके रहते थे। अब वहां बर्फ नहीं है। नैनीताल में बर्फबारी दो या तीन वर्षों में एक बार हो रही है। 1990 के दशक में यहां अक्सर बर्फबारी होती रहती थी। इस तरह गंगोत्री में ग्लेशियर पिघल रहा सवाल: देवी भावगत पुराण में गंगा के सूखने को लेकर क्या कहा गया है?
जवाब: देवी भागवत पुराण के स्कंध 9 अध्याय- 11 में जिक्र है कि कलियुग के 5 हजार साल बीतने पर गंगा भी पृथ्वी से चली जाएगी। देवी भागवत की कथा के अनुसार एक बार गंगा और सरस्वती में विवाद हो गया। बीच-बचाव को लक्ष्मी पहुंची, तो सरस्वती ने उन्हें वृक्ष के रूप में पृथ्वी पर पापियों का पाप स्वीकार करने का शाप दे दिया। इसके बाद गंगा और सरस्वती ने एक-दूसरे को नदी के रूप में पृथ्वी पर रहने का शाप दे दिया। तीनों देवियों गंगा, सरस्वती और लक्ष्मी का क्रोध शांत हुआ तो पश्चाताप करने लगीं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब कलयुग के 5 हजार साल पूरे हो जाएंगे तब तीनों देवियां वापस अपने-अपने स्थान को लौट जाएंगी। पौराणिक कथा के मुताबिक गंगा करीब 14 हजार साल पहले पृथ्वी पर आई थीं। गंगा से पहले सरस्वती नदी का अस्तित्व था। ऋग्वेद और महाभारत में इसका जिक्र है। प्रयागराज में त्रिवेणी के रूप में गंगा-यमुना के साथ सरस्वती का संगम बताया गया है। हालांकि हिमालय से निकली सरस्वती हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिंध प्रदेश जाकर अरब की खाड़ी में मिल जाती थीं। सरस्वती अब लुप्त हो चुकी हैं। सवाल: ग्लेशियर को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है?
जवाब: डेटा संग्रह और एनालिसिस को बढ़ाने के लिए वैश्विक ग्लेशियर निगरानी प्रणालियों का विस्तार किया जा रहा है। ग्लेशियर से संबंधित खतरों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना। ग्लेशियर-निर्भर क्षेत्रों में स्थायी जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देना। ग्लेशियर पर्यावरण से संबंधित सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करना। कार्बन उत्सर्जन को घटाकर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के औसत पर लाना। ग्राफिक्स: प्रदीप तिवारी ————————————— यह खबर भी पढ़ें विदेशी बोले- महाकुंभ दुनिया की सबसे अच्छी जगह, नॉर्वे के पूर्व मंत्री बोले- इतिहास का सबसे बड़ा समागम, भारत के लोग बड़े मिलनसार प्रयागराज महाकुंभ अपने अंतिम चरण में है। तमाम विदेशी श्रद्धालु भी महाकुंभ पहुंच रहे हैं। बुधवार को नार्वे, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और नेपाल से आए श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया। यहां पढ़ें पूरी खबर प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम पर महाकुंभ चल रहा है। अब तक 46 करोड़ से अधिक श्रद्धालु डुबकी लगा चुके हैं। लेकिन, इस बीच एक सवाल भी उठ रहा है कि क्या गंगा 2050 तक सूख जाएगी? ये सवाल इस वजह से किए जा रहे हैं, क्योंकि यूनाइटेड नेशन्स की ताजा रिपोर्ट इसी तरफ इशारा कर रही है। दूसरा पुराण में गंगा के वापस लौट जाने की बात भी लिखी है। जानिए यूएन की रिपोर्ट में क्या है? क्यों ऐसा कहा जा रहा है? पुराण में क्या है? जानिए इन सवालों का भास्कर एक्सप्लेनर… सवाल: यूएन की रिपोर्ट में क्या है?
जवाब: यूनाइडेट नेशंस ने साल 2025 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ ग्लेशियर्स घोषित किया है। इसकी वजह दुनियाभर में ग्लेशियर्स का जलवायु परिवर्तन की वजह से तेजी से पिघलना है। विश्व धरोहर स्थलों में 1 लाख 86 हजार ग्लेशियरों की पहचान की गई है। ये ग्लेशियर 66 हजार वर्ग किमी क्षेत्र में फैले हैं। ये कुल ग्लेशियर का 10% है। हिमालय सहित विश्व भर में 10 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले ग्लेशियर अगले 25 वर्षों में सूख जाएंगे। वहीं, 100 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले ग्लेशियर अगले 75 साल में सूख जाएंगे। विश्व धरोहर ग्लेशियर हर साल औसतन 58 बिलियन टन बर्फ खो देते हैं। इससे समुद्र का जलस्तर हर साल 4.5 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। सवाल: गंगा का ग्लेशियर से कनेक्शन क्या है?
जवाब: हिमालय के ग्लेशियर से निकलने वाली दो धाराओं अलकनंदा और भागीरथी के देवप्रयाग में संगम से गंगा अस्तित्व में आती है। अलकनंदा की धारा केदारनाथ स्थित संतोपथ ग्लेशियर से निकलती है। वहीं, गंगा की मुख्य धारा मानी जाने वाली भागीरथी गंगोत्री से निकलती है। हालांकि, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा की मुख्य जलधारा अलकनंदा ही है। इसकी वजह अलकनंदा की विशाल जलराशि है। अलकनंदा में रुद्र प्रयाग तक बद्रीनाथ से निकलने वाली धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर और मंदाकिनी की धाराएं मिलती हैं। ये अलकनंदा का औसत प्रवाह 15,516 घन फीट प्रति सेकेंड तक पहुंचा देती है। देवप्रयाग तक 195 किमी की दूरी अलकनंदा 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तय करती है। जबकि भागीरथी 16 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से 205 किमी की दूरी तय कर देवप्रयाग पहुंचती हैं। भागीरथी का औसत प्रवाह 9,103 घन फीट प्रति सेकेंड है। यूनाइटेड नेशंस और वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दोनों जलधाराओं का मुख्य स्रोत हिमालय के ग्लेशियर ही हैं। जो ग्लोबल वार्मिंग के चलते वर्तमान समय में 38 मीटर प्रति वर्ष की दर से पिघल रही हैं। 1996 से 2016 तक यहां के ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार 22 मीटर प्रति वर्ष थी। सवाल: गंगोत्री-यमुनोत्री ग्लेशियर पिघलने पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब: मिजोरम विश्वविद्यालय आइजोल के प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती और सुरजीत बनर्जी ने हिमालय में पिछले 38 साल में होने वाले बदलावों अध्ययन किया है। मूल रूप से चमोली के रहने वाले प्रोफेसर विशंभर प्रसाद सती अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि हिमालय तेज बदलाव से गुजर रहा है। अभी ये बदलाव दिख रहे… 1- मौसम: हिमालय क्षेत्र के 135 जिलों के मौसम में बड़ा बदलाव आया है। 1980 से 2018 की अवधि में 4640 माैसम संबंधी घटनाएं दर्ज हुई हैं। इसमें भूस्खलन और बादल फटने के साथ भारी बारिश और बाढ़ की कुल 2211 घटनाएं हुईं। इसमें भारी बर्फबारी की 1486 घटनाएं और शीतलहर की 303 घटनाएं शामिल हैं। पूर्वी हिमालय की तुलना में पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में 1990 के दशक के बाद भारी बर्फबारी कम हुई है। वहीं, भारी बारिश और बाढ़ के मामले बढ़े हैं। 2- बाढ़: यूपी के बिजनौर में पिछले 3 साल से लगातार बाढ़ आ रही है। सबसे खतरनाक यह है कि बाढ़ तेजी से आती है, लोगों को संभलने तक का मौका नहीं मिलता। 3- धाराओं में बंटी, घाट सिमटने लगे: अमरोहा के तिगरी में गंगा की जलधारा तीन से चार किमी दूर हो गई है। प्रयागराज में भी गंगा कई धाराओं में बंट जाती है। बीच में रेत के टापू निकल आते हैं। इस बार कुंभ के लिए प्रशासन ने गंगा नदी की गहराई कर एक धारा बनानी पड़ी। बनारस में जो गंगा के घाट, जो 600 मीटर तक होते थे। अब वे सिमट कर 300-400 मीटर रह गए हैं। आगे ऐसा दिखेगा बदलाव वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी ने हिमालय के गंगोत्री-यमुनोत्री सहित 650 ग्लेशियरों पर 4 दशकों के दौरान बर्फ पिघलने का विश्लेषण किया है। इसकी रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1975 से 2000 के बीच हर साल औसतन 4 बिलियन टन बर्फ पिघल रही थी। 2000 से 2016 के बीच ये रफ्तार दोगुनी हो गई। इसकी वजह तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी है। सवाल- गंगा का कब तक रहेगा अस्तित्व? क्या कहती है रिसर्च?
जवाब: चार पहाड़ियों से घिरा गंगोत्री ग्लेशियर 27 घन (19,683 वर्ग) किमी है। ये ग्लेशियर 30 किमी लंबा है। साथ ही 0.5 से 2.5 किमी की चौड़ाई है। इसके एक छोर पर 3950 फीट की ऊंचाई पर गोमुख स्थित है। यहीं से भागीरथी नदी निकलती है, जो कि बाद में जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा नदी बनाती है। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की रिपोर्ट के मुताबिक, हिमालय क्षेत्र में बढ़ते तापमान, कम बर्फबारी और ज्यादा बारिश की वजह से ये ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। डॉ. राकेश भांबरी अपनी इस रिपोर्ट में बताते हैं कि सबसे ज्यादा खतरे में गंगोत्री ग्लेशियर है। वाडिया इंस्टीट्यूट के ही सरफेस फेसिंग एनालिसिस ऑफ द गंगोत्री एंड नेबरिंग ग्लेशियर नाम के एक और रिसर्च पेपर के मुताबिक साल भर बर्फ से लदी रहने वाली हिमालय की ऊंची चोटियों पर बर्फ नहीं है। 1991 से 2021 तक शिखर पर बर्फ का क्षेत्र 10,768 वर्ग किमी से घटकर 3,258.6 वर्ग किमी रह गया है, जो एक खतरनाक कमी का संकेत है। ठीक इसके उलट पतली बर्फ की चादर 1991 में 3,798 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 6,863.56 वर्ग किमी हो गई है। इससे क्षेत्र में गर्मी बढ़ गई है। औली और उसके आसपास के क्षेत्र जो पहले हमेशा बर्फ से ढंके रहते थे। अब वहां बर्फ नहीं है। नैनीताल में बर्फबारी दो या तीन वर्षों में एक बार हो रही है। 1990 के दशक में यहां अक्सर बर्फबारी होती रहती थी। इस तरह गंगोत्री में ग्लेशियर पिघल रहा सवाल: देवी भावगत पुराण में गंगा के सूखने को लेकर क्या कहा गया है?
जवाब: देवी भागवत पुराण के स्कंध 9 अध्याय- 11 में जिक्र है कि कलियुग के 5 हजार साल बीतने पर गंगा भी पृथ्वी से चली जाएगी। देवी भागवत की कथा के अनुसार एक बार गंगा और सरस्वती में विवाद हो गया। बीच-बचाव को लक्ष्मी पहुंची, तो सरस्वती ने उन्हें वृक्ष के रूप में पृथ्वी पर पापियों का पाप स्वीकार करने का शाप दे दिया। इसके बाद गंगा और सरस्वती ने एक-दूसरे को नदी के रूप में पृथ्वी पर रहने का शाप दे दिया। तीनों देवियों गंगा, सरस्वती और लक्ष्मी का क्रोध शांत हुआ तो पश्चाताप करने लगीं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब कलयुग के 5 हजार साल पूरे हो जाएंगे तब तीनों देवियां वापस अपने-अपने स्थान को लौट जाएंगी। पौराणिक कथा के मुताबिक गंगा करीब 14 हजार साल पहले पृथ्वी पर आई थीं। गंगा से पहले सरस्वती नदी का अस्तित्व था। ऋग्वेद और महाभारत में इसका जिक्र है। प्रयागराज में त्रिवेणी के रूप में गंगा-यमुना के साथ सरस्वती का संगम बताया गया है। हालांकि हिमालय से निकली सरस्वती हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिंध प्रदेश जाकर अरब की खाड़ी में मिल जाती थीं। सरस्वती अब लुप्त हो चुकी हैं। सवाल: ग्लेशियर को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है?
जवाब: डेटा संग्रह और एनालिसिस को बढ़ाने के लिए वैश्विक ग्लेशियर निगरानी प्रणालियों का विस्तार किया जा रहा है। ग्लेशियर से संबंधित खतरों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना। ग्लेशियर-निर्भर क्षेत्रों में स्थायी जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देना। ग्लेशियर पर्यावरण से संबंधित सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करना। कार्बन उत्सर्जन को घटाकर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस के औसत पर लाना। ग्राफिक्स: प्रदीप तिवारी ————————————— यह खबर भी पढ़ें विदेशी बोले- महाकुंभ दुनिया की सबसे अच्छी जगह, नॉर्वे के पूर्व मंत्री बोले- इतिहास का सबसे बड़ा समागम, भारत के लोग बड़े मिलनसार प्रयागराज महाकुंभ अपने अंतिम चरण में है। तमाम विदेशी श्रद्धालु भी महाकुंभ पहुंच रहे हैं। बुधवार को नार्वे, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और नेपाल से आए श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया। यहां पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर