खालिस्तान समर्थक संस्था सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ) कनाडा में हिंदू मंदिरों के बाहर प्रदर्शन करने की तैयारी में है। कनाडा के ब्रैंपटन स्थित हिंदू मंदिरों के बाहर 16 और 17 नवंबर को भारतीय राजनयिकों और मोदी सरकार के समर्थकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस रैली में, विशेष रूप से 16 नवंबर को मिसिसॉगा के कालीबाड़ी मंदिर और 17 नवंबर को ब्रैंपटन के त्रिवेणी मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई गई है। इस विरोध को लेकर खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत पन्नू ने वीडियो संदेश भेजा है। उसका कहना है कि अगर भारतीय हिंदू संगठनों और राजनयिकों ने कनाडा में अपने प्रयास जारी रखे, तो खालिस्तान समर्थक “अयोध्या की नींव हिला देंगे”। जो 1992 से “हिंदुत्व वादी विचारधारा” का प्रतीक स्थल है। पन्नू ने आरोप लगाया कि मोदी और अमित शाह की सरकार द्वारा समर्थित संगठनों जैसे आरएसएस, बजरंग दल, और शिवसेना ने कनाडा में गुरुद्वारों पर हमले करने की कोशिश की है। खालिस्तान समर्थकों की मांगें और संदेश पन्नू का कहना है कि कनाडा में भारतीय राजनयिकों का विरोध जारी रहेगा, खासकर जहां ‘लाइफ सर्टिफिकेट कैंप्स’ का आयोजन किया जा रहा है। SFJ ने भारतीय राजनयिकों पर कनाडा के सिख समुदाय की जासूसी करने का आरोप लगाया है, और दावा किया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने इसे स्वीकार किया है। कनाडा में बसे हिंदू समर्थकों को चेतावनी इस विरोध प्रदर्शन में SFJ ने कनाडा में रहने वाले मोदी समर्थकों और हिंदू समुदाय के लोगों को चेतावनी दी है कि वे कनाडा के प्रति लॉयल रहें। यदि वे भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन जारी रखते हैं, तो उन्हें कनाडा छोड़ देना चाहिए। SFJ ने हिंदू सभा मंदिर के समर्थकों पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने “घर में घुस के मारेंगे” जैसे नारे लगाए थे, और खालिस्तान समर्थकों के विरोध में हिंसा भड़काई थी। SFJ ने हिंदू समुदाय के लोगों को चेताया है कि अगर वे भारतीय झंडे के साथ नजर आए, तो उन्हें “सिखों और कनाडा के दुश्मन” के रूप में देखा जाएगा। इस बयान के जरिए SFJ ने स्पष्ट किया है कि यह संघर्ष भारत की मोदी सरकार और खालिस्तान समर्थकों के बीच का है, और भारतीय-कनाडाई समुदाय के लोगों को इस टकराव से दूर रहने की सलाह दी गई है। कनाडा में पहले भी मंदिरों पर हो चुके हमले कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में उच्चायोग ने हिंदू सभा मंदिर के बाहर कॉन्सुलर कैंप लगाया था। यह कैंप भारतीय नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए लगा था। इसमें जीवन प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के 40 साल पूरे होने को लेकर प्रोटेस्ट कर रहे खालिस्तानी वहां पहुंचे और उन्होंने लोगों पर हमला कर दिया। कनाडा में पिछले कुछ समय से हिंदू मंदिरों और समुदाय के लोगों को निशाना बनाए जाने से भारतीय समुदाय चिंतित है। पिछले कुछ सालों में ग्रेटर टोरंटो एरिया, ब्रिटिश कोलंबिया और कनाडा में बाकी जगहों पर हिंदू मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया है। कनाडाई पीएम ने भी घटना की निंदा की थी इस बारे में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी निंदा की थी। जिसमें उन्होंने ब्रैम्पटन में हिंदू सभा मंदिर में हुई हिंसा को स्वीकार नहीं किया जा सकता। हर कनाडाई को अपने धर्म का स्वतंत्र और सुरक्षित तरीके से पालन करने का अधिकार है। घटना के बाद से इलाके में तनाव है। भारी संख्या में पुलिस की तैनाती की गई है। पील रीजनल पुलिस चीफ निशान दुरईप्पा ने लोगों से संयम बरतने की अपील की है। भारत का आरोप- वोट बैंक के लिए भारत विरोधी राजनीति कर रहे PM ट्रूडो भारत और कनाडा के बीच संबंधों में एक साल से भी ज्यादा समय से गिरावट देखी गई है। इसकी शुरुआत जून 2020 में खालिस्तानी समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद हुई। पिछले साल सितंबर में PM ट्रूडो ने संसद में आरोप लगाया कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसी का हाथ है। इसके बाद ट्रूडो ने पिछले महीने 13 अक्टूबर निज्जर हत्याकांड में भारतीय राजनयिकों के शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद भारत ने संजय वर्मा समेत अपने 6 राजनयिकों को वापस बुला लिया। भारत का कहना है कि कनाडा सरकार के आरोप बेबुनियाद हैं। कनाडा ने भारत सरकार के साथ एक भी सबूत साझा नहीं किया है। वे बिना तथ्य के दावे कर रहे हैं। ट्रूडो सरकार राजनीतिक लाभ उठाने के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की कोशिश में जुटी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि PM ट्रूडो की भारत से दुश्मनी लंबे समय से जारी है। उनके मंत्रिमंडल में ऐसे लोग शामिल हैं जो खुले तौर पर चरमपंथी संगठनों से जुड़े हुए हैं। खालिस्तान समर्थक संस्था सिख्स फॉर जस्टिस (SFJ) कनाडा में हिंदू मंदिरों के बाहर प्रदर्शन करने की तैयारी में है। कनाडा के ब्रैंपटन स्थित हिंदू मंदिरों के बाहर 16 और 17 नवंबर को भारतीय राजनयिकों और मोदी सरकार के समर्थकों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे। इस रैली में, विशेष रूप से 16 नवंबर को मिसिसॉगा के कालीबाड़ी मंदिर और 17 नवंबर को ब्रैंपटन के त्रिवेणी मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई गई है। इस विरोध को लेकर खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत पन्नू ने वीडियो संदेश भेजा है। उसका कहना है कि अगर भारतीय हिंदू संगठनों और राजनयिकों ने कनाडा में अपने प्रयास जारी रखे, तो खालिस्तान समर्थक “अयोध्या की नींव हिला देंगे”। जो 1992 से “हिंदुत्व वादी विचारधारा” का प्रतीक स्थल है। पन्नू ने आरोप लगाया कि मोदी और अमित शाह की सरकार द्वारा समर्थित संगठनों जैसे आरएसएस, बजरंग दल, और शिवसेना ने कनाडा में गुरुद्वारों पर हमले करने की कोशिश की है। खालिस्तान समर्थकों की मांगें और संदेश पन्नू का कहना है कि कनाडा में भारतीय राजनयिकों का विरोध जारी रहेगा, खासकर जहां ‘लाइफ सर्टिफिकेट कैंप्स’ का आयोजन किया जा रहा है। SFJ ने भारतीय राजनयिकों पर कनाडा के सिख समुदाय की जासूसी करने का आरोप लगाया है, और दावा किया है कि कनाडा के प्रधानमंत्री और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) ने इसे स्वीकार किया है। कनाडा में बसे हिंदू समर्थकों को चेतावनी इस विरोध प्रदर्शन में SFJ ने कनाडा में रहने वाले मोदी समर्थकों और हिंदू समुदाय के लोगों को चेतावनी दी है कि वे कनाडा के प्रति लॉयल रहें। यदि वे भारतीय राष्ट्रवादी विचारधारा का समर्थन जारी रखते हैं, तो उन्हें कनाडा छोड़ देना चाहिए। SFJ ने हिंदू सभा मंदिर के समर्थकों पर भी आरोप लगाया है कि उन्होंने “घर में घुस के मारेंगे” जैसे नारे लगाए थे, और खालिस्तान समर्थकों के विरोध में हिंसा भड़काई थी। SFJ ने हिंदू समुदाय के लोगों को चेताया है कि अगर वे भारतीय झंडे के साथ नजर आए, तो उन्हें “सिखों और कनाडा के दुश्मन” के रूप में देखा जाएगा। इस बयान के जरिए SFJ ने स्पष्ट किया है कि यह संघर्ष भारत की मोदी सरकार और खालिस्तान समर्थकों के बीच का है, और भारतीय-कनाडाई समुदाय के लोगों को इस टकराव से दूर रहने की सलाह दी गई है। कनाडा में पहले भी मंदिरों पर हो चुके हमले कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में उच्चायोग ने हिंदू सभा मंदिर के बाहर कॉन्सुलर कैंप 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और कनाडा के बीच संबंधों में एक साल से भी ज्यादा समय से गिरावट देखी गई है। इसकी शुरुआत जून 2020 में खालिस्तानी समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद हुई। पिछले साल सितंबर में PM ट्रूडो ने संसद में आरोप लगाया कि निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसी का हाथ है। इसके बाद ट्रूडो ने पिछले महीने 13 अक्टूबर निज्जर हत्याकांड में भारतीय राजनयिकों के शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद भारत ने संजय वर्मा समेत अपने 6 राजनयिकों को वापस बुला लिया। भारत का कहना है कि कनाडा सरकार के आरोप बेबुनियाद हैं। कनाडा ने भारत सरकार के साथ एक भी सबूत साझा नहीं किया है। वे बिना तथ्य के दावे कर रहे हैं। ट्रूडो सरकार राजनीतिक लाभ उठाने के लिए जानबूझकर भारत को बदनाम करने की कोशिश में जुटी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि PM ट्रूडो की भारत से दुश्मनी लंबे समय से जारी है। उनके मंत्रिमंडल में ऐसे लोग शामिल हैं जो खुले तौर पर चरमपंथी संगठनों से जुड़े हुए हैं। पंजाब | दैनिक भास्कर
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