गर्भ में बेटी को मार दिया…वो सपने में कहती-मुक्ति दो:बांग्लादेशी मुस्लिम महिला ने काशी में पिंडदान किया, हिंदू भी बनीं

गर्भ में बेटी को मार दिया…वो सपने में कहती-मुक्ति दो:बांग्लादेशी मुस्लिम महिला ने काशी में पिंडदान किया, हिंदू भी बनीं

’27 साल पहले गर्भ में मेरी बेटी की मौत हो गई। तब से वह मेरे सपने में आती और मुझसे बात करती थी। कहती- मुझे मुक्ति चाहिए। मुक्ति या मोक्ष कैसे मिलेगा, इसके बारे में जानकारी ली। कई वेबसाइट्स खंगाले। तब मुझे काशी में पिंडदान और मोक्ष के बारे में पता चला। मैंने आगमन संस्था से बात की और सीधे काशी आ गई।’ ये कहना है लंदन से काशी आईं 49 साल की बांग्लादेशी मुस्लिम महिला अंबिया बानो की। उन्होंने सोमवार को सनातन धर्म अपना लिया और अंबिया माला बन गईं। इसके बाद अपनी बेटी के मोक्ष कामना से उन्होंने दशाश्वमेध घाट पर पिंडदान किया। पिंडदान का कर्मकांड पांच वैदिक ब्राह्मणों ने कराया। श्राद्ध कर्म की 3 फोटो देखिए… गंगा स्नान कराकर सनातन धर्म स्वीकार कराया
अंबिया माला ने बताया- जो गलती मेरे पूर्वजों ने की है, मैंने उन्हें सुधारते हुए सनातन धर्म अपना लिया है। काशी पहुंचने पर आगमन संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने अंबिया को गंगा स्नान कराया और सनातन धर्म स्वीकार कराया। इसके बाद पंचगव्य ग्रहण कराकर उनकी आत्मशुद्धि कराई। बेटी सपने में आकर मुक्ति की बात करती थी
लंदन में पली- बढ़ीं अंबिया माला बांग्लादेश में श्रीरामपुर की रहने वाली हैं। लंदन में उनका विवाह ईसाई धर्म को मानने वाले नेविल बॉरन जूनियर से हुआ था। अंबिया से विवाह करने के लिए नेवल बार्न ने मुस्लिम धर्म स्वीकार किया था। विवाह के करीब एक दशक बाद नेवल से उनका तलाक भी शरियत के कानून के अनुरूप हुआ। अंबिया कहती हैं, पिछले कुछ वर्षों से उसकी बेटी सपने में आकर उसे अपने मुक्ति की बात करती थी। इसके बाद तमाम संचार मीडिया के माध्यम से काशी के विषय में जाना और सामाजिक संस्था ‘आगमन’ को सर्च किया और सम्पर्क साधा। मैंने अपना रिसर्च किया, फिर मुझे ह्यूमन राइट्स का पता चला
अंबिया माला ने कहा- मैं जानती हूं कि हर कल्चर में सनातनी प्रवृत्ति है। 27 साल पहले अनजाने में अबॉर्शन करवा लिया था। उसी का प्रायश्चित करने आई हूं। बाहर के देशों के एजुकेशन सिस्टम अबॉर्शन को कोई गलती नहीं मानते, लेकिन मुझे रिसर्च में समय लग गया। मैंने साइंस, बायोलॉजी, फिलॉस्फी और राजनीति को पढ़ा। इसके बाद मुझे लगा कि अगर इंसान हैं तो उसके ह्यूमन राइट्स हैं। ऐसे में मेरी जिम्मेदारी है कि हम सभी जीवों की रक्षा करें। 5 पंडितों ने कराया श्राद्ध कर्म
अंबिया माला सोमवार को काशी के दशाश्वमेध घाट पहुंचीं। यहां उन्होंने अपनी बेटी की मोक्ष की कामना के लिए वैशाख पूर्णिमा पर दोपहर में शांति पाठ कराया। श्राद्ध कर्म की शुरुआत आचार्य पं दिनेश शंकर दुबे ने कराया। सहयोग में पं सीताराम पाठक, कृष्णकांत पुरोहित, रामकृष्ण पाण्डेय और भंडारी पाण्डेय ने श्राद्ध कर्म कराया। ————————- ये खबर भी पढ़ें… कानपुर में इंजीनियर की पत्नी बोली-मुझे सरप्राइज देना चाहते थे; हेयर ट्रांसप्लांट के बाद चेहरा इतना सूज गया कि पहचान में नहीं आ रहा था होली पर बच्चों को लेकर मायके गई थी। मेरे पति घर पर थे। उन्होंने मुझसे फोन पर कहा- घर आओगी तो सरप्राइज दूंगा। इस पर मैंने कहा – मुझे आपके सरप्राइज का इंतजार रहेगा। फिर उन्होंने मुझे बिना बताए हेयर ट्रांसप्लांट करवा लिया। 14 मार्च को फोन आया कि पति अस्पताल में एडमिट हैं। पढ़िए पूरी खबर ’27 साल पहले गर्भ में मेरी बेटी की मौत हो गई। तब से वह मेरे सपने में आती और मुझसे बात करती थी। कहती- मुझे मुक्ति चाहिए। मुक्ति या मोक्ष कैसे मिलेगा, इसके बारे में जानकारी ली। कई वेबसाइट्स खंगाले। तब मुझे काशी में पिंडदान और मोक्ष के बारे में पता चला। मैंने आगमन संस्था से बात की और सीधे काशी आ गई।’ ये कहना है लंदन से काशी आईं 49 साल की बांग्लादेशी मुस्लिम महिला अंबिया बानो की। उन्होंने सोमवार को सनातन धर्म अपना लिया और अंबिया माला बन गईं। इसके बाद अपनी बेटी के मोक्ष कामना से उन्होंने दशाश्वमेध घाट पर पिंडदान किया। पिंडदान का कर्मकांड पांच वैदिक ब्राह्मणों ने कराया। श्राद्ध कर्म की 3 फोटो देखिए… गंगा स्नान कराकर सनातन धर्म स्वीकार कराया
अंबिया माला ने बताया- जो गलती मेरे पूर्वजों ने की है, मैंने उन्हें सुधारते हुए सनातन धर्म अपना लिया है। काशी पहुंचने पर आगमन संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने अंबिया को गंगा स्नान कराया और सनातन धर्म स्वीकार कराया। इसके बाद पंचगव्य ग्रहण कराकर उनकी आत्मशुद्धि कराई। बेटी सपने में आकर मुक्ति की बात करती थी
लंदन में पली- बढ़ीं अंबिया माला बांग्लादेश में श्रीरामपुर की रहने वाली हैं। लंदन में उनका विवाह ईसाई धर्म को मानने वाले नेविल बॉरन जूनियर से हुआ था। अंबिया से विवाह करने के लिए नेवल बार्न ने मुस्लिम धर्म स्वीकार किया था। विवाह के करीब एक दशक बाद नेवल से उनका तलाक भी शरियत के कानून के अनुरूप हुआ। अंबिया कहती हैं, पिछले कुछ वर्षों से उसकी बेटी सपने में आकर उसे अपने मुक्ति की बात करती थी। इसके बाद तमाम संचार मीडिया के माध्यम से काशी के विषय में जाना और सामाजिक संस्था ‘आगमन’ को सर्च किया और सम्पर्क साधा। मैंने अपना रिसर्च किया, फिर मुझे ह्यूमन राइट्स का पता चला
अंबिया माला ने कहा- मैं जानती हूं कि हर कल्चर में सनातनी प्रवृत्ति है। 27 साल पहले अनजाने में अबॉर्शन करवा लिया था। उसी का प्रायश्चित करने आई हूं। बाहर के देशों के एजुकेशन सिस्टम अबॉर्शन को कोई गलती नहीं मानते, लेकिन मुझे रिसर्च में समय लग गया। मैंने साइंस, बायोलॉजी, फिलॉस्फी और राजनीति को पढ़ा। इसके बाद मुझे लगा कि अगर इंसान हैं तो उसके ह्यूमन राइट्स हैं। ऐसे में मेरी जिम्मेदारी है कि हम सभी जीवों की रक्षा करें। 5 पंडितों ने कराया श्राद्ध कर्म
अंबिया माला सोमवार को काशी के दशाश्वमेध घाट पहुंचीं। यहां उन्होंने अपनी बेटी की मोक्ष की कामना के लिए वैशाख पूर्णिमा पर दोपहर में शांति पाठ कराया। श्राद्ध कर्म की शुरुआत आचार्य पं दिनेश शंकर दुबे ने कराया। सहयोग में पं सीताराम पाठक, कृष्णकांत पुरोहित, रामकृष्ण पाण्डेय और भंडारी पाण्डेय ने श्राद्ध कर्म कराया। ————————- ये खबर भी पढ़ें… कानपुर में इंजीनियर की पत्नी बोली-मुझे सरप्राइज देना चाहते थे; हेयर ट्रांसप्लांट के बाद चेहरा इतना सूज गया कि पहचान में नहीं आ रहा था होली पर बच्चों को लेकर मायके गई थी। मेरे पति घर पर थे। उन्होंने मुझसे फोन पर कहा- घर आओगी तो सरप्राइज दूंगा। इस पर मैंने कहा – मुझे आपके सरप्राइज का इंतजार रहेगा। फिर उन्होंने मुझे बिना बताए हेयर ट्रांसप्लांट करवा लिया। 14 मार्च को फोन आया कि पति अस्पताल में एडमिट हैं। पढ़िए पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर