बजरंगबली के मंदिरों के नाम अमूमन बड़े हनुमान मंदिर, लेटे हनुमान मंदिर, पातालपुरी हनुमान मंदिर, संकटमोचन हनुमान मंदिर होते हैं। लेकिन, लखनऊ में बजरंगबली के मंदिर का नाम- ‘हनुमान सेतु मंदिर’ है। इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। लाेगाें के जेहन में आज भी सवाल आते हैं कि आखिर अतुलनीय बल के धाम, बिना सेतु के ही समुद्र लांघ जाने वाले भगवान बजरंगी के नाम के साथ आखिर सेतु क्यों लगा? इसका जवाब संत नीम करौरी महाराज से जुड़ा हुआ है। बाबा नीम करौरी का लखनऊ से अटूट नाता रहा है। उन्होंने जहां आज पुल है, वहीं गोमती नदी के किनारे कभी तप किया था। उन्हीं के प्रताप की वजह से जब ये मंदिर बना तो उसका नाम हनुमान सेतु पड़ा। आज जेष्ठ महीने का दूसरा बड़ा मंगल है, आइए पढ़िए हनुमान सेतु मंदिर के बनने की मान्यता- पहले हनुमान सेतु मंदिर की लोकेशन जानिए अब मंदिर के बनने की कहानी… गोमती नदी का किनारा चुना गया हनुमान सेतु मंदिर के मंदिर दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि बाबा नीम करौरी की प्रेरणा से हनुमान सेतु मंदिर की नींव 1960 के दशक में रखी गई। मंदिर के निर्माण के लिए गोमती नदी का किनारा चुना गया। यह साल 1973 में बनकर तैयार हो गया। बताया जाता है कि इसके पहले पुजारी सत्यदास महाराज थे। आज जहां मंदिर है, इसे उस समय अलीगंज का पुल कहा जाता था। हनुमानजी के विग्रह के नीचे राम दरबार दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि आपने देखा होगा कि राम दरबार के सीने में हनुमानजी नीचे बैठे होते हैं। लेकिन, हनुमान सेतु मंदिर में इसके उलटा है। यहां भगवान राम ने अपने भाई समान भक्त को महत्व दिया है। हनुमानजी के विग्रह के नीचे राम दरबार है। शिव परिवार और राधा-कृष्ण की भी छोटी मूर्तियां हैं। मंदिर के नाम में ‘सेतु’ जुड़ने के पीछे की वजह जानिए वजह-1. मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, वहां लोहे का पुल था। पुल अंग्रेजों के दौर का था। उस पुल के पास ही मंदिर की स्थापना होने के कारण हनुमान सेतु नाम पड़ा। वजह-2. गोमती नदी पर पुल बनाया जा रहा था। बार-बार उसका स्ट्रक्चर गिर रहा था। तब बाबा नीम करौरी ने सुझाव दिया कि बजरंगबली का मंदिर बनवाया जाए। उन्हीं की कृपा से यह पुल ‘सेतु’ बन जाएगा, हुआ भी वैसा ही। हनुमान सेतु मंदिर से जुड़ी मान्यता जानिए जब स्ट्रक्चर बार-बार गिरने लगा
हनुमान सेतु मंदिर के मंदिर दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि 1960 के दशक में लखनऊ में गोमती नदी पर एक नया पुल बनाया जा रहा था। तकनीकी रूप से सबकुछ सही होने के बावजूद पुल का शुरुआती स्ट्रक्चर बार-बार गिर जाता था। हर बार निर्माण शुरू होता और कुछ ही दिनों में स्ट्रक्चर भरभराकर गिर जाते। इंजीनियर्स ने हर तरह से जांच-पड़ताल की, लेकिन कोई कमी नहीं मिली। इंजीनियर्स ने इन 3 पॉइंट्स की जांच भी की इन जांचों में किसी तरह की कोई कमी नहीं निकली। इसके बावजूद पुल के स्ट्रक्चर गिरने के वाकये से सरकारी इंजीनियरों की टीम हैरान थी। एक बुजुर्ग ने इंजीनियरों को बाबा के पास भेजा पुल न बन पाने पर एक बुजुर्ग ने इंजीनियरों को बाबा नीम करौरी के पास भेजा। उन्होंने कहा- गोमती किनारे एक साधु रहते हैं– बाबा नीम करौली। आप लोग उनसे मिलिए। वही समाधान बताएंगे। परेशान इंजीनियर बाबा नीम करौरी के पास पहुंचे। बाबा ने उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा- हनुमान जी यहां विराजमान हैं। उनकी अनुमति के बिना सेतु नहीं बन सकता। पहले हनुमानजी के लिए स्थान बनाइए, फिर उन्हीं की कृपा होगी तो पुल बन जाएगा। बाबा की बात मानी गई और पुल तैयार हो गया बाबा के निर्देश पर पुल से सटी जमीन पर हनुमानजी के मंदिर के निर्माण की योजना बनी। 1967 में नींव रखी गई और फिर 1973 में विशाल पश्चिममुखी हनुमानजी का विग्रह स्थापित किया गया। इसके बाद पुल का काम शुरू किया गया। अब पुल का एक भी स्ट्रक्चर नहीं गिरा। वही टेक्नीक, वही इंजीनियर, वही निर्माण सामग्री और पुल तैयार हो गया। बाबा नीम करौरी पहले से संकल्पित थे बाबा नीम करौरी अक्सर लखनऊ आते थे। लोग बताते हैं- बाबा कहते थे कि यहां गोमती किनारे हनुमानजी का दिव्य स्थान बनना चाहिए। यही स्थान एक दिन लखनऊ की पहचान बन जाएगा। इसके बाद उन्हीं के संकल्प से वह दिन भी आया, जब यहां मंदिर बन गया। उन्हीं की कृपा से एक पत्थर से बनी मूर्ति उपलब्ध हुई। स्वयं प्राण-प्रतिष्ठा की, आंखों पर हाथ फेरा बाबा नीम करौरी ने हनुमानजी की मूर्ति की स्वयं प्राण-प्रतिष्ठा की। कहा जाता है कि बाबा ने मूर्ति की आंखों में हाथ फेरा था। उसके बाद आंखों में जो चमक प्रकट हुई, वह आज भी बरकरार है। प्रतिष्ठा से पहले बाबा ने हनुमान चालीसा, नाम जप और यज्ञ कराया। प्रतिमा पश्चिमाभिमुख है, जो बाबा के विशेष निर्देश पर ही तय हुआ था। यह दुर्लभ दिशा है, जो विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का संकेत देती है। हनुमानजी की मूर्ति को मानते हैं बाबा का रूप बाबा के भक्त देश-दुनिया में फैले हुए हैं। वे जब भी लखनऊ आते हैं, तो हनुमान सेतु मंदिर में दर्शन जरूर करते हैं। यहां स्थित हनुमान जी की मूर्ति को बाबा का जागृत रूप माना जाता है। कई लोग नीम करौरी बाबा का हनुमान रूप मानकर पूजा करते हैं। स्टूडेंट्स और अस्वस्थ लोगों के सहारा मंदिर में दिन की शुरुआत मंगला आरती से होती है। हर मंगलवार और शनिवार को यहां लाखों भक्त पहुंचते हैं। विशेषकर परीक्षा देने वाले छात्र, रोगों से परेशान लोग और नौकरी की तलाश में जुटे युवा यहां विशेष रूप से दर्शन करने आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा भी है- ‘बल बुधि बिद्या देहु मोहि’… ‘नासै रोग हरै सब पीरा’। मंदिर को फूलों से सजाया गया है हनुमान जन्मोत्सव, दीपावली, राम नवमी, विजयादशमी और बड़े मंगल पर हनुमान सेतु मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं। मंदिर परिसर को फूलों, झालरों और दीपों से सजाया जाता है। इस बार भी ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल पर विशेष आयोजन और भंडारे के लिए मंदिर को सजाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए भंडारा और प्रसाद वितरण भी किया जाएगा। बजरंगबली के मंदिरों के नाम अमूमन बड़े हनुमान मंदिर, लेटे हनुमान मंदिर, पातालपुरी हनुमान मंदिर, संकटमोचन हनुमान मंदिर होते हैं। लेकिन, लखनऊ में बजरंगबली के मंदिर का नाम- ‘हनुमान सेतु मंदिर’ है। इसके पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है। लाेगाें के जेहन में आज भी सवाल आते हैं कि आखिर अतुलनीय बल के धाम, बिना सेतु के ही समुद्र लांघ जाने वाले भगवान बजरंगी के नाम के साथ आखिर सेतु क्यों लगा? इसका जवाब संत नीम करौरी महाराज से जुड़ा हुआ है। बाबा नीम करौरी का लखनऊ से अटूट नाता रहा है। उन्होंने जहां आज पुल है, वहीं गोमती नदी के किनारे कभी तप किया था। उन्हीं के प्रताप की वजह से जब ये मंदिर बना तो उसका नाम हनुमान सेतु पड़ा। आज जेष्ठ महीने का दूसरा बड़ा मंगल है, आइए पढ़िए हनुमान सेतु मंदिर के बनने की मान्यता- पहले हनुमान सेतु मंदिर की लोकेशन जानिए अब मंदिर के बनने की कहानी… गोमती नदी का किनारा चुना गया हनुमान सेतु मंदिर के मंदिर दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि बाबा नीम करौरी की प्रेरणा से हनुमान सेतु मंदिर की नींव 1960 के दशक में रखी गई। मंदिर के निर्माण के लिए गोमती नदी का किनारा चुना गया। यह साल 1973 में बनकर तैयार हो गया। बताया जाता है कि इसके पहले पुजारी सत्यदास महाराज थे। आज जहां मंदिर है, इसे उस समय अलीगंज का पुल कहा जाता था। हनुमानजी के विग्रह के नीचे राम दरबार दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि आपने देखा होगा कि राम दरबार के सीने में हनुमानजी नीचे बैठे होते हैं। लेकिन, हनुमान सेतु मंदिर में इसके उलटा है। यहां भगवान राम ने अपने भाई समान भक्त को महत्व दिया है। हनुमानजी के विग्रह के नीचे राम दरबार है। शिव परिवार और राधा-कृष्ण की भी छोटी मूर्तियां हैं। मंदिर के नाम में ‘सेतु’ जुड़ने के पीछे की वजह जानिए वजह-1. मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, वहां लोहे का पुल था। पुल अंग्रेजों के दौर का था। उस पुल के पास ही मंदिर की स्थापना होने के कारण हनुमान सेतु नाम पड़ा। वजह-2. गोमती नदी पर पुल बनाया जा रहा था। बार-बार उसका स्ट्रक्चर गिर रहा था। तब बाबा नीम करौरी ने सुझाव दिया कि बजरंगबली का मंदिर बनवाया जाए। उन्हीं की कृपा से यह पुल ‘सेतु’ बन जाएगा, हुआ भी वैसा ही। हनुमान सेतु मंदिर से जुड़ी मान्यता जानिए जब स्ट्रक्चर बार-बार गिरने लगा
हनुमान सेतु मंदिर के मंदिर दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि 1960 के दशक में लखनऊ में गोमती नदी पर एक नया पुल बनाया जा रहा था। तकनीकी रूप से सबकुछ सही होने के बावजूद पुल का शुरुआती स्ट्रक्चर बार-बार गिर जाता था। हर बार निर्माण शुरू होता और कुछ ही दिनों में स्ट्रक्चर भरभराकर गिर जाते। इंजीनियर्स ने हर तरह से जांच-पड़ताल की, लेकिन कोई कमी नहीं मिली। इंजीनियर्स ने इन 3 पॉइंट्स की जांच भी की इन जांचों में किसी तरह की कोई कमी नहीं निकली। इसके बावजूद पुल के स्ट्रक्चर गिरने के वाकये से सरकारी इंजीनियरों की टीम हैरान थी। एक बुजुर्ग ने इंजीनियरों को बाबा के पास भेजा पुल न बन पाने पर एक बुजुर्ग ने इंजीनियरों को बाबा नीम करौरी के पास भेजा। उन्होंने कहा- गोमती किनारे एक साधु रहते हैं– बाबा नीम करौली। आप लोग उनसे मिलिए। वही समाधान बताएंगे। परेशान इंजीनियर बाबा नीम करौरी के पास पहुंचे। बाबा ने उनकी बात ध्यान से सुनी और कहा- हनुमान जी यहां विराजमान हैं। उनकी अनुमति के बिना सेतु नहीं बन सकता। पहले हनुमानजी के लिए स्थान बनाइए, फिर उन्हीं की कृपा होगी तो पुल बन जाएगा। बाबा की बात मानी गई और पुल तैयार हो गया बाबा के निर्देश पर पुल से सटी जमीन पर हनुमानजी के मंदिर के निर्माण की योजना बनी। 1967 में नींव रखी गई और फिर 1973 में विशाल पश्चिममुखी हनुमानजी का विग्रह स्थापित किया गया। इसके बाद पुल का काम शुरू किया गया। अब पुल का एक भी स्ट्रक्चर नहीं गिरा। वही टेक्नीक, वही इंजीनियर, वही निर्माण सामग्री और पुल तैयार हो गया। बाबा नीम करौरी पहले से संकल्पित थे बाबा नीम करौरी अक्सर लखनऊ आते थे। लोग बताते हैं- बाबा कहते थे कि यहां गोमती किनारे हनुमानजी का दिव्य स्थान बनना चाहिए। यही स्थान एक दिन लखनऊ की पहचान बन जाएगा। इसके बाद उन्हीं के संकल्प से वह दिन भी आया, जब यहां मंदिर बन गया। उन्हीं की कृपा से एक पत्थर से बनी मूर्ति उपलब्ध हुई। स्वयं प्राण-प्रतिष्ठा की, आंखों पर हाथ फेरा बाबा नीम करौरी ने हनुमानजी की मूर्ति की स्वयं प्राण-प्रतिष्ठा की। कहा जाता है कि बाबा ने मूर्ति की आंखों में हाथ फेरा था। उसके बाद आंखों में जो चमक प्रकट हुई, वह आज भी बरकरार है। प्रतिष्ठा से पहले बाबा ने हनुमान चालीसा, नाम जप और यज्ञ कराया। प्रतिमा पश्चिमाभिमुख है, जो बाबा के विशेष निर्देश पर ही तय हुआ था। यह दुर्लभ दिशा है, जो विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा का संकेत देती है। हनुमानजी की मूर्ति को मानते हैं बाबा का रूप बाबा के भक्त देश-दुनिया में फैले हुए हैं। वे जब भी लखनऊ आते हैं, तो हनुमान सेतु मंदिर में दर्शन जरूर करते हैं। यहां स्थित हनुमान जी की मूर्ति को बाबा का जागृत रूप माना जाता है। कई लोग नीम करौरी बाबा का हनुमान रूप मानकर पूजा करते हैं। स्टूडेंट्स और अस्वस्थ लोगों के सहारा मंदिर में दिन की शुरुआत मंगला आरती से होती है। हर मंगलवार और शनिवार को यहां लाखों भक्त पहुंचते हैं। विशेषकर परीक्षा देने वाले छात्र, रोगों से परेशान लोग और नौकरी की तलाश में जुटे युवा यहां विशेष रूप से दर्शन करने आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा भी है- ‘बल बुधि बिद्या देहु मोहि’… ‘नासै रोग हरै सब पीरा’। मंदिर को फूलों से सजाया गया है हनुमान जन्मोत्सव, दीपावली, राम नवमी, विजयादशमी और बड़े मंगल पर हनुमान सेतु मंदिर में भव्य आयोजन होते हैं। मंदिर परिसर को फूलों, झालरों और दीपों से सजाया जाता है। इस बार भी ज्येष्ठ माह के बड़े मंगल पर विशेष आयोजन और भंडारे के लिए मंदिर को सजाया गया है। श्रद्धालुओं के लिए भंडारा और प्रसाद वितरण भी किया जाएगा। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
गोमती नदी पर पुल से पहले बनाया गया मंदिर:इंजीनियर्स का स्ट्रक्चर गिर जाता था, फिर बाबा नीम करौरी ने हनुमान सेतु बनाने को कहा
