सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के मुख्य आरोपी गोल्डी बराड़ का नया ऑडियो वायरल हुआ है। ये ऑडियो खालिस्तानी समर्थक हरदीप निज्जर के कत्ल मामले में गिरफ्तार करण बराड़ की गोल्डी बराड़ से नजदीकियां सामने आने के बाद सामने आया है। 15 मिनट 22 सेकेंड की इस ऑडियो में गोल्डी खुद को सिख पंथ का हिमायती जताने का प्रयास कर रहा है। हालांकि दैनिक भास्कर इस ऑडियो की पुष्टि नहीं करता, लेकिन इसमें बोलने वाला शख्स खुद को गोल्डी बराड़ बता रहा है। गोल्डी ने इस ऑडियो में सिद्धू मूसेवाला को सिख विरोधी बताने का प्रयास किया है। इसके साथ ही वे सिद्धू मूसेवाला व उसके पिता बलकौर सिंह को कांग्रेस का एजेंट बता रहा है। जबकि अपनी छवी को सुधारने के लिए खाडकू खालिस्तानी लहर का समर्थक और सिख धर्म का हिमायती बनने का भी गोल्डी ने प्रयास किया है। जांच एजेंसी को गोल्डी व लॉरेंस पर शक जिक्र योग्य है कि हरीप सिंह निज्जर के कत्ल मामले में कनाडाई एजेंसियों का दावा है कि इसमें गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ का हाथ है। अभी तक हुई 4 गिरफ्तारियों में एक करण बराड़ भी है, जिसकी गोल्डी बराड़ से काफी नजदीकियां हैं। दरअसल, जब वे कनाडा आया था तो गोल्डी बराड़ के पिता ने उसे संभालने की जिम्मेदारी निभाई थी। जानें क्या है ऑडियो में वायरल ऑडियो में गोल्डी ने कहा- सिद्धू की हत्या के बाद पंजाब के लोग सिद्धू के परिवार का खूब साथ दे रहे हैं। सिद्धू को शहीद कहकर सिख शहीदों के बेइज्जती न करें। हम भी आम लोग थे, आम लोगों की तरह जिंदगी जी रहे थे। मैं आम लोगों की तरह आम लोगों के बीच एक साधारण युवक होता था। मैंने भी कड़ी मेहनत से 40-40 घंटे तक ट्रक चलाया। कभी किसी का हक नहीं मारा। मेरे भाई की मौत 12 अक्टूबर 2020 को हो गई। उसकी मौत में सिद्धू का हाथ था। इसके बाद हमने गुनाह का रास्ता चुना। रवनीत सिद्धू मूसेवाला पंथक मानसिकता का मालिक है। सिख समुदाय को अच्छे पक्ष में रख रहा है, लेकिन उनके पिता लोगों को गुमराह कर रहे हैं और युवाओं का ध्यान भटका रहे हैं। सिखों का खून पीने वाली पार्टी कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं। कई लोग कह रहे हैं कि वह अपने बेटे की सोच के खिलाफ जा रहे हैं। सिद्धू का परिवार 1984 से कांग्रेस के समर्थन में गोल्डी ने कहा कि सिद्धू के पिता कई बार कह चुके हैं कि शुरू से हमने कांग्रेस को वोट डाले हैं। मतलब 1984 में भी इसका परिवार कांग्रेस का समर्थन कर रहा था। गोल्डी ने कहा, ‘सिद्धू मूसेवाला आने वाले समय में पंजाब के पूर्व CM बेअंत सिंह की तरह होने वाला था, जिन्होंने सिखों के साथ गलत किया था। रवनीत बिट्टू को बुलाकर मानसा में ऑफिस का उद्घाटन करवाया था।’ गोल्डी ने कहा कि आप इसे शहीद कैसे कह सकते हैं। इसकी मौत 29 मई 2022 को हुई थी, जबकि 5 जून को दिल्ली में इसका शो था। 5 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की सालगिरह है, जिसमें संत भिंडरावाले सहित 6 से 7 हजार निहत्थे लड़के-लड़कियां मारे गए। इन दिनों यदि किसी बच्चे का जन्मदिन होता है तो परिवार उसे अगले सप्ताह मनाता है। हमने मूसेवाला को इसलिए मारा क्योंकि हम उसे वह शो नहीं करने देना चाहते थे। फिर वह विश्व भ्रमण पर निकल जाता और कब आता, नहीं पता। हम किसी अच्छे व्यक्ति को नहीं मारते ऑडियो में गोल्डी कह रहा है कि हम पंजाब में रहे हैं तो पंजाब के विरुद्ध हम कभी नहीं जा सकते। जिंदगी में कभी किसी अच्छे व्यक्ति को हमने नहीं मारा और न ही कभी ऐसा करेंगे। अगर हमारे खिलाफ कोई भी व्यक्ति कोई गतिविधि करता है तो हम उसे छोड़ेंगे। गोल्डी ने कहा, ‘हम खालिस्तान के खिलाफ नहीं हैं। पंजाब के साथ हैं हम और हमेशा रहेंगे।’ सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड के मुख्य आरोपी गोल्डी बराड़ का नया ऑडियो वायरल हुआ है। ये ऑडियो खालिस्तानी समर्थक हरदीप निज्जर के कत्ल मामले में गिरफ्तार करण बराड़ की गोल्डी बराड़ से नजदीकियां सामने आने के बाद सामने आया है। 15 मिनट 22 सेकेंड की इस ऑडियो में गोल्डी खुद को सिख पंथ का हिमायती जताने का प्रयास कर रहा है। हालांकि दैनिक भास्कर इस ऑडियो की पुष्टि नहीं करता, लेकिन इसमें बोलने वाला शख्स खुद को गोल्डी बराड़ बता रहा है। गोल्डी ने इस ऑडियो में सिद्धू मूसेवाला को सिख विरोधी बताने का प्रयास किया है। इसके साथ ही वे सिद्धू मूसेवाला व उसके पिता बलकौर सिंह को कांग्रेस का एजेंट बता रहा है। जबकि अपनी छवी को सुधारने के लिए खाडकू खालिस्तानी लहर का समर्थक और सिख धर्म का हिमायती बनने का भी गोल्डी ने प्रयास किया है। जांच एजेंसी को गोल्डी व लॉरेंस पर शक जिक्र योग्य है कि हरीप सिंह निज्जर के कत्ल मामले में कनाडाई एजेंसियों का दावा है कि इसमें गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई और गोल्डी बराड़ का हाथ है। अभी तक हुई 4 गिरफ्तारियों में एक करण बराड़ भी है, जिसकी गोल्डी बराड़ से काफी 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डाले हैं। मतलब 1984 में भी इसका परिवार कांग्रेस का समर्थन कर रहा था। गोल्डी ने कहा, ‘सिद्धू मूसेवाला आने वाले समय में पंजाब के पूर्व CM बेअंत सिंह की तरह होने वाला था, जिन्होंने सिखों के साथ गलत किया था। रवनीत बिट्टू को बुलाकर मानसा में ऑफिस का उद्घाटन करवाया था।’ गोल्डी ने कहा कि आप इसे शहीद कैसे कह सकते हैं। इसकी मौत 29 मई 2022 को हुई थी, जबकि 5 जून को दिल्ली में इसका शो था। 5 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की सालगिरह है, जिसमें संत भिंडरावाले सहित 6 से 7 हजार निहत्थे लड़के-लड़कियां मारे गए। इन दिनों यदि किसी बच्चे का जन्मदिन होता है तो परिवार उसे अगले सप्ताह मनाता है। हमने मूसेवाला को इसलिए मारा क्योंकि हम उसे वह शो नहीं करने देना चाहते थे। फिर वह विश्व भ्रमण पर निकल जाता और कब आता, नहीं पता। हम किसी अच्छे व्यक्ति को नहीं मारते ऑडियो में गोल्डी कह रहा है कि हम पंजाब में रहे हैं तो पंजाब के विरुद्ध हम कभी नहीं जा सकते। जिंदगी में कभी किसी अच्छे व्यक्ति को हमने नहीं मारा और न ही कभी ऐसा करेंगे। अगर हमारे खिलाफ कोई भी व्यक्ति कोई गतिविधि करता है तो हम उसे छोड़ेंगे। गोल्डी ने कहा, ‘हम खालिस्तान के खिलाफ नहीं हैं। पंजाब के साथ हैं हम और हमेशा रहेंगे।’ पंजाब | दैनिक भास्कर
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पंजाब में शिअद के लिए SGPC चुनाव होंगे चुनौती:लगातार हार से पार्टी में बगावत; निशाने पर सुखबीर; बड़े बादल से अनुभव की कमी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) में बगावत ने पार्टी नेतृत्व को पूरी तरह उलझा दिया है। बागी गुट के नेता पार्टी की इस हालत के लिए प्रधान सुखबीर बादल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और उनके इस्तीफे की मांग पर अड़े हुए हैं। पार्टी में फूट का असर जालंधर पश्चिम विधानसभा उपचुनाव में भी साफ देखने को मिला। जहां शिअद के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को 1500 से भी कम वोट मिले और उसकी जमानत तक जब्त हो गई। वहीं, अगर यह बगावत जल्द नहीं थमी तो शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) चुनाव भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन जाएंगे। ऐसे में आइए समझते हैं कि पार्टी में बगावत क्यों पैदा हुई। 10 साल सत्ता में रहने के बाद लगातार हार शिरोमणि अकाली दल वो पार्टी है जो 2017 तक लगातार दो बार सरकार बनाने में सफल रही। हालांकि, साल 2015 में बेअदबी कांड और डेरा प्रमुख को माफ़ी देने का मामला हुआ। इससे लोगों की नाराज़गी बढ़ती चली गई। जिसका असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। पार्टी सिर्फ़ 15 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी दो सीटें जीतने में कामयाब रही। कार्यकर्ता भी पार्टी से दूर होने लगे और 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ़ 3 सीटें मिलीं। सभी बड़े नेता चुनाव हार गए। हालांकि, उस समय प्रकाश सिंह बादल ज़िंदा थे। ऐसे में उन्होंने झुंडा कमेटी बनाकर संगठनात्मक ढांचे को भंग कर दिया। हालांकि, सुखबीर बादल को प्रधान बनाए रखा। लोकसभा चुनाव में एक सीट तक सीमित 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी प्रमुख ने पंजाब बचाओ यात्रा निकाली। लोगों से जुड़ने की कोशिश की गई। साथ ही पार्टी को मजबूत किया गया। लेकिन इससे भी पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। पार्टी बठिंडा सीट को छोड़कर किसी भी सीट पर चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुई। यह सीट भी बादल परिवार की बहू हरसिमरत कौर ने जीती। इसके बाद जैसे ही चुनाव के लिए मंथन शुरू हुआ, उससे पहले ही पार्टी प्रमुख से इस्तीफा मांग लिया गया। इसके बाद बागी गुट श्री अकाली तख्त पहुंच गया। माफी के लिए अर्जी भी लगा दी। अब आइए जानते हैं एसजीपीसी चुनाव की चुनौतियां इस बार एसजीपीसी चुनाव में शिअद को किसी और से नहीं बल्कि अपने ही लोगों से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि अकाली दल के बागी गुट में शामिल हुए नेता ही अकाली दल की ताकत हैं। इन लोगों का अपना प्रभाव है। चाहे वो वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा हों, प्रो. प्रेम चंदूमाजरा हों, बीबी जागीर कौर हों या कोई और नाम। अमृतपाल और खालसा की तरफ झुकाव खडूर साहिब से अमृतपाल सिंह और फरीदकोट से सरबजीत सिंह खालसा ने चुनाव जीता है। वे शिरोमणि अकाली दल के थिंक टैंक की भी नींद उड़ा रहे हैं। माना जा रहा है कि वे इस बार एसजीपीसी चुनाव में अपने समर्थकों को भी उतारेंगे। सरबजीत सिंह खालसा ने कुछ दिन पहले दिल्ली में मीडिया से बातचीत में इस बात के संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था कि आने वाले दिनों में इस बारे में फैसला लिया जाएगा। दोनों का अपने इलाकों में अच्छा प्रभाव है। एसजीपीसी में बड़े नेताओं की दिलचस्पी बीजेपी और आप में शामिल कई सिख नेता भी एसजीपीसी चुनाव में काफी दिलचस्पी रखते हैं। ऐसे में अकाली दल के लिए सीधी चुनौती है। अगर पिछले ढाई दशक की बात करें तो कभी ऐसा मौका नहीं आया जब किसी ने पार्टी द्वारा नामित उम्मीदवार को चुनौती दी हो। लेकिन अगर वे चुनाव में कमजोर पड़ गए तो यह भी देखने को मिलेगा। अकालियों के पास जो ताकत है वह भी उनके हाथ से निकल जाएगी। बड़े बादल जैसे अनुभव की कमी भले ही पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के पास करीब 29 साल का राजनीतिक अनुभव है, लेकिन उनके पास अपने पिता स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल जैसा अनुभव नहीं है, जो नाराज लोगों को मनाने और दुश्मन को गले लगाने में माहिर थे। इसका फायदा अब विपक्ष उठा रहा है। हालांकि प्रकाश सिंह बादल के बाद तीन बार सरकार बनी। उस समय भी कई नेता पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे, लेकिन उन्होंने किसी को बगावत का मौका नहीं दिया।