केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में 40 साल बाद बड़ा प्रशासनिक बदलाव किया है। अब प्रशासन सलाहकार का पद खत्म कर दिया गया है। इसके साथ ही मुख्य सचिव का पद सृजित किया गया है। वहीं चंडीगढ़ में दो आईएएस अधिकारियों के पद बढ़ाए गए हैं। अब अधिकारियों की संख्या 11 हो गई है। हालांकि इस मामले में राजनीति गरमा गई है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल ने इस पर आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि यह फैसला पंजाब के अधिकारों पर डाका डालने जैसा है। इस बात को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। चंडीगढ़ बनने के बाद यहां चीफ कमिश्नर का पद हुआ करता था। लेकिन 3 जून 1984 को इस बात को बदल दिया गया। इसके साथ ही चीफ कमिश्नर का पद खत्म कर प्रशासन सलाहकार का पद सृजित किया गया। जबकि अब इस पद को खत्म कर चीफ सेक्रेटरी बना दिया गया है। वहीं जानकारों की मानें तो इस बदलाव से चंडीगढ़ का प्रशासनिक ढांचा मजबूत होगा। चंडीगढ़ में जो भी अधिकारी सलाहकार के पद पर आएगा। वे मुख्य सचिव के पद पर हैं। लेकिन यहां उन्हें सलाहकार कहा जाता है। इसलिए इस पद की मांग लंबे समय से की जा रही थी। चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने की कोशिश शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने कहा कि चंडीगढ़ के एडवाइजर के पद को खत्म करने की निंदा करता हूं। यह चंडीगढ़ पर पंजाब के उचित दावे को और कमजोर करने के लिए यह भारत सरकार का एक और भेदभावपूर्ण कदम है। मैं केंद्र से आग्रह करता हूँ कि वह देश की ताकत और अन्न भंडार को कमज़ोर न करे क्योंकि इसके दीर्घकालिक परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। चंडीगढ़ और पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को हस्तांतरित करना और नदी के पानी पर हमारे तटीय अधिकार प्रदान करना आदि पंजाब के 1966 के पुनर्गठन का एकमात्र अधूरा एजेंडा है। मैं पंजाब के लोगों को पंजाब के मुख्यमंत्री की पंजाब विरोधी निर्णयों पर केंद्र के साथ मिलीभगत के खिलाफ भी आगाह करता हू। चंडीगढ़ पर पहला हक पंजाब का है AAP के सीनियर नेता व प्रवक्ता नील गर्ग ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी करके सलाहकार का एक पद खत्म करके चीफ सेक्रेटरी पद बनाया गया है। यह पंजाब सरकार को बर्दाश्त नहीं है। क्योंकि चंडीगढ़ के प्रशासनिक सिस्टम में तब्दीली करना, पंजाब के हकों पर डाका मारने जैसा है। 40 साल पुराने सिस्टम में तब्दीली करके केंद्र ने चंडीगढ़ से पंजाब के हक को कमजोर किया है। इसे पंजाब कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता है। क्योंकि चंडीगढ़ पर सबसे पहला अधिकार पंजाब का है। इसलिए केंद्र सरकार से अपील करता हूं चंडीगढ़ में इस तरह कदम उठाने से पहले पंजाब सरकार से बातचीत व सलाह करनी चाहिए थी। गुपचुप तरीके से पंजाब के अधिकारों किया हनन SAD नेता अर्शदीप सिंह कलेर ने कहा केंद्र ने पंजाब के चुप तरीके से पंजाब के हकों को मारने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव तो राज्यों के होते हैं। चंडीगढ़ को लेकर तो कोई सवाल नहीं है। इस पर तो देश की सांसद व हरियाणा की विधानसभा ने भी मोहर लगाई है कि यह पंजाब का है। फिर केंद्र सरकार क्यों इसे अलग राज्य का दर्जा देने की कोशिश कर रही है। दूसरा सवाल मेरा पंजाब के CM भगवंत मान से भी है। वह राज्य के गृहमंत्री भी हैं। ऐसे में इतना बड़ा फैसला केंद्र सरकार पंजाब सरकार को बताए बिना तो ले नहीं सकती है। क्या इस बारे में पंजाब सरकार को जानकारी थी। जानकारी थी तो यह इतनी बड़ी बात पंजाब सरकार ने पंजाबियों से क्यों छुपाई। क्यों लगातार केंद्र के साथ मिलकर पंजाब के हकों में डाका मारा जा रहा है। कभी ्देश के गृहमंत्री से मुलाकात होती है और BSF राज्य के 40 किलोमीटर तक अंदर आ जाती है। सिटको, बीबीएमबी में हमारी अगुवाई खत्म की गई। पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट को खत्म किया जा रहा है। यह बहुत बड़े सवाल हैं। केंद्र सरकार से अपील की है कि पंजाब के हकों पर डाका न मार जाए। केंद्र पंजाब के दावे को कमजोर कर रहा है शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार न पंजाब के अपनी राजधानी पर दावे को कमजोर कर रही है। चंडीगढ़ पंजाब के गांवों की जमीन पर बना है। भारत की संसद ने पहले ही चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को मान्यता दे दी है। जबकि पंजाब की राजधानी को एक स्थायी यूटी में बदलने का मन बना लिया है। इससे पहले इसने यूटी चंडीगढ़ के लिए एक अलग कैडर बनाया था, जिससे पंजाब और हरियाणा का दावा कमजोर हो गया था, जो 60:40 के अनुपात में अधिकारियों को तैनात करते थे।पंजाबियों को इस बात से झटका लगा है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान इस कदम पर चुप हैं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने के लिए बीजेपी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। पंजाब और पंजाबी अपने हितों के साथ इस तरह के विश्वासघात को कभी माफ नहीं करेंगे। अब इस तरह रहेगा यूटी प्रशासन का स्ट्रक्चर चीफ सेक्रेटरी – 1 सेक्रेटरी ( होम) 1 सचिव ( फाइनेंस) 1सेक्रेटरी अर्बन प्लानिंग एंड समार्ट सिटी -1 डिप्टी कमिश्नर -1 ज्वाइंट सेक्रेटरी फाइनेंस 1 एक्साइज कमिश्नर 1 सेक्रेटरी (दो पद) एडिशनल सेक्रेटरी एडिशनल डिप्टी कमिश्नर प्रशासक को रिपोर्ट करेंगे चंडीगढ़ में मुख्य सचिव की नियुक्ति के बाद कोई बड़ा फेरबदल नहीं होगा। प्रशासनिक अधिकारियों की मानें तो मुख्य सचिव का पद अन्य राज्यों के मुख्य सचिव के पद जैसा ही होगा। चंडीगढ़ में सलाहकार के पद पर एजीयूएमटी कैडर के वरिष्ठ आईएएस की नियुक्ति होती है। इसे मुख्य सचिव के पद के बराबर माना जाता है। जबकि, अन्य राज्यों में मुख्य सचिव मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इसी तरह मुख्य सचिव सीधे प्रशासक के अधीन रहेंगे और उन्हें रिपोर्ट करेंगे। हालांकि, इस फैसले से यूटी कैडर का दबदबा बढ़ना तय है। क्योंकि अब पदों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ में 40 साल बाद बड़ा प्रशासनिक बदलाव किया है। अब प्रशासन सलाहकार का पद खत्म कर दिया गया है। इसके साथ ही मुख्य सचिव का पद सृजित किया गया है। वहीं चंडीगढ़ में दो आईएएस अधिकारियों के पद बढ़ाए गए हैं। अब अधिकारियों की संख्या 11 हो गई है। हालांकि इस मामले में राजनीति गरमा गई है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल ने इस पर आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि यह फैसला पंजाब के अधिकारों पर डाका डालने जैसा है। इस बात को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। चंडीगढ़ बनने के बाद यहां चीफ कमिश्नर का पद हुआ करता था। लेकिन 3 जून 1984 को इस बात को बदल दिया गया। इसके साथ ही चीफ कमिश्नर का पद खत्म कर प्रशासन सलाहकार का पद सृजित किया गया। जबकि अब इस पद को खत्म कर चीफ सेक्रेटरी बना दिया गया है। वहीं जानकारों की मानें तो इस बदलाव से चंडीगढ़ का प्रशासनिक ढांचा मजबूत होगा। चंडीगढ़ में जो भी अधिकारी सलाहकार के पद पर आएगा। वे मुख्य सचिव के पद पर हैं। लेकिन यहां उन्हें सलाहकार कहा जाता है। इसलिए इस पद की मांग लंबे समय से की जा रही थी। चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने की कोशिश शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने कहा कि चंडीगढ़ के एडवाइजर के पद को खत्म करने की निंदा करता हूं। यह चंडीगढ़ पर पंजाब के उचित दावे को और कमजोर करने के लिए यह भारत सरकार का एक और भेदभावपूर्ण कदम है। मैं केंद्र से आग्रह करता हूँ कि वह देश की ताकत और अन्न भंडार को कमज़ोर न करे क्योंकि इसके दीर्घकालिक परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं। चंडीगढ़ और पंजाबी भाषी क्षेत्रों को पंजाब को हस्तांतरित करना और नदी के पानी पर हमारे तटीय अधिकार प्रदान करना आदि पंजाब के 1966 के पुनर्गठन का एकमात्र अधूरा एजेंडा है। मैं पंजाब के लोगों को पंजाब के मुख्यमंत्री की पंजाब विरोधी निर्णयों पर केंद्र के साथ मिलीभगत के खिलाफ भी आगाह करता हू। चंडीगढ़ पर पहला हक पंजाब का है AAP के सीनियर नेता व प्रवक्ता नील गर्ग ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा एक नोटिफिकेशन जारी करके सलाहकार का एक पद खत्म करके चीफ सेक्रेटरी पद बनाया गया है। यह पंजाब सरकार को बर्दाश्त नहीं है। क्योंकि चंडीगढ़ के प्रशासनिक सिस्टम में तब्दीली करना, पंजाब के हकों पर डाका मारने जैसा है। 40 साल पुराने सिस्टम में तब्दीली करके केंद्र ने चंडीगढ़ से पंजाब के हक को कमजोर किया है। इसे पंजाब कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता है। क्योंकि चंडीगढ़ पर सबसे पहला अधिकार पंजाब का है। इसलिए केंद्र सरकार से अपील करता हूं चंडीगढ़ में इस तरह कदम उठाने से पहले पंजाब सरकार से बातचीत व सलाह करनी चाहिए थी। गुपचुप तरीके से पंजाब के अधिकारों किया हनन SAD नेता अर्शदीप सिंह कलेर ने कहा केंद्र ने पंजाब के चुप तरीके से पंजाब के हकों को मारने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि मुख्य सचिव तो राज्यों के होते हैं। चंडीगढ़ को लेकर तो कोई सवाल नहीं है। इस पर तो देश की सांसद व हरियाणा की विधानसभा ने भी मोहर लगाई है कि यह पंजाब का है। फिर केंद्र सरकार क्यों इसे अलग राज्य का दर्जा देने की कोशिश कर रही है। दूसरा सवाल मेरा पंजाब के CM भगवंत मान से भी है। वह राज्य के गृहमंत्री भी हैं। ऐसे में इतना बड़ा फैसला केंद्र सरकार पंजाब सरकार को बताए बिना तो ले नहीं सकती है। क्या इस बारे में पंजाब सरकार को जानकारी थी। जानकारी थी तो यह इतनी बड़ी बात पंजाब सरकार ने पंजाबियों से क्यों छुपाई। क्यों लगातार केंद्र के साथ मिलकर पंजाब के हकों में डाका मारा जा रहा है। कभी ्देश के गृहमंत्री से मुलाकात होती है और BSF राज्य के 40 किलोमीटर तक अंदर आ जाती है। सिटको, बीबीएमबी में हमारी अगुवाई खत्म की गई। पंजाब यूनिवर्सिटी की सीनेट को खत्म किया जा रहा है। यह बहुत बड़े सवाल हैं। केंद्र सरकार से अपील की है कि पंजाब के हकों पर डाका न मार जाए। केंद्र पंजाब के दावे को कमजोर कर रहा है शिरोमणि अकाली दल के नेता बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा कि स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार न पंजाब के अपनी राजधानी पर दावे को कमजोर कर रही है। चंडीगढ़ पंजाब के गांवों की जमीन पर बना है। भारत की संसद ने पहले ही चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को मान्यता दे दी है। जबकि पंजाब की राजधानी को एक स्थायी यूटी में बदलने का मन बना लिया है। इससे पहले इसने यूटी चंडीगढ़ के लिए एक अलग कैडर बनाया था, जिससे पंजाब और हरियाणा का दावा कमजोर हो गया था, जो 60:40 के अनुपात में अधिकारियों को तैनात करते थे।पंजाबियों को इस बात से झटका लगा है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान इस कदम पर चुप हैं, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने के लिए बीजेपी के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। पंजाब और पंजाबी अपने हितों के साथ इस तरह के विश्वासघात को कभी माफ नहीं करेंगे। अब इस तरह रहेगा यूटी प्रशासन का स्ट्रक्चर चीफ सेक्रेटरी – 1 सेक्रेटरी ( होम) 1 सचिव ( फाइनेंस) 1सेक्रेटरी अर्बन प्लानिंग एंड समार्ट सिटी -1 डिप्टी कमिश्नर -1 ज्वाइंट सेक्रेटरी फाइनेंस 1 एक्साइज कमिश्नर 1 सेक्रेटरी (दो पद) एडिशनल सेक्रेटरी एडिशनल डिप्टी कमिश्नर प्रशासक को रिपोर्ट करेंगे चंडीगढ़ में मुख्य सचिव की नियुक्ति के बाद कोई बड़ा फेरबदल नहीं होगा। प्रशासनिक अधिकारियों की मानें तो मुख्य सचिव का पद अन्य राज्यों के मुख्य सचिव के पद जैसा ही होगा। चंडीगढ़ में सलाहकार के पद पर एजीयूएमटी कैडर के वरिष्ठ आईएएस की नियुक्ति होती है। इसे मुख्य सचिव के पद के बराबर माना जाता है। जबकि, अन्य राज्यों में मुख्य सचिव मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। इसी तरह मुख्य सचिव सीधे प्रशासक के अधीन रहेंगे और उन्हें रिपोर्ट करेंगे। हालांकि, इस फैसले से यूटी कैडर का दबदबा बढ़ना तय है। क्योंकि अब पदों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है। पंजाब | दैनिक भास्कर
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