पेरिस पैरा ओलिंपिक बैडमिंटन एकल प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल लेकर भारत का नाम रोशन करने वाले हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव नांधा निवासी नीतेश लुहाच को आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया। नीतेश फूटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे। लेकिन करीब 15 साल की आयु में विशाखापट्टनम में रेल की चपेट में आने से उन्होंने अपना बाया पैर गंवा दिया। जिसके कुछ समय बाद उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया जिसमें महारत हासिल कर पैरा ओलिंपिक में गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। उनकी इस उपलब्धि पर आज उन्हें खेल जगत के दूसरे बड़े सम्मान अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 8 साल तक गांव में रहे
नीतेश के पिता इंडियन नेवी से रिटायर्ड है और जयपुर में रहते हैं। नीतेश प्रारंभिक आठ साल तक गांव में ही अपने ताऊ गुणपाल के पास रहे उसके बाद पिता की पोस्टिंग के अनुसार अलग-अलग शहरों में जाना पड़ा। रेल के नीचे कटा पैर
नीतेश के चाचा सत्येंद्र व ताऊ गुणपाल ने नीतेश के दिव्यांग होने की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि नीतेश जब करीब 15 साल के थे, उस दौरान उनके पिता बिजेंद्र सिंह की विशाखापट्टनम में पोस्टिंग थी। वे फुटबॉल खेलते थे और एक रोज शाम को फुटबॉल खेलने के लिए गए हुए थे। उस दिन उनके एक दोस्त का जन्मदिन था, जिसके पिता रेलवे में नौकरी करते थे। नीतेश रेलवे यार्ड के पास उनके क्वार्टर पर गया था और वापिस आते समय रेलवे यार्ड में रेल खड़ी थी और वह रेल के नीचे से पटरी पार कर रहा था। उस दौरान रेल चल पड़ी जिससे वह चपेट में आ गया और उसका पैर जांघ के समीप से अलग हो गया। फुटबॉल छोड़ अपनाया बैडमिंटन
उसके बाद उसे रिकवर होने के लिए बेड रेस्ट लिया और बाद में पैर गंवाने के साथ ही फूटबॉल भी छुट गया। बाद में नीतेश ने टाइम पास करने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया था, लेकिन बाद में उसकी प्रतिभा को कॉलेज में कोच ने पहचाना और उसे निखारने का काम किया। जिसके बाद से वह आगे बढ़ता चला गया और पेरिस पैरा ओलिंपिक में करीब 30 वर्षीय इस खिलाड़ी ने गोल्ड जीतकर साबित कर दिया है कि बिना पैर के भी ये दुनिया नापी जा सकती है। बीजिंग पैरा ओलिंपिक में जीता था सिल्वर
नीतेश ने बीजिंग पैरा ओलिंपिक में भी कमाल का प्रदर्शन किया था और उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया था। लेकिन उसकी तमन्ना देश के लिए गोल्ड जितने की थी। जिसके चलते उसने और अधिक कड़ी मेहनत की और जो सपना बीजिंग में अधूरा रह गया था उसे पेरिस में पूरा करके दिखाया । नीतेश को अर्जुन अवॉर्ड मिलने से गांव में खुशी का माहौल है। ग्रामीण गुणपाल, अजीत आदि का कहना है कि नीतेश ने युवाओं, खिलाड़ियों व दिव्यांगों के लिए एक मिसाल पेश की है और वे उनके लिए एक प्रेरणा का काम करेंगे। पेरिस पैरा ओलिंपिक बैडमिंटन एकल प्रतिस्पर्धा में गोल्ड मेडल लेकर भारत का नाम रोशन करने वाले हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव नांधा निवासी नीतेश लुहाच को आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया। नीतेश फूटबॉल के अच्छे खिलाड़ी थे। लेकिन करीब 15 साल की आयु में विशाखापट्टनम में रेल की चपेट में आने से उन्होंने अपना बाया पैर गंवा दिया। जिसके कुछ समय बाद उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया जिसमें महारत हासिल कर पैरा ओलिंपिक में गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। उनकी इस उपलब्धि पर आज उन्हें खेल जगत के दूसरे बड़े सम्मान अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 8 साल तक गांव में रहे
नीतेश के पिता इंडियन नेवी से रिटायर्ड है और जयपुर में रहते हैं। नीतेश प्रारंभिक आठ साल तक गांव में ही अपने ताऊ गुणपाल के पास रहे उसके बाद पिता की पोस्टिंग के अनुसार अलग-अलग शहरों में जाना पड़ा। रेल के नीचे कटा पैर
नीतेश के चाचा सत्येंद्र व ताऊ गुणपाल ने नीतेश के दिव्यांग होने की घटना का जिक्र करते हुए बताया कि नीतेश जब करीब 15 साल के थे, उस दौरान उनके पिता बिजेंद्र सिंह की विशाखापट्टनम में पोस्टिंग थी। वे फुटबॉल खेलते थे और एक रोज शाम को फुटबॉल खेलने के लिए गए हुए थे। उस दिन उनके एक दोस्त का जन्मदिन था, जिसके पिता रेलवे में नौकरी करते थे। नीतेश रेलवे यार्ड के पास उनके क्वार्टर पर गया था और वापिस आते समय रेलवे यार्ड में रेल खड़ी थी और वह रेल के नीचे से पटरी पार कर रहा था। उस दौरान रेल चल पड़ी जिससे वह चपेट में आ गया और उसका पैर जांघ के समीप से अलग हो गया। फुटबॉल छोड़ अपनाया बैडमिंटन
उसके बाद उसे रिकवर होने के लिए बेड रेस्ट लिया और बाद में पैर गंवाने के साथ ही फूटबॉल भी छुट गया। बाद में नीतेश ने टाइम पास करने के लिए बैडमिंटन खेलना शुरू किया था, लेकिन बाद में उसकी प्रतिभा को कॉलेज में कोच ने पहचाना और उसे निखारने का काम किया। जिसके बाद से वह आगे बढ़ता चला गया और पेरिस पैरा ओलिंपिक में करीब 30 वर्षीय इस खिलाड़ी ने गोल्ड जीतकर साबित कर दिया है कि बिना पैर के भी ये दुनिया नापी जा सकती है। बीजिंग पैरा ओलिंपिक में जीता था सिल्वर
नीतेश ने बीजिंग पैरा ओलिंपिक में भी कमाल का प्रदर्शन किया था और उन्होंने सिल्वर मेडल हासिल किया था। लेकिन उसकी तमन्ना देश के लिए गोल्ड जितने की थी। जिसके चलते उसने और अधिक कड़ी मेहनत की और जो सपना बीजिंग में अधूरा रह गया था उसे पेरिस में पूरा करके दिखाया । नीतेश को अर्जुन अवॉर्ड मिलने से गांव में खुशी का माहौल है। ग्रामीण गुणपाल, अजीत आदि का कहना है कि नीतेश ने युवाओं, खिलाड़ियों व दिव्यांगों के लिए एक मिसाल पेश की है और वे उनके लिए एक प्रेरणा का काम करेंगे। हरियाणा | दैनिक भास्कर