चुनाव के लिए अगड़ों पर ही भाजपा का भरोसा:यूपी में 70 में से 39 जिलाध्यक्ष सामान्य वर्ग से, ताकि वोट बैंक में न लगे सेंध

चुनाव के लिए अगड़ों पर ही भाजपा का भरोसा:यूपी में 70 में से 39 जिलाध्यक्ष सामान्य वर्ग से, ताकि वोट बैंक में न लगे सेंध

पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 के लिए भाजपा ने 98 में से 70 जिलों में अपने ‘सेनापति’ मैदान में उतार दिए हैं। काफी समय से अटकी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भाजपा ने पहले चरण में अगड़ों पर ज्यादा भरोसा जताया है। भाजपा ने 2023 में 98 में से चार महिला और चार एससी वर्ग के जिलाध्यक्ष बनाए थे। आने वाले चुनावों में महिला और एससी वर्ग को साधने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने एससी और महिलाओं की संख्या 20 फीसदी तक करने का सुझाव दिया था। काफी मशक्कत के बाद भी प्रदेश चुनाव अधिकारी महेंद्रनाथ पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह, सुझाव पर पूरी तरह अमल नहीं कर सके। हालांकि, पहले चरण में ही महिलाओं की संख्या चार से बढ़कर पांच और एससी की संख्या चार से बढ़कर छह जरूर की गई है। भाजपा ने एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं बनाया सामान्य वर्ग में 20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 3 कायस्थ, 2 भूमिहार, 4 वैश्य और 1 पंजाबी अध्यक्ष शामिल हैं। ओबीसी के 25 जिलाध्यक्ष हैं, जिनमें यादव, बढ़ई, कश्यप, कुशवाहा, पाल, राजभर, रस्तोगी, सैनी के 1-1 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। जबकि 5 कुर्मी, 2 मौर्य, 4 पिछड़ा वैश्य, 2 लोध समाज के नेता शामिल हैं। अनुसूचित वर्ग से कुल 6 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। इनमें एक-एक धोबी, कठेरिया, कोरी और पासी वर्ग से 3 जिलाध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। भाजपा ने 70 में से एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं बनाया है। चुनावों के लिए सटीक जातीय समीकरण राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा ने ढाई महीने की मशक्कत के बाद पंचायत चुनाव से विधानसभा चुनाव तक के लिए सटीक सियासी समीकरण बैठाया है। भाजपा ने अगड़ी जातियों को तवज्जो देकर यह पक्का किया है कि सपा किसी भी स्थिति में उनके सवर्ण वोट बैंक में सेंध न लगा सके। वहीं, पिछड़ी जातियों में भी कुर्मी, लोधी, सैनी, मौर्य, कुशवाह, यादव, राजभर, निषाद सहित सभी प्रमुख जातियों को मौका दिया है। दलितों की संख्या बढ़ाकर सपा के पीडीए में पिछड़ा और दलित को साधने की कोशिश की है। साथ ही एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष ना बनाकर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश भी है। कांटों का ताज है जिलाध्यक्ष की कुर्सी राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय मानते हैं नए जिलाध्यक्षों के लिए यह कुर्सी शोहरत और सत्ता की बुलंदी नहीं बल्कि कांटों भरा ताज है। उनका कहना है कि नए जिलाध्यक्षों के सामने डबल चुनौती है। उन्हें पंचायत चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने के लिए स्थानीय स्तर पर संतुलन बैठाना है। साथ ही विधानसभा चुनाव की तैयारी भी करनी है। ‘अगड़े और पिछड़े हमारे हैं’ का दिया संदेश वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं कि जिलाध्यक्ष पद को लेकर काफी खींचतान बनी हुई थी। सत्तारुढ़ दल होने के कारण हर कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष बनना चाहता है। इसलिए जिलाध्यक्ष चुनने में काफी कठिनाई हुई। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जातीय समीकरण बैठाने की कोशिश की है। पार्टी ने साफ संदेश दिया है कि पिछड़े और दलितों के साथ अगड़ी जातियां उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। मशक्कत का असर नहीं दिखा वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्‌ट का मानना है कि भाजपा के जिलाध्यक्षों की सूची जारी करने में जितनी देर हुई, उतनी सटीक सूची नहीं जारी हुई। भाजपा के वरिष्ठ नेता संगठन में जातीय प्रतिनिधित्व देने में सफल नहीं हुए। बड़ी संख्या में जिलाध्यक्ष रिपीट हुए हैं। पिछड़े और दलितों की संख्या भी ज्यादा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्‌ट का कहना है नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित होने के बाद भी 70 में से मात्र 5 महिलाएं हैं। लिस्ट में महिला और एससी कोटा एक साथ पूरा करने की राजनीतिक कलाबाजी भी दिखाई गई है। ऐसा लंबे समय बाद हुआ है जब जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में विधायक, सांसद और मंत्री हावी रहे हैं। इसलिए महत्वपूर्ण है जिलाध्यक्ष का पद राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं भाजपा अब पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू करेगी। चुनावी साल में नवनियुक्त अध्यक्ष ही जिले में सरकार और संगठन का सबसे ताकतवर चेहरा होते हैं। ब्लॉक प्रमुख, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशी चयन में उनकी भूमिका अहम है। विधानसभा चुनाव में भी दावेदारों के पैनल में नाम शामिल करना उनका ही अधिकार है। महिलाओं की संख्या नहीं बढ़ने की ये है वजह भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, जिलाध्यक्ष पद पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए काफी मशक्कत की गई। लेकिन पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव में जिलाध्यक्ष को काफी दौरे और बैठकें करनी होंगी। संगठन को अधिक समय देना होगा। कई बार देर रात तक बैठक और प्रवास भी करने पड़ते हैं। पार्टी का मानना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए देर रात तक राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए घर से बाहर रहना आसान नहीं होता है। इसी कारण महिलाओं की संख्या ज्यादा नहीं रखी गई। संगठन पर भारी पड़ी सरकार रायबरेली में संगठन पर सरकार भारी पड़ा। रायबरेली के पांच पूर्व भाजपा जिलाध्यक्षों ने प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखकर मौजूदा जिलाध्यक्ष बुद्धिलाल पासी को हटाने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि बुद्धिलाल पासी प्रदेश सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के इशारे पर ही काम करते हैं। इससे वहां संगठन समाप्त हो रहा है। पांच पूर्व जिलाध्यक्षों का विरोध काम नहीं आया। मंत्री दिनेश प्रताप के करीबी बुद्धिलाल को ही आयु सीमा में छूट देते हुए जिलाध्यक्ष बनाया गया है। मंत्री और सांसद-विधायकों की ज्यादा चली जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में प्रदेश सरकार के मंत्रियों और विधायकों की पैरवी काम आई है। मऊ में भाजपा नेता मौजूदा जिलाध्यक्ष नुपूर अग्रवाल को रिपीट करने के पक्ष में थे। लेकिन कारागार मंत्री दारा सिंह चौहान सहित स्थानीय विधायकों के विरोध के चलते रामाश्रय मौर्या को जिलाध्यक्ष बनाया गया। शाहजहांपुर में जिलाध्यक्ष नियुक्ति में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर की पैरवी काम आई। सूत्रों के मुताबिक, राज्यसभा सदस्य और एक प्रदेश महामंत्री के दबाव में बाराबंकी और अंबेडकर नगर में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति रोकी गई। अब प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ तेज भाजपा के 70 जिलाध्यक्ष नियुक्त होने के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव भी मार्च में ही होना है। आगामी दिनों में प्रदेश अध्यक्ष चुनाव पर्यवेक्षक पीयूष गोयल लखनऊ आएंगे। प्रांतीय परिषद के सदस्यों की मौजूदगी में प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल कराया जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पिछड़े, दलित और ब्राह्मण नेता दावेदार हैं। आखिर में एक नजर 70 जिलाध्यक्षों की लिस्ट पर… ———————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी BJP में 70 नए जिलाध्यक्षों में 39 सवर्ण:20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर; 44 नए चेहरे, सिर्फ 5 महिलाएं; 28 जिलों में चुनाव टालना पड़ा यूपी भाजपा ने ढाई महीने की मशक्कत के बाद आखिरकार रविवार को 70 जिलों में जिलाध्यक्ष की घोषणा कर दी। 28 जिलों में विरोध, गुटबाजी और नेताओं के दबाव के चलते ऐन वक्त पर चुनाव टाल दिया गया। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, प्रदेश चुनाव प्रभारी महेंद्रनाथ पांडेय के संसदीय क्षेत्र चंदौली और डिप्टी सीएम केशव मौर्य के गृह जनपद कौशांबी में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी। पढ़ें पूरी खबर पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 के लिए भाजपा ने 98 में से 70 जिलों में अपने ‘सेनापति’ मैदान में उतार दिए हैं। काफी समय से अटकी जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भाजपा ने पहले चरण में अगड़ों पर ज्यादा भरोसा जताया है। भाजपा ने 2023 में 98 में से चार महिला और चार एससी वर्ग के जिलाध्यक्ष बनाए थे। आने वाले चुनावों में महिला और एससी वर्ग को साधने के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने एससी और महिलाओं की संख्या 20 फीसदी तक करने का सुझाव दिया था। काफी मशक्कत के बाद भी प्रदेश चुनाव अधिकारी महेंद्रनाथ पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह, सुझाव पर पूरी तरह अमल नहीं कर सके। हालांकि, पहले चरण में ही महिलाओं की संख्या चार से बढ़कर पांच और एससी की संख्या चार से बढ़कर छह जरूर की गई है। भाजपा ने एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं बनाया सामान्य वर्ग में 20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर, 3 कायस्थ, 2 भूमिहार, 4 वैश्य और 1 पंजाबी अध्यक्ष शामिल हैं। ओबीसी के 25 जिलाध्यक्ष हैं, जिनमें यादव, बढ़ई, कश्यप, कुशवाहा, पाल, राजभर, रस्तोगी, सैनी के 1-1 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। जबकि 5 कुर्मी, 2 मौर्य, 4 पिछड़ा वैश्य, 2 लोध समाज के नेता शामिल हैं। अनुसूचित वर्ग से कुल 6 जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। इनमें एक-एक धोबी, कठेरिया, कोरी और पासी वर्ग से 3 जिलाध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। भाजपा ने 70 में से एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष नहीं बनाया है। चुनावों के लिए सटीक जातीय समीकरण राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा ने ढाई महीने की मशक्कत के बाद पंचायत चुनाव से विधानसभा चुनाव तक के लिए सटीक सियासी समीकरण बैठाया है। भाजपा ने अगड़ी जातियों को तवज्जो देकर यह पक्का किया है कि सपा किसी भी स्थिति में उनके सवर्ण वोट बैंक में सेंध न लगा सके। वहीं, पिछड़ी जातियों में भी कुर्मी, लोधी, सैनी, मौर्य, कुशवाह, यादव, राजभर, निषाद सहित सभी प्रमुख जातियों को मौका दिया है। दलितों की संख्या बढ़ाकर सपा के पीडीए में पिछड़ा और दलित को साधने की कोशिश की है। साथ ही एक भी मुस्लिम जिलाध्यक्ष ना बनाकर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश भी है। कांटों का ताज है जिलाध्यक्ष की कुर्सी राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय मानते हैं नए जिलाध्यक्षों के लिए यह कुर्सी शोहरत और सत्ता की बुलंदी नहीं बल्कि कांटों भरा ताज है। उनका कहना है कि नए जिलाध्यक्षों के सामने डबल चुनौती है। उन्हें पंचायत चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने के लिए स्थानीय स्तर पर संतुलन बैठाना है। साथ ही विधानसभा चुनाव की तैयारी भी करनी है। ‘अगड़े और पिछड़े हमारे हैं’ का दिया संदेश वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं कि जिलाध्यक्ष पद को लेकर काफी खींचतान बनी हुई थी। सत्तारुढ़ दल होने के कारण हर कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष बनना चाहता है। इसलिए जिलाध्यक्ष चुनने में काफी कठिनाई हुई। भाजपा ने विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जातीय समीकरण बैठाने की कोशिश की है। पार्टी ने साफ संदेश दिया है कि पिछड़े और दलितों के साथ अगड़ी जातियां उनके लिए महत्वपूर्ण हैं। मशक्कत का असर नहीं दिखा वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्‌ट का मानना है कि भाजपा के जिलाध्यक्षों की सूची जारी करने में जितनी देर हुई, उतनी सटीक सूची नहीं जारी हुई। भाजपा के वरिष्ठ नेता संगठन में जातीय प्रतिनिधित्व देने में सफल नहीं हुए। बड़ी संख्या में जिलाध्यक्ष रिपीट हुए हैं। पिछड़े और दलितों की संख्या भी ज्यादा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र भट्‌ट का कहना है नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित होने के बाद भी 70 में से मात्र 5 महिलाएं हैं। लिस्ट में महिला और एससी कोटा एक साथ पूरा करने की राजनीतिक कलाबाजी भी दिखाई गई है। ऐसा लंबे समय बाद हुआ है जब जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में विधायक, सांसद और मंत्री हावी रहे हैं। इसलिए महत्वपूर्ण है जिलाध्यक्ष का पद राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं भाजपा अब पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू करेगी। चुनावी साल में नवनियुक्त अध्यक्ष ही जिले में सरकार और संगठन का सबसे ताकतवर चेहरा होते हैं। ब्लॉक प्रमुख, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य और जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशी चयन में उनकी भूमिका अहम है। विधानसभा चुनाव में भी दावेदारों के पैनल में नाम शामिल करना उनका ही अधिकार है। महिलाओं की संख्या नहीं बढ़ने की ये है वजह भाजपा के सूत्रों के मुताबिक, जिलाध्यक्ष पद पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए काफी मशक्कत की गई। लेकिन पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव में जिलाध्यक्ष को काफी दौरे और बैठकें करनी होंगी। संगठन को अधिक समय देना होगा। कई बार देर रात तक बैठक और प्रवास भी करने पड़ते हैं। पार्टी का मानना है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए देर रात तक राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए घर से बाहर रहना आसान नहीं होता है। इसी कारण महिलाओं की संख्या ज्यादा नहीं रखी गई। संगठन पर भारी पड़ी सरकार रायबरेली में संगठन पर सरकार भारी पड़ा। रायबरेली के पांच पूर्व भाजपा जिलाध्यक्षों ने प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखकर मौजूदा जिलाध्यक्ष बुद्धिलाल पासी को हटाने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि बुद्धिलाल पासी प्रदेश सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के इशारे पर ही काम करते हैं। इससे वहां संगठन समाप्त हो रहा है। पांच पूर्व जिलाध्यक्षों का विरोध काम नहीं आया। मंत्री दिनेश प्रताप के करीबी बुद्धिलाल को ही आयु सीमा में छूट देते हुए जिलाध्यक्ष बनाया गया है। मंत्री और सांसद-विधायकों की ज्यादा चली जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में प्रदेश सरकार के मंत्रियों और विधायकों की पैरवी काम आई है। मऊ में भाजपा नेता मौजूदा जिलाध्यक्ष नुपूर अग्रवाल को रिपीट करने के पक्ष में थे। लेकिन कारागार मंत्री दारा सिंह चौहान सहित स्थानीय विधायकों के विरोध के चलते रामाश्रय मौर्या को जिलाध्यक्ष बनाया गया। शाहजहांपुर में जिलाध्यक्ष नियुक्ति में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और सहकारिता मंत्री जेपीएस राठौर की पैरवी काम आई। सूत्रों के मुताबिक, राज्यसभा सदस्य और एक प्रदेश महामंत्री के दबाव में बाराबंकी और अंबेडकर नगर में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति रोकी गई। अब प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ तेज भाजपा के 70 जिलाध्यक्ष नियुक्त होने के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव भी मार्च में ही होना है। आगामी दिनों में प्रदेश अध्यक्ष चुनाव पर्यवेक्षक पीयूष गोयल लखनऊ आएंगे। प्रांतीय परिषद के सदस्यों की मौजूदगी में प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन दाखिल कराया जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए पिछड़े, दलित और ब्राह्मण नेता दावेदार हैं। आखिर में एक नजर 70 जिलाध्यक्षों की लिस्ट पर… ———————— ये खबर भी पढ़ें… यूपी BJP में 70 नए जिलाध्यक्षों में 39 सवर्ण:20 ब्राह्मण, 10 ठाकुर; 44 नए चेहरे, सिर्फ 5 महिलाएं; 28 जिलों में चुनाव टालना पड़ा यूपी भाजपा ने ढाई महीने की मशक्कत के बाद आखिरकार रविवार को 70 जिलों में जिलाध्यक्ष की घोषणा कर दी। 28 जिलों में विरोध, गुटबाजी और नेताओं के दबाव के चलते ऐन वक्त पर चुनाव टाल दिया गया। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, प्रदेश चुनाव प्रभारी महेंद्रनाथ पांडेय के संसदीय क्षेत्र चंदौली और डिप्टी सीएम केशव मौर्य के गृह जनपद कौशांबी में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर