पंजाब में जिस तरह के लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, उसने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) के सामने कई नए चैलेंज खड़े कर दिए हैं। क्योंकि करीब ढाई साल पहले 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर AAP राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन इन चुनावों में लोगों ने उसे सिरे से खारिज कर दिया है। चुनावी दंगल में उतरे AAP के पांच मंत्रियों और तीन विधायकों में से एक चुनाव जीत पाया है। 54 विधानसभा हलकों में पार्टी को हार मिली है। ऐसे में पार्टी की आगे की राह आसान नहीं है। हालांकि फ्री बिजली और किसानों से जुड़े कुछ फैसले लेने से पार्टी अपना वोट बैंक 26 फीसदी तक बचाने में कामयाब रही है। हालांकि अब सरकार को एक के बाद चुनाव का सामना करना पड़ेगा। वहीं, अब विपक्षी दल संख्या भले ही कम हो, लेकिन आक्रमक रहेंगे। वहीं, अगर AAP ने सत्ता में आने वाले से पहले गारंटियां लोगों को दी तो थी, वह पूरी नहीं की तो साल 2027 विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मुश्किल उठानी पडे़गी। यह रहे AAP के मंत्रियों के हाल संगरूर में 1.72 लाख मतों से जीते आप की तरफ से संगरूर लोकसभा हलके से मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर को चुनावी मैदान में उतारा गया था। उन्होंने 3.64 लाख मत हासिल किए हैं। जबकि उनके मुकाबले में खड़े सुखपाल सिंह खैहरा को 1.72 लाख मतों से हराया। 2014 से यहां आप पहली बार जीती थी, 2019 में भी पार्टी ने सीट जीती थी। लेकिन जब भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने यह सीट छोड़ी दी थी। उसके बाद यहां पर हुए उप चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। लोगों से दूरी पड़ गई भारी पटियाला से डॉ. बलबीर सिंह को AAP ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह दूसरे नंबर पर रहे हैं। जानकारों की माने तो इस इलाके में उनके हारने के कई कारण थे। एक तो इस लोकसभा के अधीन आने वाले हलकों के विधायकों से लोग खुश नहीं है। महिलाओं को हजार रुपए न देने वाली गारंटी का असर भी दिखा है। इसके अलावा मंत्री बनने के बाद उनका लोगों से सीधा संपर्क टूट गया था। अपने हलके तक ही रह गए सीमित आप की तरफ से तेज तर्रार मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को अमृतसर से मैदान में उतारा गया था। लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि उनकी चुनावी कैंपेन का धार देने खुद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे। इस हलके में हार की वजह धालीवाल का प्रभाव अपने एरिया तक सीमित था। कई हलकों के विधायक ज्यादा एक्टिव नहीं थे। नशा और बॉर्डर का इश्यू बढ़ा है। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। कुछ नेता पार्टी से जुड़े उससे पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। जिस सीट से विधायक बने, वहां ही हार गए मंत्री गुमरीत सिंह खुड़ियां को आप ने बठिंडा लोकसभा हलके से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्हें पार्टी ने मैदान में उतारा था। उस हिसाब से रिजल्ट नहीं आए। हालांकि इस सीट पर सीएम ने पूरी ताकत लगाई। लगातार दो से तीन वह वहां रहे थे। लेकिन नतीजा यह रहा कि जिस लंबी सीट से वह पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। उस सीट से उन्हें 23264 मतों से हार मिली है। इसके पीछे किसानों की फसलों काे हुए नुकसान का उचित मुआवजा नहीं मिला इस इलाके में भी उचित तरीके से विकास नहीं हुआ। वहीं, सरकार की गारंटियां पूरी न होने का असर भी दिखा। ढाई साल में ही सत्ता विरोधी लहर दिखी। पंथक मुद्दे पड़ गए भारी खडूर साहिब में लोकसभा हलके में आप के परिवहन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर चुनावी मैदान में थे। यहां पर पर पार्टी तीसरे नंबर पर रही। हलके में पार्टी की हार की वजह है कि पार्टी के उम्मीदवारों को विधायकों का साथ नहीं मिला। वहीं, पंथक मुद्दे भी भारी रहे हैं। ढाई साल में पार्टी इन मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाई। जबकि लोगों ने बड़े विश्वास से इस पार्टी को मौका दिया था। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। जहां दूसरी पार्टियों से आए नेता मैदान में उतारे गए फतेहगढ़ साहिब में जीपी पिछड़े भले ही आप प्रचंड बहुमत से पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन पार्टी के पास चेहरों की की कमी थी। दूसरी लाइन का कोई नेता तैयार नहीं हुआ है। ऐसे में चुनाव घोषित होने पर दूसरी पार्टियों से चेहरे लाकर उम्मीदवार बनाए गए है। फतेहगढ़ साहिब में कांग्रेस के बस्सी पठाना से पूर्व विधायक रहे गुरप्रीत सिंह जीपी को उतारा था। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़। उन्हें 297439 वोट मिले, जबकि वहां से 331326 वोट लेकर कांग्रेस के अमर सिंह विजयी रहे। यहां पार्टी के अंदर मनमुटाव व कांग्रेस की एकजुटता की कमी रही है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी की रैली का फायदा मिला। जालंधर में पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंची इसी तरह जालंधर से आप के उम्मीदवार व पूर्व सांसद भाजपा में शामिल हो गए तो उन्होंने शिरोमणि अकाली दल के नेता पवन कुमार टीनू को जालंधर से उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह वहां पर तीसरे नंबर पर रहे है। उनके लिए सीएम भगवंत मान और आप सुप्रीमों ने प्रोग्राम किए थे। होशियारपुर में मिली जीत होशियारपुर में आप की तरफ से कांग्रेस के विधायक राज कुमार चब्बेवाल को चुनावी मैदान में उतारा गया। वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे है। वह इलाके में बड़े दलित नेताओं में गिने जाते है। उन्होंने 302402 वोट हासिल किए हैं। चुनौतियां सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लिए अब पांच बड़ी चुनौतियां है। जिनका उन्हें सामना करना पडे़गा। हालांकि पार्टी का थिंक टैंक भी इससे निपटने की रणनीति बनाने में जुट गया है। आइए जानते है इन चुनौतियों को पंचायत चुनाव पंजाब में जनवरी में 13 हजार पंचायतों का कार्यकाल पूरा हाे चुका है। इस समय अफसरों को ही पंचायतों का प्रबंधकीय अफसर लगाया गया है। ऐसे में यह चुनाव सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि पार्टी को केवल 34 हलकों में लीड मिली है। पांच नगर निगमों के चुनाव पांच नगर निगमों के चुनाव भी अब सरकार को करवाने होंगे। यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा है। जनवरी 2023 से पांच नगर निगमों का कार्यकाल संपन्न है। वहीं, इस लोकसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी के सामने नई स्थिति पैदा कर दी है। क्योंकि सभी शहरी एरिया में भाजपा में आगे रही है। जिन नगर निगमों के चुनाव होने है। उनमें लुधियाना, जालंधर, फगबाड़ा, अमृतसर और पटियाला शामिल है। पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव पंजाब की पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने है। इनमें बरनाला से गुरमीत सिंह मीत हेयर की सीट है। क्योंकि वह संगरूर से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। इसी तरह राज कुमार चब्बेवाल होशियारपुर से सांसद चुने गए हैं। उनकी चब्बेवाल सीट पर उप चुनाव होगा। गिदड्बाहा से विधायक व कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग अब लुधियाना के सांसद बन गए हैं। ऐसे में उनकी सीट पर भी चुनाव होगा। इसी तरह डेरा बाबा नानक सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा गुरदासपुर लोसकभा हलके से सांसद बने हैं। उनकी सीट पर उप चुनाव होंगे। जबकि जालंधर वेस्ट के विधायक शीतल अंगुराल ने इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में उनकी सीट पर भी उप चुनाव होगा। गारंटियां पूरी करना चुनौती सरकार ने महिलाओं को हजार रुपये की गारंटी दी है। यह गांरटी बहुत बड़ी है। इस चुनाव में सभी दलों ने आप को इसी चीज पर घेरा था। इसे शर्त को उन्हें हर हाल में पूरा करना होगा। वरना यह मुसीबत बनेगी। इसके अलावा अभी कानून व्यवस्था व नशे का मुद्दा भी प्रमुख रहेगा। RDF की राशि लाना चुनौती सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती रूरल डेवलपमेंट फंड (आरडीएफ) को लाने की है। क्योंकि केंद्र अब दोबारा भाजपा की सरकार आ गई है। जबकि इस मामले में केंद्र पहले साफ कर चुका है कि वह नियमों के मुताबिक ही अदायगी करेगा। यदि पैसे नहीं आते है तो गांवों में विकास प्रभावित होगा। इसके अलावा अभी तक प्लॉटों की एनओसी, राशन कार्ड समेत कई मामले चुनौती बने हुए है। क्या कहते हैं माहिर गारंटी पूरी न होने से मोह हुआ भंग राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार करमजीत सिंह चिल्ला का मानना हैं कि लोगों का सरकार से मोह भंग होने की मुख्य वजह है जो गारंटियां चुनाव से पहले दी गई थी, सरकार ने वह पूरी नहीं की है। सबसे बड़ी बात महिलाओं का हजार रुपए देने वाली बात थी। इसका पूरा असर चुनाव में पड़ा है। इसके अलावा नशा, कानूनी व्यवस्था व सेहत सुविधाओं आदि भी इसके लिए जिम्मेदार है। जहां तक आने वाला समय अब सरकार के लिए चुनौतियां भरा रहेगा। अब हर दल उन्हें घेरने की कोशिश करेगा। विधायकों के पास नहीं थी कोई पावर राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार कुलदीप सिंह मानते हैं कि इस चुनाव में आप के हारने की कई वजह थी। सारी कमान सीएम के हाथ में थी। किसी को कुछ समझा नहीं गया। विधायकों व मंत्रियों के पास कोई पावर नहीं है। उनके काम तक नहीं हुए। वह हलकों में अपने स्तर पर कुछ नहीं करवा सकते हैं। पार्टी के वालंटियरों से तालमेल नहीं रखा गया। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। इसके अलावा कुछ नेता बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। वहीं, चुनावी गारंटियां पूरी न करने से भी पार्टी काे नुकसान हुआ है। उनका मानना है कि स्थिति यही रही तो आगे भी नुकसान उठाना पडे़गा। पंजाब में जिस तरह के लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, उसने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) के सामने कई नए चैलेंज खड़े कर दिए हैं। क्योंकि करीब ढाई साल पहले 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर AAP राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन इन चुनावों में लोगों ने उसे सिरे से खारिज कर दिया है। चुनावी दंगल में उतरे AAP के पांच मंत्रियों और तीन विधायकों में से एक चुनाव जीत पाया है। 54 विधानसभा हलकों में पार्टी को हार मिली है। ऐसे में पार्टी की आगे की राह आसान नहीं है। हालांकि फ्री बिजली और किसानों से जुड़े कुछ फैसले लेने से पार्टी अपना वोट बैंक 26 फीसदी तक बचाने में कामयाब रही है। हालांकि अब सरकार को एक के बाद चुनाव का सामना करना पड़ेगा। वहीं, अब विपक्षी दल संख्या भले ही कम हो, लेकिन आक्रमक रहेंगे। वहीं, अगर AAP ने सत्ता में आने वाले से पहले गारंटियां लोगों को दी तो थी, वह पूरी नहीं की तो साल 2027 विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मुश्किल उठानी पडे़गी। यह रहे AAP के मंत्रियों के हाल संगरूर में 1.72 लाख मतों से जीते आप की तरफ से संगरूर लोकसभा हलके से मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर को चुनावी मैदान में उतारा गया था। उन्होंने 3.64 लाख मत हासिल किए हैं। जबकि उनके मुकाबले में खड़े सुखपाल सिंह खैहरा को 1.72 लाख मतों से हराया। 2014 से यहां आप पहली बार जीती थी, 2019 में भी पार्टी ने सीट जीती थी। लेकिन जब भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने यह सीट छोड़ी दी थी। उसके बाद यहां पर हुए उप चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। लोगों से दूरी पड़ गई भारी पटियाला से डॉ. बलबीर सिंह को AAP ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह दूसरे नंबर पर रहे हैं। जानकारों की माने तो इस इलाके में उनके हारने के कई कारण थे। एक तो इस लोकसभा के अधीन आने वाले हलकों के विधायकों से लोग खुश नहीं है। महिलाओं को हजार रुपए न देने वाली गारंटी का असर भी दिखा है। इसके अलावा मंत्री बनने के बाद उनका लोगों से सीधा संपर्क टूट गया था। अपने हलके तक ही रह गए सीमित आप की तरफ से तेज तर्रार मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को अमृतसर से मैदान में उतारा गया था। लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि उनकी चुनावी कैंपेन का धार देने खुद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे। इस हलके में हार की वजह धालीवाल का प्रभाव अपने एरिया तक सीमित था। कई हलकों के विधायक ज्यादा एक्टिव नहीं थे। नशा और बॉर्डर का इश्यू बढ़ा है। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। कुछ नेता पार्टी से जुड़े उससे पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। जिस सीट से विधायक बने, वहां ही हार गए मंत्री गुमरीत सिंह खुड़ियां को आप ने बठिंडा लोकसभा हलके से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्हें पार्टी ने मैदान में उतारा था। उस हिसाब से रिजल्ट नहीं आए। हालांकि इस सीट पर सीएम ने पूरी ताकत लगाई। लगातार दो से तीन वह वहां रहे थे। लेकिन नतीजा यह रहा कि जिस लंबी सीट से वह पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। उस सीट से उन्हें 23264 मतों से हार मिली है। इसके पीछे किसानों की फसलों काे हुए नुकसान का उचित मुआवजा नहीं मिला इस इलाके में भी उचित तरीके से विकास नहीं हुआ। वहीं, सरकार की गारंटियां पूरी न होने का असर भी दिखा। ढाई साल में ही सत्ता विरोधी लहर दिखी। पंथक मुद्दे पड़ गए भारी खडूर साहिब में लोकसभा हलके में आप के परिवहन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर चुनावी मैदान में थे। यहां पर पर पार्टी तीसरे नंबर पर रही। हलके में पार्टी की हार की वजह है कि पार्टी के उम्मीदवारों को विधायकों का साथ नहीं मिला। वहीं, पंथक मुद्दे भी भारी रहे हैं। ढाई साल में पार्टी इन मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाई। जबकि लोगों ने बड़े विश्वास से इस पार्टी को मौका दिया था। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। जहां दूसरी पार्टियों से आए नेता मैदान में उतारे गए फतेहगढ़ साहिब में जीपी पिछड़े भले ही आप प्रचंड बहुमत से पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन पार्टी के पास चेहरों की की कमी थी। दूसरी लाइन का कोई नेता तैयार नहीं हुआ है। ऐसे में चुनाव घोषित होने पर दूसरी पार्टियों से चेहरे लाकर उम्मीदवार बनाए गए है। फतेहगढ़ साहिब में कांग्रेस के बस्सी पठाना से पूर्व विधायक रहे गुरप्रीत सिंह जीपी को उतारा था। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़। उन्हें 297439 वोट मिले, जबकि वहां से 331326 वोट लेकर कांग्रेस के अमर सिंह विजयी रहे। यहां पार्टी के अंदर मनमुटाव व कांग्रेस की एकजुटता की कमी रही है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी की रैली का फायदा मिला। जालंधर में पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंची इसी तरह जालंधर से आप के उम्मीदवार व पूर्व सांसद भाजपा में शामिल हो गए तो उन्होंने शिरोमणि अकाली दल के नेता पवन कुमार टीनू को जालंधर से उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह वहां पर तीसरे नंबर पर रहे है। उनके लिए सीएम भगवंत मान और आप सुप्रीमों ने प्रोग्राम किए थे। होशियारपुर में मिली जीत होशियारपुर में आप की तरफ से कांग्रेस के विधायक राज कुमार चब्बेवाल को चुनावी मैदान में उतारा गया। वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे है। वह इलाके में बड़े दलित नेताओं में गिने जाते है। उन्होंने 302402 वोट हासिल किए हैं। चुनौतियां सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लिए अब पांच बड़ी चुनौतियां है। जिनका उन्हें सामना करना पडे़गा। हालांकि पार्टी का थिंक टैंक भी इससे निपटने की रणनीति बनाने में जुट गया है। आइए जानते है इन चुनौतियों को पंचायत चुनाव पंजाब में जनवरी में 13 हजार पंचायतों का कार्यकाल पूरा हाे चुका है। इस समय अफसरों को ही पंचायतों का प्रबंधकीय अफसर लगाया गया है। ऐसे में यह चुनाव सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि पार्टी को केवल 34 हलकों में लीड मिली है। पांच नगर निगमों के चुनाव पांच नगर निगमों के चुनाव भी अब सरकार को करवाने होंगे। यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा है। जनवरी 2023 से पांच नगर निगमों का कार्यकाल संपन्न है। वहीं, इस लोकसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी के सामने नई स्थिति पैदा कर दी है। क्योंकि सभी शहरी एरिया में भाजपा में आगे रही है। जिन नगर निगमों के चुनाव होने है। उनमें लुधियाना, जालंधर, फगबाड़ा, अमृतसर और पटियाला शामिल है। पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव पंजाब की पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने है। इनमें बरनाला से गुरमीत सिंह मीत हेयर की सीट है। क्योंकि वह संगरूर से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। इसी तरह राज कुमार चब्बेवाल होशियारपुर से सांसद चुने गए हैं। उनकी चब्बेवाल सीट पर उप चुनाव होगा। गिदड्बाहा से विधायक व कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग अब लुधियाना के सांसद बन गए हैं। ऐसे में उनकी सीट पर भी चुनाव होगा। इसी तरह डेरा बाबा नानक सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा गुरदासपुर लोसकभा हलके से सांसद बने हैं। उनकी सीट पर उप चुनाव होंगे। जबकि जालंधर वेस्ट के विधायक शीतल अंगुराल ने इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में उनकी सीट पर भी उप चुनाव होगा। गारंटियां पूरी करना चुनौती सरकार ने महिलाओं को हजार रुपये की गारंटी दी है। यह गांरटी बहुत बड़ी है। इस चुनाव में सभी दलों ने आप को इसी चीज पर घेरा था। इसे शर्त को उन्हें हर हाल में पूरा करना होगा। वरना यह मुसीबत बनेगी। इसके अलावा अभी कानून व्यवस्था व नशे का मुद्दा भी प्रमुख रहेगा। RDF की राशि लाना चुनौती सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती रूरल डेवलपमेंट फंड (आरडीएफ) को लाने की है। क्योंकि केंद्र अब दोबारा भाजपा की सरकार आ गई है। जबकि इस मामले में केंद्र पहले साफ कर चुका है कि वह नियमों के मुताबिक ही अदायगी करेगा। यदि पैसे नहीं आते है तो गांवों में विकास प्रभावित होगा। इसके अलावा अभी तक प्लॉटों की एनओसी, राशन कार्ड समेत कई मामले चुनौती बने हुए है। क्या कहते हैं माहिर गारंटी पूरी न होने से मोह हुआ भंग राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार करमजीत सिंह चिल्ला का मानना हैं कि लोगों का सरकार से मोह भंग होने की मुख्य वजह है जो गारंटियां चुनाव से पहले दी गई थी, सरकार ने वह पूरी नहीं की है। सबसे बड़ी बात महिलाओं का हजार रुपए देने वाली बात थी। इसका पूरा असर चुनाव में पड़ा है। इसके अलावा नशा, कानूनी व्यवस्था व सेहत सुविधाओं आदि भी इसके लिए जिम्मेदार है। जहां तक आने वाला समय अब सरकार के लिए चुनौतियां भरा रहेगा। अब हर दल उन्हें घेरने की कोशिश करेगा। विधायकों के पास नहीं थी कोई पावर राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार कुलदीप सिंह मानते हैं कि इस चुनाव में आप के हारने की कई वजह थी। सारी कमान सीएम के हाथ में थी। किसी को कुछ समझा नहीं गया। विधायकों व मंत्रियों के पास कोई पावर नहीं है। उनके काम तक नहीं हुए। वह हलकों में अपने स्तर पर कुछ नहीं करवा सकते हैं। पार्टी के वालंटियरों से तालमेल नहीं रखा गया। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। इसके अलावा कुछ नेता बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। वहीं, चुनावी गारंटियां पूरी न करने से भी पार्टी काे नुकसान हुआ है। उनका मानना है कि स्थिति यही रही तो आगे भी नुकसान उठाना पडे़गा। पंजाब | दैनिक भास्कर
Related Posts
भाजपा प्रभारी रूपाणी आज पहुंचेंगे पंजाब:चारों हलकों का दौरा कर बनाएंगे स्ट्रेटजी, अगले हफ्ते से आएंगे स्टार प्रचारक
भाजपा प्रभारी रूपाणी आज पहुंचेंगे पंजाब:चारों हलकों का दौरा कर बनाएंगे स्ट्रेटजी, अगले हफ्ते से आएंगे स्टार प्रचारक पंजाब में 20 नवंबर को चार सीटों बरनाला, डेरा बाबा नानक, चब्बेवाल और गिद्दड़बाहा में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए बीजेपी के स्थानीय नेता भी मैदान में डटे हुए हैं। वहीं, भाजपा के राज्य प्रभारी व गुजरात के पूर्व सीएम विजय रूपाणी आज (बुधवार) पंजाब पहुंच रहे हैं। वह अगले तीन दिनों में चार हलकों में जाएंगे। इसके लिए पार्टी ने सारा शेड्यूल तैयार कर लिया है। इस दौरान वह चारों हलकों में नेताओं से मीटिंग कर चुनाव के लिए रणनीति बनाएंगे। साथ ही चुनाव प्रचार में भी शामिल होंगे। अगले हफ्ते से स्टार प्रचारक संभालेंगे मोर्चा भाजपा की तरफ से चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी गई है। इसमें 40 नेताओं को शामिल किया गया है। पहले स्टार प्रचारकों के दौरे सात नवंबर से शुरू होने थे, लेकिन मतदान की तारीख एक हफ्ता आगे बढ़ने के बाद इस शेडयूल में बदलाव किया गया है। अब अगले हफ्ते से दौरे शुरू होंगे। 18 तक चुनाव प्रचार चलना है। केंद्रीय राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू चुनाव प्रचार में सक्रिय है। हालांकि लोकसभा चुनाव नतीजों के वोट प्रतिशत से भी पार्टी का मनोबल मजबूत है। क्योंकि चुनाव में पार्टी को 18 फीसदी से अधिक वोट मिले थे। दूसरी तरफ इस बार शिरोमणि अकाली दल चुनावी मैदान में नहीं है। ऐसे में अकाली दल के वोट पर बीजेपी की नजर है। राज्य में किसान आंदोलन शुरू होने के बाद दोनों दलों की राहें अलग हुई थीं। इसके बाद दोनों पार्टियों को विधानसभा व लोकसभा चुनाव में नुकसान हुआ है। हालांकि 2007 से 2017 तक दोनों दल ने दस साल तक लगातार सरकार चलाई थी। वहीं, अब भी दोनों पार्टियों के नेता गठबंधन चाहते हैं। अनुभवी नेता संभाल रहे चुनावी मुहिम इस चुनाव में भाजपा पूरी रणनीति के साथ जुटी हुई है। चारों सीटों पर मजबूत चेहरे उतारे हैं। गिद्दड़बाहा से पूर्व मंत्री मनप्रीत बादल, बरनाला में केवल सिंह ढिल्लों, चब्बेवाल में सोहन सिंह थंडल और डेरा बाबा नानक से रविकरण सिंह काहलों उम्मीदवार हैं। वहीं, हलकों के इंचार्ज व को इंचार्ज भी अनुभवी नेताओं को लगाया है। गिद्दड़बाहा में अविनाश राय खन्ना को प्रभारी लगाया गया है। साथ ही दियाल सिंह सोढी को को- इंचार्ज लगाया है। बरनाला में मनोरंजन कालिया को इंचार्ज व जगमोहन सिंह राजू को को-इंचार्ज लगाया है। जबकि चब्बेवाल विधानसभा हलके की कमान श्ववेत मलिक को सौंपी गई है। वहीं, परमिंदर सिंह बराड़ को को-इंचार्ज लगाया है। डेरा बाबा नानक हलके का इंचार्ज अश्वनी शर्मा को लगाया गया है, राकेश राठौर को-इंचार्ज की जिम्मेदारी सौंपी गई हैं। अनील सरीन सोशल मीडिया इंचार्ज की जिम्मेदारी संभाले रहे है।
फिरोजपुर में बीएसएफ ने पकड़ा ड्रोन:पाकिस्तान से भेजी गई थी पिस्तौल, धातु की अंगूठी भी मिली
फिरोजपुर में बीएसएफ ने पकड़ा ड्रोन:पाकिस्तान से भेजी गई थी पिस्तौल, धातु की अंगूठी भी मिली पंजाब के फिरोजपुर जिले में सरहद पार से नशे के साथ-साथ लगातार हथियारों की तस्करी भी बढ़ रही है। ऐसी ही एक तस्करी को समय रहते बीएसएफ के चौकस जवानों ने नाकाम बना दिया। चेकिंग के दौरान बीएसएफ के जवानों ने पाकिस्तान से भेजे गए ड्रोन को बरामद करने के साथ ही एक पिस्तौल को भी बरामद कर लिया है। ड्रोन के साथ भेजी पिस्तौल फिरोजपुर बॉर्डर रेंज की खुफिया विंग ने जिला फिरोजपुर के सीमावर्ती क्षेत्र में एक संदिग्ध पैकेट के साथ एक ड्रोन की उपस्थिति के बारे में जानकारी सांझा की, जिसके बाद त्वरित कार्रवाई करते हुए बीएसएफ के जवान मौके पर पहुंचे और व्यापक तलाशी अभियान चलाया। तलाशी के दौरान सैनिकों ने गांव-लाखा सिंह वाला से सटे एक कृषि क्षेत्र में एक पैकेट के साथ 1 ड्रोन को सफलतापूर्वक बरामद किया। पैकेट पीले रंग के चिपकने वाले टेप में लपेटा हुआ था और उसमें एक छोटी प्लास्टिक टॉर्च के साथ एक धातु की अंगूठी भी लगी हुई थी। पैकेट का निरीक्षण करने पर अंदर 1 पिस्तौल (बिना बैरल के) और एक खाली पिस्तौल मैगजीन मिली। जो ड्रोन बरामद हुआ है, उसकी पहचान चीन निर्मित डीजेआई माव के रूप में हुई है। बीएसएफ दल ने की खोज जानकारी के गहन विश्लेषण और बीएसएफ खुफिया विंग द्वारा पिछले हथियार बरामदगी मामलों के सूक्ष्म अध्ययन के साथ-साथ बीएसएफ खोज दल के दृढ़ प्रयासों के कारण सीमा क्षेत्र के पास यह महत्वपूर्ण बरामदगी हुई और यह पंजाब के सीमावर्ती आबादी के बीच सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देने के लिए बीएसएफ की अटूट प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
पंजाब में सुखबीर बादल को लेकर SAD में फूट:बागी गुट अकाल तख्त पहुंचा; राम रहीम को माफी, DGP सुमेध सैनी समेत 4 गलतियां कबूलीं
पंजाब में सुखबीर बादल को लेकर SAD में फूट:बागी गुट अकाल तख्त पहुंचा; राम रहीम को माफी, DGP सुमेध सैनी समेत 4 गलतियां कबूलीं पंजाब में पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल के बेटे शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल के खिलाफ बड़ी बगावत हो गई है। अकाली दल का बागी गुट सोमवार को अमृतसर में श्री अकाल तख्त साहिब पहुंचा। यहां उन्होंने श्री अकाल तख्त साहिब के आगे पेश होकर माफीनामा दिया। जिसमें 4 पॉइंट पर माफी मांगी गई है। जिसमें डेरा सच्चा सौदा मुखी राम रहीम को माफी देने की गलती मानी गई है। 2015 में फरीदकोट के बरगाड़ी में बेअदबी की सही जांच न होने के लिए भी माफी मांगी गई है। वहीं IPS अधिकारी सुमेध सैनी को DGP बनाने और मुहम्मद इजहार आलम की पत्नी को टिकट देने की भी गलती मानी गई है। इस दौरान बागी गुट ने तलवंडी साबो स्थित तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह से भी मुलाकात की। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने दोनों पक्षों को बैठकर इसका हल निकालने के लिए कहा। वहीं बागी गुट का अध्यक्ष बनाने की मांग को लेकर ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि उन्हें प्रधान बनाने के लिए किसी ने पहुंच नहीं की है। अगर समूची पार्टी उन्हें इस पद के लिए चुनेगी तो वे इस पर विचार करेंगे। अन्यथा गुटबाजी का वे हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं। अकाल तख्त पर पेश होने के बाद बागी गुट के नेता प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने कहा- ”आज हम सिर्फ हाजिरी देकर व माफी लेने आए हैं। पार्टी से जो गलतियां हुई हैं, लिखित में उसके लिए माफी मांगने आए हैं। अकाली दल को जो तगड़ा करने के लिए काम कर सकता है, उस तक एप्रोच किया गया है। ज्ञानी हरप्रीत सिंह तक भी जाएंगे। श्री अकाल तख्त साहिब से माफी मांगना और गुरु साहिब के आगे पार्टी को मजबूत करने के लिए अरदास करना बागीपन नहीं है। सुखबीर बादल के अकाल तख्त साहिब पर माफी मांगने के लिए आने की बात पर चंदूमाजरा ने कहा कि वे अपनी गलतियों के लिए माफी मांगने आए हैं। उन्होंने माफी मांगनी है या नहीं, ये उन पर डिपेंड करता है। हमसे से माफी मांगने में जो देरी हुई, उसके लिए ही माफी मांगने आए हैं। वहीं, बीबी जगीर कौर ने कहा कि हम जल्द ही सब कुछ बताएंगे। एक बार श्री अकाल तख्त साहिब पर नतमस्तक हो जाएं। चंदूमाजरा की अध्यक्षता में चल रहा विरोधी गुट
सुखबीर बादल के खिलाफ अकाली दल के बागी गुट की अगुआई प्रेम सिंह चंदूमाजरा कर रहे हैं। उनके साथ सिकंदर मलूका, सुरजीत रखड़ा, बीबी जागीर कौर, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, किरणजोत कौर, मनजीत सिंह, सुरिंदर भुल्लेवाल, गुरप्रताप वडाला, चरणजीत बराड़, हरिंदर पाल टोहरा और गगनजीत बरनाला भी हैं। ये गुट लगातार झूंदा कमेटी, जिसे 2022 में भी लागू करने की मांग उठी थी, पर विचार करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि इसमें पार्टी प्रधान बदलने का प्रस्ताव नहीं है, लेकिन ये लिखा गया है कि पार्टी अध्यक्ष 10 साल के बाद रिपीट नहीं होगा। जाने क्या लिखा था झूंदा रिपोर्ट में
झूंदा रिपोर्ट पर जब अमल नहीं हुआ तो इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। झूंदा ने सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया था कि 117 विधानसभा हलकों में से 100 में जाकर उन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इस रिपोर्ट में कुछ जानकारियां 2022 में सांझी की थी। तब अकाली नेताओं ने कहा था कि झूंदा रिपोर्ट में 42 सुझाव दिए गए हैं। पार्टी प्रधान को बदले जाने का रिपोर्ट में कहीं जिक्र नहीं है। लेकिन, भविष्य में पार्टी प्रधान के चुने जाने की तय सीमा जरूर तय की गई है। ये भी बात उठाई गई कि अकाली दल अपने मूल सिद्धांतों से भटका है और राज्य सत्ता में रहने के मकसद से कई कमियां आई हैं। 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा
शिरोमणि अकाली दल पर पिछले 3 दशक से बादल परिवार का कब्जा है। 1995 में सरदार प्रकाश सिंह बादल अकाली दल के प्रमुख बने थे। इस पद पर वे 2008 तक बने रहे। 2008 के बाद शिअद की कमान उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल के हाथ में आ गई। किसी जमाने में पंजाब ही नहीं भारतीय राजनीति में अकाली दल की तूती बोलती थी, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रभुत्व समाप्त होता चला गया। आलम ये है कि अब इसके पास लोकसभा की केवल एक सीट है। विधानसभा में भी इसका प्रभाव लगातार खत्म हो रहा है। जाने कब बना अकाली दल
14 दिसंबर, 1920 को एक SAD का गठन किया गया था। इसके पीछे उद्देश्य यह बताया गया था कि गुरुद्वारों को ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त महंतों (पुजारियों) के नियंत्रण से मुक्त कराया जाएगा। SAD के गठन से एक महीना पहले 15 नवंबर को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) का गठन हुआ था। ननकाना साहिब में मत्था टेकते समय एक डिप्टी कमिश्नर की बेटी के साथ छेड़छाड़ की घटना हुई थी और इस वजह से लोगों में गुस्सा था। तब यह मांग उठी थी कि गुरुद्वारों को महंतों से मुक्त कराया जाना चाहिए। SAD ने इसके खिलाफ संघर्ष छेड़ा और यह 4 साल तक चला। इस दौरान महंतों और ब्रिटिश प्रशासन के हमलों में 4 हजार लोगों की मौत हुई थी। आखिरकार सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 बनाया गया और सभी गुरुद्वारे एसजीपीसी के नियंत्रण में आ गए। अकाली दल ने देश की आजादी से पहले कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया था। SAD के नेता मास्टर तारा सिंह की वजह से ही बंटवारे के दौरान पंजाब के आधे हिस्से को पाकिस्तान में जाने से रोका गया था। ज्यादातर नेता सुखबीर बादल के साथ अकाली दल में एक तरफ बगावत तेज हो रही है तो दूसरी तरफ सुखबीर भी अपने ग्रुप को मजबूत करने में जुटे हैं। फिलहाल पार्टी के मौजूदा 35 जिला जत्थेदारों में से 33 और मौजूदा 105 हलका प्रभारियों में से 96 ने सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व की सराहना कर रहे हैं।