पंजाब में जिस तरह के लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, उसने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) के सामने कई नए चैलेंज खड़े कर दिए हैं। क्योंकि करीब ढाई साल पहले 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर AAP राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन इन चुनावों में लोगों ने उसे सिरे से खारिज कर दिया है। चुनावी दंगल में उतरे AAP के पांच मंत्रियों और तीन विधायकों में से एक चुनाव जीत पाया है। 54 विधानसभा हलकों में पार्टी को हार मिली है। ऐसे में पार्टी की आगे की राह आसान नहीं है। हालांकि फ्री बिजली और किसानों से जुड़े कुछ फैसले लेने से पार्टी अपना वोट बैंक 26 फीसदी तक बचाने में कामयाब रही है। हालांकि अब सरकार को एक के बाद चुनाव का सामना करना पड़ेगा। वहीं, अब विपक्षी दल संख्या भले ही कम हो, लेकिन आक्रमक रहेंगे। वहीं, अगर AAP ने सत्ता में आने वाले से पहले गारंटियां लोगों को दी तो थी, वह पूरी नहीं की तो साल 2027 विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मुश्किल उठानी पडे़गी। यह रहे AAP के मंत्रियों के हाल संगरूर में 1.72 लाख मतों से जीते आप की तरफ से संगरूर लोकसभा हलके से मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर को चुनावी मैदान में उतारा गया था। उन्होंने 3.64 लाख मत हासिल किए हैं। जबकि उनके मुकाबले में खड़े सुखपाल सिंह खैहरा को 1.72 लाख मतों से हराया। 2014 से यहां आप पहली बार जीती थी, 2019 में भी पार्टी ने सीट जीती थी। लेकिन जब भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने यह सीट छोड़ी दी थी। उसके बाद यहां पर हुए उप चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। लोगों से दूरी पड़ गई भारी पटियाला से डॉ. बलबीर सिंह को AAP ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह दूसरे नंबर पर रहे हैं। जानकारों की माने तो इस इलाके में उनके हारने के कई कारण थे। एक तो इस लोकसभा के अधीन आने वाले हलकों के विधायकों से लोग खुश नहीं है। महिलाओं को हजार रुपए न देने वाली गारंटी का असर भी दिखा है। इसके अलावा मंत्री बनने के बाद उनका लोगों से सीधा संपर्क टूट गया था। अपने हलके तक ही रह गए सीमित आप की तरफ से तेज तर्रार मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को अमृतसर से मैदान में उतारा गया था। लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि उनकी चुनावी कैंपेन का धार देने खुद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे। इस हलके में हार की वजह धालीवाल का प्रभाव अपने एरिया तक सीमित था। कई हलकों के विधायक ज्यादा एक्टिव नहीं थे। नशा और बॉर्डर का इश्यू बढ़ा है। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। कुछ नेता पार्टी से जुड़े उससे पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। जिस सीट से विधायक बने, वहां ही हार गए मंत्री गुमरीत सिंह खुड़ियां को आप ने बठिंडा लोकसभा हलके से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्हें पार्टी ने मैदान में उतारा था। उस हिसाब से रिजल्ट नहीं आए। हालांकि इस सीट पर सीएम ने पूरी ताकत लगाई। लगातार दो से तीन वह वहां रहे थे। लेकिन नतीजा यह रहा कि जिस लंबी सीट से वह पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। उस सीट से उन्हें 23264 मतों से हार मिली है। इसके पीछे किसानों की फसलों काे हुए नुकसान का उचित मुआवजा नहीं मिला इस इलाके में भी उचित तरीके से विकास नहीं हुआ। वहीं, सरकार की गारंटियां पूरी न होने का असर भी दिखा। ढाई साल में ही सत्ता विरोधी लहर दिखी। पंथक मुद्दे पड़ गए भारी खडूर साहिब में लोकसभा हलके में आप के परिवहन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर चुनावी मैदान में थे। यहां पर पर पार्टी तीसरे नंबर पर रही। हलके में पार्टी की हार की वजह है कि पार्टी के उम्मीदवारों को विधायकों का साथ नहीं मिला। वहीं, पंथक मुद्दे भी भारी रहे हैं। ढाई साल में पार्टी इन मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाई। जबकि लोगों ने बड़े विश्वास से इस पार्टी को मौका दिया था। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। जहां दूसरी पार्टियों से आए नेता मैदान में उतारे गए फतेहगढ़ साहिब में जीपी पिछड़े भले ही आप प्रचंड बहुमत से पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन पार्टी के पास चेहरों की की कमी थी। दूसरी लाइन का कोई नेता तैयार नहीं हुआ है। ऐसे में चुनाव घोषित होने पर दूसरी पार्टियों से चेहरे लाकर उम्मीदवार बनाए गए है। फतेहगढ़ साहिब में कांग्रेस के बस्सी पठाना से पूर्व विधायक रहे गुरप्रीत सिंह जीपी को उतारा था। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़। उन्हें 297439 वोट मिले, जबकि वहां से 331326 वोट लेकर कांग्रेस के अमर सिंह विजयी रहे। यहां पार्टी के अंदर मनमुटाव व कांग्रेस की एकजुटता की कमी रही है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी की रैली का फायदा मिला। जालंधर में पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंची इसी तरह जालंधर से आप के उम्मीदवार व पूर्व सांसद भाजपा में शामिल हो गए तो उन्होंने शिरोमणि अकाली दल के नेता पवन कुमार टीनू को जालंधर से उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह वहां पर तीसरे नंबर पर रहे है। उनके लिए सीएम भगवंत मान और आप सुप्रीमों ने प्रोग्राम किए थे। होशियारपुर में मिली जीत होशियारपुर में आप की तरफ से कांग्रेस के विधायक राज कुमार चब्बेवाल को चुनावी मैदान में उतारा गया। वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे है। वह इलाके में बड़े दलित नेताओं में गिने जाते है। उन्होंने 302402 वोट हासिल किए हैं। चुनौतियां सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लिए अब पांच बड़ी चुनौतियां है। जिनका उन्हें सामना करना पडे़गा। हालांकि पार्टी का थिंक टैंक भी इससे निपटने की रणनीति बनाने में जुट गया है। आइए जानते है इन चुनौतियों को पंचायत चुनाव पंजाब में जनवरी में 13 हजार पंचायतों का कार्यकाल पूरा हाे चुका है। इस समय अफसरों को ही पंचायतों का प्रबंधकीय अफसर लगाया गया है। ऐसे में यह चुनाव सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि पार्टी को केवल 34 हलकों में लीड मिली है। पांच नगर निगमों के चुनाव पांच नगर निगमों के चुनाव भी अब सरकार को करवाने होंगे। यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा है। जनवरी 2023 से पांच नगर निगमों का कार्यकाल संपन्न है। वहीं, इस लोकसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी के सामने नई स्थिति पैदा कर दी है। क्योंकि सभी शहरी एरिया में भाजपा में आगे रही है। जिन नगर निगमों के चुनाव होने है। उनमें लुधियाना, जालंधर, फगबाड़ा, अमृतसर और पटियाला शामिल है। पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव पंजाब की पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होने है। इनमें बरनाला से गुरमीत सिंह मीत हेयर की सीट है। क्योंकि वह संगरूर से लोकसभा के लिए चुने गए हैं। इसी तरह राज कुमार चब्बेवाल होशियारपुर से सांसद चुने गए हैं। उनकी चब्बेवाल सीट पर उप चुनाव होगा। गिदड्बाहा से विधायक व कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग अब लुधियाना के सांसद बन गए हैं। ऐसे में उनकी सीट पर भी चुनाव होगा। इसी तरह डेरा बाबा नानक सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता सुखजिंदर सिंह रंधावा गुरदासपुर लोसकभा हलके से सांसद बने हैं। उनकी सीट पर उप चुनाव होंगे। जबकि जालंधर वेस्ट के विधायक शीतल अंगुराल ने इस्तीफा दे दिया था। ऐसे में उनकी सीट पर भी उप चुनाव होगा। गारंटियां पूरी करना चुनौती सरकार ने महिलाओं को हजार रुपये की गारंटी दी है। यह गांरटी बहुत बड़ी है। इस चुनाव में सभी दलों ने आप को इसी चीज पर घेरा था। इसे शर्त को उन्हें हर हाल में पूरा करना होगा। वरना यह मुसीबत बनेगी। इसके अलावा अभी कानून व्यवस्था व नशे का मुद्दा भी प्रमुख रहेगा। RDF की राशि लाना चुनौती सरकार के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती रूरल डेवलपमेंट फंड (आरडीएफ) को लाने की है। क्योंकि केंद्र अब दोबारा भाजपा की सरकार आ गई है। जबकि इस मामले में केंद्र पहले साफ कर चुका है कि वह नियमों के मुताबिक ही अदायगी करेगा। यदि पैसे नहीं आते है तो गांवों में विकास प्रभावित होगा। इसके अलावा अभी तक प्लॉटों की एनओसी, राशन कार्ड समेत कई मामले चुनौती बने हुए है। क्या कहते हैं माहिर गारंटी पूरी न होने से मोह हुआ भंग राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार करमजीत सिंह चिल्ला का मानना हैं कि लोगों का सरकार से मोह भंग होने की मुख्य वजह है जो गारंटियां चुनाव से पहले दी गई थी, सरकार ने वह पूरी नहीं की है। सबसे बड़ी बात महिलाओं का हजार रुपए देने वाली बात थी। इसका पूरा असर चुनाव में पड़ा है। इसके अलावा नशा, कानूनी व्यवस्था व सेहत सुविधाओं आदि भी इसके लिए जिम्मेदार है। जहां तक आने वाला समय अब सरकार के लिए चुनौतियां भरा रहेगा। अब हर दल उन्हें घेरने की कोशिश करेगा। विधायकों के पास नहीं थी कोई पावर राजनीतिक माहिर व सीनियर पत्रकार कुलदीप सिंह मानते हैं कि इस चुनाव में आप के हारने की कई वजह थी। सारी कमान सीएम के हाथ में थी। किसी को कुछ समझा नहीं गया। विधायकों व मंत्रियों के पास कोई पावर नहीं है। उनके काम तक नहीं हुए। वह हलकों में अपने स्तर पर कुछ नहीं करवा सकते हैं। पार्टी के वालंटियरों से तालमेल नहीं रखा गया। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। इसके अलावा कुछ नेता बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। वहीं, चुनावी गारंटियां पूरी न करने से भी पार्टी काे नुकसान हुआ है। उनका मानना है कि स्थिति यही रही तो आगे भी नुकसान उठाना पडे़गा। पंजाब में जिस तरह के लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, उसने सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (AAP) के सामने कई नए चैलेंज खड़े कर दिए हैं। क्योंकि करीब ढाई साल पहले 117 विधानसभा सीटों में से 92 सीटें जीतकर AAP राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन इन चुनावों में लोगों ने उसे सिरे से खारिज कर दिया है। चुनावी दंगल में उतरे AAP के पांच मंत्रियों और तीन विधायकों में से एक चुनाव जीत पाया है। 54 विधानसभा हलकों में पार्टी को हार मिली है। ऐसे में पार्टी की आगे की राह आसान नहीं है। हालांकि फ्री बिजली और किसानों से जुड़े कुछ फैसले लेने से पार्टी अपना वोट बैंक 26 फीसदी तक बचाने में कामयाब रही है। हालांकि अब सरकार को एक के बाद चुनाव का सामना करना पड़ेगा। वहीं, अब विपक्षी दल संख्या भले ही कम हो, लेकिन आक्रमक रहेंगे। वहीं, अगर AAP ने सत्ता में आने वाले से पहले गारंटियां लोगों को दी तो थी, वह पूरी नहीं की तो साल 2027 विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को मुश्किल उठानी पडे़गी। यह रहे AAP के मंत्रियों के हाल संगरूर में 1.72 लाख मतों से जीते आप की तरफ से संगरूर लोकसभा हलके से मंत्री गुरमीत सिंह मीत हेयर को चुनावी मैदान में उतारा गया था। उन्होंने 3.64 लाख मत हासिल किए हैं। जबकि उनके मुकाबले में खड़े सुखपाल सिंह खैहरा को 1.72 लाख मतों से हराया। 2014 से यहां आप पहली बार जीती थी, 2019 में भी पार्टी ने सीट जीती थी। लेकिन जब भगवंत मान ने मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने यह सीट छोड़ी दी थी। उसके बाद यहां पर हुए उप चुनाव में पार्टी को हार मिली थी। लोगों से दूरी पड़ गई भारी पटियाला से डॉ. बलबीर सिंह को AAP ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह दूसरे नंबर पर रहे हैं। जानकारों की माने तो इस इलाके में उनके हारने के कई कारण थे। एक तो इस लोकसभा के अधीन आने वाले हलकों के विधायकों से लोग खुश नहीं है। महिलाओं को हजार रुपए न देने वाली गारंटी का असर भी दिखा है। इसके अलावा मंत्री बनने के बाद उनका लोगों से सीधा संपर्क टूट गया था। अपने हलके तक ही रह गए सीमित आप की तरफ से तेज तर्रार मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल को अमृतसर से मैदान में उतारा गया था। लेकिन यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। जबकि उनकी चुनावी कैंपेन का धार देने खुद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल पहुंचे थे। इस हलके में हार की वजह धालीवाल का प्रभाव अपने एरिया तक सीमित था। कई हलकों के विधायक ज्यादा एक्टिव नहीं थे। नशा और बॉर्डर का इश्यू बढ़ा है। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। कुछ नेता पार्टी से जुड़े उससे पार्टी का वोट शेयर बढ़ा है। जिस सीट से विधायक बने, वहां ही हार गए मंत्री गुमरीत सिंह खुड़ियां को आप ने बठिंडा लोकसभा हलके से उम्मीदवार बनाया था। लेकिन जिस उम्मीद के साथ उन्हें पार्टी ने मैदान में उतारा था। उस हिसाब से रिजल्ट नहीं आए। हालांकि इस सीट पर सीएम ने पूरी ताकत लगाई। लगातार दो से तीन वह वहां रहे थे। लेकिन नतीजा यह रहा कि जिस लंबी सीट से वह पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। उस सीट से उन्हें 23264 मतों से हार मिली है। इसके पीछे किसानों की फसलों काे हुए नुकसान का उचित मुआवजा नहीं मिला इस इलाके में भी उचित तरीके से विकास नहीं हुआ। वहीं, सरकार की गारंटियां पूरी न होने का असर भी दिखा। ढाई साल में ही सत्ता विरोधी लहर दिखी। पंथक मुद्दे पड़ गए भारी खडूर साहिब में लोकसभा हलके में आप के परिवहन मंत्री लालजीत सिंह भुल्लर चुनावी मैदान में थे। यहां पर पर पार्टी तीसरे नंबर पर रही। हलके में पार्टी की हार की वजह है कि पार्टी के उम्मीदवारों को विधायकों का साथ नहीं मिला। वहीं, पंथक मुद्दे भी भारी रहे हैं। ढाई साल में पार्टी इन मुद्दों पर कुछ नहीं कर पाई। जबकि लोगों ने बड़े विश्वास से इस पार्टी को मौका दिया था। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। जहां दूसरी पार्टियों से आए नेता मैदान में उतारे गए फतेहगढ़ साहिब में जीपी पिछड़े भले ही आप प्रचंड बहुमत से पंजाब की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन पार्टी के पास चेहरों की की कमी थी। दूसरी लाइन का कोई नेता तैयार नहीं हुआ है। ऐसे में चुनाव घोषित होने पर दूसरी पार्टियों से चेहरे लाकर उम्मीदवार बनाए गए है। फतेहगढ़ साहिब में कांग्रेस के बस्सी पठाना से पूर्व विधायक रहे गुरप्रीत सिंह जीपी को उतारा था। लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़। उन्हें 297439 वोट मिले, जबकि वहां से 331326 वोट लेकर कांग्रेस के अमर सिंह विजयी रहे। यहां पार्टी के अंदर मनमुटाव व कांग्रेस की एकजुटता की कमी रही है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी की रैली का फायदा मिला। जालंधर में पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंची इसी तरह जालंधर से आप के उम्मीदवार व पूर्व सांसद भाजपा में शामिल हो गए तो उन्होंने शिरोमणि अकाली दल के नेता पवन कुमार टीनू को जालंधर से उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। वह वहां पर तीसरे नंबर पर रहे है। उनके लिए सीएम भगवंत मान और आप सुप्रीमों ने प्रोग्राम किए थे। होशियारपुर में मिली जीत होशियारपुर में आप की तरफ से कांग्रेस के विधायक राज कुमार चब्बेवाल को चुनावी मैदान में उतारा गया। वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे है। वह इलाके में बड़े दलित नेताओं में गिने जाते है। उन्होंने 302402 वोट हासिल किए हैं। चुनौतियां सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के लिए अब पांच बड़ी चुनौतियां है। जिनका उन्हें सामना करना पडे़गा। हालांकि पार्टी का थिंक टैंक भी इससे निपटने की रणनीति बनाने में जुट गया है। आइए जानते है इन चुनौतियों को पंचायत चुनाव पंजाब में जनवरी में 13 हजार पंचायतों का कार्यकाल पूरा हाे चुका है। इस समय अफसरों को ही पंचायतों का प्रबंधकीय अफसर लगाया गया है। ऐसे में यह चुनाव सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि पार्टी को केवल 34 हलकों में लीड मिली है। पांच नगर निगमों के चुनाव पांच नगर निगमों के चुनाव भी अब सरकार को करवाने होंगे। यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा है। जनवरी 2023 से पांच नगर निगमों का कार्यकाल संपन्न है। वहीं, इस लोकसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी के सामने नई स्थिति पैदा कर दी है। क्योंकि सभी शहरी एरिया में भाजपा में आगे रही है। जिन नगर निगमों के चुनाव होने है। उनमें लुधियाना, जालंधर, फगबाड़ा, अमृतसर और पटियाला शामिल है। पांच विधानसभा सीटों पर उप चुनाव पंजाब की 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उनके काम तक नहीं हुए। वह हलकों में अपने स्तर पर कुछ नहीं करवा सकते हैं। पार्टी के वालंटियरों से तालमेल नहीं रखा गया। इस वजह से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। इसके अलावा कुछ नेता बिल्कुल भी सक्रिय नहीं है। वहीं, चुनावी गारंटियां पूरी न करने से भी पार्टी काे नुकसान हुआ है। उनका मानना है कि स्थिति यही रही तो आगे भी नुकसान उठाना पडे़गा। पंजाब | दैनिक भास्कर
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पंजाब की लोहा इंडस्ट्री 5 दिन रहेगी बंद:प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आदेशों खिलाफ हड़ताल, पीएनजी पर इंडस्ट्री चलाने का विरोध फतेहगढ़ साहिब की मंडी गोबिंदगढ़ की लोहा इंडस्ट्री को एशिया की सबसे बड़ी इंडस्ट्री माना जाता है। यह इंडस्ट्री 11 से लेकर 15 दिसंबर तक बंद रहेगी। उद्योगपतियों ने अपनी यूनियन के बैनर तले 5 दिनों की हड़ताल की है। यह हड़ताल पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के आदेशों खिलाफ की और इन आदेशों को नादरशाही फरमान बताया जा रहा है। इंडस्ट्री को पीएनजी (पाइप्ड नेचुरल गैस) पर चलाने को लेकर एनजीटी में 17 दिसंबर की तारीख से ठीक पहले यह हड़ताल कर दी गई है। फरमान थोप रहा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड लोहानगरी के उद्योगपति जगमोहन डाटा ने कहा कि पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड उनके ऊपर फरमान थोप रहा है। कुछ समय पहले पंजाब में इंडस्ट्री को कोयले की बजाय पीएनजी पर चलाने का आदेश जारी हुआ तो मंडी गोबिंदगढ़ में हर यूनिट में 1 से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च करके पीएनजी पर इसे शिफ्ट किया गया। लेकिन पीएनजी पर चलाने के बावजूद इलाके का एयर क्वालिटी इंडेक्स ज्यादा आने लगा। इसके बाद उनकी मांग पर सरकार ने उन्हें 1 साल का समय और दिया। इस दौरान कोयले पर इंडस्ट्री चलाने के बावजूद एयर क्वालिटी इंडेक्स ठीक आ रहा है। इंडस्ट्री से उतना प्रदूषण नहीं है जितना कि अन्य तरीकों से हो रहा है। उन तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। कंपनी मनमानी से रेट तय कर रही जगमोहन डाटा ने कहा कि जिस समय पीएनजी यूनिट लगाई गई, तभी से एक ही कंपनी को इसका ठेका दे रखा है। यह कंपनी गैस के मनमाने रेट तय कर रही है। पहले 22 रुपए से शुरूआत की गई। आज 56 रुपए प्रति एससीएम रेट हो गया है। कोयले पर इंडस्ट्री कम बजट में चल रही है और प्रदूषण भी कम हो रहा है। इसके बावजूद उन पर जबरदस्ती फैसला थोपकर पीएनजी पर इंडस्ट्री चलवाना ठीक नहीं है। इसके विरोध में हड़ताल की गई है। जगमोहन ने कहा कि जब लोहा इंडस्ट्री को पीएनजी पर चलाने की बात हुई थी तो उन्होंने शुरू से मांग रखी थी कि गैस कीमतों को कंट्रोल करने के लिए रेगुलेटरी बनाई जाए। लेकिन गैस कीमतों पर कोई कंट्रोल नहीं है। कंपनी मनमानी से रेट बढ़ा रही है। अब 56 रुपए रेट हो गया है। जब तक गैस की कीमतों पर कोई कंट्रोल नहीं किया जाता तब तक इंडस्ट्री सरवाइव नहीं कर सकती। 250 मिलें रहेंगी बंद न्ना और इससे सटे मंडी गोबिंदगढ़ में ढाई सौ के करीब मिलें हैं। इस हड़ताल के चलते सभी मिलें बंद रहेंगी। वहीं आसपास के इलाके के हजारों लोगों का रोजगार इस इंडस्ट्री से जुड़ा है। सीधे तौर पर 15 हजार के करीब लोगों का काम 5 दिन ठप रहेगा। वहीं असीधे तौर पर देखें तो 5 से 8 हजार लोगों के काम पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। एक मिल में काम करने वाले मनिंदर सिंह ने कहा कि काम बंद होने से उन पर असर पड़ेगा। 5 दिन की सेलरी नहीं मिलेगी। जो रोज की रोज कमाकर खाने वाले हैं, उनके लिए परिवारों का गुजारा बहुत मुश्किल होगा। सरकार को इसका हल निकालना चाहिए।
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