तरनतारन के अधीन पड़ते मियांविंड के गांव जवंदपुर निवासी 26 वर्षीय सुखजीत सिंह सुक्खा का चयन जुलाई में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली भारतीय हॉकी टीम में हुआ है। सूचना पहुंचने के बाद से गांव में खुशी की लहर है। फिलहाल सुखजीत सिंह बेंगलुरु में चल रहे भारतीय हॉकी टीम के कैंप में है। गांववासियों ने बताया कि सुखजीत सिंह का जन्म गांव जवंदपुर में हुआ है। सुखजीत सिंह के पिता अजीत सिंह पंजाब पुलिस में हैं। उनके पिता खुद हॉकी खिलाड़ी रहे हैं, जो 25 साल पहले पंजाब पुलिस में भर्ती हुए थे। जिसके बाद परिवार को जालंधर जाना पड़ा। गांव जवंदपुर निवासी सुखजोत के चाचा भीता सिंह ने बताया कि अजीत को हॉकी खेलने का शौक था। जिसे उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर पूरा किया है, बचपन से सुखजीत पर की गई मेहनत आज पूरी हुई है। 2006 में स्टेट एकेडमी में शामिल हुए चाचा भीता सिंह ने बताया कि सुखजीत की ट्रेनिंग 8 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। 2006 में उसे मोहाली में स्थापित राज्य सरकार द्वारा संचालित हॉकी एकेडमी में भर्ती कराया गया। सुखजीत का प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ा। चाचा भीता सिंह के दो बेटे हैं और दोनों ही हॉकी खिलाड़ी हैं। एक एसजीपीसी द्वारा संचालित एकेडमी का हिस्सा है, जबकि दूसरा मोहाली की एकेडमी में खेलता है। सुखजीत की मेहनत सफल हुई सुखजीत के चाचा भीता सिंह के अलावा गांव जवंदपुर के सरपंच एसपी सिंह, गांव घसीटपुर निवासी हॉकी कोच बलकार सिंह, मियांविंड के सरपंच दीदार सिंह व क्षेत्र के अन्य लोगों का मानना है कि सुखजीत सिंह द्वारा की गई मेहनत सफल हुई है। जिस तरह से उसने 8 साल की उम्र में हॉकी को अपनाया और कड़ी मेहनत की, आज उसे उसका फल मिला है। फिलहाल सुखजीत बेंगलुरु में आयोजित कैंप में मौजूद हैं। सुखजीत का सपना ओलंपिक तक पहुंचना था। अब अगर हॉकी ने एक बार फिर ओलंपिक में कमाल कर दिया तो पूरे गांव का नाम रोशन होगा। सुखजीत के व्हीलचेयर से मैदान तक की कहानी 8 साल की उम्र से हॉकी टीम में पहुंचने का सपना देखने वाले सुखजीत के लिए 2018 से पहले संभव नहीं था। ये वे दौर था, जब सुखजीत व्हीलचेयर पर थे। परिवार व सुखजीत उस समय हॉकी करियर के खत्म होने का शोक मना रहे थे। सभी को यही लगता था कि सुखजीत का करियर अब खत्म है। लोग कहते हैं कि चमत्कार होते हैं, सुखजीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। समय 2018 का है। अजीत पहली बार भारतीय हॉकी टीम के लिए चुना गया था। उम्र मात्र 21 साल थी। तीन चार दिन के बाद ऐसी घटना घटी कि सुखजीत व्हीलचेयर पर आ गए। प्रो लीग के दौरान भारतीय टीम बेल्जियम में थी। नए माहौल के बीच सुखजीत बीमार हो गया। सुखजीत ने यहां अपने आप को नहीं देखा और अपनी प्रैक्टिस को जारी रखा। इसी बीच सुखजीत के पीठ में दर्द होना शुरू हो गया। सुखजीत ने इससे भी निपटने की कोशिश की। सुखजीत ने विदेश में एक फिजियो से मदद मांगी। फिजियो ऑस्ट्रेलिया से थे। इसी दौरान फिजियो ने एक नस दबा दी और समस्या बहुत गंभीर हो गई। सुखजीत का दाहिना हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया। व्हील-चेयर पर भारत लौटा तो लगा करियर खत्म एक इंटरव्यू में सुखजीत ने बताया था कि वे व्हील चेयर पर भारत लौटे थे। पिता अजीत सिंह ने उन्हें उठाया और कार में बैठाया। लगा, करियर खत्म हो गया। वापस आते ही संदेश भी मिल गया कि अब वे भारतीय हॉकी कैंप का हिस्सा नहीं रहे। हालत ऐसे थे कि खुद बिस्तर से उठ नहीं सकते थे, वॉशरूम नहीं जा सकते थे और खाना नहीं खा सकते थे। अजीत हॉकी में इतने अच्छे थे कि उन्हें पंजाब पुलिस में स्पोर्ट्स कोटा की नौकरी मिल गई, लेकिन वे इतने अच्छे नहीं थे कि राष्ट्रीय टीम में जगह बना सकें। सुखजीत कहते हैं, “इसलिए उन्होंने मुझे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की।” पिता ने प्रेरित कर किया पैरों पर खड़ा खेलने की उम्मीद छोड़ दी गई। लेकिन पिता अजीत के लिए हार मानना कोई विकल्प नहीं था। पिता अजीत सिंह ने सुखजीत को दौबारा खड़ा करने के लिए कोशिशें शुरू कर दी। उसकी मालिश करते, डॉक्टर के पास ले जाते। 6 महीने की मेहनत रंग लाई। सुखजीत अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अब लक्ष्य दौबारा भारतीय टीम में पहुंचना था। वह फिर से हॉकी स्टिक पकड़ सकता था। शुरुआती सालों में अजीत ने उसे जो मजबूत बुनियादी बातें सिखाई थीं, वे सुखजीत के काम आईं क्योंकि उसे एहसास हुआ कि उसने अपनी मांसपेशियों की याददाश्त नहीं खोई है। 2019 के अंत तक, वह घरेलू हॉकी में वापस आ गया। इसी बीच कोविड का दौर शुरू हो गया। लेकिन सुखजीत ने हिम्मत नहीं हारी। इस दौरान उसने अपनी मांसपेशियों की ताकत को वापस पाने की कोशिश की। आज उसकी मेहनत रंग लाई है। तरनतारन के अधीन पड़ते मियांविंड के गांव जवंदपुर निवासी 26 वर्षीय सुखजीत सिंह सुक्खा का चयन जुलाई में पेरिस में होने वाले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाली भारतीय हॉकी टीम में हुआ है। सूचना पहुंचने के बाद से गांव में खुशी की लहर है। फिलहाल सुखजीत सिंह बेंगलुरु में चल रहे भारतीय हॉकी टीम के कैंप में है। गांववासियों ने बताया कि सुखजीत सिंह का जन्म गांव जवंदपुर में हुआ है। सुखजीत सिंह के पिता अजीत सिंह पंजाब पुलिस में हैं। उनके पिता खुद हॉकी खिलाड़ी रहे हैं, जो 25 साल पहले पंजाब पुलिस में भर्ती हुए थे। जिसके बाद परिवार को जालंधर जाना पड़ा। गांव जवंदपुर निवासी सुखजोत के चाचा भीता सिंह ने बताया कि अजीत को हॉकी खेलने का शौक था। जिसे उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर पूरा किया है, बचपन से सुखजीत पर की गई मेहनत आज पूरी हुई है। 2006 में स्टेट एकेडमी में शामिल हुए चाचा भीता सिंह ने बताया कि सुखजीत की ट्रेनिंग 8 साल की उम्र में ही शुरू हो गई थी। 2006 में उसे मोहाली में स्थापित राज्य सरकार द्वारा संचालित हॉकी एकेडमी में भर्ती कराया गया। सुखजीत का प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ा। चाचा भीता सिंह के दो बेटे हैं और दोनों ही हॉकी खिलाड़ी हैं। एक एसजीपीसी द्वारा संचालित एकेडमी का हिस्सा है, जबकि दूसरा मोहाली की एकेडमी में खेलता है। सुखजीत की मेहनत सफल हुई सुखजीत के चाचा भीता सिंह के अलावा गांव जवंदपुर के सरपंच एसपी सिंह, गांव घसीटपुर निवासी हॉकी कोच बलकार सिंह, मियांविंड के सरपंच दीदार सिंह व क्षेत्र के अन्य लोगों का मानना है कि सुखजीत सिंह द्वारा की गई मेहनत सफल हुई है। जिस तरह से उसने 8 साल की उम्र में हॉकी को अपनाया और कड़ी मेहनत की, आज उसे उसका फल मिला है। फिलहाल सुखजीत बेंगलुरु में आयोजित कैंप में मौजूद हैं। सुखजीत का सपना ओलंपिक तक पहुंचना था। अब अगर हॉकी ने एक बार फिर ओलंपिक में कमाल कर दिया तो पूरे गांव का नाम रोशन होगा। सुखजीत के व्हीलचेयर से मैदान तक की कहानी 8 साल की उम्र से हॉकी टीम में पहुंचने का सपना देखने वाले सुखजीत के लिए 2018 से पहले संभव नहीं था। ये वे दौर था, जब सुखजीत व्हीलचेयर पर थे। परिवार व सुखजीत उस समय हॉकी करियर के खत्म होने का शोक मना रहे थे। सभी को यही लगता था कि सुखजीत का करियर अब खत्म है। लोग कहते हैं कि चमत्कार होते हैं, सुखजीत के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। समय 2018 का है। अजीत पहली बार भारतीय हॉकी टीम के लिए चुना गया था। उम्र मात्र 21 साल थी। तीन चार दिन के बाद ऐसी घटना घटी कि सुखजीत व्हीलचेयर पर आ गए। प्रो लीग के दौरान भारतीय टीम बेल्जियम में थी। नए माहौल के बीच सुखजीत बीमार हो गया। सुखजीत ने यहां अपने आप को नहीं देखा और अपनी प्रैक्टिस को जारी रखा। इसी बीच सुखजीत के पीठ में दर्द होना शुरू हो गया। सुखजीत ने इससे भी निपटने की कोशिश की। सुखजीत ने विदेश में एक फिजियो से मदद मांगी। फिजियो ऑस्ट्रेलिया से थे। इसी दौरान फिजियो ने एक नस दबा दी और समस्या बहुत गंभीर हो गई। सुखजीत का दाहिना हिस्सा लकवा ग्रस्त हो गया। व्हील-चेयर पर भारत लौटा तो लगा करियर खत्म एक इंटरव्यू में सुखजीत ने बताया था कि वे व्हील चेयर पर भारत लौटे थे। पिता अजीत सिंह ने उन्हें उठाया और कार में बैठाया। लगा, करियर खत्म हो गया। वापस आते ही संदेश भी मिल गया कि अब वे भारतीय हॉकी कैंप का हिस्सा नहीं रहे। हालत ऐसे थे कि खुद बिस्तर से उठ नहीं सकते थे, वॉशरूम नहीं जा सकते थे और खाना नहीं खा सकते थे। अजीत हॉकी में इतने अच्छे थे कि उन्हें पंजाब पुलिस में स्पोर्ट्स कोटा की नौकरी मिल गई, लेकिन वे इतने अच्छे नहीं थे कि राष्ट्रीय टीम में जगह बना सकें। सुखजीत कहते हैं, “इसलिए उन्होंने मुझे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाने के लिए अपनी पूरी कोशिश की।” पिता ने प्रेरित कर किया पैरों पर खड़ा खेलने की उम्मीद छोड़ दी गई। लेकिन पिता अजीत के लिए हार मानना कोई विकल्प नहीं था। पिता अजीत सिंह ने सुखजीत को दौबारा खड़ा करने के लिए कोशिशें शुरू कर दी। उसकी मालिश करते, डॉक्टर के पास ले जाते। 6 महीने की मेहनत रंग लाई। सुखजीत अपने पैरों पर खड़ा हो गया। अब लक्ष्य दौबारा भारतीय टीम में पहुंचना था। वह फिर से हॉकी स्टिक पकड़ सकता था। शुरुआती सालों में अजीत ने उसे जो मजबूत बुनियादी बातें सिखाई थीं, वे सुखजीत के काम आईं क्योंकि उसे एहसास हुआ कि उसने अपनी मांसपेशियों की याददाश्त नहीं खोई है। 2019 के अंत तक, वह घरेलू हॉकी में वापस आ गया। इसी बीच कोविड का दौर शुरू हो गया। लेकिन सुखजीत ने हिम्मत नहीं हारी। इस दौरान उसने अपनी मांसपेशियों की ताकत को वापस पाने की कोशिश की। आज उसकी मेहनत रंग लाई है। पंजाब | दैनिक भास्कर
Related Posts
पंजाब में मतदान बढ़ाने के लिए नई स्ट्रेटजी:पिछले चुनाव से 10 फीसदी ज्यादा वोटिंग होने पर बीएलओ को मिलेंगे 5 हजार
पंजाब में मतदान बढ़ाने के लिए नई स्ट्रेटजी:पिछले चुनाव से 10 फीसदी ज्यादा वोटिंग होने पर बीएलओ को मिलेंगे 5 हजार पंजाब में मतदान का ग्राफ बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग ने नई स्ट्रेटजी बनाई है। जिन बूथों पर पिछले चुनाव से दस फीसदी अधिक मतदान होता है या फिर जिन बूथों पर 75 फीसदी या इससे अधिक मतदान का ग्राफ रहेगा। वहां के बीएलओं को पांच हजार नकद इनाम व प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। पंजाब के मुख्य निर्वाचन अधिकारी सिबिन सी ने यह ऐलान किया है। वह इस दौरान इसी मामले को लेकर अधिकारियों से मीटिंग कर रहे थे। यह जिम्मेदारी बीएलओ को निभानी होगी पंजाब में एक जून को मतदान तय है। लेकिन उस समय गर्मी अपने चरम पर होगी। ऐसे में मतदान का ग्राफ कैसे बढ़ेगा, इस चीज को लेकर आयोग भी गंभीर है। कई तरह के प्रोग्राम बनाए जा रहे है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने बीएलओ को सीधे लोगों से जुड़ने की नसीहत देते हुए कहा है कि एक तो वोटर स्लिप और वोटिंग न्योता पत्र घर-घर जाकर खुद बांटें । यह जिम्मेदारी किसी और को न सौंपी जाए। इस मौके पर उन्होंने बीएलओ और स्वीप टीमों की अब तक की शानदार कारगुजारी की सराहना की । पोलिंग बूथों पर यह काम भी होगा मीटिंग के दौरान अतिरिक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी हरीश नैयर ने कहा कि जिला स्वीप और सोशल मीडिया टीमें पोलिंग स्टेशनों और मॉडल बूथों पर मुहैया करवाई गई सहूलियतों संबंधी और महिलाओं और दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा चलाए जाने वाले बूथों और अन्य पहलकदमियों की फोटोग्राफी/ वीडियोग्राफी करें। उन्होंने यह भी कहा कि वोटरों के अनुभव और प्रतिक्रियाएं भी रिकॉर्ड की जाए।
मुक्तसर में पुलिस ने लड़की को किया रेस्क्यू:परिजनों ने लोहे की जंजीरों से बांधकर रखा, नशे की आदी है पीड़िता
मुक्तसर में पुलिस ने लड़की को किया रेस्क्यू:परिजनों ने लोहे की जंजीरों से बांधकर रखा, नशे की आदी है पीड़िता पंजाब के मुक्तसर जिले में पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए मंगलवार को नशे की आदी लड़की को रेस्क्यू कर पुलिस ने अस्पताल में भर्ती करवाया है। नशे की लत के कारण परिजनों ने लड़की को लोहे की जंजीरों से घर में बांधकर रखा हुआ था। इस मामले की जानकारी देते हुए एसपी डी मनमीत सिंह ने बताया कि टिब्बी साहिब रोड़ मुक्तसर में एक लड़की जोकि नशे करने की आदी थी। उसे उसके घर वालों द्वारा बंदी बनाकर लोहे की जंजीरों में बांधकर रखा हुआ था। जब एसएसपी भागीरथ सिंह मीना को इस बारे सूचना मिली। जिसके बाद उनके द्वारा तुरंत ही उन्हें वहां भेजकर लड़की को उसके घर में लोहे की जंजीरों को खोलकर रेस्क्यू करवाकर लड़की को सिविल अस्पताल में उपचार करवाने के लिए भर्ती करवा दिया है। एसपी डी ने बताया कि करीब डेढ़ साल से उक्त लड़की नशे की आदी है जिसके चलते इसके घर वालों ने इसे जंजीरों से बांध कर रखा हुआ था। उन्होंने लोगों से अपील की कि यदि कोई ऐसे नशे का आदी है तो पुलिस को सूचना दी जाए, पुलिस उसका उपचार करवाएगी।
गिद्दड़बाहा उपचुनाव पर मनप्रीत की डिंपी ढिल्लों को नसीहत:बोले- जीत को इनाम मत समझ लेना, लोगों ने राजा वडिंग का अहंकार तोड़ा
गिद्दड़बाहा उपचुनाव पर मनप्रीत की डिंपी ढिल्लों को नसीहत:बोले- जीत को इनाम मत समझ लेना, लोगों ने राजा वडिंग का अहंकार तोड़ा गिद्दड़बाहा उपचुनाव में मनप्रीत बादल ने अपनी हार स्वीकार करते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो डाली है। तकरीबन साढ़े तीन मिनट की वीडियो में उन्होंने गिद्दड़बाहा के लोगों का उन्हें वोट देने के लिए धन्यवाद किया। इतना ही नहीं, उन्होंने डिंपी ढिल्लों को जीत की शुभकामनाएं भी दी हैं। इसके साथ ही अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को अहंकारी बताते हुए तंज भी कसे हैं। वीडियो के माध्यम से मनप्रीत ने कहा कि दो महीने का समय गिद्दड़बाहा के चुनावी मैदान में उन्हें पुराने संबंधों को फिर से मजबूत करने के लिए पर्याप्त नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि उनका मकसद गिद्दड़बाहा की जनता से जीवनभर जुड़ा रहना है और 2027 में भाजपा की सरकार बनाने का संकल्प लिया। मनप्रीत ने इस चुनावी मुकाबले में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) दोनों से कड़ी टक्कर का सामना किया। उन्होंने कांग्रेस की अमृता वड़िंग और AAP के हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों को भी बधाई दी और उम्मीद जताई कि डिंपी अपने क्षेत्र के लोगों से किए वादों को पूरा करेंगे। राजा वड़िंग पर साधा निशाना मनप्रीत ने विशेष रूप से राजा वड़िंग पर निशाना साधा, जो गिद्दड़बाहा के विधायक रहे थे और उनकी पत्नी अमृता इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार थीं। मनप्रीत का आरोप था कि वड़िंग ने बयानों के जरिए अपनी राजनीति चमकाई, लेकिन गिद्दड़बाहा के लोगों के लिए कुछ ठोस काम नहीं किया। उन्होंने कहा कि वड़िंग ने केवल अपनी संपत्ति बनाई और कोई वास्तविक योगदान नहीं दिया। पढ़ें मनप्रीत बादल के बोल- मनप्रीत बादल बोले- जिन्होंने मेरा साथ दिया, मैं उनका धन्यवाद करता हूं। नतीजे हमारे सोच के अनुसार नहीं थे। जीत हार मर्द के गहने होते हैं। परमात्मा ने जब भी जीत या इज्जत दी है, तो सिर झुकता गया है। जब भी हार हुई है, तो मैं सिर ऊंचा करता हूं और अपनी कमियों की तलाश करता हूं। मैं अगले दो महीनों में मनप्रीत की कमियों नाकाबियों को दूर करूंगा। मेरे सबसे पहले बोल डिंपी ढिल्लों के लिए हैं और उन्हें बधाई व शुभकामनाएं देता हूं। 70 हजार व्यक्तियों का फैसला गलत नहीं हो सकता। मैं अपने छोटे भाई को नसीहत देना चाहूंगा कि इस जीत को इनाम मत समझ लेना। इसे परीक्षा समझे और परमात्मा आपको इस परीक्षा में पास करें। जो वादे गिद्दड़बाहा के साथ किए हैं, ढाई साल में 28 साल का रिकॉर्ड तोड़ना है।
वड़िंग जितनी दौलत हर गरीब के पास हो- मनप्रीत मनप्रीत बादल ने कहा कि राजावड़िंग की दौलत उसे हार से नहीं बचा सकी। जब से राजा वड़िंग एमएलए बने, उनके दो ही बयान हलके में गूंज रहे हैं। एक मैं गरीब परिवार से हूं और दूसरा मैं यतीम हूं। काश जितनी दौलत राजावड़िंग के पास है, वे पंजाब के हर गरीब के पास हो। उन्होंने हमेशा बादल परिवार की सियासत की निंदा की है। लेकिन जब अपनी टिकट की बारी आई तो अपने ही घर में रखनी मुनासिब समझी। दूसरे की विरासत हमेशा गलत लगती है, जबकि अपनी विरासत सही लगती है। लोगों ने उन्हें कहा था कि इस बार वे उन्हें वोट नहीं डाल सकते, लेकिन 2027 में उन्हें ही वोट डालेंगे क्योंकि हमने राजावड़िंग के अहंकार को तोड़ना है, और उनके गर्दन के किल्ले को तोड़ना है। मैंने चुनावों के दौरान भी कहा था और अब भी कहता हूं कि मनप्रीत बादल की जितनी भी बकाया उम्र है, वे गिद्दड़बाहा के हलके की सेवा में प्रयोग करूंगा। जिन्होंने उन्हें वोट नहीं डाली, वे भी उनके दफ्तर में आएं, उन्हें कोई भी काम हैं कहें। उनके बजुर्गों ने ही उन्हें पहले भी जताया है। ये सोच कर उनके ऑफिस में आना बंद ना करना कि इस बार मनप्रीत को वोट नहीं डाली। राजा वड़िंग अकाली दल पर निकाल चुके गुस्सा वहीं, बीते दिन अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने अपनी पत्नी अमृता वड़िंग की हार का गुस्सा अकाली दल के चुनाव ना लड़ने पर निकाला था। उन्होंने कहा था कि शिअद के समर्थकों ने आम आदमी पार्टी प्रत्याशियों का समर्थन किया था। हालांकि कांग्रेस का वोट बैंक पक्का है। 2022 में गिद्दड़बाहा और डेरा बाबा नानक में कांग्रेस को जितने वोट पड़े थे वो अब भी कायम हैं। शिअद के समर्थकों के कारण आप को जीत मिली है।