कबीर के प्राकट्य महोत्सव का बुधवार को आखिरी दिन है। काशी के लहरतारा स्थित उनके जन्मोत्सव में 20 राज्यों और यूपी के 40 जिलों से करीब 3 लाख अनुयायी पहुंचे हैं। ये सफेद कपड़े और गले में तुलसी की माला पहने हैं। जन्मस्थली कबीर बाग आश्रम में संतों की टोली कबीर धुन पर जमकर थिरकी, सत्यनाम की पताका लहराई। कबीर पंथी की पहचान कैसे करें? पूजा की क्या पद्धति है? इनकी बोल-भाषा कैसी होती है? कितने अनुयायी हैं? 10 स्लाइड में जानिए… फिरोजाबाद की आशा ने कहा- साहब ही हमारे लिए सब कुछ
फिरोजाबाद से काशी पहुंची आशा कहती हैं- साहब ही हमारे लिए सब कुछ हैं। यह कहकर वह भावुक होकर रोने लगीं। उन्होंने कहा कि हम किसी देवी-देवता की पूजा नहीं करते, न ही कोई उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए साहब का दिया हुआ उपदेश ही काफी है। हम जीव-जंतुओं और मनुष्यों की सेवा करते हैं। पूजा-पाठ और कोई चढ़ावा नहीं, साहब बंदगी बोलते हैं
राजस्थान से 40 महिलाओं के साथ ग्रुप में आई पूर्णा हार्ले ने बताया कि हमारे यहां पूजा पद्धति कोई विशेष नहीं होती। हम किसी भी त्योहार को धूमधाम से नहीं मानते। कबीर पंथ में पूर्णिमा को ही पूजा पाठ की जाती है। वही हमारे लिए त्योहार होता है। जेष्ठ महीने में हमारे साहब का जन्मदिन होता है, उसे हम धूमधाम से मनाते हैं। कबीर पंथ के लोग अधिकतर नारियल और सफेद धागा ही अपने साहब के पास लेकर जाते हैं। पंथ में दान-दक्षिणा नहीं चढ़ाया जाता। उनके स्मारक में एक कबीरदास की मूर्ति है, बस वहीं पर माथा टेका जाता है। ————————— यह खबर भी पढ़ें : कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’, प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्टी-पानी की करते हैं पूजा आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। पढ़िए पूरी खबर… कबीर के प्राकट्य महोत्सव का बुधवार को आखिरी दिन है। काशी के लहरतारा स्थित उनके जन्मोत्सव में 20 राज्यों और यूपी के 40 जिलों से करीब 3 लाख अनुयायी पहुंचे हैं। ये सफेद कपड़े और गले में तुलसी की माला पहने हैं। जन्मस्थली कबीर बाग आश्रम में संतों की टोली कबीर धुन पर जमकर थिरकी, सत्यनाम की पताका लहराई। कबीर पंथी की पहचान कैसे करें? पूजा की क्या पद्धति है? इनकी बोल-भाषा कैसी होती है? कितने अनुयायी हैं? 10 स्लाइड में जानिए… फिरोजाबाद की आशा ने कहा- साहब ही हमारे लिए सब कुछ
फिरोजाबाद से काशी पहुंची आशा कहती हैं- साहब ही हमारे लिए सब कुछ हैं। यह कहकर वह भावुक होकर रोने लगीं। उन्होंने कहा कि हम किसी देवी-देवता की पूजा नहीं करते, न ही कोई उत्सव मनाते हैं। हमारे लिए साहब का दिया हुआ उपदेश ही काफी है। हम जीव-जंतुओं और मनुष्यों की सेवा करते हैं। पूजा-पाठ और कोई चढ़ावा नहीं, साहब बंदगी बोलते हैं
राजस्थान से 40 महिलाओं के साथ ग्रुप में आई पूर्णा हार्ले ने बताया कि हमारे यहां पूजा पद्धति कोई विशेष नहीं होती। हम किसी भी त्योहार को धूमधाम से नहीं मानते। कबीर पंथ में पूर्णिमा को ही पूजा पाठ की जाती है। वही हमारे लिए त्योहार होता है। जेष्ठ महीने में हमारे साहब का जन्मदिन होता है, उसे हम धूमधाम से मनाते हैं। कबीर पंथ के लोग अधिकतर नारियल और सफेद धागा ही अपने साहब के पास लेकर जाते हैं। पंथ में दान-दक्षिणा नहीं चढ़ाया जाता। उनके स्मारक में एक कबीरदास की मूर्ति है, बस वहीं पर माथा टेका जाता है। ————————— यह खबर भी पढ़ें : कबीरपंथी 5 वक्त की करते हैं ‘बंदगी’, प्रसाद में मिलता है धागा, काशी में कबीरचौरा के कुआं की मिट्टी-पानी की करते हैं पूजा आज हम लहरतारा में मौजूद हैं, ये वही जगह है जहां 1398 ई. में कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। यहां 20 देशों से 3 लाख लोग पहुंच रहे हैं। पहले जो प्राकट्य स्थल था, आज वहां संत कबीरदास का स्मारक बनाया जा चुका है। अंदर कबीर की मूर्ति और सामने ज्योति जल रही है। पढ़िए पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
तुलसी की कंठी और सफेद कपड़े पहनते हैं कबीरपंथी:सुबह-रात में भोजन के बाद बंदगी करते हैं, किसी देवी-देवता की पूजा नहीं करते
