दादरी का किसान बागवानी से कर रहा दोहरी कमाई:पौधों के बीच की दूरी बढ़ाकर उगा रहा सब्जियां; परंपरागत की बजाय जैविक खेती अपनाई

दादरी का किसान बागवानी से कर रहा दोहरी कमाई:पौधों के बीच की दूरी बढ़ाकर उगा रहा सब्जियां; परंपरागत की बजाय जैविक खेती अपनाई

चरखी दादरी जिले का किसान बागवानी के साथ-साथ सब्जी भी उगा रहा है। जिससे किसान एक साथ दोहरी कमाई कर रहा है। किसान ने जैविक खेती को ही अपनाया है और फर्टीलाइजर व कीटनाशक से दूरी बनाई है। उन्होंने दूसरे किसानों से भी जहरमुक्त खेती करने की अपील की है। 9-10 साल से कर रहे खेती
बता दें कि चरखी दादरी जिला कृषि बाहुल्य क्षेत्र है और यहां रबी सीजन में गेहूं-सरसों व खरीफ सीजन में कपास बाजरा मुख्य फसल हैं। लेकिन कुछ किसान परंपरागत खेती को छोड़ बागवानी को अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी कड़ी में गांव घसौला निवासी किसान ज्ञान सिंह नींबू, किन्नू, मौसंबी व अमरूद का बाग लगाया है और बीते करीब 9-10 साल से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरे किसानों से हटकर कर रहे बागवानी
चरखी दादरी जिले में कई किसान परंपरागत खेती को छोड़ अपने-अपने ढंग से बागवानी कर रहे हैं। लेकिन ज्ञान सिंह का इन सबसे हटकर बागवानी कर रहे हैं। उन्होंने बाग लगाते समय लाइन टू लाइन और पौधे से पौधे की दूरी दूसरे किसानों से थोड़ी अधिक रखी है। उन्होंने लाइन से लाइन की दूरी 20 फीट और पौधों के बीच की दूरी 10 फीट रखी है। जहां वे सीजनल सब्जी जैसे गोभी, टमाटर, मिर्च आदि सब्जियां उगाते हैं। इन सब्जियों से वे बाग में लेबर व दूसरे खर्चे निकाल लेते है और बाग में होने वाला उत्पादन मुनाफा बच जाता है। किसान सब्जी जैसे टमाटर, गोभी, मिर्च, प्याज आदि की पौध भी स्वयं खेत में तैयार कर लेते हैं, जिससे काफी बचत हो जाती है। जहरमुक्त खेती को दे रहे बढ़ावा
ज्ञान सिंह ने बताया कि वे फर्टीलाइजर व कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं। वे अपने खेत में ही गोबर की खाद , जीवामृत घोल तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि जैविक तरीके से तैयार फल व सब्जी का स्वाद अलग ही होता है। उन्होंने दूसरे किसानों से अपील करते हुए कहा कि किसान जहरमुक्त बागवानी अपनाएं इससे शुरूआती एक दो साल में उत्पादन कुछ कम हो सकता है, बाद में कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि इससे आदमी व जमीन दोनों की सेहत ठीक रहेगी। स्वयं मंडी ले जाकर बेचते हैं
किसान ज्ञान सिंह ने बताया कि मंडी भी उनके करीब है, जहां वे फल व सब्जी ले जाकर बेचते हैं। उन्होंने कहा कि बाग को ठेके पर देने की बजाय स्वयं फल-सब्जी तुड़वाकर मंडी बेचते हैं, तो मुनाफा अधिक होता है। ट्रायल के तौर पर लगाए आम-चीकू ज्ञान सिंह ने वर्तमान में करीब साढे तीन एकड़ में ही बाग लगाया है। लेकिन ट्रायल के तौर पर उसने आम व चीकू के पौधे लगा रखा है। यदि इन पौधों में उत्पादन अच्छा होता है, तो वे बाग को और बढ़ाएंगे। जिसके मुनाफा और अच्छा होगा। परंपरागत खेती की बजाय बागवानी आई रास ज्ञान सिंह को परंपरागत की बजाय बागवानी रास आई है। उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती जैसे कपास, बाजरा, गेहूं, सरसों इनको हर सीजन में उगाना पड़ता है। जिससे लागत के साथ-साथ परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है। जबकि बागवानी के लिए एक बार पौधे लगाने के बाद कई साल तक दोबारा पौधे लगाने की आवश्यकता नहीं होती। केवल कटाई-छंटाई कर उत्पादन लेते रहो। चरखी दादरी जिले का किसान बागवानी के साथ-साथ सब्जी भी उगा रहा है। जिससे किसान एक साथ दोहरी कमाई कर रहा है। किसान ने जैविक खेती को ही अपनाया है और फर्टीलाइजर व कीटनाशक से दूरी बनाई है। उन्होंने दूसरे किसानों से भी जहरमुक्त खेती करने की अपील की है। 9-10 साल से कर रहे खेती
बता दें कि चरखी दादरी जिला कृषि बाहुल्य क्षेत्र है और यहां रबी सीजन में गेहूं-सरसों व खरीफ सीजन में कपास बाजरा मुख्य फसल हैं। लेकिन कुछ किसान परंपरागत खेती को छोड़ बागवानी को अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इसी कड़ी में गांव घसौला निवासी किसान ज्ञान सिंह नींबू, किन्नू, मौसंबी व अमरूद का बाग लगाया है और बीते करीब 9-10 साल से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरे किसानों से हटकर कर रहे बागवानी
चरखी दादरी जिले में कई किसान परंपरागत खेती को छोड़ अपने-अपने ढंग से बागवानी कर रहे हैं। लेकिन ज्ञान सिंह का इन सबसे हटकर बागवानी कर रहे हैं। उन्होंने बाग लगाते समय लाइन टू लाइन और पौधे से पौधे की दूरी दूसरे किसानों से थोड़ी अधिक रखी है। उन्होंने लाइन से लाइन की दूरी 20 फीट और पौधों के बीच की दूरी 10 फीट रखी है। जहां वे सीजनल सब्जी जैसे गोभी, टमाटर, मिर्च आदि सब्जियां उगाते हैं। इन सब्जियों से वे बाग में लेबर व दूसरे खर्चे निकाल लेते है और बाग में होने वाला उत्पादन मुनाफा बच जाता है। किसान सब्जी जैसे टमाटर, गोभी, मिर्च, प्याज आदि की पौध भी स्वयं खेत में तैयार कर लेते हैं, जिससे काफी बचत हो जाती है। जहरमुक्त खेती को दे रहे बढ़ावा
ज्ञान सिंह ने बताया कि वे फर्टीलाइजर व कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं। वे अपने खेत में ही गोबर की खाद , जीवामृत घोल तैयार करते हैं। उन्होंने बताया कि जैविक तरीके से तैयार फल व सब्जी का स्वाद अलग ही होता है। उन्होंने दूसरे किसानों से अपील करते हुए कहा कि किसान जहरमुक्त बागवानी अपनाएं इससे शुरूआती एक दो साल में उत्पादन कुछ कम हो सकता है, बाद में कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि इससे आदमी व जमीन दोनों की सेहत ठीक रहेगी। स्वयं मंडी ले जाकर बेचते हैं
किसान ज्ञान सिंह ने बताया कि मंडी भी उनके करीब है, जहां वे फल व सब्जी ले जाकर बेचते हैं। उन्होंने कहा कि बाग को ठेके पर देने की बजाय स्वयं फल-सब्जी तुड़वाकर मंडी बेचते हैं, तो मुनाफा अधिक होता है। ट्रायल के तौर पर लगाए आम-चीकू ज्ञान सिंह ने वर्तमान में करीब साढे तीन एकड़ में ही बाग लगाया है। लेकिन ट्रायल के तौर पर उसने आम व चीकू के पौधे लगा रखा है। यदि इन पौधों में उत्पादन अच्छा होता है, तो वे बाग को और बढ़ाएंगे। जिसके मुनाफा और अच्छा होगा। परंपरागत खेती की बजाय बागवानी आई रास ज्ञान सिंह को परंपरागत की बजाय बागवानी रास आई है। उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती जैसे कपास, बाजरा, गेहूं, सरसों इनको हर सीजन में उगाना पड़ता है। जिससे लागत के साथ-साथ परिश्रम भी अधिक करना पड़ता है। जबकि बागवानी के लिए एक बार पौधे लगाने के बाद कई साल तक दोबारा पौधे लगाने की आवश्यकता नहीं होती। केवल कटाई-छंटाई कर उत्पादन लेते रहो।   हरियाणा | दैनिक भास्कर