‘मैं एक साइकेट्रिस्ट हूं। पहली बार महाकुंभ आई हूं। यह पहला ऐसा आध्यात्मिक मेला है, जो दुनिया में कहीं नहीं लगता। यहां विश्व के सबसे शक्तिशाली गुरु हैं। हम अनोखी आध्यात्मिक ऊर्जा को अपने गुरुओं के जरिए देख रहे हैं।’ यह कहना है इजरा का। वह रूस से आई हैं। इस समय श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े में हैं। महंत सत्यानंद गिरी उर्फ लाली बाबा से दीक्षा ले रही हैं। यह वह अखाड़ा है, जो साधु-संतों के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार करता है। समाधि दिलाता है। इजरा बताती हैं- मेरे फादर इंडियन हैं और मां रशियन। उनकी तरह रूस के कई युवा श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े में हैं। जो हिंदी तो नहीं बोल पाते, लेकिन संस्कृत के जटिल श्लोक उन्हें अच्छे से याद हैं। आखिर इस अखाड़े में ऐसा क्या, जो विदेशियों ने यहां का रुख किया? अखाड़े की परंपरा क्या है? इन सवालों का जवाब जानने दैनिक भास्कर शिविर में पहुंचा। चमक-दमक नहीं, न ही भव्य अखाड़ा
महाकुंभ में लगे लगभग सभी अखाड़ों के पंडाल अपनी भव्यता की वजह से चर्चा में रहे, लेकिन श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े के पंडाल में वैसी भव्यता नहीं है। अखाड़े में चमक-दमक भी नहीं है। हम जब यहां पहुंचे, तब रूस से आईं इजरा के अलावा दो और रशियन शिष्य मौजूद थे। तीनों मंत्रोच्चार करते मिले। सबसे पहले जानते हैं इजरा के मन की बात….
हमने साइकेट्रिस्ट इजरा से उनका परिचय पूछा, वो बताती हैं- मेरा सनातन का कोई नाम नहीं है। जो पासपोर्ट में नाम है, अभी वही मेरी पहचान है। मैं लाइफ को बहुत डार्क और रहस्यमयी फील करती थी। मैंने सर्च किया, मुझे भारत के बारे में पता चला। दशनाम गोदड़ अखाड़े के बारे में पता चला। यहां आने के बाद बहुत अच्छा लगा। सबसे इंपॉर्टेंट बात ये है कि भारत सबकी केयर करता है। हमारे गुरुजी सबकी केयर करते हैं। गुरुजी बहुत स्टोरी सुनाते हैं। वो बताते हैं कि इंसान का वास्तविक किरदार क्या है? यह मुझे सनातन धर्म में सबसे अच्छा लगा कि यह बहुत ओरिजिनल है। इससे शांति मिलती है और आप इससे सीखते हैं। गुरु आईना हैं, जो आपके अंदर की चीजें रिफ्लेक्ट करते हैं
साइकेट्रिस्ट इजरा से जब हमने पूछा कि आपको अपने गुरुजी की साइकोलॉजी के बारे में क्या पता चला? उन्होंने कहा- वह एक आईने की तरह हैं। वह आपके अंदर की सारी चीजें रिफ्लेक्ट करते हैं। बताते हैं कि क्या कुछ बदलने की जरूरत है। बताते हैं कि आपको अपने आप में क्या कुछ फिक्स करना है। वह सब कुछ गाइड करते हैं, जो जीवन को शांति और सुकून पहुंचा सकता है। 2013 से सनातन संस्कृति से जुड़े रूस के अजय गिरी और जया गिरी
इजरा के साथ बैठे दो अन्य रशियन से भी हमने बात की। दोनों ने अपना परिचय देते हुए कहा- हमारा सनातनी नाम अजय गिरी और जया गिरी है। हम 2013 से सनातन संस्कृति से जुड़े हैं। भगवान को मानते हैं। अजय गिरि ने कहा- यह मेरी लाइफ का चौथा कुंभ है। इससे पहले मैं अर्धकुंभ में अपने गुरु सत्यानंद गिरी के सानिध्य में रह चुका हूं। मैं ज्यादातर समय अपने गुरु की सेवा में बिताता हूं। मैंने दूसरे शैव अखाड़ों के अलावा गोदड़ अखाड़े का चुनाव महादेव के सत्य स्वरूप का साक्षात्कार करने के लिए किया है। जब से मुझे गुरु का सानिध्य मिला, जीवन को देखने का नजरिया ही बदल गया। इसके साथ ही अजय गिरी मंत्रोच्चार करते हैं। वह खुद को महादेव का भक्त बताते हैं। बोलते हैं- मुझे यहां आकर जो शांति और सुकून मिला, वो कहीं नहीं है। यहां तक पहुंचना तकदीर की बात है
रूस की जया गिरी बताती हैं- यह तकदीर की बात है कि मैं गोदड़ अखाड़े तक पहुंची। यहां जीवन की सच्चाई पता चलती है। गोदड़ अखाड़े में मुझे तमाम गुरु मिले, ज्ञान मिला। यह अलग एहसास कराता है। सनातन धर्म बहुत अच्छा है। मुझे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई है। इसके साथ ही वह शिव मंत्र पढ़ती हैं- ॐ नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय, महादेवाय त्रयम्बकाये, त्रिपुरान्तकाय, त्रिकाग्नि कालाये, कालाग्नि रुद्राए, नीलकंठाय, मृत्युंजयाय, सर्वेश्वराय, सदाशिवाय, श्रीमन् महादेवाय नमः. अब जानते हैं गोदड़ अखाड़े की परंपरा
शैव अखाड़े की परंपरा में 7 संन्यासी अखाड़ों के दान से मिले साधुओं से गोदड़ अखाड़ा बनता है। गोदड़ अखाड़े के संत, शैव अखाड़ों के देह त्याग चुके संतों को समाधि दिलाते हैं। देह त्यागी साधु के षोडश संस्कार में गोदड़ अखाड़े के संतों का प्रमुख स्थान होता है। जिस संत को समाधि दी जाती है, उसके कुछ शिष्य दान में इस अखाड़े को मिलते हैं। इस तरह से अखाड़े में साधु आते हैं। महंत सत्यानंद गिरी उर्फ लाली बाबा ने बताया- रुखड़ सुखद और गूदड़ शब्द से जोड़कर गोदड़ अखाड़े की नींव रखी गई। गोदड़ अखाड़े की स्थापना ब्रह्मपुरी महाराज ने की थी। जहां भी शैव संप्रदाय के अखाड़े हैं, वहां गोदड़ अखाड़ा भी है। गोदड़ अखाड़े के संत शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों (अग्नि को छोड़कर) के मृतक साधुओं को समाधि दिलाते हैं। संतों के अंतिम संस्कार में भी गोदड़ अखाड़े की खास भूमिका होती है। इसका मुख्य केंद्र जूनागढ़ है। न शाही स्नान, न महामंडलेश्वर, एक चेला बनाने की परंपरा लाली बाबा बताते हैं- यह सातों अखाड़ों से संबंधित है। जहां भी शैव संप्रदाय के अखाड़े हैं, वहां गोदड़ अखाड़ा भी है। गोदड़ अखाड़े के संत शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों (अग्नि को छोड़कर) के मृतक साधुओं को समाधि दिलाते हैं। संतों के अंतिम संस्कार में भी गोदड़ अखाड़े की खास भूमिका होती है। इसके अलावा अखाड़े का प्रमुख काम देवता को धूपिया दिखाना है। लाली बाबा के मुताबिक, अखाड़े के साधु किसी महात्मा के समाधि स्थल पर गायत्री पाठ कर उन्हें मुक्ति दिलाते हैं। समाधि स्थल पर 108 समाधि गायत्री मंत्र जाप करना प्रमुख कार्य है, लेकिन यह परंपरा करीब-करीब खत्म हो गई है। अखाड़े के संत शाही स्नान नहीं करते हैं। अखाड़े में कोई भी महामंडलेश्वर नहीं है। वह सिर्फ एक चेला बनाते हैं। लाली बाबा ने बताया कि हमारे अखाड़े से बहुत विदेशी श्रद्धालु जुड़े हैं। ये सिर्फ रूस से नहीं हैं। ये ऐसे श्रद्धालु हैं, जो सब कुछ न्योछावर करने के लिए आगे रहते हैं। हमें सिर्फ अपने सनातन धर्म का प्रचार करना है। इसके अलावा हम कुछ नहीं मांगते। सिर्फ सेवा करते हैं। ————————– यह खबर भी पढ़ें महाकुंभ में किन्नर महामंडलेश्वर का जटा पार्लर: 8 हजार से 1.65 लाख तक में आर्टिफिशियल जटा, यहीं सजी थीं हर्षा रिछारिया महाकुंभ में वसंत पंचमी के अमृत स्नान से एक तस्वीर सामने आई। साड़ी पहनकर स्नान करती हुई एक जटाधारी की। डुबकी लगाने के बाद बालों को हवा में लहराते हुई इस तस्वीर को देख लोगों ने कहा- शिव जैसी जटाएं हैं, तो किसी ने कहा- मां काली जैसी। लेकिन ये जटाधारी कौन थीं? पढ़ें पूरी खबर… ‘मैं एक साइकेट्रिस्ट हूं। पहली बार महाकुंभ आई हूं। यह पहला ऐसा आध्यात्मिक मेला है, जो दुनिया में कहीं नहीं लगता। यहां विश्व के सबसे शक्तिशाली गुरु हैं। हम अनोखी आध्यात्मिक ऊर्जा को अपने गुरुओं के जरिए देख रहे हैं।’ यह कहना है इजरा का। वह रूस से आई हैं। इस समय श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े में हैं। महंत सत्यानंद गिरी उर्फ लाली बाबा से दीक्षा ले रही हैं। यह वह अखाड़ा है, जो साधु-संतों के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार करता है। समाधि दिलाता है। इजरा बताती हैं- मेरे फादर इंडियन हैं और मां रशियन। उनकी तरह रूस के कई युवा श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े में हैं। जो हिंदी तो नहीं बोल पाते, लेकिन संस्कृत के जटिल श्लोक उन्हें अच्छे से याद हैं। आखिर इस अखाड़े में ऐसा क्या, जो विदेशियों ने यहां का रुख किया? अखाड़े की परंपरा क्या है? इन सवालों का जवाब जानने दैनिक भास्कर शिविर में पहुंचा। चमक-दमक नहीं, न ही भव्य अखाड़ा
महाकुंभ में लगे लगभग सभी अखाड़ों के पंडाल अपनी भव्यता की वजह से चर्चा में रहे, लेकिन श्री दशनाम गोदड़ अखाड़े के पंडाल में वैसी भव्यता नहीं है। अखाड़े में चमक-दमक भी नहीं है। हम जब यहां पहुंचे, तब रूस से आईं इजरा के अलावा दो और रशियन शिष्य मौजूद थे। तीनों मंत्रोच्चार करते मिले। सबसे पहले जानते हैं इजरा के मन की बात….
हमने साइकेट्रिस्ट इजरा से उनका परिचय पूछा, वो बताती हैं- मेरा सनातन का कोई नाम नहीं है। जो पासपोर्ट में नाम है, अभी वही मेरी पहचान है। मैं लाइफ को बहुत डार्क और रहस्यमयी फील करती थी। मैंने सर्च किया, मुझे भारत के बारे में पता चला। दशनाम गोदड़ अखाड़े के बारे में पता चला। यहां आने के बाद बहुत अच्छा लगा। सबसे इंपॉर्टेंट बात ये है कि भारत सबकी केयर करता है। हमारे गुरुजी सबकी केयर करते हैं। गुरुजी बहुत स्टोरी सुनाते हैं। वो बताते हैं कि इंसान का वास्तविक किरदार क्या है? यह मुझे सनातन धर्म में सबसे अच्छा लगा कि यह बहुत ओरिजिनल है। इससे शांति मिलती है और आप इससे सीखते हैं। गुरु आईना हैं, जो आपके अंदर की चीजें रिफ्लेक्ट करते हैं
साइकेट्रिस्ट इजरा से जब हमने पूछा कि आपको अपने गुरुजी की साइकोलॉजी के बारे में क्या पता चला? उन्होंने कहा- वह एक आईने की तरह हैं। वह आपके अंदर की सारी चीजें रिफ्लेक्ट करते हैं। बताते हैं कि क्या कुछ बदलने की जरूरत है। बताते हैं कि आपको अपने आप में क्या कुछ फिक्स करना है। वह सब कुछ गाइड करते हैं, जो जीवन को शांति और सुकून पहुंचा सकता है। 2013 से सनातन संस्कृति से जुड़े रूस के अजय गिरी और जया गिरी
इजरा के साथ बैठे दो अन्य रशियन से भी हमने बात की। दोनों ने अपना परिचय देते हुए कहा- हमारा सनातनी नाम अजय गिरी और जया गिरी है। हम 2013 से सनातन संस्कृति से जुड़े हैं। भगवान को मानते हैं। अजय गिरि ने कहा- यह मेरी लाइफ का चौथा कुंभ है। इससे पहले मैं अर्धकुंभ में अपने गुरु सत्यानंद गिरी के सानिध्य में रह चुका हूं। मैं ज्यादातर समय अपने गुरु की सेवा में बिताता हूं। मैंने दूसरे शैव अखाड़ों के अलावा गोदड़ अखाड़े का चुनाव महादेव के सत्य स्वरूप का साक्षात्कार करने के लिए किया है। जब से मुझे गुरु का सानिध्य मिला, जीवन को देखने का नजरिया ही बदल गया। इसके साथ ही अजय गिरी मंत्रोच्चार करते हैं। वह खुद को महादेव का भक्त बताते हैं। बोलते हैं- मुझे यहां आकर जो शांति और सुकून मिला, वो कहीं नहीं है। यहां तक पहुंचना तकदीर की बात है
रूस की जया गिरी बताती हैं- यह तकदीर की बात है कि मैं गोदड़ अखाड़े तक पहुंची। यहां जीवन की सच्चाई पता चलती है। गोदड़ अखाड़े में मुझे तमाम गुरु मिले, ज्ञान मिला। यह अलग एहसास कराता है। सनातन धर्म बहुत अच्छा है। मुझे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हुई है। इसके साथ ही वह शिव मंत्र पढ़ती हैं- ॐ नमस्ते अस्तु भगवान विश्वेश्वराय, महादेवाय त्रयम्बकाये, त्रिपुरान्तकाय, त्रिकाग्नि कालाये, कालाग्नि रुद्राए, नीलकंठाय, मृत्युंजयाय, सर्वेश्वराय, सदाशिवाय, श्रीमन् महादेवाय नमः. अब जानते हैं गोदड़ अखाड़े की परंपरा
शैव अखाड़े की परंपरा में 7 संन्यासी अखाड़ों के दान से मिले साधुओं से गोदड़ अखाड़ा बनता है। गोदड़ अखाड़े के संत, शैव अखाड़ों के देह त्याग चुके संतों को समाधि दिलाते हैं। देह त्यागी साधु के षोडश संस्कार में गोदड़ अखाड़े के संतों का प्रमुख स्थान होता है। जिस संत को समाधि दी जाती है, उसके कुछ शिष्य दान में इस अखाड़े को मिलते हैं। इस तरह से अखाड़े में साधु आते हैं। महंत सत्यानंद गिरी उर्फ लाली बाबा ने बताया- रुखड़ सुखद और गूदड़ शब्द से जोड़कर गोदड़ अखाड़े की नींव रखी गई। गोदड़ अखाड़े की स्थापना ब्रह्मपुरी महाराज ने की थी। जहां भी शैव संप्रदाय के अखाड़े हैं, वहां गोदड़ अखाड़ा भी है। गोदड़ अखाड़े के संत शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों (अग्नि को छोड़कर) के मृतक साधुओं को समाधि दिलाते हैं। संतों के अंतिम संस्कार में भी गोदड़ अखाड़े की खास भूमिका होती है। इसका मुख्य केंद्र जूनागढ़ है। न शाही स्नान, न महामंडलेश्वर, एक चेला बनाने की परंपरा लाली बाबा बताते हैं- यह सातों अखाड़ों से संबंधित है। जहां भी शैव संप्रदाय के अखाड़े हैं, वहां गोदड़ अखाड़ा भी है। गोदड़ अखाड़े के संत शैव संप्रदाय के सातों अखाड़ों (अग्नि को छोड़कर) के मृतक साधुओं को समाधि दिलाते हैं। संतों के अंतिम संस्कार में भी गोदड़ अखाड़े की खास भूमिका होती है। इसके अलावा अखाड़े का प्रमुख काम देवता को धूपिया दिखाना है। लाली बाबा के मुताबिक, अखाड़े के साधु किसी महात्मा के समाधि स्थल पर गायत्री पाठ कर उन्हें मुक्ति दिलाते हैं। समाधि स्थल पर 108 समाधि गायत्री मंत्र जाप करना प्रमुख कार्य है, लेकिन यह परंपरा करीब-करीब खत्म हो गई है। अखाड़े के संत शाही स्नान नहीं करते हैं। अखाड़े में कोई भी महामंडलेश्वर नहीं है। वह सिर्फ एक चेला बनाते हैं। लाली बाबा ने बताया कि हमारे अखाड़े से बहुत विदेशी श्रद्धालु जुड़े हैं। ये सिर्फ रूस से नहीं हैं। ये ऐसे श्रद्धालु हैं, जो सब कुछ न्योछावर करने के लिए आगे रहते हैं। हमें सिर्फ अपने सनातन धर्म का प्रचार करना है। इसके अलावा हम कुछ नहीं मांगते। सिर्फ सेवा करते हैं। ————————– यह खबर भी पढ़ें महाकुंभ में किन्नर महामंडलेश्वर का जटा पार्लर: 8 हजार से 1.65 लाख तक में आर्टिफिशियल जटा, यहीं सजी थीं हर्षा रिछारिया महाकुंभ में वसंत पंचमी के अमृत स्नान से एक तस्वीर सामने आई। साड़ी पहनकर स्नान करती हुई एक जटाधारी की। डुबकी लगाने के बाद बालों को हवा में लहराते हुई इस तस्वीर को देख लोगों ने कहा- शिव जैसी जटाएं हैं, तो किसी ने कहा- मां काली जैसी। लेकिन ये जटाधारी कौन थीं? पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
दान में मिले साधुओं से बना है यह अखाड़ा:साधु-संन्यासियों को अंतिम समय में देता है समाधि; विदेशी ले रहे दीक्षा
![दान में मिले साधुओं से बना है यह अखाड़ा:साधु-संन्यासियों को अंतिम समय में देता है समाधि; विदेशी ले रहे दीक्षा](https://images.bhaskarassets.com/thumb/1000x1000/web2images/521/2025/02/06/comp-411-1_1738856650.gif)