पत्रकार थे, अफसर इंतजार कराते, IPS बनकर 42 एनकाउंटर किए:आलोक प्रियदर्शी ने खाकी को नई पहचान दिलाई; बदायूं कांड में ऑन द स्पॉट फैसला सिंघम…ये शब्द सुनते ही जेहन में एक जांबाज और बेधड़क पुलिस अफसर की छवि उभर आती है। सिंघम की ऐसी ही छवि असल जिंदगी में बदायूं SSP आलोक प्रियदर्शी की है। पटना के एक सामान्य परिवार से निकले आलोक प्रियदर्शी आज उत्तर प्रदेश में अपराधियों के लिए दहशत का दूसरा नाम हैं। उनकी यह छवि ऐसे ही नहीं बनी। अब तक वह 42 कुख्यात अपराधियों को ढेर कर चुके हैं। अपराध के 24 घंटे में अपराधी को ढेर कर देने का कारनामा हो या खुद की जान पर खेलकर कुख्यात अपराधी को पकड़ना, आलोक प्रियदर्शी ने हर मोर्चे पर बहादुरी का परिचय दिया। पहले प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। JNU से एमए किया और फिर एक इंग्लिश न्यूजपेपर में पत्रकार बन गए। पत्रकारिता के दौरान अफसरों के इंतजार कराने से तंग आने लगे। तभी वर्दी की तरफ झुकाव बढ़ा। उसके बाद फिर PPS से IPS तक का सफर तय किया। तीन बार यूपी STF में भी रह चुके हैं। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज खाकी वर्दी में आज 7 चैप्टर में पढ़िए IPS आलोक प्रियदर्शी की कहानी… बिहार के पटना में बिजली विभाग की कॉलोनी पड़ती है। यहां रहने वाले बृज मोहन प्रसाद और इंदू देवी के घर पर 23 अगस्त, 1966 में एक बेटे ने जन्म लिया। नाम रखा गया- आलोक। पिता बृज मोहन बिजली विभाग में इंजीनियर थे, मां इंदू सरकार टीचर। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- मेरी प्राइमरी एजुकेशन हिंदी मीडियम स्कूल से हुई। बिहार के दूसरे शहरों की तुलना में पटना शहर डेवलप रहा है। मुझे याद है कि बचपन में घर से कुछ दूर मेरा स्कूल था। मैं पैदल पढ़ने जाता था। कई बार पड़ोस के बच्चे भी मुझे घर पर बुलाने आ जाते थे। स्कूल में जाते समय कहीं नहीं रुकता था, लेकिन छुट्टी के बाद जब घर आता तो बच्चों के साथ हंसी-मजाक और खेल में अक्सर लेट हो जाता। पांचवीं में आते ही मुझे पता चला कि मैट्रिक यानी 10वीं पास करते ही नौकरी लग जाती है। लेकिन, दूसरे बच्चे डराते थे। कहते थे- 10वीं बहुत टफ होता है। मैट्रिक में सब फेल हो जाते हैं। मास्टर जी भी यही कहते थे कि हाईस्कूल तक ही पढ़ाई है, उसके बाद सब पास होते चले जाते हैं। मैंने 1981 में हाईस्कूल पास किया। उस समय मां और पिताजी यही कहते थे, बेटा इतना पढ़ लो कि बस सरकारी नौकरी मिल जाए। प्राइवेट नौकरी में जीवन नहीं चलता। इसी दौरान मुझे पता चला कि पटना से पढ़-लिखकर लोग बाहर भी जाते हैं। डॉक्टर-इंजीनियर और IAS-IPS बनते हैं। मैंने हाईस्कूल-इंटर और फिर बीए तक की पढ़ाई पटना से की। इसके बाद जो सुना था, उसी पर अमल किया। 1986 में पटना से बीए करने के बाद दिल्ली आ गया। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- जब मैं दिल्ली जा रहा था, मां ने मुझसे कहा बेटा वहां जाकर बिगड़ न जाना। दिल्ली के बारे में कई सारी बातें चलती हैं। मां के मन में भी वही डर था, लेकिन मुझ पर विश्वास भी था। दिल्ली में मैंने जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में एमए इतिहास में एडमिशन लिया। मेरा प्रोफेसर बनने का मन था। मैंने ठान लिया था, पीएचडी करूंगा। उस टाइम भी JNU देश की बड़ी केंद्रीय यूनिवर्सिटी में गिनी जाती थी। दिन में क्लास करने के बाद दोस्तों के साथ घूमता, फिर रात में 5-6 घंटे पढ़ाई करता था। 1988 में एमए करने के बाद जेआरएफ और पीएचडी की तैयारी शुरू कर दी। लेकिन, मैंने JNU से पढ़ाई की थी, इसलिए प्राइवेट सेक्टर में नौकरी के ऑफर आने लगे थे। मम्मी-पापा उस समय जो पैसे खर्च के लिए देते थे, वह महीने से पहले ही खत्म होने लगे। 1989 में दिल्ली में प्रोफेसर बनने के लिए एमफिल के बाद पीएचडी करनी थी, लेकिन तभी मैं एक प्रतिष्ठित इंग्लिश न्यूजपेपर में जर्नलिस्ट बन गया। पहले महीने मुझे 5500 रुपए सैलरी मिली। यह मेरी पहली कमाई थी, तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पत्रकार बनते ही लगा, यह सबसे बड़ा पेशा है। कई नेताओं के इंटरव्यू करने गया, दिल्ली पुलिस के ऑफिसर्स से मिलने जाता। कई बार वह मिलने के लिए 5 से 10 मिनट तक वेट भी कराते। डेढ़ साल तक जॉब करने के बाद लगा, जर्नलिज्म में मजा नहीं है। पुलिस ऑफिसर बनने में अलग ही रुतबा है। तभी UPSC की तैयारी शुरू कर दी। अब मैंने प्रोफेसर बनने का सपना भी छोड़ दिया। बस 4 से 5 घंटे तैयारी करके ही UPPSC में 1991 बैच में PPS में चयन हो गया। घर गया, तो मां ने गले लगा लिया। पापा ने इतना कहा- बिहार से यूपी की नौकरी भी अच्छी है, वहां बड़े-बड़े शहर हैं। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- ट्रेनिंग के बाद CO के रूप में पहली पोस्टिंग 1997 में महराजगंज जिले में हुई। यहां देहात का सर्किल मेरे पास था। वहां जाकर देखा, तो लकड़ी तस्कर दिन में ही जंगल से पेड़ काटकर गायब कर देते थे। मेरे साथी पुलिसकर्मियों ने मुझसे कहा- साहब यहां अकेले मत जाइए, यह लोग कट्टे-तमंचे भी रखते हैं। एक दिन बिना थाना पुलिस को लिए शाम को मैं सादे कपड़ों में जंगल में चला गया। 4 सिपाही भी अलग-अलग सादे कपड़ों में थे। कई लोग पेड़ काटकर ले जा रहे थे। ये लोग हमें देखते ही समझ गए कि हम पुलिस वाले हैं। उनमें से एक ने मुझसे कहा- लगता है, अभी नए-नए पुलिस वाले बने हो। मैंने कहा- नहीं जी, आप गलत समझ रहे हैं। मुझे तो घर बनाने के लिए पेड़ से सूखी लकड़ी चाहिए थी। इस पर तस्करों ने कहा- थाने के दीवानजी से नहीं मिले, वह सब बता देंगे। इसके बाद मैंने एक्शन लिया। तस्करी की जड़ तक गया। एक-एक कर महराजगंज के जंगलों में फैले लकड़ी माफिया का नेटवर्क तोड़ा। हालांकि, मैं यहां 3 महीने ही तैनात रहा। इस दौरान मैंने लकड़ी की तस्करी करने वाले 40 से ज्यादा तस्कर जेल भेजे। इसके बाद मेरी पोस्टिंग आगरा कर दी गई। वहां भी मैं 3 महीने रहा। आलोक प्रियदर्शी ने अपने पहले एनकाउंटर का जिक्र करते हुए बताया- 1998 में मेरी पोस्टिंग गाजियाबाद में हुई। उस समय अभी के DGP प्रशांत कुमार गाजियाबाद के SSP थे। हापुड़ जिला नहीं बना था। हापुड़ का पूरा क्षेत्र गाजियाबाद जिले में ही लगता था। मोदीनगर में मुझे CO की जिम्मेदारी मिली थी। वेस्ट यूपी में मोदीनगर तेजी से डेवलप हो रहा था। कभी दिन में लूट, तो कभी रात में लूट के बाद गोली मारने की वारदात होने लगीं। यहां के सभी गांव पहले से ही संपन्न थे, इसलिए लोगों के पास पैसों की कमी नहीं थी। अपराधियों ने मोदीनगर को टारगेट कर लिया था। लगातार व्यापारियों से रंगदारी मांगी जाने लगी। उन्हें परेशान किया जाने लगा। दीपक नाम का एक बदमाश आए दिन घटनाओं को अंजाम दे रहा था। SSP साहब ने मुझसे कहा- आलोक हर हाल में इसे पकड़ना है। उस पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया। पुलिस में यह तीसरे जिले की पोस्टिंग थी, तो स्टाइल बदल ली थी। मैं दिन में कई बार जींस और टी-शर्ट पहनकर इधर-उधर जाता, तो कोई मुझे नहीं जान पाता कि मैं पुलिस अफसर हूं। एक दिन मुझे पता चला कि दीपक ने दिल्ली में लूट की है। दिल्ली पुलिस उसका पीछा कर रही है। इसके बाद मैंने मोदीनगर में अपने मुखबिर लगा दिए। इस दौरान मुझे टिप मिली कि दीपक की एक शादीशुदा प्रेमिका है। वह सप्ताह में एक बार उससे मिलने जरूर आता है। उस समय मोबाइल फोन नहीं थे। STD से कॉल की जाती थी। 3 दिन तक मैं सादे कपड़ों में घूमता रहा। इसके बाद मुझे दीपक की प्रेमिका का पता चल गया। कुछ दिन पहले ही दीपक उसे लूटी हुई ज्वेलरी देकर गया था। उस समय उस महिला की उम्र 25 साल के आसपास रही होगी। मैंने उससे कहा- हम लोग तुम्हें छोड़ देंगे। बस यह बताओ यह जेवर किसने दिए? उसने सब कुछ सच-सच बता दिया। मैंने उससे पूछा कि दीपक कब आता है। इस बार उसने कब आने की प्लानिंग की है? तब उसकी प्रेमिका ने बताया- वो फोन पर ही बताता है कि कब आएगा। एक डेढ़-दो महीने से वो कम आ रहा। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- इसके बाद हमने उस टेलीफोन बूथ पर अपना मुखबिर लगा दिया, जहां दीपक की प्रेमिका उसे फोन करने जाती थी। यह बात प्रेमिका को पता नहीं चलने दी। हमारे जाने के करीब 8 घंटे बाद दीपक की प्रेमिका घर से निकली। वो STD पर पहुंच गई। उसने दीपक से करीब 15 मिनट तक बात की। यह सूचना हमारे मुखबिर ने तुरंत हमें दी। हम टीम लेकर मौके पर जा पहुंचे। हमने दीपक की प्रेमिका से पूछताछ की। उसने बताया, दीपक ने मुझे कल मिलने के लिए बुलाया है। मैंने पूछा कब, उसने जवाब दिया कल। जिस जगह दीपक को पहुंचना था, हमने वहां साड़ी पहनाकर एक मुखबिर को बैठा दिया। 500 मीटर के दायरे में 40-50 सिपाही हमने सेट कर दिए। जैसे ही दीपक पहुंचा, उसे संदेह हो गया कि पुलिस ने उसे घेर लिया है। उसने स्टेनगन से गोली चला दी। एक गोली सिपाही को लगी। मुठभेड़ शुरू हो गई। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- मैं बुलेटप्रुफ जैकेट में था। मुझे लगा, एक गोली पास से निकलकर एक दीवार में जा घुसी। मैंने जोर से चिल्लाते हुए कहा- मैं सीओ मोदीनगर आलोक प्रियदर्शी हूं। या तो सरेंडर कर दे, नहीं हमें दूसरा रास्ता चुनना पड़ेगा। लेकिन वह फायरिंग करते हुए भागने लगा। करीब 15 मिनट तक दोनों तरफ से फायरिंग हुई। हमारी टीम ने उसका पीछा किया। एनकाउंटर में दीपक मार गिराया गया। उस दिन मुझे लगा कि एनकाउंटर में मौत सामने से गुजरती है। उस समय 50 हजार का इनामी आज के 10 लाख के इनामी के बराबर होता था। पहले एनकाउंटर में ही स्टेनगन बरामद की। उसके बाद दूसरे बदमाश का एनकाउंटर हापुड़ शहर में किया। यहां व्यापारियों से रंगदारी वसूलने और लूट करने वाले बदमाश से पिस्टल बरामद की थी। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- गाजियाबाद में 4 साल CO हापुड़ और मोदीनगर रहने के बाद नोएडा में STF बनी। मैं उसमें भेजा गया। 2004 में मथुरा में भरतपुर के बार्डर के एक गांव में 50 हजार के इनामी को हमने घेरा। तो वह भागते समय पिस्टल से दोनों हाथ से फायरिंग करने लगा। मैंने सिपाहियों से कहा, अभी यह फायर करता रहेगा। अभी रुक जाइए। इसकी दोनों पिस्टल खाली होने का इंतजार करिए। हुआ भी यही, वो लगातार फायरिंग करता जा रहा था। आखिर में उसकी पिस्टल खाली हो गई। तभी मैंने आगे बढ़कर फायरिंग की, जिससे उसके कंधे में गोली लगी और वह भागते हुए गिर गया। बदमाश ने उस समय भरतपुर में 18 लाख रुपए की लूट की थी। सूचना मिलते ही भरतपुर पुलिस भी मौके पर आ गई। नोएडा, मथुरा, सहारनपुर में रहने के अलावा तीन बार STF में रहा। मेरठ में सीओ और एसपी सिटी रहा। 2018 में मैं प्रमोट हुआ और IPS बनाया गया। मुझे 2011 बैच मिला। 2018 में SP हरदोई में कप्तान के रूप में पहली पोस्टिंग मिली। इसके बाद अंबेडकर नगर में तीन साल 2019 से 2022 तक SP रहा। यहां खान मुबारक और अजय सिपाही दो सबसे बड़े माफिया थे। अजय यूपी पुलिस में था। लेकिन, अपनी हरकतों के चलते बर्खास्त कर दिया गया था। वो लोगों से पैसा वसूलता था। शराब और जमीन पर अवैध कब्जे करता था। पहले उस पर गैंगस्टर लगा, मगर पकड़ में नहीं आया। इसके बाद बर्खास्त सिपाही अजय के घर खुद ही फोर्स और बुलडोजर लेकर पहुंच गया। उस समय लोगों ने कहा- वो तो सिपाही है। मैंने वहीं जवाब दिया और कहा- सिपाही है तो क्या गुंडागर्दी करेगा। एक घंटे में अवैध संपत्ति से बने दोनों माफियाओं के घरों को मलबे में तब्दील कर दिया गया। इस दौरान मुझे प्रमोट किया गया। मैं रायबरेली गया, यहां बतौर SSP तैनात रहा। आलोक प्रियदर्शी बताते हैं- मैं मेरठ STF में एसपी था। मेरठ में हाईवे पर 27 अप्रैल, 2018 की रात बदमाशों ने दुल्हन महविश की लूट के बाद हत्या कर दी। महविश की शादी गाजियाबाद में हुई थी। वह मुजफ्फरनगर में अपनी ससुराल जा रही थी। हमने बदमाशों की घेराबंदी के लिए पूरी STF यूनिट को उतार दिया। पता चला कि भदौड़ा गैंग के बदमाशों ने इस वारदात को अंजाम दिया है। ये मोदीनगर क्षेत्र के ही रहने वाले हैं। पुलिस की तरफ से दो बदमाश हिमांशु उर्फ नरसी और धीरज चौधरी पर इनाम था। 30 मई की सुबह STF को सूचना मिली कि शताब्दी नगर में बदमाश छिपे हैं। STF वहां पहुंची, तो बदमाशों ने फायरिंग कर दी। करीब 20 मिनट तक फायरिंग चली। हमें पला चला कि बदमाशों के पास कार्बाइन और पिस्टल हैं। हम वहां पहुंचे तो बदमाश फायरिंग करने लगे। हमने भी एक्शन लिया। दोनों बदमाशों को मार गिराया गया। वह बताते हैं- अब मैं बदायूं में हूं। इसी साल 19 मार्च को शाम होते ही हमारे पास कॉल आई। घटना सुनते ही मैं पसीज गया। घटना बड़ी थी और मेरे एक्सपीरिएंस से यह तय था कि प्रदेश में हेडलाइन बनेगी। यहां सैलून चलाने वाले साजिद ने अपने भाई के साथ मिलकर पास में ही 13 साल के आयुष को जानवरों के चाकू से गोदकर मार दिया। उसके बाद आयुष के 6 साल के भाई आहन उर्फ आयुष को भी मार दिया। तीसरा भाई बचकर भाग निकला। इस बदायूं कांड के बाद सड़कों पर भीड़ उतर आई, तोड़फोड़ करते हुए आगजनी कर दी गई। हमने एक्शन लिया। लॉ एंड ऑर्डर पर सवाल उठते, उससे पहले ही आरोपी से मुठभेड़ हुई और वो मार गिराया गया। बात, आलोक प्रियदर्शी की शादी की
आलोक प्रियदर्शी की पहचान पुलिस विभाग में सिंघम की तरह है। वह अजय देवगन की तरह ही बाल रखते हैं। उनकी स्टाइल पूरी तरह अजय देवगन से मैच करती है। हालांकि आलोक प्रियदर्शी कहते हैं- मैं JNU में पढ़ाई के दौरान भी ऐसे ही रहता था। JNU में पढ़ाई के दौरान मेरी दोस्ती यहां पढ़ रही प्रीति से हुई। लेकिन, यह बात कभी अपने घर पर नहीं बताई। मुझे पता था, मम्मी-पापा ने पढ़ने के लिए पटना से दिल्ली भेजा है। उन्हें पता चलेगा तो बहुत डांट पड़ेगी। मगर, प्रीति से मेरी दोस्ती आगे बढ़ती गई। 1988 में मैंने JNU से एमए किया। इसके करीब 8 साल बाद मैंने हिम्मत कर मम्मी को अपने और प्रीति के बारे में बताया। मैंने कहा- मम्मी, मुझे शादी के लिए एक लड़की पसंद हैं। वह पीएचडी है और देखने में भी अच्छी है। यह सुनकर मम्मी ने मेरा साथ दिया और पापा से बात की। 1996 में हमारी शादी हो गई। अचीवमेंट्स खाकी वर्दी सीरीज की यह स्टोरी भी पढ़ें 650 एनकाउंटर करने वाले IPS अजय साहनी की कहानी: सिर पर बैग रखकर स्कूल जाते थे; एक दिन में 4 बदमाश मारने का रिकॉर्ड अब तक 650 एनकाउंटर, इनमें 46 बदमाशों को ढेर किया….यह संख्या सुनने और पढ़ने में ज्यादा लग सकती है, लेकिन सब कुछ रिकॉर्ड में दर्ज है। यह रिकॉर्ड बनाया है एनकाउंटर स्पेशलिस्ट IPS अजय साहनी ने। पढ़ें पूरी स्टोरी IT कंपनी का ऑफर ठुकराकर IPS बने संकल्प शर्मा: बदायूं रेपकांड के दरिंदों को 3 दिन में पकड़ा; ट्रेनिंग में शुरू हुई LOVE STORY वर्दी धारियों पर एक्शन लेने वाले ये IPS हैं संकल्प शर्मा। IT कंपनी की नौकरी ठुकराकर खाकी वर्दी पहनने वाले संकल्प न सिर्फ कानून व्यवस्था का पालन कराने के लिए जाने जाते हैं, बल्कि उनकी लव स्टोरी भी चर्चित रही है। IIT रुड़की से M.Tech करने वाले संकल्प की पूरी कहानी पढ़िए