हिसार जिले के नारनौंद के सुलचानी गांव के एक सीआरपीएफ के हवलदार की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। मृतक हवलदार के शव का गांव के शमशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम सस्कार किया गया। बेटे ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और सीआरपीएफ के जवानों ने सैन्य सलामी दी। शव पहुंचते ही गांव में शौक की लहर दौड़ गई और परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था। शव के अंतिम दर्शन के लिए गांवों से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। अंतिम दर्शन के लिए ग्रामीणों की भीड़ लगी रही। ग्रामीणों ने राजकुमार अमर रहे के नारे लगाए। दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत मृतक के बेटे अमित ने जानकारी देते हुए बताया कि उसके पिता हवलदार 52 वर्षीय राजकुमार सीआरपीएफ में 1994 में भर्ती हुए थे। फिलहाल वो दिल्ली के वजीराबाद के 70 बटालियन बवाना में तैनात थे। हवलदार राजकुमार का 2 दिन पहले ही सीआरपीएफ के दिल्ली स्थित आईबीएस अस्पताल में घुटने का ऑपरेशन हुआ था और वह अस्पताल में ही दाखिल चल रहे थे। गांव में हुआ अंतिम संस्कार शुक्रवार रात को उनकी अचानक छाती में दर्द हुआ और उनका दिल का दौरा पड़ गया। जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शनिवार को उसके शव को गांव में लाया गया और राजकीय सम्मान के साथ गांव में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। हिसार जिले के नारनौंद के सुलचानी गांव के एक सीआरपीएफ के हवलदार की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। मृतक हवलदार के शव का गांव के शमशान घाट में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम सस्कार किया गया। बेटे ने अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी और सीआरपीएफ के जवानों ने सैन्य सलामी दी। शव पहुंचते ही गांव में शौक की लहर दौड़ गई और परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो रहा था। शव के अंतिम दर्शन के लिए गांवों से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। अंतिम दर्शन के लिए ग्रामीणों की भीड़ लगी रही। ग्रामीणों ने राजकुमार अमर रहे के नारे लगाए। दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत मृतक के बेटे अमित ने जानकारी देते हुए बताया कि उसके पिता हवलदार 52 वर्षीय राजकुमार सीआरपीएफ में 1994 में भर्ती हुए थे। फिलहाल वो दिल्ली के वजीराबाद के 70 बटालियन बवाना में तैनात थे। हवलदार राजकुमार का 2 दिन पहले ही सीआरपीएफ के दिल्ली स्थित आईबीएस अस्पताल में घुटने का ऑपरेशन हुआ था और वह अस्पताल में ही दाखिल चल रहे थे। गांव में हुआ अंतिम संस्कार शुक्रवार रात को उनकी अचानक छाती में दर्द हुआ और उनका दिल का दौरा पड़ गया। जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। शनिवार को उसके शव को गांव में लाया गया और राजकीय सम्मान के साथ गांव में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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डल्लेवाल बोले- मोदी से कहिए मांगें मानें, अनशन छोड़ दूंगा:ये न हमारा कारोबार, न ही शौक; किसानों ने PM के पुतले फूंके
डल्लेवाल बोले- मोदी से कहिए मांगें मानें, अनशन छोड़ दूंगा:ये न हमारा कारोबार, न ही शौक; किसानों ने PM के पुतले फूंके हरियाणा-पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर 46 दिन से अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने शुक्रवार (10 जनवरी) को एक वीडियो संदेश जारी किया। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी हमारी मांगें मानें तो मैं अनशन छोड़ दूंगा। अनशन करना कोई हमारा कारोबार तो नहीं है और न ही हमारा शौक है।’ वहीं, आज संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेताओं की 6 सदस्यीय कमेटी 101 किसानों के साथ खनौरी बॉर्डर पर पहुंची। यहां पर SKM के नेताओं ने खनौरी मोर्चे के नेताओं को एकता का वो प्रस्ताव सौंपा, जो मोगा की महापंचायत में पास किया गया था। किसान नेताओं ने डल्लेवाल से भी मुलाकात की। इसके बाद SKM नेता शंभू बॉर्डर रवाना हो गए। इस बीच कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने केंद्र सरकार को निशाने पर लेते हुए डल्लेवाल का अनशन खत्म कराने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि PM मोदी अहंकार छोड़कर किसानों की सुन लें। इसके अलावा, SKM ने पूरे देश में आज केंद्र सरकार के विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुतले फूंके। बता दें कि किसान फसलों पर MSP की गारंटी समेत 13 मांगों को लेकर पिछले 11 महीने से आंदोलन कर रहे हैं। SKM नेताओं ने क्या कहा? बलबीर सिंह राजेवाल : आज पूरे देश को जगजीत सिंह डल्लेवाल की सेहत की चिंता है। मोगा में हुई महापंचायत में जो फैसला हुआ, उसके मुताबिक अपने भाइयों को कहने आए हैं कि इकट्ठे होकर इस आंदोलन को लड़ेंगे। 15 तारीख को मीटिंग है। दिल्ली आंदोलन में जो जत्थेबंदियां साथ थीं, वह जल्द ही एकजुट होंगी। हमारे में कोई मतभेद नहीं है। केंद्र सरकार को पहल के आधार पर किसानों से बातचीत करनी चाहिए। जोगिंदर सिंह उगराहां : हमारी सभी जत्थेबंदियों का लक्ष्य एक है और दुश्मन एक है। जिस तरह आज मुलाकात हुई है, उम्मीद है कि जल्दी हम एक मंच पर आएंगे। डल्लेवाल के वीडियो संदेश की 3 अहम बातें… 1. BJP ने अकाल तख्त से मेरा अनशन तुड़वाने की मांग की
डल्लेवाल ने कहा- दोस्तों आज हमें यहां पर यह सूचना मिली कि पंजाब भाजपा की इकाई की तरफ से अकाल तख्त साहिब से अपील की गई है कि डल्लेवाल का अनशन तुड़वाया जाए। उसे जत्थेदारों व पंज प्यारों के माध्यम से हुक्म दिया जाए कि वह अनशन छोड़े। मैं अकाल तख्त साहिब व सभी तख्तों व पंज प्यारों का सत्कार करता हूं। 2. BJP वालों को अकाल तख्त नहीं मोदी जी के पास जाना चाहिए
डल्लेवाल ने आगे कहा- सवाल ये है कि पंजाब भाजपा इकाई के जो लोग हैं, पंजाब के लोग हैं, पंजाब के निवासी हैं। और यह जो हम लड़ाई लड़ रहे हैं। यह जो हम मांग उठा रहे हैं। वह पूरे पंजाब के लिए हैं। तो आप को जाना है तो मोदी जी के पास जाइए। आपको उपराष्ट्रपति के पास जाना चाहिए। वह बड़ा साफ किसानों के बारे में बोले हैं। एग्रीकल्चर मिनिस्टर व अमित शाह के पास जाना चाहिए, लेकिन आप श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार के पास जा रहे हैं। इसका मतलब क्या निकलता है। आपके अंदर क्या है। 3. BJP की पंजाब इकाई मोदी जी से बात करे
मैं आपको फिर से हाथ जोड़ता हूं कि अकाल तख्त साहिब की तरफ जाने के बजाय आप कृपया मोदी जी से कहें कि वह हमारी मांगें मान लें, तो हम अनशन छोड़ देंगे। हमारा अनशन करना कोई कारोबार तो नहीं है। न ही हमारा शौक है। धन्यवाद। मैं पंजाब की भाजपा इकाई को विनती करता हूं कि वह मोदी जी से बात करें। डल्लेवाल के गुरुवार को टेस्ट हुए, आज आएगी रिपोर्ट
अनशन पर बैठे डल्लेवाल की तबीयत नाजुक बनी हुई है। उन्हें बोलने में दिक्कत हो रही है। इलाज न लेने के साथ ही उन्होंने मालिश कराने से भी मना कर दिया है। हालांकि राजिंदरा अस्पताल पटियाला में गठित डॉक्टरों के बोर्ड ने गुरुवार को खनौरी पहुंचकर डल्लेवाल का अल्ट्रासाउंड सहित अन्य टेस्ट किए। उनकी रिपोर्ट आज आएगी। इससे पहले गुरुवार को कर्नाटक स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के पूर्व चेयरमैन प्रकाश कामारेड्डी, कर्नाटक के विधायक बीआर पाटिल और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) छात्रसंघ के अध्यक्ष धनंजय कुमार खनौरी मोर्चे पर पहुंचे। इन्होंने डल्लेवाल का हाल जाना। गुरुवार को ही शंभू बार्डर पर केंद्र सरकार द्वारा किसानों की सुनवाई न किए जाने से आहत किसान रेशम सिंह ने आत्महत्या कर ली। वहीं खनौरी बॉर्डर पर पानी गर्म करते समय देसी गीजर में आग जलाते समय किसान गुरदयाल सिंह झुलस गया। उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। डल्लेवाल मामले की सुप्रीम कोर्ट में 8 सुनवाई, अब तक क्या-क्या हुआ… 1. 13 दिसंबर- तत्काल डॉक्टरी मदद दें
डल्लेवाल 26 नवंबर को अनशन पर बैठे थे। 13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में आमरण अनशन को लेकर सुनवाई हुई। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और केंद्र सरकार से कहा कि डल्लेवाल को तत्काल डॉक्टरी मदद दें। उन्हें जबरन कुछ न खिलाया जाए। आंदोलन से ज्यादा उनकी जान जरूरी है। इसके बाद पंजाब के DGP गौरव यादव और केंद्रीय गृह निदेशक मयंक मिश्रा ने खनौरी पहुंच डल्लेवाल से मुलाकात की। 2. 18 दिसंबर- पंजाब सरकार को कुछ करना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार ने कहा कि डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनसे भावनाएं जुड़ी हुई हैं। राज्य को कुछ करना चाहिए। ढिलाई नहीं बरती जा सकती। आपको हालात संभालने होंगे। 3. 19 दिसंबर- बिना टेस्ट 70 साल के आदमी को कौन ठीक बता रहा
पंजाब सरकार ने दावा किया कि डल्लेवाल की तबीयत ठीक है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि 70 साल का आदमी 24 दिन से भूख हड़ताल पर है। कौन डॉक्टर है, जो बिना किसी टेस्ट के डल्लेवाल को सही बता रहा है? आप कैसे कह सकते हैं डल्लेवाल ठीक हैं? जब उनकी कोई जांच नहीं हुई, ब्लड टेस्ट नहीं हुआ, ECG नहीं हुई। 4. 20 दिसंबर- अधिकारी अस्पताल में भर्ती करने पर फैसला लें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डल्लेवाल की हालत रोज बिगड़ रही है। पंजाब सरकार उन्हें अस्पताल में शिफ्ट में क्यों नहीं कराती? यह उन्हीं की जिम्मेदारी है। यदि उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत है तो अधिकारी निर्णय लें। 5. 28 दिसंबर- केंद्र की मदद से अस्पताल में शिफ्ट करें
यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 20 दिसंबर के आदेश को लागू न करने को लेकर दायर अवमानना याचिका पर हुई। इसमें कोर्ट ने पंजाब सरकार को कहा कि पहले आप समस्या पैदा करते हैं, फिर कहते हैं कि आप कुछ नहीं कर सकते। केंद्र की मदद से उन्हें अस्पताल में शिफ्ट करें। इसमें किसानों के विरोध पर कोर्ट ने कहा कि किसी को अस्पताल ले जाने से रोकने का आंदोलन कभी नहीं सुना। यह आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा है। किस तरह के किसान नेता हैं जो चाहते हैं कि डल्लेवाल मर जाएं? डल्लेवाल पर दबाव दिखता है। जो लोग उनका अस्पताल में भर्ती होने का विरोध कर रहे हैं, वे उनके शुभचिंतक नहीं हैं। 6. 31 दिसंबर को पंजाब सरकार ने 3 दिन की मोहलत ली
पंजाब सरकार ने कोर्ट को बताया कि 30 दिसंबर को पंजाब बंद था, जिस वजह से ट्रैफिक नहीं चला। इसके अलावा अगर केंद्र सरकार पहल करती है तो डल्लेवाल बातचीत के लिए तैयार हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के समय मांगने के आवेदन को मंजूर कर लिया। 7. 2 जनवरी- हमने अनशन तोड़ने को नहीं कहा
कोर्ट ने कहा कि जानबूझकर हालात बिगाड़ने की कोशिश हो रही है। हमने कभी अनशन तोड़ने को नहीं कहा। कोर्ट ने पंजाब सरकार को कहा कि आपका रवैया ही सुलह करवाने का नहीं है। कुछ तथाकथित किसान नेता गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी कर रहे हैं। इस केस में डल्लेवाल की एडवोकेट गुनिंदर कौर गिल ने पार्टी बनने की याचिका दायर की थी। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “कृपया टकराव के बारे में न सोचें, हम किसानों से सीधे बातचीत नहीं कर सकते। हमने कमेटी बनाई है। किसानों से उसी कमेटी के जरिए बात करेंगे।” 8. 6 जनवरी- किसान मुलाकात के लिए तैयार
पंजाब सरकार ने कहा कि आंदोलन पर चल रहे किसान हाई पावर कमेटी से बातचीत के लिए तैयार हो गए हैं। इसके बाद अदालत ने इस मामले की सुनवाई 10 जनवरी तय की। इसके बाद कमेटी ने मुलाकात की। शंभू बॉर्डर का मामला ऐसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा… 1. फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के कानून को लेकर 13 फरवरी 2024 से शंभू बॉर्डर पर किसान आंदोलन चल रहा है। इसके अलावा खनौरी बॉर्डर पर भी किसान बैठे हैं। 2. 10 जुलाई 2024 को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आदेश दिए थे कि एक हफ्ते में शंभू बॉर्डर को खोला जाए। इसके खिलाफ हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। 3. 12 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने एंबुलेंस, सीनियर सिटीजन्स, महिलाओं, छात्रों के लिए शंभू बॉर्डर की एक लेन खोलने के लिए कहा। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बनाई, जिसे सरकार और किसानों के बीच मध्यस्थता करनी थी। 4. सुप्रीम कोर्ट की यह कमेटी पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस नवाब सिंह की अध्यक्षता में बनाई गई। इसमें पूर्व DGP बीएस संधू, कृषि विश्लेषक देवेंद्र शर्मा, प्रोफेसर रंजीत सिंह घुम्मन, कृषि सूचनाविद डॉ. सुखपाल सिंह और विशेष आमंत्रित सदस्य प्रोफेसर बलदेव राज कंबोज शामिल हैं। 5. कमेटी ने 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम रिपोर्ट सौंपी। इसमें कहा गया कि आंदोलन करने वाले किसान बातचीत के लिए नहीं आ रहे। किसानों से उनकी सुविधा के अनुसार तारीख और समय भी मांगा गया था, लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। इसके बाद की मीटिंग में किसानों ने शामिल होने से इनकार कर दिया। आंदोलन में आगे क्या… ———————– किसानों से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसान ने सुसाइड किया, गीजर फटने से आंदोलनकारी झुलसा हरियाणा-पंजाब के शंभू बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के दौरान 9 जनवरी को एक किसान ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली। किसानों ने बताया- गुरुवार सुबह लंगर स्थल के पास ही तरनतारन जिले के पहूविंड गांव में रहने वाले रेशम सिंह (55) ने सल्फास खाया। उसे पटियाला के राजिंदरा अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया। पूरी खबर पढ़ें…
बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा
बंसीलाल पर 164 अविवाहितों की नसबंदी का आरोप लगा:4 बार CM बने; बड़ा बेटा BCCI अध्यक्ष बना, छोटा बेटा सांसद रहा 1 नवंबर 1966, पंजाब से अलग होकर हरियाणा नया राज्य बना। चार महीने बाद यानी, फरवरी 1967 में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस को 81 में से 48 सीटें मिलीं और भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता और अहीरवाल राज परिवार से आने वाले राव बीरेंद्र सिंह ने बगावत कर दी। 10 मार्च 1967 को विधानसभा में सभी विधायक इकट्ठा हुए। CM भगवत दयाल शर्मा ने स्पीकर पद के लिए जींद के विधायक लाला दयाकिशन के नाम का प्रस्ताव रखा। उसी समय उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम भी प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री दंग रह गए। वोटिंग हुई, तो राव बीरेंद्र सिंह को लाला दयाकिशन से 3 वोट ज्यादा मिले। इसका सीधा मतलब था कि मुख्यमंत्री भगवत दयाल बहुमत खो चुके थे। आखिर बहुमत परीक्षण का दिन आया। सबकी निगाहें पहली बार विधायक बने बंसीलाल पर थीं। बागी विधायक जानते थे कि बंसीलाल उनके पक्ष में वोट नहीं करेंगे। प्लान बना कि बंसीलाल को वोटिंग के दिन सदन में आने ही ना दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को विधानसभा जाने से रोकने का काम एक अफसर को सौंपा गया। उसने विधानसभा की कार्यवाही शुरू होने से पहले बंसीलाल को अपने घर बुलाया। कुछ देर बाद बंसीलाल बाथरूम में गए, तो उस अफसर ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। बंसीलाल काफी देर तक अंदर से आवाज लगाते रहे, लेकिन तब तक दरवाजा नहीं खुला, जब तक भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ 25 मार्च 1967 को राव बीरेंद्र सिंह नए मुख्यमंत्री बने, लेकिन 9 महीने बाद ही राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राज्यपाल का दावा था कि विधायक पाला बदल रहे हैं और सरकार के पास बहुमत नहीं है। मई, 1968 में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस को बहुमत मिला और 22 मई को नई सरकार ने शपथ ली। मुख्यमंत्री ने पहले आदेश में उस अफसर को सस्पेंड किया जिसने बंसीलाल को बाथरूम में बंद किया था। ये मुख्यमंत्री कोई और नहीं चौधरी बंसीलाल ही थे। वे चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। दो बार केंद्र में मंत्री बने। बड़े बेटे रणबीर महेंद्रा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी, BCCI के अध्यक्ष रहे और छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह सांसद रहे। आज उनकी तीसरी पीढ़ी राजनीति में है। हरियाणा के ताकतवर राजनीतिक परिवारों की सीरीज ‘परिवार राज’ के दूसरे एपिसोड में पढ़िए चौधरी बंसीलाल के कुनबे की कहानी… 26 अगस्त 1927, दिल्ली से 135 किलोमीटर दूर, संयुक्त पंजाब के हिसार जिले का गोलागढ़ गांव के रहने वाले चौधरी मोहर सिंह और विद्या देवी के घर एक बेटे का जन्म हुआ। ये गांव अब भिवानी जिले में पड़ता है। बच्चे का नाम रखा गया बंसीलाल। परिवार का पहला बच्चा था, इसलिए धूमधाम से जश्न मना। इसके बाद बंसीलाल के सात भाई-बहन और हुए। शुरुआती पढ़ाई के बाद बंसीलाल जालंधर चले गए। पढ़ाई के दौरान ही वे आंदोलनों में भाग लेने लगे। इसी दौरान वे सिख नेता सरदार दरबारा सिंह के संपर्क में आए। बंसीलाल को राजनीति में लाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। आगे चलकर दरबारा सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री बने। दिन बीतते गए, घर पर मां विद्या देवी की तबीयत खराब रहने लगी। महज 15 साल की उम्र में बंसीलाल की शादी कर दी गई। हालांकि बंसीलाल ने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे भिवानी के लोहारू रियासत के दरबार में वकालत करने लगे। 1957 में उन्होंने हिसार डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन का चुनाव लड़ा और अध्यक्ष बन गए। यहां से बंसीलाल के राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई। वे जिला कांग्रेस से होते हुए पंजाब कांग्रेस कमेटी का हिस्सा रहे। 1960 का दशक आते-आते बंसीलाल को राजनीति में पहचान मिलनी शुरू हो गई। मुख्यमंत्री भगवत दयाल कहते थे- ‘कुछ भी करो, लेकिन बंसीलाल को हराओ’
बंसीलाल के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहे एसके मिश्रा अपनी किताब ‘फ्लाइंग इन हाई विंड्स’ में लिखते हैं- ‘हरियाणा बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे थे। मुख्यमंत्री भगवत दयाल मुझे पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि आप साफ-सुथरा चुनाव कराइए, लेकिन दो लोगों को किसी भी तरह हराना होगा। पहला देवीलाल और दूसरा बंसीलाल। मैंने कहा- किसी को हराना या जिताना मेरे हाथ में नहीं है। मैं इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता। इसके एक-दो दिन बाद ही बंसीलाल ने मुझसे पूछ लिया कि क्या भगवत दयाल शर्मा से मेरी ऐसी कोई बातचीत हुई है? मुझे उनका सवाल सुनकर बहुत हैरानी हुई, क्योंकि उस समय वहां कोई नहीं था। बाद में मुझे पता चला कि वहां एक वेटर था और उसी ने यह बात बंसीलाल को बताई थी। इसी बीच मेरा तबादला दिल्ली हो गया। वहां एक दिन मेरे घर में पार्टी चल रही थी। अचानक आधी रात को बंसीलाल का फोन आया कि वो मुझसे मिलना चाहते हैं। मैंने पूछा कि अचानक क्या हुआ? उन्होंने कहा- मैं हरियाणा का मुख्यमंत्री चुन लिया गया हूं और तुम्हें अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनाना चाहता हूं।’ मौत की सजा पाया क्रिमिनल जेल से भागा, शक बंसीलाल पर
एसके मिश्रा अपनी किताब में एक और किस्से का जिक्र करते हैं- ‘एक बार मुख्यमंत्री बंसीलाल कहीं जा रहे थे। उनका काफिला अंबाला के पास पहुंचा, तो एक बूढ़ी औरत ने उनकी गाड़ी रुकवा ली। वह रो रही थी। वजह पूछने पर पता चला कि उसके बेटे को मौत की सजा हुई है और उसकी दया याचिका भी खारिज हो चुकी है। दो दिन बाद उसे फांसी दी जानी थी। इस मामले में अब कुछ नहीं किया जा सकता था। बंसीलाल ने गाड़ी आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने मुझसे कहा- चाहे उस लड़के ने कितना भी जघन्य अपराध किया हो, लेकिन मां के लिए वह उसका बेटा है। अगले दिन अखबारों में छपा कि वह लड़का जेल से भाग गया। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह महज संयोग नहीं था, लेकिन मैंने कभी बंसीलाल से इस बारे में नहीं पूछा और न ही उन्होंने कभी मुझसे कुछ जिक्र किया।’ अभिनेता राजकपूर को बिजनेसमैन समझ बैठे थे बंसीलाल
एसके मिश्रा लिखते हैं- ‘एक कार्यक्रम में पूर्व रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा ने बंसीलाल को अभिनेता राजकपूर से मिलवाया, तो उनके चेहरे पर कोई भाव ही नहीं थे। जब मिश्रा ने यह देखा तो जोर देकर बोले, ये राजकपूर हैं, राजकपूर। इस पर बंसीलाल बोले- तो फरीदाबाद में आपका बिजनेस है? राजकपूर ने जवाब दिया- नहीं। बंसीलाल ने पूछा- आप करते क्या हैं? राजकपूर ने जवाब दिया- मैं एक्टर हूं। बंसीलाल ने बिना पलक झपकाए अगला सवाल दागा- किस नाटक में काम करते हैं आप? ये सुनकर राजकपूर सकपका गए। ललित नारायण मिश्रा हंसते हुए बोले- कमाल है, आप राजकपूर को नहीं पहचानते? वरिष्ठ पत्रकार महेश कुमार वैद्य बताते हैं कि सीएम बनने के बाद भी बंसीलाल कई बार बिना प्रेस किए कपड़े पहन लेते थे। एक बार जब उनसे पूछा गया कि वे बिना प्रेस किए कपड़े क्यों पहनते हैं, तो उन्होंने जवाब दिया- अगर मैं बिना प्रेस किए कपड़े पहनूंगा, तो क्या आप मुझे मुख्यमंत्री नहीं मानेंगे? नारा उछाला गया- ‘नसबंदी के तीन दलाल: इंदिरा, संजय, बंसीलाल’
30 नवंबर 1975, देश में इमरजेंसी लगे छह महीने बीत चुके थे। हरियाणा के CM बंसीलाल को अचानक इस्तीफा देकर दिल्ली जाना पड़ा। इंदिरा गांधी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया। 20 दिन तक बंसीलाल बगैर किसी मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। इस दौरान वे संजय के बेहद करीब आ गए। इमरजेंसी का जिक्र छिड़ते ही लोगों को जेहन में सबसे पहला ख्याल नसबंदी का आता है। बंसीलाल पर आरोप लगते हैं कि उन्होंने पुलिस को नसबंदी करने का टारगेट दिया था। पुलिस गांव में घुसकर पुरुषों-नौजवानों को पकड़ती और उनकी जबरन नसबंदी करवा देती। उस दौरान नारा चलता था- ‘नसबंदी के तीन दलाल: इंदिरा, संजय, बंसीलाल’। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त हरियाणा में 164 अविवाहित लोगों की नसबंदी की गई थी। खुद केंद्र में गए, तो छोटे बेटे को अपनी सीट से विधायक बनवाया
केंद्र की राजनीति में जाने से पहले ही बंसीलाल अपने छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह को राजनीति में उतार चुके थे। 1973 में सुरेंद्र युवा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बन चुके थे। पिता की गैर-मौजूदगी में उनके विधानसभा क्षेत्र तोशाम में लोगों के बीच रहते थे। इमरजेंसी के बाद 1977 में विधानसभा चुनाव हुए, तो सुरेंद्र सिंह पहली बार विधायक बने। पांच साल बाद यानी, 1982 में सुरेंद्र को हरियाणा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1986 से 1992 तक सुरेंद्र सिंह राज्यसभा सांसद रहे। बंसीलाल छोटे बेटे को आगे बढ़ा रहे थे, बड़े बेटे से होने लगी अनबन
1991 में कांग्रेस से अलग होकर बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई, लेकिन उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह कांग्रेस में ही रहे। 1992 में राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद वे पिता की पार्टी में आ गए। पार्टी का पूरा काम सुरेंद्र सिंह ही देखने लगे। कहा जाता है कि सुरेंद्र सिंह के कहने पर ही बंसीलाल ने अलग पार्टी बनाई थी। रणबीर महेंद्रा उस वक्त हरियाणा से बाहर रहते थे और BCCI में एक्टिव थे। उन्हें राजनीति में खास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन जब रणबीर महेंद्रा को पिता के कुछ पुराने साथियों ने बताया कि सुरेंद्र एक तरफा फैसले ले रहे हैं, तो उन्होंने इसके बारे में अपने पिता से बात की। बंसीलाल ने उस वक्त रणबीर की बातों को दरकिनार कर दिया। कहा जाता है कि बंसीलाल के कांग्रेस छोड़ने के बाद भी बड़े बेटे रणबीर का कांग्रेस के प्रति लगाव था। 1998 लोकसभा चुनाव में बंसीलाल के दोनों बेटे आमने-सामने
साल 1998, बंसीलाल ने अपनी हरियाणा विकास पार्टी से सुरेंद्र सिंह को भिवानी सीट पर उतारा। इसी सीट पर कांग्रेस ने रणबीर महेंद्रा को टिकट दे दिया। यह पहली बार था, जब दोनों भाइयों के बीच अनबन की खबरें जगजाहिर हुईं। चुनाव प्रचार के दौरान दोनों भाइयों ने एक-दूसरे पर सीधा हमला नहीं बोला, लेकिन इशारों में तीर कई बार चले। चुनाव उस समय और दिलचस्प हो गया जब बंसीलाल के धुर राजनीतिक विरोधी चौधरी देवीलाल के पोते अजय चौटाला ने भी इसी सीट से पर्चा भर दिया। सुरेंद्र सिंह सिर्फ 9711 वोटों से जीत पाए। उनके भाई रणबीर तीसरे नंबर पर रहे। वहीं, अजय चौटाला दूसरे नंबर पर रहे। 2001 में रणबीर महेंद्रा BCCI में उपाध्यक्ष बने। इसके बाद उनका कद बढ़ता गया और 2004 में BCCI अध्यक्ष बन गए। कहा जाता है कि रणबीर के कांग्रेस में रहने के बाद भी बंसीलाल अंदर ही अंदर उनका सपोर्ट करते थे। बंसीलाल के रसूख के चलते ही वे BCCI अध्यक्ष बने। पार्टी का कांग्रेस में विलय और छोटे बेटे की हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत
1999 में भाजपा के साथ गठबंधन सरकार गिरने के बाद से ही बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी कमजोर होती जा रही थी। 2004 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। 2005 में रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह दोनों ने फिर भिवानी जिले से चुनाव लड़ा। अब की बार चुनाव विधानसभा का था, दोनों की पार्टियां एक थीं और सीटें अलग-अलग। सुरेंद्र ने बंसीलाल की सीट तोशाम और रणबीर ने मुंढाल खुर्द सीट से चुनाव लड़ा। दोनों जीते भी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहली बार मुख्यमंत्री बने। हुड्डा ने अपनी कैबिनेट में सुरेंद्र सिंह को कृषि मंत्री बनाया, लेकिन एक महीने बाद ही 31 मार्च 2005 को हेलिकॉप्टर दुर्घटना में सुरेंद्र सिंह की मौत हो गई। उस हादसे में मशहूर बिजनेसमैन ओपी जिंदल का भी निधन हो गया था। बेटे की मौत के बाद बंसीलाल टूट गए। 2006 में उनका निधन हो गया। सुरेंद्र की मौत के बाद पत्नी किरण ने संभाली परिवार की विरासत
सुरेंद्र सिंह के निधन से पहले उनकी पत्नी किरण चौधरी दिल्ली की राजनीति में एक्टिव थीं। उन्होंने 1993 में पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर दिल्ली कैंट विधानसभा सीट से लड़ा, लेकिन हार गईं। 1998 में दोबारा इसी सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा की डिप्टी स्पीकर बनीं। 2004 में पार्टी ने उन्हें हरियाणा से राज्यसभा का टिकट दिया, लेकिन इंडियन नेशनल लोकदल के उम्मीदवार से हार गईं। सुरेंद्र सिंह के अचानक निधन के बाद किरण उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए हरियाणा की राजनीति में पूरी तरह एक्टिव हो गईं। उपचुनाव में किरण ने भिवानी तोशाम सीट पर जीत दर्ज की और हुड्डा सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं। 2009 और 2014 के चुनाव में भी किरण तोशाम सीट पर चुनाव जीत गईं, लेकिन उनके जेठ रणबीर महेंद्रा और बहनोई सोमबीर सिंह दोनों चुनाव हार गए। 2014 में कांग्रेस ने किरण को विधानसभा में पार्टी का नेता भी बनाया था। बेटी को टिकट नहीं मिला, तो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चली गईं किरण चौधरी
2009 में किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से टिकट मिला। श्रुति ने दिग्गज नेता अजय चौटाला को करीब 55 हजार वोटों से हराया। 2014 और 2019 में भी कांग्रेस ने श्रुति को टिकट दिया, लेकिन वह दोनों चुनाव हार गईं। इस दौरान किरण चौधरी और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के रिश्तों में भी खटास पड़ने लगी। हुड्डा ने किरण से मतभेदों के बाद रणबीर महेंद्रा और सोमबीर सिंह का साथ दिया। 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने श्रुति का टिकट काट दिया। नाराज किरण चौधरी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के चौधरी धर्मबीर सिंह का साथ दिया। धर्मबीर, उसी सीट से चुनाव लड़ रहे थे, जहां से किरण बेटी श्रुति के लिए कांग्रेस से टिकट मांग रही थीं। लोकसभा चुनाव के बाद किरण और उनकी बेटी श्रुति भाजपा में शामिल हो गईं। अब बीजेपी ने किरण को राज्यसभा भेजा है। वहीं, उनकी बेटी श्रुति तोशाम सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। 2024 विधानसभा चुनाव में भाई-बहन होंगे आमने सामने
रणबीर महेंद्रा के बेटे अनिरुद्ध चौधरी ने भी राजनीति की बजाय शुरुआत में BCCI में जगह बनाई। वे हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन के ऑनरेरी सेक्रेटरी रहे। 2013 में अनिरुद्ध BCCI के कोषाध्यक्ष बने। 2014 में अनिरुद्ध ने पिता की राजनीतिक विरासत संभाल ली। 2019 में उन्होंने बाढ़ड़ा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन जननायक जनता पार्टी की नैना चौटाला से हार गए। अब वे फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार उनकी विरोधी उनकी चचेरी बहन श्रुति चौधरी होंगी। कुछ दिन पहले अनिरुद्ध ने कहा था कि मेरी चाची किरण चौधरी नहीं चाहतीं कि मैं चुनाव लड़ूं, लेकिन मैं तोशाम सीट से चुनाव लड़ूंगा और जीतूंगा, भले ही बहन श्रुति ही सामने क्यों न हो। परिवार राज सीरीज के अगले एपिसोड में पढ़िए हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भजनलाल परिवार की कहानी…
हरियाणा में बिजली बिल पर मंथली रेंटल खत्म:केवल यूनिट के पैसे ही भरने होंगे; खट्टर का फैसला सैनी ने 4 महीने बाद लागू किया
हरियाणा में बिजली बिल पर मंथली रेंटल खत्म:केवल यूनिट के पैसे ही भरने होंगे; खट्टर का फैसला सैनी ने 4 महीने बाद लागू किया हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक फैसला मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अब 4 महीने बाद लागू कर दिया है। अपने कार्यकाल में खट्टर ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 2 किलोवाट तक के घरेलू कनेक्टेड लोड वाली टैरिफ श्रेणी-1 में आने वाले बिजली ग्राहकों पर 115 रुपए न्यूनतम मासिक शुल्क (MMC) न लगाने का फैसला किया था। इसे हरियाणा में अब लागू किया गया है। अब उपभोक्ताओं को केवल यूनिट के हिसाब से ही बिल भरना होगा। पूर्व CM ने 23 फरवरी को अपने 2024-25 के बजट प्रस्तावों में ‘सबसे गरीब लोगों’ को राहत देने की घोषणा के दौरान यह योजना बताई थी। 9.5 लाख लोगों को मिलेगी राहत
पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर (अब केंद्रीय ऊर्जा मंत्री) ने हरियाणा विधानसभा में कहा था, ‘मैं 2 किलोवाट तक के घरेलू कनेक्टेड लोड वाले टैरिफ श्रेणी-1 के उपभोक्ताओं के लिए MMC को समाप्त करने का प्रस्ताव करता हूं।’ उन्होंने बताया था कि सरकार के इस फैसले से प्रदेश के सबसे गरीब परिवारों को लगभग 180 करोड़ रुपए की राहत मिलेगी। MMC समाप्त करने के निर्णय से सूबे के लगभग 9.5 लाख गरीब परिवारों को फायदा मिलेगा। 190 रुपए तक उपभोक्ताओं के बचेंगे
हरियाणा सरकार के एक सीनियर ऑफिसर ने बताया कि यह निर्णय अगले बिलिंग चक्र से लागू होगा। उपभोक्ताओं को उनके कुल बिजली बिल में न्यूनतम 2% से अधिकतम 91% ( 5 से 190 रुपए) तक की राहत मिल सकती है। नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि घरेलू कनेक्शन और 2 किलोवाट तक के लोड पर 115 रुपए प्रति किलोवाट का ये फैसला लोकसभा चुनाव से पहले आता तो तस्वीर कुछ और होती। इन 3 उदाहरणों में समझें फैसले का गणित पहला: इस नीतिगत निर्णय को लागू करने की योजना के अनुसार, उपभोक्ताओं को केवल खपत की गई बिजली यूनिट के लिए भुगतान करना होगा। उदाहरण के लिए, पहले अगर 1 किलोवाट लोड वाला परिवार एक महीने में 30 यूनिट बिजली की खपत करता था, तो बिल 115 रुपए बिल आता था, जो अब घटकर 60 रुपए रह जाएगा, क्योंकि MMC लागू नहीं होगा। दूसरा: इसी प्रकार 2 किलोवाट लोड वाले उपभोक्ता को एक माह में 30 यूनिट खपत करने पर 230 रुपए का भुगतान करना पड़ता था, क्योंकि प्रति किलोवाट लोड पर MMC 115 रुपए थी। नए बिलिंग चक्र के तहत यह बिल घटकर 60 रुपए रह जाएगा, क्योंकि प्रति यूनिट शुल्क 2 रुपए है और कोई MMC नहीं लगेगा। तीसरा: हरियाणा में शून्य से 50 यूनिट तक बिजली का शुल्क 2 रुपए प्रति यूनिट है। यदि खपत 51 से 100 यूनिट के बीच है तो 2.50 रुपए प्रति यूनिट चार्ज किया जाता है। यदि प्रति माह बिजली की खपत 101-150 यूनिट के ब्रैकेट में है, तो संचयी शुल्क 2.75 रुपए प्रति यूनिट है, जिसमें बिलिंग के लिए शून्य से 150 तक की इकाइयों की गणना की जाती है।