<p style=”text-align: justify;”><strong>Nishat CGHS Scam 2006:</strong> साल 2006 में सामने आए बहुचर्चित निशात को-ऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसायटी (सीजीएचएस) घोटाले में राउज एवेन्यू की स्पेशल कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. अदालत ने आरोपी विश्वनाथ अग्रवाल को दोषी ठहराया, जबकि अन्य 11 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>विश्वनाथ अग्रवाल कौन है ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>विश्वनाथ अग्रवाल निशात, सीजीएचएस में सक्रिय सदस्य और प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं. आरोप है कि अग्रवाल ने ही इस पूरी आपराधिक साजिश को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह लंबे समय से रियल एस्टेट और सहकारी समितियों से जुड़े रहे हैं. जांच एजेंसियों के अनुसार, अग्रवाल ने दस्तावेजों की जालसाजी कर सोसायटी को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>60 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन पर थी नजर</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, आरोपियों ने निशात सीजीएचएस को फर्जी तरीके से पुनर्जीवित कर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के एक प्रमुख क्षेत्र में जमीन आवंटित कराने की साजिश रची थी. उस समय बाजार दर पर इस जमीन की कीमत लगभग 60 करोड़ रुपये आंकी गई थी. आरोपियों का मकसद डीडीए से रियायती दरों पर जमीन लेकर उस पर फ्लैट्स बनाकर भारी मुनाफा कमाना था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या था पूरा मामला ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>निशात सीजीएचएस का गठन 19 फरवरी 1980 को हुआ था. सोसायटी में कुल 69 सदस्य थे, लेकिन कानूनी विवादों के कारण इसका कार्यालय सील हो गया और गतिविधियां बंद हो गईं. वर्ष 2000-2001 में आरोपियों ने बंद पड़ी सोसायटी को फिर से जीवित करने की साजिश रची. आरोप है कि सदस्यता में फर्जी नाम जोड़कर समिति की नई सदस्य सूची बनाई गई. इसके बाद डीडीए से सस्ती दरों पर प्लॉट हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोर्ट ने अपने फैसले में कहा</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने माना कि विश्वनाथ अग्रवाल ने जालसाजी कर दस्तावेजों में फर्जी सदस्यता और रजिस्ट्रेशन दिखाया. उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और 120-बी के तहत दोषी पाया गया. इसके साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं भी लागू की गईं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बाकी आरोपी क्यों बरी हुए ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>विशेष न्यायाधीश जगदीश कुमार की अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष बाकी 11 आरोपियों के खिलाफ ठोस और निर्णायक साक्ष्य पेश नहीं कर पाया. इसलिए उन्हें संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया गया. अब अदालत आगामी सुनवाई में दोषी विश्वनाथ अग्रवाल की सजा पर बहस करेगी. माना जा रहा है कि दोष के गंभीर होने के कारण उसे कठोर सजा सुनाई जा सकती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें- <a title=”दिल्ली के सराय रोहिल्ला इलाके में पैसों के लिए पेंटर की हत्या, पुलिस ने दो सगे भाइयों को दबोचा” href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/delhi-sarai-rahilya-murder-of-majdoor-two-brother-arrested-know-details-ann-2910231″ target=”_self”>दिल्ली के सराय रोहिल्ला इलाके में पैसों के लिए पेंटर की हत्या, पुलिस ने दो सगे भाइयों को दबोचा</a></strong></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Nishat CGHS Scam 2006:</strong> साल 2006 में सामने आए बहुचर्चित निशात को-ऑपरेटिव ग्रुप हाउसिंग सोसायटी (सीजीएचएस) घोटाले में राउज एवेन्यू की स्पेशल कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. अदालत ने आरोपी विश्वनाथ अग्रवाल को दोषी ठहराया, जबकि अन्य 11 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>विश्वनाथ अग्रवाल कौन है ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>विश्वनाथ अग्रवाल निशात, सीजीएचएस में सक्रिय सदस्य और प्रमुख पदाधिकारी रहे हैं. आरोप है कि अग्रवाल ने ही इस पूरी आपराधिक साजिश को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह लंबे समय से रियल एस्टेट और सहकारी समितियों से जुड़े रहे हैं. जांच एजेंसियों के अनुसार, अग्रवाल ने दस्तावेजों की जालसाजी कर सोसायटी को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>60 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन पर थी नजर</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>सीबीआई की चार्जशीट के अनुसार, आरोपियों ने निशात सीजीएचएस को फर्जी तरीके से पुनर्जीवित कर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के एक प्रमुख क्षेत्र में जमीन आवंटित कराने की साजिश रची थी. उस समय बाजार दर पर इस जमीन की कीमत लगभग 60 करोड़ रुपये आंकी गई थी. आरोपियों का मकसद डीडीए से रियायती दरों पर जमीन लेकर उस पर फ्लैट्स बनाकर भारी मुनाफा कमाना था.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>क्या था पूरा मामला ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>निशात सीजीएचएस का गठन 19 फरवरी 1980 को हुआ था. सोसायटी में कुल 69 सदस्य थे, लेकिन कानूनी विवादों के कारण इसका कार्यालय सील हो गया और गतिविधियां बंद हो गईं. वर्ष 2000-2001 में आरोपियों ने बंद पड़ी सोसायटी को फिर से जीवित करने की साजिश रची. आरोप है कि सदस्यता में फर्जी नाम जोड़कर समिति की नई सदस्य सूची बनाई गई. इसके बाद डीडीए से सस्ती दरों पर प्लॉट हासिल करने की प्रक्रिया शुरू की गई.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>कोर्ट ने अपने फैसले में कहा</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>कोर्ट ने माना कि विश्वनाथ अग्रवाल ने जालसाजी कर दस्तावेजों में फर्जी सदस्यता और रजिस्ट्रेशन दिखाया. उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और 120-बी के तहत दोषी पाया गया. इसके साथ ही भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराएं भी लागू की गईं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>बाकी आरोपी क्यों बरी हुए ?</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>विशेष न्यायाधीश जगदीश कुमार की अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष बाकी 11 आरोपियों के खिलाफ ठोस और निर्णायक साक्ष्य पेश नहीं कर पाया. इसलिए उन्हें संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया गया. अब अदालत आगामी सुनवाई में दोषी विश्वनाथ अग्रवाल की सजा पर बहस करेगी. माना जा रहा है कि दोष के गंभीर होने के कारण उसे कठोर सजा सुनाई जा सकती है.</p>
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