यूपी में भीषण गर्मी पड़ रही है। आगरा, मथुरा समेत 11 जिलों में 10 बजे तक लू चलने लगी। दोपहर 1.45 बजे बांदा प्रदेश का सबसे गर्म शहर रहा। यहां का अधिकतम तापमान 45.1 रिकॉर्ड किया गया। श्रद्धालुओं से भरे रहने वाले काशी के घाट पर दोपहर 12 बजे तक सन्नाटा पसर गया। संतकबीर नगर में वोट डालने पहुंची 75 साल की महिला की मौत हो गई। महिला सुबह करीब 11 बजे पोलिंग बूथ के गेट पर चक्कर खाकर गिर गई। उसे अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों का कहना है कि महिला गर्मी के कारण बेहोश होकर गिरी है। इसलिए मौत की वजह गर्मी भी हो सकती है। हालांकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी। यूपी में भीषण गर्मी पड़ रही है। आगरा, मथुरा समेत 11 जिलों में 10 बजे तक लू चलने लगी। दोपहर 1.45 बजे बांदा प्रदेश का सबसे गर्म शहर रहा। यहां का अधिकतम तापमान 45.1 रिकॉर्ड किया गया। श्रद्धालुओं से भरे रहने वाले काशी के घाट पर दोपहर 12 बजे तक सन्नाटा पसर गया। संतकबीर नगर में वोट डालने पहुंची 75 साल की महिला की मौत हो गई। महिला सुबह करीब 11 बजे पोलिंग बूथ के गेट पर चक्कर खाकर गिर गई। उसे अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉक्टरों का कहना है कि महिला गर्मी के कारण बेहोश होकर गिरी है। इसलिए मौत की वजह गर्मी भी हो सकती है। हालांकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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बैंक की नौकरी छोड़कर अपनाया संन्यासी जीवन, 9 महीने तक हिमालय में किया तप, जानें पूरी कहानी
बैंक की नौकरी छोड़कर अपनाया संन्यासी जीवन, 9 महीने तक हिमालय में किया तप, जानें पूरी कहानी <p style=”text-align: justify;”><strong>Makha Kumbh 2025:</strong> महाकुंभ के रंग में संतों की अलग-अलग कहानी सुनने को मिल रही है. इसी महाकुंभ में एक सोमेश्वर पुरी जी महाराज जूना अखाड़े में आए हुए हैं, जिन्होंने बैंक की नौकरी छोड़कर संन्यास ले लिया. वो अब अपनी बैंक की नौकरी छोड़ गृहस्थ आश्रम छोड़ अब दिन रात प्रभु की सेवा में लीन रहते हैं. 9 महीने तक उन्होंने हिमालय में रहकर तप किया है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अपने सन्यासी बनने के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह नियति होती है, जो तय करती है कि आप क्या बनेंगे. कोई मां-बाप या परिवार नहीं कहता कि उनका बच्चा सन्यासी बनेगा सबको डॉक्टर, इंजीनियर बनाना होत है. पर आदमी ईश्वर की मर्जी से सन्यासी बनता है. उन्होंने बताया कि 55 साल की उम्र में उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़कर सन्यास ले लिया पर यह 1 दिन की प्रक्रिया नहीं थी, यह नियति करती है. सन्यासी बनने को लेकर परिवार की प्रतिक्रिया पर उन्होंने कहा कि परिवार हंसी खुशी तो नहीं माना लेकिन एक समय के बाद समझ गया कि अब मुझे यही करना है तो फिर छोड़ दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>संन्यासी क्यों बने?</strong><br />सन्यासी बनने को लेकर उन्होंने कहा कि सन्यासी बनना सबसे बड़ा एडवेंचर है. बाकी जीवन में आप एक बार ही मरते हैं पर सन्यासी जीवन में आपको दिन में दर्जनों बार मरने को तैयार रहना पड़ता है. अपने अंदर इतनी शक्ति रखनी पड़ती है अगर सन्यासी का असली सुख लेना है तो. सन्यासी बनने का कोई एक कारण नहीं होता है जीवन धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ता और इंसान को पता नहीं चलता है. नॉर्मल जीवन में तो एक रूटीन शेड्यूल होता है पर सन्यासी के जीवन में तप करना होता है. सुबह 3 बजे उठकर पूजा पाठ और रोजाना के काम करने होते हैं. जूना अखाड़ा अपने शौर्य के लिए जाना जाता है. पर अगर बड़े संन्यासियों को देखे तो मुझे मेरे गुरुजी सोते हुए नहीं दिखाई देते हैं. संन्यासी जीवन बड़े तप का जीवन है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>युवाओं को लेकर उन्होंने कहा युवाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी जो भी ड्यूटी है उसको सही ढंग से करें. जो भी करना है मन से करिए सिर्फ तन से करने से नहीं हो पाएगा. जीवन में गंभीर होने की जरूरत नहीं है पर दिल से करेंगे और खुश होकर करेंगे तभी कोई काम कर पाएंगे. ड्यूटी ही भगवान है. अगर आप चीज मन से करेंगे तो ईश्वर आपको और शक्ति देता है. उन्होंने लोगों को भगवान के लिए रोजाना 10 मिनट निकालने की भी सलाह दी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>यह भी पढ़ें- <strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/up-police-news-salary-of-up-police-officers-is-in-danger-details-of-property-2863119″>यूपी पुलिस के इन अधिकारियों की सैलरी पर लटकी तलवार, इस वजह से होगा एक्शन!</a></strong></p>
डूब नहीं रहे…तैर रहे…कहते-सुनते गंगा में समाए जज के पति:उन्नाव में घाट पर बैठे लोगों ने चेताया, मगर दोस्त नहीं माने; सर्च ऑपरेशन जारी
डूब नहीं रहे…तैर रहे…कहते-सुनते गंगा में समाए जज के पति:उन्नाव में घाट पर बैठे लोगों ने चेताया, मगर दोस्त नहीं माने; सर्च ऑपरेशन जारी उन्नाव में गंगा नदी में डूबे जज के पति आदित्यवर्धन सिंह की तलाश तीसरे दिन भी जारी है। NDRF के 30 लोग 2 मोटर बोट की मदद से आदित्यवर्धन को ढूंढ रहे हैं। तैरने में एक्सपर्ट आदित्य अचानक कैसे डूब गए? यह समझने के लिए दैनिक भास्कर गंगा नदी के उस पॉइंट पर दोबारा पहुंचा, जहां यह हादसा हुआ। घाट पर बने मंदिर के पुजारी और वहां मौजूद गोताखोरों से बात की। उन लोगों ने हादसे से पहले ही स्थिति को भांप लिया था। आदित्य के साथ आए लोगों को चेताया भी, मगर वह लोग ओवर कॉन्फिडेंट थे। बोले- वह डूब नहीं रहे हैं, तैर रहे हैं। तभी आदित्य नदी की धारा में गायब हो गए। उनके डूबने के वक्त जो हालात थे, वह पढ़िए… पवन ने कहा- साथ नहाए, फिर मैं मंदिर में सफाई करने लगा
नदी किनारे हमारी सबसे पहले मुलाकात पवन उपाध्याय से हुई। वह मंदिर में सेवा करते हैं। नानामऊ के रहने वाले पवन बताते हैं- अफसर आदित्यवर्धन और उनके परिवार के लोग यहां आए थे। तब हम मंदिर की सफाई कर रहे थे। हम सभी ने साथ में नदी में स्नान किया। थोड़ी देर के बाद मैं बाहर निकल आया और मंदिर की सफाई करने लगा। वो लोग नहाते रहे। अचानक मुझे पीछे से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। हमने पीछे मुड़कर देखा, तो नदी की धारा में आदित्यवर्धन का सिर उतराता हुआ दिख रहा था। हम चिल्लाए, इनको निकालो। देखो…वो डूबे जा रहे हैं, बचाओ। तो वह लोग बहुत इतमीनान से बोले- अरे नहीं, वो तैर रहे हैं, डूब नहीं रहे। नदी की धारा में उनके गायब होने के बाद लोग इधर-उधर दौड़ने लगे। चिल्लाने लगे। गोताखोरों के पास गए। वहां क्या बातचीत हुई, ये हम नहीं कह सकते। मगर, लोग बता रहे हैं कि वह अभी तक नहीं मिले हैं। गंगा में डूबा व्यक्ति ऐसे नहीं मिलता। भंवर में फंसकर कई किमी दूर चला जाता है। NDRF वाले उन्हें ढूंढ रहे हैं। 45 मिनट तक धारा में ढूंढते रहे, मगर अधिकारी नहीं मिले
इसके बाद हमारी मुलाकात उस गोताखोर सुशील कुमार से हुई, जिसने सबसे पहले आदित्यवर्धन को ढूंढने के लिए नदी में गोता लगाया था। हमने पूछा- क्या नदी में इस वक्त नहाना इतना खतरनाक है। सुशील ने कहा- वह धारा में ज्यादा आगे चले गए। किनारे पर लाइन खींची है। रस्सी लगी है, मगर फिर भी वह धारा में आगे तक गए। हमने अधिकारी को बचाने का बहुत प्रयास किया। मगर, हम लोग कोई सरकारी नहीं, प्राइवेट गोताखोर हैं। हमारे पास कोई सुविधा भी नहीं है। इसलिए धारा में बहुत देर तक खोजने के बावजूद बचा नहीं सके। हमने रुपए लिए, जब आदमी नहीं मिला तो वापस कर दिया
इसके बाद हमारी मुलाकात नदी के पास दुकान चलाने वाले शैलेश कुमार से हुई। हमने पूछा- सुना है कि आपने किसी को बचाने के लिए रुपए लिए। शैलेश ने कहा- ऐसा नहीं है। रुपए लिए, मगर जब उनका आदमी नहीं मिला, तो वापस भी कर दिए। दरअसल, जिस वक्त ये हादसा हुआ, हमारी दुकान पर गोताखोर बैठे थे। वह लोग आए। उनकी आपस में बात हुई। शायद पैसे की डील फाइनल होने के बाद वह लोग मेरे पास आए। मेरे जरिए पैसे ट्रांसफर कराए गए। एक बात और जिस वक्त ये डील चल रही थी, आदमी धारा में डूब चुका था। बचाने के लिए वहां कोई दिख नहीं रहा था। मगर बाद में उनका आदमी नदी में नहीं मिला। उन लोगों को पैसा वापस कर दिया गया। आज पहुंच जाएंगी पत्नी और माता-पिता
परिवार के लोगों ने बताया- रविवार देर रात गंगा में डूबने वाले डिप्टी डायरेक्टर आदित्यवर्धन सिंह की पत्नी शैलजा, उनकी मां शशि प्रभा, पिता रमेश चंद्र और बहन बहनोई समेत परिवार के सभी लोग सोमवार को उन्नाव पहुंच जाएंगे। पत्नी फ्लाइट से लखनऊ और फिर वहां से उन्नाव पहुंच रही हैं। जबकि आस्ट्रेलिया से माता-पिता और बहन बहनोई आ रहे हैं। गंगा बैराज पर 3 शिफ्ट में ड्यूटी
DCP वेस्ट राजेश कुमार सिंह ने बताया- गंगा में डूबे आदित्यवर्धन की तलाश में कानपुर से लेकर बिल्हौर के नाना मऊ तक गंगा में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इसमें 75 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को लगाया गया। SDRF के 12 जवान, PAC के गोताखोरों की टीम के 10 जवान, 15 से ज्यादा निजी गोताखोर और कानपुर के गंगा बैराज पर जल पुलिस की टीम ने सर्च ऑपरेशन चलाया। लेकिन, सफलता नहीं मिली। गंगा में उफान और तेज बहाव के चलते अभी तक उनका कुछ पता नहीं चल सका है। कानपुर के गंगा बैराज पर 15 पुलिस कर्मियों की तीन शिफ्ट में ड्यूटी लगाई गई है। गंगा बैराज पर तैनात पुलिसकर्मी सिर्फ यह निगरानी बनाकर रखनी है कि यहां पर कोई उतरता हुआ पानी में शव तो नहीं आया है। चाची बोलीं- आदित्यवर्धन की पत्नी महाराष्ट्र में रहती हैं, वो गांव नहीं आईं
डिप्टी डायरेक्टर की चाची ने बताया- हादसे की सूचना मिलते ही हमारे जेठ और उनके बेटे गांव पहुंच गए हैं। बाकी हम लोग हैं। आदित्यवर्धन के पिता अपनी बेटी के पास ऑस्ट्रेलिया गए हैं। आदित्यवर्धन की बहन इंजीनियर हैं। उनकी पत्नी से हमारी कभी बातचीत नहीं हुई। वह महाराष्ट्र में रहती हैं। वो गांव नहीं आई हैं। आदित्यवर्धन और उनके परिवार के लोग ही आते थे। ताऊ ने बताया कि हमें सूचना मिली थी कि आदित्यवर्धन अपने दो दोस्तों के साथ नहाने गए थे। वहीं पर वह डूब गए। उनकी तलाश की जा रही है। आदित्यवर्धन के परिवार में उनके माता-पिता, वाइफ और एक बच्ची है। उनकी एक बहन भी है। गांव के कमल कुमार ने बताया- आदित्यवर्धन जी का व्यवहार बहुत अच्छा है। वह सीधे लखनऊ से घाट गए थे। यहां अपने गांव नहीं आए थे। नहाने के बाद गांव आने का प्लान था। वहां से हमें सूचना मिली कि वह गंगा में डूब गए हैं। उनके दोस्तों ने बताया कि हम लोग उन्हें ज्यादा अंदर जाने के लिए मना कर रहे थे पर वह नहीं माने। पत्नी एडीजे, चचेरे भाई बिहार के सीएम के निजी सचिव
आदित्यवर्धन सिंह उर्फ गौरव (45) वाराणसी में हेल्थ विभाग में डिप्टी डायरेक्टर तैनात हैं। उनकी पत्नी श्रेया मिश्रा महाराष्ट्र के अकोला में एडीजे हैं। छोटी बेटी अपनी मां के साथ अकोला में है। बहन प्रज्ञा आस्ट्रेलिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। चचेरे भाई अनुपम कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सचिव हैं। भाभी प्रतिमा सिंह भी बिहार कैडर की IAS हैं। आदित्यवर्धन बांगरमऊ क्षेत्र के कबीरपुर गांव के मूल निवासी हैं। वे लखनऊ के इंदिरानगर में रहते थे। शनिवार को आदित्यवर्धन मोहल्ले के दो दोस्तों प्रदीप तिवारी और योगेश्वर मिश्रा के साथ कार से बिल्हौर (उन्नाव) के नानामऊ घाट पर शनिवार सुबह करीब 10 गंगा स्नान करने पहुंचे। नहाते वक्त डूब गए। अब तक क्या-क्या हुआ यह भी पढ़ें:- डिप्टी डायरेक्टर गंगा में डूबे, गोताखोर ने नहीं बचाया:10 हजार मांगे थे, कैश नहीं था तो ऑनलाइन लिए, पैसा ट्रांसफर होने तक रुका रहा उन्नाव में जज के पति गंगा में डूब गए। वह दो दोस्तों के साथ नहाने गए थे। घटना के बाद दोस्त ने चिल्लाकर गोताखोर को बुलाया। वह 10 हजार रुपए मांगने लगा। दोस्त हाथ जोड़ता रहा, लेकिन वह पहले पैसा देने की जिद पर अड़ा रहा। कैश नहीं था, इसलिए दोस्त ने 10 हजार रुपए ऑनलाइन ट्रांसफर किए। लेकिन, तब तक जज के पति गंगा में बह गए। पैसे ट्रांसफर हुए तो गोताखोर ने नदी में छलांग लगाई। तलाश की, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। पढ़ें पूरी खबर…
विजयदशमी पर लगती है साधु-संतों की अदालत:सीएम योगी दंडाधिकारी बन कर करते हैं न्याय, नाथ संप्रदाय में वर्षों से निभाई जा रही परंपरा
विजयदशमी पर लगती है साधु-संतों की अदालत:सीएम योगी दंडाधिकारी बन कर करते हैं न्याय, नाथ संप्रदाय में वर्षों से निभाई जा रही परंपरा गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में विजयदशमी के दिन हर साल साधु-संतों की अदालत लगती है। योगी आदित्यनाथ 10 साल से इसमें दंडाधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। वह साधु-संतों से जुड़े विवादों का निपटारा करते हैं। क्या है ये परंपरा? कैसे सीएम योगी को साधु-संतों के विवाद निपटाने का अधिकार मिला? नाथ पंथ से उनका क्या कनेक्शन है? साधु-संतों की अदालत का क्या महत्व है? भास्कर एक्सप्लेनर में इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे। योगी को क्यों मिला दंडाधिकारी की भूमिका निभाने का अधिकार?
विजयदशमी का दिन नाथ संप्रदाय के साधु-संतों के लिए विशेष होता है। दशहरे को बड़ा और भव्य जुलूस निकलता है। इस दिन गोरखपुर में इनकी अदालत लगती है। साधु-संतों के विवादों का निपटारा होता है। जो भी अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा का अध्यक्ष होता है, उसे निपटारा करने का अधिकार मिलता है। अगर किसी को दंड देने की जरूरत है तो इसी दिन दिया जाता है। सीएम योगी गोरक्षापीठाधीश्वर होने के साथ ही नाथ पंथ की शीर्ष संस्था अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष भी हैं। चूंकि योगी इस संस्था के अध्यक्ष हैं, इसलिए वह हर साल साधु-संतों की अदालत में दंडाधिकारी की भूमिका निभाते हैं। दशहरे वाला दिन खास, नेपाल से क्या है कनेक्शन?
दशहरे वाला दिन नाथ योगियों के लिए खास होता है। विजयदशमी वैसे भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इसी दिन को नाथ संप्रदाय ने विवाद निपटारे के लिए चुना है। इसके अलावा मकर संक्रांति वाला दिन भी इनके लिए खास होता है। इस दिन ‘खिचड़ी’ त्योहार होता है। सबसे पहले नेपाल के राज घराने के घर से बनकर आई खिचड़ी यहां चढ़ाई जाती है। फिर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाते हैं। उनके बाद श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाते हैं। आज भी नेपाल के राजवंश में राज्याभिषेक के वक्त राजतिलक इसी मंदिर के महंत के हाथों होता है। महासभा का क्या इतिहास, योगी कब बने अध्यक्ष?
अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा की स्थापना 1939 में हुई थी। महंत दिग्विजयनाथ महाराज ने इसकी स्थापना की थी। वह आजीवन इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। दिग्विजयनाथ महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद 1969 में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष चुने गए। अवैद्यनाथ के समाधि लेने के बाद 25 सितंबर, 2014 को गोरक्षापीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। तब से योगी आदित्यनाथ इसके अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय क्या है? सीएम योगी का क्या कनेक्शन?
नाथ संप्रदाय देश के प्राचीन संप्रदायों में से एक है। इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानी योगी गोरखनाथ ने दिया है। देशभर में इस संप्रदाय के कई मठ हैं। गोरखनाथ धाम मठ की पीठ को नाथ संप्रदाय की अध्यक्ष पीठ मानते हैं। यही वजह है, गोरखनाथ धाम मठ का अध्यक्ष नाथ संप्रदाय का भी मुखिया होता है। योगी आदित्यनाथ वर्तमान में गोरखनाथ धाम मठ के महंत हैं। यानी वह नाथ संप्रदाय के भी अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय के 12 पंथ हैं। पहले नाथ आदिनाथ थे। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या फिर शरीर छोड़ने के बाद उन्हें समाधि दी जाती है। उन्हें अग्निप्रवाह नहीं किया जाता, यानी जलाए नहीं जाते। माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है। कैसे बनते हैं नाथ संप्रदाय के योगी?
नाथ संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण और किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है। जो शख्स नाथ संप्रदाय को अपनाता है, उसे 7 से 12 साल की कठोर तपस्या करनी पड़ती है। तपस्या पूरी होने पर उसे दीक्षा दी जाती है। दीक्षा देने से पहले और बाद में उम्र भर कठोर नियमों का पालन करना होता है। गोरखनाथ ने अपने अनुयायी शिष्यों के लिए कठोर नियम बनाए थे। इस संप्रदाय के शिष्यों के कान छिदवाने पड़ते हैं। कान छेदन वाले गुरु अलग होते हैं। वह एक तेज धार वाले चाकू से कान शुरू होने से लेकर नीचे तक पीछे से उसे काट देते हैं। जिसका कान चीरा जाता है, उसे एक विशेष पोजिशन में बैठाया जाता है। खून ही खून हो जाता है। उसके बाद फौरन उस पर धूणे की भभूत लगाई जाती है। फिर नीम की लकड़ियां डाल दी जाती हैं। इस दौरान मंत्रोच्चार चलता रहता है। इसके बाद नीम की लकड़ियां निकाल दी जाती हैं। सबसे पहले कुंडल जो डाले जाते हैं, जो मिट्टी के बने होते हैं। ये हाथों से बनाए जाते हैं। धीरे-धीरे कान का कटा हुआ ऊपर का हिस्सा अपने आप ठीक होने लगता है और कुंडल जितना हिस्सा ही कटा रह जाता है। नाथ योगी श्मशान में भी पूजा करते हैं, बगलामुखी की पूजा भी करते हैं। इनकी साधना हठयोग पर आधारित होती है। कई नाथ योगी जमात लेकर चलते हैं। जैसे- 12 रमतों की जमात, 18 रमतों की जमात। वह एक मठ से दूसरे मठ में भ्रमण करते हैं। दीक्षा लेने के बाद योगी अपने परिवार से अलग हो जाते हैं। दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा पंथ है, जिसमें जीते जी ही पृथ्वी पर दूसरा जन्म होता है। यानी पहले वाली जिंदगी, पहले वाली दुनिया, पहले वाले लोग सब त्यागने होते हैं। एक नया जन्म होता है, नए नाम और पहचान के साथ। क्या धारण करते हैं नाथ योगी
हर योगी के गले में एक जनेऊ होता है। धागे में लिपटी गोल-गोल चीज को पवित्री कहते हैं, जो शक्ति का प्रतीक है। उसी धागे में लगी सीटी नुमा चीज को नादि कहते हैं, जिससे योगी अपने गुरु को प्रणाम करते हैं। इसमें रुद्राक्ष होता है, जो शिव का प्रतीक है। जनेऊ में एक मोती भी होता है, जो भगवान ब्रह्मा का प्रतीक है और मनका विष्णु का प्रतीक है। हर योगी के लिए इसे पहनना जरूरी है। नाथ योगी जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो नमस्कार की जगह ‘आदेश’ बोलते हैं। ‘आदेश’ का मतलब होता है कि आ से आत्मा, द से देवता और श से संत। यानी आपमें विद्यमान संत को प्रणाम। दीक्षित होने के लिए सबसे पहले इनकी चोटी काटी जाती है। जो चोटी गुरु या शिखा गुरु काटता है, उसको धूणे में डाल दिया जाता है। चोटी गुरु सर्वोपरि होता है। फिर उसके बाद कर्ण छेदन गुरु होता है, जो कान चीरता है। फिर बाना गुरु होता है तो भगवा लिबास देता है। फिर उपदेश गुरु होता है जो गोपनीय मंत्र देता है। अंत में लंगोटी गुरु होता है। ये भी पढ़ें… यूपी में हिंदू-मुस्लिम आबादी का गणित:भाजपा से ‘तुम्हारा राज खत्म हो जाएगा’ कहने वाले सपा विधायक का दावा सच के कितना करीब? ‘मुस्लिम आबादी बढ़ गई है। तुम्हारा (भाजपा का) राज खत्म हो जाएगा। मुगलों ने देश में 800 साल राज किया। जब वो नहीं रहे, तो तुम क्या रहोगे? 2027 में तुम जाओगे जरूर, हम आएंगे जरूर।’ ये बयान अमरोहा से सपा विधायक महबूब अली ने 29 सितंबर को बिजनौर में दिया। महबूब अली के इस बयान ने ऐसा तूल पकड़ा कि अगले ही दिन बिजनौर पुलिस ने संज्ञान लिया। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। पढ़ें पूरी खबर