न्यायिक जांच में सामने आ पाएगा महाकुंभ भगदड़ का सच?:बिकरू कांड और अतीक की हत्या में पुलिस की थ्योरी पर लगी थी मुहर

न्यायिक जांच में सामने आ पाएगा महाकुंभ भगदड़ का सच?:बिकरू कांड और अतीक की हत्या में पुलिस की थ्योरी पर लगी थी मुहर

महाकुंभ भगदड़ की जांच न्यायिक आयोग कर रहा है। एक महीने में जांच पूरी करनी है। आयोग ने महाकुंभ में तैनात अधिकारी से सवाल किए। घटना कहां-कहां हुई और भीड़ को लेकर सुरक्षा के इंतजाम जाने। हादसे के प्रभावित लोगों से बयान दर्ज कराने को कहा। अब सवाल ये है कि क्या न्यायिक अयोग की रिपोर्ट में भगदड़ हादसे का सच सामने आ पाएगा? आयोग की रिपोर्ट की वैल्यू क्या होती है? क्या कभी आयोग की रिपोर्ट के इतर एजेंसी की जांच में विरोधाभास रहा है? न्यायिक जांच आयोग पर क्या सरकार का दबाव नहीं होता? दैनिक भास्कर ने इन सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की। साढ़े 4 साल में पांचवी जांच का जिम्मा आयोग को
साढ़े 4 साल में यह पांचवां ऐसा मामला है जिसकी न्यायिक जांच के आदेश प्रदेश सरकार ने दिए हैं। इससे पहले 24 नवंबर 2024 को हुई संभल हिंसा, 3 जुलाई 2024 को हाथरस भगदड़, अप्रैल 2023 में प्रयागराज में अतीक अहमद और अशरफ हत्या मामला और जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे समेत उसके साथियों के एनकाउंटर का मामला न्यायिक जांच आयोग को सौंपा गया। पुराने केस का स्टेटस क्या?
तीन मामलों में आयोग की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जा चुकी है। संभल हिंसा की जांच जारी है। महाकुंभ भगदड़ का मामला हाल ही में न्यायिक आयोग को सौंपा गया है। माना जा रहा है कि इस जांच को पूरा होने में कम से कम दो महीने का समय लगेगा। आयोग पर सरकार का दबाव होता है या नहीं?
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि जब आयोग का गठन सरकारें करती हैं तो जाहिर है इसमें कहीं न कहीं उनका दखल तो होता ही है। यह पूरी तरह से सरकार की मंशा पर निर्भर करता है कि वह किस तरह की जांच कराना चाहती है? आयोग की रिपोर्ट के मायने क्या? 1991 में सीबीआई ने पलट दी थी आयोग की रिपोर्ट
1991 में पीलीभीत में पुलिस ने 14 आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया था। मामले में न्यायिक जांच आयोग का गठन हुआ। आयोग ने एनकाउंटर काे सही पाया। एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को क्लीनचिट दे दी। सीबीआई जांच में ये फेक एनकाउंटर निकला। सीबीआई ने एनकाउंटर में शामिल सभी 41 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिन्हें उम्र कैद की सजा हुई। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं आपराधिक मामलों में पुलिस या एजेंसी की जांच ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है। पीलीभीत की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ज्यादातर मामलों में पुलिस की थ्योरी पर मुहर
सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र कुमार कहते हैं कि आयोग का अध्यक्ष एक न्यायाधीश या न्यायमूर्ति होता है, इसलिए उस पर कोई उंगली नहीं उठाता। ज्यादातर मामलों में आयोग पुलिस की थ्योरी पर ही मुहर लगाता है। आयोग की कोई अपनी इन्क्वायरी टीम नहीं होती। जो रिटायर जज होते हैं, वह भी ऐसे मामलों के लिए कितने अनुभवी होते हैं, इसका आकलन किया जा सकता है। ज्यादातर रिपोर्ट वे बयानों के आधार पर और विशेषज्ञों की राय के आधार पर बनाते हैं। सुलखान सिंह की मानें तो आयोग की रिपोर्ट के कोई मायने नहीं होते। यह सिर्फ सरकारों की संतुष्टि के लिए होती है। आईपीसी या सीआरपीसी में इसका कभी कोई महत्व नहीं रहा है। लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए इस तरह की जांच के आदेश दिए जाते हैं। घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए आयोग की सिफारिशें जरूर अहम हो सकती हैं। 1954 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में भी न्यायिक जांच आयोग बना था। उस वक्त की सिफारिशों को अभी भी ध्यान में रखकर क्राउड मैनेजमेंट किया जाता है। इन मामलों में जांच का जिम्मा भी आयोग को सौंपा था 1- कानपुर का बिकरू कांड, 8 पुलिसकर्मियों की हुई थी हत्या जुलाई 2020 : कानपुर के बिकरू में 8 पुलिस कर्मियों की हत्या माफिया विकास दुबे और उसके गुर्गों ने कर दी थी। बाद में पुलिस एनकाउंटर में विकास दुबे भी मारा गया। जांच रिटायर जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित न्यायिक जांच आयोग ने की। आयोग ने पुलिस की अधिकतर थ्योरी पर मुहर लगाते हुए अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। 2- पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ की हत्या की जांच अप्रैल 2023 : प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई। जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी (द्वितीय) की अगुआई में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस की थ्योरी पर मुहर लगाई। 3- हाथरस भगदड़ कांड की न्यायिक जांच जुलाई 2024 : हाथरस में भगदड़ में 122 लोगों की मौत हो गई। जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायमूर्ति बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। रिटायर आईएएस हेमंत राव और रिटायर आईपीएस भावेश कुमार सिंह आयोग के सदस्य बनाए गए। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भोले बाबा उर्फ सूरज पाल को क्लीन चिट दे दी। संभल हिंसा की रिपोर्ट का इंतजार 24 नवंबर 2024 : संभल हिंसा में 5 लोगों की मौत मामले की जांच भी न्यायिक आयोग कर रहा है। इसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोड़ा कर रहे हैं। पूर्व अपर मुख्य सचिव, रिटायर्ड आईएएस अमित मोहन प्रसाद और पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन आयोग के सदस्य हैं। आयोग की रिपोर्ट अभी सदन के पटल पर नहीं रखी गई है। सपा सरकार में जवाहर बाग कांड की हुई थी न्यायिक जांच
सपा शासनकाल में 2 जून 2016 को मथुरा में जवाहर बाग से अवैध कब्जा हटवाने गई पुलिस और रामवृक्ष यादव के समर्थकों के बीच संघर्ष हो गया था। दो पुलिस अधिकारी समेत 24 लोगों की जान चली गई थी। मामले की जांच के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रिटायर्ड जज जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट भी पुलिस थ्योरी के इर्द-गिर्द ही थी। —————————– ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ भगदड़- ATS के रडार पर 10 हजार संदिग्ध:हादसा नहीं, साजिश मानकर जांच कर रहीं एजेंसियां प्रयागराज में महाकुंभ भगदड़ की जांच अब साजिश की ओर मुड़ रही है। UP और केंद्र सरकार की एजेंसियां इसे हादसा नहीं, साजिश मानकर जांच कर रही हैं। UP में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS), स्पेशल टास्क फोर्स (STF) और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) के रडार पर 10 हजार से ज्यादा लोग हैं। सबसे ज्यादा CAA और NRC के प्रदर्शनकारी हैं। महाकुंभ में इनमें से कई का मूवमेंट मिला है। पढ़ें पूरी खबर… महाकुंभ भगदड़ की जांच न्यायिक आयोग कर रहा है। एक महीने में जांच पूरी करनी है। आयोग ने महाकुंभ में तैनात अधिकारी से सवाल किए। घटना कहां-कहां हुई और भीड़ को लेकर सुरक्षा के इंतजाम जाने। हादसे के प्रभावित लोगों से बयान दर्ज कराने को कहा। अब सवाल ये है कि क्या न्यायिक अयोग की रिपोर्ट में भगदड़ हादसे का सच सामने आ पाएगा? आयोग की रिपोर्ट की वैल्यू क्या होती है? क्या कभी आयोग की रिपोर्ट के इतर एजेंसी की जांच में विरोधाभास रहा है? न्यायिक जांच आयोग पर क्या सरकार का दबाव नहीं होता? दैनिक भास्कर ने इन सब सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की। साढ़े 4 साल में पांचवी जांच का जिम्मा आयोग को
साढ़े 4 साल में यह पांचवां ऐसा मामला है जिसकी न्यायिक जांच के आदेश प्रदेश सरकार ने दिए हैं। इससे पहले 24 नवंबर 2024 को हुई संभल हिंसा, 3 जुलाई 2024 को हाथरस भगदड़, अप्रैल 2023 में प्रयागराज में अतीक अहमद और अशरफ हत्या मामला और जुलाई 2020 में कानपुर के बिकरू कांड के आरोपी विकास दुबे समेत उसके साथियों के एनकाउंटर का मामला न्यायिक जांच आयोग को सौंपा गया। पुराने केस का स्टेटस क्या?
तीन मामलों में आयोग की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जा चुकी है। संभल हिंसा की जांच जारी है। महाकुंभ भगदड़ का मामला हाल ही में न्यायिक आयोग को सौंपा गया है। माना जा रहा है कि इस जांच को पूरा होने में कम से कम दो महीने का समय लगेगा। आयोग पर सरकार का दबाव होता है या नहीं?
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं कि जब आयोग का गठन सरकारें करती हैं तो जाहिर है इसमें कहीं न कहीं उनका दखल तो होता ही है। यह पूरी तरह से सरकार की मंशा पर निर्भर करता है कि वह किस तरह की जांच कराना चाहती है? आयोग की रिपोर्ट के मायने क्या? 1991 में सीबीआई ने पलट दी थी आयोग की रिपोर्ट
1991 में पीलीभीत में पुलिस ने 14 आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया था। मामले में न्यायिक जांच आयोग का गठन हुआ। आयोग ने एनकाउंटर काे सही पाया। एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को क्लीनचिट दे दी। सीबीआई जांच में ये फेक एनकाउंटर निकला। सीबीआई ने एनकाउंटर में शामिल सभी 41 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिन्हें उम्र कैद की सजा हुई। पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं आपराधिक मामलों में पुलिस या एजेंसी की जांच ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है। पीलीभीत की घटना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ज्यादातर मामलों में पुलिस की थ्योरी पर मुहर
सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र कुमार कहते हैं कि आयोग का अध्यक्ष एक न्यायाधीश या न्यायमूर्ति होता है, इसलिए उस पर कोई उंगली नहीं उठाता। ज्यादातर मामलों में आयोग पुलिस की थ्योरी पर ही मुहर लगाता है। आयोग की कोई अपनी इन्क्वायरी टीम नहीं होती। जो रिटायर जज होते हैं, वह भी ऐसे मामलों के लिए कितने अनुभवी होते हैं, इसका आकलन किया जा सकता है। ज्यादातर रिपोर्ट वे बयानों के आधार पर और विशेषज्ञों की राय के आधार पर बनाते हैं। सुलखान सिंह की मानें तो आयोग की रिपोर्ट के कोई मायने नहीं होते। यह सिर्फ सरकारों की संतुष्टि के लिए होती है। आईपीसी या सीआरपीसी में इसका कभी कोई महत्व नहीं रहा है। लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए इस तरह की जांच के आदेश दिए जाते हैं। घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए आयोग की सिफारिशें जरूर अहम हो सकती हैं। 1954 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में भी न्यायिक जांच आयोग बना था। उस वक्त की सिफारिशों को अभी भी ध्यान में रखकर क्राउड मैनेजमेंट किया जाता है। इन मामलों में जांच का जिम्मा भी आयोग को सौंपा था 1- कानपुर का बिकरू कांड, 8 पुलिसकर्मियों की हुई थी हत्या जुलाई 2020 : कानपुर के बिकरू में 8 पुलिस कर्मियों की हत्या माफिया विकास दुबे और उसके गुर्गों ने कर दी थी। बाद में पुलिस एनकाउंटर में विकास दुबे भी मारा गया। जांच रिटायर जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित न्यायिक जांच आयोग ने की। आयोग ने पुलिस की अधिकतर थ्योरी पर मुहर लगाते हुए अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। 2- पुलिस कस्टडी में अतीक-अशरफ की हत्या की जांच अप्रैल 2023 : प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद और अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या कर दी गई। जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी (द्वितीय) की अगुआई में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन हुआ। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस की थ्योरी पर मुहर लगाई। 3- हाथरस भगदड़ कांड की न्यायिक जांच जुलाई 2024 : हाथरस में भगदड़ में 122 लोगों की मौत हो गई। जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायमूर्ति बृजेश कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया गया। रिटायर आईएएस हेमंत राव और रिटायर आईपीएस भावेश कुमार सिंह आयोग के सदस्य बनाए गए। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भोले बाबा उर्फ सूरज पाल को क्लीन चिट दे दी। संभल हिंसा की रिपोर्ट का इंतजार 24 नवंबर 2024 : संभल हिंसा में 5 लोगों की मौत मामले की जांच भी न्यायिक आयोग कर रहा है। इसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जस्टिस देवेंद्र कुमार अरोड़ा कर रहे हैं। पूर्व अपर मुख्य सचिव, रिटायर्ड आईएएस अमित मोहन प्रसाद और पूर्व डीजीपी अरविंद कुमार जैन आयोग के सदस्य हैं। आयोग की रिपोर्ट अभी सदन के पटल पर नहीं रखी गई है। सपा सरकार में जवाहर बाग कांड की हुई थी न्यायिक जांच
सपा शासनकाल में 2 जून 2016 को मथुरा में जवाहर बाग से अवैध कब्जा हटवाने गई पुलिस और रामवृक्ष यादव के समर्थकों के बीच संघर्ष हो गया था। दो पुलिस अधिकारी समेत 24 लोगों की जान चली गई थी। मामले की जांच के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रिटायर्ड जज जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। इस आयोग की रिपोर्ट भी पुलिस थ्योरी के इर्द-गिर्द ही थी। —————————– ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ भगदड़- ATS के रडार पर 10 हजार संदिग्ध:हादसा नहीं, साजिश मानकर जांच कर रहीं एजेंसियां प्रयागराज में महाकुंभ भगदड़ की जांच अब साजिश की ओर मुड़ रही है। UP और केंद्र सरकार की एजेंसियां इसे हादसा नहीं, साजिश मानकर जांच कर रही हैं। UP में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA), एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS), स्पेशल टास्क फोर्स (STF) और लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (LIU) के रडार पर 10 हजार से ज्यादा लोग हैं। सबसे ज्यादा CAA और NRC के प्रदर्शनकारी हैं। महाकुंभ में इनमें से कई का मूवमेंट मिला है। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर