पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 1995 में पुलिस हिरासत में हुई गमदूर सिंह की मौत के मामले में एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) गुरसेवक सिंह और 4 अन्य पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी ठहराया है। इनमें से दो पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि डीएसपी और दो अन्य को 12 सितंबर को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया गया है, जहां उन्हें सजा सुनाई जाएगी। निचली अदालत के फैसले को चुनौती इससे पहले, निचली अदालत ने डीएसपी और अन्य आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। इसके खिलाफ पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराया। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि डीएसपी गुरसेवक सिंह को भी आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (सामूहिक अपराध) के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। हिरासत में प्रताड़ना और मौत बता दें कि, 14 नवंबर 1995 को रेलवे पुलिस, संगरूर द्वारा गमदूर सिंह और बघेल सिंह को हिरासत में लिया गया था। 9 दिनों की हिरासत के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन गमदूर सिंह की हालत गंभीर थी। उसे चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां चोटों के कारण उसकी मौत हो गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस हिरासत के दौरान गमदूर सिंह को कांस्टेबल कृपाल सिंह ने डंडों से बुरी तरह पीटा, जिससे उसकी पसलियों में गंभीर चोटें आईं। मुख्य गवाह की गवाही पर ध्यान कोर्ट ने गवाह बघेल सिंह की गवाही पर विशेष ध्यान दिया, जो खुद भी गमदूर सिंह के साथ हिरासत में था। बघेल सिंह ने बताया कि डीएसपी गुरसेवक सिंह ने उसे गवाही न देने की धमकी दी थी। बघेल सिंह ने अदालत से सुरक्षा की मांग भी की थी, क्योंकि उसे डीएसपी से खतरा महसूस हो रहा था। कोर्ट ने माना कि डीएसपी भी इस अपराध में शामिल था और सबूतों की समीक्षा के बाद उसे दोषी ठहराया। कोर्ट में पेश होने के आदेश कोर्ट में पेश हुए दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। डीएसपी गुरसेवक सिंह और एक अन्य आरोपी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए, जिसके चलते हाईकोर्ट ने एसएचओ को आदेश दिया कि उन्हें 12 सितंबर को कोर्ट में पेश किया जाए, ताकि उन्हें सजा सनाई जा सके। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 1995 में पुलिस हिरासत में हुई गमदूर सिंह की मौत के मामले में एक पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) गुरसेवक सिंह और 4 अन्य पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी ठहराया है। इनमें से दो पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, जबकि डीएसपी और दो अन्य को 12 सितंबर को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया गया है, जहां उन्हें सजा सुनाई जाएगी। निचली अदालत के फैसले को चुनौती इससे पहले, निचली अदालत ने डीएसपी और अन्य आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। इसके खिलाफ पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराया। न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर और न्यायमूर्ति सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि डीएसपी गुरसेवक सिंह को भी आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (सामूहिक अपराध) के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। हिरासत में प्रताड़ना और मौत बता दें कि, 14 नवंबर 1995 को रेलवे पुलिस, संगरूर द्वारा गमदूर सिंह और बघेल सिंह को हिरासत में लिया गया था। 9 दिनों की हिरासत के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन गमदूर सिंह की हालत गंभीर थी। उसे चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहां चोटों के कारण उसकी मौत हो गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस हिरासत के दौरान गमदूर सिंह को कांस्टेबल कृपाल सिंह ने डंडों से बुरी तरह पीटा, जिससे उसकी पसलियों में गंभीर चोटें आईं। मुख्य गवाह की गवाही पर ध्यान कोर्ट ने गवाह बघेल सिंह की गवाही पर विशेष ध्यान दिया, जो खुद भी गमदूर सिंह के साथ हिरासत में था। बघेल सिंह ने बताया कि डीएसपी गुरसेवक सिंह ने उसे गवाही न देने की धमकी दी थी। बघेल सिंह ने अदालत से सुरक्षा की मांग भी की थी, क्योंकि उसे डीएसपी से खतरा महसूस हो रहा था। कोर्ट ने माना कि डीएसपी भी इस अपराध में शामिल था और सबूतों की समीक्षा के बाद उसे दोषी ठहराया। कोर्ट में पेश होने के आदेश कोर्ट में पेश हुए दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। डीएसपी गुरसेवक सिंह और एक अन्य आरोपी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए, जिसके चलते हाईकोर्ट ने एसएचओ को आदेश दिया कि उन्हें 12 सितंबर को कोर्ट में पेश किया जाए, ताकि उन्हें सजा सनाई जा सके। पंजाब | दैनिक भास्कर
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