कोर कमेटी बनाने के बाद शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने अब पार्टी के संसदीय बोर्ड का भी गठन कर दिया है। बोर्ड में एक चेयरमैन और पांच सदस्यों को शामिल किया गया है। यह फैसला पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने लिया है। इस दौरान बलविंदर सिंह भूंदड़ को बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। अन्य सदस्यों में जनमेजा सिंह सेखों, गुलजार सिंह रणिके, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, डॉ. दलजीत सिंह चीमा और हीरा सिंह गाबड़िया शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी है। तीन पहले पहले गठित की थी कोर कमेटी SAD में बगावत होने के बाद पुरानी कोर कमेटी को भंग कर दिया गया था। उसके बाद नए सिरे से चार अगस्त को कोर कमेटी गठित की गई थी। कमेटी में SGPC प्रधान हरजिंदर सिंह धामी, बलविंदर सिंह भूंदड़, नरेश गुजराल, गुलजार सिंह राणिके, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, डॉ. दलजीत सिंह चीमा, जनमेजा सिंह सेखों, अनिल जोशी, शरणजीत सिंह ढिल्लों, बिक्रम सिंह मजीठिया, हीरा सिंह गाबड़िया, परमरजीत सिंह सरना, मंजीत सिंह जीके इकबाल सिंह झूंदा, प्रो. विरसा सिंह वल्टोहा, गुरबचन सिंह बब्बेहाली, डॉ. सुखविंदर सुक्खी लखबीर सिंह लोधीनंगल, एनके शर्मा, मनतार सिंह बराड़, हरमीत सिंह संधू, सोहन सिंह ठंडल और बलदेव सिंह खैहरा को शामिल किया गया था। कोर कमेटी बनाने के बाद शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने अब पार्टी के संसदीय बोर्ड का भी गठन कर दिया है। बोर्ड में एक चेयरमैन और पांच सदस्यों को शामिल किया गया है। यह फैसला पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने लिया है। इस दौरान बलविंदर सिंह भूंदड़ को बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। अन्य सदस्यों में जनमेजा सिंह सेखों, गुलजार सिंह रणिके, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, डॉ. दलजीत सिंह चीमा और हीरा सिंह गाबड़िया शामिल हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट कर इसकी जानकारी दी है। तीन पहले पहले गठित की थी कोर कमेटी SAD में बगावत होने के बाद पुरानी कोर कमेटी को भंग कर दिया गया था। उसके बाद नए सिरे से चार अगस्त को कोर कमेटी गठित की गई थी। कमेटी में SGPC प्रधान हरजिंदर सिंह धामी, बलविंदर सिंह भूंदड़, नरेश गुजराल, गुलजार सिंह राणिके, महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, डॉ. दलजीत सिंह चीमा, जनमेजा सिंह सेखों, अनिल जोशी, शरणजीत सिंह ढिल्लों, बिक्रम सिंह मजीठिया, हीरा सिंह गाबड़िया, परमरजीत सिंह सरना, मंजीत सिंह जीके इकबाल सिंह झूंदा, प्रो. विरसा सिंह वल्टोहा, गुरबचन सिंह बब्बेहाली, डॉ. सुखविंदर सुक्खी लखबीर सिंह लोधीनंगल, एनके शर्मा, मनतार सिंह बराड़, हरमीत सिंह संधू, सोहन सिंह ठंडल और बलदेव सिंह खैहरा को शामिल किया गया था। पंजाब | दैनिक भास्कर
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हिमाचल में मानसून में पूरी तरह नहीं भरे बांध:भाखड़ा का जलाशय 36 फीट खाली, पड़ोसी राज्यों की खेती पर पड़ेगा असर हिमाचल प्रदेश की नदियों पर बने बांधों के जलाशय इस बार बरसात में भी पूरी तरह नहीं भर पाए हैं। जानकारों की माने तो इसका असर आने वाले दिनों में राजस्थान, पंजाब, और हरियाणा की खेतीबाड़ी पर पड़ सकता है। खासकर भाखड़ा और पौंग बांध को पड़ोसी राज्य की लाइफ लाइन माना जाता है। क्योंकि इन राज्यों की खेतीबाड़ी हिमाचल की नदियों से बहने वाले पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर रहती है। यह पानी नहरों के जरिए पड़ोसी राज्यों के किसानों के खेतों में पहुंचता है। बांध में जब पानी नहीं होगा तो किसानों के खेतों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाएगा। हिमाचल में पावर प्रोडक्शन पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। भाखड़ा बांध का जलाशय इस बार बरसात में भी 11 मीटर और पौंग बांध का जलाशय 8 मीटर खाली खाली रह गया है। बरसात में पूरी तरह भर जाते थे बांध आमतौर पर बरसात में प्रदेश की विभिन्न नदियों पर बने बांध के जलाशय पूरी तरह भर जाते थे। मगर इस बार ज्यादातर बांध के जलाशय 10 से 120 फीट तक खाली पड़े हैं। क्योंकि इस बार मानसून सीजन में सामान्य से 18 प्रतिशत कम बारिश हुई है। चिंता इस बात की है कि मानसून के बाद पोस्ट मानसून सीजन में भी प्रदेश में बारिश नहीं हो रही। प्रदेश में मानसून की विदाई के बाद से यानी एक से 15 अक्टूबर के बीच सामान्य से 95 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अगले 5-6 दिन तक भी बारिश के आसार नहीं है। भाखड़ा बांध का जलाशय 36 फीट खाली भारत की सबसे बड़ी बहु उद्देशीय जल विद्युत परियोजना भाखड़ा बांध का जलाशय 11 मीटर यानी 36 फीट से ज्यादा खाली पड़ा है। पार्वती-2 प्रोजेक्ट का जलाशय लगभग 118 फीट, मलाणा-1 का जलाशय 45 फीट और पौंग डेम का जलाशय भी लगभग 26 फीट खाली पड़ा है। मानसून विड्रा होने के बाद हर रोज बांधों के जलाशय में जल स्तर धीरे धीरे कम होता जा रहा है। इससे उत्तर भारत में जल संकट गहरा सकता है। प्रदेश में जैसे जैसे सर्दी बढ़ रही है। इससे ग्लेशियर पिघलने भी बंद हो रहे है। इससे नदियों में वाटर लेवल और गिरेगा और बिजली उत्पादन के लिए पानी की कमी खलनी शुरू होगी। सर्दियों में 15-20% रह जाता है विद्युत उत्पादन बता दें कि सर्दियों में ग्लेशियर जमने के बाद नदी नालों में जल स्तर गिर जाता है। इससे हिमाचल में कुल क्षमता का मुश्किल से 15 से 20 प्रतिशत विद्युत उत्पादन हो पाता है। जाहिर है कि जो बांध पहले ही पूरी तरह नहीं भर पाए, आने वाले दिनों में जब ग्लेशियर पिघलने बंद होंगे, इससे बांधों में जल स्तर और तेजी से गिरेगा।
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पंजाबी सूबा दिवस आज:सुखबीर बादल ने कहा- पंजाब के साथ केंद्र का मतभेद जारी; SGPC बोली-पंजाबियों के साथ हुई बेईमानी आज 1 नवंबर को पूरे पंजाब में दिवाली और बंदी छोड़ दिवस के साथ पंजाबी राज्य दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन 1966 में पंजाबी राज्य के अस्तित्व में आने की स्मृति के रूप में मनाया जाता है। जब हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को भाषा के आधार पर अलग कर पंजाब को अलग कर दिया गया था। अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल ने इस दिन पर केंद्र सरकार पर मतभेद के आरोप लगाते हुए सोशल मीडिया X पर एक पोस्ट को शेयर किया है। जिसमें उन्होंने कहा- देश की आजादी के लिए सबसे ज्यादा बलिदान देने वाले सिख समुदाय से कांग्रेस नेताओं ने आजादी से पहले कई वादे किए थे। लेकिन जैसे ही देश आजाद हुआ, कांग्रेस नेता उन वादों से मुकर गए। इन्हीं ज्यादतियों के आक्रोश से शिरोमणि अकाली दल के नेतृत्व में मातृभाषा पंजाबी भाषा के आधार पर ‘पंजाबी प्रांत’ की मांग उठी, जिसके लिए हजारों अकाली नेताओं ने केंद्र सरकार की यातनाएं सहन की और चले गए। जेल गए, धरने दिए और सभी प्रकार की जबरदस्ती का विरोध किया। आखिरकार लंबे संघर्ष और कई बलिदानों के बाद 1 नवंबर, 1966 को ‘पंजाबी प्रांत’ का गठन हुआ। केंद्र सरकार का पंजाब के साथ भेदभाव लगातार जारी है, हमारी जायज़ मांगें आज तक भी नहीं मानी गईं। शिरोमणि अकाली दल इसके लिए संघर्ष करता रहेगा। SGPC ने कहा- पंजाब तकसीम दार तकसीम होता गया सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की तरफ से भी इस दिन पर केंद्र के खिलाफ रोष जाहिर किया गया है। SGPC के सोशल मीडिया पेज पर पोस्ट शेयर की गई। जिसमें लिखा है- आज ही के दिन 1966 में भाषा के आधार पर विभाजित पंजाबी राज्य अस्तित्व में आया था। भारत के विभाजन के बाद दक्षिण से लेकर उत्तर तक भाषा के आधार पर प्रांतों के परिसीमन का मुद्दा उठा। आंध्र प्रदेश के गठन के बाद पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने पंजाबी राज्य की मांग रखी। एक लंबे संघर्ष के बाद (जिसमें हजारों सिखों ने जेल भरीं, यातनाएं झेली, शहादतें दी) 1 नवंबर 1966 को पंजाबी को एक राज्य बनाया गया। केंद्र ने पंजाबियों के साथ बेईमानी करते हुए जान-बूझकर कई पंजाबी भाषी क्षेत्रों को हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान में मिला लिया, न केवल पंजाब को खंडित कर दिया, बल्कि उसके जल, बांधों और राजधानी पर भी कब्जा करके बड़ी चोट पहुंचाई। पंजाब पुनर्गठन का इतिहास 1960 के दशक में पंजाबी सूबा आंदोलन के तहत सिखों और पंजाबी भाषी लोगों ने एक अलग राज्य की मांग की थी। 1966 में यह मांग पूरी हुई, और भाषा के आधार पर पंजाब का पुनर्गठन हुआ। इसके बाद पंजाब को मुख्य रूप से पंजाबी बोलने वालों का राज्य घोषित किया गया और हरियाणा को एक अलग हिंदी भाषी राज्य के रूप में पहचान मिली। साथ ही, हिमाचल प्रदेश का भी एक अलग राज्य के रूप में गठन किया गया। इस पुनर्गठन का उद्देश्य भाषाई और सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करना था।