हरियाणा में अनजान परिवारों ने एक-दूसरे के मरीजों को लिवर दान कर जान बचा ली। खास बात यह है कि एक परिवार पंजाब का है तो दूसरा हिमाचल प्रदेश का। दोनों की मुलाकात हरियाणा के फरीदाबाद में हुई। जहां ब्लड ग्रुप सेम होने पर दोनों ने एक-दूसरे के मरीज को लिवर डोनेट करने की सहमति दे दी। जिसके बाद प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर दोनों मरीजों के सफल लिवर ट्रांसप्लांट कर दिए। हिमाचल प्रदेश के परिवार के पिता को 23 साल की बेटी लिवर देने के लिए राजी थी। वहीं पंजाब के बीमार पति को पत्नी लिवर देने को तैयार थी। हालांकि दोनों केसों में मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप अलग-अलग था, इसकी वजह से समस्या हो रही थी। ये दोनों ही मरीज लिवर सिरोसिस की बीमारी से जूझ रहे थे। लिवर ट्रांसप्लांट से जुड़े दोनों केसों के बारे में सिलसिलेवार ढंग से जानिए… हिमाचल के शशिपाल का 2 साल पहले लिवर खराब हुआ
हिमाचल में कुल्लू जिले के रहने वाले 45 वर्षीय शशिपाल को 2 साल पहले लिवर की बिमारी का पता चला था। प्लेटलेट्स कम होने पर उन्होंने डॉक्टरों के कहने पर टेस्ट कराए। तब पता चला कि उन्हें लिवर सिरोसिस की बिमारी है। कुछ समय में उनका वजन बढ़ना शुरू हो गया। उनकी हालत खराब होती चली गई। डॉक्टरों ने रिपोर्ट को देखते हुए उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी। IAS अधिकारी बनने के लिए UPSC एग्जाम की तैयारी कर रही शशिपाल की 23 वर्षीय बेटी सोनल पिता को लिवर देने के लिए तैयार हो गई। शशिपाल का ब्लड ग्रुप B था, जबकि बेटी का ब्लड ग्रुप A था। शशिपाल में उनकी बेटी के ब्लड ग्रुप के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर बहुत अधिक मिला। डॉक्टरों ने बताया कि ब्लड ग्रुप मिस मैच होने की वजह से सोनल शशिपाल को लिवर नहीं दे सकती। पंजाब के अभिषेक को डेढ़ साल पहले बीमारी का पता चला
पंजाब के रहने वाले 32 वर्षीय अभिषेक शर्मा करीब डेढ़ साल पहले एक दिन अचानक बेहोश होकर गिर गए। उनका वजन कम हो गया और बहुत कमजोर हो गए। उन्हें पहले हेपेटाइटिस की शिकायत थी। बाद में डॉक्टरों के कहने पर जांच कराई तो पता चला कि उन्हें सिरोसिस है। अभिषेक की पत्नी उन्हें लिवर देने के लिए तैयार थी, लेकिन यहां भी शशिपाल की तरह हुआ। अभिषेक शर्मा का ब्लड ग्रुप A था, जबकि उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप B था। दोनों ही परिवार ट्रांसप्लांट को लेकर फरीदाबाद में डॉ. पुनीत सिंगला से मिले। डॉ. सिंगला बोले- स्वैप ट्रांसप्लांट बड़ा चैलेंज डॉ. पुनीत सिंगला ने बताया कि दोनों मरीज के परिवार में सेम ब्लड ग्रुप के डोनर नहीं थे। एक मरीज का ब्लड ग्रुप A था, उनके पास B ब्लड ग्रुप का डोनर था। दूसरे मरीज का ब्लड ग्रुप B था और उनके पास A ब्लड ग्रुप का डोनर था। अस्पताल में आने के बाद दोनों परिवारों को आपस में मिलवाया। बातचीत करने के बाद दोनों परिवार एक दूसरे का डोनर बनने के लिए सहमत हो गए। डॉक्टरों की भाषा में इसे स्वैप ट्रांसप्लांट कहा था। मतलब, एक फैमिली के अंदर ब्लड ग्रुप मैचिंग नहीं है तो एक फैमिली दूसरे को लिवर दे सकती है। फरीदाबाद में पहली बार सफल स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है। स्वैप ट्रांसप्लांट अपने आप में एक चैलेंज जैसा है। दोनों परिवारों को एक दूसरे से मिलाना, इसके बाद मरीज की जान बचाने के लिए उन्हें सहमत करने के लिए विस्तार से बताया जाता है।
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बच्चे के सिर में घुसी जंग लगी रॉड, PGI में निकाली,डॉक्टर बोले- ब्रेन के लेफ्ट साइड थी, यादाश्त खोने, आवाज जाने और पैरालिसिस का खतरा था; 4 घंटे लगे हरियाणा के रोहतक स्थित पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस PGI में पहली बार किसी बच्चे के सिर में घुसी लोहे की रॉड को सफलतापूर्वक निकाला गया। रॉड 8-10 सेंटीमीटर तक सिर के अंदर घुस चुकी थी। डॉक्टरों की 4 घंटे की मेहनत से बच्चे की जान बच गई। मेवात से PGI पहुंचे परिवार के मुताबिक उनका 14 वर्षीय बेटा नौशाद गिर गया था। जहां उसके सिर में रॉड घुस गई। पूरी खबर पढ़ें हरियाणा में अनजान परिवारों ने एक-दूसरे के मरीजों को लिवर दान कर जान बचा ली। खास बात यह है कि एक परिवार पंजाब का है तो दूसरा हिमाचल प्रदेश का। दोनों की मुलाकात हरियाणा के फरीदाबाद में हुई। जहां ब्लड ग्रुप सेम होने पर दोनों ने एक-दूसरे के मरीज को लिवर डोनेट करने की सहमति दे दी। जिसके बाद प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टरों ने ऑपरेशन कर दोनों मरीजों के सफल लिवर ट्रांसप्लांट कर दिए। हिमाचल प्रदेश के परिवार के पिता को 23 साल की बेटी लिवर देने के लिए राजी थी। वहीं पंजाब के बीमार पति को पत्नी लिवर देने को तैयार थी। हालांकि दोनों केसों में मरीज और डोनर का ब्लड ग्रुप अलग-अलग था, इसकी वजह से समस्या हो रही थी। ये दोनों ही मरीज लिवर सिरोसिस की बीमारी से जूझ रहे थे। लिवर ट्रांसप्लांट से जुड़े दोनों केसों के बारे में सिलसिलेवार ढंग से जानिए… हिमाचल के शशिपाल का 2 साल पहले लिवर खराब हुआ
हिमाचल में कुल्लू जिले के रहने वाले 45 वर्षीय शशिपाल को 2 साल पहले लिवर की बिमारी का पता चला था। प्लेटलेट्स कम होने पर उन्होंने डॉक्टरों के कहने पर टेस्ट कराए। तब पता चला कि उन्हें लिवर सिरोसिस की बिमारी है। कुछ समय में उनका वजन बढ़ना शुरू हो गया। उनकी हालत खराब होती चली गई। डॉक्टरों ने रिपोर्ट को देखते हुए उन्हें लिवर ट्रांसप्लांट कराने की सलाह दी। IAS अधिकारी बनने के लिए UPSC एग्जाम की तैयारी कर रही शशिपाल की 23 वर्षीय बेटी सोनल पिता को लिवर देने के लिए तैयार हो गई। शशिपाल का ब्लड ग्रुप B था, जबकि बेटी का ब्लड ग्रुप A था। शशिपाल में उनकी बेटी के ब्लड ग्रुप के खिलाफ एंटीबॉडी का स्तर बहुत अधिक मिला। डॉक्टरों ने बताया कि ब्लड ग्रुप मिस मैच होने की वजह से सोनल शशिपाल को लिवर नहीं दे सकती। पंजाब के अभिषेक को डेढ़ साल पहले बीमारी का पता चला
पंजाब के रहने वाले 32 वर्षीय अभिषेक शर्मा करीब डेढ़ साल पहले एक दिन अचानक बेहोश होकर गिर गए। उनका वजन कम हो गया और बहुत कमजोर हो गए। उन्हें पहले हेपेटाइटिस की शिकायत थी। बाद में डॉक्टरों के कहने पर जांच कराई तो पता चला कि उन्हें सिरोसिस है। अभिषेक की पत्नी उन्हें लिवर देने के लिए तैयार थी, लेकिन यहां भी शशिपाल की तरह हुआ। अभिषेक शर्मा का ब्लड ग्रुप A था, जबकि उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप B था। दोनों ही परिवार ट्रांसप्लांट को लेकर फरीदाबाद में डॉ. पुनीत सिंगला से मिले। डॉ. सिंगला बोले- स्वैप ट्रांसप्लांट बड़ा चैलेंज डॉ. पुनीत सिंगला ने बताया कि दोनों मरीज के परिवार में सेम ब्लड ग्रुप के डोनर नहीं थे। एक मरीज का ब्लड ग्रुप A था, उनके पास B ब्लड ग्रुप का डोनर था। दूसरे मरीज का ब्लड ग्रुप B था और उनके पास A ब्लड ग्रुप का डोनर था। अस्पताल में आने के बाद दोनों परिवारों को आपस में मिलवाया। बातचीत करने के बाद दोनों परिवार एक दूसरे का डोनर बनने के लिए सहमत हो गए। डॉक्टरों की भाषा में इसे स्वैप ट्रांसप्लांट कहा था। मतलब, एक फैमिली के अंदर ब्लड ग्रुप मैचिंग नहीं है तो एक फैमिली दूसरे को लिवर दे सकती है। फरीदाबाद में पहली बार सफल स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है। स्वैप ट्रांसप्लांट अपने आप में एक चैलेंज जैसा है। दोनों परिवारों को एक दूसरे से मिलाना, इसके बाद मरीज की जान बचाने के लिए उन्हें सहमत करने के लिए विस्तार से बताया जाता है।
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