ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने पठानकोट की सिंबल पोस्ट को भी निशाना बनाया था। ये वही पोस्ट है जिसे छीनने के लिए 4 दिसंबर 1971 को अमृतसर के रहने वाले नायक कमलजीत सिंह पाकिस्तानी सेना से अकेले भिड़ गए थे। नायक कमलजीत कम गोला-बारूद के बावजूद पाकिस्तानियों से लड़ते रहे। बाद में पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पाकिस्तानियों ने उनका सिर कलम कर पठानकोट की सिंबल पोस्ट के ही पास बेरी के पेड़ से टांग दिया था और लिखा-“ये रहा हमारा भारत की BSF को तोहफा”। इनकी हिम्मत और बलिदान के चलते 7 दिसंबर 1971 को BSF और सेना ने जॉइंट ऑपरेशन में इस पोस्ट से दुश्मन को खदेड़ दिया। बाद में शहीद कमलजीत की पार्थिव देह को भी पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से छुड़वाया गया। जानिए कौन थे नायक कमलजीत
कमलजीत का जन्म 18 जुलाई 1945 को अमृतसर में हुआ। इनकी मां का नाम करतार कौर व पिता बहादुर सिंह थे। इन्होंने सरकारी हाई स्कूल अमृतसर से 10वीं क्लास पास की। इसके बाद वह BSF की 20 बटालियन में रेडियो ऑपरेटर भर्ती हुए। 1971 के युद्ध में पठानकोट की सिंबल पोस्ट को बचाते हुए इन्होंने बलिदान दे दिया। पढ़िए सिंबल सकोल पोस्ट को बचाने और नायक कंवलजीत की पूरी कहानी साल 1971, तारीख-4 दिसंबर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने पंजाब के पठानकोट की जीरो लाइन पर BSF की सिंबल पोस्ट पर भयंकर गोलाबारी शुरू कर दी। यहां पर रेडियो ऑपरेटर के तौर पर नायक कमलजीत ड्यूटी दे रहे थे। इन्होंने रेडियो ऑपरेटर के नाते इसकी सूचना अपने साथियों को दी। भारी गोलाबारी में साथी पीछे हटे तो अकेले भिड़ गए कमलजीत
सैनिकों की भलाई के लिए काम करने वाले गुरदासपुर के कुंवर रविंदर विक्की ने बताया कि कमलजीत ने पाकिस्तान के हमले के बारे में साथी जवानों को बताया तो उन्होंने ये कहते हुए हमले का जवाब देने से मना कर दिया कि उनकी संख्या बहुत कम है और पीछे हटने में ही भलाई है। ये कहकर साथी जवान पीछे हट गए, लेकिन कमलजीत ने उनको कहा, आपको जाना है तो जाओ मैं अपनी पोस्ट पर कब्जा नहीं होने दूंगा। नायक कमलजीत सिंह के साथियों को कहे अंतिम शब्द तुम जाना चाहते तो जाओ, मैं पाकिस्तानियों को अपनी पोस्ट पर किसी सूरत में कब्जा नहीं करने दूंगा, मैं अंतिम सांस तक इनके साथ लडूंगा अंतिम गोली तक लड़े, पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार किया
साथियों के पीछे हटने पर सीमित गोला-बारूद के साथ कंवलजीत कई घंटे तक पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी का जवाब देते रहे और पोस्ट को सुरक्षित रखा। इस बीच पाकिस्तान के सैनिक पोस्ट के काफी करीब तक आ गए और नायक कमलजीत को गिरफ्तार कर लिया। सिर कलम कर बेरी के पेड़ पर टांग दिया
गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के सैनिकों ने युद्धबंदी के साथ गलत व्यवहार किया और उनका सिर कलम कर दिया। इसके बाद धड़ को अपने कब्जे में रखा और सिर को सिंबल पोस्ट के पास ही एक बेरी के पेड़ से टांग दिया। इसके साथ BSF के लिए एक लेटर भी छोड़ा। BSF को लिखा-ये रहा हमारी तरफ से तोहफा
कमलजीत का सिर कलम करने के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने इसके साथ रिटन में एक संदेश भेजा। इसमें लिखा था कि ये रहा हमारी तरफ से भारतीय BSF को तोहफा। BSF ने कटा सिर बरामद कर इस पर लिखे संदेश को अधिकारियों तक पहुंचाया। घटना के तीसरे दिन BSF-आर्मी ने किया जॉइंट ऑपरेशन
घटना के तीसरे दिन यानी 7 दिसंबर 1971 को BSF और आर्मी ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ जॉइंट ऑपरेशन शुरू कर दिया। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के फौजियों को मारकर उनके टैंकों को तबाह कर दिया और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद सिंबल पोस्ट पर कब्जा कर तिरंगा लहरा दिया। नायक की पार्थिव देह पाकिस्तान की फौज के कब्जे से लाए
BSF और आर्मी ने जॉइंट ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान की सेना को पीछे खदेड़ा और अपने नायक कमलजीत के बलिदान के बदले कई पाकिस्तानियों का मारा। इसके बाद पाकिस्तान की फौज के कब्जे से नायक कमलजीत की पार्थिव देह को लेकर आए और उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। पाकिस्तान बुरी तरह हारा, पैंटन टैंक छोड़कर भागा
1971 की जंग में पाकिस्तानी फौज जिन पैंटन टैंकों के दम पर पंजाब के रास्ते भारत में घुसने और पंजाब पर कब्जा करने की योजना बना रही थी, उन्हीं पैंटन टैंकों को छोड़कर भाग गई। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के कई टैंक तो तबाह किए ही साथ ही कई टैंकों पर कब्जा भी कर लिया। कई पैंटन टैंक साथ लेकर आई BSF-आर्मी
पाकिस्तान की सेना को पंजाब के मोर्चे और सिंबल पोस्ट से भगाने के बाद इंडियन आर्मी पाकिस्तान के कई टैंकों को अपने साथ लेकर आ गई। कुंवर रविंदर विक्की बताते हैं कि भारतीय सेना इन टैंकों को इसलिए साथ लाई थी ताकि आने वाली पीढ़ियों को याद रहे कि सिंबल पोस्ट को किस बहादुरी के साथ जीता गया था। जीते टैंक आज भी पठानकोट में, एक टैंक चौक पर लगा
जीते गए टैंकों को इंडियन आर्मी और बीएसएफ अपने साथ ले आई और कब्जे में रखा। युद्ध खत्म होने के बाद इन्हें पाकिस्तान को नहीं लौटाया गया। पाकिस्तान से जीता गया एक पैंटन टैंक आज भी पठानकोट के चौक में लगा है। इस चौक को टैंक चौक के नाम से जाना जाता है। सिंबल पोस्ट का नामकरण नायक कमलजीत के नाम से किया
पाकिस्तान से युद्ध खत्म होने के बाद सिंबल पोस्ट का नामकरण नायक कमलजीत के नाम से किया गया और यहां उनके नाम से ही भव्य स्मारक बनाया गया। सिंबल के लोगों का मानना है कि आज भी नायक कमलजीत उनके गांव की रक्षा करते हैं। कभी-कभी उन्हें सफेद कपड़ों में घोड़े पर बैठा कोई फरिश्ता घूमता नजर आता है। हालांकि ये लोगों में प्रचलित है, लेकिन भास्कर ऐसे किसी भी फैक्ट का दावा नहीं करता। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी सिंबल गांव में डटे रहे लोग
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की तरफ से किए गए ड्रोन अटैक के दौरान सिंबल पोस्ट के आस-पास धमाके होते रहे। इस दौरान भी इस गांव के लोग डरे नहीं और गांव में ही डटे रहे। अब भी लोग जीरो लाइन के पास खेती कर रहे हैं और धान की पनीरी की तैयारी कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान ने पठानकोट की सिंबल पोस्ट को भी निशाना बनाया था। ये वही पोस्ट है जिसे छीनने के लिए 4 दिसंबर 1971 को अमृतसर के रहने वाले नायक कमलजीत सिंह पाकिस्तानी सेना से अकेले भिड़ गए थे। नायक कमलजीत कम गोला-बारूद के बावजूद पाकिस्तानियों से लड़ते रहे। बाद में पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पाकिस्तानियों ने उनका सिर कलम कर पठानकोट की सिंबल पोस्ट के ही पास बेरी के पेड़ से टांग दिया था और लिखा-“ये रहा हमारा भारत की BSF को तोहफा”। इनकी हिम्मत और बलिदान के चलते 7 दिसंबर 1971 को BSF और सेना ने जॉइंट ऑपरेशन में इस पोस्ट से दुश्मन को खदेड़ दिया। बाद में शहीद कमलजीत की पार्थिव देह को भी पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से छुड़वाया गया। जानिए कौन थे नायक कमलजीत
कमलजीत का जन्म 18 जुलाई 1945 को अमृतसर में हुआ। इनकी मां का नाम करतार कौर व पिता बहादुर सिंह थे। इन्होंने सरकारी हाई स्कूल अमृतसर से 10वीं क्लास पास की। इसके बाद वह BSF की 20 बटालियन में रेडियो ऑपरेटर भर्ती हुए। 1971 के युद्ध में पठानकोट की सिंबल पोस्ट को बचाते हुए इन्होंने बलिदान दे दिया। पढ़िए सिंबल सकोल पोस्ट को बचाने और नायक कंवलजीत की पूरी कहानी साल 1971, तारीख-4 दिसंबर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने पंजाब के पठानकोट की जीरो लाइन पर BSF की सिंबल पोस्ट पर भयंकर गोलाबारी शुरू कर दी। यहां पर रेडियो ऑपरेटर के तौर पर नायक कमलजीत ड्यूटी दे रहे थे। इन्होंने रेडियो ऑपरेटर के नाते इसकी सूचना अपने साथियों को दी। भारी गोलाबारी में साथी पीछे हटे तो अकेले भिड़ गए कमलजीत
सैनिकों की भलाई के लिए काम करने वाले गुरदासपुर के कुंवर रविंदर विक्की ने बताया कि कमलजीत ने पाकिस्तान के हमले के बारे में साथी जवानों को बताया तो उन्होंने ये कहते हुए हमले का जवाब देने से मना कर दिया कि उनकी संख्या बहुत कम है और पीछे हटने में ही भलाई है। ये कहकर साथी जवान पीछे हट गए, लेकिन कमलजीत ने उनको कहा, आपको जाना है तो जाओ मैं अपनी पोस्ट पर कब्जा नहीं होने दूंगा। नायक कमलजीत सिंह के साथियों को कहे अंतिम शब्द तुम जाना चाहते तो जाओ, मैं पाकिस्तानियों को अपनी पोस्ट पर किसी सूरत में कब्जा नहीं करने दूंगा, मैं अंतिम सांस तक इनके साथ लडूंगा अंतिम गोली तक लड़े, पाकिस्तानी सेना ने गिरफ्तार किया
साथियों के पीछे हटने पर सीमित गोला-बारूद के साथ कंवलजीत कई घंटे तक पाकिस्तानी सेना की गोलाबारी का जवाब देते रहे और पोस्ट को सुरक्षित रखा। इस बीच पाकिस्तान के सैनिक पोस्ट के काफी करीब तक आ गए और नायक कमलजीत को गिरफ्तार कर लिया। सिर कलम कर बेरी के पेड़ पर टांग दिया
गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान के सैनिकों ने युद्धबंदी के साथ गलत व्यवहार किया और उनका सिर कलम कर दिया। इसके बाद धड़ को अपने कब्जे में रखा और सिर को सिंबल पोस्ट के पास ही एक बेरी के पेड़ से टांग दिया। इसके साथ BSF के लिए एक लेटर भी छोड़ा। BSF को लिखा-ये रहा हमारी तरफ से तोहफा
कमलजीत का सिर कलम करने के बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने इसके साथ रिटन में एक संदेश भेजा। इसमें लिखा था कि ये रहा हमारी तरफ से भारतीय BSF को तोहफा। BSF ने कटा सिर बरामद कर इस पर लिखे संदेश को अधिकारियों तक पहुंचाया। घटना के तीसरे दिन BSF-आर्मी ने किया जॉइंट ऑपरेशन
घटना के तीसरे दिन यानी 7 दिसंबर 1971 को BSF और आर्मी ने पाकिस्तानी फौज के खिलाफ जॉइंट ऑपरेशन शुरू कर दिया। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के फौजियों को मारकर उनके टैंकों को तबाह कर दिया और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद सिंबल पोस्ट पर कब्जा कर तिरंगा लहरा दिया। नायक की पार्थिव देह पाकिस्तान की फौज के कब्जे से लाए
BSF और आर्मी ने जॉइंट ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान की सेना को पीछे खदेड़ा और अपने नायक कमलजीत के बलिदान के बदले कई पाकिस्तानियों का मारा। इसके बाद पाकिस्तान की फौज के कब्जे से नायक कमलजीत की पार्थिव देह को लेकर आए और उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। पाकिस्तान बुरी तरह हारा, पैंटन टैंक छोड़कर भागा
1971 की जंग में पाकिस्तानी फौज जिन पैंटन टैंकों के दम पर पंजाब के रास्ते भारत में घुसने और पंजाब पर कब्जा करने की योजना बना रही थी, उन्हीं पैंटन टैंकों को छोड़कर भाग गई। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के कई टैंक तो तबाह किए ही साथ ही कई टैंकों पर कब्जा भी कर लिया। कई पैंटन टैंक साथ लेकर आई BSF-आर्मी
पाकिस्तान की सेना को पंजाब के मोर्चे और सिंबल पोस्ट से भगाने के बाद इंडियन आर्मी पाकिस्तान के कई टैंकों को अपने साथ लेकर आ गई। कुंवर रविंदर विक्की बताते हैं कि भारतीय सेना इन टैंकों को इसलिए साथ लाई थी ताकि आने वाली पीढ़ियों को याद रहे कि सिंबल पोस्ट को किस बहादुरी के साथ जीता गया था। जीते टैंक आज भी पठानकोट में, एक टैंक चौक पर लगा
जीते गए टैंकों को इंडियन आर्मी और बीएसएफ अपने साथ ले आई और कब्जे में रखा। युद्ध खत्म होने के बाद इन्हें पाकिस्तान को नहीं लौटाया गया। पाकिस्तान से जीता गया एक पैंटन टैंक आज भी पठानकोट के चौक में लगा है। इस चौक को टैंक चौक के नाम से जाना जाता है। सिंबल पोस्ट का नामकरण नायक कमलजीत के नाम से किया
पाकिस्तान से युद्ध खत्म होने के बाद सिंबल पोस्ट का नामकरण नायक कमलजीत के नाम से किया गया और यहां उनके नाम से ही भव्य स्मारक बनाया गया। सिंबल के लोगों का मानना है कि आज भी नायक कमलजीत उनके गांव की रक्षा करते हैं। कभी-कभी उन्हें सफेद कपड़ों में घोड़े पर बैठा कोई फरिश्ता घूमता नजर आता है। हालांकि ये लोगों में प्रचलित है, लेकिन भास्कर ऐसे किसी भी फैक्ट का दावा नहीं करता। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी सिंबल गांव में डटे रहे लोग
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की तरफ से किए गए ड्रोन अटैक के दौरान सिंबल पोस्ट के आस-पास धमाके होते रहे। इस दौरान भी इस गांव के लोग डरे नहीं और गांव में ही डटे रहे। अब भी लोग जीरो लाइन के पास खेती कर रहे हैं और धान की पनीरी की तैयारी कर रहे हैं। पंजाब | दैनिक भास्कर
