महाकुंभ में पेठा कारोबारी की 13 साल की गौरी (बदला नाम) को संन्यासी बनाकर सुर्खियों में आए महामंडलेश्वर कौशल गिरि लापता हैं। वे कहां हैं, किसी को पता नहीं। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने लड़की का संन्यास वापस कर दिया। जूना अखाड़ा ने कौशल गिरि को 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया। गौरी आगरा के डौकी में अपने घर पहुंच चुकी हैं। वह साध्वी की तरह जीवन जी रही हैं। सामने आया कि वह कौशल गिरी के दूर के रिश्ते से भांजी लगती है। कौशल गिरि महाराज के बारे में जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल टीम आगरा में उनके पैतृक गांव करौंधना पहुंची। कौशल गिरी ने संन्यास कब लिया? गांव कब छोड़ा? संन्यास लेने के बाद कहां गए? इन सवालों पर हमने परिवार के लोगों से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… घर की 2 तस्वीर कौशल गिरी के घर का नाम लटूरी
दैनिक भास्कर डिजिटल टीम आगरा से 35 किमी दूर फतेहाबाद पहुंची। कौशल गिरी के गांव जाने के लिए इरादतनगर से मेन रोड होते हुए करीब 1 किमी अंदर पहुंचे। यहां एक जगह पर लोग इकट्ठा थे। कौशल गिरी का घर कौन सा है? यह पूछने पर हमें एक घर की तरफ भेजा गया। घर के बाहर खाली जगह थी। यहां गाय-भैंस बंधी हुईं थीं। एक चबूतरे पर चारपाई पड़ी थी। कुछ लोग बैठे बात रहे थे। घर के तरफ जाने के रास्ते पर एक ऑटो खड़ा था। बताया गया इसको छोटा भाई बंटी चलाता है। घर के बाहर ही कौशल गिरी के चाचा प्रेमवीर सिंह से मुलाकात हुई। वह बोले कैमरा मत चलाइए, ऐसे ही पूछ लीजिए, क्या जानना चाहते हैं। हमने पूछा- कौशल गिरी महाराज के बारे में कुछ बताइए? वह कहते हैं- इधर कुछ दिन से अखबार और टीवी पर उनके बारे में देख-पढ़ रहे हैं। कौशल गिरी चार भाई हैं। सबसे बडे़ भाई का नाम भीमसेन, दूसरे नंबर के सुखवीर, तीसरे नंबर पर लटूरी उर्फ कौशल गिरी और सबसे छोटे भाई का नाम बंटी है। हमने पूछा कि बाबा का नाम लटूरी है? उन्होंने कहा- हां, बिल्कुल…यहां लोग इसी नाम से जानते हैं। बाबा तो वह बाद में बने, पहले तो गांव के लटूरी ही थे। भाई बोले- पिता के मरने पर नहीं आए, हमारा कोई वास्ता नहीं
कौशल गिरी के घर में हमें उनके छोटे भाई बंटी मिले। वह पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं। हमने पूछा- क्या कौशल गिरी से बात होती है? वह कहते हैं- हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं…। वो साधु हो गए। वह छोटे थे, तभी घर छोड़ गए। कई साल से हमारी बात भी नहीं हुई। 2018 में जब हमारे पिता का देहांत हुआ, तब लटूरी को फोन करके बताया, मगर वो घर नहीं आए। उनका कहना था कि अब मेरा कोई घर नहीं, कोई पिता नहीं। वो भी हमें अपना भाई नहीं मानते हैं। हमने पूछा- कभी गांव आए हैं? बंटी ने कहा- दो से तीन साल में प्रवचन के लिए गांव आते हैं, मगर कभी घर नहीं आए। मंदिर में ही रहते हैं। वहां 1 या 2 दिन ठहरते हैं। गांव आने पर भी हम लोगों की कोई बात नहीं होती है। भाई ने कहा- भैया कहने पर बुरा मान गए, पिता से पैर छुआया
बंटी कहते हैं- एक कथा के दौरान कौशल गिरी सामने आ गए। तब उन्हें भइया कह दिया। वो बुरा मान गए। भला-बुरा कहने लगे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पिता से भी पैर छुआ लिए। उनको भी नाम लेकर बुलाते थे। ऐसे भाई का क्या फायदा जो हमारे सुख-दुख में शामिल नहीं हुआ। हमने भी उनसे नाता तोड़ दिया। पिता की जो संपत्ति हमारे पास है, उसमें भी हम उन्हें कोई हिस्सा नहीं देंगे। न तो उनका यहां का आधार कार्ड है, न ही वोटर कार्ड। भाई बोले- साधु न बन जाए, इसलिए पापा ने कमरे में बंद किया
हमने बंटी से सवाल किया कि कौशल गिरी के संन्यास लेने से जुड़ा कोई किस्सा बताइए? उन्होंने कहा- वह बचपन से मंदिर जाते थे। पिताजी को लगा कि वो संन्यासी न हो जाए। इसलिए एक दिन कमरे में बंद कर दिया। कौशल बहुत चिल्लाए, रोए, मगर दरवाजा नहीं खोला गया।
शाम को जब दरवाजा खुला, तब वह फिर मंदिर पहुंच गए। हम लोग उसी दिन समझ गए थे कि अब हमारा एक भाई परिवार का हिस्सा नहीं रहा। वह मंदिर के पास के स्कूल में ही पढ़े, मगर तीसरी क्लास तक ही स्कूल गए। फिर धीरे-धीरे करके परिवार और गांव तक छोड़ दिया। चाची ने कहा- 12 साल के थे, तब छोड़ दिया घर
ज्ञानवती ने बताया कि जब वो शादी के बाद घर आई थीं, तब लटूरी तीन साल के थे। गांव के मंदिर पर रहने वाले पुजारी को वह दूध देने जाते थे। तभी से वह पुजारी के संपर्क में आए। बचपन में ही मंदिर पर रहने लगे। 5 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया। इसके बाद वो मंदिर पर ही रहने लगे। 12 साल की उम्र में उन्होंने गांव छोड़ दिया। जब तक वो मंदिर पर रहे, उन्होंने घर से कोई वास्ता नहीं रखा। गांव वाले बोले- वो पक्के वाले साधु, एक पैर पर खड़े रहते हैं
कौशल गिरी के पड़ोसी शिशुपाल ने बताया- मैंने बचपन से उन्हें मंदिर पर ही देखा। मंदिर के पुजारी ने ही उन्हें साधु बनाया। यहां आते थे तो एक पैर पर खड़े रहते थे। वो पक्के वाले साधु थे। उन्होंने कहा- हमने जब उन्हें महाकुंभ में देखा तो बहुत खुशी हुई। हमारे गांव का बच्चा इतना बड़ा साधु बन गया। पिछले 10 साल में वो 3-4 बार गांव आए हैं। वह अपने घर नहीं जाता। गांव के लोगों से अच्छी तरह से बात करते हैं। अब कौशल गिरी के सुर्खियों में आने की वजह पढ़िए… महाकुंभ में फैसला लिया- संन्यासी बनेंगे
दरअसल, 5 दिसंबर को आगरा की डौकी में रहने वाली 13 साल की लड़की अपने परिवार के साथ महाकुंभ गई थी। वहीं पर उन्होंने चिंतन के बाद फैसला किया कि वह संन्यास लेकर आराधना करेंगी। जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि को बेटी का दान दिया। गुरु की मौजूदगी में लड़की को पहले गंगा स्नान कराया गया। संन्यास दिलाया गया। गुरु की तरफ से उन्हें साध्वी गौरी कहा गया। इस तरह उन्हें नया नाम भी मिला। अखाड़ा संरक्षक ने संन्यास वापस कराया
पहला अमृत स्नान होने के बाद लड़की का पिंडदान होना था। 19 जनवरी की तारीख तय हो गई। महामंडलेश्वर महंत कौशल गिरि ने लड़की के पिंडदान की तैयारी कर ली। मगर इससे पहले श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने साध्वी का संन्यास वापस कर दिया। उनका कहना था कि यह अखाड़े की परंपरा नहीं रही है कि किसी नाबालिग को संन्यासी बना दें। इस मुद्दे पर बैठक हुई। जहां सबने सर्वसम्मति से फैसला लिया। यहां संतों के बीच चर्चा के बाद एक और फैसला लिया गया। दीक्षा दिलाने वाले महंत कौशल गिरि को जूना अखाड़े से 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।
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योगीजी कम उम्र में संत बने…मेरे संन्यास पर हंगामा क्यों?:आगरा लौटी गौरी ने कहा- बालिग होने पर साध्वी बनूंगी; पिता बोले- फिर प्रयागराज जाएंगे ‘योगी आदित्यनाथ ने भी कम उम्र पर संन्यास लिया। तब किसी ने विरोध नहीं किया। मेरे संन्यास लेने पर इतना क्यों हंगामा हो रहा है? जूना अखाड़े में शामिल होना बहुत कठिन और गौरवशाली है। लेकिन मेरा मनोबल टूटने वाला नहीं है। अब मैं साध्वी के वेश में ही रहूंगी। पढ़िए पूरी खबर… महाकुंभ में पेठा कारोबारी की 13 साल की गौरी (बदला नाम) को संन्यासी बनाकर सुर्खियों में आए महामंडलेश्वर कौशल गिरि लापता हैं। वे कहां हैं, किसी को पता नहीं। श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने लड़की का संन्यास वापस कर दिया। जूना अखाड़ा ने कौशल गिरि को 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया। गौरी आगरा के डौकी में अपने घर पहुंच चुकी हैं। वह साध्वी की तरह जीवन जी रही हैं। सामने आया कि वह कौशल गिरी के दूर के रिश्ते से भांजी लगती है। कौशल गिरि महाराज के बारे में जानने के लिए दैनिक भास्कर डिजिटल टीम आगरा में उनके पैतृक गांव करौंधना पहुंची। कौशल गिरी ने संन्यास कब लिया? गांव कब छोड़ा? संन्यास लेने के बाद कहां गए? इन सवालों पर हमने परिवार के लोगों से बात की। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… घर की 2 तस्वीर कौशल गिरी के घर का नाम लटूरी
दैनिक भास्कर डिजिटल टीम आगरा से 35 किमी दूर फतेहाबाद पहुंची। कौशल गिरी के गांव जाने के लिए इरादतनगर से मेन रोड होते हुए करीब 1 किमी अंदर पहुंचे। यहां एक जगह पर लोग इकट्ठा थे। कौशल गिरी का घर कौन सा है? यह पूछने पर हमें एक घर की तरफ भेजा गया। घर के बाहर खाली जगह थी। यहां गाय-भैंस बंधी हुईं थीं। एक चबूतरे पर चारपाई पड़ी थी। कुछ लोग बैठे बात रहे थे। घर के तरफ जाने के रास्ते पर एक ऑटो खड़ा था। बताया गया इसको छोटा भाई बंटी चलाता है। घर के बाहर ही कौशल गिरी के चाचा प्रेमवीर सिंह से मुलाकात हुई। वह बोले कैमरा मत चलाइए, ऐसे ही पूछ लीजिए, क्या जानना चाहते हैं। हमने पूछा- कौशल गिरी महाराज के बारे में कुछ बताइए? वह कहते हैं- इधर कुछ दिन से अखबार और टीवी पर उनके बारे में देख-पढ़ रहे हैं। कौशल गिरी चार भाई हैं। सबसे बडे़ भाई का नाम भीमसेन, दूसरे नंबर के सुखवीर, तीसरे नंबर पर लटूरी उर्फ कौशल गिरी और सबसे छोटे भाई का नाम बंटी है। हमने पूछा कि बाबा का नाम लटूरी है? उन्होंने कहा- हां, बिल्कुल…यहां लोग इसी नाम से जानते हैं। बाबा तो वह बाद में बने, पहले तो गांव के लटूरी ही थे। भाई बोले- पिता के मरने पर नहीं आए, हमारा कोई वास्ता नहीं
कौशल गिरी के घर में हमें उनके छोटे भाई बंटी मिले। वह पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं। हमने पूछा- क्या कौशल गिरी से बात होती है? वह कहते हैं- हमारा उनसे कोई लेना-देना नहीं…। वो साधु हो गए। वह छोटे थे, तभी घर छोड़ गए। कई साल से हमारी बात भी नहीं हुई। 2018 में जब हमारे पिता का देहांत हुआ, तब लटूरी को फोन करके बताया, मगर वो घर नहीं आए। उनका कहना था कि अब मेरा कोई घर नहीं, कोई पिता नहीं। वो भी हमें अपना भाई नहीं मानते हैं। हमने पूछा- कभी गांव आए हैं? बंटी ने कहा- दो से तीन साल में प्रवचन के लिए गांव आते हैं, मगर कभी घर नहीं आए। मंदिर में ही रहते हैं। वहां 1 या 2 दिन ठहरते हैं। गांव आने पर भी हम लोगों की कोई बात नहीं होती है। भाई ने कहा- भैया कहने पर बुरा मान गए, पिता से पैर छुआया
बंटी कहते हैं- एक कथा के दौरान कौशल गिरी सामने आ गए। तब उन्हें भइया कह दिया। वो बुरा मान गए। भला-बुरा कहने लगे। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने पिता से भी पैर छुआ लिए। उनको भी नाम लेकर बुलाते थे। ऐसे भाई का क्या फायदा जो हमारे सुख-दुख में शामिल नहीं हुआ। हमने भी उनसे नाता तोड़ दिया। पिता की जो संपत्ति हमारे पास है, उसमें भी हम उन्हें कोई हिस्सा नहीं देंगे। न तो उनका यहां का आधार कार्ड है, न ही वोटर कार्ड। भाई बोले- साधु न बन जाए, इसलिए पापा ने कमरे में बंद किया
हमने बंटी से सवाल किया कि कौशल गिरी के संन्यास लेने से जुड़ा कोई किस्सा बताइए? उन्होंने कहा- वह बचपन से मंदिर जाते थे। पिताजी को लगा कि वो संन्यासी न हो जाए। इसलिए एक दिन कमरे में बंद कर दिया। कौशल बहुत चिल्लाए, रोए, मगर दरवाजा नहीं खोला गया।
शाम को जब दरवाजा खुला, तब वह फिर मंदिर पहुंच गए। हम लोग उसी दिन समझ गए थे कि अब हमारा एक भाई परिवार का हिस्सा नहीं रहा। वह मंदिर के पास के स्कूल में ही पढ़े, मगर तीसरी क्लास तक ही स्कूल गए। फिर धीरे-धीरे करके परिवार और गांव तक छोड़ दिया। चाची ने कहा- 12 साल के थे, तब छोड़ दिया घर
ज्ञानवती ने बताया कि जब वो शादी के बाद घर आई थीं, तब लटूरी तीन साल के थे। गांव के मंदिर पर रहने वाले पुजारी को वह दूध देने जाते थे। तभी से वह पुजारी के संपर्क में आए। बचपन में ही मंदिर पर रहने लगे। 5 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया। इसके बाद वो मंदिर पर ही रहने लगे। 12 साल की उम्र में उन्होंने गांव छोड़ दिया। जब तक वो मंदिर पर रहे, उन्होंने घर से कोई वास्ता नहीं रखा। गांव वाले बोले- वो पक्के वाले साधु, एक पैर पर खड़े रहते हैं
कौशल गिरी के पड़ोसी शिशुपाल ने बताया- मैंने बचपन से उन्हें मंदिर पर ही देखा। मंदिर के पुजारी ने ही उन्हें साधु बनाया। यहां आते थे तो एक पैर पर खड़े रहते थे। वो पक्के वाले साधु थे। उन्होंने कहा- हमने जब उन्हें महाकुंभ में देखा तो बहुत खुशी हुई। हमारे गांव का बच्चा इतना बड़ा साधु बन गया। पिछले 10 साल में वो 3-4 बार गांव आए हैं। वह अपने घर नहीं जाता। गांव के लोगों से अच्छी तरह से बात करते हैं। अब कौशल गिरी के सुर्खियों में आने की वजह पढ़िए… महाकुंभ में फैसला लिया- संन्यासी बनेंगे
दरअसल, 5 दिसंबर को आगरा की डौकी में रहने वाली 13 साल की लड़की अपने परिवार के साथ महाकुंभ गई थी। वहीं पर उन्होंने चिंतन के बाद फैसला किया कि वह संन्यास लेकर आराधना करेंगी। जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि को बेटी का दान दिया। गुरु की मौजूदगी में लड़की को पहले गंगा स्नान कराया गया। संन्यास दिलाया गया। गुरु की तरफ से उन्हें साध्वी गौरी कहा गया। इस तरह उन्हें नया नाम भी मिला। अखाड़ा संरक्षक ने संन्यास वापस कराया
पहला अमृत स्नान होने के बाद लड़की का पिंडदान होना था। 19 जनवरी की तारीख तय हो गई। महामंडलेश्वर महंत कौशल गिरि ने लड़की के पिंडदान की तैयारी कर ली। मगर इससे पहले श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने साध्वी का संन्यास वापस कर दिया। उनका कहना था कि यह अखाड़े की परंपरा नहीं रही है कि किसी नाबालिग को संन्यासी बना दें। इस मुद्दे पर बैठक हुई। जहां सबने सर्वसम्मति से फैसला लिया। यहां संतों के बीच चर्चा के बाद एक और फैसला लिया गया। दीक्षा दिलाने वाले महंत कौशल गिरि को जूना अखाड़े से 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया।
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