यूपी सरकार को 8 दिन में ही शिक्षक और शिक्षामित्रों के आगे यू-टर्न लेना पड़ा। डिजिटल अटेंडेंस को अगले आदेश तक टाल दिया गया है। मुख्य सचिव मनोज सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है, जो 2 महीने में जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। इसके बाद सरकार इस पर फैसला लेगी। ऐसा नहीं है कि यूपी पहला राज्य है, जहां स्कूलों में शिक्षक और स्टूडेंट के डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था बनाई गई है। 15 राज्यों में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। बिहार में भी इसे हाल ही में लागू करने का आदेश जारी किया गया है। आखिर किस दबाव में योगी सरकार झुक गई। इसे भास्कर एक्सप्लेनर से समझिए… सबसे पहले जानिए, यूपी से पहले कहां लागू है डिजिटल अटेंडेंस
स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा का कहना है कि यूपी से पहले देश के 15 राज्यों में डिजिटल अटेंडेंस लागू है। उन्होंने बताया कि बिहार के अलावा गोवा, राजस्थान, झारखंड, त्रिपुरा, मेघालय, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम में डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम पहले से लागू हैं। इन सभी प्रदेशों से शिक्षकों और विद्यार्थियों की डिजिटल अटेंडेंस की रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेजी जाती है। किस दबाव में भाजपा? 1- प्रदेश में करीब 6 लाख शिक्षक और शिक्षामित्र हैं। इन्हें छोड़कर प्रदेश में सभी विभागों में 13 लाख कर्मचारी हैं। हर जिले में भी शिक्षकों की संख्या हजारों में हैं। बड़ी संख्या होने के कारण जनप्रतिनिधि भी उनकी मांग और समस्याओं को नजर अंदाज नहीं कर पाते। 2- आमतौर पर सरकार के फैसलों पर प्रश्न चिन्ह लगाने से बचने वाले भाजपा विधायक और सांसदों ने इस मुद्दे पर मुखर होकर विरोध किया। चार एमएलसी तो खुले तौर पर विरोध में उतर आए। बरेली से भाजपा सांसद छत्रपाल सिंह गंगवार ने मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की गरिमा और विश्वसनीयता को ध्यान में रखना चाहिए। सरकार को आदेश पर पुनर्विचार करना चाहिए। गोरखपुर-फैजाबाद स्नातक क्षेत्र से भाजपा के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने भी सीएम योगी को पत्र लिखकर इसका विरोध जताया। भाजपा एमएलसी अवधेश कुमार सिंह उर्फ मंजू सिंह, एमएलसी बाबूलाल तिवारी, एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने भी डिजिटल अटेंडेंस पर पुनर्विचार के लिए सीएम को पत्र लिखा। अगर सरकार लागू करने पर अड़ती तो क्या नुकसान होता 1- शिक्षकों के सपोर्ट में उतरी सपा: समाजवादी पार्टी के सांसद और विधायक भी डिजिटल अटेंडेंस का लगातार विरोध कर रहे थे। सरकार को यह भी भय था कि कहीं इसे बड़ा मुद्दा बनाकर विपक्ष शिक्षकों के बड़े वोट बैंक को अपनी ओर ना खींच ले। सपा के फतेहपुर से सांसद नरेश उत्तम पटेल, आंवला से सांसद नीरज मौर्य, कौशांबी से सांसद पुष्पेंद्र सरोज और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने भी डिजिटल अटेंडेंस पर रोक लगाने के लिए सरकार को पत्र लिखा था। 2- उप चुनाव में बन सकता था मुद्दा: आने वाले दिनों में विधानसभा उप चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में मिली हार से भाजपा के कार्यकर्ता पहले ही हताश हैं। भाजपा और योगी सरकार सभी दस सीटों पर उप चुनाव जीतकर डैमेज कंट्रोल करना चाहती है। डिजिटल अटेंडेंस उप चुनाव में विपक्ष का मुद्दा बना सकता था। भाजपा को शिक्षकों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता था। डिजिटल अटेंडेंस क्यों लागू करना चाहती थी सरकार
स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने कहा- वर्तमान में हर स्कूल में 18 प्रकार के रजिस्टर मेंटेन करने पड़ते हैं। इनमें शिक्षक उपस्थिति रजिस्टर, छात्र उपस्थिति रजिस्टर, मिड डे मील, पुस्तकालय सहित अन्य रजिस्टर हैं। विभाग का प्रयास है कि शिक्षकों के कामकाज को आसान बनाया जाए, इसलिए डिजिटल व्यवस्था लागू की जानी थी। ताकि एक ही जगह सभी सूचनाएं संकिलत हों। डिजिटल अटेंडेंस में शिक्षकों को 45 मिनट का ग्रेस पीरियड भी दिया गया है। स्कूल का समय सुबह 7.45 बजे से है, शिक्षक 8.30 बजे तक भी अटेंडेंस लगा सकते हैं। वहीं, सेवानिवृत्त अपर निदेशक बेसिक शिक्षा विभाग सुक्ता सिंह ने कहा कि स्कूलों में डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम तो लागू होना चाहिए। लेकिन इसे लागू करने से पहले शिक्षकों की अवकाश संबंधी समस्या का समाधान भी करना चाहिए। यह सही है कि शिक्षकों की छुट्टियां कम हैं। सरकार को इस दिशा में कोई प्लान तैयार करने के बाद ही डिजिटल अटेंडेंस व्यवस्था लागू करनी चाहिए। डिजिटल अटेंडेंस लागू करने के दूसरे और क्या तर्क हैं
विधि सलाहकार बेसिक शिक्षा विभाग (सेवानिवृत्त विशेष सचिव बेसिक शिक्षा) देव प्रताप सिंह ने कहा- केवल बेसिक शिक्षा स्कूल ही नहीं बल्कि सभी विभागों में डिजिटल अटेंडेंस लागू होना चाहिए। एक समय था जब शिक्षक समय पर स्कूल आते थे, लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। तमाम प्रतिबंध और नियंत्रण के बावजूद विवशता के चलते यह सिस्टम लागू करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा- जितना वेतन यूपी के बेसिक शिक्षकों को मिल रहा है, उतना वेतन कहीं नहीं मिलता है। जब सरकार पर्याप्त वेतन दे रही है तो शिक्षक स्कूल समय पर क्यों नहीं आना चाहते हैं। यह देखा गया है कि विलंब से स्कूल आना कुछ शिक्षकों की प्रवृत्ति बन गई है। इसे उन्होंने अपना अधिकार समझ लिया। सरकार को केवल शहरी क्षेत्र ही नहीं, गांवों में भी शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी है। कमेटी क्या करेगी?
मुख्य सचिव के निर्देश पर डिजिटल अटेंडेंस के मुद्दे पर एक कमेटी गठित की जाएगी। कमेटी में विभाग के प्रमुख सचिव, महानिदेशक के साथ शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों को शामिल किया जा सकता है। कमेटी शिक्षक संगठनों की ओर से रखी गई मांगों, डिजिटल अटेंडेंस की आवश्यकता और शिक्षकों की ओर से बताई गई समस्याओं पर संबंधित पक्षों से बातचीत करेगी। सभी पक्षों को सुनने के बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी। रिपोर्ट देने में दो महीने से अधिक समय भी लग सकता है। कमेटी की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष पेश की जाएगी। सीएम की मंजूरी के बाद फिर डिजिटल अटेंडेंस लागू करने के मुद्दे पर विचार होगा। क्या माध्यमिक विद्यालयों में लागू रहेगा डिजिटल अटेंडेंस
प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में डिजिटल अटेंडेंस को 2022 से ही लागू किया गया था। उस दौरान भी शिक्षकों ने इसका विरोध किया था। लेकिन तत्कालीन शिक्षा मंत्री और उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की सख्ती के चलते विभाग ने व्यवस्था को लागू किया था। यह व्यवस्था पहले की ही तरह लागू रहेगी। यूपी सरकार को 8 दिन में ही शिक्षक और शिक्षामित्रों के आगे यू-टर्न लेना पड़ा। डिजिटल अटेंडेंस को अगले आदेश तक टाल दिया गया है। मुख्य सचिव मनोज सिंह की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है, जो 2 महीने में जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। इसके बाद सरकार इस पर फैसला लेगी। ऐसा नहीं है कि यूपी पहला राज्य है, जहां स्कूलों में शिक्षक और स्टूडेंट के डिजिटल अटेंडेंस की व्यवस्था बनाई गई है। 15 राज्यों में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। बिहार में भी इसे हाल ही में लागू करने का आदेश जारी किया गया है। आखिर किस दबाव में योगी सरकार झुक गई। इसे भास्कर एक्सप्लेनर से समझिए… सबसे पहले जानिए, यूपी से पहले कहां लागू है डिजिटल अटेंडेंस
स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा का कहना है कि यूपी से पहले देश के 15 राज्यों में डिजिटल अटेंडेंस लागू है। उन्होंने बताया कि बिहार के अलावा गोवा, राजस्थान, झारखंड, त्रिपुरा, मेघालय, हरियाणा, चंडीगढ़, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, असम में डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम पहले से लागू हैं। इन सभी प्रदेशों से शिक्षकों और विद्यार्थियों की डिजिटल अटेंडेंस की रिपोर्ट भारत सरकार को भी भेजी जाती है। किस दबाव में भाजपा? 1- प्रदेश में करीब 6 लाख शिक्षक और शिक्षामित्र हैं। इन्हें छोड़कर प्रदेश में सभी विभागों में 13 लाख कर्मचारी हैं। हर जिले में भी शिक्षकों की संख्या हजारों में हैं। बड़ी संख्या होने के कारण जनप्रतिनिधि भी उनकी मांग और समस्याओं को नजर अंदाज नहीं कर पाते। 2- आमतौर पर सरकार के फैसलों पर प्रश्न चिन्ह लगाने से बचने वाले भाजपा विधायक और सांसदों ने इस मुद्दे पर मुखर होकर विरोध किया। चार एमएलसी तो खुले तौर पर विरोध में उतर आए। बरेली से भाजपा सांसद छत्रपाल सिंह गंगवार ने मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखा। उन्होंने कहा कि शिक्षकों की गरिमा और विश्वसनीयता को ध्यान में रखना चाहिए। सरकार को आदेश पर पुनर्विचार करना चाहिए। गोरखपुर-फैजाबाद स्नातक क्षेत्र से भाजपा के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने भी सीएम योगी को पत्र लिखकर इसका विरोध जताया। भाजपा एमएलसी अवधेश कुमार सिंह उर्फ मंजू सिंह, एमएलसी बाबूलाल तिवारी, एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने भी डिजिटल अटेंडेंस पर पुनर्विचार के लिए सीएम को पत्र लिखा। अगर सरकार लागू करने पर अड़ती तो क्या नुकसान होता 1- शिक्षकों के सपोर्ट में उतरी सपा: समाजवादी पार्टी के सांसद और विधायक भी डिजिटल अटेंडेंस का लगातार विरोध कर रहे थे। सरकार को यह भी भय था कि कहीं इसे बड़ा मुद्दा बनाकर विपक्ष शिक्षकों के बड़े वोट बैंक को अपनी ओर ना खींच ले। सपा के फतेहपुर से सांसद नरेश उत्तम पटेल, आंवला से सांसद नीरज मौर्य, कौशांबी से सांसद पुष्पेंद्र सरोज और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर ने भी डिजिटल अटेंडेंस पर रोक लगाने के लिए सरकार को पत्र लिखा था। 2- उप चुनाव में बन सकता था मुद्दा: आने वाले दिनों में विधानसभा उप चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में मिली हार से भाजपा के कार्यकर्ता पहले ही हताश हैं। भाजपा और योगी सरकार सभी दस सीटों पर उप चुनाव जीतकर डैमेज कंट्रोल करना चाहती है। डिजिटल अटेंडेंस उप चुनाव में विपक्ष का मुद्दा बना सकता था। भाजपा को शिक्षकों की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता था। डिजिटल अटेंडेंस क्यों लागू करना चाहती थी सरकार
स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा ने कहा- वर्तमान में हर स्कूल में 18 प्रकार के रजिस्टर मेंटेन करने पड़ते हैं। इनमें शिक्षक उपस्थिति रजिस्टर, छात्र उपस्थिति रजिस्टर, मिड डे मील, पुस्तकालय सहित अन्य रजिस्टर हैं। विभाग का प्रयास है कि शिक्षकों के कामकाज को आसान बनाया जाए, इसलिए डिजिटल व्यवस्था लागू की जानी थी। ताकि एक ही जगह सभी सूचनाएं संकिलत हों। डिजिटल अटेंडेंस में शिक्षकों को 45 मिनट का ग्रेस पीरियड भी दिया गया है। स्कूल का समय सुबह 7.45 बजे से है, शिक्षक 8.30 बजे तक भी अटेंडेंस लगा सकते हैं। वहीं, सेवानिवृत्त अपर निदेशक बेसिक शिक्षा विभाग सुक्ता सिंह ने कहा कि स्कूलों में डिजिटल अटेंडेंस सिस्टम तो लागू होना चाहिए। लेकिन इसे लागू करने से पहले शिक्षकों की अवकाश संबंधी समस्या का समाधान भी करना चाहिए। यह सही है कि शिक्षकों की छुट्टियां कम हैं। सरकार को इस दिशा में कोई प्लान तैयार करने के बाद ही डिजिटल अटेंडेंस व्यवस्था लागू करनी चाहिए। डिजिटल अटेंडेंस लागू करने के दूसरे और क्या तर्क हैं
विधि सलाहकार बेसिक शिक्षा विभाग (सेवानिवृत्त विशेष सचिव बेसिक शिक्षा) देव प्रताप सिंह ने कहा- केवल बेसिक शिक्षा स्कूल ही नहीं बल्कि सभी विभागों में डिजिटल अटेंडेंस लागू होना चाहिए। एक समय था जब शिक्षक समय पर स्कूल आते थे, लेकिन आज स्थिति बदल चुकी है। तमाम प्रतिबंध और नियंत्रण के बावजूद विवशता के चलते यह सिस्टम लागू करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा- जितना वेतन यूपी के बेसिक शिक्षकों को मिल रहा है, उतना वेतन कहीं नहीं मिलता है। जब सरकार पर्याप्त वेतन दे रही है तो शिक्षक स्कूल समय पर क्यों नहीं आना चाहते हैं। यह देखा गया है कि विलंब से स्कूल आना कुछ शिक्षकों की प्रवृत्ति बन गई है। इसे उन्होंने अपना अधिकार समझ लिया। सरकार को केवल शहरी क्षेत्र ही नहीं, गांवों में भी शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करनी है। कमेटी क्या करेगी?
मुख्य सचिव के निर्देश पर डिजिटल अटेंडेंस के मुद्दे पर एक कमेटी गठित की जाएगी। कमेटी में विभाग के प्रमुख सचिव, महानिदेशक के साथ शिक्षा विभाग के अन्य अधिकारियों को शामिल किया जा सकता है। कमेटी शिक्षक संगठनों की ओर से रखी गई मांगों, डिजिटल अटेंडेंस की आवश्यकता और शिक्षकों की ओर से बताई गई समस्याओं पर संबंधित पक्षों से बातचीत करेगी। सभी पक्षों को सुनने के बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट देगी। रिपोर्ट देने में दो महीने से अधिक समय भी लग सकता है। कमेटी की रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समक्ष पेश की जाएगी। सीएम की मंजूरी के बाद फिर डिजिटल अटेंडेंस लागू करने के मुद्दे पर विचार होगा। क्या माध्यमिक विद्यालयों में लागू रहेगा डिजिटल अटेंडेंस
प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा विभाग के स्कूलों में डिजिटल अटेंडेंस को 2022 से ही लागू किया गया था। उस दौरान भी शिक्षकों ने इसका विरोध किया था। लेकिन तत्कालीन शिक्षा मंत्री और उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा की सख्ती के चलते विभाग ने व्यवस्था को लागू किया था। यह व्यवस्था पहले की ही तरह लागू रहेगी। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर