साल 1977-78, इमरजेंसी के बाद हरियाणा के पूर्व सीएम चौधरी बंसीलाल राज्य के दौरे पर निकले। इस दौरान वे एक गांव की पंचायत में बैठकर लोगों से बातचीत कर रहे थे। अचानक एक नौजवान खड़ा हुआ और भरी पंचायत में अपनी धोती खोल दी। सब हैरान रह गए कि इसे क्या हुआ। नौजवान ने बंसीलाल से कहा- ‘मैं चीख-चीखकर कह रहा था कि मेरी शादी नहीं हुई है। मैं कुंवारा हूं, लेकिन मुझे जबरन पकड़ लिया गया। नसबंदी कर दी गई।’ दरअसल, इमरजेंसी के दौरान बंसीलाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने पुलिस को नसबंदी करने का टारगेट दिया था। पुलिस गांव में घुसकर पुरुषों-नौजवानों को पकड़ती और उनकी जबरन नसबंदी करवा देती। उस दौरान नारा चलता था- ‘नसबंदी के तीन दलाल: इंदिरा, संजय, बंसीलाल।’ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त हरियाणा में 164 अविवाहित लोगों की नसबंदी की गई थी। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में आज बंसीलाल के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… साल 1966-67, हरियाणा बनने के दो साल के भीतर दो सरकारें गिर चुकी थीं। मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा की सरकार सिर्फ 13 दिन में ही गिर गई थी। कांग्रेस से बागी होकर सरकार बनाने वाले राव बीरेंद्र सिंह भी 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए थे। बार-बार दल-बदल के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा चुका था। उधर लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं। हालांकि कांग्रेस में उनकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी। वे पार्टी में ही अलग-अलग खेमों से मिल रहे राजनीतिक दबाव का सामना कर रही थीं। 1968 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री के लिए कई नामों की चर्चा चल रही थी। इसमें पंडित भगवत दयाल शर्मा, चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, चौधरी रणबीर सिंह और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामकृष्ण गुप्ता के नाम शामिल थे। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह अपनी किताब ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं, ‘सीएम पद को लेकर आम राय नहीं बन पा रही थी। केंद्रीय मंत्री गुलजारी लाल नंदा को इसका हल निकालने का जिम्मा सौंपा गया। 18 मई 1968 को नंदा के आवास पर नई दिल्ली में बैठक हुई। इसमें 48 में से 32 विधायक शामिल हुए। पंडित भगवत दयाल को नेता चुना गया, लेकिन इंदिरा गांधी राजी नहीं हुईं। उनका कहना था विधायकों में से ही मुख्यमंत्री चुना जाए। तब भगवत दयाल विधायक नहीं थे।’ अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा की अध्यक्षता में विधायक दल की बैठक हुई। ‘द स्टेट्समैन’ अखबार में बैठक का विवरण छपा था। अखबार के मुताबिक रिटायर्ड ब्रिगेडियर रण सिंह ने चौधरी बंसीलाल के नाम का प्रस्ताव रखा। ओमप्रभा जैन के नाम की भी चर्चा हुई। दोनों नामों पर चर्चा के लिए विधायकों को आधे घंटे का समय दिया गया। आखिर में बंसीलाल के नाम पर सहमति बनी। उनके नाम पर चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी राजी हो गए। इस तरह चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री चुन लिए गए। दिल्ली में बंसीलाल का शपथ ग्रहण, भीड़ इतनी कि पत्रकार वेन्यू तक पहुंच नहीं पाए विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद बंसीलाल पहली बार किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा ले रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद और हरियाणा में चुनाव लड़ने के बीच आप क्या कर रहे थे? बंसीलाल ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया- ‘पापड़ बेलते रहे।’ 22 मई 1968 को मुख्यमंत्री का शपथग्रहण था। राज्यपाल बीएन चक्रवर्ती बीमार चल रहे थे। इलाज के लिए दिल्ली में थे। इस वजह से बंसीलाल का शपथ ग्रहण समारोह दिल्ली के हरियाणा भवन में रखा गया। उधर हरियाणा में बंसीलाल के समर्थकों के बीच खबर फैल गई थी कि बंसीलाल मुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं। उनके सैकड़ों समर्थक दिल्ली के लिए निकल पड़े। शपथ ग्रहण, पहली मंजिल पर ड्राइंग रूम में था और बाहर इतनी भीड़ थी कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो यानी, PIB के अधिकारी भी बाहर ही रह गए। हम तो सड़क किनारे कार रोककर शौच कर लेंगे, लेकिन महिलाएं कहां जाएंगी बंसीलाल से जुड़े एक दिलचस्प किस्से का जिक्र करते हुए राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं- एक बार करनाल के पास जीटी रोड पर मुख्यमंत्री बंसीलाल से मेरी मुलाकात हुई। कार से उतरते ही उन्होंने अपने सचिव एसके मिश्रा से कहा कि मिश्रा जी, अगर इस सड़क पर दिल्ली जाते हुए मुझे या आपको पेशाब लग जाए, तो हम कार रोककर झाड़ियों में जा सकते हैं, लेकिन आपकी पत्नी आपके साथ बैठी हो तो उसका क्या होगा? बंसीलाल पांच सेकेंड तक रुके। फिर बोले- ये जगह चंडीगढ़ और दिल्ली के बिल्कुल बीच में है। आप यहां एक छोटा सा रेस्तरां बना दें, जिसमें साफ टॉयलेट हों, तो यहां से गुजरने वाले लोग आपको हमेशा दुआएं देंगे। जब एक अफसर ने बंसीलाल को किया बाथरूम में बंद तब पंडित भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री थे। राव बीरेंद्र उनकी सरकार गिराने की जुगत में थे। बंसीलाल पहली बार विधायक बने थे। बगावती विधायकों को लग रहा था कि बंसीलाल उनके साथ वोट नहीं डालेंगे। ऐसे में रणनीति बनी कि उन्हें सदन ही नहीं पहुंचने दिया जाए। एक अफसर को यह काम सौंपा गया। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। जब वे बाथरूम गए, तो अफसर ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें तब तक बाथरूम से बाहर नहीं आने दिया, जब तक भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई। बाद में जब बंसीलाल मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने सबसे पहला काम उस अफसर को सस्पेंड करने का किया था। हरियाणा में शराबबंदी, लेकिन सरकारी पार्टियों में शराब परोसने की मंजूरी रिटायर्ड आईएएस राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘CM बनने के बाद बंसीलाल ने मुझे डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक रिलेशन यानी, DPR का जिम्मा सौंपा। सरकार के कामों को मीडिया और लोगों के बीच प्रचार करने की जिम्मेदारी इसी विभाग की होती है। कुछ दिन बाद पत्रकारों से मेल-मुलाकात के लिए सरकार की तरफ से डिनर का प्रोग्राम रखा गया। उस समय चंडीगढ़ में किसी भी अखबार के पास अपना फोटोग्राफर नहीं था। उन्हें सरकार के विभाग पर ही निर्भर रहना होता था। अगले दिन डिनर के बिल वाउचर पास करने के लिए मुझे दिए गए। उसमें 80 पत्रकारों के डिनर की मेजबानी लिखी थी, जबकि डिनर में सिर्फ 20 पत्रकार ही थे। मैंने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि डिनर में पत्रकारों को शराब परोसी जाती है, लेकिन सरकार से इसका अप्रूवल नहीं है। इस वजह से शराब के खर्च को एडजस्ट करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। मुझे डर था कि चौधरी बंसीलाल को इसका पता चलेगा तो वे न जाने क्या करेंगे। अगले दिन जब मैं बंसीलाल से मिला तो उन्हें पूरी बात बताई। वे मुस्कुराकर बोले- आप उन्हें शराब क्यों पिलाते हो, बंद कर दो। मैंने कहा कि फिर तो सरकार की डिनर पार्टियों में कोई पत्रकार आएगा ही नहीं। इस पर वे बोले कि शराब पिलाना इतना ही जरूरी है, तो मेरी परमिशन ले लो।’ हालांकि बाद में बंसीलाल ने राज्य में शराबबंदी लागू किया था। भारत को गन की जरूरत थी, ऑस्ट्रेलिया में बंद फैक्ट्री चालू कराई साल 1975, बंसीलाल करीब सात साल से मुख्यमंत्री थे। दूसरी बार उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। उनकी गिनती इंदिरा के करीबियों में होने लगी थी। यही वजह थी कि इमरजेंसी लगने के छह महीने बाद 30 नवंबर को इंदिरा ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए दिल्ली बुला लिया। वे 20 दिन तक बगैर किसी मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। चौधरी बंसीलाल आईएएस एसके मिश्रा पर बहुत भरोसा करते थे। जब वे देश के रक्षा मंत्री बने तो मिश्रा को उन्होंने मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाकर बुला लिया। एसके मिश्रा अपनी किताब में लिखते हैं- रक्षा मंत्री बनने के बाद बंसीलाल ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का इंस्पेक्शन करने चेन्नई गए। वे स्वदेशी विजयंत टैंक के निर्माण में देरी से नाराज थे। उस समय सेना में टैंकों की भारी कमी थी। बंसीलाल ने दो हफ्तों तक मुझे वहीं रहने और प्रोडक्शन में देरी का कारण जानने के लिए कहा। मैंने पाया कि मशीनरी अपडेट कर दी जाए तो प्रोडक्शन बढ़ाया जा सकता है। इंदिरा गांधी भी इसके लिए तैयार हो गईं, लेकिन टैंकों में जो गन्स लगनी थीं वो इंग्लैंड से आनी थीं। कंपनी ने ज्यादा गन सप्लाई करने से मना कर दिया। इसका तोड़ निकालने के लिए बंसीलाल ने मुझे कोलकाता, रांची और कानपुर की गन फैक्ट्री में भेजा, लेकिन बात नहीं बनी। बहुत मशक्कत के बाद पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में एक फैक्ट्री ब्रिटेन से लाइसेंस लेकर गन बनाती थी, लेकिन ऑर्डर न मिलने की वजह से बंद हो गई। कंपनी से संपर्क किया गया और फैक्ट्री चालू हुई। इसके बाद भारत को गन्स की सप्लाई हुई और सेना को विजयंत टैंक समय से मिलने शुरू हो गए। देवीलाल ने बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर सड़कों पर घुमाया एक बार बंसीलाल और देवीलाल एक ही कार से दिल्ली जा रहे थे। रास्ते में किसी बात पर देवीलाल, बंसीलाल को बार-बार सलाह दे रहे थे। बंसीलाल नाराज हो गए और उन्होंने बीच रास्ते में ही देवीलाल को कार से उतार दिया। कहा जाता है कि उस घटना के बाद देवीलाल, बंसीलाल से बदला लेने का मन बना चुके थे। 1977 में हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार बनी और देवीलाल मुख्यमंत्री। कुछ दिनों बाद हरियाणा युवा कांग्रेस के फंड में गड़बड़ी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल गिरफ्तार कर लिए गए। पुलिस, बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर भिवानी की सड़कों पर खुली जीप में बैठाकर कोर्ट ले गई। मौत की सजा पाया क्रिमिनल जेल से भागा, शक बंसीलाल पर एसके मिश्रा अपनी किताब में एक और किस्से का जिक्र करते हैं- ‘एक बार मुख्यमंत्री बंसीलाल कहीं जा रहे थे। उनका काफिला अंबाला के पास पहुंचा, तो एक बूढ़ी औरत ने उनकी गाड़ी रुकवा ली। वह रो रही थी। वजह पूछने पर पता चला कि उसके बेटे को मौत की सजा हुई है और उसकी दया याचिका भी खारिज हो चुकी है। दो दिन बाद उसे फांसी दी जानी थी। इस मामले में अब कुछ नहीं किया जा सकता था। बंसीलाल ने गाड़ी आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने मुझसे कहा- चाहे उस लड़के ने कितना भी जघन्य अपराध किया हो, लेकिन मां के लिए वह उसका बेटा है। अगले दिन अखबारों में छपा कि वह लड़का जेल से भाग गया। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह महज संयोग नहीं था, लेकिन मैंने कभी बंसीलाल से इस बारे में नहीं पूछा और न ही उन्होंने कभी मुझसे कुछ जिक्र किया।’ सरकार बनाई बीजेपी की मदद से, सरकार बचाई कांग्रेस ने साल 1996, हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। वोटों की गिनती हुई, तो हरियाणा विकास पार्टी को 33 और बीजेपी को 11 सीटें मिलीं। जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई। चौधरी बंसीलाल चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वक्त के साथ बंसीलाल और बीजेपी के बीच रिश्तों में तल्खी आने लगी। 22 जून 1999 को बीजेपी ने हरियाणा विकास पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया। बंसीलाल की सरकार अल्पमत में आ गई। तीन दिन बाद यानी 25 जून को फ्लोर टेस्ट की तारीख तय हुई। सियासी गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी के हाथ खींचने के बाद कांग्रेस ने बंसीलाल को समर्थन दिया है। इधर, विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह पानी पी-पीकर बंसीलाल सरकार को कोस रहे थे। बंसीलाल के करीबी और उस समय संसदीय कार्य मंत्री रहे अतर सिंह सैनी एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘मैंने बंसीलाल से कहा- बात तो समर्थन की हुई थी। ये तो अपने खिलाफ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जाकर सुरेंद्र से बात करो। सुरेंद्र बंसीलाल के छोटे बेटे थे। मैं बाहर निकला तो पूर्व सीएम भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई मिल गए। मैंने पूछा, भाई क्या करोगे। बोले- ‘थारी मंजी ठोकांगे’ यानी ठिकाने लगाएंगे। जब मैं सुरेंद्र सिंह के पास पहुंचा तो वे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र हुड्डा और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के साथ विधानसभा गैलरी में बैठे थे। मैंने सुरेंद्र से बात की तो वे बोले कि बात चल रही है। वहां से मैं सदन में वापस आया, तो देखा कि बीरेंद्र सिंह अभी भी सरकार के खिलाफ बोल रहे थे। उन्होंने इतनी कमियां गिनाईं कि मैं ये मान चुका था कि अब तो अपनी सरकार गई। थोड़ी देर बाद अहमद पटेल ने बीरेंद्र सिंह के पास एक पर्ची भिजवाई। पर्ची पढ़ते ही बीरेंद्र सिंह बोले- ‘सभी कमियां होते हुए भी हम चौधरी बंसीलाल की सरकार को समर्थन देते हैं।’ थोड़ी देर बाद कांग्रेस ने व्हिप जारी कर दिया। इस तरह बंसीलाल की सरकार बच गई। बंसीलाल, सोनिया का धन्यवाद करने गए, लेकिन लौटे तो सरकार गिर गई पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी बताते हैं- ‘सरकार बचने के बाद बंसीलाल को सोनिया गांधी का धन्यवाद करने जाना था। तय हुआ था कि HVP का कांग्रेस में विलय करके विधानसभा भंग की जाएगी और चुनाव कराए जाएंगे। सोनिया से मिलने से पहले बंसीलाल ने मुझे बुलाया और एक लिस्ट दिखाई। उसमें हमारे 33 विधायकों में से 21 के नाम थे। मैंने तीन नामों पर निशान लगा दिए कि अगर इनको टिकट न दें तो भी कोई बात नहीं। वे जब सोनिया से मिले तो उनका धन्यवाद किया और लिस्ट सामने रख दी। लिस्ट देखकर सोनिया ने कहा- ये मैं बाद में सोचूंगी। बंसीलाल, इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके थे, बड़े लीडर थे। उन्हें ये बात बर्दाश्त नहीं हुई। बंसीलाल ने भी कह दिया कि फिर मैं भी बाद में सोचूंगा और चले आए। कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।’ साल 1977-78, इमरजेंसी के बाद हरियाणा के पूर्व सीएम चौधरी बंसीलाल राज्य के दौरे पर निकले। इस दौरान वे एक गांव की पंचायत में बैठकर लोगों से बातचीत कर रहे थे। अचानक एक नौजवान खड़ा हुआ और भरी पंचायत में अपनी धोती खोल दी। सब हैरान रह गए कि इसे क्या हुआ। नौजवान ने बंसीलाल से कहा- ‘मैं चीख-चीखकर कह रहा था कि मेरी शादी नहीं हुई है। मैं कुंवारा हूं, लेकिन मुझे जबरन पकड़ लिया गया। नसबंदी कर दी गई।’ दरअसल, इमरजेंसी के दौरान बंसीलाल पर आरोप लगा था कि उन्होंने पुलिस को नसबंदी करने का टारगेट दिया था। पुलिस गांव में घुसकर पुरुषों-नौजवानों को पकड़ती और उनकी जबरन नसबंदी करवा देती। उस दौरान नारा चलता था- ‘नसबंदी के तीन दलाल: इंदिरा, संजय, बंसीलाल।’ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस वक्त हरियाणा में 164 अविवाहित लोगों की नसबंदी की गई थी। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में आज बंसीलाल के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… साल 1966-67, हरियाणा बनने के दो साल के भीतर दो सरकारें गिर चुकी थीं। मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा की सरकार सिर्फ 13 दिन में ही गिर गई थी। कांग्रेस से बागी होकर सरकार बनाने वाले राव बीरेंद्र सिंह भी 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए थे। बार-बार दल-बदल के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा चुका था। उधर लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं। हालांकि कांग्रेस में उनकी स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी। वे पार्टी में ही अलग-अलग खेमों से मिल रहे राजनीतिक दबाव का सामना कर रही थीं। 1968 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री के लिए कई नामों की चर्चा चल रही थी। इसमें पंडित भगवत दयाल शर्मा, चौधरी देवीलाल, शेर सिंह, चौधरी रणबीर सिंह और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामकृष्ण गुप्ता के नाम शामिल थे। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह अपनी किताब ‘स्वराज के स्वर’ में लिखते हैं, ‘सीएम पद को लेकर आम राय नहीं बन पा रही थी। केंद्रीय मंत्री गुलजारी लाल नंदा को इसका हल निकालने का जिम्मा सौंपा गया। 18 मई 1968 को नंदा के आवास पर नई दिल्ली में बैठक हुई। इसमें 48 में से 32 विधायक शामिल हुए। पंडित भगवत दयाल को नेता चुना गया, लेकिन इंदिरा गांधी राजी नहीं हुईं। उनका कहना था विधायकों में से ही मुख्यमंत्री चुना जाए। तब भगवत दयाल विधायक नहीं थे।’ अगले दिन कांग्रेस अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा की अध्यक्षता में विधायक दल की बैठक हुई। ‘द स्टेट्समैन’ अखबार में बैठक का विवरण छपा था। अखबार के मुताबिक रिटायर्ड ब्रिगेडियर रण सिंह ने चौधरी बंसीलाल के नाम का प्रस्ताव रखा। ओमप्रभा जैन के नाम की भी चर्चा हुई। दोनों नामों पर चर्चा के लिए विधायकों को आधे घंटे का समय दिया गया। आखिर में बंसीलाल के नाम पर सहमति बनी। उनके नाम पर चौधरी देवीलाल और शेर सिंह भी राजी हो गए। इस तरह चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री चुन लिए गए। दिल्ली में बंसीलाल का शपथ ग्रहण, भीड़ इतनी कि पत्रकार वेन्यू तक पहुंच नहीं पाए विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद बंसीलाल पहली बार किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा ले रहे थे। एक पत्रकार ने पूछा कि राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने के बाद और हरियाणा में चुनाव लड़ने के बीच आप क्या कर रहे थे? बंसीलाल ने मजाकिया लहजे में जवाब दिया- ‘पापड़ बेलते रहे।’ 22 मई 1968 को मुख्यमंत्री का शपथग्रहण था। राज्यपाल बीएन चक्रवर्ती बीमार चल रहे थे। इलाज के लिए दिल्ली में थे। इस वजह से बंसीलाल का शपथ ग्रहण समारोह दिल्ली के हरियाणा भवन में रखा गया। उधर हरियाणा में बंसीलाल के समर्थकों के बीच खबर फैल गई थी कि बंसीलाल मुख्यमंत्री बनाए जा रहे हैं। उनके सैकड़ों समर्थक दिल्ली के लिए निकल पड़े। शपथ ग्रहण, पहली मंजिल पर ड्राइंग रूम में था और बाहर इतनी भीड़ थी कि प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो यानी, PIB के अधिकारी भी बाहर ही रह गए। हम तो सड़क किनारे कार रोककर शौच कर लेंगे, लेकिन महिलाएं कहां जाएंगी बंसीलाल से जुड़े एक दिलचस्प किस्से का जिक्र करते हुए राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा में लिखते हैं- एक बार करनाल के पास जीटी रोड पर मुख्यमंत्री बंसीलाल से मेरी मुलाकात हुई। कार से उतरते ही उन्होंने अपने सचिव एसके मिश्रा से कहा कि मिश्रा जी, अगर इस सड़क पर दिल्ली जाते हुए मुझे या आपको पेशाब लग जाए, तो हम कार रोककर झाड़ियों में जा सकते हैं, लेकिन आपकी पत्नी आपके साथ बैठी हो तो उसका क्या होगा? बंसीलाल पांच सेकेंड तक रुके। फिर बोले- ये जगह चंडीगढ़ और दिल्ली के बिल्कुल बीच में है। आप यहां एक छोटा सा रेस्तरां बना दें, जिसमें साफ टॉयलेट हों, तो यहां से गुजरने वाले लोग आपको हमेशा दुआएं देंगे। जब एक अफसर ने बंसीलाल को किया बाथरूम में बंद तब पंडित भगवत दयाल शर्मा मुख्यमंत्री थे। राव बीरेंद्र उनकी सरकार गिराने की जुगत में थे। बंसीलाल पहली बार विधायक बने थे। बगावती विधायकों को लग रहा था कि बंसीलाल उनके साथ वोट नहीं डालेंगे। ऐसे में रणनीति बनी कि उन्हें सदन ही नहीं पहुंचने दिया जाए। एक अफसर को यह काम सौंपा गया। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। जब वे बाथरूम गए, तो अफसर ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। उन्हें तब तक बाथरूम से बाहर नहीं आने दिया, जब तक भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिरा नहीं दी गई। बाद में जब बंसीलाल मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने सबसे पहला काम उस अफसर को सस्पेंड करने का किया था। हरियाणा में शराबबंदी, लेकिन सरकारी पार्टियों में शराब परोसने की मंजूरी रिटायर्ड आईएएस राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘CM बनने के बाद बंसीलाल ने मुझे डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक रिलेशन यानी, DPR का जिम्मा सौंपा। सरकार के कामों को मीडिया और लोगों के बीच प्रचार करने की जिम्मेदारी इसी विभाग की होती है। कुछ दिन बाद पत्रकारों से मेल-मुलाकात के लिए सरकार की तरफ से डिनर का प्रोग्राम रखा गया। उस समय चंडीगढ़ में किसी भी अखबार के पास अपना फोटोग्राफर नहीं था। उन्हें सरकार के विभाग पर ही निर्भर रहना होता था। अगले दिन डिनर के बिल वाउचर पास करने के लिए मुझे दिए गए। उसमें 80 पत्रकारों के डिनर की मेजबानी लिखी थी, जबकि डिनर में सिर्फ 20 पत्रकार ही थे। मैंने इसका कारण पूछा तो बताया गया कि डिनर में पत्रकारों को शराब परोसी जाती है, लेकिन सरकार से इसका अप्रूवल नहीं है। इस वजह से शराब के खर्च को एडजस्ट करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। मुझे डर था कि चौधरी बंसीलाल को इसका पता चलेगा तो वे न जाने क्या करेंगे। अगले दिन जब मैं बंसीलाल से मिला तो उन्हें पूरी बात बताई। वे मुस्कुराकर बोले- आप उन्हें शराब क्यों पिलाते हो, बंद कर दो। मैंने कहा कि फिर तो सरकार की डिनर पार्टियों में कोई पत्रकार आएगा ही नहीं। इस पर वे बोले कि शराब पिलाना इतना ही जरूरी है, तो मेरी परमिशन ले लो।’ हालांकि बाद में बंसीलाल ने राज्य में शराबबंदी लागू किया था। भारत को गन की जरूरत थी, ऑस्ट्रेलिया में बंद फैक्ट्री चालू कराई साल 1975, बंसीलाल करीब सात साल से मुख्यमंत्री थे। दूसरी बार उन्होंने अपने दम पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। उनकी गिनती इंदिरा के करीबियों में होने लगी थी। यही वजह थी कि इमरजेंसी लगने के छह महीने बाद 30 नवंबर को इंदिरा ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करने के लिए दिल्ली बुला लिया। वे 20 दिन तक बगैर किसी मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। चौधरी बंसीलाल आईएएस एसके मिश्रा पर बहुत भरोसा करते थे। जब वे देश के रक्षा मंत्री बने तो मिश्रा को उन्होंने मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाकर बुला लिया। एसके मिश्रा अपनी किताब में लिखते हैं- रक्षा मंत्री बनने के बाद बंसीलाल ऑर्डिनेंस फैक्ट्री का इंस्पेक्शन करने चेन्नई गए। वे स्वदेशी विजयंत टैंक के निर्माण में देरी से नाराज थे। उस समय सेना में टैंकों की भारी कमी थी। बंसीलाल ने दो हफ्तों तक मुझे वहीं रहने और प्रोडक्शन में देरी का कारण जानने के लिए कहा। मैंने पाया कि मशीनरी अपडेट कर दी जाए तो प्रोडक्शन बढ़ाया जा सकता है। इंदिरा गांधी भी इसके लिए तैयार हो गईं, लेकिन टैंकों में जो गन्स लगनी थीं वो इंग्लैंड से आनी थीं। कंपनी ने ज्यादा गन सप्लाई करने से मना कर दिया। इसका तोड़ निकालने के लिए बंसीलाल ने मुझे कोलकाता, रांची और कानपुर की गन फैक्ट्री में भेजा, लेकिन बात नहीं बनी। बहुत मशक्कत के बाद पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में एक फैक्ट्री ब्रिटेन से लाइसेंस लेकर गन बनाती थी, लेकिन ऑर्डर न मिलने की वजह से बंद हो गई। कंपनी से संपर्क किया गया और फैक्ट्री चालू हुई। इसके बाद भारत को गन्स की सप्लाई हुई और सेना को विजयंत टैंक समय से मिलने शुरू हो गए। देवीलाल ने बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर सड़कों पर घुमाया एक बार बंसीलाल और देवीलाल एक ही कार से दिल्ली जा रहे थे। रास्ते में किसी बात पर देवीलाल, बंसीलाल को बार-बार सलाह दे रहे थे। बंसीलाल नाराज हो गए और उन्होंने बीच रास्ते में ही देवीलाल को कार से उतार दिया। कहा जाता है कि उस घटना के बाद देवीलाल, बंसीलाल से बदला लेने का मन बना चुके थे। 1977 में हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार बनी और देवीलाल मुख्यमंत्री। कुछ दिनों बाद हरियाणा युवा कांग्रेस के फंड में गड़बड़ी को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल गिरफ्तार कर लिए गए। पुलिस, बंसीलाल को हथकड़ी पहनाकर भिवानी की सड़कों पर खुली जीप में बैठाकर कोर्ट ले गई। मौत की सजा पाया क्रिमिनल जेल से भागा, शक बंसीलाल पर एसके मिश्रा अपनी किताब में एक और किस्से का जिक्र करते हैं- ‘एक बार मुख्यमंत्री बंसीलाल कहीं जा रहे थे। उनका काफिला अंबाला के पास पहुंचा, तो एक बूढ़ी औरत ने उनकी गाड़ी रुकवा ली। वह रो रही थी। वजह पूछने पर पता चला कि उसके बेटे को मौत की सजा हुई है और उसकी दया याचिका भी खारिज हो चुकी है। दो दिन बाद उसे फांसी दी जानी थी। इस मामले में अब कुछ नहीं किया जा सकता था। बंसीलाल ने गाड़ी आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया। उनकी आंखों में आंसू थे। उन्होंने मुझसे कहा- चाहे उस लड़के ने कितना भी जघन्य अपराध किया हो, लेकिन मां के लिए वह उसका बेटा है। अगले दिन अखबारों में छपा कि वह लड़का जेल से भाग गया। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह महज संयोग नहीं था, लेकिन मैंने कभी बंसीलाल से इस बारे में नहीं पूछा और न ही उन्होंने कभी मुझसे कुछ जिक्र किया।’ सरकार बनाई बीजेपी की मदद से, सरकार बचाई कांग्रेस ने साल 1996, हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए। चौधरी बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा। वोटों की गिनती हुई, तो हरियाणा विकास पार्टी को 33 और बीजेपी को 11 सीटें मिलीं। जबकि कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई। चौधरी बंसीलाल चौथी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि वक्त के साथ बंसीलाल और बीजेपी के बीच रिश्तों में तल्खी आने लगी। 22 जून 1999 को बीजेपी ने हरियाणा विकास पार्टी से गठबंधन तोड़ लिया। बंसीलाल की सरकार अल्पमत में आ गई। तीन दिन बाद यानी 25 जून को फ्लोर टेस्ट की तारीख तय हुई। सियासी गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी के हाथ खींचने के बाद कांग्रेस ने बंसीलाल को समर्थन दिया है। इधर, विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह पानी पी-पीकर बंसीलाल सरकार को कोस रहे थे। बंसीलाल के करीबी और उस समय संसदीय कार्य मंत्री रहे अतर सिंह सैनी एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘मैंने बंसीलाल से कहा- बात तो समर्थन की हुई थी। ये तो अपने खिलाफ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जाकर सुरेंद्र से बात करो। सुरेंद्र बंसीलाल के छोटे बेटे थे। मैं बाहर निकला तो पूर्व सीएम भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई मिल गए। मैंने पूछा, भाई क्या करोगे। बोले- ‘थारी मंजी ठोकांगे’ यानी ठिकाने लगाएंगे। जब मैं सुरेंद्र सिंह के पास पहुंचा तो वे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र हुड्डा और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के साथ विधानसभा गैलरी में बैठे थे। मैंने सुरेंद्र से बात की तो वे बोले कि बात चल रही है। वहां से मैं सदन में वापस आया, तो देखा कि बीरेंद्र सिंह अभी भी सरकार के खिलाफ बोल रहे थे। उन्होंने इतनी कमियां गिनाईं कि मैं ये मान चुका था कि अब तो अपनी सरकार गई। थोड़ी देर बाद अहमद पटेल ने बीरेंद्र सिंह के पास एक पर्ची भिजवाई। पर्ची पढ़ते ही बीरेंद्र सिंह बोले- ‘सभी कमियां होते हुए भी हम चौधरी बंसीलाल की सरकार को समर्थन देते हैं।’ थोड़ी देर बाद कांग्रेस ने व्हिप जारी कर दिया। इस तरह बंसीलाल की सरकार बच गई। बंसीलाल, सोनिया का धन्यवाद करने गए, लेकिन लौटे तो सरकार गिर गई पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी बताते हैं- ‘सरकार बचने के बाद बंसीलाल को सोनिया गांधी का धन्यवाद करने जाना था। तय हुआ था कि HVP का कांग्रेस में विलय करके विधानसभा भंग की जाएगी और चुनाव कराए जाएंगे। सोनिया से मिलने से पहले बंसीलाल ने मुझे बुलाया और एक लिस्ट दिखाई। उसमें हमारे 33 विधायकों में से 21 के नाम थे। मैंने तीन नामों पर निशान लगा दिए कि अगर इनको टिकट न दें तो भी कोई बात नहीं। वे जब सोनिया से मिले तो उनका धन्यवाद किया और लिस्ट सामने रख दी। लिस्ट देखकर सोनिया ने कहा- ये मैं बाद में सोचूंगी। बंसीलाल, इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके थे, बड़े लीडर थे। उन्हें ये बात बर्दाश्त नहीं हुई। बंसीलाल ने भी कह दिया कि फिर मैं भी बाद में सोचूंगा और चले आए। कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।’ हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा विधानसभा चुनाव में खट्टर का UPS का दांव:2.5 लाख सरकारी कर्मचारी; OPS को मुद्दा बना रही कांग्रेस, IAS खेमका साथ आए
हरियाणा विधानसभा चुनाव में खट्टर का UPS का दांव:2.5 लाख सरकारी कर्मचारी; OPS को मुद्दा बना रही कांग्रेस, IAS खेमका साथ आए हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार BJP नए दांव खेल रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) को लेकर नाराज चल रहे कर्मचारियों को लेकर बड़ा दांव खेल दिया है। उन्होंने संकेत दे दिया कि यदि हरियाणा में BJP तीसरी बार सत्ता में आती है तो कर्मचारियों के हित में केंद्र की यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) स्कीम को लागू करेंगे। बीजेपी अपने मेनिफेस्टो में भी नई स्कीम को लागू करने का वादा करेगी। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस OPS को प्रदेश में लागू करने का वादा कर रही है। इस बीच केंद्र की UPS पर हरियाणा के एक सीनियर IAS अशोक खेमका ने भी अपना समर्थन दिया है। अब पढ़िए बीजेपी के ऐलान के पीछे की 3 वजह हरियाणा में ढाई लाख सरकारी कर्मचारी
हरियाणा में चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के इस दांव को चलने की खास वजह प्रदेश के ढाई लाख कर्मचारी हैं। ये कर्मचारी OPS को लेकर पिछले एक साल से आंदोलनरत हैं। इसके लिए कर्मचारियों के एक गुट ने OPS संघर्ष मोर्चा भी बनाया हुआ है। लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को कर्मचारियों की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। खट्टर ने इस बड़े सरकारी कर्मचारी वर्ग को साधने के लिए ये दांव चला है। 40 हजार कर्मचारी केंद्र में कर रहे नौकरी
हरियाणा के 2.5 लाख कर्मचारियों में 40 हजार कर्मचारी केंद्र सरकार में काम कर रहे हैं। हालांकि ये हरियाणा के ही वोटर हैं, केंद्र की UPS का केंद्रीय कर्मचारियों को सीधा लाभ मिलेगा। ये प्रदेश में चुनाव के दौरान यूपीएस के पक्ष में माहौल बनाने में पार्टी की अच्छी मदद कर सकते हैं। राज्य में 90 हजार कर्मचारी ऐसे हैं, जो 2004 के पहले से काम कर रहे हैं। हिमाचल में दिखा था OPS का असर
हिमाचल प्रदेश में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ओपीएस के चक्कर में ही करारी हार का सामना करना पड़ा था। हिमाचल हरियाणा का सीमावर्ती स्टेट है, इसलिए भाजपा नहीं चाहती कि वहां का कोई भी मुद्दा हरियाणा में प्रभावी हो। यही वजह है कि खट्टर कर्मचारियों की नाराजगी को दूर करने में लगे हुए हैं। अब यहां समझिए UPS क्या है? कब से लागू होगी
दिसंबर 2003 तक सरकारी कर्मचारियों के लिए OPS लागू थी। जनवरी 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार इसे हटाकर न्यू पेंशन स्कीम यानी NPS लाई। NPS पर कई तरह के सवाल उठ रहे थे। मोदी सरकार ने अप्रैल 2023 में टीवी सोमनाथन की अगुआई में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने हर राज्य के वित्तीय सचिव, नेताओं, सैकड़ों कर्मचारी यूनियन के साथ चर्चा की। उसके बाद कमेटी ने कैबिनेट को न्यू पेंशन स्कीम में बदलाव के लिए कुछ सिफारिशें कीं। 24 अगस्त 2024 को मोदी सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी UPS को मंजूरी दी है। इसे अगले वित्त वर्ष यानी 1 अप्रैल 2025 से लागू किया जाएगा। यहां पढ़िए यूपीएस और ओपीएस में क्या हैं 3 बड़े अंतर… UPS-OPS में पेंशन कैलकुलेट करने का अलग तरीका यूपीएस और ओपीएस दोनों ही पेंशन स्कीमों में सरकारी कर्मचारियों को एश्योर्ड पेंशन देने का प्रावधान है। लेकिन पेंशन की गणना करने के तौर तरीकों में बड़ा अंतर है। ओपीएस में सरकारी कर्मचारी के रिटायरमेंट से ठीक पहले की आखिरी बेसिक सैलेरी और महंगाई भत्ता का 50% पेंशन के तौर पर दिया जाता है। जबकि यूनिफाइड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट से पहले की 12 महीने की बेसिक सैलेरी और डीए का जो औसत बनेगा वही एश्योर्ड पेंशन के तौर पर दिया जाएगा। UPS में योगदान जरूरी, OPS में ये प्रावधान नहीं यूपीएस में कर्मचारियों को यूपीएस में अपने बेसिक पे और डीए का 10 फीसदी पेंशन फंड में देना होगा जैसे वे एनपीएस में करते आए हैं। सरकार, कर्मचारी के लिए पेंशन फंड में अपनी तरफ से 18.5% का योगदान करेगी जिसकी लिमिट एनपीएस में 14 फीसदी थी। ओपीएस में कर्मचारियों को अपनी ओर से पेंशन फंड में कोई योगदान नहीं करना पड़ता था। पेंशन पाने के लिए OPS में 20 साल, UPS में 25 साल जरूरी यूपीएस में कम से कम 25 वर्षों तक के सर्विस के बाद ही तय फॉर्मूले के तहत सरकारी कर्मचारी एश्योर्ड पेंशन पाने का हकदार होंगे। ओपीएस में नियम कुछ और था। ओल्ड पेंशन स्कीम में केंद्रीय कर्मचारी 20 साल की नौकरी के बाद ही पेंशन पाने का हकदार हो जाते थे। यानी यूनिफाइड पेंशन स्कीम में एश्योर्ड पेंशन के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम से 5 साल ज्यादा लंबे समय तक सर्विस करना होगा। यूपीएस पर हरियाणा में इन वजहों से फंस रहा पेंच 1. एक अप्रैल 2025 से लागू होने वाली यूपीएस के लिए 25 वर्ष की सेवा को अनिवार्य किया गया है। इससे पहले ओपीएस में सिर्फ 20 वर्ष की नौकरी का प्रावधान था। हरियाणा के कर्मचारियों को सरकार का यह बाध्यता ठीक नहीं लग रही है। 2. एक आंकड़े के तहत प्रदेश में काफी संख्या में लोग 40 वर्ष के बाद नौकरी में आते हैं। इस तरह से करीब आधे कर्मचारी इस योजना में शामिल ही नहीं हो सकते हैं। वहीं कर्मचारियों के वेतन से जो 10 फीसदी पैसा कटेगा उसे उसे सरकार अपने पास रखेगी। सेवानिवृत्त के बाद कर्मचारियों को इसमें से कुछ भी नहीं मिलेगा। 3. यूपीएस में मेडिकल व डीए की बात नहीं की गई है। कर्मचारियों को सेवानिवृत्त के समय महज 6 महीने का वेतन ही दिया जाएगा। हालांकि इसमें सरकार अपना शेयर 14 से 18.5 फीसदी करने जा रही है, लेकिन कर्मचारी इसमें अपना कोई लाभ नहीं देख रहे हैं। 4. हरियाणा के कर्मचारी संगठनों का कहना है कि पहले केंद्र सरकार एनपीएस में कमी नहीं मान रही थी। लेकिन जब उसे कमी महसूस हुई तो यूपीएस बनाने के लिए एक बार भी केंद्र सरकार ने उन्हें सुझाव के लिए नहीं बुलाया। पेंशन बहाली संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र धारीवाल ने कहा कि हमारी मांग ओपीएस बहाली की थी और ओपीएस बहाली तक ही आंदोलन जारी रहेगा। IAS अशोक खेमका समर्थन में आए हरियाणा के चर्चित आईएएस अधिकारी एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. अशोक खेमका ने केंद्र सरकार की ओर से घोषित यूपीएस योजना का समर्थन किया है। सोशल प्लेटफार्म X पर लिखी पोस्ट में खेमका ने कहा कि 2004 के बाद के केंद्रीय कर्मचारियों को यूपीएस योजना की घोषणा से बड़ी राहत मिली है। मुझे आशा है कि जल्द ही राज्यों द्वारा बिना देरी किए इसे लागू किया लाएगा। वहीं प्रदेश के कई अन्य आईएएस अफसरों ने भी यूपीएस को एनपीएस से बेहतर बताया है।
पलवल में सड़क हादसे में युवक की मौत:तीन घायल, रात में जागरण से बाइक पर लौट रहे थे चारों
पलवल में सड़क हादसे में युवक की मौत:तीन घायल, रात में जागरण से बाइक पर लौट रहे थे चारों हरियाणा के पलवल जिले में पलवल-अलीगढ़ मार्ग पर चांदहट गांव के निकट अज्ञात वाहन की टक्कर से बाइक पर सवार चार दोस्तों में से एक की मौत हो गई, जबकि तीन घायल हो गए। पुलिस ने मृतक के पिता की शिकायत पर अज्ञात वाहन चालक के खिलाफ केस दर्ज कर शव पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया। जागरण देख वापस गांव के लिए चल दिए चांदहट थाना प्रभारी मलखान सिंह के अनुसार जिला अलीगढ़ (यूपी) के पीपली गांव निवासी पप्पू ने दी शिकायत में कहा कि पीपली गांव में जागरण था। उसका बेटा कृष्णा व उसके दोस्त किशनगढ़ निवासी सचिन व तेजवीर, होसंगाबाद निवासी सुभाष बाइक पर सवार होकर जागरण देखने आए थे। जागरण देखने के बाद चारों बाइक पर सवार होकर वापस अपने गांव के लिए चल दिए। राहगीरों ने पुलिस की मदद से भिजवाया अस्पताल जब उनकी बाइक पलवल-अलीगढ़ मार्ग पर चांदहट चौक के पास पहुंची, तभी किसी अज्ञात वाहन ने उनकी बाइक में टक्कर मार दी। बाइक पर सवार चारों सड़क पर गिर पड़े और गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों को राहगीरों ने रात्रि करीब 12 बजे पुलिस की मदद से उपचार के लिए जिला नागरिक अस्पताल पलवल भिजवा दिया। सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर जिला नागरिक अस्पताल से उसके बेटे कृष्णा व सुभाष की हालत नाजुक देखते हुए दिल्ली स्थित सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। सफदरजंग अस्पताल दिल्ली में उपचार के दौरान कृष्णा ने दम तोड़ दिया। सड़क हादसे में पति-पत्नी गंभीर रूप से घायल वहीं चांदहट गांव निवासी भागीरथ ने दी शिकायत में कहा कि वह अपनी पत्नी सीमा के साथ बाइक पर पलवल-अलीगढ़ मार्ग को क्रॉस कर रहा था। उसी दौरान कार चालक ने बाइक में टक्कर मार दी। जिससे दोनों पति-पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों का अस्पताल में उपचार चल रहा है। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर वाहन चालक की तलाश शुरू कर दी है।
विनेश फोगाट बोलीं- भारतीय दल ने कोई मदद नहीं की:पेरिस ओलिंपिक में कानूनी विकल्प नहीं बताए; BJP ने मेरा मेडल देश का नहीं समझा
विनेश फोगाट बोलीं- भारतीय दल ने कोई मदद नहीं की:पेरिस ओलिंपिक में कानूनी विकल्प नहीं बताए; BJP ने मेरा मेडल देश का नहीं समझा हरियाणा की रेसलर विनेश फोगाट ने पहली बार पेरिस ओलिंपिक में 100 ग्राम बढ़े वजन से मेडल से चूकने के बारे में बात की। विनेश ने दावा किया कि मेडल को लेकर उनके पास कानूनी विकल्प था, यह उन्हें भारतीय डेलिगेशन नहीं, बल्कि एक दोस्त ने बताया था। विनेश ने यह भी कहा कि BJP वालों ने ओलिंपिक मेडल को मेरा मेडल समझा। मेरी कोई मदद नहीं की गई। विनेश 6 सितंबर को ही कांग्रेस में शामिल हुई हैं। कांग्रेस ने उन्हें जींद जिले की जुलाना विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। विनेश फोगाट भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के पूर्व अध्यक्ष भाजपा नेता बृजभूषण सिंह के खिलाफ यौन शोषण के आरोपों से जुड़े आंदोलन की अगुआई करने वालों में शामिल थीं। विनेश फोगाट ने बजरंग पूनिया के साथ 6 सितंबर को कांग्रेस जॉइन की। इससे पहले दोनों पहलवानों ने राहुल गांधी से मुलाकात की थी। विनेश बोलीं- भाजपा वाले ईगो पर बात ले गए, 4 सवालों के जवाब सवाल: पेरिस ओलिंपिक में 100 ग्राम वजन बढ़ा हुआ मिला तो आपके पास कानूनी विकल्प थे, ये किसने बताया?
विनेश: जब हम प्रोटेस्ट में थे तो एक फ्रेंड थी जो इंटरनेशनल स्पोर्ट्स में है। उन्होंने मुझे अप्रोच किया कि ऐसी चीजें हैं। सवाल: भारतीय प्रतिनिधिमंडल में जो लोग थे, उन्होंने कोई आपकी मदद नहीं की?
विनेश: नहीं, वह सब बाद में आए। केस मैंने किया। इनके वकील बाद में आए। सवाल: आपको कुछ विदेशी खिलाड़ियों ने बताया कि सही तरीके से लड़ाई लड़ी जाती तो मेडल आपका होता।
विनेश: यह सच है। दुर्भाग्य देश का है। ये इतनी ईगो पर बात ले गए कि वह मेडल मेरा था। वह मेरा नहीं, देश का मेडल था। देश चाहता तो ला सकता था। वह कौन नहीं लेकर आए, सबको पता है। सवाल: विनेश का कैसे, वह मेडल तो भारत का था?
विनेश: BJP वाले तो सोच रहे हैं कि विनेश का था। तभी इन्होंने मुझसे बदला लेने के लिए इतना कुछ किया। मुझे कोई मदद नहीं मिली। मेरे चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस का- विनेश
कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव लड़ने के बारे में विनेश फोगाट ने कहा कि बजरंग पूनिया के साथ चुनाव लड़ने को लेकर कोई बात नहीं हुई थी। हमने यह कांग्रेस पार्टी पर छोड़ा था और उन्होंने फैसला कर दिया। बजरंग को जो ऑल इंडिया किसान कांग्रेस का वर्किंग चेयरमैन बनाया गया है, वह भी हमारे दिल के करीब है। मुझे लगता है कि बजरंग के पास मुझसे ज्यादा जिम्मेदारी है।कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष भाजपा नेता बृजभूषण सिंह। बृजभूषण को थप्पड़ मारने का भी टाइम आएगा
पूर्व कुश्ती संघ अध्यक्ष बृजभूषण के छेड़छाड़ पर थप्पड़ क्यों नहीं मारने के सवाल पर विनेश ने कहा कि वही हमारी गलती रह गई। भगवान ने पहले इतनी हिम्मत नहीं दी थी, वर्ना बहुत सारी बच्चियां बच जातीं। थप्पड़ मारने का भी टाइम आएगा। वह अभी क्यों डर रहा है। इतना क्यों बौखला रहा है। बृजभूषण के एक दिन में डबल ट्रायल के आरोपों पर विनेश ने कहा कि यह सब नियमों के तहत हुआ। अगर मैं इतनी शक्तिशाली होती तो बृजभूषण को जेल के अंदर नहीं डाल देती। विनेश फोगाट मामले में क्या हुआ, सिलसिलेवार ढंग से पढ़ें… 1. पेरिस ओलिंपिक में 1 दिन में 3 पहलवानों को हराया
विनेश फोगाट ने 50 किग्रा वेट कैटेगरी में 6 अगस्त को 3 मैच खेले। प्री-क्वार्टर फाइनल में उन्होंने टोक्यो ओलिंपिक की चैंपियन यूई सुसाकी को हरा दिया। क्वार्टर फाइनल में उन्होंने यूक्रेन और सेमीफाइनल में क्यूबा की रेसलर को पटखनी दी। विनेश फाइनल में पहुंचने वालीं पहली भारतीय महिला रेसलर बनीं थीं। 2. डाइट से वजन बढ़ा, पूरी रात कोशिश बेकार गई
सेमीफाइनल तक 3 मैच खेलने के दौरान उन्हें प्रोटीन और एनर्जी के लिए खाना-पानी दिया गया। जिससे उनका वजन 52.700 kg तक बढ़ गया। भारतीय ओलिंपिक टीम के डॉक्टर डॉक्टर दिनशॉ पारदीवाला के मुताबिक विनेश का वेट वापस 50KG पर लाने के लिए टीम के पास सिर्फ 12 घंटे थे। पूरी टीम रातभर विनेश का वजन कम करने की कोशिश में लगी रही। विनेश पूरी रात नहीं सोईं और वजन को तय कैटेगरी में लाने के लिए जॉगिंग, स्किपिंग और साइकिलिंग जैसी एक्सरसाइज करती रहीं। विनेश ने अपने बाल और नाखून तक काट दिए थे। उनके कपड़े भी छोटे कर दिए गए थे। 3. वजन 100 ग्राम ज्यादा मिला, वजन घटाने को सिर्फ 15 मिनट थे
7 अगस्त की सुबह नियम के अनुसार दोबारा से विनेश के वजन की जांच की गई। उनका वजन ज्यादा निकला। उन्हें 15 मिनट मिले लेकिन आखिरी बार वजन में भी वह 100 ग्राम अधिक निकलीं। जिसके बाद उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया। 4. विनेश ने अयोग्य करार देने के खिलाफ अपील की
इसके बाद विनेश ने अयोग्य करार देने पर खेल कोर्ट (CAS) में अपील की। जिसमें विनेश ने फाइनल मुकाबला खेलने देने की अपील की। यह संभव नहीं था तो विनेश ने अपील बदलकर कहा कि सेमीफाइनल तक उसका वजन नियमों के अनुरूप था। उसे संयुक्त सिल्वर मेडल दिया जाए। 5. विनेश ने संन्यास का ऐलान किया
विनेश फोगाट ने 8 अगस्त को कुश्ती से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया। उन्होंने सुबह 5.17 बजे सोशल मीडिया पोस्ट लिखी। विनेश ने लिखा- “मां कुश्ती मेरे से जीत गई, मैं हार गई। माफ करना आपका सपना, मेरी हिम्मत सब टूट चुके। इससे ज्यादा ताकत नहीं रही अब। अलविदा कुश्ती 2001-2024, आप सबकी हमेशा ऋणी रहूंगी। …माफी।”। 6. खेल कोर्ट ने याचिका खारिज की
विनेश फोगाट की याचिका पर खेल कोर्ट में सुनवाई चली। हालांकि पेरिस ओलिंपिक के बाद इसका फैसला आया, जिसमें उनकी याचिका खारिज कर दी गई। जिसके बाद विनेश बिना मेडल के ही देश वापस लौटी। यहां दिल्ली एयरपोर्ट से लेकर पैतृक गांव बलाली तक उनका काफिले के तौर पर स्वागत किया गया। ये खबर भी पढ़ें… बजरंग पूनिया को जान से मारने की धमकी:विदेशी नंबर से वॉट्सऐप मैसेज आया, लिखा- कांग्रेस छोड़ दो, वर्ना परिवार के लिए अच्छा नहीं होगा हरियाणा के रेसलर बजरंग पूनिया को कांग्रेस में शामिल होने के 2 दिन बाद जान से मारने की धमकी मिली है। यह धमकी उन्हें वॉट्सऐप मैसेज के जरिए मिली है। वॉट्सऐप पर उन्हें विदेशी नंबर से मैसेज आया है, जिसमें जान से मारने की धमकी दी गई है। कांग्रेस ने बजरंग पूनिया को ऑल इंडिया किसान कांग्रेस का वर्किंग चेयरमैन बनाया है। पूरी खबर पढ़ें…