बजट सत्र में बिखरी दिखी सपा, भारी पड़ी सरकार:वॉकआउट में भी साथ नहीं रहे विधायक, 2027 के लिए नई रणनीति तैयार करनी होगी

बजट सत्र में बिखरी दिखी सपा, भारी पड़ी सरकार:वॉकआउट में भी साथ नहीं रहे विधायक, 2027 के लिए नई रणनीति तैयार करनी होगी

महाकुंभ के बाद बुलाए गए विधानमंडल के बजट सत्र में सत्तापक्ष ने सदन के अंदर और बाहर पूरी तरह से अपनी ताकत का एहसास कराया। वहीं, समाजवादी पार्टी दोनों सदनों में बिखरी-बिखरी दिखी। महाकुंभ को लेकर मीडिया और सोशल मीडिया में सरकार पर आरोप लगाने वाली सपा ने सदन के अंदर उतना असरदार विरोध दर्ज नहीं कराया। विधानसभा में सपा विधायकों ने अकेले-अकेले वॉकआउट किया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि विधानसभा चुनाव- 2027 में अब 2 साल का समय भी नहीं बचा है। भाजपा ने हैट्रिक लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं सपा को 2027 में बाजी मारने के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। अखिलेश की कमी, माता प्रसाद पर दिखा उम्र का असर
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय मानते हैं कि नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय (82) पुराने दौर के हैं। बुजुर्ग होने के साथ वह नियमों की परिधि में बात करते हैं। सपा विधायक, नेता प्रतिपक्ष में जिस तरह की आक्रामकता देखना चाहते हैं, वह नहीं दिख रही। ऐसा पहली बार देखने को मिला कि नेता प्रतिपक्ष की स्पीच के दौरान उन्हीं की पार्टी के विधायक बीच में बोलते नजर आए। आनंद राय का मानना है कि सदन में सपा की कमजोरी के पीछे अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी भी बड़ा कारण है। अखिलेश यादव सदन में रहते थे, तो सपा विधायकों का उत्साह बना रहता था। उनमें अपने नेता के सामने सक्रियता दिखाने की ललक रहती थी। जो इस बार देखने को नहीं मिली। पूरे सत्र में सपा की रणनीतिक चूक दिखी
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय मानते हैं- समाजवादी पार्टी ने बजट सत्र के दौरान महाकुंभ की अव्यवस्था और भगदड़ को मुद्दा बनाया। इसको भी विपक्ष सदन में उतना प्रभावी तरीके से नहीं उठा सका, जितनी प्रभावी तरीके से सीएम योगी ने आंकड़ों के साथ अपनी बात को रखा। सीएम योगी ने महाकुंभ में उमड़े जनसैलाब, अर्थव्यवस्था को मिली मजबूती सहित ऐसे आंकड़े पेश किए, जिन पर विपक्ष के पास कोई सवाल नहीं था। राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के विरोध के बाद सपा के कुछ विधायक बगावत कर गए थे। वैसे ही हिंदुओं की आस्था से जुड़े महाकुंभ को विवादों से जोड़ने की सपा की यह रणनीतिक चूक रही है। रागिनी सोनकर, पंकज मलिक, अतुल प्रधान और कमाल अख्तर ने सरकार को घेरा
विधानसभा में विपक्ष की ओर से विधायक रागिनी सोनकर, पंकज मलिक, अतुल प्रधान, संग्राम यादव और मुख्य सचेतक कमाल अख्तर ने सरकार को जमकर घेरा। सपा विधायक इंजीनियर सचिन यादव, पंकज पटेल, समरपाल, रविदास मेहरोत्रा, फहीम इरफान, पल्लवी पटेल और स्वामी ओमवेश ने भी सवालों से सरकार को घेरने का प्रयास किया। सदन में कई बार ऐसे मौके भी आए जब विधायक रागिनी सोनकर ने तीखे सवाल किए। इनके जवाब देने के लिए विभागीय मंत्री की जगह खुद सीएम योगी और संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना को दखल देना पड़ा। सदन में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के व्यवहार से आहत रागिनी ने सदन का वॉकआउट भी किया। ज्यादातर सपा विधायक दिखे निष्क्रिय
विधानसभा में सपा के 107 सदस्य हैं। लेकिन सदन के अंदर कमोबेश करीब 12 सदस्य ही सक्रिय रहते हैं। बाकी सदस्य राजनीतिक कारणों से या विषय की जानकारी के अभाव में सदन में सक्रिय नहीं रहते। 50 से ज्यादा ऐसे विधायक भी हैं, जिन्होंने बजट सत्र में एक भी प्रश्न नहीं लगाया। विधायक अंकित भारती, इंद्रजीत सरोज, इंद्राणी देवी, उषा मौर्य, कमलाकांत राजभर उर्फ पप्पू, गीता शास्त्री, जयकिशन साहू, महराजी प्रजापति, हाकिम अली बिंद, नसीम सोलंकी समेत अन्य कई विधायक सदन में सक्रिय नहीं दिखे। इन्होंने सदन में तारांकित सवाल (जिसका उत्तर सदस्य सदन में मौखिक रूप से चाहता है) तक नहीं किए। पारिवारिक संबंध भी बने मजबूरी
जानकारों का मानना है, इसके पीछे राजनीतिक और पारिवारिक मजबूरी भी है। जैसे विधायक इंद्रजीत सरोज भाजपा एमएलसी रामचंद्र प्रधान के समधी हैं। उनके भाजपा से अच्छे रिश्ते हैं। समय-समय पर उनकी भाजपा में शामिल होने की चर्चा भी चलती रहती है। अब बात करते हैं विधान परिषद की सीएम योगी के आरोपों का जवाब नहीं दे पाई सपा
विधान परिषद में भी सपा सुस्त नजर आई। 4 मार्च को बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में हिस्सा लिया। योगी ने समाजवादी पार्टी पर जोरदार हमला बोला। लेकिन, सपा इस पर जवाब देने या सीएम के आरोपों को काउंटर करने की जगह रक्षात्मक मुद्रा में नजर आई। यहां तक कि जब सीएम योगी का लगभग डेढ़ घंटे का संबोधन समाप्त हुआ, तो नेता विरोधी दल लाल बिहारी यादव अपनी पार्टी का बचाव तक नहीं किया। वह मुख्यमंत्री से अपना वेतन बढ़ाने की मांग करने लगे। नेता विरोधी दल को टांग ले गए मार्शल, जगह से भी नहीं हिले सपा सदस्य
बजट सत्र के दूसरे दिन समाजवादी पार्टी नियम- 105 के तहत चर्चा कर रही थी। नेता विरोधी दल लाल बिहारी 2 घंटे की चर्चा कराए जाने की मांग पर अड़ गए। इस पर सभापति मानवेंद्र सिंह ने मार्शल को आदेश दिया कि उन्हें उठाकर बाहर ले जाएं। मार्शल आए और लाल बिहारी यादव को टांग कर ले गए। उस समय समाजवादी पार्टी के कई सदस्य वेल में बैठे थे। जिस समय मार्शल लाल बिहारी यादव को ले जा रहे थे, सपा के कई सदस्य वेल में बैठे हंसते नजर आए। आलाकमान ने कसे पेंच, तो एकजुट हुए सपाई
विधान परिषद में नेता विरोधी दल को सदन से बाहर करने पर विरोध नहीं करना सपा नेतृत्व को भी नागवार गुजरा। सपा सुप्रीमो ने सभी सदस्यों को सदन में एकजुट रहने की हिदायत दी। इसके बाद सपा थोड़ा एकजुट जरूर दिखी। सत्र के दौरान दो मौके ऐसे आए, जब समाजवादी पार्टी ने जनहित का मुद्दा उठाते हुए सदन का बहिष्कार किया। एक मौका किसानों की समस्याओं का था, दूसरा जातीय जनगणना का था। नेता प्रतिपक्ष को टांग ले जाने की पहली घटना
लंबे समय से बतौर शिक्षक दल के नेता के रूप में विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करने वाले ध्रुव कुमार त्रिपाठी कहते हैं- नेता विरोधी दल को इस तरह से उठा कर ले जाने की विधान परिषद की यह पहली घटना थी। आमतौर पर जब पीठ किसी भी सदस्य को या नेता को बाहर जाने के लिए कहती है, तो वह खुद बाहर चला जाता है। 19 फरवरी को कोई इतना बड़ा मुद्दा भी नहीं था, जिसे नेता विरोधी दल लाल बिहारी यादव ने तूल दिया। वह न सिर्फ वेल में बैठे रहे, बल्कि लेट गए। विधान परिषद में सपा के आधे से ज्यादा सदस्य सवाल भी नहीं पूछते
विधान परिषद में मौजूदा समय में समाजवादी पार्टी के 10 सदस्य हैं। इनमें लाल बिहारी यादव के अलावा किरणपाल कश्यप, जसमीर अंसारी, बलराम यादव, राजेंद्र चौधरी, डॉ. मान सिंह, शाह आलम उर्फ गुड्‌डू जमाली, मुकुल यादव, आशुतोष सिन्हा और शहनवाज आलम हैं। इसमें आधे से ज्यादा सदस्य तो सरकार से सवाल पूछना भी मुनासिब नहीं समझते। इस बार अधिकतर सवाल डॉ. मान सिंह, आशुतोष सिन्हा और शहनवाज आलम के रहे। बाकी सदस्यों के पास सत्ता से पूछने के लिए सवाल भी नहीं थे। 11 दिन के सत्र में दो मौके ऐसे आए जब सवालों के लिए समय तो था, लेकिन विपक्ष के पास सवाल ही नहीं थे। इतना ही नहीं, सत्ता पक्ष के कई सदस्यों ने भी अपनी सरकार से सवाल पूछे और सरकार को कठघरे में खड़ा किया। सपा को क्या करना होगा?…2027 के लिए नए सिरे से बनानी होगी रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल मानते हैं- ऐसा लंबे समय से चल रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद मिली जीत से बने माहौल को सपा अपने पक्ष में बरकरार नहीं रख सकी। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जिस मजबूती से सरकार चल रही है, उससे साफ है जनता में भाजपा की अपील है। सपा का पीडीए फॉर्मूला शब्दों का खेल बनकर रह गया है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं- सपा को 2027 की तैयारी के लिए संगठनात्मक रणनीति में बदलाव करना होगा। विधानसभा सत्र के दौरान सपा को और अधिक तैयारी के साथ आना होगा। विधानसभा में नियम 56 हो या विधान परिषद में नियम- 105 के तहत जो सवाल उठाए जाते हैं वे तथ्यों पर आधारित हों। उसके लिए विधायकों को पहले आपस में ही विमर्श करना होगा। किन मुद्दों पर वॉकआउट करना है, किन पर वेल में आना है, इसकी पहले से तैयारी करके सदन में आना होगा। यह बात भी सही है कि जिस आक्रामकता के साथ अखिलेश यादव बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी बात रखते थे, वो काम फिलहाल माता प्रसाद पांडेय नहीं कर पा रहे। माता प्रसाद को नेता प्रतिपक्ष बनाने का निर्णय भी अखिलेश यादव का ही है। इसीलिए पार्टी के अंदर भी इसका कोई विरोध होगा, ऐसा नहीं लगता। ———————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी सरकार जातीय जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती, हिंदू वोटबैंक बंटने का डर; सपा पिछड़ों को एकजुट कर सियासी फायदा उठाएगी यूपी में जातिगत जनगणना को लेकर बहस थमती नहीं दिख रही है। बजट सत्र के दौरान विधान परिषद में इस पर जमकर नोकझोंक हुई। सपा ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई। बिहार का उदाहरण दिया। भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया। कहा- जनगणना करने का विषय भारत सरकार के पास है ये राज्य का मामला ही नहीं है। इस पर सपा ने वॉकआउट किया। पढ़ें पूरी खबर… महाकुंभ के बाद बुलाए गए विधानमंडल के बजट सत्र में सत्तापक्ष ने सदन के अंदर और बाहर पूरी तरह से अपनी ताकत का एहसास कराया। वहीं, समाजवादी पार्टी दोनों सदनों में बिखरी-बिखरी दिखी। महाकुंभ को लेकर मीडिया और सोशल मीडिया में सरकार पर आरोप लगाने वाली सपा ने सदन के अंदर उतना असरदार विरोध दर्ज नहीं कराया। विधानसभा में सपा विधायकों ने अकेले-अकेले वॉकआउट किया। पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि विधानसभा चुनाव- 2027 में अब 2 साल का समय भी नहीं बचा है। भाजपा ने हैट्रिक लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं सपा को 2027 में बाजी मारने के लिए नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। अखिलेश की कमी, माता प्रसाद पर दिखा उम्र का असर
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय मानते हैं कि नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय (82) पुराने दौर के हैं। बुजुर्ग होने के साथ वह नियमों की परिधि में बात करते हैं। सपा विधायक, नेता प्रतिपक्ष में जिस तरह की आक्रामकता देखना चाहते हैं, वह नहीं दिख रही। ऐसा पहली बार देखने को मिला कि नेता प्रतिपक्ष की स्पीच के दौरान उन्हीं की पार्टी के विधायक बीच में बोलते नजर आए। आनंद राय का मानना है कि सदन में सपा की कमजोरी के पीछे अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी भी बड़ा कारण है। अखिलेश यादव सदन में रहते थे, तो सपा विधायकों का उत्साह बना रहता था। उनमें अपने नेता के सामने सक्रियता दिखाने की ललक रहती थी। जो इस बार देखने को नहीं मिली। पूरे सत्र में सपा की रणनीतिक चूक दिखी
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय मानते हैं- समाजवादी पार्टी ने बजट सत्र के दौरान महाकुंभ की अव्यवस्था और भगदड़ को मुद्दा बनाया। इसको भी विपक्ष सदन में उतना प्रभावी तरीके से नहीं उठा सका, जितनी प्रभावी तरीके से सीएम योगी ने आंकड़ों के साथ अपनी बात को रखा। सीएम योगी ने महाकुंभ में उमड़े जनसैलाब, अर्थव्यवस्था को मिली मजबूती सहित ऐसे आंकड़े पेश किए, जिन पर विपक्ष के पास कोई सवाल नहीं था। राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा के विरोध के बाद सपा के कुछ विधायक बगावत कर गए थे। वैसे ही हिंदुओं की आस्था से जुड़े महाकुंभ को विवादों से जोड़ने की सपा की यह रणनीतिक चूक रही है। रागिनी सोनकर, पंकज मलिक, अतुल प्रधान और कमाल अख्तर ने सरकार को घेरा
विधानसभा में विपक्ष की ओर से विधायक रागिनी सोनकर, पंकज मलिक, अतुल प्रधान, संग्राम यादव और मुख्य सचेतक कमाल अख्तर ने सरकार को जमकर घेरा। सपा विधायक इंजीनियर सचिन यादव, पंकज पटेल, समरपाल, रविदास मेहरोत्रा, फहीम इरफान, पल्लवी पटेल और स्वामी ओमवेश ने भी सवालों से सरकार को घेरने का प्रयास किया। सदन में कई बार ऐसे मौके भी आए जब विधायक रागिनी सोनकर ने तीखे सवाल किए। इनके जवाब देने के लिए विभागीय मंत्री की जगह खुद सीएम योगी और संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना को दखल देना पड़ा। सदन में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के व्यवहार से आहत रागिनी ने सदन का वॉकआउट भी किया। ज्यादातर सपा विधायक दिखे निष्क्रिय
विधानसभा में सपा के 107 सदस्य हैं। लेकिन सदन के अंदर कमोबेश करीब 12 सदस्य ही सक्रिय रहते हैं। बाकी सदस्य राजनीतिक कारणों से या विषय की जानकारी के अभाव में सदन में सक्रिय नहीं रहते। 50 से ज्यादा ऐसे विधायक भी हैं, जिन्होंने बजट सत्र में एक भी प्रश्न नहीं लगाया। विधायक अंकित भारती, इंद्रजीत सरोज, इंद्राणी देवी, उषा मौर्य, कमलाकांत राजभर उर्फ पप्पू, गीता शास्त्री, जयकिशन साहू, महराजी प्रजापति, हाकिम अली बिंद, नसीम सोलंकी समेत अन्य कई विधायक सदन में सक्रिय नहीं दिखे। इन्होंने सदन में तारांकित सवाल (जिसका उत्तर सदस्य सदन में मौखिक रूप से चाहता है) तक नहीं किए। पारिवारिक संबंध भी बने मजबूरी
जानकारों का मानना है, इसके पीछे राजनीतिक और पारिवारिक मजबूरी भी है। जैसे विधायक इंद्रजीत सरोज भाजपा एमएलसी रामचंद्र प्रधान के समधी हैं। उनके भाजपा से अच्छे रिश्ते हैं। समय-समय पर उनकी भाजपा में शामिल होने की चर्चा भी चलती रहती है। अब बात करते हैं विधान परिषद की सीएम योगी के आरोपों का जवाब नहीं दे पाई सपा
विधान परिषद में भी सपा सुस्त नजर आई। 4 मार्च को बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री योगी ने राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा में हिस्सा लिया। योगी ने समाजवादी पार्टी पर जोरदार हमला बोला। लेकिन, सपा इस पर जवाब देने या सीएम के आरोपों को काउंटर करने की जगह रक्षात्मक मुद्रा में नजर आई। यहां तक कि जब सीएम योगी का लगभग डेढ़ घंटे का संबोधन समाप्त हुआ, तो नेता विरोधी दल लाल बिहारी यादव अपनी पार्टी का बचाव तक नहीं किया। वह मुख्यमंत्री से अपना वेतन बढ़ाने की मांग करने लगे। नेता विरोधी दल को टांग ले गए मार्शल, जगह से भी नहीं हिले सपा सदस्य
बजट सत्र के दूसरे दिन समाजवादी पार्टी नियम- 105 के तहत चर्चा कर रही थी। नेता विरोधी दल लाल बिहारी 2 घंटे की चर्चा कराए जाने की मांग पर अड़ गए। इस पर सभापति मानवेंद्र सिंह ने मार्शल को आदेश दिया कि उन्हें उठाकर बाहर ले जाएं। मार्शल आए और लाल बिहारी यादव को टांग कर ले गए। उस समय समाजवादी पार्टी के कई सदस्य वेल में बैठे थे। जिस समय मार्शल लाल बिहारी यादव को ले जा रहे थे, सपा के कई सदस्य वेल में बैठे हंसते नजर आए। आलाकमान ने कसे पेंच, तो एकजुट हुए सपाई
विधान परिषद में नेता विरोधी दल को सदन से बाहर करने पर विरोध नहीं करना सपा नेतृत्व को भी नागवार गुजरा। सपा सुप्रीमो ने सभी सदस्यों को सदन में एकजुट रहने की हिदायत दी। इसके बाद सपा थोड़ा एकजुट जरूर दिखी। सत्र के दौरान दो मौके ऐसे आए, जब समाजवादी पार्टी ने जनहित का मुद्दा उठाते हुए सदन का बहिष्कार किया। एक मौका किसानों की समस्याओं का था, दूसरा जातीय जनगणना का था। नेता प्रतिपक्ष को टांग ले जाने की पहली घटना
लंबे समय से बतौर शिक्षक दल के नेता के रूप में विधान परिषद में प्रतिनिधित्व करने वाले ध्रुव कुमार त्रिपाठी कहते हैं- नेता विरोधी दल को इस तरह से उठा कर ले जाने की विधान परिषद की यह पहली घटना थी। आमतौर पर जब पीठ किसी भी सदस्य को या नेता को बाहर जाने के लिए कहती है, तो वह खुद बाहर चला जाता है। 19 फरवरी को कोई इतना बड़ा मुद्दा भी नहीं था, जिसे नेता विरोधी दल लाल बिहारी यादव ने तूल दिया। वह न सिर्फ वेल में बैठे रहे, बल्कि लेट गए। विधान परिषद में सपा के आधे से ज्यादा सदस्य सवाल भी नहीं पूछते
विधान परिषद में मौजूदा समय में समाजवादी पार्टी के 10 सदस्य हैं। इनमें लाल बिहारी यादव के अलावा किरणपाल कश्यप, जसमीर अंसारी, बलराम यादव, राजेंद्र चौधरी, डॉ. मान सिंह, शाह आलम उर्फ गुड्‌डू जमाली, मुकुल यादव, आशुतोष सिन्हा और शहनवाज आलम हैं। इसमें आधे से ज्यादा सदस्य तो सरकार से सवाल पूछना भी मुनासिब नहीं समझते। इस बार अधिकतर सवाल डॉ. मान सिंह, आशुतोष सिन्हा और शहनवाज आलम के रहे। बाकी सदस्यों के पास सत्ता से पूछने के लिए सवाल भी नहीं थे। 11 दिन के सत्र में दो मौके ऐसे आए जब सवालों के लिए समय तो था, लेकिन विपक्ष के पास सवाल ही नहीं थे। इतना ही नहीं, सत्ता पक्ष के कई सदस्यों ने भी अपनी सरकार से सवाल पूछे और सरकार को कठघरे में खड़ा किया। सपा को क्या करना होगा?…2027 के लिए नए सिरे से बनानी होगी रणनीति
वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल मानते हैं- ऐसा लंबे समय से चल रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद मिली जीत से बने माहौल को सपा अपने पक्ष में बरकरार नहीं रख सकी। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जिस मजबूती से सरकार चल रही है, उससे साफ है जनता में भाजपा की अपील है। सपा का पीडीए फॉर्मूला शब्दों का खेल बनकर रह गया है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस मानते हैं- सपा को 2027 की तैयारी के लिए संगठनात्मक रणनीति में बदलाव करना होगा। विधानसभा सत्र के दौरान सपा को और अधिक तैयारी के साथ आना होगा। विधानसभा में नियम 56 हो या विधान परिषद में नियम- 105 के तहत जो सवाल उठाए जाते हैं वे तथ्यों पर आधारित हों। उसके लिए विधायकों को पहले आपस में ही विमर्श करना होगा। किन मुद्दों पर वॉकआउट करना है, किन पर वेल में आना है, इसकी पहले से तैयारी करके सदन में आना होगा। यह बात भी सही है कि जिस आक्रामकता के साथ अखिलेश यादव बतौर नेता प्रतिपक्ष अपनी बात रखते थे, वो काम फिलहाल माता प्रसाद पांडेय नहीं कर पा रहे। माता प्रसाद को नेता प्रतिपक्ष बनाने का निर्णय भी अखिलेश यादव का ही है। इसीलिए पार्टी के अंदर भी इसका कोई विरोध होगा, ऐसा नहीं लगता। ———————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी सरकार जातीय जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती, हिंदू वोटबैंक बंटने का डर; सपा पिछड़ों को एकजुट कर सियासी फायदा उठाएगी यूपी में जातिगत जनगणना को लेकर बहस थमती नहीं दिख रही है। बजट सत्र के दौरान विधान परिषद में इस पर जमकर नोकझोंक हुई। सपा ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई। बिहार का उदाहरण दिया। भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया। कहा- जनगणना करने का विषय भारत सरकार के पास है ये राज्य का मामला ही नहीं है। इस पर सपा ने वॉकआउट किया। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर