उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी, मथुरा जन्मभूमि और संभल जामा मस्जिद के बाद अब बदायूं की जामा मस्जिद चर्चा में है। हिंदू पक्ष ने इसे नीलकंठ महादेव मंदिर बताते हुए कोर्ट में दावा किया है। 3 दिसंबर (आज) को कोर्ट में सुनवाई है। दावा है, साल 1175 में मुस्लिम शासक शमसुद्दीन अल्तमश (इल्तुतमिश) ने मंदिर को जामा मस्जिद का रूप दिया था। हिंदू पक्ष ने ब्रिटिशकाल में लिखे गए गजेटियर और 144 साल पुरानी ASI की रिपोर्ट कोर्ट में जमा की है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि उन्होंने कोर्ट में चकबंदी का वो दस्तावेज पेश किया है, जिसमें इस जमीन का मालिकाना हक जामा मस्जिद के नाम पर दर्ज है। कोर्ट 2 साल से इस बात पर सुनवाई कर रही है कि मामला आगे सुना जाना चाहिए या नहीं? दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर इस पूरे विवाद को समझा। दोनों पक्षों से बात की। उन दस्तावेजों की स्टडी की, जिनके आधार पर मंदिर-मस्जिद के दावे किए जा रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… 2 सितंबर, 2022 को बदायूं सिविल कोर्ट में भगवान श्री नीलकंठ महादेव महाकाल (ईशान शिव मंदिर), मोहल्ला कोट/मौलवी टोला की तरफ से एक याचिका दायर हुई। इसमें जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, ASI, केंद्र सरकार, यूपी सरकार, बदायूं कलेक्टर और प्रदेश के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया। याचिका में दावा किया गया कि मौजूदा वक्त में बदायूं की जामा मस्जिद की जगह पर नीलकंठ महादेव का मंदिर था। बाद में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजश्री चौधरी ने इस केस को लड़ने के लिए 5 प्रतिनिधि (याचिकाकर्ता) नियुक्त किए। इनमें महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल, अरविंद परमान एडवोकेट, ज्ञानेंद्र प्रकाश, डॉ. अनुराग शर्मा और उमेश चंद्र शर्मा शामिल हैं। कोर्ट ने 5 लोगों के याचिकाकर्ता बनने की एप्लिकेशन स्वीकार कर ली। अब यही पांचों लोग हिंदू पक्ष की तरफ से कोर्ट में उपस्थित हो रहे हैं। पिछले दो साल से कोर्ट में तारीख पर तारीख लग रही हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को सुना जा रहा है। माना जा रहा है, अगले 3 महीने में कोर्ट तय कर देगा कि ये केस आगे सुनने लायक है या नहीं। हिंदू पक्ष ने अपनी याचिका में 3 दस्तावेजों का हवाला दिया है, पढ़िए… 1- ASI सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा- राजा महिपाल ने मंदिर बनवाया, जिसे मुसलमानों ने नष्ट किया
ASI ने 1875 से 1877 तक बदायूं से बिहार तक हुए सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट तैयार की। ये सर्वे ASI के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल ए.कनिंघम ने किया था। कलकत्ता सरकारी मुद्रण अधीक्षक कार्यालय ने ये रिपोर्ट 1880 में प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में लिखा है- कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं को अपना मुख्यालय बनाया। बदायूं का पहला गवर्नर शमसुद्दीन अल्तमश था, जो बाद में दिल्ली का राजा बना। लेकिन, बदायूं में उसकी दिलचस्पी दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के बाद भी बनी रही। 5 साल बाद उसने अपने बड़े बेटे रुकनुद्दीन फिरोज को बदायूं का गर्वनर बनाया। रिपोर्ट में आगे लिखा है, ब्राह्मणों के अनुसार- बदायूं का पहला नाम बेदामऊ या बदामैया था। तब तोमर वंश के राजा महिपाल ने यहां एक बड़ा किला बनवाया, जिस पर अब शहर का एक हिस्सा खड़ा है। कई मीनारें अभी भी बनी हैं। यह भी कहा जाता है कि महिपाल ने हरमंदर नाम का एक मंदिर बनवाया था, जिसे मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था। इसके स्थान पर वर्तमान जामा मस्जिद बनवाई थी। लोग इस बात पर एकमत हैं कि मंदिर की सभी मूर्तियां, मस्जिद के नीचे दबी थीं। 2- 1857 के गजेटियर में लिखा- मस्जिद की निर्माण सामग्री नष्ट हुए मंदिर की लगती है
ब्रिटिश काल (1857) में गजेटियर तैयार हुआ। इसमें बदायूं तहसील के इतिहास का भी जिक्र है। पेज नंबर 249 पर लिखा है- यहां सबसे पुरानी मुस्लिम इमारत शायद शम्स-उद-दीन अल्तमश की ईदगाह है, जो 1202 से 1209 ईसवी तक बदायूं का पहला गर्वनर था। इसके अवशेष पुराने शहर के पश्चिमी बाहरी इलाके से करीब 2 किलोमीटर दूरी पर हैं। इसमें 91.4 मीटर लंबी ईंट की दीवार है। ऐसा लगता है कि केंद्रीय मेहराब के ऊपर एक लंबा शिलालेख था। हालांकि, अब यह सीमेंट के प्लास्टर से ढक दिया गया है। इस पर केवल कुछ ही अक्षर दिखाई देते हैं। दाईं ओर एक पंक्ति के शिलालेख का टुकड़ा है, जो स्पष्ट रूप से कुरान का एक उदाहरण है। गजेटियर में लिखा है- इल्तुतमिश ने बदायूं पर अपनी छाप विशिष्ट तरीके से छोड़ी। उसने प्रसिद्ध जामा मस्जिद बनाई, जो शहर के ऊंचे भाग मौलवी टोला मोहल्ला में है। ऐसा कहा जाता है कि इसे एक पुराने पत्थर के मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। क्योंकि, इसके निर्माण के लिए इस्तेमाल सामग्री किसी नष्ट हुए मंदिर की प्रतीत होती है। इसकी दीवारें साढ़े तीन मीटर चौड़े मेहराबदार छिद्रों से छेदी गई हैं। पश्चिम में एक गहरा मेहराब है, जिसके दोनों तरफ दो छोटे नक्काशीदार खंभे हैं। ये जाहिर तौर पर पुराने हिंदू मंदिर से लिए गए थे। 3- जिला प्रशासन ने कहा- ईशान नाम के मठाधीश ने मंदिर बनवाया, कुतुबुद्दीन के दामाद ने ध्वस्त किया
बदायूं के इतिहास पर यहां के जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय ने अनेक बार पुस्तिका भी छपवाई। इसमें पेज नंबर-12 से 14 तक लिखा है- गुप्त काल में यह नगर वेदामऊ नाम से जाना जाने लगा। उस समय लखपाल यहां का राजा था। इसी समय में ईशान शिव नामक मठाधीश ने विशाल शिव मंदिर की स्थापना कराई, जो नीलकंठ महादेव और बाद में इशान महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता रहा। साल 1175 में राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर अधिकार कर मुसलमान गुलामवंश राज्य की स्थापना की। बदायूं को पश्चिमी क्षेत्र के सूबेदार की राजधानी बनाया। कुतुबुद्दीन के दामाद अल्तमश बाद में बदायूं के सूबेदार बने। उन्होंने नीलकंठ महादेव के मंदिर को ध्वस्त कर जामा मस्जिद शम्सी की तामीर (स्थापना) कराई। यह आज भी मौजूद है। बाद में अल्तमश ने ही जामा मस्जिद के नजदीक दीनी तालीम के लिए मदरसा की स्थापना कराई, जो आज भी मदरसा आलिया कादरि नाम से मौजूद है। उसने ही ईदगाह तामीर कराई, जो आज भी है। हिंदू पक्ष के याची बोले- सुरंग, पिलर, कुआं अभी भी मौजूद
हिंदू पक्ष की तरफ से याची नंबर-एक मुकेश पटेल हैं, जो अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक भी हैं। मुकेश बताते हैं- ये भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर है। राजा महिपाल का किला है। किले में ही ये मंदिर था। दिल्ली फतह करने के बाद मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली पहुंचा। वहां कब्जा करके उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। कन्नौज फतह कर वह बदायूं आया। उस समय बदायूं, कन्नौज सल्तनत के अधीन थी। कुतुबुद्दीन ने राजा महिपाल को मारा और अपने दामाद को बदायूं का सूबेदार बनाया। उसने सबसे पहले भगवान नीलकंठ के मंदिर को क्षति पहुंचाई। वो पूरा मंदिर क्षतिग्रस्त नहीं कर पाया। यहां सुरंग, पिलर सहित तमाम सबूत मौजूद हैं। पूजा-पाठ करने वाला कुआं भी मौजूद है, जहां पहले भंडारा होता था। जब कोर्ट कमिश्नर यहां सर्वे करेगा, तो स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी। हम चाहते हैं, भगवान नीलकंठ महादेव फिर से आजाद हैं और पूजा-पाठ के लिए मंदिर को हिंदू समाज को सौंपा जाए। हमारे पास सारे रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो इस जगह को मंदिर बताते हैं। हिंदू पक्ष के वकील ने कहा- ये पुरातत्व की इमारत, यहां वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता
हिंदू पक्ष के वकील वेद प्रकाश साहू ने बताया- इस केस में अगली सुनवाई 3 दिसंबर को है। अभी मुस्लिम पक्ष की बहस चल रही है। इसके बाद इंतजामिया कमेटी का पक्ष सुना जाएगा। अभी इस बात पर बहस चल रही है कि कोर्ट में ये केस सुनवाई योग्य है या नहीं। ये ऐतिहासिक और पुरातत्व सर्वे की इमारत है, इसलिए इस पर वर्शिप एक्ट अप्लाई नहीं होता। 1493 खसरा नंबर में पूरा किला आता है। किले के बीच में नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जिसमें तथाकथित जामा मस्जिद बनाई गई है। मस्जिद कमेटी के वकील बोले- 1272 के कागजात में जामा मस्जिद के नाम है जमीन
हमने इस पूरे केस में जामा मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के सदस्य और मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता असरार अहमद से फोन पर बात की। उन्होंने बताया- हमारा 1272 बंदोबस्त होता है। इसमें इंदराज (मालिकाना हक) लिखा होता है, वो हमने दाखिल किया है। ये सरकारी दस्तावेज है, जिसमें मालिकाना हक जामा मस्जिद लिखा हुआ है। सबसे ज्यादा ऑथेंसिटी इसी कागज की होती है। दूसरे पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है। गजेटियर में ये कहा है कि पत्थरों से मस्जिद बनी है। उस जमाने में पत्थर चलते थे। गजेटियर में कहीं ये नहीं लिखा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी है। गजेटियर कोई प्रूफ नहीं है। दूसरे पक्ष पर कोई ऐसा प्रूफ नहीं है, जिसमें ये जगह मंदिर के नाम पर दर्ज हो। असरार अहमद ने आरोप लगाया कि ये सीधे तौर पर माहौल खराब करने के लिए याचिका डाली गई है। कुछ लोग लाइमलाइट में आना चाहते हैं। नफरती माहौल पैदा करना चाहते हैं। इससे पहले आज तक कहीं कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ। दरीबा मंदिर के पुजारी का दावा- मंदिर ढहाने पर यहीं लाया गया था शिवलिंग
हिंदू और मुस्लिम पक्ष से बातचीत करने के बाद हम जामा मस्जिद से डेढ़ किलोमीटर दूर मोहल्ला पटियाली सराय के दरीबा मंदिर पहुंचे। मंदिर में एक काफी पुराना शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की मान्यताओं को लेकर हमने यहां के पुजारी सतपाल शर्मा से बात की। उन्होंने बताया- इस मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित हैं, वो कभी जामा मस्जिद में था। उस वक्त जामा मस्जिद की जगह नीलकंठ महादेव मंदिर हुआ करता था। जब मंदिर का विध्वंस हुआ, तो आक्रांताओं ने शिवलिंग को निकालकर बाहर कर दिया। खबर पाकर नागा साधु वहां पहुंचे और शिवलिंग को उठाकर इस दरीबा मंदिर में ले आए। तब से शिवलिंग यहीं स्थापित है। दिन में तीन बार इस शिवलिंग का रंग बदलता है। सुबह गुलाबी, दोपहर में पीला और शाम के वक्त सफेद रंग का हो जाता है। ————————————- ये भी पढ़ें… यूपी में संभल जामा मस्जिद जैसे कितने विवाद, जौनपुर से लेकर बदायूं तक मंदिर-मस्जिद की तकरार; कोर्ट में ऐसे बढ़े मामले… संभल में जामा मस्जिद में सर्वे के बाद भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई। संभल से पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर भी जानें गई थीं। अयोध्या का मसला कोर्ट के दखल से निपट चुका है। अयोध्या पर निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है, जहां इस प्रकार का विवाद है। संभल की जामा मस्जिद का सर्वे भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी, मथुरा जन्मभूमि और संभल जामा मस्जिद के बाद अब बदायूं की जामा मस्जिद चर्चा में है। हिंदू पक्ष ने इसे नीलकंठ महादेव मंदिर बताते हुए कोर्ट में दावा किया है। 3 दिसंबर (आज) को कोर्ट में सुनवाई है। दावा है, साल 1175 में मुस्लिम शासक शमसुद्दीन अल्तमश (इल्तुतमिश) ने मंदिर को जामा मस्जिद का रूप दिया था। हिंदू पक्ष ने ब्रिटिशकाल में लिखे गए गजेटियर और 144 साल पुरानी ASI की रिपोर्ट कोर्ट में जमा की है। वहीं, मुस्लिम पक्ष का दावा है कि उन्होंने कोर्ट में चकबंदी का वो दस्तावेज पेश किया है, जिसमें इस जमीन का मालिकाना हक जामा मस्जिद के नाम पर दर्ज है। कोर्ट 2 साल से इस बात पर सुनवाई कर रही है कि मामला आगे सुना जाना चाहिए या नहीं? दैनिक भास्कर ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर इस पूरे विवाद को समझा। दोनों पक्षों से बात की। उन दस्तावेजों की स्टडी की, जिनके आधार पर मंदिर-मस्जिद के दावे किए जा रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… 2 सितंबर, 2022 को बदायूं सिविल कोर्ट में भगवान श्री नीलकंठ महादेव महाकाल (ईशान शिव मंदिर), मोहल्ला कोट/मौलवी टोला की तरफ से एक याचिका दायर हुई। इसमें जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, ASI, केंद्र सरकार, यूपी सरकार, बदायूं कलेक्टर और प्रदेश के मुख्य सचिव को पार्टी बनाया गया। याचिका में दावा किया गया कि मौजूदा वक्त में बदायूं की जामा मस्जिद की जगह पर नीलकंठ महादेव का मंदिर था। बाद में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजश्री चौधरी ने इस केस को लड़ने के लिए 5 प्रतिनिधि (याचिकाकर्ता) नियुक्त किए। इनमें महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल, अरविंद परमान एडवोकेट, ज्ञानेंद्र प्रकाश, डॉ. अनुराग शर्मा और उमेश चंद्र शर्मा शामिल हैं। कोर्ट ने 5 लोगों के याचिकाकर्ता बनने की एप्लिकेशन स्वीकार कर ली। अब यही पांचों लोग हिंदू पक्ष की तरफ से कोर्ट में उपस्थित हो रहे हैं। पिछले दो साल से कोर्ट में तारीख पर तारीख लग रही हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को सुना जा रहा है। माना जा रहा है, अगले 3 महीने में कोर्ट तय कर देगा कि ये केस आगे सुनने लायक है या नहीं। हिंदू पक्ष ने अपनी याचिका में 3 दस्तावेजों का हवाला दिया है, पढ़िए… 1- ASI सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा- राजा महिपाल ने मंदिर बनवाया, जिसे मुसलमानों ने नष्ट किया
ASI ने 1875 से 1877 तक बदायूं से बिहार तक हुए सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट तैयार की। ये सर्वे ASI के तत्कालीन डायरेक्टर जनरल ए.कनिंघम ने किया था। कलकत्ता सरकारी मुद्रण अधीक्षक कार्यालय ने ये रिपोर्ट 1880 में प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में लिखा है- कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं को अपना मुख्यालय बनाया। बदायूं का पहला गवर्नर शमसुद्दीन अल्तमश था, जो बाद में दिल्ली का राजा बना। लेकिन, बदायूं में उसकी दिलचस्पी दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के बाद भी बनी रही। 5 साल बाद उसने अपने बड़े बेटे रुकनुद्दीन फिरोज को बदायूं का गर्वनर बनाया। रिपोर्ट में आगे लिखा है, ब्राह्मणों के अनुसार- बदायूं का पहला नाम बेदामऊ या बदामैया था। तब तोमर वंश के राजा महिपाल ने यहां एक बड़ा किला बनवाया, जिस पर अब शहर का एक हिस्सा खड़ा है। कई मीनारें अभी भी बनी हैं। यह भी कहा जाता है कि महिपाल ने हरमंदर नाम का एक मंदिर बनवाया था, जिसे मुसलमानों ने नष्ट कर दिया था। इसके स्थान पर वर्तमान जामा मस्जिद बनवाई थी। लोग इस बात पर एकमत हैं कि मंदिर की सभी मूर्तियां, मस्जिद के नीचे दबी थीं। 2- 1857 के गजेटियर में लिखा- मस्जिद की निर्माण सामग्री नष्ट हुए मंदिर की लगती है
ब्रिटिश काल (1857) में गजेटियर तैयार हुआ। इसमें बदायूं तहसील के इतिहास का भी जिक्र है। पेज नंबर 249 पर लिखा है- यहां सबसे पुरानी मुस्लिम इमारत शायद शम्स-उद-दीन अल्तमश की ईदगाह है, जो 1202 से 1209 ईसवी तक बदायूं का पहला गर्वनर था। इसके अवशेष पुराने शहर के पश्चिमी बाहरी इलाके से करीब 2 किलोमीटर दूरी पर हैं। इसमें 91.4 मीटर लंबी ईंट की दीवार है। ऐसा लगता है कि केंद्रीय मेहराब के ऊपर एक लंबा शिलालेख था। हालांकि, अब यह सीमेंट के प्लास्टर से ढक दिया गया है। इस पर केवल कुछ ही अक्षर दिखाई देते हैं। दाईं ओर एक पंक्ति के शिलालेख का टुकड़ा है, जो स्पष्ट रूप से कुरान का एक उदाहरण है। गजेटियर में लिखा है- इल्तुतमिश ने बदायूं पर अपनी छाप विशिष्ट तरीके से छोड़ी। उसने प्रसिद्ध जामा मस्जिद बनाई, जो शहर के ऊंचे भाग मौलवी टोला मोहल्ला में है। ऐसा कहा जाता है कि इसे एक पुराने पत्थर के मंदिर के स्थान पर बनाया गया था। क्योंकि, इसके निर्माण के लिए इस्तेमाल सामग्री किसी नष्ट हुए मंदिर की प्रतीत होती है। इसकी दीवारें साढ़े तीन मीटर चौड़े मेहराबदार छिद्रों से छेदी गई हैं। पश्चिम में एक गहरा मेहराब है, जिसके दोनों तरफ दो छोटे नक्काशीदार खंभे हैं। ये जाहिर तौर पर पुराने हिंदू मंदिर से लिए गए थे। 3- जिला प्रशासन ने कहा- ईशान नाम के मठाधीश ने मंदिर बनवाया, कुतुबुद्दीन के दामाद ने ध्वस्त किया
बदायूं के इतिहास पर यहां के जिला सूचना एवं जनसंपर्क कार्यालय ने अनेक बार पुस्तिका भी छपवाई। इसमें पेज नंबर-12 से 14 तक लिखा है- गुप्त काल में यह नगर वेदामऊ नाम से जाना जाने लगा। उस समय लखपाल यहां का राजा था। इसी समय में ईशान शिव नामक मठाधीश ने विशाल शिव मंदिर की स्थापना कराई, जो नीलकंठ महादेव और बाद में इशान महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता रहा। साल 1175 में राजा अजयपाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 1202 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बदायूं पर अधिकार कर मुसलमान गुलामवंश राज्य की स्थापना की। बदायूं को पश्चिमी क्षेत्र के सूबेदार की राजधानी बनाया। कुतुबुद्दीन के दामाद अल्तमश बाद में बदायूं के सूबेदार बने। उन्होंने नीलकंठ महादेव के मंदिर को ध्वस्त कर जामा मस्जिद शम्सी की तामीर (स्थापना) कराई। यह आज भी मौजूद है। बाद में अल्तमश ने ही जामा मस्जिद के नजदीक दीनी तालीम के लिए मदरसा की स्थापना कराई, जो आज भी मदरसा आलिया कादरि नाम से मौजूद है। उसने ही ईदगाह तामीर कराई, जो आज भी है। हिंदू पक्ष के याची बोले- सुरंग, पिलर, कुआं अभी भी मौजूद
हिंदू पक्ष की तरफ से याची नंबर-एक मुकेश पटेल हैं, जो अखिल भारतीय हिंदू महासभा के प्रदेश संयोजक भी हैं। मुकेश बताते हैं- ये भगवान नीलकंठ महादेव का मंदिर है। राजा महिपाल का किला है। किले में ही ये मंदिर था। दिल्ली फतह करने के बाद मोहम्मद गौरी का सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली पहुंचा। वहां कब्जा करके उसने कन्नौज पर आक्रमण किया। कन्नौज फतह कर वह बदायूं आया। उस समय बदायूं, कन्नौज सल्तनत के अधीन थी। कुतुबुद्दीन ने राजा महिपाल को मारा और अपने दामाद को बदायूं का सूबेदार बनाया। उसने सबसे पहले भगवान नीलकंठ के मंदिर को क्षति पहुंचाई। वो पूरा मंदिर क्षतिग्रस्त नहीं कर पाया। यहां सुरंग, पिलर सहित तमाम सबूत मौजूद हैं। पूजा-पाठ करने वाला कुआं भी मौजूद है, जहां पहले भंडारा होता था। जब कोर्ट कमिश्नर यहां सर्वे करेगा, तो स्थितियां स्पष्ट हो जाएंगी। हम चाहते हैं, भगवान नीलकंठ महादेव फिर से आजाद हैं और पूजा-पाठ के लिए मंदिर को हिंदू समाज को सौंपा जाए। हमारे पास सारे रिकॉर्ड मौजूद हैं, जो इस जगह को मंदिर बताते हैं। हिंदू पक्ष के वकील ने कहा- ये पुरातत्व की इमारत, यहां वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता
हिंदू पक्ष के वकील वेद प्रकाश साहू ने बताया- इस केस में अगली सुनवाई 3 दिसंबर को है। अभी मुस्लिम पक्ष की बहस चल रही है। इसके बाद इंतजामिया कमेटी का पक्ष सुना जाएगा। अभी इस बात पर बहस चल रही है कि कोर्ट में ये केस सुनवाई योग्य है या नहीं। ये ऐतिहासिक और पुरातत्व सर्वे की इमारत है, इसलिए इस पर वर्शिप एक्ट अप्लाई नहीं होता। 1493 खसरा नंबर में पूरा किला आता है। किले के बीच में नीलकंठ महादेव का मंदिर है, जिसमें तथाकथित जामा मस्जिद बनाई गई है। मस्जिद कमेटी के वकील बोले- 1272 के कागजात में जामा मस्जिद के नाम है जमीन
हमने इस पूरे केस में जामा मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के सदस्य और मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता असरार अहमद से फोन पर बात की। उन्होंने बताया- हमारा 1272 बंदोबस्त होता है। इसमें इंदराज (मालिकाना हक) लिखा होता है, वो हमने दाखिल किया है। ये सरकारी दस्तावेज है, जिसमें मालिकाना हक जामा मस्जिद लिखा हुआ है। सबसे ज्यादा ऑथेंसिटी इसी कागज की होती है। दूसरे पक्ष के पास कोई सबूत नहीं है। गजेटियर में ये कहा है कि पत्थरों से मस्जिद बनी है। उस जमाने में पत्थर चलते थे। गजेटियर में कहीं ये नहीं लिखा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी है। गजेटियर कोई प्रूफ नहीं है। दूसरे पक्ष पर कोई ऐसा प्रूफ नहीं है, जिसमें ये जगह मंदिर के नाम पर दर्ज हो। असरार अहमद ने आरोप लगाया कि ये सीधे तौर पर माहौल खराब करने के लिए याचिका डाली गई है। कुछ लोग लाइमलाइट में आना चाहते हैं। नफरती माहौल पैदा करना चाहते हैं। इससे पहले आज तक कहीं कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ। दरीबा मंदिर के पुजारी का दावा- मंदिर ढहाने पर यहीं लाया गया था शिवलिंग
हिंदू और मुस्लिम पक्ष से बातचीत करने के बाद हम जामा मस्जिद से डेढ़ किलोमीटर दूर मोहल्ला पटियाली सराय के दरीबा मंदिर पहुंचे। मंदिर में एक काफी पुराना शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की मान्यताओं को लेकर हमने यहां के पुजारी सतपाल शर्मा से बात की। उन्होंने बताया- इस मंदिर में जो शिवलिंग स्थापित हैं, वो कभी जामा मस्जिद में था। उस वक्त जामा मस्जिद की जगह नीलकंठ महादेव मंदिर हुआ करता था। जब मंदिर का विध्वंस हुआ, तो आक्रांताओं ने शिवलिंग को निकालकर बाहर कर दिया। खबर पाकर नागा साधु वहां पहुंचे और शिवलिंग को उठाकर इस दरीबा मंदिर में ले आए। तब से शिवलिंग यहीं स्थापित है। दिन में तीन बार इस शिवलिंग का रंग बदलता है। सुबह गुलाबी, दोपहर में पीला और शाम के वक्त सफेद रंग का हो जाता है। ————————————- ये भी पढ़ें… यूपी में संभल जामा मस्जिद जैसे कितने विवाद, जौनपुर से लेकर बदायूं तक मंदिर-मस्जिद की तकरार; कोर्ट में ऐसे बढ़े मामले… संभल में जामा मस्जिद में सर्वे के बाद भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई। संभल से पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर भी जानें गई थीं। अयोध्या का मसला कोर्ट के दखल से निपट चुका है। अयोध्या पर निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है, जहां इस प्रकार का विवाद है। संभल की जामा मस्जिद का सर्वे भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर