डीजीपी प्रशांत कुमार ने बारावफात और विश्वकर्मा जयंती को लेकर फील्ड के अफसरों को सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता बंदाेबस्त करने के निर्देश दिए हैं। कार्यक्रमों के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर सादी वर्दी में पुलिस कर्मियों की तैनाती के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने सभी जोन के एडीजी, पुलिस कमिश्नर, रेंज के आईजी व डीआईजी, जिलों के एसएसपी व एसपी को भेजे पत्र में कहा है कि पिछले वर्षों में जिन-जिन स्थानों पर किसी तरह का विवाद सामने आया हो, वहाँ पुलिस व राजस्व विभाग के राजपत्रित अधिकारियों द्वारा स्थिति का अध्ययन कर विवाद को सुलझाने एवं संवेदनशीलता को दूर करने की कार्रवाई की जाये।किसी भी नई परंपरा की अनुमति न दी जाए। असामाजिक तत्वों की सूची को अपडेट करते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई की जाए। ड्रोन कैमरों से रखी जाएगी हर एक्टिविटी पर नजर डीजीपी ने निर्देश दिए हैं कि शोभायात्रा के दौरान समुचित वीडियोग्राफी कराई जाये, सीसीटीवी कैमरो को सक्रिय करा लिया जाये तथा आवश्यकतानुसार ड्रोन कैमरो से निगरानी रखी जाये। जुलूसों में सुरक्षा के लिये योजनाबद्ध रूप से पुलिस प्रबन्ध किया जाये। जुलूस में बाक्स फार्मेट में चारो तरफ आगे पीछे व दोनो तरफ पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगाई जाए। जुलूस के आगे-पीछे राजपत्रित अधिकारियों की ड्यूटी जरूर लगाई जाए। थानाध्यक्ष व क्षेत्राधिकारियों द्वारा प्रत्येक छोटी से छोटी घटना को गम्भीरता से लेते हुए तत्काल घटनास्थल का निरीक्षण कर विवाद को हल करने के लिए कड़े एवं प्रभावी उपाय किए जाएं। सोशल मीडिया पर रहेगी निगरानी सोशल मीडिया की राउण्ड द क्लॉक मॉनिटरिंग करने के लिए कहा गया है। सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों जैसे-फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर एवं व्हाट्सएप आदि पर सतर्क दृष्टि रखते हुए भ्रामक/आपत्तिजनक पोस्ट प्रसारित होने पर तत्काल संज्ञान लेकर सम्बन्धित के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई की जाए और ऐसी सूचनाओं का खंडन किया जाए। डीजीपी प्रशांत कुमार ने बारावफात और विश्वकर्मा जयंती को लेकर फील्ड के अफसरों को सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता बंदाेबस्त करने के निर्देश दिए हैं। कार्यक्रमों के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर सादी वर्दी में पुलिस कर्मियों की तैनाती के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने सभी जोन के एडीजी, पुलिस कमिश्नर, रेंज के आईजी व डीआईजी, जिलों के एसएसपी व एसपी को भेजे पत्र में कहा है कि पिछले वर्षों में जिन-जिन स्थानों पर किसी तरह का विवाद सामने आया हो, वहाँ पुलिस व राजस्व विभाग के राजपत्रित अधिकारियों द्वारा स्थिति का अध्ययन कर विवाद को सुलझाने एवं संवेदनशीलता को दूर करने की कार्रवाई की जाये।किसी भी नई परंपरा की अनुमति न दी जाए। असामाजिक तत्वों की सूची को अपडेट करते हुए ऐसे लोगों के खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई की जाए। ड्रोन कैमरों से रखी जाएगी हर एक्टिविटी पर नजर डीजीपी ने निर्देश दिए हैं कि शोभायात्रा के दौरान समुचित वीडियोग्राफी कराई जाये, सीसीटीवी कैमरो को सक्रिय करा लिया जाये तथा आवश्यकतानुसार ड्रोन कैमरो से निगरानी रखी जाये। जुलूसों में सुरक्षा के लिये योजनाबद्ध रूप से पुलिस प्रबन्ध किया जाये। जुलूस में बाक्स फार्मेट में चारो तरफ आगे पीछे व दोनो तरफ पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगाई जाए। जुलूस के आगे-पीछे राजपत्रित अधिकारियों की ड्यूटी जरूर लगाई जाए। थानाध्यक्ष व क्षेत्राधिकारियों द्वारा प्रत्येक छोटी से छोटी घटना को गम्भीरता से लेते हुए तत्काल घटनास्थल का निरीक्षण कर विवाद को हल करने के लिए कड़े एवं प्रभावी उपाय किए जाएं। सोशल मीडिया पर रहेगी निगरानी सोशल मीडिया की राउण्ड द क्लॉक मॉनिटरिंग करने के लिए कहा गया है। सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों जैसे-फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर एवं व्हाट्सएप आदि पर सतर्क दृष्टि रखते हुए भ्रामक/आपत्तिजनक पोस्ट प्रसारित होने पर तत्काल संज्ञान लेकर सम्बन्धित के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई की जाए और ऐसी सूचनाओं का खंडन किया जाए। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी पर ईडी का शिकंजा, विधायक राव दान सिंह के ठिकानों पर दी दबिश
भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी पर ईडी का शिकंजा, विधायक राव दान सिंह के ठिकानों पर दी दबिश <p style=”text-align: justify;”><strong>Haryana News:</strong> हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी महेंद्रगढ़ से कांग्रेस विधायक राव दान सिंह के ठिकानों पर ईडी ने छापेमारी की है. गुरुवार सुबह ईडी ने महेंद्रगढ़ के रेवाड़ी रोड पर स्थित फॉर्म हाउस और शंकर कॉलोनी स्थित विधायक के भाई राव राजकुमार के घर छापेमारी की है. विधायक के ठिकानों के बाहर सुरक्षा बल को तैनात किया गया है. किसी को अंदर बाहर नहीं आने जाने दिया जा रहा है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>मीडिया रिपोर्टस की माने तो ईडी ने मेसर्स एलाइड स्ट्रिप्स लिमिटेड के 1392 करोड़ ऋण धोखाधड़ी मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में जांच के लिए रेड मारी है. </p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2 दिन पहले ही गृह मंत्री शाह का हुआ था कार्यक्रम</strong><br />बता दें कि दो दिन पहले ही महेंद्रगढ़ में पिछड़ा वर्ग सम्मान सम्मेलन में शिरकत करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री <a title=”अमित शाह” href=”https://www.abplive.com/topic/amit-shah” data-type=”interlinkingkeywords”>अमित शाह</a> पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने हुड्डा पर निशाना साधते हुए कहा था कि एक-एक पाई का हिसाब लेकर आया हूं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>लोकसभा चुनाव में हुई थी हार</strong><br />बता दें कि महेंद्रगढ़ विधायक राव दान सिंह इस बार भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से <a title=”लोकसभा चुनाव” href=”https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024″ data-type=”interlinkingkeywords”>लोकसभा चुनाव</a> भी लड़ा था. पूर्व सांसद श्रुति चौधरी कांग्रेस की टिकट की प्रबल दावेदार मानी जा रही थी लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा की सिफारिश पर ही राव दान सिंह को टिकट था. लेकिन बीजेपी उम्मीदवार के चौधरी धर्मवीर के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा. चौधरी धर्मवीर ने 5, 88, 664 वोट हासिल किए थे तो वहीं राव दान सिंह को 5, 47, 154 वोट मिले थे.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>घोटाले में सामने आया था नाम</strong><br />साल 2019 में आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी घोटाले में राव दान सिंह के परिवार का नाम सामने आया था. ईडी की जयपुर ब्रांच को मामले की जांच सौंपी गई थी. जांच के दौरान ईडी ने मामले में 100 लोगों को आरोपी बनाया था. जिसमें राव दान के बेटे अक्षत राव का नाम भी शामिल था. वहीं पिछले दिन राव दान सिंह खुद मामले के खत्म होने का दावा कर चुके हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें: ‘<a title=”मुझे नहीं पता वो लोग…’, हरियाणा में कांग्रेस की टेंशन बढ़ाने वाला है कुमारी शैलजा का ये बयान” href=”https://www.abplive.com/states/punjab/kumari-selja-on-deepender-hooda-padyatra-congress-tension-ahead-haryana-assembly-election-2740013″ target=”_blank” rel=”noopener”>मुझे नहीं पता वो लोग…’, हरियाणा में कांग्रेस की टेंशन बढ़ाने वाला है कुमारी शैलजा का ये बयान</a></strong></p>
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यूपी उपचुनाव में खत्म हुई NDA की कलह? सुनील बंसल से मुलाकात के बाद निषाद पार्टी ने लिया ये फैसला
यूपी उपचुनाव में खत्म हुई NDA की कलह? सुनील बंसल से मुलाकात के बाद निषाद पार्टी ने लिया ये फैसला <div class=”lSfe4c O5OgBe M9rH0b LDuQLd”>
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<div class=”n0jPhd ynAwRc tNxQIb nDgy9d” style=”text-align: justify;” role=”heading” aria-level=”3″><strong><strong>UP Bypolls 2024: </strong></strong>उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी आज बुधवार (23 अक्तूबर) को जारी सकती है. बीजेपी की लिस्ट न जारी होने की वजह एनडीए में अभी सीट बंटवारे का पेंच फंसा हुआ माना जा रहा था. जिसमें निषाद पार्टी दो सीट पर अपना उम्मीदवार उतारना चाह रही थी. हालांकि अब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल और निषाद पार्टी के नेता और पूर्व सांसद प्रवीण निषाद की मुलाकात में NDA की कलह खत्म हो गई है.
<p>निषाद पार्टी के नेता प्रवीण निषाद ने बीजेपी नेता सुनील बंसल से मुलाकात की है. इस मुलाकात में निषाद पार्टी के कई संभावित उम्मीदवारों के नाम पर भी चर्चा हुई. सूत्रों की मानें तो उपचुनाव को लेकर NDA का मसला हल हो गया है, निषाद पार्टी के सुझाव से मांझवा में उम्मीदवार तय होगा. बीजेपी के सिंबल पर ही उम्मीदवार उतारा जाएगा और आज शाम तक भाजपा उम्मीदवारों की लिस्ट जारी हो जाएगी.</p>
<p>बता दें कि इससे पहले यूपी में होने वाले 9 सीटों पर उपचुनाव को लेकर एनडीए के बीच तालमेल बनता नहीं दिख रहा था. क्योंकि निषाद पार्टी दो सीटों की मांग पर अड़ी थी, जिसमें कटेहरी सीट और मंझवा सीट शामिल थी. इसे लेकर देर रात भाजपा मुख्यालय में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद के बीच बड़ी बैठक हुई, हालांकि इस बैठक में कोई निष्कर्ष नहीं निकला था. करीब 1 घंटे तक चली इस बैठक के दौरान बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल भी मौजूद रहे.</p>
<p>बीजेपी मुख्यालय पर हुई इस बैठक में जब बात नहीं बनी तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूरे मसले का हल निकालने की जिम्मेदारी बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के पूर्व संगठन मत्री सुनील बंसल को सौंपी थी. हालांकि अब सुनील बंसल ने इस मसले का हल भी निकाल लिया है.</p>
<p><strong><a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/former-wfi-chief-brij-bhushan-sharan-singh-react-on-sakshi-malik-accused-babita-phogat-wfi-post-2809175″>साक्षी मलिक-बबीता फोगाट विवाद पर बृज भूषण शरण सिंह ने साधी चुप्पी, सुनाई रामचरितमानस की चौपाई</a></strong></p>
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राव बीरेंद्र अंग्रेजों की फौज में कैप्टन थे:रातों-रात 12 विधायक तोड़कर CM बने; देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर दोस्ती की
राव बीरेंद्र अंग्रेजों की फौज में कैप्टन थे:रातों-रात 12 विधायक तोड़कर CM बने; देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर दोस्ती की साल 1967, अक्टूबर का महीना, देश में लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी। पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़कर उत्तर-पूर्व बंबई सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। हरियाणा के मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह उनके चुनाव प्रचार के लिए बंबई पहुंचे थे। इसी बीच राव के पास खबर आई कि गया लाल उनके गठबंधन से अलग हो गए हैं। इधर, हरियाणा में चर्चा जोर पकड़ रही थी कि राव साहब बहुमत खो चुके हैं। राव प्रचार छोड़कर बंबई से सीधे दिल्ली के लिए निकल गए। उन्होंने गया लाल से भी बोल दिया कि वो भी दिल्ली पहुंचें। दोनों दिल्ली में मिले और एक ही कार से चंडीगढ़ में सीएम हाउस पहुंचे। वहां मीडिया पहले से उनका इंतजार कर रही थी। राव जैसे ही गाड़ी से उतर कर अंदर जाने लगे, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। गया लाल के पार्टी छोड़ने और सरकार के अल्पमत में होने को लेकर सवाल पूछने लगे। राव हंस पड़े। कुछ पलों बाद गया लाल भी गाड़ी से उतरे। राव ने कहा- गया लाल वापस आ गए हैं। जो लोग सरकार गिराना चाहते थे, उनकी साजिश नाकाम हो गई है। तब राव बीरेंद्र की सरकार तो बच गई, लेकिन गया लाल ने दल बदलना नहीं छोड़ा। उन्होंने 24 घंटे के भीतर तीन बार दल बदला। विधायकों के बार-बार दल बदलने से तंग आकर राज्यपाल ने विधानसभा भंग कर दी। राव साहब महज 9 महीने ही मुख्यमंत्री रह पाए। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के दूसरे एपिसोड में राव बीरेंद्र सिंह के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से… फरवरी 1967, नए-नवेले राज्य हरियाणा की गलियों में पहले विधानसभा चुनाव की गूंज थी। संयुक्त पंजाब की तरह हरियाणा में भी कांग्रेस का दबदबा था। चुनाव के नतीजे इस तस्वीर को साफ बयां कर रहे थे। कांग्रेस को 81 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत मिली। वहीं, जनसंघ को 12, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को 2 और स्वतंत्र पार्टी को 3 सीटें मिलीं। जबकि 16 निर्दलीय विधायक भी जीते। अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चुनाव से पहले चेहरा मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा थे। नतीजों के बाद शर्मा फिर से सीएम बनने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रहे थे। वे एक-एक करके अपने विरोधियों को ठिकाने लगा रहे थे। देवीलाल और शेर सिंह जैसे दिग्गजों को तो उन्होंने विधानसभा चुनाव ही नहीं लड़ने दिया। जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता रणबीर सिंह की सीट पर अपने खेमे के निर्दलीय उम्मीदवार से हरवाकर उन्हें भी रास्ते से हटा दिया। हालांकि तमाम हथकंडों के बाद भी एक शख्स ऐसा था, जो भगवत दयाल शर्मा के लिए चुनौती बना हुआ था। वह इंदिरा गांधी की पसंद था और ज्यादातर विधायक भी उसके समर्थन में थे। नाम राव बीरेंद्र सिंह। अहीरवाल राज के वंशज राव बीरेंद्र सिंह राजनीति में आने से पहले अंग्रेजों की फौज में कैप्टन रह चुके थे। दूसरे विश्व युद्ध में शामिल भी रहे थे। इंदिरा गांधी ने भगवत दयाल शर्मा से कहा कि वो राव बीरेंद्र को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहती हैं, लेकिन भगवत दयाल इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के लिए सिंडिकेट से पैरवी की। दरअसल, तब कांग्रेस के भीतर ताकतवर नेताओं का एक ग्रुप हुआ करता था, जिसे मीडिया ने सिंडिकेट नाम दिया था। इसी सिंडिकेट के बूते वे दोबारा मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन राव बगावत पर उतर आए। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे भगवत दयाल की सरकार को 13 दिन भी नहीं चलने देंगे। इंदिरा ने भगवत दयाल सरकार गिराने का जिम्मा देवीलाल को दिया भगवत दयाल भांप चुके थे कि उनकी सरकार को गिराने की साजिश रची जा रही है। इसलिए उन्होंने अपने करीबियों को ही मंत्रिमंडल में शामिल किया, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ा। नाराज विधायकों को बगावत का मौका मिल गया। वे राव बीरेंद्र से संपर्क साधने में जुट गए। हरियाणा में जो कुछ हो रहा था, उस पर केंद्र की भी नजर थी। इंदिरा गांधी भी बैक गेट से अपनी ही सरकार गिराने की बिसात बिछा रही थीं। इसका दावा भगवत दयाल शर्मा के निजी सुरक्षा अधिकारी रहे दादा रामस्वरूप करते हैं। एक इंटरव्यू में रामस्वरूप बताते हैं- ‘प्रधानमंत्री इंदिरा खुद चाहतीं थीं कि भगवत दयाल की सरकार किसी तरीके से गिर जाए। उन्होंने भगवत दयाल के विरोधी और कांग्रेस के कद्दावर नेता चौधरी देवीलाल को इसकी जिम्मेदारी सौंपी।’ इंदिरा गांधी के इशारे पर चौधरी देवीलाल, भगवत दयाल सरकार को गिराने में जुट चुके थे, लेकिन इसके लिए जरूरी था कि राव बीरेंद्र सिंह के साथ उनके सियासी मतभेद दूर हों। लेखक के. गोपी यादव लिखते हैं, ‘हरियाणा बनने से पहले देवीलाल और राव के बीच गहरी दोस्ती थी, बाद में दोनों के संबंध बिगड़ गए। दोबारा संबंध ठीक करने के लिए देवीलाल ने दिल्ली के एक बिल्डर की मदद ली। बिल्डर ने राव को दिल्ली में अपने बंगले पर डिनर के लिए बुलाया। राव डिनर पर नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उसके बार-बार आग्रह करने पर वे मान गए। राव उसके घर जैसे ही पहुंचे, उन्हें वहां देवीलाल मिल गए। राव बिल्डर पर गुस्सा हो गए। बिल्डर ने हिम्मत जुटाते हुए राव साहब से कहा कि देवीलाल चाहते हैं कि आप मुख्यमंत्री बनें और वह तहे दिल से आपका सहयोग करेंगे। इस पर राव ने देवीलाल की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इन पर भरोसा नहीं कर सकते। राव का लहजा और लफ्ज दोनों ही सख्त थे, लेकिन देवीलाल ने संयम नहीं खोया। उन्होंने राव को मना लिया। उसी रोज डिनर की टेबल पर पंडित भगवत दयाल शर्मा की सरकार गिराने का प्लान बना।’ अपनी पार्टी की सरकार के खिलाफ लड़ा स्पीकर का चुनाव और जीत भी गए 17 मार्च 1967, भगवत दयाल को मुख्यमंत्री बने एक हफ्ता बीत चुका था। अब स्पीकर चुनने की बारी थी। भगवत दयाल शर्मा ने जींद से विधायक लाला दयाकिशन का नाम स्पीकर के लिए आगे बढ़ाया। इस बीच उन्हीं की पार्टी के एक विधायक ने राव बीरेंद्र सिंह का नाम स्पीकर पद के लिए प्रपोज कर दिया। मुख्यमंत्री भगवत दयाल के खेमे में खलबली मच गई। वोटिंग हुई तो दयाकिशन को 37 वोट मिले, जबकि राव को 28 विपक्षी और कांग्रेस के 12 असंतुष्ट विधायकों को मिलाकर कुल 40 वोट मिले। इसका सीधा मतलब था कि भगवत दयाल शर्मा की सरकार खतरे में है। आखिर बहुमत परीक्षण की बारी भी आई। स्पीकर का चुनाव जीतने के बाद भी बीरेंद्र सिंह का खेमा एक विधायक को लेकर चिंतित था। वो थे चौधरी बंसीलाल, जो पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। राव साहब जानते थे कि अगर बंसीलाल विधानसभा पहुंच गए, तो खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में योजना बनाई गई कि बंसीलाल को फ्लोर टेस्ट वाले दिन सदन में आने ही न दिया जाए। पूर्व विधायक और लेखक भीम सिंह दहिया अपनी किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘बंसीलाल को सदन से दूर रखने की जिम्मेदारी एक अफसर को सौंपी गई। उसने बंसीलाल को अपने घर बुलाया। थोड़ी देर बाद जब वे बाथरूम में गए, तो अफसर ने दरवाजा बंद कर दिया। वे काफी देर तक आवाज लगाते रहे, लेकिन दरवाजा तब तक नहीं खोला गया, जब तक फ्लोर टेस्ट में भगवत दयाल की सरकार गिरा नहीं दी गई।’ भगवत दयाल की सरकार गिराने के बाद कांग्रेस से बागी हुए 12 विधायकों ने हरियाणा कांग्रेस नाम की नई पार्टी बनाई। 16 निर्दलीय विधायकों ने नवीन हरियाणा पार्टी बनाई। 20 मार्च 1967 को कांग्रेस, इन सभी को मिलाकर हरियाणा संयुक्त विधायक दल पार्टी का गठन किया। चौधरी देवीलाल को इसका संयोजक बनाया गया। चार दिन बाद यानी, 24 मार्च को राव बीरेंद्र सिंह ने 15 मंत्रियों के साथ हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस तरह पहली बार राव बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। देवीलाल ने गंगाजल में नमक डालकर साथ देने की कसम खाई सीएम बनने के बाद भी राव बीरेंद्र के मन में देवीलाल को लेकर संशय बना हुआ था। के. गोपी यादव लिखते हैं- ‘देवीलाल ने संयुक्त विधायक दल की सरकार के सभी समर्थक विधायकों के सामने गंगाजल से भरी हांडी में नमक डालकर कसम खाई कि अगर वे किसान-मजदूर हितैषी राव की सरकार के साथ विश्वासघात करेंगे, तो वे हांडी में डाले गए नमक की तरह घुल जाएंगे। इसके बाद राव ने उनसे पूछा कि मुझे क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। देवीलाल ने कहा कि हमारी कोई शर्त नहीं है, लेकिन राव को अब भी यकीन नहीं हो रहा था। उनका मन कह रहा था कि जरूर कुछ ऐसा है जिसे छिपाया जा रहा है। तब देवीलाल ने कहा कि राव साहब, अगर आपको उचित लगे तो चांदराम को उद्योग मंत्री बना दीजिए। राव ने चांदराम को मंत्री बनाया, लेकिन उन्हें उद्योग विभाग नहीं दिया।’ देवीलाल ने ढाई महीने में ही तोड़ दी अपनी कसम राव बीरेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री बने अभी कुछ ही महीने हुए थे कि उन्होंने देवीलाल को तवज्जो देना बंद कर दिया। देवीलाल, सरकार के खिलाफ खुलकर नाराजगी भी जाहिर करने लगे। 5 जून 1967 को देवीलाल ने लेटर जारी किया, जिस पर 13 विधायकों और मंत्रियों के हस्ताक्षर थे। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच रिश्ते फिर बिगड़ने लगे। 13 जुलाई को देवीलाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा- ‘राव बीरेंद्र सिंह की सरकार जनसंघ से प्रभावित है। इसलिए हरियाणा विरोधी इस सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया है। देवीलाल ने राव पर कांग्रेस से साठगांठ का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि राव इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने का वचन दिया जाए तो वे कांग्रेस में शामिल हो जाएंगे।’ हालांकि राव ने इस आरोप को निराधार बताते हुए कहा कि देवीलाल की नाराजगी का असली कारण उन्हें मंत्री न बनाया जाना है। सरकार बनाने पहुंचे देवीलाल तो राज्यपाल ने ठुकराया प्रस्ताव 14 जुलाई को संयुक्त विधायक दल ने 38 विधायकों के साथ बैठक की और देवीलाल को निष्कासित कर दिया। देवीलाल ने तुरंत कांग्रेस से समझौता कर लिया और राव सरकार का तख्तापलट करने में जुट गए। दावा किया जाता है कि कांग्रेस हाईकमान समझौते के तहत देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए भी तैयार हो गया था। बशर्तें वे संयुक्त मोर्चे के कुछ विधायकों को अपने साथ ले आएं। राव को इसकी भनक लग चुकी थी। 15 जुलाई को अचानक राव बीरेंद्र सिंह ने राज्यपाल को मंत्रिमंडल का त्यागपत्र दे दिया। उनका मकसद देवीलाल समर्थकों को मंत्रिमंडल से हटाकर नया मंत्रिमंडल बनाना था। राव जब तक अपनी योजना को अमलीजामा पहना पाते, उससे पहले ही देवीलाल 51 विधायकों के समर्थन का दावा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए, लेकिन राज्यपाल ने यह कहते हुए देवीलाल का दावा खारिज कर दिया कि सूची में विधायकों के साइन नहीं हैं। हालांकि कहा जाता है कि उस पत्र में विधायकों के दस्तखत थे। राज्यपाल ने राव बीरेंद्र सिंह को फिर से मंत्रिमंडल बनाने को कहा। उसी दिन 15 जुलाई को राव के नए मंत्रिमंडल ने शपथ ली। इस बार मंत्रिमंडल में देवीलाल के करीबी चांदराम और मनीराम गोदारा को शामिल नहीं किया गया। इससे नाराज देवीलाल समर्थक मुख्य संसदीय सचिव जगन्नाथ ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। अगले चार महीने यानी नवंबर तक दोनों खेमों में सियासी उठापटक चलती रही। कभी देवीलाल के सहयोगी टूटकर संयुक्त मोर्चे में शामिल होते, तो कभी संयुक्त मोर्चे के विधायक को तोड़कर देवीलाल अपने पाले में लाते। 17 नवंबर 1967 को राज्यपाल वीएन चक्रवर्ती ने हरियाणा की राजनीतिक उठापटक को लेकर राष्ट्रपति से विधानसभा भंग करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन ने 21 नवंबर 1967 को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। सरकार गिरने के बाद राव बीरेंद्र सिंह ने विशाल हरियाणा पार्टी बनाई। जबकि देवीलाल कांग्रेस में शामिल हो गए। अप्रैल-मई 1968 में हरियाणा में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए। वोटों की गिनती हुई तो कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं। इस बार बंसीलाल को मुख्यमंत्री का ताज पहनाया गया। वही बंसीलाल जिन्हें एक साल पहले भगवत दयाल की सरकार गिराने के लिए बाथरूम में बंद कर दिया गया था।