बिजली निजीकरण के विरोध में जुटेंगे 10 राज्यों के कर्मी:5000 से ज्यादा कर्मी लखनऊ पहुंचेंगे, सरकार के खिलाफ निकालेंगे रैली

बिजली निजीकरण के विरोध में जुटेंगे 10 राज्यों के कर्मी:5000 से ज्यादा कर्मी लखनऊ पहुंचेंगे, सरकार के खिलाफ निकालेंगे रैली

बिजली के निजीकरण के विरोध में लखनऊ में बुधवार को 10 राज्यों के विभागीय कर्मचारी पहुंच रहे हैं। यहां पांच हजार से ज्यादा कर्मचारी इकट्ठा होकर रैली निकालेंगे। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार 42 जिलों की बिजली निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। इससे पूर्वांचल-दक्षिणांचल कंपनी के डेढ़ करोड़ उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसके अलावा दोनों कंपनियों के 75 हजार नियमित और संविदा कर्मियों की नौकरी भी खतरे में बताई जा रही है। विद्युत अभियंता संघ के अध्यक्ष राजीव सिंह ने बताया कि रैली में बिजली कर्मचारियों के शामिल होने से बिजली व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दोपहर 12 बजे के बाद निकाली जाएगी रैली विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि राणा प्रताप मार्ग स्थित हाइडिल फील्ड हॉस्टल परिसर में बिजली कर्मचारी एकत्रित होंगे। दोपहर 12 बजे के बाद रैली निकाली जाएगी। रैली सिकंदर बाग चौराहा से अशोक मार्ग, शक्ति भवन, मीरा बाई मार्ग होते हुए हाइडिल फील्ड हॉस्टल तक आएगी, जहां सभा होगी। मंगलवार को हुई बैठक में फैसला लिया गया है कि यूपी के बिजली कर्मचारियों के समर्थन में 2 मई से 9 मई तक लखनऊ के शक्ति भवन मुख्यालय पर क्रमिक अनशन होगा। इसमें अलग-अलग राज्यों से बिजली कर्मी और अभियंता शामिल होंगे। 14 मई को उप्र के आंदोलन के समर्थन में उत्तरी भारत के सभी राज्यों के बिजली कर्मचारी सभी जिला और परियोजना मुख्यालयों पर व्यापक विरोध प्रदर्शन करेंगे। निजीकरण के फैसले को वापस लेने की करी जाएगी मांग नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स रैली निकाल कर उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करेंगे कि किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों के हितों को ध्यान में रखते हुए निजीकरण का निर्णय को वापस ले। सरकार ने इस फैसले को निरस्त नहीं किया, तो उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तरी भारत के सभी प्रान्तों के बिजली कर्मचारी आन्दोलन करेंगे। पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से हुई
प्रदेश में पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से 1993 में हुई। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और गोयनका ग्रुप के संयुक्त उपक्रम में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड वहां की व्यवस्था संभालती है। नोएडा में 1.35 लाख उपभोक्ता है। इसमें 118 गांव के ग्रामीण उपभोक्ता भी हैं। शहर, उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि जहां निजीकरण है वह शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। कृषि उपभोक्ताओं को सब्सिडी भी नहीं मिलती है। सरकार से एग्रीमेंट के समय 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था करने की बात कही थी। पर 32 सालों बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई। कई सालों तक पावर कॉरपोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है। उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया, 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है। इससे यूपी पावर कॉर्पोरेशन को हर साल 275 करोड़ रुपए की चपत लग रही है। सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि यूपी पावर कॉर्पोरेशन से टोरेंट कंपनी हर साल लगभग 2300 मिलियन यूनिट 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 7.98 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपभोक्ताओं को बेच रहा है। इससे भी सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा लग रहा है। इससे टोरेंट को हर साल लगभग 700 करोड़ रुपए का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण नहीं होता तो ये फायदा यूपी पावर कॉरपोरेशन का होता। मतलब साफ है कि अकेले आगरा के निजीकरण से हर साल यूपी पावर कॉरपोरेशन को 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है। आगरा-कानपुर के उदाहरण से समझें निजीकरण से कैसे महंगी होगी बिजली 2009 में प्रदेश सरकार ने एक साथ आगरा और कानपुर शहर की बिजली को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया। तब कानपुर के बिजली कर्मियों के जोरदार विरोध के चलते सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। कानपुर शहर की बिजली व्यवस्था सरकारी उपक्रम में कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (केस्को) को सौंप दी गई। 1 अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर लिमिटेड को हैंडओवर हो गई थी। आगरा में एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के चलते वहां कई पांच सितारा होटल हैं। इसके अलावा कई व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं। इसकी तुलना में कानपुर में कोई उद्योग नहीं है, जो थे वो बंद हो चुके हैं। नई इंडस्ट्रीज कानपुर देहात क्षेत्र में लग रही हैं। कानपुर शहर में शहरी घरेलू और व्यवसायिक प्रतिष्ठान ही हैं। इन जिलों से आए कर्मी
सरकार के फैसले को लेकर होने वाली रैली में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, लद्दाख, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। समिति के लोगों का कहना है कि करीब 5000 लोग इसमें शामिल होंगे। बिजली के निजीकरण के विरोध में लखनऊ में बुधवार को 10 राज्यों के विभागीय कर्मचारी पहुंच रहे हैं। यहां पांच हजार से ज्यादा कर्मचारी इकट्ठा होकर रैली निकालेंगे। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार 42 जिलों की बिजली निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। इससे पूर्वांचल-दक्षिणांचल कंपनी के डेढ़ करोड़ उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इसके अलावा दोनों कंपनियों के 75 हजार नियमित और संविदा कर्मियों की नौकरी भी खतरे में बताई जा रही है। विद्युत अभियंता संघ के अध्यक्ष राजीव सिंह ने बताया कि रैली में बिजली कर्मचारियों के शामिल होने से बिजली व्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दोपहर 12 बजे के बाद निकाली जाएगी रैली विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि राणा प्रताप मार्ग स्थित हाइडिल फील्ड हॉस्टल परिसर में बिजली कर्मचारी एकत्रित होंगे। दोपहर 12 बजे के बाद रैली निकाली जाएगी। रैली सिकंदर बाग चौराहा से अशोक मार्ग, शक्ति भवन, मीरा बाई मार्ग होते हुए हाइडिल फील्ड हॉस्टल तक आएगी, जहां सभा होगी। मंगलवार को हुई बैठक में फैसला लिया गया है कि यूपी के बिजली कर्मचारियों के समर्थन में 2 मई से 9 मई तक लखनऊ के शक्ति भवन मुख्यालय पर क्रमिक अनशन होगा। इसमें अलग-अलग राज्यों से बिजली कर्मी और अभियंता शामिल होंगे। 14 मई को उप्र के आंदोलन के समर्थन में उत्तरी भारत के सभी राज्यों के बिजली कर्मचारी सभी जिला और परियोजना मुख्यालयों पर व्यापक विरोध प्रदर्शन करेंगे। निजीकरण के फैसले को वापस लेने की करी जाएगी मांग नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एंड इंजीनियर्स रैली निकाल कर उत्तर प्रदेश सरकार से मांग करेंगे कि किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों के हितों को ध्यान में रखते हुए निजीकरण का निर्णय को वापस ले। सरकार ने इस फैसले को निरस्त नहीं किया, तो उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तरी भारत के सभी प्रान्तों के बिजली कर्मचारी आन्दोलन करेंगे। पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से हुई
प्रदेश में पहली बार बिजली निजीकरण की शुरुआत ग्रेटर नोएडा से 1993 में हुई। ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण और गोयनका ग्रुप के संयुक्त उपक्रम में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड वहां की व्यवस्था संभालती है। नोएडा में 1.35 लाख उपभोक्ता है। इसमें 118 गांव के ग्रामीण उपभोक्ता भी हैं। शहर, उद्योगों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि जहां निजीकरण है वह शहरी और ग्रामीण इलाकों में भेदभाव किया जा रहा है। व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 24 घंटे बिजली मिलती है, लेकिन गांवों को बमुश्किल 10-12 घंटे ही बिजली मिलती है। कम पैसे मिलने की वजह से ग्रामीण क्षेत्र के घरेलू और कृषि क्षेत्र को कम बिजली दी जा रही है। कृषि उपभोक्ताओं को सब्सिडी भी नहीं मिलती है। सरकार से एग्रीमेंट के समय 54 महीने में खुद का बिजली घर लगाकर पावर सप्लाई की व्यवस्था करने की बात कही थी। पर 32 सालों बाद भी कंपनी खुद का बिजली घर नहीं लगा पाई। कई सालों तक पावर कॉरपोरेशन महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ते में देती रही। अब जाकर यहां की कंपनी खुद से बिजली की व्यवस्था कर रही है। उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया, 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार कानपुर और आगरा की कंपनियों की तुलना कर लें तो सारा खेल समझ में आ जाएगा। कानपुर की कंपनी बिजली बेच कर उपभोक्ताओं से औसतन 7.96 रुपए प्रति यूनिट वसूलती है। जबकि आगरा की टोरेंट कंपनी को यूपी कॉर्पोरेशन कंपनी 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपलब्ध कराती है। इससे यूपी पावर कॉर्पोरेशन को हर साल 275 करोड़ रुपए की चपत लग रही है। सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा है कि यूपी पावर कॉर्पोरेशन से टोरेंट कंपनी हर साल लगभग 2300 मिलियन यूनिट 4.36 रुपए प्रति यूनिट की दर से खरीद कर 7.98 रुपए प्रति यूनिट की दर से उपभोक्ताओं को बेच रहा है। इससे भी सरकार को प्रति यूनिट 3 रुपए का साफ घाटा लग रहा है। इससे टोरेंट को हर साल लगभग 700 करोड़ रुपए का मुनाफा हो रहा है। यदि निजीकरण नहीं होता तो ये फायदा यूपी पावर कॉरपोरेशन का होता। मतलब साफ है कि अकेले आगरा के निजीकरण से हर साल यूपी पावर कॉरपोरेशन को 1000 करोड़ का नुकसान हो रहा है। आगरा-कानपुर के उदाहरण से समझें निजीकरण से कैसे महंगी होगी बिजली 2009 में प्रदेश सरकार ने एक साथ आगरा और कानपुर शहर की बिजली को निजी हाथों में सौंपने का निर्णय लिया। तब कानपुर के बिजली कर्मियों के जोरदार विरोध के चलते सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े। कानपुर शहर की बिजली व्यवस्था सरकारी उपक्रम में कानपुर विद्युत आपूर्ति कंपनी लिमिटेड (केस्को) को सौंप दी गई। 1 अप्रैल 2010 को आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर लिमिटेड को हैंडओवर हो गई थी। आगरा में एशिया का सबसे बड़ा चमड़ा उद्योग है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल के चलते वहां कई पांच सितारा होटल हैं। इसके अलावा कई व्यवसायिक गतिविधियां संचालित हैं। इसकी तुलना में कानपुर में कोई उद्योग नहीं है, जो थे वो बंद हो चुके हैं। नई इंडस्ट्रीज कानपुर देहात क्षेत्र में लग रही हैं। कानपुर शहर में शहरी घरेलू और व्यवसायिक प्रतिष्ठान ही हैं। इन जिलों से आए कर्मी
सरकार के फैसले को लेकर होने वाली रैली में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, लद्दाख, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी संघों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। समिति के लोगों का कहना है कि करीब 5000 लोग इसमें शामिल होंगे।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर