भगदड़ में लाश का हाथ पकड़ने वाले जोखूराम की कहानी:डर था महाकुंभ की भीड़ में लाश खो न जाए, चाचा का हाथ कैसे छोड़ देता

भगदड़ में लाश का हाथ पकड़ने वाले जोखूराम की कहानी:डर था महाकुंभ की भीड़ में लाश खो न जाए, चाचा का हाथ कैसे छोड़ देता

‘महाकुंभ में भीड़ संगम रेती पर लोगों को कुचलते-रौंदते निकल गई। भगदड़ में मैं भी कुचला गया। आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। जब होश में आया तो चाचा जमीन पर पड़े थे। उन्हें उठाने कोशिश की, लेकिन उनकी मौत हो चुकी थी। उन्हें खोने के दर्द से मेरा दम घुट रहा था। आंखों से आंसू बह रहे थे। तब तक एम्बुलेंस आ गईं। पुलिसवाले चाचा के शव को ले जाने लगे। मैंने चाचा का हाथ पकड़ लिया। डर था कि इतनी भीड़ में कहीं लाश न खो जाए…।’ यह दर्द है जोखूराम का…। भगदड़ के बाद लाश का हाथ पकड़े उनकी तस्वीर न सिर्फ देश में, बल्कि दुनियाभर में चर्चा में है। दैनिक भास्कर ने जोखूराम को ढूंढ निकाला। वे गोंडा जिले के रहने वाले हैं। आखिर उस रात क्या-क्या हुआ? पढ़िए पूरी कहानी, उनकी जुबानी… प्लान बनाया था- मौनी अमावस्या का स्नान करके घर जाएंगे मेरा नाम जोखूराम है। मैं गोंडा जिले के रुपईडीह गांव का रहने वाला हूं। हम 12 लोग एक साथ प्रयागराज में महाकुंभ स्नान करने गए थे। 27 जनवरी को घर से अपने निजी वाहन से सुबह 9 बजे निकले। शाम 4.30 बजे प्रयागराज पहुंच गए। उसके बाद पार्किंग में गाड़ी खड़ी दी। फिर पैदल चलते हुए हम सभी गेट नंबर 8 की ओर चले गए। यहां रात में ठहरे। 28 जनवरी की सुबह में गंगा स्नान किया। दिनभर सभी लाेग साथ में महाकुंभ मेला घूमे। शाम में सभी ने प्लान बनाया कि कल यानी 29 जनवरी को मौनी अमावस्या है। आ गए हैं तो अमावस्या का स्नान करके ही घर जाएंगे। संगम घाट पर भीड़ ज्यादा थी, रास्ता एक ही था
28 जनवरी की रात हम लोग करीब 11 बजे संगम घाट पर पहुंचे। देखा तो आगे बहुत भीड़ थी। पैर रखने तक की जगह नहीं थी। वहीं से पीछे लौट आए। जो लोग गंगा में नहाकर आ रहे थे और जो नहाने जा रहे थे, दोनों के लिए एक ही रास्ता था। इसी भीड़ में हम लोग भी फंस गए। भीड़ का दबाव बढ़ता जा रहा था। तभी अचानक भगदड़ मच गई। मैंने अपने चाचा ननकन राम का हाथ पकड़ रखा था। भीड़ के धक्के से चाचा गिर गए। भीड़ में हाथ छूट गया। हम भी गिर गए। भीड़ हम सभी को कुचलते हुए निकल गई। हमारे चाचा के ऊपर ज्यादा लोग गिरे। भीड़ में हम भी दब गए थे। हम घबराए हुए थे। आंखों के सामने अंधेरा छाया हुआ था। अपने आप को धीरे-धीरे संभाला। देखा तो लोग मरे पड़े थे। सामान बिखरे हुए थे। हमारे साथ के लोग भीड़ हटने के बाद पास आए। देखा तो हमारे चाचा मरे पड़े थे। भगदड़ में उनका दम निकल गया। यह सब देखकर हम रोने लगे। हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था- लाश तो दिखा दो
लाशों के बीच में हम बैठे रो रहे थे। हाथ जोड़कर विनती कर रहे थे कि चाचा की लाश मत ले जाओ। पुलिस शवों को उठा कर ले जा रही थी। यह सब काम बहुत तेजी से हो रहा था। हम बोल रहे थे कि इतनी दूर से आए हैं। हमारी मदद करो। लाश दे दो। आखिरी बार चाचा का चेहरा दिखा दो। वो मर गए हैं, लेकिन बॉडी तो मिल जाए। इसलिए गिड़गिड़ा रहे थे। दूसरे दिन मिली चाचा की लाश
जब हम रो रहे थे तो पुलिस आई, बोली-रोओ मत, तुम्हारे चाचा की लाश मिल जाएगी। आधे घंटे बाद एम्बुलेंस आई। तब तक हमारे साथ के लोग भी पहुंच गए। हम यही रो-रोकर पूछ रहे थे कि लाश दे दें। लेकिन वो लेकर चले गए। लाश हमको दूसरे दिन मिली। दोपहर में बाॅडी मिली, घर पहुंचने में 12 घंटे लगे
पुलिस वालों ने हमसे कहा- अपने परिजन की लाश मेडिकल कॉलेज पहुंच गई है। सुबह जाना। पहचान बताकर ले लेना। यह सब कुछ मंगलवार रात दो घंटे में हो गया। प्रयागराज पहली बार गया था। इसलिए मेडिकल कॉलेज का पता पूछते हुए 5 किमी पैदल चलकर अस्पताल पहुंचा। वहां पर चेहरे की पहचान कराई गई। जब हम पहचान गए तो आधार कार्ड मांगा गया। हमारे और चाचा के आधार कार्ड का मिलान किया गया। फिर बोला गया कि एक घंटे में बॉडी मिल जाएगी। इस दौरान किसी ने एक रुपए नहीं मांगा। शव को पुलिस ने घर तक पहुंचाया। दोपहर में एक बजे लाश मिली। घर तक पहुंचने में एक बज गए। करीब 12 घंटे लगे। मौनी अमावस्या स्नान नहीं हो पाया
जिस मौनी अमावस्या के स्नान के लिए संगम पर रुका था, वह नहीं हो पाया। ईश्वर को शायद ही मंजूर था। एक घाट पर आने-जाने वालों कर दिया गया, इसलिए भगदड़ की घटना हुई। हम सब चिल्ला रहे थे। मर जाएंगे, लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा था। हम खेती-किसानी करते हैं। हमारे दो लड़के और तीन लड़कियां है। हम इससे पहले 1984 में गंगा नहाने गए थे। जब कक्षा दो में पढ़ रहे थे। इस बार घर के लोग बोले- पिता जी मर गए हैं। गंगा जाकर स्नान कर आइए। चाचा हमारे मर गए, सरकार की तरफ से मदद मिलनी चाहिए। परिवार के लोग लिपटकर रो रहे
ननकनराम अपनी पत्नी रामादेवी (35) और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संगम स्नान के लिए आए थे। वहां पर भगदड़ में उनकी मौत हो गई। परिवार को सूचना मिली तो रोने-बिलखने लगे। बेटे राहुल ने कहा- जाते समय पिताजी कह रहे थे कि रोटी बनवा दो। गंगा स्नान करने जाना हैं। बहुत खुश थे। परिवार के लोग एक दूसरे से लिपटकर रो रहे हैं। गांव में शोक का माहौल है। परिजन बता रहे हैं कि उनको कोई बीमारी नहीं थी। बहुत स्वस्थ थे। ——————————————————- यहां भगदड़ की मेन खबर भी पढ़ें… महाकुंभ भगदड़ में अब तक 30 की मौत:बैरिकेडिंग टूटने से हादसा, 60 घायल; मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख मुआवजा प्रयागराज महाकुंभ में संगम तट पर भगदड़ में 35 से 40 लोगों की मौत के बाद सरकार एक्शन में है। रात को CM योगी ने टॉप अफसरों के साथ हाई लेवल की मीटिंग की। फिर महाकुंभ में अनुभवी ऑफिसर्स की ड्यूटी लगाई गई है। IAS आशीष गोयल और भानु चंद्र गोस्वामी को तत्काल प्रयागराज पहुंचने को कहा गया है। पढ़ें पूरी खबर… ‘महाकुंभ में भीड़ संगम रेती पर लोगों को कुचलते-रौंदते निकल गई। भगदड़ में मैं भी कुचला गया। आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। जब होश में आया तो चाचा जमीन पर पड़े थे। उन्हें उठाने कोशिश की, लेकिन उनकी मौत हो चुकी थी। उन्हें खोने के दर्द से मेरा दम घुट रहा था। आंखों से आंसू बह रहे थे। तब तक एम्बुलेंस आ गईं। पुलिसवाले चाचा के शव को ले जाने लगे। मैंने चाचा का हाथ पकड़ लिया। डर था कि इतनी भीड़ में कहीं लाश न खो जाए…।’ यह दर्द है जोखूराम का…। भगदड़ के बाद लाश का हाथ पकड़े उनकी तस्वीर न सिर्फ देश में, बल्कि दुनियाभर में चर्चा में है। दैनिक भास्कर ने जोखूराम को ढूंढ निकाला। वे गोंडा जिले के रहने वाले हैं। आखिर उस रात क्या-क्या हुआ? पढ़िए पूरी कहानी, उनकी जुबानी… प्लान बनाया था- मौनी अमावस्या का स्नान करके घर जाएंगे मेरा नाम जोखूराम है। मैं गोंडा जिले के रुपईडीह गांव का रहने वाला हूं। हम 12 लोग एक साथ प्रयागराज में महाकुंभ स्नान करने गए थे। 27 जनवरी को घर से अपने निजी वाहन से सुबह 9 बजे निकले। शाम 4.30 बजे प्रयागराज पहुंच गए। उसके बाद पार्किंग में गाड़ी खड़ी दी। फिर पैदल चलते हुए हम सभी गेट नंबर 8 की ओर चले गए। यहां रात में ठहरे। 28 जनवरी की सुबह में गंगा स्नान किया। दिनभर सभी लाेग साथ में महाकुंभ मेला घूमे। शाम में सभी ने प्लान बनाया कि कल यानी 29 जनवरी को मौनी अमावस्या है। आ गए हैं तो अमावस्या का स्नान करके ही घर जाएंगे। संगम घाट पर भीड़ ज्यादा थी, रास्ता एक ही था
28 जनवरी की रात हम लोग करीब 11 बजे संगम घाट पर पहुंचे। देखा तो आगे बहुत भीड़ थी। पैर रखने तक की जगह नहीं थी। वहीं से पीछे लौट आए। जो लोग गंगा में नहाकर आ रहे थे और जो नहाने जा रहे थे, दोनों के लिए एक ही रास्ता था। इसी भीड़ में हम लोग भी फंस गए। भीड़ का दबाव बढ़ता जा रहा था। तभी अचानक भगदड़ मच गई। मैंने अपने चाचा ननकन राम का हाथ पकड़ रखा था। भीड़ के धक्के से चाचा गिर गए। भीड़ में हाथ छूट गया। हम भी गिर गए। भीड़ हम सभी को कुचलते हुए निकल गई। हमारे चाचा के ऊपर ज्यादा लोग गिरे। भीड़ में हम भी दब गए थे। हम घबराए हुए थे। आंखों के सामने अंधेरा छाया हुआ था। अपने आप को धीरे-धीरे संभाला। देखा तो लोग मरे पड़े थे। सामान बिखरे हुए थे। हमारे साथ के लोग भीड़ हटने के बाद पास आए। देखा तो हमारे चाचा मरे पड़े थे। भगदड़ में उनका दम निकल गया। यह सब देखकर हम रोने लगे। हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था- लाश तो दिखा दो
लाशों के बीच में हम बैठे रो रहे थे। हाथ जोड़कर विनती कर रहे थे कि चाचा की लाश मत ले जाओ। पुलिस शवों को उठा कर ले जा रही थी। यह सब काम बहुत तेजी से हो रहा था। हम बोल रहे थे कि इतनी दूर से आए हैं। हमारी मदद करो। लाश दे दो। आखिरी बार चाचा का चेहरा दिखा दो। वो मर गए हैं, लेकिन बॉडी तो मिल जाए। इसलिए गिड़गिड़ा रहे थे। दूसरे दिन मिली चाचा की लाश
जब हम रो रहे थे तो पुलिस आई, बोली-रोओ मत, तुम्हारे चाचा की लाश मिल जाएगी। आधे घंटे बाद एम्बुलेंस आई। तब तक हमारे साथ के लोग भी पहुंच गए। हम यही रो-रोकर पूछ रहे थे कि लाश दे दें। लेकिन वो लेकर चले गए। लाश हमको दूसरे दिन मिली। दोपहर में बाॅडी मिली, घर पहुंचने में 12 घंटे लगे
पुलिस वालों ने हमसे कहा- अपने परिजन की लाश मेडिकल कॉलेज पहुंच गई है। सुबह जाना। पहचान बताकर ले लेना। यह सब कुछ मंगलवार रात दो घंटे में हो गया। प्रयागराज पहली बार गया था। इसलिए मेडिकल कॉलेज का पता पूछते हुए 5 किमी पैदल चलकर अस्पताल पहुंचा। वहां पर चेहरे की पहचान कराई गई। जब हम पहचान गए तो आधार कार्ड मांगा गया। हमारे और चाचा के आधार कार्ड का मिलान किया गया। फिर बोला गया कि एक घंटे में बॉडी मिल जाएगी। इस दौरान किसी ने एक रुपए नहीं मांगा। शव को पुलिस ने घर तक पहुंचाया। दोपहर में एक बजे लाश मिली। घर तक पहुंचने में एक बज गए। करीब 12 घंटे लगे। मौनी अमावस्या स्नान नहीं हो पाया
जिस मौनी अमावस्या के स्नान के लिए संगम पर रुका था, वह नहीं हो पाया। ईश्वर को शायद ही मंजूर था। एक घाट पर आने-जाने वालों कर दिया गया, इसलिए भगदड़ की घटना हुई। हम सब चिल्ला रहे थे। मर जाएंगे, लेकिन कोई सुन ही नहीं रहा था। हम खेती-किसानी करते हैं। हमारे दो लड़के और तीन लड़कियां है। हम इससे पहले 1984 में गंगा नहाने गए थे। जब कक्षा दो में पढ़ रहे थे। इस बार घर के लोग बोले- पिता जी मर गए हैं। गंगा जाकर स्नान कर आइए। चाचा हमारे मर गए, सरकार की तरफ से मदद मिलनी चाहिए। परिवार के लोग लिपटकर रो रहे
ननकनराम अपनी पत्नी रामादेवी (35) और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ संगम स्नान के लिए आए थे। वहां पर भगदड़ में उनकी मौत हो गई। परिवार को सूचना मिली तो रोने-बिलखने लगे। बेटे राहुल ने कहा- जाते समय पिताजी कह रहे थे कि रोटी बनवा दो। गंगा स्नान करने जाना हैं। बहुत खुश थे। परिवार के लोग एक दूसरे से लिपटकर रो रहे हैं। गांव में शोक का माहौल है। परिजन बता रहे हैं कि उनको कोई बीमारी नहीं थी। बहुत स्वस्थ थे। ——————————————————- यहां भगदड़ की मेन खबर भी पढ़ें… महाकुंभ भगदड़ में अब तक 30 की मौत:बैरिकेडिंग टूटने से हादसा, 60 घायल; मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख मुआवजा प्रयागराज महाकुंभ में संगम तट पर भगदड़ में 35 से 40 लोगों की मौत के बाद सरकार एक्शन में है। रात को CM योगी ने टॉप अफसरों के साथ हाई लेवल की मीटिंग की। फिर महाकुंभ में अनुभवी ऑफिसर्स की ड्यूटी लगाई गई है। IAS आशीष गोयल और भानु चंद्र गोस्वामी को तत्काल प्रयागराज पहुंचने को कहा गया है। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर