पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को मनाने के लिए भाजपा नेता जुटे हुए हैं। अपर्णा राज्य महिला आयोग में उपाध्यक्ष का पद स्वीकार करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बड़े भाजपा नेताओं से बातचीत कर अपनी नाराजगी जाहिर की है। पारिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक भविष्य को देखते हुए बड़ा पद चाहती हैं। इसे देखते हुए भाजपा उन्हें कोई बड़ा पद ऑफर कर सकती है। योगी सरकार के मंत्रियों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनसे बातचीत कर मनाने का प्रयास किया। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा में शामिल होना अपर्णा यादव के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। अपर्णा को मनाने पहुंचे दयाशंकर सिंह
अपर्णा यादव की नाराजगी की खबरें तेजी से चल रही हैं। उपचुनाव से पहले इस तरह की खबरें भाजपा का माहौल खराब कर सकती हैं। खासतौर पर महिलाओं में नाराजगी हो सकती है कि भाजपा ने अपर्णा का राजनीतिक इस्तेमाल करने के बाद उन्हें सम्मान नहीं दिया। यही वजह है, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने परिवहन राज्य मंत्री दयाशंकर सिंह को अपर्णा को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। दयाशंकर ने अपर्णा से मुलाकात कर उन्हें भरोसा दिलाया कि आने वाले समय में उन्हें बड़ा पद दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा ने विधानसभा चुनाव- 2022 से पहले अपर्णा यादव को पार्टी में शामिल किया था। अपर्णा को सपा के खिलाफ महिला चेहरा बनाया गया। समय-समय पर उन्होंने भाजपा के इशारे पर सपा के खिलाफ बयान दिए। अपर्णा बीते दो-ढाई साल से सरकार या संगठन में पद पाने का प्रयास कर रही हैं। इस दौरान विधान परिषद और राज्यसभा के चुनाव भी हुए, लेकिन अपर्णा को भाजपा ने मौका नहीं दिया। संगठन में भी अपर्णा को कोई सम्मानजनक पद नहीं मिला। इस बीच, 2 सितंबर को भाजपा ने राज्य महिला आयोग का गठन कर अपर्णा को उपाध्यक्ष नियुक्त किया। इसकी घोषणा होते ही अपर्णा ने भाजपा नेतृत्व से बातचीत कर नाराजगी जाहिर कर दी। अब आगे क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, अपर्णा यादव के दबाव का आने वाले दिनों में असर देखने को मिल सकता है। भाजपा उन्हें विधान परिषद या राज्यसभा भेज सकती है। भाजपा महिला मोर्चा या युवा मोर्चा में प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। किसी अन्य निगम या बोर्ड में अध्यक्ष बनाया जा सकता है। सपा में रहती तो ज्यादा फायदा होता, भाजपा में नुकसान हुआ
राजनीतिक जानकारों का कहना है, भाजपा ने 2022 में बड़ी उम्मीद दिखाकर अपर्णा को पार्टी में शामिल किया। अपर्णा ने उस समय भी विधानसभा लड़ने की इच्छा जताई थी। उसके बाद 2024 में भी लोकसभा चुनाव का टिकट मांगा। अब भाजपा ने उन्हें महिला आयोग में उपाध्यक्ष का पद दिया है, जो उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है। यह सही है कि अपर्णा अब दबाव बनाकर कोई बड़ा हासिल करना चाहती हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अपर्णा यादव का उपाध्यक्ष पद स्वीकार नहीं करना दबाव की राजनीति है। मेरा मानना है, अपर्णा का लंबा राजनीतिक भविष्य है। उनका भविष्य भाजपा के अलावा किसी अन्य दल में सुरक्षित नहीं है। भाजपा को भी यादव और महिला चेहरे की जरूरत है। यह हो सकता है कि अपर्णा के किसी निर्णय से सपा को विधानसभा उपचुनाव में कुछ फायदा मिल जाए। लेकिन, सपा फिलहाल उन्हें विधान परिषद या राज्यसभा भेजने की स्थिति में नहीं है। इसलिए इस दबाव की राजनीति के बावजूद अपर्णा भाजपा में ही रहेंगी। 5 सितंबर को मंत्री ने कहा था- भाजपा क्यों छोड़ रहीं, मुझे नहीं मालूम अपर्णा की नाराजगी के बीच 5 सितंबर को यह बात सामने आई थी कि अपर्णा को समझाने के लिए यूपी की महिला कल्याण एवं बाल विकास की मंत्री बेबी रानी मौर्य ने भी उनसे फोन पर बात की। इसको लेकर बेबी रानी मौर्य से जब पूछा गया, तो वह नाराज हो गई थीं। उन्होंने कहा था- मेरी अपर्णा से कोई बात नहीं हुई है। ये उनका व्यक्तिगत विषय है। वो पद लें या न लें, यह निर्णय वह खुद लेंगी। ये निर्णय मुझे नहीं लेना है। जब उनसे अपर्णा के दोबारा सपा में शामिल होने को लेकर सवाल किया गया, तो मंत्री ने कहा- ये अब उनका निर्णय है, वो क्यों भाजपा में आईं? आज क्यों भाजपा को छोड़कर जा रही हैं? ये तो अपर्णा यादव ही बताएंगी। मैं इस पर कुछ नहीं कह सकती। अपर्णा को पद देने की अब 3 वजह 1- उपचुनाव में भाजपा अपर्णा का इस्तेमाल करेगी
यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा अब किसी भी हालत में सपा के हाथों उपचुनाव में हारना नहीं चाहती। भाजपा सपा को उसके मजबूत गढ़ में करहल में हारने के लिए पूरा जोर लगा रही है। दरअसल, करहल से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ही इस्तीफा दिया था। पिछले लोकसभा चुनाव और उससे पहले विधानसभा चुनाव में अपर्णा ने भाजपा के लिए प्रचार तो किया, लेकिन उन सीटों पर नहीं गईं, जहां से यादव परिवार के सदस्य चुनाव लड़ रहे थे। तब तक अपर्णा के पास कोई पद भी नहीं था। इसीलिए अपर्णा को महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है। 2- अपर्णा को भाजपा से दूर नहीं जाने देना चाहती भाजपा
अपर्णा यादव 3 साल पहले सपा छोड़कर भाजपा में तो आ गईं, लेकिन अपने परिवार से दूर नहीं हुईं। लगातार चाचा शिवपाल यादव के करीब रहीं। अखिलेश यादव, डिंपल या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर कभी गलत बयान नहीं दिया। इसी बीच लोकसभा चुनाव में सपा के अच्छे प्रदर्शन और भाजपा में अपनी उपेक्षा के चले अपर्णा के बारे में कहा जाने लगा था कि वह घर वापसी कर सकती हैं। इसीलिए भाजपा ने उन्हें महिला आयोग में पद देकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। 3- महिलाओं के मुद्दे पर सपा को घेरने की रणनीति
अयोध्या और कन्नौज में हुए रेप कांड को लेकर भाजपा और खुद सीएम योगी सपा पर हमलावर हैं। यही वजह है कि 4 साल बाद महिला आयोग का गठन करके मुलायम परिवार की बहू को ही पद दे दिया। इससे भाजपा को सपा पर हमला करने में ज्यादा आसानी रहेगी। 2017 में सपा के टिकट से हार गई थीं अपर्णा अपर्णा यादव को महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाए जाने से पहले बीते तीन सालों के दौरान तमाम तरह की अटकलें चलती रहीं। पहले विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने के कयास लगे। इसके बाद निकाय चुनाव में मेयर उम्मीदवार बनाने के चर्चे हुए। फिर लोकसभा चुनाव में भी उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना जताई गई। लेकिन हर मौके पर उन्हें निराशा हाथ लगी। यही वजह है, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अपर्णा अखिलेश यादव और उनके पूरे परिवार के खिलाफ बोलने से बचती नजर आईं। बीते तीन सालों के दौरान अपर्णा कई मौकों पर चाचा शिवपाल यादव का आशीर्वाद लेने जाती रहीं। भाजपा में रहते हुए भी वह कई मौकों पर चाचा शिवपाल यादव के घर गईं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। हालांकि, 2017 में सपा ने लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से अपर्णा यादव को टिकट दिया था। डिंपल यादव ने उनका प्रचार भी किया था। हालांकि तब वह भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं। कौन हैं अपर्णा यादव?
महिला आयोग की उपाध्यक्ष बनाई गईं अपर्णा यादव मुलायम सिंह की छोटी बहू हैं। वह विधानसभा चुनाव- 2022 से पहले भाजपा में शामिल हुई थीं। अपर्णा यादव विधानसभा चुनाव में लखनऊ की सरोजिनी नगर सीट से भाजपा का टिकट भी मांग रही थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। यही नहीं, पिछले 3 साल से उन्हें भाजपा ने कोई पद नहीं दिया। हालांकि, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपर्णा को अखिलेश यादव परिवार के खिलाफ महिलाओं के बीच बड़ा चेहरा बनाया था। अपर्णा मुलायम की दूसरी पत्नी साधना यादव के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। अपर्णा का जन्म 1 जनवरी, 1990 को हुआ था। उनके पिता अरविंद सिंह बिष्ट एक मीडिया कंपनी में थे। सपा की सरकार में वह सूचना आयुक्त भी रहे। अपर्णा की मां अंबी बिस्ट अधिकारी हैं। अपर्णा की स्कूली पढ़ाई लखनऊ के लोरेटो कॉन्वेंट से हुई है। बताया जाता है कि प्रतीक यादव को वह स्कूल के दिनों से ही जानती थीं। उत्तर प्रदेश भाजपा ने 3 सितंबर को 4 साल बाद राज्य महिला आयोग का गठन किया। आगरा की बबीता चौहान को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को उपाध्यक्ष बनाया गया। गोरखपुर की चारू चौधरी को भी उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। साल-2010 में अपर्णा और प्रतीक की सगाई हुई और दिसम्बर 2011 में दोनों विवाह बंधन में बंध गए। विवाह समारोह का पूरा आयोजन मुलायम सिंह के पैतृक गांव सैफई में किया गया था। अपर्णा और प्रतीक की एक बेटी है, जिसका नाम प्रथमा है। अपर्णा यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ कैंट सीट से लड़ा था। उस चुनाव में उन्हें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी ने हरा दिया था। यह खबर भी पढ़ें सुल्तानपुर में ‘यादव’ का एनकाउंटर…बहन बोली-पुलिस ने हत्या की; रात 2 बजे मंगेश को घर से उठाया, सुबह मार दिया सुल्तानपुर में ज्वेलरी शॉप में डकैती के आरोपी और 1 लाख के इनामी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सियासत शुरू हो गई है। विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव शुक्रवार सुबह जौनपुर में मंगेश के घर पहुंचे। परिजनों से मुलाकात की। मंगेश की बहन ने कहा- पुलिस ने मेरे भाई की हत्या की। यहां पढ़ें पूरी खबर पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को मनाने के लिए भाजपा नेता जुटे हुए हैं। अपर्णा राज्य महिला आयोग में उपाध्यक्ष का पद स्वीकार करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक बड़े भाजपा नेताओं से बातचीत कर अपनी नाराजगी जाहिर की है। पारिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक भविष्य को देखते हुए बड़ा पद चाहती हैं। इसे देखते हुए भाजपा उन्हें कोई बड़ा पद ऑफर कर सकती है। योगी सरकार के मंत्रियों और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनसे बातचीत कर मनाने का प्रयास किया। वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में भाजपा में शामिल होना अपर्णा यादव के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है। अपर्णा को मनाने पहुंचे दयाशंकर सिंह
अपर्णा यादव की नाराजगी की खबरें तेजी से चल रही हैं। उपचुनाव से पहले इस तरह की खबरें भाजपा का माहौल खराब कर सकती हैं। खासतौर पर महिलाओं में नाराजगी हो सकती है कि भाजपा ने अपर्णा का राजनीतिक इस्तेमाल करने के बाद उन्हें सम्मान नहीं दिया। यही वजह है, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने परिवहन राज्य मंत्री दयाशंकर सिंह को अपर्णा को मनाने की जिम्मेदारी सौंपी है। दयाशंकर ने अपर्णा से मुलाकात कर उन्हें भरोसा दिलाया कि आने वाले समय में उन्हें बड़ा पद दिया जाएगा। दरअसल, भाजपा ने विधानसभा चुनाव- 2022 से पहले अपर्णा यादव को पार्टी में शामिल किया था। अपर्णा को सपा के खिलाफ महिला चेहरा बनाया गया। समय-समय पर उन्होंने भाजपा के इशारे पर सपा के खिलाफ बयान दिए। अपर्णा बीते दो-ढाई साल से सरकार या संगठन में पद पाने का प्रयास कर रही हैं। इस दौरान विधान परिषद और राज्यसभा के चुनाव भी हुए, लेकिन अपर्णा को भाजपा ने मौका नहीं दिया। संगठन में भी अपर्णा को कोई सम्मानजनक पद नहीं मिला। इस बीच, 2 सितंबर को भाजपा ने राज्य महिला आयोग का गठन कर अपर्णा को उपाध्यक्ष नियुक्त किया। इसकी घोषणा होते ही अपर्णा ने भाजपा नेतृत्व से बातचीत कर नाराजगी जाहिर कर दी। अब आगे क्या?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, अपर्णा यादव के दबाव का आने वाले दिनों में असर देखने को मिल सकता है। भाजपा उन्हें विधान परिषद या राज्यसभा भेज सकती है। भाजपा महिला मोर्चा या युवा मोर्चा में प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। किसी अन्य निगम या बोर्ड में अध्यक्ष बनाया जा सकता है। सपा में रहती तो ज्यादा फायदा होता, भाजपा में नुकसान हुआ
राजनीतिक जानकारों का कहना है, भाजपा ने 2022 में बड़ी उम्मीद दिखाकर अपर्णा को पार्टी में शामिल किया। अपर्णा ने उस समय भी विधानसभा लड़ने की इच्छा जताई थी। उसके बाद 2024 में भी लोकसभा चुनाव का टिकट मांगा। अब भाजपा ने उन्हें महिला आयोग में उपाध्यक्ष का पद दिया है, जो उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और राजनीतिक भविष्य के लिहाज से ठीक नहीं है। यह सही है कि अपर्णा अब दबाव बनाकर कोई बड़ा हासिल करना चाहती हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अपर्णा यादव का उपाध्यक्ष पद स्वीकार नहीं करना दबाव की राजनीति है। मेरा मानना है, अपर्णा का लंबा राजनीतिक भविष्य है। उनका भविष्य भाजपा के अलावा किसी अन्य दल में सुरक्षित नहीं है। भाजपा को भी यादव और महिला चेहरे की जरूरत है। यह हो सकता है कि अपर्णा के किसी निर्णय से सपा को विधानसभा उपचुनाव में कुछ फायदा मिल जाए। लेकिन, सपा फिलहाल उन्हें विधान परिषद या राज्यसभा भेजने की स्थिति में नहीं है। इसलिए इस दबाव की राजनीति के बावजूद अपर्णा भाजपा में ही रहेंगी। 5 सितंबर को मंत्री ने कहा था- भाजपा क्यों छोड़ रहीं, मुझे नहीं मालूम अपर्णा की नाराजगी के बीच 5 सितंबर को यह बात सामने आई थी कि अपर्णा को समझाने के लिए यूपी की महिला कल्याण एवं बाल विकास की मंत्री बेबी रानी मौर्य ने भी उनसे फोन पर बात की। इसको लेकर बेबी रानी मौर्य से जब पूछा गया, तो वह नाराज हो गई थीं। उन्होंने कहा था- मेरी अपर्णा से कोई बात नहीं हुई है। ये उनका व्यक्तिगत विषय है। वो पद लें या न लें, यह निर्णय वह खुद लेंगी। ये निर्णय मुझे नहीं लेना है। जब उनसे अपर्णा के दोबारा सपा में शामिल होने को लेकर सवाल किया गया, तो मंत्री ने कहा- ये अब उनका निर्णय है, वो क्यों भाजपा में आईं? आज क्यों भाजपा को छोड़कर जा रही हैं? ये तो अपर्णा यादव ही बताएंगी। मैं इस पर कुछ नहीं कह सकती। अपर्णा को पद देने की अब 3 वजह 1- उपचुनाव में भाजपा अपर्णा का इस्तेमाल करेगी
यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर जल्द ही उपचुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा अब किसी भी हालत में सपा के हाथों उपचुनाव में हारना नहीं चाहती। भाजपा सपा को उसके मजबूत गढ़ में करहल में हारने के लिए पूरा जोर लगा रही है। दरअसल, करहल से सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ही इस्तीफा दिया था। पिछले लोकसभा चुनाव और उससे पहले विधानसभा चुनाव में अपर्णा ने भाजपा के लिए प्रचार तो किया, लेकिन उन सीटों पर नहीं गईं, जहां से यादव परिवार के सदस्य चुनाव लड़ रहे थे। तब तक अपर्णा के पास कोई पद भी नहीं था। इसीलिए अपर्णा को महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया है। 2- अपर्णा को भाजपा से दूर नहीं जाने देना चाहती भाजपा
अपर्णा यादव 3 साल पहले सपा छोड़कर भाजपा में तो आ गईं, लेकिन अपने परिवार से दूर नहीं हुईं। लगातार चाचा शिवपाल यादव के करीब रहीं। अखिलेश यादव, डिंपल या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर कभी गलत बयान नहीं दिया। इसी बीच लोकसभा चुनाव में सपा के अच्छे प्रदर्शन और भाजपा में अपनी उपेक्षा के चले अपर्णा के बारे में कहा जाने लगा था कि वह घर वापसी कर सकती हैं। इसीलिए भाजपा ने उन्हें महिला आयोग में पद देकर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की। 3- महिलाओं के मुद्दे पर सपा को घेरने की रणनीति
अयोध्या और कन्नौज में हुए रेप कांड को लेकर भाजपा और खुद सीएम योगी सपा पर हमलावर हैं। यही वजह है कि 4 साल बाद महिला आयोग का गठन करके मुलायम परिवार की बहू को ही पद दे दिया। इससे भाजपा को सपा पर हमला करने में ज्यादा आसानी रहेगी। 2017 में सपा के टिकट से हार गई थीं अपर्णा अपर्णा यादव को महिला आयोग का उपाध्यक्ष बनाए जाने से पहले बीते तीन सालों के दौरान तमाम तरह की अटकलें चलती रहीं। पहले विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाने के कयास लगे। इसके बाद निकाय चुनाव में मेयर उम्मीदवार बनाने के चर्चे हुए। फिर लोकसभा चुनाव में भी उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना जताई गई। लेकिन हर मौके पर उन्हें निराशा हाथ लगी। यही वजह है, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अपर्णा अखिलेश यादव और उनके पूरे परिवार के खिलाफ बोलने से बचती नजर आईं। बीते तीन सालों के दौरान अपर्णा कई मौकों पर चाचा शिवपाल यादव का आशीर्वाद लेने जाती रहीं। भाजपा में रहते हुए भी वह कई मौकों पर चाचा शिवपाल यादव के घर गईं और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया। हालांकि, 2017 में सपा ने लखनऊ कैंट विधानसभा सीट से अपर्णा यादव को टिकट दिया था। डिंपल यादव ने उनका प्रचार भी किया था। हालांकि तब वह भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं। कौन हैं अपर्णा यादव?
महिला आयोग की उपाध्यक्ष बनाई गईं अपर्णा यादव मुलायम सिंह की छोटी बहू हैं। वह विधानसभा चुनाव- 2022 से पहले भाजपा में शामिल हुई थीं। अपर्णा यादव विधानसभा चुनाव में लखनऊ की सरोजिनी नगर सीट से भाजपा का टिकट भी मांग रही थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला था। यही नहीं, पिछले 3 साल से उन्हें भाजपा ने कोई पद नहीं दिया। हालांकि, विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपर्णा को अखिलेश यादव परिवार के खिलाफ महिलाओं के बीच बड़ा चेहरा बनाया था। अपर्णा मुलायम की दूसरी पत्नी साधना यादव के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं। अपर्णा का जन्म 1 जनवरी, 1990 को हुआ था। उनके पिता अरविंद सिंह बिष्ट एक मीडिया कंपनी में थे। सपा की सरकार में वह सूचना आयुक्त भी रहे। अपर्णा की मां अंबी बिस्ट अधिकारी हैं। अपर्णा की स्कूली पढ़ाई लखनऊ के लोरेटो कॉन्वेंट से हुई है। बताया जाता है कि प्रतीक यादव को वह स्कूल के दिनों से ही जानती थीं। उत्तर प्रदेश भाजपा ने 3 सितंबर को 4 साल बाद राज्य महिला आयोग का गठन किया। आगरा की बबीता चौहान को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को उपाध्यक्ष बनाया गया। गोरखपुर की चारू चौधरी को भी उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। साल-2010 में अपर्णा और प्रतीक की सगाई हुई और दिसम्बर 2011 में दोनों विवाह बंधन में बंध गए। विवाह समारोह का पूरा आयोजन मुलायम सिंह के पैतृक गांव सैफई में किया गया था। अपर्णा और प्रतीक की एक बेटी है, जिसका नाम प्रथमा है। अपर्णा यादव ने 2017 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ कैंट सीट से लड़ा था। उस चुनाव में उन्हें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी ने हरा दिया था। यह खबर भी पढ़ें सुल्तानपुर में ‘यादव’ का एनकाउंटर…बहन बोली-पुलिस ने हत्या की; रात 2 बजे मंगेश को घर से उठाया, सुबह मार दिया सुल्तानपुर में ज्वेलरी शॉप में डकैती के आरोपी और 1 लाख के इनामी मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सियासत शुरू हो गई है। विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव शुक्रवार सुबह जौनपुर में मंगेश के घर पहुंचे। परिजनों से मुलाकात की। मंगेश की बहन ने कहा- पुलिस ने मेरे भाई की हत्या की। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर