यूपी में 10 जुलाई को आकाशीय बिजली गिरने से 38 लोगों की जान चली गई। प्रतापगढ़ में सबसे ज्यादा 11 मौतें हुईं। दूसरे नंबर पर सुल्तानपुर रहा। यहां 7 लोगों की मौत बिजली की चपेट में आने से हो गई। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल औसतन करीब 2500 लोगों की मौत बिजली की चपेट में आने से होती है। प्राकृतिक आपदाओं से कुल मौतों में 39 फीसदी मौतें बिजली गिरने की वजह से हुई हैं। आखिर मानसून सीजन में ही सबसे ज्यादा बिजली क्यों गिरती है? इस आपदा से निपटने के लिए सरकार की क्या-क्या तैयारियां हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- बिजली गिरने से मौतों में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर
NCRB के मुताबिक, बिजली गिरने से होने वाली मौतों में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। इसमें पहले नंबर पर मध्यप्रदेश और दूसरे नंबर पर बिहार है। 2022 में उत्तर प्रदेश में बिजली गिरने से 301 लोगों की मौत हुई थी। वहीं, पहले स्थान पर रहे मध्यप्रदेश में यह संख्या 496 थी। बिहार में 329 लोगों की मौत हुई थी। बिजली गिरने का पूर्वानुमान बताने वाला सिस्टम बना रही उत्तर प्रदेश सरकार
10 जुलाई को एक दिन में 38 मौतों ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। सरकार एक ऐसा सिस्टम बनाने जा रही है, जो बिजली गिरने से पहले ही चेतावनी जारी कर देगा। यह एक अलर्ट मैनेजमेंट सिस्टम होगा। योगी सरकार इसे तीन फेज में विकसित कर रही है। प्रदेश के राहत आयुक्त नवीन कुमार ने बताया कि पहले चरण में 37 जिलों में बिजली चेतावनी प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी। स्टेट रिलीफ डिपार्टमेंट के मुताबिक अब तक प्रदेश में बिजली गिरने से 84 लोगों की मौत हो चुकी है। डिपार्टमेंट की माने तो यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले दोगुना है। पिछले साल बिजली गिरने से 41 लोगों की मौत हुई थी। मेघदूत और दामिनी ऐप से बिजली गिरने की सटीक जानकारी
भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से लोगों को मौसम की सटीक जानकारी देने के लिए फिलहाल ‘मेघदूत’ और ‘दामिनी’ मोबाइल एप्लिकेशन हैं। इन ऐप्स की मदद से मौसम और आकाशीय बिजली की सटीक जानकारी पहले से मिलती है। इन ऐप्स को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। मेघदूत ऐप- भारत सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान के तहत किसानों को तकनीक से जोड़ने के लिए मेघदूत ऐप को लॉन्च किया गया है। मेघदूत ऐप के माध्यम से मौसम का पूर्वानुमान जैसे- तापमान, बारिश की स्थिति, हवा की स्पीड या दिशा की सटीक जानकारी मिलती है। इसके अलावा किसानों को फसलों की सिंचाई कब करनी चाहिए या फसलों में कब दवा डालनी है, यह जानकारी भी मिलती है। दामिनी ऐप- इस ऐप को प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके बाद लोकेशन का रजिस्ट्रेशन करना होगा। ऐप की मदद से 20 से 31 किलोमीटर के दायरे में आकाशीय बिजली का पूर्वानुमान मिल जाएगा। इस ऐप के जरिए संबंधित जगह के 20 किमी के दायरे में बिजली गिरने की चेतावनी 30 से 40 मिनट पहले ऑडियो और मैसेज के जरिए मिल जाएगी। इससे काफी हद तक जनहानि और पशुहानि को रोका जा सकता है। गर्म हवाओं के बादलों में रगड़ खाने से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ीं
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूपी के कई जिलों में इस बार बारिश कम हो रही है, या न के बराबर हो रही है। इन जिलों में तापमान ज्यादा होने के कारण गर्म हवाएं चल रही हैं। यही गर्म हवाएं ऊपर उठकर बादलों और ठंडी हवा से टकरा रही हैं। बादलों की नमी और गर्म हवाओं की रगड़ से आसमानी बिजली पैदा हो रही है। यही बिजली गिरकर मौत का कारण बन रही है। बिजली गिरना उत्तर प्रदेश में राज्य आपदा की कैटेगरी में
बिजली गिरना उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की सूची में शामिल है। अगर किसी व्यक्ति की मौत बिजली गिरने से हो जाती है, तो उसके परिवार को 24 घंटे के अंदर मुआवजा मिलता है। इसमें मुआवजे की राशि 4 लाख रुपए होती है। क्यों पेड़, तालाब, खेतों और ऊंची इमारतों पर बिजली गिरती है?
खुले मैदान, पेड़, ऊंची इमारतें इन जगहों पर बिजली गिरने का खतरा सबसे ज्यादा है। इसके पीछे वजह है, बिजली गिरने में आसानी। खुले मैदान में किसी तरह की कोई बाधा नहीं होती है। इसी तरह ऊंची इमारतें और पेड़, जमीन के मुकाबले बादलों के पास होते हैं। जब बादल इन जगहों के ऊपर से गुजर रहा होता है तो पेड़, इमारत और उस खुले मैदान में भी विपरीत चार्ज पैदा हो जाता है। जब इसकी मात्रा ज्यादा हो जाती है तो बिजली बादलों से उस इमारत या पेड़ पर गिर जाती है। 19वीं सदी में पता चली थी बिजली गिरने की सही वजह
वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने पहली बार 1872 में बिजली गिरने के सही कारणों को दुनिया के सामने रखा था। उन्होंने बताया कि जब आसमान में बादल छा जाते हैं तो उसमें मौजूद पानी के छोटे-छोटे कण हवा की वजह से एक दूसरे से रगड़ खाने लगते हैं। इससे वो कण चार्ज हो जाते हैं, यानी आवेशित हो जाते हैं। इसमें कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज तो कुछ पर निगेटिव चार्ज आ जाता है। जब ये दोनों तरह के चार्ज वाले बादल मिलते हैं तो उनमें लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है। यूपी में 10 जुलाई को आकाशीय बिजली गिरने से 38 लोगों की जान चली गई। प्रतापगढ़ में सबसे ज्यादा 11 मौतें हुईं। दूसरे नंबर पर सुल्तानपुर रहा। यहां 7 लोगों की मौत बिजली की चपेट में आने से हो गई। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल औसतन करीब 2500 लोगों की मौत बिजली की चपेट में आने से होती है। प्राकृतिक आपदाओं से कुल मौतों में 39 फीसदी मौतें बिजली गिरने की वजह से हुई हैं। आखिर मानसून सीजन में ही सबसे ज्यादा बिजली क्यों गिरती है? इस आपदा से निपटने के लिए सरकार की क्या-क्या तैयारियां हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए- बिजली गिरने से मौतों में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर
NCRB के मुताबिक, बिजली गिरने से होने वाली मौतों में उत्तर प्रदेश तीसरे स्थान पर है। इसमें पहले नंबर पर मध्यप्रदेश और दूसरे नंबर पर बिहार है। 2022 में उत्तर प्रदेश में बिजली गिरने से 301 लोगों की मौत हुई थी। वहीं, पहले स्थान पर रहे मध्यप्रदेश में यह संख्या 496 थी। बिहार में 329 लोगों की मौत हुई थी। बिजली गिरने का पूर्वानुमान बताने वाला सिस्टम बना रही उत्तर प्रदेश सरकार
10 जुलाई को एक दिन में 38 मौतों ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। सरकार एक ऐसा सिस्टम बनाने जा रही है, जो बिजली गिरने से पहले ही चेतावनी जारी कर देगा। यह एक अलर्ट मैनेजमेंट सिस्टम होगा। योगी सरकार इसे तीन फेज में विकसित कर रही है। प्रदेश के राहत आयुक्त नवीन कुमार ने बताया कि पहले चरण में 37 जिलों में बिजली चेतावनी प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी। स्टेट रिलीफ डिपार्टमेंट के मुताबिक अब तक प्रदेश में बिजली गिरने से 84 लोगों की मौत हो चुकी है। डिपार्टमेंट की माने तो यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले दोगुना है। पिछले साल बिजली गिरने से 41 लोगों की मौत हुई थी। मेघदूत और दामिनी ऐप से बिजली गिरने की सटीक जानकारी
भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से लोगों को मौसम की सटीक जानकारी देने के लिए फिलहाल ‘मेघदूत’ और ‘दामिनी’ मोबाइल एप्लिकेशन हैं। इन ऐप्स की मदद से मौसम और आकाशीय बिजली की सटीक जानकारी पहले से मिलती है। इन ऐप्स को गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। मेघदूत ऐप- भारत सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान के तहत किसानों को तकनीक से जोड़ने के लिए मेघदूत ऐप को लॉन्च किया गया है। मेघदूत ऐप के माध्यम से मौसम का पूर्वानुमान जैसे- तापमान, बारिश की स्थिति, हवा की स्पीड या दिशा की सटीक जानकारी मिलती है। इसके अलावा किसानों को फसलों की सिंचाई कब करनी चाहिए या फसलों में कब दवा डालनी है, यह जानकारी भी मिलती है। दामिनी ऐप- इस ऐप को प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके बाद लोकेशन का रजिस्ट्रेशन करना होगा। ऐप की मदद से 20 से 31 किलोमीटर के दायरे में आकाशीय बिजली का पूर्वानुमान मिल जाएगा। इस ऐप के जरिए संबंधित जगह के 20 किमी के दायरे में बिजली गिरने की चेतावनी 30 से 40 मिनट पहले ऑडियो और मैसेज के जरिए मिल जाएगी। इससे काफी हद तक जनहानि और पशुहानि को रोका जा सकता है। गर्म हवाओं के बादलों में रगड़ खाने से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ीं
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यूपी के कई जिलों में इस बार बारिश कम हो रही है, या न के बराबर हो रही है। इन जिलों में तापमान ज्यादा होने के कारण गर्म हवाएं चल रही हैं। यही गर्म हवाएं ऊपर उठकर बादलों और ठंडी हवा से टकरा रही हैं। बादलों की नमी और गर्म हवाओं की रगड़ से आसमानी बिजली पैदा हो रही है। यही बिजली गिरकर मौत का कारण बन रही है। बिजली गिरना उत्तर प्रदेश में राज्य आपदा की कैटेगरी में
बिजली गिरना उत्तर प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की सूची में शामिल है। अगर किसी व्यक्ति की मौत बिजली गिरने से हो जाती है, तो उसके परिवार को 24 घंटे के अंदर मुआवजा मिलता है। इसमें मुआवजे की राशि 4 लाख रुपए होती है। क्यों पेड़, तालाब, खेतों और ऊंची इमारतों पर बिजली गिरती है?
खुले मैदान, पेड़, ऊंची इमारतें इन जगहों पर बिजली गिरने का खतरा सबसे ज्यादा है। इसके पीछे वजह है, बिजली गिरने में आसानी। खुले मैदान में किसी तरह की कोई बाधा नहीं होती है। इसी तरह ऊंची इमारतें और पेड़, जमीन के मुकाबले बादलों के पास होते हैं। जब बादल इन जगहों के ऊपर से गुजर रहा होता है तो पेड़, इमारत और उस खुले मैदान में भी विपरीत चार्ज पैदा हो जाता है। जब इसकी मात्रा ज्यादा हो जाती है तो बिजली बादलों से उस इमारत या पेड़ पर गिर जाती है। 19वीं सदी में पता चली थी बिजली गिरने की सही वजह
वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रेंकलिन ने पहली बार 1872 में बिजली गिरने के सही कारणों को दुनिया के सामने रखा था। उन्होंने बताया कि जब आसमान में बादल छा जाते हैं तो उसमें मौजूद पानी के छोटे-छोटे कण हवा की वजह से एक दूसरे से रगड़ खाने लगते हैं। इससे वो कण चार्ज हो जाते हैं, यानी आवेशित हो जाते हैं। इसमें कुछ बादलों पर पॉजिटिव चार्ज तो कुछ पर निगेटिव चार्ज आ जाता है। जब ये दोनों तरह के चार्ज वाले बादल मिलते हैं तो उनमें लाखों वोल्ट की बिजली पैदा होती है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर