प्रदेश की योगी सरकार और सूबे में NDA के सबसे बड़े सहयोगी अपना दल (एस) के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। योगी सरकार 1.0 में जहां मनमुटाव की बातें बंद कमरों तक होती थी, सरकार 2.0 में जगजाहिर हो गया। अपना दल (एस) की ओर से सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस पर सरकार की ओर से भी उतने ही तल्ख अंदाज में पलटवार किया जा रहा। ऐसे में चर्चा है कि अगर लगातार टकराव चलता रहा तो अपना दल (एस) योगी सरकार से अलग हो सकता है। क्या अपना दल योगी सरकार से अलग होकर बाहर से समर्थन जारी रखेगा? क्या अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री होने के कारण भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व इसमें दखल देगा? क्या अपना दल विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर कोई नई राह तलाश रहा? इन सभी मुद्दों पर दैनिक भास्कर ने एक्सपर्ट्स से बात की। सबसे पहले जानिए, किस तरह से तकरार बढ़ रही…
अपना दल (एस) और योगी सरकार के बीच लोकसभा चुनाव के बाद से टकराव तेजी से बढ़ना शुरू हुआ। जानकार मानते हैं, इसकी शुरुआत 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती से ही हो गई थी। अपना दल (एस) का नेतृत्व इस बात से नाराज है कि सरकार की मशीनरी का चुनाव के दौरान व्यवहार ठीक नहीं था। सरकार के स्तर से भी कोई मदद नहीं मिली। 1- शिक्षक भर्ती में आरक्षण: बेसिक शिक्षा परिषद में 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती में SC और OBC को आरक्षण का नियमानुसार लाभ न मिलने का मुद्दा अपना दल (एस) ने ही उठाया था। इस विवाद का आज तक हल नहीं निकला। जबकि, योगी सरकार नियमानुसार आरक्षण का लाभ देने का दावा कर रही है। 2- सीएम योगी को लिखा पत्र: अनुप्रिया पटेल ने 27 जून को मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखा। इसमें आरोप लगाया कि सरकारी विभागों में हो रही भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण नियमों का पालन नहीं हो रहा। इन कैटेगरी के योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलने के नाम पर उनके पद सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को दिए जा रहे हैं। सरकार ने अनुप्रिया के पत्र का जवाब देते हुए बताया कि सभी विभागों की सरकारी भर्ती में आरक्षण नियमों का पालन किया जा रहा है। 3- प्रमुख सचिव का विवाद: अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष एवं योगी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल का विभाग के प्रमुख सचिव एम. देवराज से विवाद हो गया। एम. देवराज ने तबादला सत्र के दौरान आशीष पटेल की ओर से किए जा रहे तबादलों पर आपत्ति जताई। मंत्री ने तबादले की पत्रावली मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दी। नतीजा यह रहा कि विभाग में तबादला सत्र शून्य रहा। अपना दल (एस) के पदाधिकारी मानते हैं कि एम. देवराज को सरकार का संरक्षण है। 4- मंच से आरक्षण का मुद्दा फिर उठाया: अपना दल (एस) के संस्थापक सोनेलाल पटेल की जयंती पर लखनऊ में कार्यक्रम हुआ। इस दौरान अनुप्रिया ने सरकारी विभागों की भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्होंने लोकतंत्र में राजा EVM से पैदा होने की बात भी दोहराई। वहीं, प्रदेश भाजपा की ओर से उन्हें सुझाव दिया गया था कि वह अपनी बात सार्वजनिक मंच पर न रखें। भाजपा के शीर्ष नेताओं के सामने बात रखें। 5- टोल टैक्स का मुद्दा उठाया: अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर अहरौरा में अतिरिक्त टोल बूथ लगाने पर आपत्ति जताई। उनका कहना है, NHAI के नियमों के अनुसार एक टोल से दूसरे टोल के बीच की दूरी 40 किलोमीटर होनी चाहिए। लेकिन मार्ग में 20 किलोमीटर की दूरी फत्तेपुर और अहरौरा में दो टोल प्लाजा लगाकर वाहन स्वामियों से गलत टोल वसूला जा रहा है। योगी सरकार के औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी ने अनुप्रिया पटेल के आरोप को तथ्यहीन बताया। उन्होंने कहा, फत्तेपुर और अहरौरा में से एक ही जगह टोल टैक्स देना है। बाकायदा प्रेस नोट जारी कर इसका खंडन भी किया। सौदेबाजी कर रहा अपना दल, इसलिए बना रहा दबाव
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अपना दल सिर्फ दबाव की राजनीति कर रहा। वह भाजपा से अलग नहीं होगा। वह अपने वोट बैंक (पिछड़ों) को बताना चाहता है कि भाजपा पर दबाव बनाकर उनकी आवाज उठाई जा रही है। साथ ही अनुप्रिया की पार्टी यह जताना चाहती है कि पिछड़ों के लिए वह सत्ता से अलग हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अपना दल को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में पिछड़े और दलित वर्ग के बीच भाजपा कमजोर हुई है। हालांकि, अपना दल भी पिछड़े वर्ग के बीच अब उतनी मजबूत नहीं है। अनुप्रिया खुद बमुश्किल चुनाव जीतीं। लेकिन, अपने वोट बैंक को मैसेज देने के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रही हैं। प्रयागराज, फूलपुर, कौशांबी सहित अन्य सीटों के चुनाव परिणाम इसका प्रमाण हैं। केंद्रीय नेतृत्व को इसमें दखल देकर टकराव दूर करना चाहिए, जिससे योगी सरकार के कामकाज के बीच अनावश्यक विवाद न हो। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी मानते हैं कि अपना दल की हैसियत टकराव वाली नहीं। अपना दल भाजपा की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है। पूर्वांचल और अवध में कुर्मी वोट भाजपा से खिसका है। इसलिए अपना दल दबाव बना रहा। अपना दल जैसे छोटे दल सत्ता में रहने वाले लोग हैं, ये कहां जाएंगे। इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि भाजपा के अंदर से ही कुछ नेता अपना दल के नेतृत्व को उकसा रहे हैं। प्रदेश की योगी सरकार और सूबे में NDA के सबसे बड़े सहयोगी अपना दल (एस) के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। योगी सरकार 1.0 में जहां मनमुटाव की बातें बंद कमरों तक होती थी, सरकार 2.0 में जगजाहिर हो गया। अपना दल (एस) की ओर से सरकार की व्यवस्थाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं। इस पर सरकार की ओर से भी उतने ही तल्ख अंदाज में पलटवार किया जा रहा। ऐसे में चर्चा है कि अगर लगातार टकराव चलता रहा तो अपना दल (एस) योगी सरकार से अलग हो सकता है। क्या अपना दल योगी सरकार से अलग होकर बाहर से समर्थन जारी रखेगा? क्या अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में मंत्री होने के कारण भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व इसमें दखल देगा? क्या अपना दल विधानसभा चुनाव 2027 के मद्देनजर कोई नई राह तलाश रहा? इन सभी मुद्दों पर दैनिक भास्कर ने एक्सपर्ट्स से बात की। सबसे पहले जानिए, किस तरह से तकरार बढ़ रही…
अपना दल (एस) और योगी सरकार के बीच लोकसभा चुनाव के बाद से टकराव तेजी से बढ़ना शुरू हुआ। जानकार मानते हैं, इसकी शुरुआत 69 हजार सहायक शिक्षक भर्ती से ही हो गई थी। अपना दल (एस) का नेतृत्व इस बात से नाराज है कि सरकार की मशीनरी का चुनाव के दौरान व्यवहार ठीक नहीं था। सरकार के स्तर से भी कोई मदद नहीं मिली। 1- शिक्षक भर्ती में आरक्षण: बेसिक शिक्षा परिषद में 69 हजार सहायक अध्यापक भर्ती में SC और OBC को आरक्षण का नियमानुसार लाभ न मिलने का मुद्दा अपना दल (एस) ने ही उठाया था। इस विवाद का आज तक हल नहीं निकला। जबकि, योगी सरकार नियमानुसार आरक्षण का लाभ देने का दावा कर रही है। 2- सीएम योगी को लिखा पत्र: अनुप्रिया पटेल ने 27 जून को मुख्यमंत्री योगी को पत्र लिखा। इसमें आरोप लगाया कि सरकारी विभागों में हो रही भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण नियमों का पालन नहीं हो रहा। इन कैटेगरी के योग्य अभ्यर्थी नहीं मिलने के नाम पर उनके पद सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को दिए जा रहे हैं। सरकार ने अनुप्रिया के पत्र का जवाब देते हुए बताया कि सभी विभागों की सरकारी भर्ती में आरक्षण नियमों का पालन किया जा रहा है। 3- प्रमुख सचिव का विवाद: अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष एवं योगी सरकार में प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल का विभाग के प्रमुख सचिव एम. देवराज से विवाद हो गया। एम. देवराज ने तबादला सत्र के दौरान आशीष पटेल की ओर से किए जा रहे तबादलों पर आपत्ति जताई। मंत्री ने तबादले की पत्रावली मुख्यमंत्री कार्यालय को भेज दी। नतीजा यह रहा कि विभाग में तबादला सत्र शून्य रहा। अपना दल (एस) के पदाधिकारी मानते हैं कि एम. देवराज को सरकार का संरक्षण है। 4- मंच से आरक्षण का मुद्दा फिर उठाया: अपना दल (एस) के संस्थापक सोनेलाल पटेल की जयंती पर लखनऊ में कार्यक्रम हुआ। इस दौरान अनुप्रिया ने सरकारी विभागों की भर्ती में SC-ST और OBC के आरक्षण का मुद्दा उठाया। उन्होंने लोकतंत्र में राजा EVM से पैदा होने की बात भी दोहराई। वहीं, प्रदेश भाजपा की ओर से उन्हें सुझाव दिया गया था कि वह अपनी बात सार्वजनिक मंच पर न रखें। भाजपा के शीर्ष नेताओं के सामने बात रखें। 5- टोल टैक्स का मुद्दा उठाया: अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर अहरौरा में अतिरिक्त टोल बूथ लगाने पर आपत्ति जताई। उनका कहना है, NHAI के नियमों के अनुसार एक टोल से दूसरे टोल के बीच की दूरी 40 किलोमीटर होनी चाहिए। लेकिन मार्ग में 20 किलोमीटर की दूरी फत्तेपुर और अहरौरा में दो टोल प्लाजा लगाकर वाहन स्वामियों से गलत टोल वसूला जा रहा है। योगी सरकार के औद्योगिक विकास मंत्री नंदगोपाल गुप्ता नंदी ने अनुप्रिया पटेल के आरोप को तथ्यहीन बताया। उन्होंने कहा, फत्तेपुर और अहरौरा में से एक ही जगह टोल टैक्स देना है। बाकायदा प्रेस नोट जारी कर इसका खंडन भी किया। सौदेबाजी कर रहा अपना दल, इसलिए बना रहा दबाव
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि अपना दल सिर्फ दबाव की राजनीति कर रहा। वह भाजपा से अलग नहीं होगा। वह अपने वोट बैंक (पिछड़ों) को बताना चाहता है कि भाजपा पर दबाव बनाकर उनकी आवाज उठाई जा रही है। साथ ही अनुप्रिया की पार्टी यह जताना चाहती है कि पिछड़ों के लिए वह सत्ता से अलग हो सकती है। वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्रनाथ भट्ट कहते हैं- अपना दल को लग रहा है कि लोकसभा चुनाव में पिछड़े और दलित वर्ग के बीच भाजपा कमजोर हुई है। हालांकि, अपना दल भी पिछड़े वर्ग के बीच अब उतनी मजबूत नहीं है। अनुप्रिया खुद बमुश्किल चुनाव जीतीं। लेकिन, अपने वोट बैंक को मैसेज देने के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रही हैं। प्रयागराज, फूलपुर, कौशांबी सहित अन्य सीटों के चुनाव परिणाम इसका प्रमाण हैं। केंद्रीय नेतृत्व को इसमें दखल देकर टकराव दूर करना चाहिए, जिससे योगी सरकार के कामकाज के बीच अनावश्यक विवाद न हो। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी मानते हैं कि अपना दल की हैसियत टकराव वाली नहीं। अपना दल भाजपा की मजबूरी का फायदा उठाना चाहता है। पूर्वांचल और अवध में कुर्मी वोट भाजपा से खिसका है। इसलिए अपना दल दबाव बना रहा। अपना दल जैसे छोटे दल सत्ता में रहने वाले लोग हैं, ये कहां जाएंगे। इस संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि भाजपा के अंदर से ही कुछ नेता अपना दल के नेतृत्व को उकसा रहे हैं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर