दिल्ली में 18 मई को बसपा सुप्रीमो मायावती के ऐलान ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है। उन्होंने साफ कहा- BSP इस बार बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। नेशनल को-ऑर्डिनेटर और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम, बिहार प्रभारी अनिल कुमार को मजबूत प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। BSP इस बार बिहार विधानसभा के चुनावी मैदान में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी में जुटी है। उसकी नजर खासतौर पर बिहार के पश्चिमी हिस्से, यानी यूपी बॉर्डर से सटे जिलों (बक्सर, कैमूर, रोहतास) पर है। जहां उनका परंपरागत दलित वोट बैंक पहले से मौजूद है। यहां की 25-30 सीटें बसपा के टारगेट पर हैं। आखिर बसपा के लिए मिशन बिहार क्यों जरूरी है? बसपा के चुनाव लड़ने से एनडीए या इंडी गठबंधन में किसका समीकरण बिगड़ेगा? बिहार चुनाव का नतीजा चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाए गए आकाश आनंद के करियर पर क्या असर डालेगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले पढ़िए बसपा के लिए मिशन बिहार क्यों जरूरी?
बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यूपी जैसे राज्य, जहां से बीएसपी उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में कोई नुमाइंदगी नहीं है। 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा सिर्फ 2 फीसदी वोट ही पा सकी। यूपी में उसका वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी रह गया। लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई। राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए भी बिहार का चुनाव बसपा के लिए अहम है। बिहार की सीमाएं यूपी से सटी हैं। सीमावर्ती जिलों में बसपा का मजबूत कैडर है। बिहार में दलित 16 फीसदी के लगभग हैं। इसमें जाटव करीब 4.50 फीसदी हैं। बसपा की इस वोटबैंक पर मजबूत पकड़ है। बिहार विधानसभा चुनाव में 2010 और 2015 को छोड़ दें, तो बसपा अपना खाता खोलने में सफल रही है। साल-2000 में तो उसके 5 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। 2020 में भी बसपा के मो. जमा खान चैनपुर से जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। जबकि कैमूर जिले की रामगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी अंबिका प्रसाद त्रिकोणीय संघर्ष में आरजेडी प्रत्याशी से महज 189 वोट से हारे थे। बिहार से बसपा की उम्मीद की वजह क्या है?
बिहार में नवंबर, 2024 के 4 विधानसभा उपचुनावों का रिजल्ट भले ही एनडीए के पक्ष में गया हो। लेकिन, बसपा ने रामगढ़ सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। बसपा प्रत्याशी सतीश यादव इस सीट पर कई राउंड तक भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह पर बढ़त बनाए थे। फाइनल राउंड में वह सिर्फ 1362 वोटों से हारे थे। उन्हें 60 हजार 895 वोट मिले थे। भाजपा के विजयी प्रत्याशी अशोक सिंह को 62 हजार 257 मत मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे राजद के अजीत सिंह को 35 हजार 825 वोट मिले थे। जबकि प्रशांत किशोर की जन-सुराज पार्टी के प्रत्याशी सुशील कुशवाहा 6 हजार 513 वोट पाकर चौथे नंबर पर थे। बसपा को लोकसभा 2024 में बिहार में कुल 7.44 लाख (1.75 फीसदी) वोट मिले थे। तब बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 7 सीटों औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, गया, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम पर तीसरे स्थान पर रही थी। 6 सीटों अररिया, दरभंगा, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, झंझारपुर, काराकाट, मधेपुरा, मधुबनी, महाराजगंज, पश्चिमी चंपारण, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, पूर्णिया, उजियारपुर और वैशाली में चौथे स्थान पर थी। बक्सर में बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार को 1 लाख 14 हजार 714, जहानाबाद में अरुण कुमार को 86 हजार 380, झंझारपुर में गुलाब यादव को 73 हजार 884 वोट मिले थे। इसके अलावा बसपा को सासाराम में 45 हजार 598, गोपालगंज में 29 हजार 272, काराकाट में 23 हजार 657 वैशाली में 21 हजार 436 औरंगाबाद में 20 हजार 309 और वाल्मीकि नगर में 18 हजार 816 वोट मिले थे। बसपा के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि पार्टी के जोर लगाने पर इन लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 10 से 15 सीटों को जीता जा सकता है। बिहार में एनडीए और इंडी गठबंधन में लोकसभा की तरह ही कांटे की टक्कर हुई, तो बसपा की ये सीटें तुरुप का इक्का साबित होंगी। बिहार में अच्छा प्रदर्शन करने का फायदा फिर 2027 में यूपी चुनाव में भी मिलेगा। बिहार में पीडीए की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी बसपा
बसपा बिहार में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है। बसपा ने बिहार का प्रदेश प्रभारी अनिल चौधरी को बनाया है, जो कुर्मी जाति से आते हैं। बिहार में कुर्मी 4 फीसदी से अधिक हैं। इसके अलावा कोइरी और कुशवाह भी बसपा के कोर एजेंडे में शामिल हैं। अभी तक कुर्मी, कोइरी और कुशवाह जदयू के वोटर माने जाते रहे हैं। लेकिन, बसपा इस बार बिहार में बड़ी संख्या में कुर्मी सहित इन जातियों के प्रत्याशी उतारने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं। मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं। मतलब साफ है कि बसपा की नजर बिहार में 30 फीसदी वोटरों को साधने पर है। बसपा प्रत्याशियों के साथ विश्वास का संकट
बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं- बसपा का यूपी से सटे जिलों में एक आधार है। लेकिन, उसके साथ समस्या यह है कि बसपा के टिकट पर जीतने वाले विधायक पाला बदल लेते हैं। 2000 में बसपा के 5 विधायक जीते थे। लेकिन, सभी कुछ ही समय बाद लालू के साथ उनकी राजद में शामिल हो गए। ये क्रम बाद के हर चुनाव में देखने को मिला। पिछली बार बसपा के इकलौते विधायक मो. जमा खान जदयू में शामिल होकर मंत्री बन गए। बिहार कांग्रेस के दलित कार्ड से छिटक सकते हैं बसपा के वोटर
लव कुमार मिश्र के मुताबिक, बिहार में दलित भले ही 16 फीसदी से अधिक हैं, लेकिन ये कई उपजातियों में बंटे हैं। दुसाध (पासवान) लोजपा को वोट करते हैं। महादलित में शामिल मुसहर आदि उपजातियां पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की ‘हम’ के समर्थक हैं। सिर्फ 4 फीसदी जाटव ही बसपा के कोर वोटर माने जाते हैं। बिहार का दलित इस बार कांग्रेस की ओर शिफ्ट होता दिख रहा है। इसकी वजह भी है। कांग्रेस ने दलित राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। बिहार के प्रभारी सुशील पासी भी दलित हैं। ऐसे में बसपा को कोई चमत्कारिक सफलता नहीं मिलती दिख रही। किसे नुकसान पहुंचा सकती है BSP?
लंबे समय से बसपा को कवर रहे वरिष्ठ पत्रकार सईद कासिम के मुताबिक, यूपी से सटे बिहार के जिलों में 4 फीसदी से अधिक जाटव बीएसपी के कोर वोटर रहे हैं। बसपा ने इस बार कुर्मी समाज से आने वाले अनिल चौधरी को प्रदेश प्रभारी बनाया है। वे काफी पैसा चुनाव में खर्च कर रहे हैं। अनिल चौधरी की वजह से बसपा को कुर्मी वोट भी इस बार मिलेंगे। बीएसपी के सभी सीटों पर लड़ने से कमोबेश नुकसान दोनों महा गठबंधनों को होगा, लेकिन एनडीए पर इसका असर अधिक होगा। इसकी वजह यह है कि बसपा का आधार दलित वोटर ही हैं। जबकि एनडीए के दो सहयोगी चिराग पासवान की लोजपा और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की हम पार्टी का बेस भी दलित वोटर ही हैं। पासवान वोटर जहां चिराग के साथ लामबंद हैं, वहीं मुसहर सहित महादलित जीतन राम मांझी के कोर वोटर हैं। बसपा के मजबूती से लड़ने पर पासवान और महादलित वोटरों में यदि 1 फीसदी भी सेंधमारी करती है, तो सीधे तौर पर एनडीए का समीकरण बिगड़ सकता है। खासकर उन सीटों पर जहां लोजपा और हम की बजाय भाजपा और जदयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह अभी तक कुर्मी वोटर नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़ा रहा है। अनिल कुमार चौधरी की वजह से बसपा इस वोटबैंक में जो भी सेंधमारी करेगी, उसका असर जदयू पर पड़ेगा। इससे भी एनडीए को नुकसान हो सकता है। अब बिहार तय करेगा आकाश आनंद का भविष्य
वरिष्ठ पत्रकार सईद कासिम बताते हैं- पार्टी के नवनियुक्त चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद के लिए भी बिहार चुनाव अग्निपरीक्षा है। उन्हें संगठन के स्तर पर साबित करना होगा कि वे मायावती की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की काबिलियत रखते हैं। बिहार में मिली सफलता ही उन्हें BSP का भविष्य का नेता साबित करेगी। बीएसपी को अपने आंतरिक कलह से निपटना होगा
सूत्र बताते हैं, बसपा को बिहार में तभी फायदा मिलेगा, जब वह अपनी आंतरिक कलह को समय रहते सुलझा लेगी। बिहार के केंद्रीय प्रभारी नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम और चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बने आकाश आनंद को आपसी तालमेल बेहतर करना होगा। बिहार में लंबे समय तक सक्रिय एक नेता को उन्होंने वहां से हटाकर बंगाल भेज दिया है। वहीं, वे अपने गृह जिले लखीमपुर खीरी से दो प्रभारी लेकर बिहार गए हैं। प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी की रणनीति को फाइनल करने का जिम्मा आकाश पर होगा। ऐसे में तालमेल की कमी में बसपा को बिहार में धक्का भी लग सकता है। ———————– ये खबर भी पढ़ें… मायावती ने भतीजे को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया:नंबर-2 की पोजिशन; आकाश आनंद बोले- बहनजी माफ करने के लिए शुक्रिया बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर भतीजे आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी है। आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है। यह नंबर-2 की पोजिशन है। यानी, मायावती के बाद अब पार्टी में आकाश होंगे। आकाश को अब तक का सबसे बड़ा पद दिया गया है। पार्टी ने पहली बार चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद बनाया है। इससे पहले आकाश नेशनल को-ऑडिनेटर थे। पढ़ें पूरी खबर दिल्ली में 18 मई को बसपा सुप्रीमो मायावती के ऐलान ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है। उन्होंने साफ कहा- BSP इस बार बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। नेशनल को-ऑर्डिनेटर और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम, बिहार प्रभारी अनिल कुमार को मजबूत प्रत्याशियों के चयन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। BSP इस बार बिहार विधानसभा के चुनावी मैदान में पूरी ताकत से उतरने की तैयारी में जुटी है। उसकी नजर खासतौर पर बिहार के पश्चिमी हिस्से, यानी यूपी बॉर्डर से सटे जिलों (बक्सर, कैमूर, रोहतास) पर है। जहां उनका परंपरागत दलित वोट बैंक पहले से मौजूद है। यहां की 25-30 सीटें बसपा के टारगेट पर हैं। आखिर बसपा के लिए मिशन बिहार क्यों जरूरी है? बसपा के चुनाव लड़ने से एनडीए या इंडी गठबंधन में किसका समीकरण बिगड़ेगा? बिहार चुनाव का नतीजा चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाए गए आकाश आनंद के करियर पर क्या असर डालेगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पहले पढ़िए बसपा के लिए मिशन बिहार क्यों जरूरी?
बसपा वर्तमान में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यूपी जैसे राज्य, जहां से बीएसपी उभरी, वहां उसका अब सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में कोई नुमाइंदगी नहीं है। 2024 लोकसभा में पूरे देश में बसपा सिर्फ 2 फीसदी वोट ही पा सकी। यूपी में उसका वोट शेयर गिरकर 9.35 फीसदी रह गया। लोकसभा के बाद महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बसपा खाता नहीं खोल पाई। राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए भी बिहार का चुनाव बसपा के लिए अहम है। बिहार की सीमाएं यूपी से सटी हैं। सीमावर्ती जिलों में बसपा का मजबूत कैडर है। बिहार में दलित 16 फीसदी के लगभग हैं। इसमें जाटव करीब 4.50 फीसदी हैं। बसपा की इस वोटबैंक पर मजबूत पकड़ है। बिहार विधानसभा चुनाव में 2010 और 2015 को छोड़ दें, तो बसपा अपना खाता खोलने में सफल रही है। साल-2000 में तो उसके 5 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। 2020 में भी बसपा के मो. जमा खान चैनपुर से जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। जबकि कैमूर जिले की रामगढ़ सीट से बसपा प्रत्याशी अंबिका प्रसाद त्रिकोणीय संघर्ष में आरजेडी प्रत्याशी से महज 189 वोट से हारे थे। बिहार से बसपा की उम्मीद की वजह क्या है?
बिहार में नवंबर, 2024 के 4 विधानसभा उपचुनावों का रिजल्ट भले ही एनडीए के पक्ष में गया हो। लेकिन, बसपा ने रामगढ़ सीट पर दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। बसपा प्रत्याशी सतीश यादव इस सीट पर कई राउंड तक भाजपा प्रत्याशी अशोक सिंह पर बढ़त बनाए थे। फाइनल राउंड में वह सिर्फ 1362 वोटों से हारे थे। उन्हें 60 हजार 895 वोट मिले थे। भाजपा के विजयी प्रत्याशी अशोक सिंह को 62 हजार 257 मत मिले थे। तीसरे नंबर पर रहे राजद के अजीत सिंह को 35 हजार 825 वोट मिले थे। जबकि प्रशांत किशोर की जन-सुराज पार्टी के प्रत्याशी सुशील कुशवाहा 6 हजार 513 वोट पाकर चौथे नंबर पर थे। बसपा को लोकसभा 2024 में बिहार में कुल 7.44 लाख (1.75 फीसदी) वोट मिले थे। तब बसपा 37 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। 7 सीटों औरंगाबाद, भागलपुर, बक्सर, गया, जहानाबाद, कटिहार, सासाराम पर तीसरे स्थान पर रही थी। 6 सीटों अररिया, दरभंगा, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई, झंझारपुर, काराकाट, मधेपुरा, मधुबनी, महाराजगंज, पश्चिमी चंपारण, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, पूर्णिया, उजियारपुर और वैशाली में चौथे स्थान पर थी। बक्सर में बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार को 1 लाख 14 हजार 714, जहानाबाद में अरुण कुमार को 86 हजार 380, झंझारपुर में गुलाब यादव को 73 हजार 884 वोट मिले थे। इसके अलावा बसपा को सासाराम में 45 हजार 598, गोपालगंज में 29 हजार 272, काराकाट में 23 हजार 657 वैशाली में 21 हजार 436 औरंगाबाद में 20 हजार 309 और वाल्मीकि नगर में 18 हजार 816 वोट मिले थे। बसपा के रणनीतिकार मानकर चल रहे हैं कि पार्टी के जोर लगाने पर इन लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 10 से 15 सीटों को जीता जा सकता है। बिहार में एनडीए और इंडी गठबंधन में लोकसभा की तरह ही कांटे की टक्कर हुई, तो बसपा की ये सीटें तुरुप का इक्का साबित होंगी। बिहार में अच्छा प्रदर्शन करने का फायदा फिर 2027 में यूपी चुनाव में भी मिलेगा। बिहार में पीडीए की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी बसपा
बसपा बिहार में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की पिच पर चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है। बसपा ने बिहार का प्रदेश प्रभारी अनिल चौधरी को बनाया है, जो कुर्मी जाति से आते हैं। बिहार में कुर्मी 4 फीसदी से अधिक हैं। इसके अलावा कोइरी और कुशवाह भी बसपा के कोर एजेंडे में शामिल हैं। अभी तक कुर्मी, कोइरी और कुशवाह जदयू के वोटर माने जाते रहे हैं। लेकिन, बसपा इस बार बिहार में बड़ी संख्या में कुर्मी सहित इन जातियों के प्रत्याशी उतारने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है। इसके अलावा मुसलमान करीब 17 फीसदी हैं। मायावती मुस्लिमों को भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने जा रही हैं। मतलब साफ है कि बसपा की नजर बिहार में 30 फीसदी वोटरों को साधने पर है। बसपा प्रत्याशियों के साथ विश्वास का संकट
बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं- बसपा का यूपी से सटे जिलों में एक आधार है। लेकिन, उसके साथ समस्या यह है कि बसपा के टिकट पर जीतने वाले विधायक पाला बदल लेते हैं। 2000 में बसपा के 5 विधायक जीते थे। लेकिन, सभी कुछ ही समय बाद लालू के साथ उनकी राजद में शामिल हो गए। ये क्रम बाद के हर चुनाव में देखने को मिला। पिछली बार बसपा के इकलौते विधायक मो. जमा खान जदयू में शामिल होकर मंत्री बन गए। बिहार कांग्रेस के दलित कार्ड से छिटक सकते हैं बसपा के वोटर
लव कुमार मिश्र के मुताबिक, बिहार में दलित भले ही 16 फीसदी से अधिक हैं, लेकिन ये कई उपजातियों में बंटे हैं। दुसाध (पासवान) लोजपा को वोट करते हैं। महादलित में शामिल मुसहर आदि उपजातियां पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की ‘हम’ के समर्थक हैं। सिर्फ 4 फीसदी जाटव ही बसपा के कोर वोटर माने जाते हैं। बिहार का दलित इस बार कांग्रेस की ओर शिफ्ट होता दिख रहा है। इसकी वजह भी है। कांग्रेस ने दलित राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। बिहार के प्रभारी सुशील पासी भी दलित हैं। ऐसे में बसपा को कोई चमत्कारिक सफलता नहीं मिलती दिख रही। किसे नुकसान पहुंचा सकती है BSP?
लंबे समय से बसपा को कवर रहे वरिष्ठ पत्रकार सईद कासिम के मुताबिक, यूपी से सटे बिहार के जिलों में 4 फीसदी से अधिक जाटव बीएसपी के कोर वोटर रहे हैं। बसपा ने इस बार कुर्मी समाज से आने वाले अनिल चौधरी को प्रदेश प्रभारी बनाया है। वे काफी पैसा चुनाव में खर्च कर रहे हैं। अनिल चौधरी की वजह से बसपा को कुर्मी वोट भी इस बार मिलेंगे। बीएसपी के सभी सीटों पर लड़ने से कमोबेश नुकसान दोनों महा गठबंधनों को होगा, लेकिन एनडीए पर इसका असर अधिक होगा। इसकी वजह यह है कि बसपा का आधार दलित वोटर ही हैं। जबकि एनडीए के दो सहयोगी चिराग पासवान की लोजपा और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की हम पार्टी का बेस भी दलित वोटर ही हैं। पासवान वोटर जहां चिराग के साथ लामबंद हैं, वहीं मुसहर सहित महादलित जीतन राम मांझी के कोर वोटर हैं। बसपा के मजबूती से लड़ने पर पासवान और महादलित वोटरों में यदि 1 फीसदी भी सेंधमारी करती है, तो सीधे तौर पर एनडीए का समीकरण बिगड़ सकता है। खासकर उन सीटों पर जहां लोजपा और हम की बजाय भाजपा और जदयू के प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे। इसी तरह अभी तक कुर्मी वोटर नीतीश कुमार के साथ मजबूती से खड़ा रहा है। अनिल कुमार चौधरी की वजह से बसपा इस वोटबैंक में जो भी सेंधमारी करेगी, उसका असर जदयू पर पड़ेगा। इससे भी एनडीए को नुकसान हो सकता है। अब बिहार तय करेगा आकाश आनंद का भविष्य
वरिष्ठ पत्रकार सईद कासिम बताते हैं- पार्टी के नवनियुक्त चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर आकाश आनंद के लिए भी बिहार चुनाव अग्निपरीक्षा है। उन्हें संगठन के स्तर पर साबित करना होगा कि वे मायावती की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने की काबिलियत रखते हैं। बिहार में मिली सफलता ही उन्हें BSP का भविष्य का नेता साबित करेगी। बीएसपी को अपने आंतरिक कलह से निपटना होगा
सूत्र बताते हैं, बसपा को बिहार में तभी फायदा मिलेगा, जब वह अपनी आंतरिक कलह को समय रहते सुलझा लेगी। बिहार के केंद्रीय प्रभारी नेशनल को-ऑर्डिनेटर रामजी गौतम और चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बने आकाश आनंद को आपसी तालमेल बेहतर करना होगा। बिहार में लंबे समय तक सक्रिय एक नेता को उन्होंने वहां से हटाकर बंगाल भेज दिया है। वहीं, वे अपने गृह जिले लखीमपुर खीरी से दो प्रभारी लेकर बिहार गए हैं। प्रत्याशियों के चयन से लेकर पार्टी की रणनीति को फाइनल करने का जिम्मा आकाश पर होगा। ऐसे में तालमेल की कमी में बसपा को बिहार में धक्का भी लग सकता है। ———————– ये खबर भी पढ़ें… मायावती ने भतीजे को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया:नंबर-2 की पोजिशन; आकाश आनंद बोले- बहनजी माफ करने के लिए शुक्रिया बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर भतीजे आकाश आनंद को बड़ी जिम्मेदारी दी है। आकाश को चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर बनाया है। यह नंबर-2 की पोजिशन है। यानी, मायावती के बाद अब पार्टी में आकाश होंगे। आकाश को अब तक का सबसे बड़ा पद दिया गया है। पार्टी ने पहली बार चीफ नेशनल को-ऑर्डिनेटर का पद बनाया है। इससे पहले आकाश नेशनल को-ऑडिनेटर थे। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
मायावती की बिहार में एंट्री से NDA-INDI गठबंधन में हलचल:आकाश की पहली अग्निपरीक्षा, BSP का अकेले लड़ने का फैसला बन सकता है ‘गेमचेंजर’
