UP में 50 लाख उपभोक्ताओं के कारण महंगी होगी बिजली:कंपनी का दावा, इन्होंने कभी बिल नहीं जमा किया, 36 हजार करोड़ बकाया

UP में 50 लाख उपभोक्ताओं के कारण महंगी होगी बिजली:कंपनी का दावा, इन्होंने कभी बिल नहीं जमा किया, 36 हजार करोड़ बकाया

यूपी में बिजली उपभोक्ताओं को महंगाई का जोरदार करंट लगने वाला है। बिजली कंपनियों ने दरों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी की सिफारिश की है। कंपनियों का दावा है कि नियामक आयोग ने ये बढ़ोतरी नहीं मानी, तो वे कर्ज के दलदल में धंस जाएंगे। फिर इससे बिजली कंपनियां उबर नहीं पाएंगी। बिजली कंपनियों की इस दयनीय हालत के लिए प्रदेश के 50.24 लाख उपभोक्ता जिम्मेदार हैं। इन उपभोक्ताओं ने कभी बिल भरा ही नहीं। इन पर 36 हजार करोड़ से अधिक बकाया है। वहीं, 78.65 लाख लोगों ने पिछले 6 महीने से बिजली बिल का भुगतान नही किया है। इन पर भी 36,117 करोड़ रुपए का बिल बकाया है। प्रदेश के 23 हजार फीडरों में एक तिहाई पर बिजली लॉस 50 फीसदी से अधिक है। जाहिर सी बात ये है कि इसमें बड़ी मात्रा बिजली चोरी की शामिल है, जिसे बिजली कंपनियां रोक पाने में नाकाम साबित हुई हैं। हैरानी की बात ये है कि बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने पर पिछले 10 साल में कंपनियों ने 70 हजार करोड़ से अधिक खर्च कर डाले। इसके बावजूद बिजली चोरी और ट्रांसफार्मरों के फेल होने की दर को 10 फीसदी से नीचे नहीं ला पाईं। बिजली कंपनियां कैसे कर्ज के दलदल में फंसती चली गईं? बिल न भरने वाले उपभोक्ताओं की भरपाई ईमानदार उपभोक्ताओं से करना कितना उचित होगा? बढ़ते कर्ज से उबरने के लिए क्या महंगी बिजली ही एक मात्र विकल्प है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… प्रदेश की बिजली व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए वितरण कंपनियां हर साल नियामक आयोग को आय-व्यय की रिपोर्ट पेश करती हैं। आय-व्यय के गैप को पूरा करने के लिए बिजली कंपनियां दरें बढ़ाने की अपील करती हैं। फिर नियामक आयोग इस पर दावा-आपत्तियाें की सुनवाई करने के बाद तय करता है कि बिजली कंपनियों की मांग कहां तक जायज है। उसके अनुसार कंपनियां बिजली की दरों को बढ़ाने का आदेश जारी करती हैं। बिजली कंपनियों का तर्क, संभव नहीं 100 फीसदी बिलों की वसूली
कंपनियों का दावा है कि बिजली की दरें तय करते समय नियामक आयोग कलेक्शन एफिशिएंसी को 100 प्रतिशत मानता है। जबकि हकीकत में सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी डिस्कॉम में 100 फीसदी बिलों की वसूली नहीं हो पाती। कंपनियों का तर्क है कि बिजली की दरें तय करते समय 100 फीसदी कलेक्शन एफिशिएंसी मानना अव्यवहारिक है। बिजली सुधार पर 10 साल में 70 हजार करोड़ खर्च
यूपी पावर कॉर्पोरेशन ने बिजली सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर पिछले 10 साल में 70 हजार 792 करोड़ का खर्च कर डाले। इसके बावजूद न बिजली चोरी पर अंकुश लगा पाए और न ही ओवरलोड होने के चलते ट्रांसफर फेल होने की दर कम कर पाए। बिजली विभाग अपने बिलों की वसूली भी नहीं कर पाया। प्रदेश में कुल 3.50 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। इनमें 14 लाख किसान शामिल हैं। इनमें से 1.30 करोड़ उपभोक्ताओं पर बिजली विभाग के 72 हजार करोड़ से अधिक का बकाया है। बिल की वसूली न कर पाना बिजली कंपनियों की लापरवाही का नतीजा है। बिल की वसूली न होने पर ही बिजली कंपनियों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में कुल 23,509 फीडरों से बिजली की सप्लाई होती है। इनमें 7,921 फीडर शहरी और 15,588 फीडर ग्रामीण क्षेत्रों में है। ग्रामीण क्षेत्र के 8,083 फीडरों और शहरी क्षेत्रों के 859 फीडरों में तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियां 50 फीसदी से भी अधिक है। बिजली से जुड़े जानकारों की मानें, तो ये सीधे तौर पर बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन का नतीजा है। 50 फीसदी से अधिक नुकसान का मतलब है कि वहां बिजली चोरी बड़े पैमाने पर हो रही है। इसे रोकने में बिजली विभाग नाकाम है। कंपनियों का खर्च बढ़ता गया, आमदनी घटती गई
वित्तीय वर्ष 2024-25 में यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों का कुल खर्च 1,10,511 करोड़ रहा था। इसमें बिजली खरीदी में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी और रख-रखाव और परिचालन पर 6 फीसदी खर्च बढ़ गया। जबकि इसकी तुलना में बिजली कंपनियां 61,996 करोड़ ही बिल वसूल पाईं। यह पिछले साल से 8 फीसदी कम था। आय और व्यय में 48,515 करोड़ रुपए का गैप था। इस गैप को पूरा करने के लिए यूपी सरकार ने सब्सिडी और अनुदान के तौर पर 37,046 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता दी थी। इसके बावजूद गैप की भरपाई के लिए यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों को 11,469 करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ा। इस कर्ज के लिए भी यूपी सरकार को गारंटी देनी पड़ी। मौजूदा वित्तीय वर्ष में ये गैप 23.5 फीसदी बढ़ गया है। इसकी वजह से कर्ज भी 28 फीसदी बढ़ा है। यूपी पावर कॉर्पोरेशन का दावा है कि बिजली खरीदी, कर्मचारियों के वेतन, रख-रखाव पर खर्च, ब्याज भुगतान और कर्ज चुकाने के लिए बिजली उपभोक्ताओं से बिल का वसूली का अंतर जो वर्ष 2023-24 में 2.92 रुपए प्रति यूनिट था, वो 2024-25 में बढ़कर 3.28 रुपए प्रति यूनिट हो गया है। मतलब साफ है कि बिजली कंपनियां जो बिजली दे रही हैं, उसकी हर यूनिट पर 3.28 रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है। हालत ये है कि बिजली कंपनियां 70,000 करोड़ के कर्ज में डूब गई हैं। इसके ब्याज और कर्ज को चुकाने के लिए भी कंपनियों को अतिरिक्त कर्ज लेना पड़ रहा है। ये निजीकरण के फैसले को सही ठहराने की चाल : शैलेंद्र दुबे
पावर कॉर्पोरेशन के मुताबिक, सरकार इतने बड़े वित्तीय घाटे को असीमित समय तक वहन नहीं कर सकती। इस कर्ज के चलते प्रदेश की कई अन्य जनकल्याण योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। अगर इतनी बड़ी धनराशि प्रदेश की विकास योजनाओं पर खर्च की जाए, तो पुराने ट्रांसफॉर्मर, जर्जर लाइन और बिजली के पोल बदले जा सकते हैं। बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाया जा सकता है। नए विद्युत सबस्टेशन, उपकेंद्रों और लाइनों का निर्माण किया जा सकता है। इसके अलावा सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि एवं औद्योगिक विकास की परियोजनाओं पर खर्च कर प्रदेश के लोगों की जीवन शैली बदली जा सकती है। पावर कॉर्पोरेशन का तर्क है कि बिजली सेक्टर का घाटा प्रदेश के विकास में बाधक है। वहीं, उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे कहते हैं- ये पावर कॉर्पोरेशन का झूठ है। वह निजीकरण के अपने गलत फैसले को सही ठहराने के लिए इस तरह के झूठे आंकड़े पेश कर रहा है। लोगों में ऐसा संदेश देना चाहते हैं कि बिजली की व्यवस्था सरकारी रही, तो प्रदेश का विकास ठप पड़ जाएगा। हकीकत ये है कि निजीकरण से निजी कंपनियों को सिर्फ फायदा होगा। आम जनता को महंगी बिजली का करंट लगता रहेगा। दुबे ने आगरा का उदाहरण देते हुए बताया कि निजीकरण के पहले इसी तरह की वाणिज्यिक और तकनीकी हानियां 54% बताई गई थी, जो वास्तव में 40% के नीचे थीं। इसका खामियाजा यह है कि आज भी आगरा में पावर कॉर्पोरेशन 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर निजी कंपनी को 4.36 रुपए प्रति यूनिट में दे रही है। इसके चलते हर साल 274 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। ‘ऊर्जा मंत्री सच बोल रहे या चेयरमैन’
संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि बैलेंस शीट में तकनीकी हानियां 16.5% दर्शाई गई है। उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने भी कई बार ट्वीट करके यह बताया कि हानियां 41% से घटकर 16.5% रह गई हैं। अब किस आधार पर पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन ऊर्जा मंत्री के बयान के विपरीत हानियों को बढ़ा हुआ बता रहे हैं। और आम जनता पर 30% टैरिफ वृद्धि का भार थोपना चाहते हैं। ऊर्जा मंत्री सच बोल रहे हैं या चेयरमैन। यह फर्जीवाड़ा नहीं है तो और क्या है? यूपी में 5 साल से बिजली की दरों में बढ़ोतरी नहीं
यूपी पावर कॉर्पोरेशन के मुताबिक, 5 साल से बिजली की दरों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। जबकि पिछले 4 साल में यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों का खर्च 8.3 फीसदी बढ़ गया है। वहीं, राजस्व महज 6.7 फीसदी की दर से बढ़ा है। इसके चलते प्रतिवर्ष कैश-गैप 12.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में बिजली खरीदी सहित अन्य खर्चे जहां 80,293 करोड़ थे, वो वर्ष 2024-25 में 1,10,511 करोड़ पहुंच गए। इसकी तुलना में बिल की वसूली 49,846 करोड़ से बढ़कर 61,996 करोड़ ही हो पाई। यूपी पावर कॉर्पोरेशन ने इस बार निर्णय लिया है कि बिजली की दरें तय करने के लिए इस बार पेश किए जा रहे आय-व्यय के साथ वितरण कंपनियों की बैलेंस शीट और कैश फ्लो की वास्तविक स्थिति रखी जाए। आयोग से वास्तविक आधार पर बिजली की दरों को बढ़ाने का आग्रह किया गया है। इस हालत में बिजली की दरों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी से ही गैप की भरपाई संभव है। चार दिन में घाटा 9 हजार करोड़ से 19 हजार करोड़ हो गया
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा कहते हैं- पावर कॉर्पोरेशन के सारे आंकड़े फर्जी हैं। बिजली कंपनी को सरकार पर बोझ दिखाने के लिए ऐसे मनगढ़ंत आंकड़े पेश किए जा रहे हैं। उन्होंने सवाल किए कि 4 दिन पहले यूपी पावर कॉर्पोरेशन की ओर से यूपी नियामक आयोग में जो टैरिफ याचिका पेश की गई थी, उसमें सिर्फ 9,206 करोड़ रुपए का घाटा बताया गया था। 4 दिन बाद कॉर्पोरेशन ने संशोधित टैरिफ याचिका पेश करते हुए इस घाटे को 19,600 करोड रुपए दिखा दिया। पावर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन को इसका जवाब देना चाहिए। साथ में ये भी बताना चाहिए कि निजीकरण के बाद भी क्या सरकार सब्सिडी देगी या नहीं। ———————— ये खबर भी पढ़ें… लंदन में मेयर बनने वाले राजकुमार की कहानी, 3 महीने पहले राजनीति जॉइन की, बोले-मिर्जापुर ने सिखाया निडर रहना मिर्जापुर जिले के भटेवरा गांव के राजकुमार मिश्रा प्राइमरी स्कूल में पढ़े। पढ़ाई में मन नहीं लगता था। स्कूल नहीं जाते तो टीचर पकड़ने आते। इंटर में पहुंचे, तब भी यही रवैया। टीचर ने बोल दिया कि ये 12वीं के बाद पढ़ नहीं पाएगा। लेकिन राजकुमार एक अलग मिट्‌टी के बने थे। बीटेक किया। एमटेक करने लंदन पहुंच गए। एक करोड़ के सालाना पैकेज पर नौकरी मिली। 4 महीने पहले वहीं राजनीति जॉइन की। टाउन काउंसिल बने और अब वेलिंगबोरो के मेयर बन गए हैं। वेलिंगबोरो ब्रिटेन के ईस्ट मिडलैंड्स क्षेत्र में स्थित है। पढ़ें पूरी खबर यूपी में बिजली उपभोक्ताओं को महंगाई का जोरदार करंट लगने वाला है। बिजली कंपनियों ने दरों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी की सिफारिश की है। कंपनियों का दावा है कि नियामक आयोग ने ये बढ़ोतरी नहीं मानी, तो वे कर्ज के दलदल में धंस जाएंगे। फिर इससे बिजली कंपनियां उबर नहीं पाएंगी। बिजली कंपनियों की इस दयनीय हालत के लिए प्रदेश के 50.24 लाख उपभोक्ता जिम्मेदार हैं। इन उपभोक्ताओं ने कभी बिल भरा ही नहीं। इन पर 36 हजार करोड़ से अधिक बकाया है। वहीं, 78.65 लाख लोगों ने पिछले 6 महीने से बिजली बिल का भुगतान नही किया है। इन पर भी 36,117 करोड़ रुपए का बिल बकाया है। प्रदेश के 23 हजार फीडरों में एक तिहाई पर बिजली लॉस 50 फीसदी से अधिक है। जाहिर सी बात ये है कि इसमें बड़ी मात्रा बिजली चोरी की शामिल है, जिसे बिजली कंपनियां रोक पाने में नाकाम साबित हुई हैं। हैरानी की बात ये है कि बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर को सुधारने पर पिछले 10 साल में कंपनियों ने 70 हजार करोड़ से अधिक खर्च कर डाले। इसके बावजूद बिजली चोरी और ट्रांसफार्मरों के फेल होने की दर को 10 फीसदी से नीचे नहीं ला पाईं। बिजली कंपनियां कैसे कर्ज के दलदल में फंसती चली गईं? बिल न भरने वाले उपभोक्ताओं की भरपाई ईमानदार उपभोक्ताओं से करना कितना उचित होगा? बढ़ते कर्ज से उबरने के लिए क्या महंगी बिजली ही एक मात्र विकल्प है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… प्रदेश की बिजली व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए वितरण कंपनियां हर साल नियामक आयोग को आय-व्यय की रिपोर्ट पेश करती हैं। आय-व्यय के गैप को पूरा करने के लिए बिजली कंपनियां दरें बढ़ाने की अपील करती हैं। फिर नियामक आयोग इस पर दावा-आपत्तियाें की सुनवाई करने के बाद तय करता है कि बिजली कंपनियों की मांग कहां तक जायज है। उसके अनुसार कंपनियां बिजली की दरों को बढ़ाने का आदेश जारी करती हैं। बिजली कंपनियों का तर्क, संभव नहीं 100 फीसदी बिलों की वसूली
कंपनियों का दावा है कि बिजली की दरें तय करते समय नियामक आयोग कलेक्शन एफिशिएंसी को 100 प्रतिशत मानता है। जबकि हकीकत में सार्वजनिक क्षेत्र के किसी भी डिस्कॉम में 100 फीसदी बिलों की वसूली नहीं हो पाती। कंपनियों का तर्क है कि बिजली की दरें तय करते समय 100 फीसदी कलेक्शन एफिशिएंसी मानना अव्यवहारिक है। बिजली सुधार पर 10 साल में 70 हजार करोड़ खर्च
यूपी पावर कॉर्पोरेशन ने बिजली सुधार और इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने पर पिछले 10 साल में 70 हजार 792 करोड़ का खर्च कर डाले। इसके बावजूद न बिजली चोरी पर अंकुश लगा पाए और न ही ओवरलोड होने के चलते ट्रांसफर फेल होने की दर कम कर पाए। बिजली विभाग अपने बिलों की वसूली भी नहीं कर पाया। प्रदेश में कुल 3.50 करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं। इनमें 14 लाख किसान शामिल हैं। इनमें से 1.30 करोड़ उपभोक्ताओं पर बिजली विभाग के 72 हजार करोड़ से अधिक का बकाया है। बिल की वसूली न कर पाना बिजली कंपनियों की लापरवाही का नतीजा है। बिल की वसूली न होने पर ही बिजली कंपनियों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में कुल 23,509 फीडरों से बिजली की सप्लाई होती है। इनमें 7,921 फीडर शहरी और 15,588 फीडर ग्रामीण क्षेत्रों में है। ग्रामीण क्षेत्र के 8,083 फीडरों और शहरी क्षेत्रों के 859 फीडरों में तकनीकी एवं वाणिज्यिक हानियां 50 फीसदी से भी अधिक है। बिजली से जुड़े जानकारों की मानें, तो ये सीधे तौर पर बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन का नतीजा है। 50 फीसदी से अधिक नुकसान का मतलब है कि वहां बिजली चोरी बड़े पैमाने पर हो रही है। इसे रोकने में बिजली विभाग नाकाम है। कंपनियों का खर्च बढ़ता गया, आमदनी घटती गई
वित्तीय वर्ष 2024-25 में यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों का कुल खर्च 1,10,511 करोड़ रहा था। इसमें बिजली खरीदी में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी और रख-रखाव और परिचालन पर 6 फीसदी खर्च बढ़ गया। जबकि इसकी तुलना में बिजली कंपनियां 61,996 करोड़ ही बिल वसूल पाईं। यह पिछले साल से 8 फीसदी कम था। आय और व्यय में 48,515 करोड़ रुपए का गैप था। इस गैप को पूरा करने के लिए यूपी सरकार ने सब्सिडी और अनुदान के तौर पर 37,046 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता दी थी। इसके बावजूद गैप की भरपाई के लिए यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों को 11,469 करोड़ रुपए का कर्ज लेना पड़ा। इस कर्ज के लिए भी यूपी सरकार को गारंटी देनी पड़ी। मौजूदा वित्तीय वर्ष में ये गैप 23.5 फीसदी बढ़ गया है। इसकी वजह से कर्ज भी 28 फीसदी बढ़ा है। यूपी पावर कॉर्पोरेशन का दावा है कि बिजली खरीदी, कर्मचारियों के वेतन, रख-रखाव पर खर्च, ब्याज भुगतान और कर्ज चुकाने के लिए बिजली उपभोक्ताओं से बिल का वसूली का अंतर जो वर्ष 2023-24 में 2.92 रुपए प्रति यूनिट था, वो 2024-25 में बढ़कर 3.28 रुपए प्रति यूनिट हो गया है। मतलब साफ है कि बिजली कंपनियां जो बिजली दे रही हैं, उसकी हर यूनिट पर 3.28 रुपए का घाटा उठाना पड़ रहा है। हालत ये है कि बिजली कंपनियां 70,000 करोड़ के कर्ज में डूब गई हैं। इसके ब्याज और कर्ज को चुकाने के लिए भी कंपनियों को अतिरिक्त कर्ज लेना पड़ रहा है। ये निजीकरण के फैसले को सही ठहराने की चाल : शैलेंद्र दुबे
पावर कॉर्पोरेशन के मुताबिक, सरकार इतने बड़े वित्तीय घाटे को असीमित समय तक वहन नहीं कर सकती। इस कर्ज के चलते प्रदेश की कई अन्य जनकल्याण योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। अगर इतनी बड़ी धनराशि प्रदेश की विकास योजनाओं पर खर्च की जाए, तो पुराने ट्रांसफॉर्मर, जर्जर लाइन और बिजली के पोल बदले जा सकते हैं। बिजली के इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाया जा सकता है। नए विद्युत सबस्टेशन, उपकेंद्रों और लाइनों का निर्माण किया जा सकता है। इसके अलावा सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि एवं औद्योगिक विकास की परियोजनाओं पर खर्च कर प्रदेश के लोगों की जीवन शैली बदली जा सकती है। पावर कॉर्पोरेशन का तर्क है कि बिजली सेक्टर का घाटा प्रदेश के विकास में बाधक है। वहीं, उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे कहते हैं- ये पावर कॉर्पोरेशन का झूठ है। वह निजीकरण के अपने गलत फैसले को सही ठहराने के लिए इस तरह के झूठे आंकड़े पेश कर रहा है। लोगों में ऐसा संदेश देना चाहते हैं कि बिजली की व्यवस्था सरकारी रही, तो प्रदेश का विकास ठप पड़ जाएगा। हकीकत ये है कि निजीकरण से निजी कंपनियों को सिर्फ फायदा होगा। आम जनता को महंगी बिजली का करंट लगता रहेगा। दुबे ने आगरा का उदाहरण देते हुए बताया कि निजीकरण के पहले इसी तरह की वाणिज्यिक और तकनीकी हानियां 54% बताई गई थी, जो वास्तव में 40% के नीचे थीं। इसका खामियाजा यह है कि आज भी आगरा में पावर कॉर्पोरेशन 5.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर निजी कंपनी को 4.36 रुपए प्रति यूनिट में दे रही है। इसके चलते हर साल 274 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ रहा है। ‘ऊर्जा मंत्री सच बोल रहे या चेयरमैन’
संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि बैलेंस शीट में तकनीकी हानियां 16.5% दर्शाई गई है। उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा ने भी कई बार ट्वीट करके यह बताया कि हानियां 41% से घटकर 16.5% रह गई हैं। अब किस आधार पर पावर कॉरपोरेशन के चेयरमैन ऊर्जा मंत्री के बयान के विपरीत हानियों को बढ़ा हुआ बता रहे हैं। और आम जनता पर 30% टैरिफ वृद्धि का भार थोपना चाहते हैं। ऊर्जा मंत्री सच बोल रहे हैं या चेयरमैन। यह फर्जीवाड़ा नहीं है तो और क्या है? यूपी में 5 साल से बिजली की दरों में बढ़ोतरी नहीं
यूपी पावर कॉर्पोरेशन के मुताबिक, 5 साल से बिजली की दरों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। जबकि पिछले 4 साल में यूपी पावर कॉर्पोरेशन और वितरण कंपनियों का खर्च 8.3 फीसदी बढ़ गया है। वहीं, राजस्व महज 6.7 फीसदी की दर से बढ़ा है। इसके चलते प्रतिवर्ष कैश-गैप 12.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में बिजली खरीदी सहित अन्य खर्चे जहां 80,293 करोड़ थे, वो वर्ष 2024-25 में 1,10,511 करोड़ पहुंच गए। इसकी तुलना में बिल की वसूली 49,846 करोड़ से बढ़कर 61,996 करोड़ ही हो पाई। यूपी पावर कॉर्पोरेशन ने इस बार निर्णय लिया है कि बिजली की दरें तय करने के लिए इस बार पेश किए जा रहे आय-व्यय के साथ वितरण कंपनियों की बैलेंस शीट और कैश फ्लो की वास्तविक स्थिति रखी जाए। आयोग से वास्तविक आधार पर बिजली की दरों को बढ़ाने का आग्रह किया गया है। इस हालत में बिजली की दरों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी से ही गैप की भरपाई संभव है। चार दिन में घाटा 9 हजार करोड़ से 19 हजार करोड़ हो गया
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा कहते हैं- पावर कॉर्पोरेशन के सारे आंकड़े फर्जी हैं। बिजली कंपनी को सरकार पर बोझ दिखाने के लिए ऐसे मनगढ़ंत आंकड़े पेश किए जा रहे हैं। उन्होंने सवाल किए कि 4 दिन पहले यूपी पावर कॉर्पोरेशन की ओर से यूपी नियामक आयोग में जो टैरिफ याचिका पेश की गई थी, उसमें सिर्फ 9,206 करोड़ रुपए का घाटा बताया गया था। 4 दिन बाद कॉर्पोरेशन ने संशोधित टैरिफ याचिका पेश करते हुए इस घाटे को 19,600 करोड रुपए दिखा दिया। पावर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन को इसका जवाब देना चाहिए। साथ में ये भी बताना चाहिए कि निजीकरण के बाद भी क्या सरकार सब्सिडी देगी या नहीं। ———————— ये खबर भी पढ़ें… लंदन में मेयर बनने वाले राजकुमार की कहानी, 3 महीने पहले राजनीति जॉइन की, बोले-मिर्जापुर ने सिखाया निडर रहना मिर्जापुर जिले के भटेवरा गांव के राजकुमार मिश्रा प्राइमरी स्कूल में पढ़े। पढ़ाई में मन नहीं लगता था। स्कूल नहीं जाते तो टीचर पकड़ने आते। इंटर में पहुंचे, तब भी यही रवैया। टीचर ने बोल दिया कि ये 12वीं के बाद पढ़ नहीं पाएगा। लेकिन राजकुमार एक अलग मिट्‌टी के बने थे। बीटेक किया। एमटेक करने लंदन पहुंच गए। एक करोड़ के सालाना पैकेज पर नौकरी मिली। 4 महीने पहले वहीं राजनीति जॉइन की। टाउन काउंसिल बने और अब वेलिंगबोरो के मेयर बन गए हैं। वेलिंगबोरो ब्रिटेन के ईस्ट मिडलैंड्स क्षेत्र में स्थित है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर