तीसरे बैच में करनाल के 9 युवक अमेरिका से डिपोर्ट:वर्कशॉप मालिक ने खर्च किए थे 45 लाख, जमीन बेचकर पहुंचा अरुण 20 दिन में डिपोर्ट अमेरिका अप्रवासी भारतीयों को डिपोर्ट कर रहा है। डिपोर्टेशन की तीसरी खेप में करनाल जिला के 9 युवक डिपोर्ट होकर घर पहुंच गए। एजेंटों ने अमेरिकन डॉलर में कमाई के सब्जबाग दिखाए और युवा उन झूठे सपनों में इतनी गहराई से घुस गए कि अपनी जमीने बेच दी और मोटा कर्ज उठाकर डंकी से अमेरिका का रुख कर गए। जुंडला गांव का 35 वर्षीय अनुज अपनी कार वर्कशॉप का मालिक था और अमेरिका जाने के लिए 45 लाख रुपए खर्च कर दिए, लेकिन पहुंचा तो उसे डिपोर्ट कर दिया गया। ऐसे ही राहड़ा गांव का अमित अपने भाई की तरह ही विदेश में कमाई करना चाहता था, लेकिन वह भी अमेरिका से डिपोर्ट हो गया। घरौंडा का अरूण पाल अपना आधा एकड़ जमीन का टुकड़ा बेचकर अमेरिका के लिए निकला। वह 14 महीने बाद किसी तरह से अमेरिका पहुंचा तो 20 दिन बाद ही डिपोर्ट कर दिया गया। अब इन लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है और सबसे बड़ी चिंता कि अब कर्ज कैसे उतारेंगे। अरुण की कहानी, उसी की जुबानी.. 50 लाख खर्च किए, 14 महीने बाद अमेरिका पहुंचा, 20 दिन बाद डिपोर्ट अरुण बताता है कि उसकी जान पहचान हिमाचल के एक एजेंट सुनील से हुई थी। जिसने 50 लाख में डिल की थी और 20 दिन में अमेरिका पहुंचाने का वादा किया था। जिसके लिए अरुण ने आधा किला बेच दिया और पैसे ब्याज पर उठाए। अरूण 9 दिसंबर 2023 को घर से दिल्ली के लिए निकल गया था। 9 दिसंबर को दिल्ली से हैदराबाद चला गया। 10 दिसंबर को हैदराबाद से दुबई पहुंचा। एजेंट ने कहा था कि दुबई में 20 दिन लग जाएंगे, लेकिन दुबई में तीन महीने तक रोका गया। मार्च 2024 में दुबई से थाईलैंड पहुंचा, जहां डेढ़ महीने तक रुका रहा। मई महीने में थाईलैंड से लाउस भेजा गया। जहां दो महीने तक रोका गया। लाउस से वापिस भेजा मुंबई अगस्त में लाउस से मुंबई वापस भेज दिया। वहां मुंबई में एक सप्ताह मुंबई रुके और फिर दिल्ली आ गया। यहां से उसकी दोबारा दुबई की फ्लाइट करवाई गई। जहां पर फिर 15 दिन रोका गया। फिर दुबई से वापिस दिल्ली भेज दिया गया। दिल्ली में फिर 15 दिन रखा गया। इसके बाद दिल्ली से साउथ अमेरिका गुवाना का वीजा मिला। फिर दिल्ली से मुंबई पहुंचा और मुंबई से 6 सितंबर 2024 को गुवाना गया। गुवाना में डेढ़ महीना रखा। आगे टेक्सी से ब्राजील पहुंचा। ब्राजील में 58 दिन रखा गया। वहां से टैक्सी की गई और टैक्सी से पेरू पहुंचा। पेरू से बोलीविया। बोलीविया से इक्वाडोर पहुंचा। इक्वाडोर से कोलंबिया और कोलंबिया से कपूर गाना तक का सफर किया। कपूर गाना से किश्ती से पानी का रास्ता तय किया। जो करीब डेढ़ घंटे का था। जिसके बाद कैलेडोनिया पहुंचे। फिर 10 मिनट की कश्ती का सफर किया। उसके बाद पनामा पहुंचे। पनामा का जंगल और खाने के लिए भी देने पड़ते थे डॉलर पनामा जंगल में दो दिन पैदल चले। जंगल में बुरा हाल था। खाने के लिए बीफ और चावल देते है। हमें बीफ खाना नहीं था और कच्चे पक्के चावल दिए जाते थे। उसके लिए भी डोंकर पांच डॉलर तक चार्ज करता था। पनामा के बारे में जैसा सुना था वैसा ही था। कहीं पर लाशें तो कहीं पर कंकाल पड़े होते थे। पनामा से निकलकर कोस्टरेका कंट्री पहुंचे। यही पर फिंगर आइडेंटिफिकेशन हुई। 30 डॉलर का टिकट दिया। इसके बाद निकारगुवाह पहुंचे। निकारगुवाह से होड्रंस और होंड्रस से ग्वाटामाला। ग्वाटामाला से किश्ती का सफर और फिर तपाचोला में पहुंच गए। तपाचोला से मैक्सिको सिटी में पहुंचे। बस से 16 घंटे का सफर था। मेक्सिको से लॉस कंबोस फ्लाइट से आगे पहुंचे। लॉस में दो दिन रुके और फिर टेक्सी। टैक्सी का रास्ता 20 घंटे का था, जबकि तीन घंटे लग गए। लास्ट में तेजवाना बॉर्डर पर पहुंचा। 25 जनवरी को दिन में 12 बजे तेजवाना का बॉर्डर पार किया। गेट से घुसे अमेरिका अरुण ने बताया कि यहां से हम कोई फेंसिंग नहीं कूदे, बल्कि वहां पर एक गेट बना हुआ था। यह गेट अमेरिका से मैक्सिको जाने वाले ट्रकों के लिए खुलता था। गेट खुलने से पहले ही वहीं पर छुप कर बैठ जाते थे और वहां पर गेट खुलते ही अमेरिका में एंट्री कर ली गई। वहां पर बॉर्डर पेट्रोलिंग फोर्स ने उन्हें अरेस्ट कर लिया और तीन घंटे तक वहीं पर सर्दी में बैठाकर रखा। जिसके बाद कैंप में लेकर गए। जहां पर उन्हें यातनाएं दी गई। न तो ढंग से खाने को मिलता था और न ही सोने को। किसी भी टाइम आकर गेट खोल दिया जाता था। एक एक केबिन में 50-50 लोगों को रखा गया था। खाने में भी चिप्स दे देते थे या फिर एक सेब। मेंटली टॉर्चर बहुत ज्यादा किया जाता था। बांधी गई हथकड़ी अरुण ने बताया कि हमारे हाथों और पैरों और पेट पर भी हथकड़ी थी। हमें झूठ बोला गया कि हमें दूसरे कैंप में शिफ्ट कर रहे है, लेकिन बस में बैठाकर हमें आर्मी बेस पर ले गए। वहां पर एक ऑफिसर ने बताया कि सभी को इंडिया डिपोर्ट कर रहे हैं। आर्मी के जहाज में हमें हथकड़ी लगाकर बैठा दिया गया। दो दिन की फ्लाइट तीन जगह पर रुकी थी। अमृतसर लैंड करने से आधे घंटे पहले ही हथकड़ी खोली गई। अगर इस दौरान किसी को टॉयलेट जाना होता था तो उसकी एक हथकड़ी खोली जाती। जिसके बाद वह टॉयलेट जा सकते थे। फ्लाइट में भी खाने के लिए चिप्स और सेब ही दी गई। अमृतसर उतरे तो वहां पर खाना दिया गया और अच्छी तरह से ट्रीट किया गया। वहां से हमें पुलिस अंबाला लेकर आई और अंबाला के बाद करनाल पुलिस लाइन में पहुंचे। जहां से हमारे परिजन हमें लेकर आए। अमृतसर में भी वेरिफिकेशन की गई थी। जुंडला के अनुज की कहानी.. एजेंट के हत्थे कैसे चढ़ा जुंडला का अनुज अनुज की अपनी कार वर्कशॉप है और वह 12वीं तक पढ़ा है। वह उसका पिता अशोक और भाई मनोज वर्कशॉप में काम करते है। अनुज दो बच्चों का पिता भी है। उनके पास असंध का कोई एजेंट अपनी कार की सर्विस करवाने के लिए आता था। उसने अनुज को अपने जाल में फांसना शुरू कर दिया। वह उसे अमेरिका के सपने दिखाने लगा और बताया कि वह एजेंट है और युवकों को विदेश में भेजने का काम करता है और वह उसे भी अमेरिका भेज सकता है। जिससे डॉलर में कमाई आएगी। अनुज के सिर पर अमेरिका की धुन सवार हो गई और उसने अमेरिका जाने का फैसला कर लिया। घर आकर अपने पिता से भी बात की। पिता ने उसे मना भी किया था कि वह यही पर अपना काम करे, लेकिन वह नहीं माना। एजेंट से मिला तो 45 लाख रुपए में डील फाइनल हुई। उसे बताया गया था कि वह मेक्सिको बॉर्डर तक फ्लाइट में लेकर जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 15 दिन में पहुंचाने की हुई थी बात अनुज के भाई मनोज ने बताया कि अनुज 12 दिसंबर को घर से निकला था। बताया गया था कि 15 दिन में अमेरिका पहुंच जाएगा। अनुज दिल्ली से मुंबई, मुंबई से साउथ अमेरिका पहुंचा। आगे का रास्ता टैक्सी से किया गया। उसे बताया गया कि आगे एक चार्टर्ड फ्लाइट है उस तक पहुंचना है। टैक्सी से पेरू के बॉर्डर पर ले गया। पेरू में तीन महीने तक रोका गया। जहां पर उसे अपने ही पैसे खर्च करने पड़े। एजेंट कुछ खर्चा करता था। अनुज को बार-बार पैसे के लिए तंग किया जाता था। मनोज ने बताया कि एजेंट को सबसे पहली किस्त 20 लाख रुपए की दी गई थी। जब अनुज रास्ते में था तो एजेंट बार-बार पैसों की डिमांड करता। अगर पैसे नहीं देते तो वह कहता था कि अनुज ऐसे ही बीच में फंसा रहेगा। फिर 10 लाख और फिर 5 लाख रुपए की किस्त दी गई। इसके अलावा और भी लाखों रुपए ऐंठे गए। अनुज 25 जनवरी को अमेरिका में एंट्री कर गया था, लेकिन वहां पर उसे अमेरिका के जवानों ने पकड़ लिया और वहां पर उसे कैंप में लेकर चले गए। कैंप के दौरान उसने भी बहुत यातनाएं सही। उसको न तो खाने को ढंग से मिलता था और नही सोने को। बुरा हाल हो चुका था। 20 दिन बाद अमेरिका ने उसे डिपोर्ट कर दिया। हाथों में हथकड़ी लगाकर उसे आर्मी के जहाज में बैठाया गया और वापिस इंडिया छोड़ दिया गया। अब वह घर लौट आया है। वह सुरक्षित है। अब घर बेचकर कर्ज उतारेंगे अनुज के पिता अशोक कहते है कि उसका बेटा अमेरिका गया। उसने इधर उधर से पैसे एकत्रित किए और एजेंट को दिए। अब कर्ज सिर पर है। अब अपना घर बेचकर लोगों के पैसे वापिस करेंगे। अब कुछ नहीं बचा है। अब फिर उसी रूटीन में अनुज हमारे साथ वर्कशॉप में काम करेगा। राहड़ा के अमित ने 40-45 लाख खर्च करके लगाई डंकी करनाल जिले के गांव राहड़ा का 22 वर्षीय अमित करीब चार महीने पहले अमेरिका गया था। वह जैसे ही मेक्सिको बॉर्डर पार कर अमेरिका में घुसा, वहीं उसे पकड़कर कैंप में डाल दिया गया। अब चार महीने बाद उसे डिपोर्ट कर दिया गया। अमित के एक परिचित ने बताया कि उसका भाई ग्रीस में काम करता है और उसी ने अमेरिका भेजने के लिए 40-45 लाख रुपए दिए थे और कुछ पैसे परिवार की तरफ से एकत्रित किए गए थे। परिवार में दो भाई और दो बहने हैं, बहनों की शादी हो चुकी है। अमित का परिवार मीडिया के सामने आने से बच रहा है।