कोविड के दौरान गंभीर मरीजों के इलाज के लिए स्टेरॉयड की जरूरत पड़ी थी। ऐसे मरीजों में अब लॉन्ग टर्म कोविड इम्पैक्ट सामने आ रहा है। इन मरीजों को अब हिप ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत पड़ रही है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि इनमें बड़ी संख्या ऐसे मरीज हैं जिनकी ऐज बहुत कम है। इन मरीजों में सर्जरी के अलावा कोई अन्य विकल्प न होने के कारण ट्रांसप्लांट करना पड़ रहा है। ये कहना है KGMU के लिंब सेन्टर और फिजिकल रिहैबिलिटेशन विंग के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. नरेंद्र सिंह कुशवाहा का। उनका कहना है कि हर OPD में 30% तक मरीज ट्रांसप्लांट की कंडीशन में पहुंच रहे हैं। कैंपस@लखनऊ सीरीज के 62वें एपिसोड में KGMU लिंब सेंटर के ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रोफेसर डॉ.नरेंद्र सिंह से खास बातचीत… कम उम्र में ट्रांसप्लांट के केस बढ़े डॉ. नरेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा- ज्यादातर ऐसे मरीजों सेकेंड वेव के दौरान कोविड से संक्रमित हुए थे। इनके इलाज में तब स्टेरॉयड का प्रयोग किया गया। पर आज एंड स्टेज की कंडीशन में KGMU पहुंच रहे हैं। सर्जरी के जरिए इनका इलाज करना पड़ रहा है। ऐसे ही कम उम्र के मरीजों में घुटनों के रिप्लेसमेंट सर्जरी भी करनी पड रही है। पहले आम तौर पर ये सर्जरी 60 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों में की जाती थी पर अब युवा अवस्था के मरीजों में भी इसकी जरूरत पड़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी मरीज बढ़े डॉ. नरेंद्र कहते है कि पहले ट्रांसप्लांट की जरूरत ज्यादातर शहरी क्षेत्र के मरीजों को पड़ती थी। पर अब ये समस्या ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों में भी देखी जा रही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण दोनों जगह की लाइफ स्टाइल और खान-पान लगभग एक जैसा होना भी है। इनमें पुरुष और महिलाओं के लगभग सामान्य अनुपात देखा जा रहा। कोविड के दौरान गंभीर मरीजों के इलाज के लिए स्टेरॉयड की जरूरत पड़ी थी। ऐसे मरीजों में अब लॉन्ग टर्म कोविड इम्पैक्ट सामने आ रहा है। इन मरीजों को अब हिप ट्रांसप्लांट कराने की जरूरत पड़ रही है। सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि इनमें बड़ी संख्या ऐसे मरीज हैं जिनकी ऐज बहुत कम है। इन मरीजों में सर्जरी के अलावा कोई अन्य विकल्प न होने के कारण ट्रांसप्लांट करना पड़ रहा है। ये कहना है KGMU के लिंब सेन्टर और फिजिकल रिहैबिलिटेशन विंग के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. नरेंद्र सिंह कुशवाहा का। उनका कहना है कि हर OPD में 30% तक मरीज ट्रांसप्लांट की कंडीशन में पहुंच रहे हैं। कैंपस@लखनऊ सीरीज के 62वें एपिसोड में KGMU लिंब सेंटर के ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रोफेसर डॉ.नरेंद्र सिंह से खास बातचीत… कम उम्र में ट्रांसप्लांट के केस बढ़े डॉ. नरेंद्र सिंह कुशवाहा ने कहा- ज्यादातर ऐसे मरीजों सेकेंड वेव के दौरान कोविड से संक्रमित हुए थे। इनके इलाज में तब स्टेरॉयड का प्रयोग किया गया। पर आज एंड स्टेज की कंडीशन में KGMU पहुंच रहे हैं। सर्जरी के जरिए इनका इलाज करना पड़ रहा है। ऐसे ही कम उम्र के मरीजों में घुटनों के रिप्लेसमेंट सर्जरी भी करनी पड रही है। पहले आम तौर पर ये सर्जरी 60 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों में की जाती थी पर अब युवा अवस्था के मरीजों में भी इसकी जरूरत पड़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी मरीज बढ़े डॉ. नरेंद्र कहते है कि पहले ट्रांसप्लांट की जरूरत ज्यादातर शहरी क्षेत्र के मरीजों को पड़ती थी। पर अब ये समस्या ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों में भी देखी जा रही है। इसके पीछे एक बड़ा कारण दोनों जगह की लाइफ स्टाइल और खान-पान लगभग एक जैसा होना भी है। इनमें पुरुष और महिलाओं के लगभग सामान्य अनुपात देखा जा रहा। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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हिसार में ट्रेन से कटकर शख्स ने किया सुसाइड:धड़ से सिर हुआ अलग; नहीं हुई पहचान; परिजनों की तलाश में जुटी पुलिस
हिसार में ट्रेन से कटकर शख्स ने किया सुसाइड:धड़ से सिर हुआ अलग; नहीं हुई पहचान; परिजनों की तलाश में जुटी पुलिस हिसार जिले में आदमपुर मंडी के रेलवे स्टेशन पर करीब 52 वर्षीय व्यक्ति ने ट्रेन के आगे आकर सुसाइड कर लिया। घटना की सूचना मिलते ही मौके पर जीआरपी पुलिस मौके पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए नागरिक अस्पताल में भिजवा दिया। फिलहाल मृतक की पहचान नहीं हो पाई है। जीआरपी थाना पुलिस जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने बताया कि उन्हें सुबह करीब 6 बजे सूचना मिली कि रेल की पटरी पर एक शव पड़ा है। मौके पर पहुंचकर देखा तो व्यक्ति ने ट्रेन के आगे सुसाइड किया हुआ था। सिर से अलग हुआ धड़ उन्होंने बताया कि ट्रेन के नीचे आने से अज्ञात व्यक्ति का सिर धड़ से अलग हो है। जिसने बादामी रंग की टी शर्ट नीली पेंट पहन रखी हैं। मृतक व्यक्ति की हाइट करीब साढ़े 5 फी है। परिजनों की तलाश में जुटी पुलिस उन्होंने बताया कि फिलहाल शव का पोस्टमॉर्टम कराकर 72 घंटों के लिए नागरिक अस्पताल की मॉर्च्युरी में रखवा दिया है। शव की जेब से एक टिकट मिली है। शव की पहचान नही हो पाई है।जांच अधिकारी महेंद्र सिंह ने कहा कि मृतक के परिजनों की तलाश की जा रही है।
UP का हाशिमपुरा नरसंहार,10 दोषियों को SC से जमानत:PAC जवानों ने 1987 में 38 मुस्लिमों को गोली मारी थी; 31 साल बाद सजा, 6 साल में बेल
UP का हाशिमपुरा नरसंहार,10 दोषियों को SC से जमानत:PAC जवानों ने 1987 में 38 मुस्लिमों को गोली मारी थी; 31 साल बाद सजा, 6 साल में बेल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 10 दोषियों को जमानत दे दी। मामला साल 1987 का है। UP के प्रॉविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टब्युलरी (PAC) के अफसरों और जवानों ने 42 से 45 लोगों को गोली मारी थी। इसमें 38 लोगों की मौत हुई थी। न्यूज वेबसाइट लाइव लॉ के मुताबिक जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने पेश सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा था। ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एडवोकेट तिवारी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन सभी 2018 से जेल में हैं। इस वजह से उन्हें जमानत दी जाए। क्या है हाशिमपुरा नरसंहार
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार साल 1987 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सांप्रदायिक तनाव चल रहा था। इसे लेकर PAC और सेना ने शहर के हाशिमपुरा इलाके में सर्च ऑपरेशन चलाया। इस दौरान PAC की दो राइफलें लूट ली गईं और एक मेजर के रिश्तेदार की हत्या कर दी गई। इसके बाद PAC ने करीब 42-45 जवान और बूढ़े लोगों को पकड़ा और उन्हें 41वीं बटालियन की सी-कंपनी के पीले रंग के ट्रक में भरकर ले गए। हालांकि, उन्हें थाने ले जाने के बजाय गाजियाबाद के पास एक नहर पर ले जाया गया। वहां PAC जवानों ने उन लोगों को गोली मार दी। कुछ शवों को गंग नहर में और बाकी को हिंडन नदी में फेंक दिया। इसमें 38 लोग मारे गए। ज्यादातर के शव तक नहीं मिले। सिर्फ 11 शवों की पहचान उनके रिश्तेदारों ने की। हालांकि, पांच लोग बच गए। गोलीबारी के दौरान उन्होंने मरने का नाटक किया और पानी से तैरकर निकल गए। मामले को उनकी गवाही को आधार पर बनाया गया। 9 साल बाद चार्जशीट दायर हुई
घटना ने अल्पसंख्यकों को हिलाकर रख दिया। मामले की जांच CB-CID (क्राइम ब्रांच-क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट) को सौंपी गई। इस वीभत्स घटना के करीब 9 साल बाद 1996 में गाजियाबाद की क्रिमिनल कोर्ट में चार्जशीट दायर हुई। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से पता चलता है कि गाजियाबाद कोर्ट ने तीन साल में 20 से ज्यादा वारंट जारी किए, लेकिन सभी बेनतीजा रहे। कुछ समय बाद पीड़ितों के परिवारों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामला दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। सबूतों के चलते ट्रायल कोर्ट से सभी आरोपी बरी
मई, 2006 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण, सबूत मिटाने और दंगा करने के अलावा अन्य मामलों में 19 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। हालांकि, लापरवाही यहां खत्म नहीं हुई। आरोपियों के बयान करीब 8 साल बाद मई, 2014 में दर्ज हुए। इस दौरान तीन आरोपियों की मौत भी हो गई। अगले साल, यानी 2015 में बाकी बचे सभी 16 आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हत्या से आरोपियों को जोड़ने के लिए जरूरी सबूत गायब थे। 31 साल बाद मिला इंसाफ, सभी को उम्रकैद
ट्रायल कोर्ट के फैसले को पीड़ितों और उनके परिवारों ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। आगे की जांच के लिए कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को हस्तक्षेप करने की मंजूरी दी। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सबूत जोड़ने की भी अनुमति दी। हाईकोर्ट ने सभी को IPC की धारा 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत मिटाने), 120-B (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी माना। घटना के करीब 31 साल बाद 31 अक्टूबर, 2018 हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, दोषी साबित होने के बाद सभी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जो लंबित है। हाईकोर्ट बोला- अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग हुई
हाईकोर्ट ने हाशिमपुरा नरसंहार को मर्डर इन कस्टडी (हिरासत में हत्या) माना। कोर्ट ने कहा- यह अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग थी। यह पीड़ितों के लिए लंबी और कठिन लड़ाई रही। उत्तर प्रदेश की CB-CID ने अपनी रिपोर्ट में PAC के 66 जवानों को दोषी ठहराया था। ——————————————————– ये खबरें भी पढ़ें… नई मस्जिद बनाने के पैसे नहीं; ट्रस्ट बोला- लोग अब मस्जिद भूल गए 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया। हिंदू-मुस्लिम पक्ष को अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाने के लिए जमीनें मिलीं। ‘राम मंदिर’ के नाम पर चुनाव लड़े गए। मंदिर बना और इसका भव्य उद्घाटन पूरी दुनिया ने देखा, लेकिन मस्जिद की अब तक नींव भी नहीं खोदी गई है। पूरी खबर पढ़ें… बाबरी विध्वंस देखा सबने लेकिन सजा किसी को नहीं, 32 साल गुजरे 3 दिसंबर, 1992, शाम करीब साढ़े 4 बजे का वक्त था। कुछ पत्रकार अयोध्या में बाबरी मस्जिद के करीब बने मंच के पास पहुंचे। वहां ट्यूबवेल लगा हुआ था। कारसेवक पाइपलाइन बिछाने के लिए गड्ढा खोद रहे थे। जहां कारसेवा होनी थी, वहां तक पानी पहुंचाना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा रखा था। पूरी खबर पढ़ें…
ऋषिकेश स्कूल में छात्रा से ‘तिलक’ हटाने का मामला, विवाद के बाद स्कूल प्रशासन ने मांगी माफी
ऋषिकेश स्कूल में छात्रा से ‘तिलक’ हटाने का मामला, विवाद के बाद स्कूल प्रशासन ने मांगी माफी <p style=”text-align: justify;”><strong>Rishikesh News:</strong> ऋषिकेश के एक निजी धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल में कक्षा आठवीं की एक छात्रा से ‘तिलक’ हटाने की मांग ने नए विवाद को जन्म दे दिया है. इस घटना के बाद छात्रा के माता-पिता और स्थानीय संगठनों ने कड़ा विरोध जताया, जिसके बाद स्कूल प्रशासन को माफी मांगनी पड़ी. मामला बुधवार का है, जब एक शिक्षक ने छात्रा को उसके माथे पर लगे ‘तिलक’ को हटाने का निर्देश दिया. </p>
<p style=”text-align: justify;”>शिक्षक ने दावा किया कि स्कूल के नियमों में ‘तिलक’ लगाने की अनुमति नहीं है. छात्रा ने शिक्षक के कहने पर तिलक हटा तो दिया, लेकिन इस घटना से वह मानसिक रूप से आहत हुई. घर पहुंचने पर उसने अपने माता-पिता को घटना की जानकारी दी. अगले दिन छात्रा के माता-पिता स्कूल पहुंचे. उनके साथ स्थानीय लोग और एक दक्षिणपंथी संगठन के सदस्य भी थे. उन्होंने स्कूल प्रशासन से इस मामले पर जवाब मांगा और कड़ा विरोध जताया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>’तिलक लगाना हमारी संस्कृति'</strong><br />विरोध का नेतृत्व कर रहे संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजीव भटनागर ने कहा, “तिलक लगाना हमारी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. हिंदू समुदाय के बच्चों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. शिक्षक द्वारा जबरदस्ती तिलक हटवाना न केवल अनुचित है बल्कि यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला भी है. हमने इसका विरोध किया, जिसके बाद स्कूल प्रशासन ने अपनी गलती स्वीकार की और भविष्य में इस तरह की घटनाओं के न दोहराए जाने का आश्वासन दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”>प्रिंसिपल ने स्पष्ट किया कि विद्यालय में तिलक लगाने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि शिक्षक का यह कदम व्यक्तिगत निर्णय था और इसका विद्यालय के नियमों से कोई संबंध नहीं है. प्रिंसिपल ने माफी मांगते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोका जाएगा और सभी शिक्षकों को इस संबंध में निर्देश दिए जाएंगे. इस घटना के बाद उत्तराखंड राज्य शिक्षा विभाग की महानिदेशक झरना कमठान ने टिहरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी को मामले की जांच करने और स्कूल से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया है. </p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने कहा कि छात्रों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक है और किसी भी तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इस घटना के बाद स्थानीय स्तर पर व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिली. स्थानीय संगठनों और अभिभावकों ने कहा कि स्कूलों को धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करना चाहिए. उनका मानना है कि तिलक जैसे धार्मिक प्रतीकों को लेकर स्कूल प्रशासन को अधिक संवेदनशील और जागरूक होने की आवश्यकता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>स्कूल प्रबंधन ने मांगी माफी </strong><br />विद्यालय प्रशासन ने मामले को शांत करने के लिए माफी मांग ली है और शिक्षक की गलती स्वीकार कर ली गई है. साथ ही, भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए पुख्ता कदम उठाने का आश्वासन दिया गया है. हालांकि, यह घटना एक बार फिर यह सवाल खड़ा करती है कि धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को लेकर समाज में जागरूकता और सहिष्णुता की कितनी आवश्यकता है. राज्य शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि इस मामले से स्कूल प्रशासन और शिक्षक संवेदनशील होकर छात्रों के धार्मिक विश्वासों का सम्मान करेंगे.</p>
<p style=”text-align: justify;”>ये भी पढ़ें : <a href=”https://www.abplive.com/states/up-uk/pickup-overturned-out-of-control-on-purvanchal-expressway-in-amethi-ann-2842180″><strong>Road Accident: पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर मजदूरों से भरी पिकअप पलटी, एक व्यक्ति की मौत, चार घायल</strong></a></p>