बाराबंकी का निजामपुर गांव। करीब 30 घर हैं। सभी दलित वर्ग के हैं। पहली बार इस गांव के एक लड़के ने 10वीं की परीक्षा पास की है। रामसेवक शादियों में सिर पर रोड लाइट उठाता था। वहां से देर रात लौटता, तो 1-2 घंटे पढ़ाई करता। जो कुछ नहीं समझ आता, वह उसे नोट करता और फिर अपने टीचर से पूछता था। 55% नंबर के साथ पास हुआ, तो डीएम ने मिलने बुलाया। इस दिन पहली बार रामसेवक ने जूता पहना था। निजामपुर गांव के लिए यह एक उपलब्धि है। गांव का माहौल बदला हुआ है। इस बदले हुए माहौल और रामसेवक के संघर्ष को करीब से देखने दैनिक भास्कर की टीम गांव पहुंची। रामसेवक से मिली। उनके मां-बाप और बहन से बात की। उस बच्चे से भी मिले जो फेल हो गया। गांव के लोगों का पढ़ाई के प्रति अब क्या नजरिया है, यह भी करीब से समझा। पढ़िए पहली बार गांव में 10वीं पास करने वाले लड़के की कहानी… गांव में 300 लोग सभी का पेशा मजदूरी
बाराबंकी जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर निजामपुर है। यह अहमदपुर ग्राम पंचायत का एक मजरा है। गांव में जाने के लिए पक्की सड़क है। जहां से गांव शुरू होता है, वहीं सरकारी प्राइमरी स्कूल है। इसी के दूसरी साइड एक मंदिर है। पूरे गांव की कुल आबादी 250 से 300 के बीच है। इन घरों के जो मुखिया हैं, सभी मजदूरी करते हैं। कुछ यहीं, तो कुछ दूसरे जिले या राज्य में। शिक्षा के मामले में यह गांव इतना पिछड़ा है कि इस साल से पहले यहां किसी ने 10वीं की परीक्षा ही नहीं पास की थी। इस साल 15 साल के रामसेवक ने गांव के 78 साल के पिछड़ेपन को मिटाने की कोशिश में 10वीं की परीक्षा पास कर ली। रामसेवक का स्कूली नाम रामकेवल है। लेकिन, लोग उन्हें रामसेवक नाम से ही बुलाते हैं। हम घर पहुंचे। दो कमरों का घर है। एक कमरे में जानवरों के लिए भूसा रखा है, दूसरे में पूरा परिवार रहता है। दोनों कमरों के सामने एक घास-फूस का छप्पर पड़ा है, जिसमें सभी लोग सोते हैं। घर में बिजली नहीं है। घर के सामने ही विधायक कोटे से मिली एक सोलर लाइट लगी है। रामसेवक से हमारी बातचीत शुरू हुई। पहला सवाल ही यही था कि पढ़ाई करना है, इसका ख्याल कब और कैसे आया? सिर पर रोड लाइट उठाता फिर रात में पढ़ता
रामसेवक कहता है- गांव में प्राइमरी स्कूल था। इसलिए पहली क्लास से यहीं पढ़ाई की शुरुआत की। इसके बाद छठी क्लास के लिए गांव से ही करीब 500 मीटर दूर राजकीय इंटर कॉलेज है, वहां जाकर एडमिशन करवाया। सारे क्लास में अच्छे नंबर के साथ पास होता चला गया। 10वीं क्लास में गया तो स्कूल में जो भी टेस्ट होता उसकी अच्छे से तैयारी करता और फिर उसमें शामिल होता था। हम पढ़ाई करते तो आसपास के लोग कहते कि क्या ही कर लोगे? तुम 10वीं पास नहीं हो पाओगे। तब मैं उनसे कहता कि मैं पास होकर दिखाऊंगा। रामसेवक तीन भाइयों में सबसे बड़ा है, इसलिए उसके ऊपर परिवार के खर्च की भी जिम्मेदारी है। इसे लेकर वह कहता है- गरीबी ऐसी चीज है कि सब कुछ करवाती है। शादियों के सीजन में मैं रात में सिर पर लाइट उठाता था। इसके बदले 200-300 रुपए मिल जाते थे। जब शादियां नहीं होती थीं, तब कहीं जाकर मजदूरी कर लेता था। इससे जो पैसा मिलता था, उसी से कॉपी-किताब खरीदता और फीस भरता था। 10वीं में हमने 2100 रुपए फीस जमा की थी। हमने पूछा कि जब इतना कुछ करते थे, तो पढ़ते कब थे? रामसेवक कहता है, शादियों में लाइट उठाने के बाद जब देर रात जब लौटता था, तब यहीं छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करता था। डीएम ने मिलने बुलाया तो टीचर्स ने कपड़े-जूते खरीदकर दिए
गांव में पहली बार 10वीं की परीक्षा पास करने पर रामसेवक को बाराबंकी के डीएम शशांक त्रिपाठी ने मिलने के लिए बुलाया। उसके पास न तो कपड़े थे, न ही जूते। राजकीय इंटर कॉलेज के टीचर्स ने रामसेवक के लिए कपड़े और जूते खरीदे। यह पहला मौका था, जब रामसेवक ने जूता पहना था। पैर की उंगलियां फैली थीं, जूते में आ नहीं रही थीं। किसी तरह से पहना और डीएम से मिलने पहुंचा। डीएम ने सम्मानित किया और आगे की पढ़ाई के लिए फीस माफ कर दी। हमने रामसेवक से पूछा कि क्या सच में कभी जूता नहीं पहना? वह कहता है- जूता पहनना तो चाहते थे, अच्छा भी लगता है, लेकिन गरीबी ऐसी थी कि कभी जूता खरीद ही नहीं पाए। हमने आगे पूछा कि डीएम साहब से और क्या बात हुई? रामसेवक कहता है, उन्होंने हमसे पूछा कि कैसे पढ़ाई की तो हमने सब कुछ बताया। फिर उन्होंने कहा कि आगे की फीस आपकी माफ कर दी जाएगी। आप मन लगाकर पढ़ाई कीजिए। मुझे नहीं भरोसा था कि बेटा पास हो पाएगा
रामसेवक की मां पुष्पा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में खाना बनाती हैं। उनके 3 बेटे और 2 बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। रामसेवक 10वीं पास हुआ है। उससे छोटा एक भाई 9वीं में, दूसरा 5वीं में है। बहन कक्षा-1 में पढ़ रही है। पुष्पा कहती हैं- मैंने 5वीं तक पढ़ाई की थी। हमारे मन में हमेशा यह रहता था कि हमारे बच्चे पढ़ें, लेकिन गरीबी देखकर दुख होता है। किसी तरह से इधर-उधर उधार लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। हमें एक बार भी नहीं लगा कि हमारा बच्चा 10वीं में पास हो पाएगा। क्योंकि, हमारे यहां पढ़ाई की कोई व्यवस्था ही नहीं है। रामसेवक के पिता जगदीश प्रसाद कहते हैं- हम पढ़ाई नहीं कर पाए। शुरुआत से ही मजदूरी कर रहे हैं। बेटे को भी अपने साथ लेकर जाते हैं। वहां से लौटने पर बेटा पढ़ाई करता था। जो फेल हुए उन्हें रामसेवक से प्रेरणा मिली
इस गांव में लवलेश और मुकेश ने भी 10वीं की परीक्षा दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाए। हम लवलेश से मिले। वह कहता है- परिवार में इसके पहले भइया ने 9वीं तक की पढ़ाई की थी। हमने इस बार 10वीं दी थी, लेकिन फेल हो गया। लवलेश के पिता ननकू कहते हैं- इस साल फिर से बेटे का नाम लिखवाएंगे। हम 8वीं तक पढ़े हैं, खेती-किसानी करते हैं। लेकिन, हम नहीं चाहते कि हमारी तरह बेटे मजदूरी करें। पढ़-लिख लेंगे, तो कुछ अच्छा कर लेंगे। पढ़ाई से ही कुछ बदलाव होगा। रामसेवक इंजीनियर बनना चाहता है। लेकिन जब वह अपने सपने को लेकर बात करता है, तो उसकी जुबान लड़खड़ा जाती है। उसे यकीन ही नहीं होता। यकीन होने में वक्त लगेगा। हम इस गांव के कई और लोगों से मिले। रामसेवक की इस सफलता से उन्हें एक उम्मीद मिल गई। खासकर महिलाएं बेहद खुश हैं। वह कहती हैं, हम भी अपने बच्चों को आगे तक पढ़ाएंगे। —————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी के टॉपर्स की दिल को छूने वाली कहानी, किसी के पिता मजदूर तो किसी के पेंटर; गरीबी से लड़कर पाया मुकाम मेहनत-लगन से हर मंजिल आसान होती है। यूपी बोर्ड के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के रिजल्ट में भी यही देखने को मिला। कठिन परिस्थितियां भी टॉपर्स को रोक नहीं पाईं। 12वीं में प्रयागराज की जिस महक जायसवाल ने प्रदेशभर में टॉप किया है, उनके पिता परचून की दुकान चलाते हैं। इसी तरह बुलंदशहर में पेंटर-गार्ड का काम करने वाले के बेटे ने हाईस्कूल में जिला टॉप किया है। पढ़ें पूरी खबर बाराबंकी का निजामपुर गांव। करीब 30 घर हैं। सभी दलित वर्ग के हैं। पहली बार इस गांव के एक लड़के ने 10वीं की परीक्षा पास की है। रामसेवक शादियों में सिर पर रोड लाइट उठाता था। वहां से देर रात लौटता, तो 1-2 घंटे पढ़ाई करता। जो कुछ नहीं समझ आता, वह उसे नोट करता और फिर अपने टीचर से पूछता था। 55% नंबर के साथ पास हुआ, तो डीएम ने मिलने बुलाया। इस दिन पहली बार रामसेवक ने जूता पहना था। निजामपुर गांव के लिए यह एक उपलब्धि है। गांव का माहौल बदला हुआ है। इस बदले हुए माहौल और रामसेवक के संघर्ष को करीब से देखने दैनिक भास्कर की टीम गांव पहुंची। रामसेवक से मिली। उनके मां-बाप और बहन से बात की। उस बच्चे से भी मिले जो फेल हो गया। गांव के लोगों का पढ़ाई के प्रति अब क्या नजरिया है, यह भी करीब से समझा। पढ़िए पहली बार गांव में 10वीं पास करने वाले लड़के की कहानी… गांव में 300 लोग सभी का पेशा मजदूरी
बाराबंकी जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर निजामपुर है। यह अहमदपुर ग्राम पंचायत का एक मजरा है। गांव में जाने के लिए पक्की सड़क है। जहां से गांव शुरू होता है, वहीं सरकारी प्राइमरी स्कूल है। इसी के दूसरी साइड एक मंदिर है। पूरे गांव की कुल आबादी 250 से 300 के बीच है। इन घरों के जो मुखिया हैं, सभी मजदूरी करते हैं। कुछ यहीं, तो कुछ दूसरे जिले या राज्य में। शिक्षा के मामले में यह गांव इतना पिछड़ा है कि इस साल से पहले यहां किसी ने 10वीं की परीक्षा ही नहीं पास की थी। इस साल 15 साल के रामसेवक ने गांव के 78 साल के पिछड़ेपन को मिटाने की कोशिश में 10वीं की परीक्षा पास कर ली। रामसेवक का स्कूली नाम रामकेवल है। लेकिन, लोग उन्हें रामसेवक नाम से ही बुलाते हैं। हम घर पहुंचे। दो कमरों का घर है। एक कमरे में जानवरों के लिए भूसा रखा है, दूसरे में पूरा परिवार रहता है। दोनों कमरों के सामने एक घास-फूस का छप्पर पड़ा है, जिसमें सभी लोग सोते हैं। घर में बिजली नहीं है। घर के सामने ही विधायक कोटे से मिली एक सोलर लाइट लगी है। रामसेवक से हमारी बातचीत शुरू हुई। पहला सवाल ही यही था कि पढ़ाई करना है, इसका ख्याल कब और कैसे आया? सिर पर रोड लाइट उठाता फिर रात में पढ़ता
रामसेवक कहता है- गांव में प्राइमरी स्कूल था। इसलिए पहली क्लास से यहीं पढ़ाई की शुरुआत की। इसके बाद छठी क्लास के लिए गांव से ही करीब 500 मीटर दूर राजकीय इंटर कॉलेज है, वहां जाकर एडमिशन करवाया। सारे क्लास में अच्छे नंबर के साथ पास होता चला गया। 10वीं क्लास में गया तो स्कूल में जो भी टेस्ट होता उसकी अच्छे से तैयारी करता और फिर उसमें शामिल होता था। हम पढ़ाई करते तो आसपास के लोग कहते कि क्या ही कर लोगे? तुम 10वीं पास नहीं हो पाओगे। तब मैं उनसे कहता कि मैं पास होकर दिखाऊंगा। रामसेवक तीन भाइयों में सबसे बड़ा है, इसलिए उसके ऊपर परिवार के खर्च की भी जिम्मेदारी है। इसे लेकर वह कहता है- गरीबी ऐसी चीज है कि सब कुछ करवाती है। शादियों के सीजन में मैं रात में सिर पर लाइट उठाता था। इसके बदले 200-300 रुपए मिल जाते थे। जब शादियां नहीं होती थीं, तब कहीं जाकर मजदूरी कर लेता था। इससे जो पैसा मिलता था, उसी से कॉपी-किताब खरीदता और फीस भरता था। 10वीं में हमने 2100 रुपए फीस जमा की थी। हमने पूछा कि जब इतना कुछ करते थे, तो पढ़ते कब थे? रामसेवक कहता है, शादियों में लाइट उठाने के बाद जब देर रात जब लौटता था, तब यहीं छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करता था। डीएम ने मिलने बुलाया तो टीचर्स ने कपड़े-जूते खरीदकर दिए
गांव में पहली बार 10वीं की परीक्षा पास करने पर रामसेवक को बाराबंकी के डीएम शशांक त्रिपाठी ने मिलने के लिए बुलाया। उसके पास न तो कपड़े थे, न ही जूते। राजकीय इंटर कॉलेज के टीचर्स ने रामसेवक के लिए कपड़े और जूते खरीदे। यह पहला मौका था, जब रामसेवक ने जूता पहना था। पैर की उंगलियां फैली थीं, जूते में आ नहीं रही थीं। किसी तरह से पहना और डीएम से मिलने पहुंचा। डीएम ने सम्मानित किया और आगे की पढ़ाई के लिए फीस माफ कर दी। हमने रामसेवक से पूछा कि क्या सच में कभी जूता नहीं पहना? वह कहता है- जूता पहनना तो चाहते थे, अच्छा भी लगता है, लेकिन गरीबी ऐसी थी कि कभी जूता खरीद ही नहीं पाए। हमने आगे पूछा कि डीएम साहब से और क्या बात हुई? रामसेवक कहता है, उन्होंने हमसे पूछा कि कैसे पढ़ाई की तो हमने सब कुछ बताया। फिर उन्होंने कहा कि आगे की फीस आपकी माफ कर दी जाएगी। आप मन लगाकर पढ़ाई कीजिए। मुझे नहीं भरोसा था कि बेटा पास हो पाएगा
रामसेवक की मां पुष्पा गांव के ही प्राइमरी स्कूल में खाना बनाती हैं। उनके 3 बेटे और 2 बेटियां हैं। सबसे बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। रामसेवक 10वीं पास हुआ है। उससे छोटा एक भाई 9वीं में, दूसरा 5वीं में है। बहन कक्षा-1 में पढ़ रही है। पुष्पा कहती हैं- मैंने 5वीं तक पढ़ाई की थी। हमारे मन में हमेशा यह रहता था कि हमारे बच्चे पढ़ें, लेकिन गरीबी देखकर दुख होता है। किसी तरह से इधर-उधर उधार लेकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। हमें एक बार भी नहीं लगा कि हमारा बच्चा 10वीं में पास हो पाएगा। क्योंकि, हमारे यहां पढ़ाई की कोई व्यवस्था ही नहीं है। रामसेवक के पिता जगदीश प्रसाद कहते हैं- हम पढ़ाई नहीं कर पाए। शुरुआत से ही मजदूरी कर रहे हैं। बेटे को भी अपने साथ लेकर जाते हैं। वहां से लौटने पर बेटा पढ़ाई करता था। जो फेल हुए उन्हें रामसेवक से प्रेरणा मिली
इस गांव में लवलेश और मुकेश ने भी 10वीं की परीक्षा दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाए। हम लवलेश से मिले। वह कहता है- परिवार में इसके पहले भइया ने 9वीं तक की पढ़ाई की थी। हमने इस बार 10वीं दी थी, लेकिन फेल हो गया। लवलेश के पिता ननकू कहते हैं- इस साल फिर से बेटे का नाम लिखवाएंगे। हम 8वीं तक पढ़े हैं, खेती-किसानी करते हैं। लेकिन, हम नहीं चाहते कि हमारी तरह बेटे मजदूरी करें। पढ़-लिख लेंगे, तो कुछ अच्छा कर लेंगे। पढ़ाई से ही कुछ बदलाव होगा। रामसेवक इंजीनियर बनना चाहता है। लेकिन जब वह अपने सपने को लेकर बात करता है, तो उसकी जुबान लड़खड़ा जाती है। उसे यकीन ही नहीं होता। यकीन होने में वक्त लगेगा। हम इस गांव के कई और लोगों से मिले। रामसेवक की इस सफलता से उन्हें एक उम्मीद मिल गई। खासकर महिलाएं बेहद खुश हैं। वह कहती हैं, हम भी अपने बच्चों को आगे तक पढ़ाएंगे। —————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी के टॉपर्स की दिल को छूने वाली कहानी, किसी के पिता मजदूर तो किसी के पेंटर; गरीबी से लड़कर पाया मुकाम मेहनत-लगन से हर मंजिल आसान होती है। यूपी बोर्ड के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के रिजल्ट में भी यही देखने को मिला। कठिन परिस्थितियां भी टॉपर्स को रोक नहीं पाईं। 12वीं में प्रयागराज की जिस महक जायसवाल ने प्रदेशभर में टॉप किया है, उनके पिता परचून की दुकान चलाते हैं। इसी तरह बुलंदशहर में पेंटर-गार्ड का काम करने वाले के बेटे ने हाईस्कूल में जिला टॉप किया है। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी का गांव, जहां पहली बार 10वीं पास हुआ लड़का:शादी में लाइट उठाई, DM से मिलने के लिए पहली बार जूता पहना
