जनवरी-फरवरी 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) यूपी में बिखर सकता है। अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने गुरुवार को प्रयागराज में पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ने का ऐलान किया। शुक्रवार को दैनिक भास्कर ऐप से बातचीत में निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने भी पंचायत चुनाव अपने-अपने दम पर लड़ने की घोषणा की है। अब बड़ा सवाल यह है कि NDA की तीन प्रमुख पार्टियां भाजपा से अलग होकर चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं? इसका असर क्या होगा? 2027 में क्या–क्या देखने को मिलेगा? इस रिपोर्ट में पढ़िए … ऐसा कदम क्यों उठाने पर मजबूर हो रहीं एनडीए की पार्टियां
सभी पार्टियां जमीन स्तर पर मजबूत होना चाह रही हैं। पहली सीढ़ी पंचायत चुनाव ही हैं। अलग-अलग चुनाव लड़ने की 2 वजहें हैं- पहली वजह- अगर कार्यकर्ता मजबूत होंगे तो इसका फायदा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होता है। अगर पंचायत चुनाव में भाजपा से गठबंधन होगा, तो बड़ा शेयर भाजपा का ही होगा, लिहाजा पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता को मौका नहीं मिलेगा। इससे उसके कार्यकर्ता दूसरे पाले में चले जाएंगे। इसलिए कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए पार्टियां अलग–अलग लड़ना चाहती हैं। इससे उनके संगठन को मजबूती मिलेगी। दूसरी प्रमुख वजह है भाजपा पर दबाव डालना। ताकि अभी से भाजपा में दबाव में आए और विधानसभा चुनाव 2027 में ज्यादा सीट देने का दबाव बनाया जा सके। इसका असर क्या होगा? पंचायत चुनाव में भाजपा को नुकसान
एनडीए की पार्टियों को अलग–अलग चुनाव लड़ने से सीधे नुकसान भाजपा का होगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गांवों की तुलना में शहरों में भाजपा ज्यादा मजबूत रहती है। गांवों में कमजोर होने के कारण ही पार्टी को छोटे-छोटे दलों से गठबंधन करना पड़ता है। ऐसे में सहयोगी दल ही प्रतिद्वंद्वी बनकर चुनाव लड़ेंगे, भाजपा को नुकसान होगा। वोटबैंक बंटने से इसका सीधा फायदा सपा को होगा। सहयोगी दल भी चुनाव में जब भाजपा प्रत्याशी के सामने चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें भी मजबूरन सरकार और भाजपा के खिलाफ बोलना पड़ेगा। दलितों, पिछड़ों और वंचितों के सम्मान की बात कर सरकार को घेरना पड़ेगा। इससे सीधे तौर पर भाजपा को नुकसान होगा। पिछला इतिहास रहा है कि भाजपा क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव बुरी तरह हार गई थी। पूर्वी यूपी में तो सुभासपा के कारण भाजपा को बहुत नुकसान हुआ था। पिछले चुनाव में सुभासपा और रालोद से भाजपा से गठबंधन नहीं था। 2027 में विधानसभा चुनाव में गठबंधन पर क्या असर होगा राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एनडीए के सहयोगी दलों के पंचायत चुनाव अलग-अलग लड़ने का असर विधानसभा चुनाव 2027 पर भी होगा। पंचायत चुनाव अलग–अलग लड़ने से 2027 के विधानसभा चुनाव में तीन सिचुएशन बनेंगी। 1- ज्यादा सीटें जीतने पर: यदि सहयोगी दल पंचायत चुनाव में अपनी ताकत का एहसास करा पाए तो वह विधानसभा चुनाव में पहले से ज्यादा टिकट की मांग करेंगे। 2- सहयोगी पार्टियों का प्रदर्शन खराब रहने पर: यदि सहयोगी दलों का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा तो भाजपा विधानसभा चुनाव में ज्यादा भाव नहीं देगी। 3- रंजिश बढ़ेगी: अलग-अलग चुनाव लड़ने से वार्ड स्तर पर दलों के कार्यकर्ताओं में जो राजनीतिक रंजिश पैदा होगी, उसका नुकसान भी भाजपा को ही उठाना पड़ेगा। सहयोगी दल पंचायत चुनाव में राजनीतिक जमीन मजबूत करने में सफल रहे तो विधानसभा चुनाव 2027 में भी भाजपा की मुसीबत बढ़ेगी। इन तीनों स्थितियों में एनडीए गठबंधन पर असर पड़ेगा और दरार पड़ेगी, जिसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव पर दिखेगा। भाजपा को आकलन करना होगा वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का कहना है कि जब कभी चुनाव होने होते हैं तो उससे पहले भाजपा के सहयोगी दल अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं। ताकि गठबंधन में मनमाफिक सीटें मिल जाएं। अपना दल (एस) में बीते दिनों जो विवाद रहा है, उसके मद्देनजर अनुप्रिया पटेल के लिए बहुत आवश्यक है कि वह भाजपा के सामने खुद को मजबूत सहयोगी के रूप में पेश करे। अनुप्रिया ने पंचायत चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर ताकत दिलाने की पहली सीढ़ी चढ़ी है। जातीय समीकरण भी साफ होगा पंचायत चुनाव अलग-अलग लड़ने से जातीय समीकरण की स्थिति भी स्पष्ट हो जाएगी। अपना दल (एस) की सबसे बड़ी ताकत कुर्मी वोट है। पंचायत चुनाव के नतीजे बताएंगे कि गांवों में कुर्मी किसके साथ रहा। वहीं, सुभासपा का कोर वोटबैंक राजभर समाज है, पंचायत चुनाव के नतीजे बताएंगे कि राजभर समाज में सुभासपा का जलवा बरकरार है या राजभर समाज समय और परिस्थिति के अनुसार बिखर गया। रालोद जाट समाज में ताकत बरकरार रख पाई या जाट समाज ने भी राजनीतिक सूझबूझ से वोट किया। निषादों में संजय निषाद का जलवा फिर कायम हुआ है या लोकसभा चुनाव वाली स्थिति ज्यों की त्यों है। जानिए एनडीए के चारों सहयोगी दलों की तैयारी सुभासपा: गठबंधन नहीं करेंगे, कार्यकर्ताओं को अवसर देंगे सुभाषपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा, पंचायत चुनाव की पूरी तैयारी है। पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी दमदारी से लड़ेंगे। सभी जिलों में सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। तीन चरण का सर्वे हो गया है। 850 दावेदारों ने टिकट के लिए आवेदन भी किया है। जिला पंचायत सदस्य के प्रत्येक प्रत्याशी को उसके वार्ड में छह हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया है, दो हजार सदस्य बनाना अनिवार्य है। निषाद पार्टी: सभी जगह अपने दम पर लड़ेंगे पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा, पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए बैठक कर रहे हैं। सभी जगह हम चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे। यह चुनाव सिंबल का नहीं होता है। एक-एक सीट पर भाजपा के ही चार कार्यकर्ता चुनाव लड़ जाते हैं तो फिर किस बात का गठबंधन। सिंबल देना होता तो हम गठबंधन में चुनाव लड़ते। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव बिना गठबंधन के लड़ेंगे। अपना दल (एस): अपने कार्यकर्ताओं को मौका देंगे आशीष पटेल ने बताया, अनुप्रिया जी ने कहा है कि पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी ताकत से लड़ेंगे। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हम अपने दम पर लड़ेंगे, अपने कार्यकर्ताओं को अवसर देंगे। उसके बाद आगे गठबंधन को लेकर पार्टी तय करेगी। रालोद: अभी पत्ते नहीं खोले, ज्यादा चांस अकेले ही लड़ेगी पंचायत चुनाव को लेकर रालोद के रुख का इंतजार है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि रालोद भी अपने दम पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी। रालोद का पश्चिमी यूपी में मुस्लिम और यादव के साथ दलित वोट में अच्छा प्रभाव है। रालोद पंचायत चुनाव अकेले लड़कर इन तीनों वर्गों को साधने की कोशिश करेगी। गांवों में चुनावी तैयारी शुरू राज्य निर्वाचन आयोग ने 2026 की पहली तिमाही में पंचायत चुनाव कराने का संकेत दे दिया है। आयोग ने मत पेटियां खरीदने की कवायद भी शुरू कर दी है। उधर, गांवों में भी पंचायत चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई है। ग्राम प्रधान से लेकर क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के दावेदारों ने अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। नए मतदाता बनाने से लेकर समर्थक जुटाने की तैयारी भी जोरशोर से चल रही है। ————————– ये खबर भी पढ़ें… बेगुनाही साबित करने के लिए 48 साल केस लड़ा:104 साल की उम्र में हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी किया; बेटियों ने दिया साथ कौशांबी जिले के लखन सरोज। उम्र 104 साल हो गई। 48 साल पहले गांव के झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हुई थी। लखन पर हत्या का आरोप लगा था, मुकदमा शुरू हुआ। सेशन कोर्ट ने हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद लखन प्रयागराज की नैनी और फिर कौशांबी की मंझनपुर जेल में रहे। अब इसी मामले में फैसला आया है। लखन को इस हत्याकांड में बाइज्जत बरी कर दिया गया है। पढ़ें पूरी खबर जनवरी-फरवरी 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) यूपी में बिखर सकता है। अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने गुरुवार को प्रयागराज में पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ने का ऐलान किया। शुक्रवार को दैनिक भास्कर ऐप से बातचीत में निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद और सुभासपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने भी पंचायत चुनाव अपने-अपने दम पर लड़ने की घोषणा की है। अब बड़ा सवाल यह है कि NDA की तीन प्रमुख पार्टियां भाजपा से अलग होकर चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं? इसका असर क्या होगा? 2027 में क्या–क्या देखने को मिलेगा? इस रिपोर्ट में पढ़िए … ऐसा कदम क्यों उठाने पर मजबूर हो रहीं एनडीए की पार्टियां
सभी पार्टियां जमीन स्तर पर मजबूत होना चाह रही हैं। पहली सीढ़ी पंचायत चुनाव ही हैं। अलग-अलग चुनाव लड़ने की 2 वजहें हैं- पहली वजह- अगर कार्यकर्ता मजबूत होंगे तो इसका फायदा विधानसभा और लोकसभा चुनाव में होता है। अगर पंचायत चुनाव में भाजपा से गठबंधन होगा, तो बड़ा शेयर भाजपा का ही होगा, लिहाजा पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता को मौका नहीं मिलेगा। इससे उसके कार्यकर्ता दूसरे पाले में चले जाएंगे। इसलिए कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए पार्टियां अलग–अलग लड़ना चाहती हैं। इससे उनके संगठन को मजबूती मिलेगी। दूसरी प्रमुख वजह है भाजपा पर दबाव डालना। ताकि अभी से भाजपा में दबाव में आए और विधानसभा चुनाव 2027 में ज्यादा सीट देने का दबाव बनाया जा सके। इसका असर क्या होगा? पंचायत चुनाव में भाजपा को नुकसान
एनडीए की पार्टियों को अलग–अलग चुनाव लड़ने से सीधे नुकसान भाजपा का होगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि गांवों की तुलना में शहरों में भाजपा ज्यादा मजबूत रहती है। गांवों में कमजोर होने के कारण ही पार्टी को छोटे-छोटे दलों से गठबंधन करना पड़ता है। ऐसे में सहयोगी दल ही प्रतिद्वंद्वी बनकर चुनाव लड़ेंगे, भाजपा को नुकसान होगा। वोटबैंक बंटने से इसका सीधा फायदा सपा को होगा। सहयोगी दल भी चुनाव में जब भाजपा प्रत्याशी के सामने चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें भी मजबूरन सरकार और भाजपा के खिलाफ बोलना पड़ेगा। दलितों, पिछड़ों और वंचितों के सम्मान की बात कर सरकार को घेरना पड़ेगा। इससे सीधे तौर पर भाजपा को नुकसान होगा। पिछला इतिहास रहा है कि भाजपा क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव बुरी तरह हार गई थी। पूर्वी यूपी में तो सुभासपा के कारण भाजपा को बहुत नुकसान हुआ था। पिछले चुनाव में सुभासपा और रालोद से भाजपा से गठबंधन नहीं था। 2027 में विधानसभा चुनाव में गठबंधन पर क्या असर होगा राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एनडीए के सहयोगी दलों के पंचायत चुनाव अलग-अलग लड़ने का असर विधानसभा चुनाव 2027 पर भी होगा। पंचायत चुनाव अलग–अलग लड़ने से 2027 के विधानसभा चुनाव में तीन सिचुएशन बनेंगी। 1- ज्यादा सीटें जीतने पर: यदि सहयोगी दल पंचायत चुनाव में अपनी ताकत का एहसास करा पाए तो वह विधानसभा चुनाव में पहले से ज्यादा टिकट की मांग करेंगे। 2- सहयोगी पार्टियों का प्रदर्शन खराब रहने पर: यदि सहयोगी दलों का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा तो भाजपा विधानसभा चुनाव में ज्यादा भाव नहीं देगी। 3- रंजिश बढ़ेगी: अलग-अलग चुनाव लड़ने से वार्ड स्तर पर दलों के कार्यकर्ताओं में जो राजनीतिक रंजिश पैदा होगी, उसका नुकसान भी भाजपा को ही उठाना पड़ेगा। सहयोगी दल पंचायत चुनाव में राजनीतिक जमीन मजबूत करने में सफल रहे तो विधानसभा चुनाव 2027 में भी भाजपा की मुसीबत बढ़ेगी। इन तीनों स्थितियों में एनडीए गठबंधन पर असर पड़ेगा और दरार पड़ेगी, जिसका असर 2027 के विधानसभा चुनाव पर दिखेगा। भाजपा को आकलन करना होगा वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल का कहना है कि जब कभी चुनाव होने होते हैं तो उससे पहले भाजपा के सहयोगी दल अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करते हैं। ताकि गठबंधन में मनमाफिक सीटें मिल जाएं। अपना दल (एस) में बीते दिनों जो विवाद रहा है, उसके मद्देनजर अनुप्रिया पटेल के लिए बहुत आवश्यक है कि वह भाजपा के सामने खुद को मजबूत सहयोगी के रूप में पेश करे। अनुप्रिया ने पंचायत चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर ताकत दिलाने की पहली सीढ़ी चढ़ी है। जातीय समीकरण भी साफ होगा पंचायत चुनाव अलग-अलग लड़ने से जातीय समीकरण की स्थिति भी स्पष्ट हो जाएगी। अपना दल (एस) की सबसे बड़ी ताकत कुर्मी वोट है। पंचायत चुनाव के नतीजे बताएंगे कि गांवों में कुर्मी किसके साथ रहा। वहीं, सुभासपा का कोर वोटबैंक राजभर समाज है, पंचायत चुनाव के नतीजे बताएंगे कि राजभर समाज में सुभासपा का जलवा बरकरार है या राजभर समाज समय और परिस्थिति के अनुसार बिखर गया। रालोद जाट समाज में ताकत बरकरार रख पाई या जाट समाज ने भी राजनीतिक सूझबूझ से वोट किया। निषादों में संजय निषाद का जलवा फिर कायम हुआ है या लोकसभा चुनाव वाली स्थिति ज्यों की त्यों है। जानिए एनडीए के चारों सहयोगी दलों की तैयारी सुभासपा: गठबंधन नहीं करेंगे, कार्यकर्ताओं को अवसर देंगे सुभाषपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण राजभर ने कहा, पंचायत चुनाव की पूरी तैयारी है। पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी दमदारी से लड़ेंगे। सभी जिलों में सभी सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। तीन चरण का सर्वे हो गया है। 850 दावेदारों ने टिकट के लिए आवेदन भी किया है। जिला पंचायत सदस्य के प्रत्येक प्रत्याशी को उसके वार्ड में छह हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया है, दो हजार सदस्य बनाना अनिवार्य है। निषाद पार्टी: सभी जगह अपने दम पर लड़ेंगे पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद ने कहा, पंचायत चुनाव की तैयारी के लिए बैठक कर रहे हैं। सभी जगह हम चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे। यह चुनाव सिंबल का नहीं होता है। एक-एक सीट पर भाजपा के ही चार कार्यकर्ता चुनाव लड़ जाते हैं तो फिर किस बात का गठबंधन। सिंबल देना होता तो हम गठबंधन में चुनाव लड़ते। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य के चुनाव बिना गठबंधन के लड़ेंगे। अपना दल (एस): अपने कार्यकर्ताओं को मौका देंगे आशीष पटेल ने बताया, अनुप्रिया जी ने कहा है कि पंचायत चुनाव अपने दम पर पूरी ताकत से लड़ेंगे। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव हम अपने दम पर लड़ेंगे, अपने कार्यकर्ताओं को अवसर देंगे। उसके बाद आगे गठबंधन को लेकर पार्टी तय करेगी। रालोद: अभी पत्ते नहीं खोले, ज्यादा चांस अकेले ही लड़ेगी पंचायत चुनाव को लेकर रालोद के रुख का इंतजार है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि रालोद भी अपने दम पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी। रालोद का पश्चिमी यूपी में मुस्लिम और यादव के साथ दलित वोट में अच्छा प्रभाव है। रालोद पंचायत चुनाव अकेले लड़कर इन तीनों वर्गों को साधने की कोशिश करेगी। गांवों में चुनावी तैयारी शुरू राज्य निर्वाचन आयोग ने 2026 की पहली तिमाही में पंचायत चुनाव कराने का संकेत दे दिया है। आयोग ने मत पेटियां खरीदने की कवायद भी शुरू कर दी है। उधर, गांवों में भी पंचायत चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई है। ग्राम प्रधान से लेकर क्षेत्र पंचायत सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के दावेदारों ने अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है। नए मतदाता बनाने से लेकर समर्थक जुटाने की तैयारी भी जोरशोर से चल रही है। ————————– ये खबर भी पढ़ें… बेगुनाही साबित करने के लिए 48 साल केस लड़ा:104 साल की उम्र में हाईकोर्ट ने बाइज्जत बरी किया; बेटियों ने दिया साथ कौशांबी जिले के लखन सरोज। उम्र 104 साल हो गई। 48 साल पहले गांव के झगड़े में एक व्यक्ति की मौत हुई थी। लखन पर हत्या का आरोप लगा था, मुकदमा शुरू हुआ। सेशन कोर्ट ने हत्या का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद लखन प्रयागराज की नैनी और फिर कौशांबी की मंझनपुर जेल में रहे। अब इसी मामले में फैसला आया है। लखन को इस हत्याकांड में बाइज्जत बरी कर दिया गया है। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी पंचायत चुनाव में NDA बिखर सकता है:अनुप्रिया के बाद ओपी राजभर- संजय निषाद की पार्टी अकेले लड़ेगी; 2027 में क्या होगा?
