यूपी में जल जीवन मिशन से लोगों को उम्मीद जगी कि अब घर तक पानी आएगा। इंतजार खत्म हुआ, लेकिन टंकियां गिरने से उम्मीद टूटने लगी। सीतापुर में 3 दिन पहले अचानक ढाई लाख लीटर की पानी टंकी तेज धमाके के साथ फट गई। कुछ सेकेंड तक बादल फटने जैसा मंजर दिखा। घरों में 1 फीट तक पानी भर गया। यह पहली बार नहीं है, 40 दिन में यूपी में गिरने वाली यह तीसरी टंकी है। लखमीपुर और कानपुर में इसी तरह से पानी की टंकियां धड़ाम हो गईं। तीनों टंकियों में एक समानता है, सभी जिंक एलम की हैं। लखमीपुर और कानपुर की टंकियों से तो लोगों को एक बूंद पानी नहीं मिला। लेकिन, कंपनियों की लाखों रुपए की कमाई हो गई। वो भी बिना कोई काम किए। यह सब जल जीवन मिशन के अफसर, इंजीनियर और कंपनियों की मिलीभगत से हुआ है। इन जगहों पर जल जीवन मिशन में आरसीसी टंकियां बनाने का टेंडर हुआ था। लेकिन, काम जल्दी पूरा करने और कमाई के लिए जिंक एलम की टंकियां खड़ी कर दी गईं। यह स्थिति पूरे प्रदेश की है। आगे चलकर इन टंकियां का भी यही हश्र हो सकता है। आरसीसी टंकी से 15 साल कम चलने वाली इन जिंक एलम की टंकियां क्यों बनवाई जा रही हैं? जो टंकियां गिरीं, उनमें खामियां क्या थीं? दैनिक भास्कर की टीम ने इसका इन्वेस्टिगेशन किया। टीम कारोबारी बनकर जिंक एलम टंकियां लगाने वाली कंपनी से भी बात की। इसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए। पूरा मामला अफसर और कंपनियों के फायदा और डेडलाइन से जुड़ा है। पढ़िए सिलसिलेवार इन्वेस्टिगेशन… RCC से जिंक एलम टंकी की लाइफ 15 साल कम
RCC यानी सीमेंटेड टंकी का विकल्प जिंक एलम को बनाया गया, लेकिन मुख्य बिंदु पर ध्यान नहीं रखा गया। पहला- लाइफ यानी टिकाऊपन, दूसरा- रेट। पहले लाइफ की बात करें, तो एक्सपर्ट का कहना है कि आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लाइफ में 15 साल का अंतर है। जहां जिंक एलम की टंकियां 10 साल से 15 साल की गारंटी देती हैं तो आरसीसी की टंकियों की लाइफ 30 साल तक होती है। जल जीवन मिशन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, आज भी जल निगम से जुड़े अधिकारी आरसीसी की टंकियों की ही वकालत करते हैं। अब लागत की बात करते हैं। जानकारों की मानें, तो आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लागत में तकरीबन 30% का अंतर है। ऐसे समझें, अगर आरसीसी की टंकी बनने में 100 रुपए लगते हैं तो जिंक एलम की उसी क्षमता की टंकी 70 रुपए में बन जाएगी। इसके बावजूद आरसीसी की लागत का 0.76% की ही कटौती करके कंपनियों को जिंक एलम टंकी बनाने का आदेश दे दिया गया। फिर जिंक एलम टंकियां क्यों बनाई जा रहीं
हमारी इन्वेस्टिगेशन में आरसीसी टंकियों की जगह जिंक एलम टंकियां बनाने के पीछे दो मुख्य वजहें सामने आईं। पहली- कंपनियों की कमाई, दूसरी- टारगेट पूरा करने का प्रेशर। 36 लाख की टंकी, अफसर कंपनियों को दे रहे 46 लाख रुपए
कानपुर में गाजा इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और लखीमपुर में मेसर्स विंध्य टेलीलिंक्स लिमिटेड ने काम किया है। दोनों जगहों पर मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी कंपनी से जिंक एलम टंकी लगवाया था। दोनों टंकियां गिरने के बाद हमने लागत का इन्वेस्टिगेशन किया। हमें जल जीवन मिशन में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे प्रिय रंजन कुमार का साइन किया डॉक्यूमेंट मिला। इसमें अलग-अलग कैपेसिटी की टंकी की लागत लिखी है। 250 KL/12M की RCC टंकी की लागत 47 लाख 3 हजार 800 रुपए है। वहीं जिंक एलम की लागत 46 लाख 68 हजार तय है। हमने रियल स्टेट कारोबारी बनकर मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी कंपनी की वेबसाइट पर दिए गए नंबर 01244722307 पर कॉल की। उधर से संजीव वरमानी ने बात की। उन्होंने ढाई लाख लीटर जिंक एलम टंकी का रेट भेजा, जो 8 लाख 90 हजार से 9 लाख 50 हजार के बीच का है। पूरे स्ट्रक्चर के साथ जिंक एलम टंकी लगाने का रेट जानने के लिए हम एक सब-कांट्रैक्टर से मिले। उससे हमें जल जीवन मिशन में काम करने वाली पीएनसी इंफ्राटेक लिमिटेड कंपनी का एक लेटर मिला। लेटर के मुताबिक, 250KL/12M की जिंक एलम की टंकी बॉटम से टॉप स्लैब तक 15 लाख में सब कांट्रैक्टर से तैयार कराया जा रहा है। कंपनी फ्री सीमेंट और सरिया देती है, जिसकी कास्ट 10 से 12 लाख रुपए पड़ती है। मुख्य कंपनी दूसरी कंपनी से टंकी लगवाती है। ऐसे में जिंक एलम की टंकी की लागत देखी जाए तो सब मिलाकर 36 लाख आ रही है। जबकि, कंपनी टंकी के लिए जल जीवन मिशन से 46 लाख रुपए ले रही है। यानी बिना किसी काम के ही कंपनियां एक टंकी पर 10 लाख रुपए कमा रही हैं। टारगेट प्रेशर: इसलिए नियम ही बदल दिए
अब हमारे सामने सवाल था कि आखिर जल जीवन मिशन RCC की टंकियों को वरीयता देता था। तो ऐसा क्या हुआ कि अब जिंक एलम की टंकियों पर जोर देने लगा है। इसका जवाब जल जीवन मिशन के दो लेटर से मिला। एक लेटर 31 मार्च, 2022 का है और दूसरा 2 जुलाई, 2022 का है। ये लेटर दो अलग-अलग कंपनियों को लिखे गए हैं। जिंक एलम ओवरहेड टैंक को राज्य पेयजल स्वच्छता मिशन ने 10 दिसंबर, 2021 को ही स्वीकृति कर चुका है। इसलिए आरसीसी ओवरहेड टैंक के विकल्प के रूप में समान क्षमता की जिंक एलम की टंकी बनाने की स्वीकृति दी जाती है। दरअसल, 2019 में शुरू हुआ जल जीवन मिशन का टारगेट टाइम पूरा हो रहा है, लेकिन काम नहीं खत्म हो रहा। आरसीसी टंकी बनाने में 1 साल का समय लग जाता है। इसमें पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने और टंकी बनाने में 4 महीने का समय लगता है। जिंक एलम की टंकी बनाने में पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने में लगते हैं, लेकिन टंकी एक या दो दिन में फिट हो जाती है। यही वजह है, जल जीवन मिशन के अधिकारी चाहते हैं कि जिंक एलम की टंकियां लगाकर काम को जल्दी खत्म कर दिया जाए। इन लेटर्स से साफ है कि विभाग ने यूपी में काम कर रही अलग-अलग कंपनियों से आरसीसी की टंकी का टेंडर किया था। लेकिन, काम जल्दी खत्म करने के लिए जिंक एलम की टंकी बनाने का आदेश दे दिया। लखीमपुर में एक AE ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब जिंक एलम की टंकियां बनाने का प्रस्ताव आया तो सभी इंजीनियर्स ने इसका विरोध किया था। लेकिन, काम जल्द खत्म करने का काेई दूसरा ऑप्शन नहीं था। जिसकी वजह से जिंक एलम की टंकियां लगनी शुरू हो गईं। अब जानिए टंकियों के गिरने में क्या खामियां पाई गईं कानपुर की टंकी: खराब क्वालिटी के लगे थे नट-बोल्ट
कानपुर के रहीमनगर-करीमनगर में जब जिंक एलम की टंकी गिरी तो अधिकारियों ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के लिए कंपनी को भेजा। 19 मार्च, 2025 को जांच के बाद थर्ड पार्टी कंपनी BLG ने अपनी जांच रिपोर्ट दी। इसमें बताया गया कि जिंक एलम का टैंक 18 जनवरी, 2025 को इंस्टॉल किया गया था। जबकि, 21 फरवरी, 2025 को हाइड्रो टेस्ट किया गया। जब यह टेस्ट किया गया तो सब सही पाया गया था। लेकिन हादसे के बाद हुई जांच में पता चल रहा है कि शीट की जॉइंट पर जो नट और बोल्ट का यूज किया गया, उसकी गुणवत्ता खराब है। हादसा इसी कारण हो सकता है। . लखीमपुर: कंपनियां अपनी मर्जी से काम कर रहीं, नियम मानती ही नहीं
हम लखीमपुर के जल जीवन मिशन ग्रामीण के दफ्तर पहुंचे। एक्सईएन योगेंद्र कुमार नीरज जिले से बाहर गए हुए थे। हमने वहां मौजूद एक दूसरे असिस्टेंट इंजीनियर से टंकी गिरने की वजह पूछी। नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया कि 22 अप्रैल को पहली बार टंकी में 30% पानी भरा गया था। लेकिन, कंपनी ने विभाग को सूचना नहीं दी। नियम के अनुसार टेस्टिंग से पहले विभाग और थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन कंपनी को सूचना देनी होती है। फिर विभाग के इंजीनियर और टीपीआई का इंजीनियर की मौजूदगी में टंकी का प्रेशर टेस्ट होता है। कंपनी वालों ने जब टंकी खड़ी की, तब भी विभाग को सूचना नहीं दी थी। प्रेशर टेस्टिंग के दिन रैंडमली विभाग के एई और जेई वहां पहुंच गए। उन्होंने प्रेशर टेस्टिंग को रोक दिया। लेकिन, 4 दिन बाद कैसे कोलैप्स हुआ, यह समझ नहीं आ रहा। इसके लिए लैब में जिंक एलम टंकी की शीट को टेस्टिंग के लिए भेजा गया है। जिंक एलम की टंकियां सप्लाई करने वाली कंपनी को कारण बताओ नोटिस दिया
कानपुर और लखीमपुर में टंकी लगाने वाली कंपनी मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी को जल जीवन मिशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बृजराज सिंह यादव ने शो-कॉज लेटर जारी किया। यह लेटर 26 अप्रैल को जारी किया गया, जिस दिन लखमीपुर में टंकी गिरी थी। कहा गया कि दोनों जगहों पर घटिया काम की वजह से हादसा हुआ। जांच रिपोर्ट आने तक कंपनी कोई भी टैंक इंस्टॉल नहीं करेगी। घोर लापरवाही की वह से कंपनी को क्यों नहीं 3 साल के लिए डिबार कर दिया जाए। जहां टंकी गिरी वहां 100% काम पूरा, लेकिन टंकी के पास ही नहीं मिला कनेक्शन
जब हम शेखपुर गांव मामले की इन्वेस्टिगेशन करने पहुंचे, तो हमारी मुलाकात वहां छोटेलाल से हुई। छोटेलाल कहते हैं- अगर क्वालिटी ठीक होती है तो टंकी क्यों गिरती? टंकी से लगभग 100 मीटर दूर रहने वाले सरता कहते हैं- हमें कनेक्शन नहीं मिला। अब हम कहते हैं तो बोलते हैं कि मिल जाएगा, लेकिन कई दिन बीतने के बाद आज भी कनेक्शन नहीं मिल पाया। राकेश बताते हैं- टंकी जबसे लगी है, तबसे पानी नहीं आया। इस गांव के बारे में जब हमने जल जीवन मिशन की वेबसाइट खंगाली तो चौंकाने वाले आंकड़े देखने को मिले। हमने रिकॉर्ड देखा तो गांव में 259 घरों में से 258 में टोटियों से सप्लाई का दावा किया गया है। लखीमपुर सदर से भाजपा विधायक योगेश वर्मा कहते हैं- मेरे साथ कई और विधायकों ने एक्सईएन योगेंद्र कुमार नीरज के खिलाफ पत्र लिखा था कि वह भ्रष्टाचार कर रहे हैं। लेकिन, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिसका खामियाजा यह हुआ कि एक टंकी फट गई। ———————————- ये खबर भी पढ़ें… यूपी में हैं, तो पानी की टंकी से दूर रहिए, बगैर सॉइल टेस्ट के बना दी जल जीवन मिशन की टंकियां, बेकसूरों की ले रही जान ताजमहल आगरा नहीं, बुरहानपुर में होता… अगर टेस्ट में मिट्टी पास हो जाती। करीब 400 साल पहले मुगल इंजीनियरों को पता था कि सॉइल टेस्ट (मिट्टी की जांच) कितना जरूरी है। लेकिन, यूपी में जल जीवन मिशन के हमारे इंजीनियर नियम-कायदे ताक पर रख बगैर सॉइल टेस्ट के पानी की टंकियां बनाते जा रहे हैं। पूरी खबर पढ़ें… यूपी में जल जीवन मिशन से लोगों को उम्मीद जगी कि अब घर तक पानी आएगा। इंतजार खत्म हुआ, लेकिन टंकियां गिरने से उम्मीद टूटने लगी। सीतापुर में 3 दिन पहले अचानक ढाई लाख लीटर की पानी टंकी तेज धमाके के साथ फट गई। कुछ सेकेंड तक बादल फटने जैसा मंजर दिखा। घरों में 1 फीट तक पानी भर गया। यह पहली बार नहीं है, 40 दिन में यूपी में गिरने वाली यह तीसरी टंकी है। लखमीपुर और कानपुर में इसी तरह से पानी की टंकियां धड़ाम हो गईं। तीनों टंकियों में एक समानता है, सभी जिंक एलम की हैं। लखमीपुर और कानपुर की टंकियों से तो लोगों को एक बूंद पानी नहीं मिला। लेकिन, कंपनियों की लाखों रुपए की कमाई हो गई। वो भी बिना कोई काम किए। यह सब जल जीवन मिशन के अफसर, इंजीनियर और कंपनियों की मिलीभगत से हुआ है। इन जगहों पर जल जीवन मिशन में आरसीसी टंकियां बनाने का टेंडर हुआ था। लेकिन, काम जल्दी पूरा करने और कमाई के लिए जिंक एलम की टंकियां खड़ी कर दी गईं। यह स्थिति पूरे प्रदेश की है। आगे चलकर इन टंकियां का भी यही हश्र हो सकता है। आरसीसी टंकी से 15 साल कम चलने वाली इन जिंक एलम की टंकियां क्यों बनवाई जा रही हैं? जो टंकियां गिरीं, उनमें खामियां क्या थीं? दैनिक भास्कर की टीम ने इसका इन्वेस्टिगेशन किया। टीम कारोबारी बनकर जिंक एलम टंकियां लगाने वाली कंपनी से भी बात की। इसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए। पूरा मामला अफसर और कंपनियों के फायदा और डेडलाइन से जुड़ा है। पढ़िए सिलसिलेवार इन्वेस्टिगेशन… RCC से जिंक एलम टंकी की लाइफ 15 साल कम
RCC यानी सीमेंटेड टंकी का विकल्प जिंक एलम को बनाया गया, लेकिन मुख्य बिंदु पर ध्यान नहीं रखा गया। पहला- लाइफ यानी टिकाऊपन, दूसरा- रेट। पहले लाइफ की बात करें, तो एक्सपर्ट का कहना है कि आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लाइफ में 15 साल का अंतर है। जहां जिंक एलम की टंकियां 10 साल से 15 साल की गारंटी देती हैं तो आरसीसी की टंकियों की लाइफ 30 साल तक होती है। जल जीवन मिशन से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, आज भी जल निगम से जुड़े अधिकारी आरसीसी की टंकियों की ही वकालत करते हैं। अब लागत की बात करते हैं। जानकारों की मानें, तो आरसीसी और जिंक एलम की टंकियों की लागत में तकरीबन 30% का अंतर है। ऐसे समझें, अगर आरसीसी की टंकी बनने में 100 रुपए लगते हैं तो जिंक एलम की उसी क्षमता की टंकी 70 रुपए में बन जाएगी। इसके बावजूद आरसीसी की लागत का 0.76% की ही कटौती करके कंपनियों को जिंक एलम टंकी बनाने का आदेश दे दिया गया। फिर जिंक एलम टंकियां क्यों बनाई जा रहीं
हमारी इन्वेस्टिगेशन में आरसीसी टंकियों की जगह जिंक एलम टंकियां बनाने के पीछे दो मुख्य वजहें सामने आईं। पहली- कंपनियों की कमाई, दूसरी- टारगेट पूरा करने का प्रेशर। 36 लाख की टंकी, अफसर कंपनियों को दे रहे 46 लाख रुपए
कानपुर में गाजा इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड और लखीमपुर में मेसर्स विंध्य टेलीलिंक्स लिमिटेड ने काम किया है। दोनों जगहों पर मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी कंपनी से जिंक एलम टंकी लगवाया था। दोनों टंकियां गिरने के बाद हमने लागत का इन्वेस्टिगेशन किया। हमें जल जीवन मिशन में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रहे प्रिय रंजन कुमार का साइन किया डॉक्यूमेंट मिला। इसमें अलग-अलग कैपेसिटी की टंकी की लागत लिखी है। 250 KL/12M की RCC टंकी की लागत 47 लाख 3 हजार 800 रुपए है। वहीं जिंक एलम की लागत 46 लाख 68 हजार तय है। हमने रियल स्टेट कारोबारी बनकर मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी कंपनी की वेबसाइट पर दिए गए नंबर 01244722307 पर कॉल की। उधर से संजीव वरमानी ने बात की। उन्होंने ढाई लाख लीटर जिंक एलम टंकी का रेट भेजा, जो 8 लाख 90 हजार से 9 लाख 50 हजार के बीच का है। पूरे स्ट्रक्चर के साथ जिंक एलम टंकी लगाने का रेट जानने के लिए हम एक सब-कांट्रैक्टर से मिले। उससे हमें जल जीवन मिशन में काम करने वाली पीएनसी इंफ्राटेक लिमिटेड कंपनी का एक लेटर मिला। लेटर के मुताबिक, 250KL/12M की जिंक एलम की टंकी बॉटम से टॉप स्लैब तक 15 लाख में सब कांट्रैक्टर से तैयार कराया जा रहा है। कंपनी फ्री सीमेंट और सरिया देती है, जिसकी कास्ट 10 से 12 लाख रुपए पड़ती है। मुख्य कंपनी दूसरी कंपनी से टंकी लगवाती है। ऐसे में जिंक एलम की टंकी की लागत देखी जाए तो सब मिलाकर 36 लाख आ रही है। जबकि, कंपनी टंकी के लिए जल जीवन मिशन से 46 लाख रुपए ले रही है। यानी बिना किसी काम के ही कंपनियां एक टंकी पर 10 लाख रुपए कमा रही हैं। टारगेट प्रेशर: इसलिए नियम ही बदल दिए
अब हमारे सामने सवाल था कि आखिर जल जीवन मिशन RCC की टंकियों को वरीयता देता था। तो ऐसा क्या हुआ कि अब जिंक एलम की टंकियों पर जोर देने लगा है। इसका जवाब जल जीवन मिशन के दो लेटर से मिला। एक लेटर 31 मार्च, 2022 का है और दूसरा 2 जुलाई, 2022 का है। ये लेटर दो अलग-अलग कंपनियों को लिखे गए हैं। जिंक एलम ओवरहेड टैंक को राज्य पेयजल स्वच्छता मिशन ने 10 दिसंबर, 2021 को ही स्वीकृति कर चुका है। इसलिए आरसीसी ओवरहेड टैंक के विकल्प के रूप में समान क्षमता की जिंक एलम की टंकी बनाने की स्वीकृति दी जाती है। दरअसल, 2019 में शुरू हुआ जल जीवन मिशन का टारगेट टाइम पूरा हो रहा है, लेकिन काम नहीं खत्म हो रहा। आरसीसी टंकी बनाने में 1 साल का समय लग जाता है। इसमें पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने और टंकी बनाने में 4 महीने का समय लगता है। जिंक एलम की टंकी बनाने में पिलर खड़ा करने में 7-8 महीने में लगते हैं, लेकिन टंकी एक या दो दिन में फिट हो जाती है। यही वजह है, जल जीवन मिशन के अधिकारी चाहते हैं कि जिंक एलम की टंकियां लगाकर काम को जल्दी खत्म कर दिया जाए। इन लेटर्स से साफ है कि विभाग ने यूपी में काम कर रही अलग-अलग कंपनियों से आरसीसी की टंकी का टेंडर किया था। लेकिन, काम जल्दी खत्म करने के लिए जिंक एलम की टंकी बनाने का आदेश दे दिया। लखीमपुर में एक AE ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब जिंक एलम की टंकियां बनाने का प्रस्ताव आया तो सभी इंजीनियर्स ने इसका विरोध किया था। लेकिन, काम जल्द खत्म करने का काेई दूसरा ऑप्शन नहीं था। जिसकी वजह से जिंक एलम की टंकियां लगनी शुरू हो गईं। अब जानिए टंकियों के गिरने में क्या खामियां पाई गईं कानपुर की टंकी: खराब क्वालिटी के लगे थे नट-बोल्ट
कानपुर के रहीमनगर-करीमनगर में जब जिंक एलम की टंकी गिरी तो अधिकारियों ने थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन के लिए कंपनी को भेजा। 19 मार्च, 2025 को जांच के बाद थर्ड पार्टी कंपनी BLG ने अपनी जांच रिपोर्ट दी। इसमें बताया गया कि जिंक एलम का टैंक 18 जनवरी, 2025 को इंस्टॉल किया गया था। जबकि, 21 फरवरी, 2025 को हाइड्रो टेस्ट किया गया। जब यह टेस्ट किया गया तो सब सही पाया गया था। लेकिन हादसे के बाद हुई जांच में पता चल रहा है कि शीट की जॉइंट पर जो नट और बोल्ट का यूज किया गया, उसकी गुणवत्ता खराब है। हादसा इसी कारण हो सकता है। . लखीमपुर: कंपनियां अपनी मर्जी से काम कर रहीं, नियम मानती ही नहीं
हम लखीमपुर के जल जीवन मिशन ग्रामीण के दफ्तर पहुंचे। एक्सईएन योगेंद्र कुमार नीरज जिले से बाहर गए हुए थे। हमने वहां मौजूद एक दूसरे असिस्टेंट इंजीनियर से टंकी गिरने की वजह पूछी। नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया कि 22 अप्रैल को पहली बार टंकी में 30% पानी भरा गया था। लेकिन, कंपनी ने विभाग को सूचना नहीं दी। नियम के अनुसार टेस्टिंग से पहले विभाग और थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन कंपनी को सूचना देनी होती है। फिर विभाग के इंजीनियर और टीपीआई का इंजीनियर की मौजूदगी में टंकी का प्रेशर टेस्ट होता है। कंपनी वालों ने जब टंकी खड़ी की, तब भी विभाग को सूचना नहीं दी थी। प्रेशर टेस्टिंग के दिन रैंडमली विभाग के एई और जेई वहां पहुंच गए। उन्होंने प्रेशर टेस्टिंग को रोक दिया। लेकिन, 4 दिन बाद कैसे कोलैप्स हुआ, यह समझ नहीं आ रहा। इसके लिए लैब में जिंक एलम टंकी की शीट को टेस्टिंग के लिए भेजा गया है। जिंक एलम की टंकियां सप्लाई करने वाली कंपनी को कारण बताओ नोटिस दिया
कानपुर और लखीमपुर में टंकी लगाने वाली कंपनी मेसर्स मैनिफोल्ड कम्यूनिकेशंस इंडिया एलएलपी को जल जीवन मिशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बृजराज सिंह यादव ने शो-कॉज लेटर जारी किया। यह लेटर 26 अप्रैल को जारी किया गया, जिस दिन लखमीपुर में टंकी गिरी थी। कहा गया कि दोनों जगहों पर घटिया काम की वजह से हादसा हुआ। जांच रिपोर्ट आने तक कंपनी कोई भी टैंक इंस्टॉल नहीं करेगी। घोर लापरवाही की वह से कंपनी को क्यों नहीं 3 साल के लिए डिबार कर दिया जाए। जहां टंकी गिरी वहां 100% काम पूरा, लेकिन टंकी के पास ही नहीं मिला कनेक्शन
जब हम शेखपुर गांव मामले की इन्वेस्टिगेशन करने पहुंचे, तो हमारी मुलाकात वहां छोटेलाल से हुई। छोटेलाल कहते हैं- अगर क्वालिटी ठीक होती है तो टंकी क्यों गिरती? टंकी से लगभग 100 मीटर दूर रहने वाले सरता कहते हैं- हमें कनेक्शन नहीं मिला। अब हम कहते हैं तो बोलते हैं कि मिल जाएगा, लेकिन कई दिन बीतने के बाद आज भी कनेक्शन नहीं मिल पाया। राकेश बताते हैं- टंकी जबसे लगी है, तबसे पानी नहीं आया। इस गांव के बारे में जब हमने जल जीवन मिशन की वेबसाइट खंगाली तो चौंकाने वाले आंकड़े देखने को मिले। हमने रिकॉर्ड देखा तो गांव में 259 घरों में से 258 में टोटियों से सप्लाई का दावा किया गया है। लखीमपुर सदर से भाजपा विधायक योगेश वर्मा कहते हैं- मेरे साथ कई और विधायकों ने एक्सईएन योगेंद्र कुमार नीरज के खिलाफ पत्र लिखा था कि वह भ्रष्टाचार कर रहे हैं। लेकिन, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जिसका खामियाजा यह हुआ कि एक टंकी फट गई। ———————————- ये खबर भी पढ़ें… यूपी में हैं, तो पानी की टंकी से दूर रहिए, बगैर सॉइल टेस्ट के बना दी जल जीवन मिशन की टंकियां, बेकसूरों की ले रही जान ताजमहल आगरा नहीं, बुरहानपुर में होता… अगर टेस्ट में मिट्टी पास हो जाती। करीब 400 साल पहले मुगल इंजीनियरों को पता था कि सॉइल टेस्ट (मिट्टी की जांच) कितना जरूरी है। लेकिन, यूपी में जल जीवन मिशन के हमारे इंजीनियर नियम-कायदे ताक पर रख बगैर सॉइल टेस्ट के पानी की टंकियां बनाते जा रहे हैं। पूरी खबर पढ़ें… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी में टूट रहीं टंकियां, 40 दिन में 3 गिरीं:36 लाख खर्च कर 46 लाख वसूल रहीं कंपनियां, घोटाले का पूरा खुलासा
