यूपी में निगम, आयोग-बोर्ड तैनाती में उलझी सरकार:जातीय विवाद छिड़ने के बाद भाजपा हाईकमान नाराज, उपचुनाव तक नई तैनाती की उम्मीद कम

यूपी में निगम, आयोग-बोर्ड तैनाती में उलझी सरकार:जातीय विवाद छिड़ने के बाद भाजपा हाईकमान नाराज, उपचुनाव तक नई तैनाती की उम्मीद कम

योगी सरकार 2.0 बनने के करीब 29 महीने बाद 23 अगस्त से प्रदेश में निगम, आयोग और बोर्ड के गठन का सिलसिला शुरू हुआ। एक महीने में 4 बड़ी संस्थाओं में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की गई। लेकिन, इससे भाजपा में ही जातीय विवाद की स्थिति खड़ी हो गई। जिन जातियों को इनमें जगह नहीं मिली, उनके नेता नाराज हैं। यह बात भाजपा नेतृत्व को पता चली तो आगे की राजनीतिक नियुक्तियों में फूंक-फूंक कर कदम रखा जाने लगा। नतीजा, सरकार में समायोजन की आस लगाए नेताओं और कार्यकर्ताओं को अब कुछ दिन और इंतजार करना पड़ सकता है। सरकार ने भाजपा नेता वाईपी सिंह को यूपीसिडको का अध्यक्ष बनाया। वाईपी सिंह क्षत्रिय समाज से हैं। उसके बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में आरपी सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। आरपी सिंह भी क्षत्रिय समाज से हैं। महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान खुद जाट हैं, लेकिन उनका विवाह क्षत्रिय परिवार में हुआ है। आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा खुद क्षत्रिय हैं, लेकिन उनका विवाह यादव परिवार में हुआ है। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि यह महज एक संयोग है, लेकिन जाने-अनजाने जातीय विवाद खड़ा हो गया। खास तौर पर ब्राह्मण और वैश्य वर्ग नाराज हो गया। दोनों समुदायों से जुड़े भाजपा के नेताओं और सरकार के मंत्रियों ने भी समाज की नाराजगी से पार्टी नेतृत्व को अवगत कराया। आनन-फानन में लघु उद्योग विकास निगम में राकेश गर्ग को अध्यक्ष और नटवर गोयल को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इन आयोग और बोर्ड में नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ 1- पहले ही घोषणा में हो चुकी चूक: सरकार ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का गठन किया। आयोग में बाराबंकी के पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को अध्यक्ष बनाया गया। दो उपाध्यक्ष और सदस्य भी बनाए गए। सामने आया कि अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों की उम्र 65 साल से अधिक होने से वह पात्र नहीं है। आनन-फानन में एक्ट में संशोधन कर आयु सीमा की बाध्यता को खत्म किया गया। 2- फिर ओबीसी आयोग से नाराजगी: सूत्रों के मुताबिक, भाजपा और सरकार के शीर्ष लोग सीतापुर के पूर्व सांसद राजेश वर्मा को अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष बनाने के पक्ष में नहीं थे। राष्ट्रीय नेतृत्व के कहने पर राजेश वर्मा को आयोग में अध्यक्ष बनाया गया। इससे प्रदेश में आयोग के अध्यक्ष पद की दौड़ में लगे कई ओबीसी नेताओं के हाथ मायूसी लगी। 3- महिला आयोग में भी विवाद: राज्य महिला आयोग में बबीता चौहान को अध्यक्ष बनाया गया। पूर्व सीएम और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा को उपाध्यक्ष बनाया गया। सूत्रों के मुताबिक, बबीता चौहान को अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा का एक खेमा नाराज है। आयोग में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कोर कमेटी के सदस्यों के बीच भी मनमुटाव हुआ। अपर्णा ने तो कई दिनों तक कार्यभार भी ग्रहण नहीं किया। सीएम योगी से मुलाकात के बाद वह कार्यभार ग्रहण करने पहुंची थीं। 4- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी पैराशूट लैंडिंग: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण है। प्रदेश की नौकरशाही चाहती है कि इस पद पर कोई वरिष्ठ आईएएस अफसर ही तैनात रहे। योगी सरकार 1.0 में पहली बार बोर्ड में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर को अध्यक्ष बनाया गया था। नौकरशाही ने उनकी नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए थे। योगी सरकार 2.0 में भी बोर्ड में इस पद के लिए कई बड़े नेताओं की दावेदारी थी। लेकिन राष्ट्रीय नेताओं की अनुशंसा पर सरकार ने सीपीडब्लूडी के रिटायर्ड इंजीनियर आरपी सिंह को बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। सूत्रों के मुताबिक, आरपी सिंह की नियुक्ति से भाजपा के कई बड़े नेता नाराज हैं। 5- अल्पसंख्यक आयोग में सिख या मुस्लिम: सूत्रों के मुताबिक अल्पसंख्यक आयोग में भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होनी है। सिख समाज की ओर से भी अध्यक्ष पद की मांग की जा रही है। वहीं, जैन समाज भी इस पद के लिए दावेदारी कर रहा है। भाजपा का एक खेमा अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष पद मुस्लिम समुदाय को ही देने का पक्षधर है। 6- लघु उद्योग निगम में भी नाराजगी: भाजपा ने लघु उद्योग विकास निगम में आगरा के राकेश गर्ग को अध्यक्ष और लखनऊ के नटवर गोयल को उपाध्यक्ष नियुक्त किया। राकेश गर्ग तो कैडर के कार्यकर्ता हैं। लेकिन नटवर गोयल पहले विपक्षी दलों में रहे हैं। यह है प्रक्रिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक से भी परिवार के सदस्यों का समायोजन करने के लिए नाम मांगे जाते हैं। मुख्यमंत्री और दोनों डिप्टी सीएम भी अपने-अपने सुझाव देते हैं। इसके बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्री संगठन निगम, आयोग और बोर्ड में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के लिए प्रस्तावित नामों का पैनल तैयार करते हैं। पैनल पर भाजपा की कोर कमेटी में चर्चा होती है। इसके बाद जिन नामों पर सर्वसम्मति बनती है, उन्हें नियुक्त करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा जाता है। भाजपा से मिले प्रस्ताव पर सीएम योगी मंजूरी देते हैं। उसके बाद प्रशासनिक विभाग की ओर से संबंधित आयोग, निगम, बोर्ड के गठन की अधिसूचना (शासनादेश) जारी की जाती है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक का कहना है, भाजपा दावा करती है कि वह संगठित राष्ट्रीय दल है। उनके पास कैडर है। संगठन सरकार को चलाता है। इसके बावजूद अगर निगम, बोर्ड और आयोग में तात्कालिक लाभ के लिए नियुक्तियां की जा रही हैं, तो दावे की पोल खुलती है। सरकार सबका साथ सबका विकास का दावा करती है। सरकार कहती है, हम जातीय मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। उसके बाद भी यह सवाल उठ रहा कि सभी जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा। यह भाजपा के समावेशी नारे की कमी को उजागर करता है। अब आगे क्या: उपचुनाव के बाद होगी अधिकांश घोषणा
भाजपा के सूत्रों के मुताबिक अब बाकी निगम, आयोग, बोर्ड के गठन की कार्रवाई विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद होगी। पार्टी का मानना है कि उपचुनाव से पहले बड़े निगम, आयोग और बोर्ड घोषित करने से फिर विवाद हुआ तो इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। ये भी पढ़ें… योगी बोले-किसी भी धर्म पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं:विरोध के नाम पर आगजनी, तोड़फोड़ भी स्वीकार नहीं, कीमत चुकानी पड़ेगी जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान से यूपी में बवाल थम नहीं रहा। इसी बीच सोमवार को सीएम योगी ने बड़ा बयान दिया है। कहा- जाति-धर्म, मजहब, महापुरुषों, देवी-देवता पर टिप्पणी कतई बर्दाश्त नहीं है। योगी ने प्रदर्शन के नाम पर हिंसा करने वालों को हिदायत दी है। कहा- विरोध के नाम पर अराजकता, तोड़फोड़ और आगजनी स्वीकार नहीं है, जो कोई ऐसा दुस्साहस करेगा, उसे कीमत चुकानी पड़ेगी। पढ़ें पूरी खबर… योगी सरकार 2.0 बनने के करीब 29 महीने बाद 23 अगस्त से प्रदेश में निगम, आयोग और बोर्ड के गठन का सिलसिला शुरू हुआ। एक महीने में 4 बड़ी संस्थाओं में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की गई। लेकिन, इससे भाजपा में ही जातीय विवाद की स्थिति खड़ी हो गई। जिन जातियों को इनमें जगह नहीं मिली, उनके नेता नाराज हैं। यह बात भाजपा नेतृत्व को पता चली तो आगे की राजनीतिक नियुक्तियों में फूंक-फूंक कर कदम रखा जाने लगा। नतीजा, सरकार में समायोजन की आस लगाए नेताओं और कार्यकर्ताओं को अब कुछ दिन और इंतजार करना पड़ सकता है। सरकार ने भाजपा नेता वाईपी सिंह को यूपीसिडको का अध्यक्ष बनाया। वाईपी सिंह क्षत्रिय समाज से हैं। उसके बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में आरपी सिंह को अध्यक्ष बनाया गया। आरपी सिंह भी क्षत्रिय समाज से हैं। महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान खुद जाट हैं, लेकिन उनका विवाह क्षत्रिय परिवार में हुआ है। आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा खुद क्षत्रिय हैं, लेकिन उनका विवाह यादव परिवार में हुआ है। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि यह महज एक संयोग है, लेकिन जाने-अनजाने जातीय विवाद खड़ा हो गया। खास तौर पर ब्राह्मण और वैश्य वर्ग नाराज हो गया। दोनों समुदायों से जुड़े भाजपा के नेताओं और सरकार के मंत्रियों ने भी समाज की नाराजगी से पार्टी नेतृत्व को अवगत कराया। आनन-फानन में लघु उद्योग विकास निगम में राकेश गर्ग को अध्यक्ष और नटवर गोयल को उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। इन आयोग और बोर्ड में नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ 1- पहले ही घोषणा में हो चुकी चूक: सरकार ने सबसे पहले उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का गठन किया। आयोग में बाराबंकी के पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को अध्यक्ष बनाया गया। दो उपाध्यक्ष और सदस्य भी बनाए गए। सामने आया कि अध्यक्ष बैजनाथ रावत, उपाध्यक्ष और तीन सदस्यों की उम्र 65 साल से अधिक होने से वह पात्र नहीं है। आनन-फानन में एक्ट में संशोधन कर आयु सीमा की बाध्यता को खत्म किया गया। 2- फिर ओबीसी आयोग से नाराजगी: सूत्रों के मुताबिक, भाजपा और सरकार के शीर्ष लोग सीतापुर के पूर्व सांसद राजेश वर्मा को अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग में अध्यक्ष बनाने के पक्ष में नहीं थे। राष्ट्रीय नेतृत्व के कहने पर राजेश वर्मा को आयोग में अध्यक्ष बनाया गया। इससे प्रदेश में आयोग के अध्यक्ष पद की दौड़ में लगे कई ओबीसी नेताओं के हाथ मायूसी लगी। 3- महिला आयोग में भी विवाद: राज्य महिला आयोग में बबीता चौहान को अध्यक्ष बनाया गया। पूर्व सीएम और सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा को उपाध्यक्ष बनाया गया। सूत्रों के मुताबिक, बबीता चौहान को अध्यक्ष बनाए जाने से भाजपा का एक खेमा नाराज है। आयोग में सदस्यों की नियुक्ति को लेकर कोर कमेटी के सदस्यों के बीच भी मनमुटाव हुआ। अपर्णा ने तो कई दिनों तक कार्यभार भी ग्रहण नहीं किया। सीएम योगी से मुलाकात के बाद वह कार्यभार ग्रहण करने पहुंची थीं। 4- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में भी पैराशूट लैंडिंग: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण है। प्रदेश की नौकरशाही चाहती है कि इस पद पर कोई वरिष्ठ आईएएस अफसर ही तैनात रहे। योगी सरकार 1.0 में पहली बार बोर्ड में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश महामंत्री जेपीएस राठौर को अध्यक्ष बनाया गया था। नौकरशाही ने उनकी नियुक्ति पर भी सवाल खड़े किए थे। योगी सरकार 2.0 में भी बोर्ड में इस पद के लिए कई बड़े नेताओं की दावेदारी थी। लेकिन राष्ट्रीय नेताओं की अनुशंसा पर सरकार ने सीपीडब्लूडी के रिटायर्ड इंजीनियर आरपी सिंह को बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त किया। सूत्रों के मुताबिक, आरपी सिंह की नियुक्ति से भाजपा के कई बड़े नेता नाराज हैं। 5- अल्पसंख्यक आयोग में सिख या मुस्लिम: सूत्रों के मुताबिक अल्पसंख्यक आयोग में भी अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति होनी है। सिख समाज की ओर से भी अध्यक्ष पद की मांग की जा रही है। वहीं, जैन समाज भी इस पद के लिए दावेदारी कर रहा है। भाजपा का एक खेमा अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष पद मुस्लिम समुदाय को ही देने का पक्षधर है। 6- लघु उद्योग निगम में भी नाराजगी: भाजपा ने लघु उद्योग विकास निगम में आगरा के राकेश गर्ग को अध्यक्ष और लखनऊ के नटवर गोयल को उपाध्यक्ष नियुक्त किया। राकेश गर्ग तो कैडर के कार्यकर्ता हैं। लेकिन नटवर गोयल पहले विपक्षी दलों में रहे हैं। यह है प्रक्रिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के क्षेत्रीय और प्रांत प्रचारक से भी परिवार के सदस्यों का समायोजन करने के लिए नाम मांगे जाते हैं। मुख्यमंत्री और दोनों डिप्टी सीएम भी अपने-अपने सुझाव देते हैं। इसके बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और महामंत्री संगठन निगम, आयोग और बोर्ड में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के लिए प्रस्तावित नामों का पैनल तैयार करते हैं। पैनल पर भाजपा की कोर कमेटी में चर्चा होती है। इसके बाद जिन नामों पर सर्वसम्मति बनती है, उन्हें नियुक्त करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा जाता है। भाजपा से मिले प्रस्ताव पर सीएम योगी मंजूरी देते हैं। उसके बाद प्रशासनिक विभाग की ओर से संबंधित आयोग, निगम, बोर्ड के गठन की अधिसूचना (शासनादेश) जारी की जाती है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक का कहना है, भाजपा दावा करती है कि वह संगठित राष्ट्रीय दल है। उनके पास कैडर है। संगठन सरकार को चलाता है। इसके बावजूद अगर निगम, बोर्ड और आयोग में तात्कालिक लाभ के लिए नियुक्तियां की जा रही हैं, तो दावे की पोल खुलती है। सरकार सबका साथ सबका विकास का दावा करती है। सरकार कहती है, हम जातीय मजहब के आधार पर भेदभाव नहीं करेंगे। उसके बाद भी यह सवाल उठ रहा कि सभी जातियों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा। यह भाजपा के समावेशी नारे की कमी को उजागर करता है। अब आगे क्या: उपचुनाव के बाद होगी अधिकांश घोषणा
भाजपा के सूत्रों के मुताबिक अब बाकी निगम, आयोग, बोर्ड के गठन की कार्रवाई विधानसभा की 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद होगी। पार्टी का मानना है कि उपचुनाव से पहले बड़े निगम, आयोग और बोर्ड घोषित करने से फिर विवाद हुआ तो इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। ये भी पढ़ें… योगी बोले-किसी भी धर्म पर टिप्पणी बर्दाश्त नहीं:विरोध के नाम पर आगजनी, तोड़फोड़ भी स्वीकार नहीं, कीमत चुकानी पड़ेगी जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के पैगंबर मोहम्मद पर विवादित बयान से यूपी में बवाल थम नहीं रहा। इसी बीच सोमवार को सीएम योगी ने बड़ा बयान दिया है। कहा- जाति-धर्म, मजहब, महापुरुषों, देवी-देवता पर टिप्पणी कतई बर्दाश्त नहीं है। योगी ने प्रदर्शन के नाम पर हिंसा करने वालों को हिदायत दी है। कहा- विरोध के नाम पर अराजकता, तोड़फोड़ और आगजनी स्वीकार नहीं है, जो कोई ऐसा दुस्साहस करेगा, उसे कीमत चुकानी पड़ेगी। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर