गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में विजयदशमी के दिन हर साल साधु-संतों की अदालत लगती है। योगी आदित्यनाथ 10 साल से इसमें दंडाधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। वह साधु-संतों से जुड़े विवादों का निपटारा करते हैं। क्या है ये परंपरा? कैसे सीएम योगी को साधु-संतों के विवाद निपटाने का अधिकार मिला? नाथ पंथ से उनका क्या कनेक्शन है? साधु-संतों की अदालत का क्या महत्व है? भास्कर एक्सप्लेनर में इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे। योगी को क्यों मिला दंडाधिकारी की भूमिका निभाने का अधिकार?
विजयदशमी का दिन नाथ संप्रदाय के साधु-संतों के लिए विशेष होता है। दशहरे को बड़ा और भव्य जुलूस निकलता है। इस दिन गोरखपुर में इनकी अदालत लगती है। साधु-संतों के विवादों का निपटारा होता है। जो भी अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा का अध्यक्ष होता है, उसे निपटारा करने का अधिकार मिलता है। अगर किसी को दंड देने की जरूरत है तो इसी दिन दिया जाता है। सीएम योगी गोरक्षापीठाधीश्वर होने के साथ ही नाथ पंथ की शीर्ष संस्था अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष भी हैं। चूंकि योगी इस संस्था के अध्यक्ष हैं, इसलिए वह हर साल साधु-संतों की अदालत में दंडाधिकारी की भूमिका निभाते हैं। दशहरे वाला दिन खास, नेपाल से क्या है कनेक्शन?
दशहरे वाला दिन नाथ योगियों के लिए खास होता है। विजयदशमी वैसे भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इसी दिन को नाथ संप्रदाय ने विवाद निपटारे के लिए चुना है। इसके अलावा मकर संक्रांति वाला दिन भी इनके लिए खास होता है। इस दिन ‘खिचड़ी’ त्योहार होता है। सबसे पहले नेपाल के राज घराने के घर से बनकर आई खिचड़ी यहां चढ़ाई जाती है। फिर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाते हैं। उनके बाद श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाते हैं। आज भी नेपाल के राजवंश में राज्याभिषेक के वक्त राजतिलक इसी मंदिर के महंत के हाथों होता है। महासभा का क्या इतिहास, योगी कब बने अध्यक्ष?
अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा की स्थापना 1939 में हुई थी। महंत दिग्विजयनाथ महाराज ने इसकी स्थापना की थी। वह आजीवन इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। दिग्विजयनाथ महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद 1969 में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष चुने गए। अवैद्यनाथ के समाधि लेने के बाद 25 सितंबर, 2014 को गोरक्षापीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। तब से योगी आदित्यनाथ इसके अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय क्या है? सीएम योगी का क्या कनेक्शन?
नाथ संप्रदाय देश के प्राचीन संप्रदायों में से एक है। इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानी योगी गोरखनाथ ने दिया है। देशभर में इस संप्रदाय के कई मठ हैं। गोरखनाथ धाम मठ की पीठ को नाथ संप्रदाय की अध्यक्ष पीठ मानते हैं। यही वजह है, गोरखनाथ धाम मठ का अध्यक्ष नाथ संप्रदाय का भी मुखिया होता है। योगी आदित्यनाथ वर्तमान में गोरखनाथ धाम मठ के महंत हैं। यानी वह नाथ संप्रदाय के भी अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय के 12 पंथ हैं। पहले नाथ आदिनाथ थे। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या फिर शरीर छोड़ने के बाद उन्हें समाधि दी जाती है। उन्हें अग्निप्रवाह नहीं किया जाता, यानी जलाए नहीं जाते। माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है। कैसे बनते हैं नाथ संप्रदाय के योगी?
नाथ संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण और किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है। जो शख्स नाथ संप्रदाय को अपनाता है, उसे 7 से 12 साल की कठोर तपस्या करनी पड़ती है। तपस्या पूरी होने पर उसे दीक्षा दी जाती है। दीक्षा देने से पहले और बाद में उम्र भर कठोर नियमों का पालन करना होता है। गोरखनाथ ने अपने अनुयायी शिष्यों के लिए कठोर नियम बनाए थे। इस संप्रदाय के शिष्यों के कान छिदवाने पड़ते हैं। कान छेदन वाले गुरु अलग होते हैं। वह एक तेज धार वाले चाकू से कान शुरू होने से लेकर नीचे तक पीछे से उसे काट देते हैं। जिसका कान चीरा जाता है, उसे एक विशेष पोजिशन में बैठाया जाता है। खून ही खून हो जाता है। उसके बाद फौरन उस पर धूणे की भभूत लगाई जाती है। फिर नीम की लकड़ियां डाल दी जाती हैं। इस दौरान मंत्रोच्चार चलता रहता है। इसके बाद नीम की लकड़ियां निकाल दी जाती हैं। सबसे पहले कुंडल जो डाले जाते हैं, जो मिट्टी के बने होते हैं। ये हाथों से बनाए जाते हैं। धीरे-धीरे कान का कटा हुआ ऊपर का हिस्सा अपने आप ठीक होने लगता है और कुंडल जितना हिस्सा ही कटा रह जाता है। नाथ योगी श्मशान में भी पूजा करते हैं, बगलामुखी की पूजा भी करते हैं। इनकी साधना हठयोग पर आधारित होती है। कई नाथ योगी जमात लेकर चलते हैं। जैसे- 12 रमतों की जमात, 18 रमतों की जमात। वह एक मठ से दूसरे मठ में भ्रमण करते हैं। दीक्षा लेने के बाद योगी अपने परिवार से अलग हो जाते हैं। दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा पंथ है, जिसमें जीते जी ही पृथ्वी पर दूसरा जन्म होता है। यानी पहले वाली जिंदगी, पहले वाली दुनिया, पहले वाले लोग सब त्यागने होते हैं। एक नया जन्म होता है, नए नाम और पहचान के साथ। क्या धारण करते हैं नाथ योगी
हर योगी के गले में एक जनेऊ होता है। धागे में लिपटी गोल-गोल चीज को पवित्री कहते हैं, जो शक्ति का प्रतीक है। उसी धागे में लगी सीटी नुमा चीज को नादि कहते हैं, जिससे योगी अपने गुरु को प्रणाम करते हैं। इसमें रुद्राक्ष होता है, जो शिव का प्रतीक है। जनेऊ में एक मोती भी होता है, जो भगवान ब्रह्मा का प्रतीक है और मनका विष्णु का प्रतीक है। हर योगी के लिए इसे पहनना जरूरी है। नाथ योगी जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो नमस्कार की जगह ‘आदेश’ बोलते हैं। ‘आदेश’ का मतलब होता है कि आ से आत्मा, द से देवता और श से संत। यानी आपमें विद्यमान संत को प्रणाम। दीक्षित होने के लिए सबसे पहले इनकी चोटी काटी जाती है। जो चोटी गुरु या शिखा गुरु काटता है, उसको धूणे में डाल दिया जाता है। चोटी गुरु सर्वोपरि होता है। फिर उसके बाद कर्ण छेदन गुरु होता है, जो कान चीरता है। फिर बाना गुरु होता है तो भगवा लिबास देता है। फिर उपदेश गुरु होता है जो गोपनीय मंत्र देता है। अंत में लंगोटी गुरु होता है। ये भी पढ़ें… यूपी में हिंदू-मुस्लिम आबादी का गणित:भाजपा से ‘तुम्हारा राज खत्म हो जाएगा’ कहने वाले सपा विधायक का दावा सच के कितना करीब? ‘मुस्लिम आबादी बढ़ गई है। तुम्हारा (भाजपा का) राज खत्म हो जाएगा। मुगलों ने देश में 800 साल राज किया। जब वो नहीं रहे, तो तुम क्या रहोगे? 2027 में तुम जाओगे जरूर, हम आएंगे जरूर।’ ये बयान अमरोहा से सपा विधायक महबूब अली ने 29 सितंबर को बिजनौर में दिया। महबूब अली के इस बयान ने ऐसा तूल पकड़ा कि अगले ही दिन बिजनौर पुलिस ने संज्ञान लिया। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। पढ़ें पूरी खबर गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में विजयदशमी के दिन हर साल साधु-संतों की अदालत लगती है। योगी आदित्यनाथ 10 साल से इसमें दंडाधिकारी की भूमिका निभा रहे हैं। वह साधु-संतों से जुड़े विवादों का निपटारा करते हैं। क्या है ये परंपरा? कैसे सीएम योगी को साधु-संतों के विवाद निपटाने का अधिकार मिला? नाथ पंथ से उनका क्या कनेक्शन है? साधु-संतों की अदालत का क्या महत्व है? भास्कर एक्सप्लेनर में इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे। योगी को क्यों मिला दंडाधिकारी की भूमिका निभाने का अधिकार?
विजयदशमी का दिन नाथ संप्रदाय के साधु-संतों के लिए विशेष होता है। दशहरे को बड़ा और भव्य जुलूस निकलता है। इस दिन गोरखपुर में इनकी अदालत लगती है। साधु-संतों के विवादों का निपटारा होता है। जो भी अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा का अध्यक्ष होता है, उसे निपटारा करने का अधिकार मिलता है। अगर किसी को दंड देने की जरूरत है तो इसी दिन दिया जाता है। सीएम योगी गोरक्षापीठाधीश्वर होने के साथ ही नाथ पंथ की शीर्ष संस्था अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा के अध्यक्ष भी हैं। चूंकि योगी इस संस्था के अध्यक्ष हैं, इसलिए वह हर साल साधु-संतों की अदालत में दंडाधिकारी की भूमिका निभाते हैं। दशहरे वाला दिन खास, नेपाल से क्या है कनेक्शन?
दशहरे वाला दिन नाथ योगियों के लिए खास होता है। विजयदशमी वैसे भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। ऐसे में इसी दिन को नाथ संप्रदाय ने विवाद निपटारे के लिए चुना है। इसके अलावा मकर संक्रांति वाला दिन भी इनके लिए खास होता है। इस दिन ‘खिचड़ी’ त्योहार होता है। सबसे पहले नेपाल के राज घराने के घर से बनकर आई खिचड़ी यहां चढ़ाई जाती है। फिर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाते हैं। उनके बाद श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाते हैं। आज भी नेपाल के राजवंश में राज्याभिषेक के वक्त राजतिलक इसी मंदिर के महंत के हाथों होता है। महासभा का क्या इतिहास, योगी कब बने अध्यक्ष?
अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा की स्थापना 1939 में हुई थी। महंत दिग्विजयनाथ महाराज ने इसकी स्थापना की थी। वह आजीवन इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। दिग्विजयनाथ महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद 1969 में महंत अवैद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष चुने गए। अवैद्यनाथ के समाधि लेने के बाद 25 सितंबर, 2014 को गोरक्षापीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ को निर्विरोध अध्यक्ष चुना गया। तब से योगी आदित्यनाथ इसके अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय क्या है? सीएम योगी का क्या कनेक्शन?
नाथ संप्रदाय देश के प्राचीन संप्रदायों में से एक है। इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानी योगी गोरखनाथ ने दिया है। देशभर में इस संप्रदाय के कई मठ हैं। गोरखनाथ धाम मठ की पीठ को नाथ संप्रदाय की अध्यक्ष पीठ मानते हैं। यही वजह है, गोरखनाथ धाम मठ का अध्यक्ष नाथ संप्रदाय का भी मुखिया होता है। योगी आदित्यनाथ वर्तमान में गोरखनाथ धाम मठ के महंत हैं। यानी वह नाथ संप्रदाय के भी अध्यक्ष हैं। नाथ संप्रदाय के 12 पंथ हैं। पहले नाथ आदिनाथ थे। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या फिर शरीर छोड़ने के बाद उन्हें समाधि दी जाती है। उन्हें अग्निप्रवाह नहीं किया जाता, यानी जलाए नहीं जाते। माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है। कैसे बनते हैं नाथ संप्रदाय के योगी?
नाथ संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण और किसी भी उम्र में अपनाया जा सकता है। जो शख्स नाथ संप्रदाय को अपनाता है, उसे 7 से 12 साल की कठोर तपस्या करनी पड़ती है। तपस्या पूरी होने पर उसे दीक्षा दी जाती है। दीक्षा देने से पहले और बाद में उम्र भर कठोर नियमों का पालन करना होता है। गोरखनाथ ने अपने अनुयायी शिष्यों के लिए कठोर नियम बनाए थे। इस संप्रदाय के शिष्यों के कान छिदवाने पड़ते हैं। कान छेदन वाले गुरु अलग होते हैं। वह एक तेज धार वाले चाकू से कान शुरू होने से लेकर नीचे तक पीछे से उसे काट देते हैं। जिसका कान चीरा जाता है, उसे एक विशेष पोजिशन में बैठाया जाता है। खून ही खून हो जाता है। उसके बाद फौरन उस पर धूणे की भभूत लगाई जाती है। फिर नीम की लकड़ियां डाल दी जाती हैं। इस दौरान मंत्रोच्चार चलता रहता है। इसके बाद नीम की लकड़ियां निकाल दी जाती हैं। सबसे पहले कुंडल जो डाले जाते हैं, जो मिट्टी के बने होते हैं। ये हाथों से बनाए जाते हैं। धीरे-धीरे कान का कटा हुआ ऊपर का हिस्सा अपने आप ठीक होने लगता है और कुंडल जितना हिस्सा ही कटा रह जाता है। नाथ योगी श्मशान में भी पूजा करते हैं, बगलामुखी की पूजा भी करते हैं। इनकी साधना हठयोग पर आधारित होती है। कई नाथ योगी जमात लेकर चलते हैं। जैसे- 12 रमतों की जमात, 18 रमतों की जमात। वह एक मठ से दूसरे मठ में भ्रमण करते हैं। दीक्षा लेने के बाद योगी अपने परिवार से अलग हो जाते हैं। दीक्षा के बाद उन्हें नया नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा पंथ है, जिसमें जीते जी ही पृथ्वी पर दूसरा जन्म होता है। यानी पहले वाली जिंदगी, पहले वाली दुनिया, पहले वाले लोग सब त्यागने होते हैं। एक नया जन्म होता है, नए नाम और पहचान के साथ। क्या धारण करते हैं नाथ योगी
हर योगी के गले में एक जनेऊ होता है। धागे में लिपटी गोल-गोल चीज को पवित्री कहते हैं, जो शक्ति का प्रतीक है। उसी धागे में लगी सीटी नुमा चीज को नादि कहते हैं, जिससे योगी अपने गुरु को प्रणाम करते हैं। इसमें रुद्राक्ष होता है, जो शिव का प्रतीक है। जनेऊ में एक मोती भी होता है, जो भगवान ब्रह्मा का प्रतीक है और मनका विष्णु का प्रतीक है। हर योगी के लिए इसे पहनना जरूरी है। नाथ योगी जब एक-दूसरे से मिलते हैं, तो नमस्कार की जगह ‘आदेश’ बोलते हैं। ‘आदेश’ का मतलब होता है कि आ से आत्मा, द से देवता और श से संत। यानी आपमें विद्यमान संत को प्रणाम। दीक्षित होने के लिए सबसे पहले इनकी चोटी काटी जाती है। जो चोटी गुरु या शिखा गुरु काटता है, उसको धूणे में डाल दिया जाता है। चोटी गुरु सर्वोपरि होता है। फिर उसके बाद कर्ण छेदन गुरु होता है, जो कान चीरता है। फिर बाना गुरु होता है तो भगवा लिबास देता है। फिर उपदेश गुरु होता है जो गोपनीय मंत्र देता है। अंत में लंगोटी गुरु होता है। ये भी पढ़ें… यूपी में हिंदू-मुस्लिम आबादी का गणित:भाजपा से ‘तुम्हारा राज खत्म हो जाएगा’ कहने वाले सपा विधायक का दावा सच के कितना करीब? ‘मुस्लिम आबादी बढ़ गई है। तुम्हारा (भाजपा का) राज खत्म हो जाएगा। मुगलों ने देश में 800 साल राज किया। जब वो नहीं रहे, तो तुम क्या रहोगे? 2027 में तुम जाओगे जरूर, हम आएंगे जरूर।’ ये बयान अमरोहा से सपा विधायक महबूब अली ने 29 सितंबर को बिजनौर में दिया। महबूब अली के इस बयान ने ऐसा तूल पकड़ा कि अगले ही दिन बिजनौर पुलिस ने संज्ञान लिया। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर