राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 3 साल में घट गए बीस लाख स्टूडेंट्स, मंत्री बोले – कांग्रेस जिम्मेदार

राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 3 साल में घट गए बीस लाख स्टूडेंट्स, मंत्री बोले – कांग्रेस जिम्मेदार

<p style=”text-align: justify;”><strong>Jaipur News:</strong> राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है. कॉपी-किताब, बैग, ड्रेस और मिड-डे मील भी मुफ्त प्रदान किया जाता है. सरकार प्रचार-प्रसार पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है, बावजूद इसके विद्यार्थियों की संख्या में हर साल गिरावट दर्ज हो रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य के सरकारी स्कूलों में पिछले 3 वर्षों में लगभग बीस लाख छात्रों की कमी दर्ज की गई है. सरकार के बदलने के बावजूद यह गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही. शिक्षा मंत्री जहां सियासी बयानबाजी के साथ अपने दावे पेश कर रहे हैं, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों की उदासीनता और योजनाओं के मनमाने क्रियान्वयन के चलते यह हालात बने हैं. शिक्षकों और संसाधनों की कमी, साथ ही इच्छाशक्ति का अभाव, इसकी प्रमुख वजह मानी जा रही है. हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि बिना किसी बड़े बदलाव या चमत्कार के सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा बदलना मुश्किल नजर आता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सरकारी स्कूलों में घट रहे छात्रों के नामांकन</strong><br />आंकड़ों के अनुसार, सत्र 2021-22 में राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 97,15,989 छात्र नामांकित थे, जबकि मौजूदा सत्र 2024-25 में यह संख्या घटकर 78,03,846 रह गई. यानी तीन वर्षों में 19 लाख से अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया. दिलचस्प बात यह है कि जितनी तेजी से सरकारी स्कूलों में छात्र घटे हैं, उससे अधिक तेजी से प्राइवेट स्कूलों में बढ़े हैं. 2021-22 में निजी स्कूलों में 75,16,590 छात्र थे, जबकि मौजूदा सत्र में यह संख्या बढ़कर 98,20,465 हो गई है &mdash; यानी तीन वर्षों में 23 लाख से अधिक की वृद्धि.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>राज्य में 65,000 स्कूल जो पहली से बारहवीं कक्षा तक देते हैं शिक्षा&nbsp;</strong><br />कोरोना काल में, जब संक्रमण चरम पर था, उस समय एक अपवाद स्वरूप सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में वृद्धि देखी गई थी और निजी स्कूलों में गिरावट आई थी. सत्र 2018-19 की बात करें तो सरकारी स्कूलों में 82,58,519 छात्र थे, जबकि प्राइवेट स्कूलों में यह संख्या 83,27,250 थी. गौरतलब है कि राजस्थान शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत लगभग 65,000 स्कूल संचालित हैं, जो पहली से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा प्रदान करते हैं. अधिकांश स्कूलों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा एक ही परिसर में दी जाती है, हालांकि इनके प्रशासनिक अधिकारी अलग-अलग होते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य में सरकारी स्कूलों में लगभग 5.75 लाख शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल करीब 4.5 लाख शिक्षक कार्यरत हैं. यानी शिक्षकों के लगभग 1.25 लाख पद रिक्त हैं, जो कुल का लगभग 22% है. यही स्थिति कर्मचारियों के पदों की भी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शुरू की जा रही है शिक्षक भर्ती प्रक्रिया- शिक्षा मंत्री</strong><br />भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार का दावा है कि उसके डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में 28,000 शिक्षकों की भर्ती की गई है. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि 60,000 और शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जो शीघ्र पूरी होगी. इसके अतिरिक्त, 28,000 शिक्षकों को पदोन्नति दी गई है, और आगामी दिनों में 15,000 से 20,000 और शिक्षकों के प्रमोशन किए जाने की तैयारी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>मंत्री मदन दिलावर का दावा है कि उनकी सरकार सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है और जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे. हालांकि, वे कभी कोरोना को जिम्मेदार ठहराते हैं तो कभी पिछली कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराते हैं. उनका कहना है कि वर्तमान आंकड़े कांग्रेस सरकार की नीतियों की देन हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, जानकारों का कहना है कि चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो, सरकारी स्कूलों की हालत में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली जाती. शिक्षकों और कर्मचारियों के हजारों पद रिक्त हैं. शिक्षकों से पढ़ाई के अलावा अन्य कई गैर-शैक्षणिक कार्य भी लिए जाते हैं. कई नेताओं और अधिकारियों ने अपने निजी स्कूल खोल रखे हैं, जिनसे उन्हें भारी मुनाफा होता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>शिक्षा विशेषज्ञ नवीन कुमार शर्मा के अनुसार, नेता और अधिकारी स्वयं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते, जिससे आम जनता का भरोसा भी इन स्कूलों से उठ जाता है. इसके अतिरिक्त, सामाजिक प्रतिष्ठा (स्टेटस सिंबल) भी एक बड़ा कारण है &mdash; मिडिल क्लास को लगता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़कर बच्चे गरीब समझे जाएंगे. पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल न करने की नीति भी शिक्षा स्तर को गिरा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कई सरकारी स्कूल केवल आंकड़ों में मौजूद हैं, वास्तविकता में उनका कोई ठोस आधार नहीं है. नियम इतने लचर हैं कि परीक्षा से एक दिन पहले भी कोई छात्र रजिस्ट्रेशन करवा कर परीक्षा में बैठ सकता है, और अगर वह कॉपी खाली छोड़ भी दे तो फेल नहीं होगा &mdash; केवल ग्रेड कम मिलेगा. ऐसे में अभिभावकों का यह सोचना स्वाभाविक है कि बच्चों का भविष्य दांव पर है, इसलिए वे निजी स्कूलों की महंगी फीस चुकाने को मजबूर हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कहा जा सकता है कि राजस्थान में सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति जस की तस बनी रहती है. यही कारण है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घटती जा रही है. विशेषज्ञों को आशंका है कि अगर यही हालात रहे तो आने वाले 20-30 वर्षों में सरकारी स्कूल इतिहास का हिस्सा बन सकते हैं. वैसे भी, शिक्षा जैसे मुद्दों पर चुनाव में वोट नहीं पड़ते, शायद यही कारण है कि सरकारों का ध्यान इस ओर गंभीरता से नहीं जाता.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Jaipur News:</strong> राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है. कॉपी-किताब, बैग, ड्रेस और मिड-डे मील भी मुफ्त प्रदान किया जाता है. सरकार प्रचार-प्रसार पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है, बावजूद इसके विद्यार्थियों की संख्या में हर साल गिरावट दर्ज हो रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य के सरकारी स्कूलों में पिछले 3 वर्षों में लगभग बीस लाख छात्रों की कमी दर्ज की गई है. सरकार के बदलने के बावजूद यह गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही. शिक्षा मंत्री जहां सियासी बयानबाजी के साथ अपने दावे पेश कर रहे हैं, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारों की उदासीनता और योजनाओं के मनमाने क्रियान्वयन के चलते यह हालात बने हैं. शिक्षकों और संसाधनों की कमी, साथ ही इच्छाशक्ति का अभाव, इसकी प्रमुख वजह मानी जा रही है. हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि बिना किसी बड़े बदलाव या चमत्कार के सरकारी स्कूलों की दशा और दिशा बदलना मुश्किल नजर आता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>सरकारी स्कूलों में घट रहे छात्रों के नामांकन</strong><br />आंकड़ों के अनुसार, सत्र 2021-22 में राजस्थान के सरकारी स्कूलों में 97,15,989 छात्र नामांकित थे, जबकि मौजूदा सत्र 2024-25 में यह संख्या घटकर 78,03,846 रह गई. यानी तीन वर्षों में 19 लाख से अधिक छात्रों ने सरकारी स्कूलों से मुंह मोड़ लिया. दिलचस्प बात यह है कि जितनी तेजी से सरकारी स्कूलों में छात्र घटे हैं, उससे अधिक तेजी से प्राइवेट स्कूलों में बढ़े हैं. 2021-22 में निजी स्कूलों में 75,16,590 छात्र थे, जबकि मौजूदा सत्र में यह संख्या बढ़कर 98,20,465 हो गई है &mdash; यानी तीन वर्षों में 23 लाख से अधिक की वृद्धि.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>राज्य में 65,000 स्कूल जो पहली से बारहवीं कक्षा तक देते हैं शिक्षा&nbsp;</strong><br />कोरोना काल में, जब संक्रमण चरम पर था, उस समय एक अपवाद स्वरूप सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या में वृद्धि देखी गई थी और निजी स्कूलों में गिरावट आई थी. सत्र 2018-19 की बात करें तो सरकारी स्कूलों में 82,58,519 छात्र थे, जबकि प्राइवेट स्कूलों में यह संख्या 83,27,250 थी. गौरतलब है कि राजस्थान शिक्षा बोर्ड के अंतर्गत लगभग 65,000 स्कूल संचालित हैं, जो पहली से बारहवीं कक्षा तक की शिक्षा प्रदान करते हैं. अधिकांश स्कूलों में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा एक ही परिसर में दी जाती है, हालांकि इनके प्रशासनिक अधिकारी अलग-अलग होते हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>राज्य में सरकारी स्कूलों में लगभग 5.75 लाख शिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल करीब 4.5 लाख शिक्षक कार्यरत हैं. यानी शिक्षकों के लगभग 1.25 लाख पद रिक्त हैं, जो कुल का लगभग 22% है. यही स्थिति कर्मचारियों के पदों की भी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>शुरू की जा रही है शिक्षक भर्ती प्रक्रिया- शिक्षा मंत्री</strong><br />भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार का दावा है कि उसके डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में 28,000 शिक्षकों की भर्ती की गई है. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि 60,000 और शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा रही है, जो शीघ्र पूरी होगी. इसके अतिरिक्त, 28,000 शिक्षकों को पदोन्नति दी गई है, और आगामी दिनों में 15,000 से 20,000 और शिक्षकों के प्रमोशन किए जाने की तैयारी है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>मंत्री मदन दिलावर का दावा है कि उनकी सरकार सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक कदम उठा रही है और जल्द ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे. हालांकि, वे कभी कोरोना को जिम्मेदार ठहराते हैं तो कभी पिछली कांग्रेस सरकार को दोषी ठहराते हैं. उनका कहना है कि वर्तमान आंकड़े कांग्रेस सरकार की नीतियों की देन हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>वहीं, जानकारों का कहना है कि चाहे सरकार किसी भी पार्टी की हो, सरकारी स्कूलों की हालत में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ली जाती. शिक्षकों और कर्मचारियों के हजारों पद रिक्त हैं. शिक्षकों से पढ़ाई के अलावा अन्य कई गैर-शैक्षणिक कार्य भी लिए जाते हैं. कई नेताओं और अधिकारियों ने अपने निजी स्कूल खोल रखे हैं, जिनसे उन्हें भारी मुनाफा होता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>शिक्षा विशेषज्ञ नवीन कुमार शर्मा के अनुसार, नेता और अधिकारी स्वयं अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं भेजते, जिससे आम जनता का भरोसा भी इन स्कूलों से उठ जाता है. इसके अतिरिक्त, सामाजिक प्रतिष्ठा (स्टेटस सिंबल) भी एक बड़ा कारण है &mdash; मिडिल क्लास को लगता है कि सरकारी स्कूलों में पढ़कर बच्चे गरीब समझे जाएंगे. पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चों को फेल न करने की नीति भी शिक्षा स्तर को गिरा रही है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कई सरकारी स्कूल केवल आंकड़ों में मौजूद हैं, वास्तविकता में उनका कोई ठोस आधार नहीं है. नियम इतने लचर हैं कि परीक्षा से एक दिन पहले भी कोई छात्र रजिस्ट्रेशन करवा कर परीक्षा में बैठ सकता है, और अगर वह कॉपी खाली छोड़ भी दे तो फेल नहीं होगा &mdash; केवल ग्रेड कम मिलेगा. ऐसे में अभिभावकों का यह सोचना स्वाभाविक है कि बच्चों का भविष्य दांव पर है, इसलिए वे निजी स्कूलों की महंगी फीस चुकाने को मजबूर हैं.</p>
<p style=”text-align: justify;”>कहा जा सकता है कि राजस्थान में सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति जस की तस बनी रहती है. यही कारण है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घटती जा रही है. विशेषज्ञों को आशंका है कि अगर यही हालात रहे तो आने वाले 20-30 वर्षों में सरकारी स्कूल इतिहास का हिस्सा बन सकते हैं. वैसे भी, शिक्षा जैसे मुद्दों पर चुनाव में वोट नहीं पड़ते, शायद यही कारण है कि सरकारों का ध्यान इस ओर गंभीरता से नहीं जाता.</p>  राजस्थान छपरा की खुशबू बनीं स्वच्छता की मिसाल, महिलाओं के बीच बांटे सैनिटरी पैड के 10 लाख पैकेट