‘अब मुझे अपनी जिंदगी से नफरत होने लगी है। खुद को कोसते-कोसते थक गई हूं। इतना ख्याल रखा, लेकिन सिर्फ नफरत ही मिली। हाथ पकड़ो तो झटक देते हैं। ऐसा लगता है, जान निकल गई है। कैसा प्यार है इनका, जिसमें मेरी कोई कदर ही नहीं।’ ये दर्द है 3 शादियां करने वाले ललितपुर के डिप्टी CMO अशोक कुमार की पहली पत्नी शकुन का। जिसे वो अपनी हरे रंग की डायरी में लिखकर खुद को तसल्ली देती थीं। शकुन अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी डायरी ने उन्हें इंसाफ दिलाया है। दैनिक भास्कर की टीम ने शकुन की डायरी हासिल की, पढ़िए उसमें क्या कुछ लिखा है… लेकिन पहले एक नजर में पूरा मामला… डिप्टी CMO को शुक्रवार को बांदा की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपनी पहली पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया। 7 साल की सजा सुनाई। फैसला आने में 28 साल का समय लग गया। डिप्टी CMO की दो पत्नियां और हैं, जिनसे उनकी तलाक की बात चल रही है। शकुन की शादी साल 1995 में डिप्टी CMO अशोक कुमार से हुई। तब डिप्टी CMO की पोस्टिंग बांदा में थी। रहने वाले इटावा के हैं। वहीं शकुन मथुरा की रहने वाली थी। शादी के समय वो बीए फस्ट ईयर में थी। 1996 में शकुन की मौत हो गई थी। उसने फांसी लगाई थी। शकुन के भाई ने दहेज हत्या का केस दर्ज कराया था। उसके बाद से ये केस चल रहा था। इस केस में 5 मुख्य गवाह थे। शकुन की लिखी एक हरी डायरी को इस मामले में अहम सबूत माना गया। जिसमें वो अपने साथ हुई हर चीज को लिखती थी। शकुन शादी के बाद से बहुत अकेली थी। घर पर अकेले रहती। पति साथ में होते हुए भी साथ नहीं था। इसलिए उसके साथ रोज जो-जो होता वो सब डायरी में लिख देती थी। उसकी डायरी को दैनिक भास्कर ने पेज दर पेज पढ़ा। आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि 27 पेज में उसने क्या कुछ लिखा है… पेज नंबर-1:
मेरे आंसुओं का इन पर फर्क नहीं पड़ता
आज मन भारी सा है…सोच रही थी भइया को लेटर भेजकर सब बता दूं… लेकिन इन्होंने लेटर भेजने से पहले ही पढ़ लिया। आज तो इनका गुस्सा करने का तरीका बिल्कुल अलग था। घर का सारा सामान उठाकर फेंक रहे थे। मेरी हालत ऐसी थी कि मैं बस पलंग पर पड़ी इनको देख रही थी। इनकी आवाज सुनकर लग रहा था, सिर दर्द से फट जाएगा। मेरे दर्द-मेरे आंसुओं का इन पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा नहीं है ये कुछ समझते नहीं हैं, लेकिन उसके बाद भी पता नहीं कैसे इतने कठोर बन जाते हैं। इनके शब्द मेरे मन में घाव कर जाते हैं जो भरने में काफी समय लेते हैं। पेज नंबर-2 घर की और भइया की बहुत याद आती है
जब से शादी करके इस घर में आयी हूं, बस 2 दिन ही खुश रह पाती हूं। उसके बाद फिर कुछ हो जाता है और सुख चैन छिन जाता है। दिन भर दीवारों से बात करके मन भर जाता है। ये आते हैं तो सोचती हूं साथ बैठकर कुछ बातें कर लूं लेकिन ये तो डांट कर भगा देते हैं। पास बैठने ही नहीं देते। मेरे साथ ये सब पहली बार थोड़ी न हुआ है। सोचा था इटावा से आने के बाद अच्छे से रहेंगे लेकिन कहां कुछ हुआ। कभी घर की बहुत याद आती है, भइया की बहुत याद आती है। पेज नंबर-3 मैं बदसूरत और अनपढ़ होती तो सहन कर लेती
भैया को मैंने जब-जब अपनी परेशानी बताई है वो और ज्यादा परेशान हो जाते। जब तक वो मेरी परेशानी को हल नहीं कर देते, तब तक खाना नहीं खाते थे। अब मैं उनसे भी कुछ नहीं कहती। मेरी उलझन-परेशानी अब बस मैं और इस घर की दीवारें जानती हैं। क्या ये मेरे सवालों का सही जवाब नहीं दे सकते हैं। सही जवाब देकर भी ये मेरी जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं। पर सब उल्टा हो जाता है। इनसे बात करके और दुखी हो जाती हूं। मैं बदसूरत होती, अनपढ़ होती तभी ये सब सहन कर लेती लेकिन बिना किसी कसूर के ये सब सहना मुश्किल है। मैंने खुद को बहुत बदला है लेकिन बदलाव की भी एक सीमा होती है। क्या मेरी भावनाओं की कोई कद्र नहीं है। हमेशा मेरी आंखे आंसुओं से भरी रहती हैं। पेज नंबर-4 इनको तो बस दिखावटी रिश्ते पसंद
जितने लोग भी उस फंक्शन में गए थे वो सब सुबह वापस आ गए हैं लेकिन ये नहीं आए हैं। इनको पता है मैं घर पर अकेली हूं लेकिन फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। इनको तो बस दिखावटी रिश्ते पसंद हैं। वास्तविक रिश्तों से इनका कोई वास्ता नहीं है। कभी अपने सगे साले को याद नहीं करते। एक शब्द उसके लिए नहीं बोलते। बस स्वार्थी रिश्तों में फंसे हैं। ऐसा लगता है पूरा बबेरू इनका है। इनके बिना यहां कोई काम नहीं होता है। पेज नंबर-5 ज्यादा बोल देती हूं तो फिर गुस्सा करने लगते हैं
इतना मानसिक तनाव रहता है, सोचती हूं इनसे बात करूं लेकिन ये हमेशा टाल देते हैं। रात में बात करनी चाही तो बोले सो जाओ, ज्यादा जागा मत करो। ज्यादा बोल देती हूं तो फिर गुस्सा करने लगते हैं। पता नहीं पति-पत्नी का रिश्ता इनको खराब क्यों लगता है? एक बात तो तय है मेरे न रहने या फिर मरने से भी मेरी परेशानी खत्म नहीं होगी। शायद इनको जितना मेरा होना चाहिए ये उतना नहीं हो पाए हैं। पेज नंबर-6 आज ये भी पूरा दिन घर पर रुके
आज सुबह पड़ोसन ने आकर बोला, भाभी मंदिर नहीं चलना है, आज शिवरात्रि है। इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि शिवरात्रि मुझे याद नहीं रही। आज ये भी पूरा दिन घर पर रुके। पूरा दिन इनको देखकर काट लिया। फिर रात में ये कानपुर चले गए और मैं फिर अकेली हो गई। अकेलापन बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन फिर भी किसी से मिलने का मन नहीं करता। सोचती हूं कहीं गलती से किसी के सामने कुछ बोल दिया तो…। ये मुझसे कहते हैं, घर में बोरियत बहुत होती है, कैरम लेकर आऊंगा। बताओ मुझसे बात करने का समय नहीं है लेकिन कैरम खेलने का है। पेज नंबर-10 कभी 5 मिनट साथ बैठकर प्यार से बात नहीं करते
आज मुझे इन्होंने धर्मेंद्र के साथ बाजार जाने के लिए बोल दिया। ये जानते हैं मुझे वो पसंद नहीं, क्या ये मेरे साथ नहीं चल सकते थे। अब तो इनके बारे में मुझे इनके दोस्तों से पता चलता है। उन लोगों से कैसे हंस-हंसकर बोलते हैं और हमको बस हमेशा डांटा करते हैं। मुझे बहुत दुख होता है। उस धर्मेंद्र के साथ जाना पड़ेगा ये सोच-सोचकर सिर दर्द होने लगा। उसके साथ जाने का बिल्कुल मन नहीं है। लेकिन मना भी नहीं कर सकती। बाजार जाने के पैसे मेज पर रखकर चले गए क्या मेरे हाथ में पैसे नहीं दे सकते थे? वैसे तो ये बातें बहुत छोटी हैं लेकिन मुझे परेशान करती हैं। कभी 5 मिनट साथ बैठकर प्यार से बात नहीं करते। कभी नजर उठाकर नहीं देखते हैं। और सब से हंसकर बात करते हैं, सबकी जिद मान लेते हैं लेकिन मैं अगर एक बात के लिए दो बार बोल दूं तो मूड खराब हो जाता है। पता नहीं क्यों लेकिन आज शाम को इन्होंने मुझे शर्मा के साथ भेज दिया। शायद ये समझ गए थे कि मैं धर्मेंद के साथ जाना नहीं चाहती हूं। पेज नंबर- 12 मैं ऐसे ही मर जाऊंगी
आज मुझे इनके बारे में एक बात पता चली, काश वो न पता चलती तो ही अच्छा था। वो सब कुछ मेरे सामने ही तो हो रहा था। एक रात में ही इतना बदलाव कैसे आया, सब समझ आ रहा था मुझे। जो ये कर रहे थे 2-4 साल में सबके सामने आ ही जाता। लेकिन अब मैं क्या करूं? रोते-रोते हार गई हूं। भगवान ऐसी जिंदगी से मैं मर जाती। ऐसा जीना भी कोई जीना है। ये मुझसे ऐसे दूर हो गए। अब ऐसा लगता है कोई बीमारी मुझे घेर लेगी या फिर मैं ऐसे ही मर जाऊंगी। पेज नंबर-14 और 15 मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है
इनका प्यार तो मुझे मिलेगा नहीं। जिसके लिए मैंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, आज उसको मेरे हंसने-रोने से कोई फर्क नहीं पड़ता। इनको मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है। मेरा दिल बहुत बोझिल होता जा रहा है। मैंने इनको जो लेटर मथुरा से लिखे थे, उसमें से इन्होंने एक भी नहीं पढ़ा। इतना बिजी कोई होता है क्या? इनके पास से मुझे एक लड़की के लेटर भी मिले, उसमें बहुत घटिया बातें लिखी हुई थी। पेज नंबर- 16, 17 और 18 मैं अपनी किस्मत नहीं बदल सकती
आज होली है, मैंने सभी को रंग डालने से मना कर दिया है। क्या फायदा इन झूठे रंगों का। इतने बड़े त्योहार पर भी मैं अकेली थी। कभी बहुत गुस्सा आता है। फिर सोचती हूं, मैं हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करूंगी। जो मुझे मेरे मां-बाप ने दिए हैं उन संस्कारों को गलत साबित नहीं करूंगी। मैं अपनी किस्मत नहीं बदल सकती। न ही हाथों की लकीरों को। पेज नंबर-19 डॉक्टर साहब के पास छुट्टी कहां है
आज घर से लेटर आया है। पापा का बीपी बढ़ा हुआ है। ऐसे में हम दोनों में से किसी एक को तो उनके पास होना चाहिए। लेकिन मैं कैसे जाऊं, डॉक्टर साहब के पास छुट्टी कहां है। एक और बात पिछले 1 साल से ये जो अंगूठी पहने हुए थे 4-5 दिन से दिख नहीं रही है। पता नहीं कहां है, पूछा तो बोल रहे थे, कहीं गिर गई होगी। पेज नंबर- 20 और 21 मेरे घर जल्दी से एक मेहमान आए
मैं सोचती हूं, अब जल्दी से एक छोटा सा मेहमान हमारे घर आ जाए। जो हमेशा मेरे साथ रहे। उसके आने से मेरा अकेलापन दूर हो जाएगा। मेरी ये बिना रंग वाली जिंदगी रंगों से भर जाएगी। पूरा दिन उसके साथ निकल जाएगा। रात में पता नहीं क्यों जबरदस्ती दूध पीने के लिए बोलने लगे। मुझे तो दूध बिल्कुल पसंद नहीं। पहले बोलते तो पीने भी लगती, अब एक दम से कहेंगे तो उल्टी ही होगी न। पेज नंबर- 22, 23 और 24 कुछ दिनों बाद तो मेरा कंकाल बचेगा बस
रात में बात कर रहे थे सुबह फिर वैसे हो गए, जैसे मैं इनके लिए कोई अनजान हूं। शादी से पहले मेरे घर वाले मुझे बहुत डांटते थे कि क्या हर समय गाना गाती रहती हो लेकिन अब तो एक गाना मुंह से नहीं निकलता। मानो खुशियां मुझसे बहुत दूर हो गई हो। किसी से बात करने का मन नहीं करता। अब तो मेरे चेहरे के भाव भी नहीं छुपते हैं। मेरा वजन पूरा 7 किलो कम हो चुका है। कुछ दिनों बाद तो कंकाल बचेगा बस। मुझसे कहते हैं घर का दरवाजा इतनी जल्दी क्यों बंद कर लेती हो। अब इनको कौन समझाए कि बाहर का कोई आकर बात करने लगेगा तो क्या बोलूंगी। जिन लड़कियों की नई-नई शादी होती है वो लोग कितना खुश रहती हैं, हमेशा हंसती रहती हैं और एक मुझे देख लो। अब तो कोई इच्छा नहीं रह गई है मेरी। सब कुछ खत्म लगता है। कैम्पस वाले इनको बताते हैं कि मैं किस तरह से रहती हूं लेकिन फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। शादी के बाद तो पढ़ाई भी चौपट है, पता नहीं मेरा क्या होना है? पेज नंबर- 25 हमें रुलाकर पता नहीं इनको क्या मिलता है
पता नहीं इनको क्या मिलता है मुझे रुलाकर। हमेशा डांट ही देते हैं, क्या कोई इंसान हमेशा गलत हो सकता है? अंगूठी के लिए पूछ लिया तो गाली दी। पता नहीं मुझे क्या-क्या कहने लगे। इनकी बातें सुनकर मेरा तो दिमाग ही काम करना बंद कर देता है। पापा के लिए लेटर लिख रहे थे क्या मुझे नहीं पढ़ा सकते थे। खाने के लिए पूछो तो गाली मिलती है। इससे अच्छा तो ये मुझे मेरे घर भेज दें। कम से कम चैन की सांस तो ले पाऊंगी। पेज नंबर- 26 और 27 मैं पसंद नहीं थी तो शादी नहीं करते मैं नहीं पसंद थी तो नहीं करते शादी…मुझे हर समय ताना क्यों देते हो। शादी के बाद हर लड़की का घर उसका पति का घर हो जाता है। लेकिन इन सबसे हटकर भी एक चीज होती है, जिसे लगाव कहते हैं। लेकिन मुझे वो दिखाई नहीं देता। मुझे अपने हाथ खाली ही दिखाई देते हैं। ये डायरी इनसे छिपकर लिखती हूं लेकिन ये डायरी को रोज पढ़ते हैं लेकिन फिर भी नहीं बदलते। पता नहीं किस कसूर की सजा मुझे ये दे रहे हैं। ये भी पढ़ें… तीन पत्नी वाले डिप्टी CMO को 7 साल की जेल: बांदा कोर्ट ने 28 साल बाद सुनाई सजा; ‘हरी डायरी’ से खुला राज ललितपुर के डिप्टी CMO अशोक कुमार को बांदा कोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने पहली पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और सुसाइड के लिए उकसाने का दोषी माना। मामले में 28 साल बाद शुक्रवार शाम फास्ट ट्रैक कोर्ट की जज पल्लवी प्रकाश ने डिप्टी CMO को सजा सुनाई। 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है…(पूरी खबर पढ़ें) ‘अब मुझे अपनी जिंदगी से नफरत होने लगी है। खुद को कोसते-कोसते थक गई हूं। इतना ख्याल रखा, लेकिन सिर्फ नफरत ही मिली। हाथ पकड़ो तो झटक देते हैं। ऐसा लगता है, जान निकल गई है। कैसा प्यार है इनका, जिसमें मेरी कोई कदर ही नहीं।’ ये दर्द है 3 शादियां करने वाले ललितपुर के डिप्टी CMO अशोक कुमार की पहली पत्नी शकुन का। जिसे वो अपनी हरे रंग की डायरी में लिखकर खुद को तसल्ली देती थीं। शकुन अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी डायरी ने उन्हें इंसाफ दिलाया है। दैनिक भास्कर की टीम ने शकुन की डायरी हासिल की, पढ़िए उसमें क्या कुछ लिखा है… लेकिन पहले एक नजर में पूरा मामला… डिप्टी CMO को शुक्रवार को बांदा की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपनी पहली पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी पाया। 7 साल की सजा सुनाई। फैसला आने में 28 साल का समय लग गया। डिप्टी CMO की दो पत्नियां और हैं, जिनसे उनकी तलाक की बात चल रही है। शकुन की शादी साल 1995 में डिप्टी CMO अशोक कुमार से हुई। तब डिप्टी CMO की पोस्टिंग बांदा में थी। रहने वाले इटावा के हैं। वहीं शकुन मथुरा की रहने वाली थी। शादी के समय वो बीए फस्ट ईयर में थी। 1996 में शकुन की मौत हो गई थी। उसने फांसी लगाई थी। शकुन के भाई ने दहेज हत्या का केस दर्ज कराया था। उसके बाद से ये केस चल रहा था। इस केस में 5 मुख्य गवाह थे। शकुन की लिखी एक हरी डायरी को इस मामले में अहम सबूत माना गया। जिसमें वो अपने साथ हुई हर चीज को लिखती थी। शकुन शादी के बाद से बहुत अकेली थी। घर पर अकेले रहती। पति साथ में होते हुए भी साथ नहीं था। इसलिए उसके साथ रोज जो-जो होता वो सब डायरी में लिख देती थी। उसकी डायरी को दैनिक भास्कर ने पेज दर पेज पढ़ा। आपको सिलसिलेवार बताते हैं कि 27 पेज में उसने क्या कुछ लिखा है… पेज नंबर-1:
मेरे आंसुओं का इन पर फर्क नहीं पड़ता
आज मन भारी सा है…सोच रही थी भइया को लेटर भेजकर सब बता दूं… लेकिन इन्होंने लेटर भेजने से पहले ही पढ़ लिया। आज तो इनका गुस्सा करने का तरीका बिल्कुल अलग था। घर का सारा सामान उठाकर फेंक रहे थे। मेरी हालत ऐसी थी कि मैं बस पलंग पर पड़ी इनको देख रही थी। इनकी आवाज सुनकर लग रहा था, सिर दर्द से फट जाएगा। मेरे दर्द-मेरे आंसुओं का इन पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा नहीं है ये कुछ समझते नहीं हैं, लेकिन उसके बाद भी पता नहीं कैसे इतने कठोर बन जाते हैं। इनके शब्द मेरे मन में घाव कर जाते हैं जो भरने में काफी समय लेते हैं। पेज नंबर-2 घर की और भइया की बहुत याद आती है
जब से शादी करके इस घर में आयी हूं, बस 2 दिन ही खुश रह पाती हूं। उसके बाद फिर कुछ हो जाता है और सुख चैन छिन जाता है। दिन भर दीवारों से बात करके मन भर जाता है। ये आते हैं तो सोचती हूं साथ बैठकर कुछ बातें कर लूं लेकिन ये तो डांट कर भगा देते हैं। पास बैठने ही नहीं देते। मेरे साथ ये सब पहली बार थोड़ी न हुआ है। सोचा था इटावा से आने के बाद अच्छे से रहेंगे लेकिन कहां कुछ हुआ। कभी घर की बहुत याद आती है, भइया की बहुत याद आती है। पेज नंबर-3 मैं बदसूरत और अनपढ़ होती तो सहन कर लेती
भैया को मैंने जब-जब अपनी परेशानी बताई है वो और ज्यादा परेशान हो जाते। जब तक वो मेरी परेशानी को हल नहीं कर देते, तब तक खाना नहीं खाते थे। अब मैं उनसे भी कुछ नहीं कहती। मेरी उलझन-परेशानी अब बस मैं और इस घर की दीवारें जानती हैं। क्या ये मेरे सवालों का सही जवाब नहीं दे सकते हैं। सही जवाब देकर भी ये मेरी जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं। पर सब उल्टा हो जाता है। इनसे बात करके और दुखी हो जाती हूं। मैं बदसूरत होती, अनपढ़ होती तभी ये सब सहन कर लेती लेकिन बिना किसी कसूर के ये सब सहना मुश्किल है। मैंने खुद को बहुत बदला है लेकिन बदलाव की भी एक सीमा होती है। क्या मेरी भावनाओं की कोई कद्र नहीं है। हमेशा मेरी आंखे आंसुओं से भरी रहती हैं। पेज नंबर-4 इनको तो बस दिखावटी रिश्ते पसंद
जितने लोग भी उस फंक्शन में गए थे वो सब सुबह वापस आ गए हैं लेकिन ये नहीं आए हैं। इनको पता है मैं घर पर अकेली हूं लेकिन फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। इनको तो बस दिखावटी रिश्ते पसंद हैं। वास्तविक रिश्तों से इनका कोई वास्ता नहीं है। कभी अपने सगे साले को याद नहीं करते। एक शब्द उसके लिए नहीं बोलते। बस स्वार्थी रिश्तों में फंसे हैं। ऐसा लगता है पूरा बबेरू इनका है। इनके बिना यहां कोई काम नहीं होता है। पेज नंबर-5 ज्यादा बोल देती हूं तो फिर गुस्सा करने लगते हैं
इतना मानसिक तनाव रहता है, सोचती हूं इनसे बात करूं लेकिन ये हमेशा टाल देते हैं। रात में बात करनी चाही तो बोले सो जाओ, ज्यादा जागा मत करो। ज्यादा बोल देती हूं तो फिर गुस्सा करने लगते हैं। पता नहीं पति-पत्नी का रिश्ता इनको खराब क्यों लगता है? एक बात तो तय है मेरे न रहने या फिर मरने से भी मेरी परेशानी खत्म नहीं होगी। शायद इनको जितना मेरा होना चाहिए ये उतना नहीं हो पाए हैं। पेज नंबर-6 आज ये भी पूरा दिन घर पर रुके
आज सुबह पड़ोसन ने आकर बोला, भाभी मंदिर नहीं चलना है, आज शिवरात्रि है। इतने सालों में ऐसा पहली बार हुआ कि शिवरात्रि मुझे याद नहीं रही। आज ये भी पूरा दिन घर पर रुके। पूरा दिन इनको देखकर काट लिया। फिर रात में ये कानपुर चले गए और मैं फिर अकेली हो गई। अकेलापन बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन फिर भी किसी से मिलने का मन नहीं करता। सोचती हूं कहीं गलती से किसी के सामने कुछ बोल दिया तो…। ये मुझसे कहते हैं, घर में बोरियत बहुत होती है, कैरम लेकर आऊंगा। बताओ मुझसे बात करने का समय नहीं है लेकिन कैरम खेलने का है। पेज नंबर-10 कभी 5 मिनट साथ बैठकर प्यार से बात नहीं करते
आज मुझे इन्होंने धर्मेंद्र के साथ बाजार जाने के लिए बोल दिया। ये जानते हैं मुझे वो पसंद नहीं, क्या ये मेरे साथ नहीं चल सकते थे। अब तो इनके बारे में मुझे इनके दोस्तों से पता चलता है। उन लोगों से कैसे हंस-हंसकर बोलते हैं और हमको बस हमेशा डांटा करते हैं। मुझे बहुत दुख होता है। उस धर्मेंद्र के साथ जाना पड़ेगा ये सोच-सोचकर सिर दर्द होने लगा। उसके साथ जाने का बिल्कुल मन नहीं है। लेकिन मना भी नहीं कर सकती। बाजार जाने के पैसे मेज पर रखकर चले गए क्या मेरे हाथ में पैसे नहीं दे सकते थे? वैसे तो ये बातें बहुत छोटी हैं लेकिन मुझे परेशान करती हैं। कभी 5 मिनट साथ बैठकर प्यार से बात नहीं करते। कभी नजर उठाकर नहीं देखते हैं। और सब से हंसकर बात करते हैं, सबकी जिद मान लेते हैं लेकिन मैं अगर एक बात के लिए दो बार बोल दूं तो मूड खराब हो जाता है। पता नहीं क्यों लेकिन आज शाम को इन्होंने मुझे शर्मा के साथ भेज दिया। शायद ये समझ गए थे कि मैं धर्मेंद के साथ जाना नहीं चाहती हूं। पेज नंबर- 12 मैं ऐसे ही मर जाऊंगी
आज मुझे इनके बारे में एक बात पता चली, काश वो न पता चलती तो ही अच्छा था। वो सब कुछ मेरे सामने ही तो हो रहा था। एक रात में ही इतना बदलाव कैसे आया, सब समझ आ रहा था मुझे। जो ये कर रहे थे 2-4 साल में सबके सामने आ ही जाता। लेकिन अब मैं क्या करूं? रोते-रोते हार गई हूं। भगवान ऐसी जिंदगी से मैं मर जाती। ऐसा जीना भी कोई जीना है। ये मुझसे ऐसे दूर हो गए। अब ऐसा लगता है कोई बीमारी मुझे घेर लेगी या फिर मैं ऐसे ही मर जाऊंगी। पेज नंबर-14 और 15 मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है
इनका प्यार तो मुझे मिलेगा नहीं। जिसके लिए मैंने अपनी पूरी जिंदगी लगा दी, आज उसको मेरे हंसने-रोने से कोई फर्क नहीं पड़ता। इनको मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है। मेरा दिल बहुत बोझिल होता जा रहा है। मैंने इनको जो लेटर मथुरा से लिखे थे, उसमें से इन्होंने एक भी नहीं पढ़ा। इतना बिजी कोई होता है क्या? इनके पास से मुझे एक लड़की के लेटर भी मिले, उसमें बहुत घटिया बातें लिखी हुई थी। पेज नंबर- 16, 17 और 18 मैं अपनी किस्मत नहीं बदल सकती
आज होली है, मैंने सभी को रंग डालने से मना कर दिया है। क्या फायदा इन झूठे रंगों का। इतने बड़े त्योहार पर भी मैं अकेली थी। कभी बहुत गुस्सा आता है। फिर सोचती हूं, मैं हमेशा अपने कर्तव्यों का पालन करूंगी। जो मुझे मेरे मां-बाप ने दिए हैं उन संस्कारों को गलत साबित नहीं करूंगी। मैं अपनी किस्मत नहीं बदल सकती। न ही हाथों की लकीरों को। पेज नंबर-19 डॉक्टर साहब के पास छुट्टी कहां है
आज घर से लेटर आया है। पापा का बीपी बढ़ा हुआ है। ऐसे में हम दोनों में से किसी एक को तो उनके पास होना चाहिए। लेकिन मैं कैसे जाऊं, डॉक्टर साहब के पास छुट्टी कहां है। एक और बात पिछले 1 साल से ये जो अंगूठी पहने हुए थे 4-5 दिन से दिख नहीं रही है। पता नहीं कहां है, पूछा तो बोल रहे थे, कहीं गिर गई होगी। पेज नंबर- 20 और 21 मेरे घर जल्दी से एक मेहमान आए
मैं सोचती हूं, अब जल्दी से एक छोटा सा मेहमान हमारे घर आ जाए। जो हमेशा मेरे साथ रहे। उसके आने से मेरा अकेलापन दूर हो जाएगा। मेरी ये बिना रंग वाली जिंदगी रंगों से भर जाएगी। पूरा दिन उसके साथ निकल जाएगा। रात में पता नहीं क्यों जबरदस्ती दूध पीने के लिए बोलने लगे। मुझे तो दूध बिल्कुल पसंद नहीं। पहले बोलते तो पीने भी लगती, अब एक दम से कहेंगे तो उल्टी ही होगी न। पेज नंबर- 22, 23 और 24 कुछ दिनों बाद तो मेरा कंकाल बचेगा बस
रात में बात कर रहे थे सुबह फिर वैसे हो गए, जैसे मैं इनके लिए कोई अनजान हूं। शादी से पहले मेरे घर वाले मुझे बहुत डांटते थे कि क्या हर समय गाना गाती रहती हो लेकिन अब तो एक गाना मुंह से नहीं निकलता। मानो खुशियां मुझसे बहुत दूर हो गई हो। किसी से बात करने का मन नहीं करता। अब तो मेरे चेहरे के भाव भी नहीं छुपते हैं। मेरा वजन पूरा 7 किलो कम हो चुका है। कुछ दिनों बाद तो कंकाल बचेगा बस। मुझसे कहते हैं घर का दरवाजा इतनी जल्दी क्यों बंद कर लेती हो। अब इनको कौन समझाए कि बाहर का कोई आकर बात करने लगेगा तो क्या बोलूंगी। जिन लड़कियों की नई-नई शादी होती है वो लोग कितना खुश रहती हैं, हमेशा हंसती रहती हैं और एक मुझे देख लो। अब तो कोई इच्छा नहीं रह गई है मेरी। सब कुछ खत्म लगता है। कैम्पस वाले इनको बताते हैं कि मैं किस तरह से रहती हूं लेकिन फिर भी इनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। शादी के बाद तो पढ़ाई भी चौपट है, पता नहीं मेरा क्या होना है? पेज नंबर- 25 हमें रुलाकर पता नहीं इनको क्या मिलता है
पता नहीं इनको क्या मिलता है मुझे रुलाकर। हमेशा डांट ही देते हैं, क्या कोई इंसान हमेशा गलत हो सकता है? अंगूठी के लिए पूछ लिया तो गाली दी। पता नहीं मुझे क्या-क्या कहने लगे। इनकी बातें सुनकर मेरा तो दिमाग ही काम करना बंद कर देता है। पापा के लिए लेटर लिख रहे थे क्या मुझे नहीं पढ़ा सकते थे। खाने के लिए पूछो तो गाली मिलती है। इससे अच्छा तो ये मुझे मेरे घर भेज दें। कम से कम चैन की सांस तो ले पाऊंगी। पेज नंबर- 26 और 27 मैं पसंद नहीं थी तो शादी नहीं करते मैं नहीं पसंद थी तो नहीं करते शादी…मुझे हर समय ताना क्यों देते हो। शादी के बाद हर लड़की का घर उसका पति का घर हो जाता है। लेकिन इन सबसे हटकर भी एक चीज होती है, जिसे लगाव कहते हैं। लेकिन मुझे वो दिखाई नहीं देता। मुझे अपने हाथ खाली ही दिखाई देते हैं। ये डायरी इनसे छिपकर लिखती हूं लेकिन ये डायरी को रोज पढ़ते हैं लेकिन फिर भी नहीं बदलते। पता नहीं किस कसूर की सजा मुझे ये दे रहे हैं। ये भी पढ़ें… तीन पत्नी वाले डिप्टी CMO को 7 साल की जेल: बांदा कोर्ट ने 28 साल बाद सुनाई सजा; ‘हरी डायरी’ से खुला राज ललितपुर के डिप्टी CMO अशोक कुमार को बांदा कोर्ट ने 7 साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने पहली पत्नी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने और सुसाइड के लिए उकसाने का दोषी माना। मामले में 28 साल बाद शुक्रवार शाम फास्ट ट्रैक कोर्ट की जज पल्लवी प्रकाश ने डिप्टी CMO को सजा सुनाई। 25 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है…(पूरी खबर पढ़ें) उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर