बाहुबली मुख्तार-उमाकांत से मोर्चा लेने वाले IPS बालेंदु भूषण:PCS अफसर की नौकरी छोड़ पहनी खाकी वर्दी, 127 सिखों के हत्यारों को भिजवाया जेल “मैं जब आजमगढ़ में पोस्टेड था तब माफिया उमाकांत यादव का जलवा कायम था। वह गेस्ट हाउस कांड का आरोपी था। उसी समय मायावती यूपी की सीएम बनीं और उमाकांत पर एक्शन की प्लानिंग शुरू हो गई। मैं जब पहली बार उसके घर पर रेड मारने गया तो उसके गुर्गों की भीड़ ऐसी थी जैसे किसी किले की रक्षा के लिए लगे हों। आधुनिक हथियारों के साथ वो पुलिस को दरवाजे पर रोकते थे। हम जबरन अंदर घुसे, लेकिन उमाकांत फरार हो चुका था। हमने नोटिस चस्पा किया और आठ दिन में ही करीब 20 अलग-अलग जगहों पर रेड मारी। उसके लोगों ने धमकाने की भी कोशिश की। लेकिन मैंने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि बाहुबली उमाकांत को सरेंडर ही करना पड़ गया।” माफियाओं के खिलाफ एक्शन की ये कहानी बता रहे हैं IPS बालेंदु भूषण। खाकी वर्दी में आज कहानी IPS बालेंदु भूषण सिंह की। अपने 32 साल के कॅरियर में बालेंदु ने जहां मुख्तार से मोर्चा लिया, वहीं सिख दंगों के आरोपियों पर भी बड़ी कार्रवाई की। ये कहानी आप 4 चैप्टर में पढ़ेंगे… वर्ष 1963 में प्रतापगढ़ जिले के बऊचरा गांव में जन्मे बालेंदु अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए बताते हैं, मेरे पिता राजघराने से ताल्लुक रखते थे। वे बहुत ही सख्त लहजे वाले और पारिवारिक संस्कारों का ध्यान रखने वाले व्यक्ति थे। मेरी पढ़ाई हिंदी मीडियम से शुरू हुई, उन दिनों ज्यादातर ऐसे ही स्कूल हुआ करते थे। प्राथमिक कक्षाओं से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई मैंने कस्बे के महात्मा गांधी इंटर कॉलेज से पूरी की। इसके बाद पिता जी ने पढ़ने के लिए इलाहाबाद भेज दिया। यहां मैंने युनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 7 साल तक पढ़ाई की। 1986 में MA करने के बाद PHD शुरू कर दी। इसी दौरान मेरा सिलेक्शन CSIR में हो गया। लेकिन मैं वहां ज्वाइन करने ही नहीं गया। अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही मैंने सिविल सर्विस की तैयारी भी शुरू कर दी थी। दो साल की तैयारी में मेरा सिलेक्शन UPPCS में हो गया। 1988 में मुझे पहली ज्वाॅइनिंग समाज कल्याण विभाग में मिली। यहां पर जब मैंने वर्किंग शुरू की तो पहले ठीक लगा। लेकिन धीरे-धीरे बहुत रुटीन लगने लगा। ऐसा लगा जैसे किसी क्लर्क की तरह वर्किंग कर रहा हूं। सिर्फ फाइलों पर काम करना था। फील्ड वर्क कुछ ज्यादा नहीं था। इसलिए इस जॉब में मैं बंदिश महसूस करने लगा। मेरे बड़े भाई भी PCS अफसर थे। उनकी दिनचर्या भी मैं इसी तरह देखता रहता था। मैंने तय किया कि ये क्लर्क की तरह नौकरी मुझसे बहुत दिन तक नहीं हो पाएगी। मुझे पुलिस महकमा काफी पसंद था। ऐसा लगता था कि वहां आप अपराधियों के खिलाफ कुछ कर सकते हैं। किसी जरूरत मंद की तत्काल मदद कर सकते हैं। इसलिए मैंने PPS की तैयारी शुरू कर दी। 1989 में फर्स्ट अटेम्प्ट में ही मेरा पीपीएस में सेलेक्शन हो गया। मेरी दसवीं रैंक आई, उस समय सेशन थोड़ा डिले चल रहा था। इसलिए वर्ष 1992 में मुझे ट्रेनिंग के लिए भेजा गया। छह महीने ट्रेनिंग के बाद मुझे पहली ज्वाइनिंग फूलपुर में मिली। इसके साथ ही यूपी पुलिस के साथ वर्किंग शुरू हो गई। सफर इतना शानदार रहा कि मुझे 2014 में प्रमोट करके IPS बनाया गया। इस दौरान कई उतार-चढ़ाव भी देखने को मिले। माफिया उमाकांत पर शिकंजा कसने के सवाल पर बालेंदु बताते हैं कि, इसके लिए पहले आपको यूपी का गेस्ट हाउस कांड जानना जरूरी है। ये बात 1995 की है, उन दिनों उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और मायावती गठबंधन की सरकार थी। ये सरकार 1993 से चल रही थी। जून 1995 में अचानक मायावती ने समर्थन वापस ले लिया और मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई। इसके बाद मुलायम सिंह सरकार बचाने के लिए सियासी गुणा-गणित लगा रहे थे। 2 जून, 1995 का दिन था। मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में अपने विधायकों के साथ मीटिंग कर रही थीं। वो अपनी सरकार बनाने की सियासी कसरत कर रही थीं। बताया जा रहा था कि वह बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना बना रही हैं। इसी बीच सपा के समर्थकों और कुछ विधायकों ने गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। मायावती पर जानलेवा हमला हुआ और उनके विधायकों को दौड़ाकर पीटा गया। मायावती को सबक सिखाने के लिए ये भीड़ कुछ भी करने को आमादा थी। मायावती की जीवनी पर आधारित अजय बोस की पुस्तक ‘बहनजी’ में उस दिन की घटना का पूरा जिक्र मिलता है। उन्होंने लिखा है कि सपा के लठैत विधायक बसपा के विधायकों को इस तरह पीट रहे थे, जैसे कोई गली का झगड़ा हो रहा हो। मायावाती ने खुद को जिस कमरे में बंद किया था, हमलावर दरवाजा तोड़कर उसमें प्रवेश कर गए। इसी बीच बीजेपी विधायक ब्रह्म दत्त द्विवेदी ने अपनी जान पर खेलकर मायावती की रक्षा की। उन्होंने सपा विधायकों को पीछे धकेला। वे खुद भी काफी दबंग विधायक के रूप में जाने जाते थे। इस कारण सपा के विधायक उनसे सीधा भिड़ना नहीं चाहते थे। ब्रम्ह दत्त ने मायावती की जान बचाई। उत्तर प्रदेश के इतिहास में इस कांड को गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है। इस कांड में मुलायम सिंह समेत पांच लोगों पर आरोप लगा था। गेस्ट हाउस कांड में पूरी साजिश रचने का आरोप मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव पर लगा। गेस्ट हाउस कांड में तीसरा सबसे बड़ा नाम था पूर्व सांसद व बाहुबली अतीक अहमद का। मायावती ने कई बार मंचों से ऐलान किया कि अतीक ने उन्हें गेस्ट हाउस में मारने की साजिश रची थी। साजिशकर्ताओं में चौथा बड़ा नाम था उमाकांत यादव का और पांचवां चर्चित माफिया अन्ना शुक्ला का। इसके बाद मुकदमे दर्ज हुए। अब बीजेपी के साथ गठबंधन में मायावती की सरकार आ गई। मैं उन दिनों आजमगढ़ में तैनात था, मेरे सामने उमाकांत यादव को गिरफ्तार करने की चुनौती थी। मैं जब पहली बार उसके घर पर रेड करने गया तो लगा कि किले में घुस रहा हूं। चारों तरफ हथियारबंद लोग ऐसे निगहबानी कर रहे थे, जैसे कोई जिंदा बाहर आएगा ही नहीं। नोटिस चस्पा करने के बाद हमने लगभग 15 बार उसके ठिकानों पर रेड की। अंत में उमाकांत ने सरेंडर कर दिया, हालांकि उस दौरान उसके कई चाहने वाले सिस्टम में थे जो उसे पहले ही आगाह कर देते थे। मुख्तार के खिलाफ एक्शन पर बालेंदु बताते हैं, आजमगढ़ में उमाकांत के सरेंडर के बाद मेरा तबादला मऊ कर दिया गया। यहां मुख्तार का जलवा कायम था। आम आदमी के साथ-साथ पुलिस के लोग भी मुख्तार से खौफ खाते थे। संयोग से ऐसा हुआ कि अक्टूबर, 2005 में जब मैं मऊ पहुंचा तो वहां दंगा भड़क गया। 14 अक्टूबर, 2005 का दिन था, अचानक बहुत बड़ा बवाल हो गया। 4-5 घंटे में ही करीब 15 मर्डर हुए। किसी बॉडी पर चाकू घोंपने के तो किसी पर गोली लगने के घाव थे। इस दंगे में राम प्रताप नाम के एक व्यक्ति की सलाहाबाद में हत्या कर दी गई थी। सलाहाबाद रोड के एक तरफ हिंदू और दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग खड़े थे। बीच में मुख्तार की गाड़ी चल रही थी, तभी एक गोली चलती है और रामप्रताप यादव को जाकर लगती है, जिससे उसकी मौत हो जाती है। इसका इल्जाम मुख्तार अंसारी पर लगा। राम प्रताप मऊ रेलवे स्टेशन से करीब 25 किमी दूर अछारा गांव का रहने वाला था। मऊ में दंगे फैलाने को लेकर मुख्तार के खिलाफ केस दर्ज हुआ। मऊ दंगे की अफवाह देखते-देखते पूरे प्रदेश में फैल गई। प्रदेश सरकार पूरी तरह सजग हो गई और मुख्तार की गिरफ्तारी का दबाव आने लगा। मैं उन दिनों एडिशनल एसपी हुआ करता था। जब हमारी पुलिस टीम मुख्तार की गिरफ्तारी के लिए दबिश डालने जाती थी तो उसके गुर्गे सामने आ जाया करते थे। यहां तक कि विभाग में भी लोग उसकी सरपरस्ती करते दिखाई देते थे। लेकिन हमने लगातार उस दबाव बनाया और 25 अक्टूबर, 2005 को मुख्तार ने गाजीपुर में सरेंडर कर दिया। तब से लेकर अपनी मौत तक वह जेल में ही रहा। अब तक के कॅरियर के सबसे सैटिस्फैक्ट्री काम पर बालेंदु कानपुर का नाम लेते हैं। वे बताते हैं कि साल 2019 में मुझे कानपुर में हुए सिख दंगों के लिए बनाई गई SIT की जिम्मेदारी दी गई। 38 साल पुराना यह ऐसा केस था, जिसमें 127 सिखों की हत्या की गई थी। यह कानपुर का सबसे चर्चित सिख दंगा था, जिसकी जांच लंबे समय से चल रही थी। उस दौरान हत्या, लूट और डकैती के 40 मुकदमे दर्ज हुए थे। पुलिस ने इनमें से 29 मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। इस बात को लेकर कानपुर के सिख संगठन विरोध प्रदर्शन पर उतर आए थे। भारी विरोध के चलते प्रशासन ने सिखों की मांग पर 27 मई, 2019 को विशेष जांच दल यानी SIT बनाई। जब मुझे यह जिम्मेदारी मिली तो मैंने परत दर परत इसकी जांच पड़ताल शुरू की। जिसमें सामने आया कि कुछ आरोपी तो जिंदा थे, जबकि कुछ की मौत हो चुकी थी। सिर्फ यही नहीं, जांच के दौरान एक पूर्व मंत्री शिवनाथ कुशवाहा के भतीजे राघवेंद्र कुशवाहा का नाम भी सामने आया। पूर्व मंत्री के भतीजे समेत 15 से ज्यादा रसूखदार आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। नाम सामने आने के बाद से सभी फरार हो गए। आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए लगातार दबिश दी जाने लगी। इस दौरान मैंने 28 लोगों की गिरफ्तारी करवाई और उनको जेल भिजवाया। 11 मामलों में चार्जशीट दाखिल की। जब मेरा तबादला हुआ तो तमाम सिख संगठनों ने निराशा जाहिर की। मुझे ऐसा लगा कि वाकई मैं उन लोगों को न्याय दिलाने में कुछ प्रयास कर पाया। इसलिए मैं कानपुर की वर्किंग को अपनी सबसे सैटिस्फाइड वर्किंग मानता हूं। युवाओं को संदेश…अपना गोल सेट कर तैयारी में जुटें
सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले युवाओं से मैं यही कहना चाहता हूं कि इस क्षेत्र में उतरने से पहले अपने आत्मविश्वास को मजबूत करें। डिसाइड करें कि मुझे टारगेट अचीव करना ही है। इस राह में कुछ कठिनाइयां जरूर आएंगी। लेकिन अपना गोल सेट करें और तैयारी में जुट जाएं। अपने विषयों पर नियमित समय दें और आसपास हो रही घटनाओं पर नजर रखें। सिविल सर्विस में विषय विशेषज्ञ बनने की जरूरत नहीं है। लेकिन जानकारी हर विषय की होनी चाहिए। IPS में आना चाहते हैं तो सिर्फ वर्दी का ग्लैमर देखकर न आएं। यहां बहुत चुनौतियां हैं। अगर लोगों के लिए कुछ करने का माद्दा रखते हैं तो ही इस फील्ड में आएं।